Monday, January 16, 2012

स्वच्छ परियोजना की स्वच्छता पर सवालिया निशान

लखन सालवी 

बारां जिले के आदिवासियों के साथ छलावा हो रहा है। इस जिले के आदिवासी क्षेत्र किशनगंज व शाहबाद में सहरिया आदिवासी समुदाय को चिकित्सा, शिक्षा, पोषण, रोजगार, आवास तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी लाभ देने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन इस समुदाय को इस पैसे का लाभ नहीं मिल पा रहा है। 
सरकार ने सहरिया समुदाय के विकास के लिए सहरिया परियोजना 1977-78 से संचालित की है। इस परियोजना के द्वारा आदिवासी समुदाय के विकास की परिकल्पना की जा रही है। इस परियोजना के माध्यम से आदिवासी समुदाय के बच्चों की शिक्षा के स्तर व पोषण स्तर को बढ़ाने के साथ-साथ समुदाय के लोगों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए कृषि, उघोग इत्यादि हेतु ऋण की योजनाएं संचालित की जा रही है। इसी परियोजना के अंतर्गत सहरिया समुदाय के लोगों के लिए आवास भी बनाए जा रहे है। पूर्व ये आवास परियोजना द्वारा ही बनवाए जाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से स्वच्छ परियोजना के द्वारा आवासों का निर्माण करवाया जा रहा है तथा सहरिया समुदाय के बच्चों की  शिक्षा  व पोषण के स्तर को बढ़ाने के लिए भी स्वच्छ परियोजना ही कार्यकारी ऐजेन्सी है। 
लेकिन सहरिया परियोजना द्वारा करवाए जा रहे विकास का पूरा लाभ इस समुदाय के लोगों को नहीं मिल पा रहा है। सहरिया समुदाय के लिए इस परियोजनान्तर्गत बनवाए जा रहे आवासों की स्थिति की जानकारी लेने मात्र से इस परियोजना द्वारा करवाए जा रहे विकास कार्यों से सहरियाओं को मिले लाभ की स्थिति स्पष्ट हो रही है।  
सहरिया आवास योजना के तहत सहरिया समुदाय के गरीब परिवारों का चयन कर महिला चिन्हित कर उनके लिए आवासीय मकानों को निर्माण करवा जाता है। योजनान्तर्गत गांव के आस-पास एक कालोनी बनाई जाती है।  किशनगंज व शाहबाद क्षेत्र के लिए हर वर्ष करीबन 500 आवासों की स्वीकृति दी जाती है। लेकिन आवास ना तो गुणवत्तापूर्ण बनाए जा रहे है ना ही समय पर। यूं तो अब तक हजारों सहरिया आवास स्वीकृत हो चुके है। लेकिन निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। अधिकतर आवास घटिया निर्माण के कारण क्षतिग्रस्त हो चुके है। क्षेत्र में कार्य कर रहे हाड़ौती मीडिया रिेसोर्स सेन्टर द्वारा सूचना के अधिकार के तहत सूचना ली तथा इसके मीडिया फैलो ने वर्ष 2008-09 में स्वीकृत हुए आवासों की स्थिति का अध्ययन किया तो चोंकाने वाले परिणाम सामने आए। 
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार  किशनगंज  व शाहबाद ब्लाक में वर्ष 2008-09 में 523 सहरिया आवास स्वीकृत हुए। जिनमें से अब तक 188 सहरिया आवासों का ही निर्माण कार्य पूरा हो पाया है। अध्ययन के अनुसार  किशनगंज  में स्वीकृत हुए 299 सहरिया आवासों में से 146 आवासों का निर्माण ही पूरा हो पाया है। 153 आवासों का निर्माण कार्य अधर झूल में है। इनमें भी 61 आवासों पर छतें नहीं डली है, 121 आवासों के खिड़की व दरवाजें नहीं लगे है तथा प्लास्टर भी नहीं हुआ है। 
इसी प्रकार शाहबाद ब्लाक में स्वीकृत हुए 224 आवासों में से महज 42 आवासों का निर्माण कार्य पूरा हो पाया है। यहां 182 आवासों का काम अधूरा पड़ा है। इनमें से 65 आवासों पर छतें नहीं डली है, 80 आवासों के खिड़की व दरवाजें नहीं लगे है तथा 42 आवासों  में  प्लास्टर नहीं किया गया है। 
इन आवासों के निर्माण में लाभार्थी के परिवारजनों से भी काम करवाया गया है। लेकिन उन्हें मेहनताने का भुगतान नहीं किया गया है।  किशनगंज  ब्लाक के कुण्दा, रणवासी, गीगचा सहित दर्जन भर गांवों के सहरिया लोगों ने बताया कि उनसे आवास निर्माण में काम किया लेकिन उन्हें भुगतान नहीं किया गया। साथ ही आवास में खिड़की व दरवाजे के लिए लगाई फर्सी के टुकड़े मंगवाने के लिए किराया व उतारने चढ़ाने के लिए हमालों को भी लाभार्थियों द्वारा ही भुगतान किया गया। 
नया गांव व लक्ष्मीपुरा  में  10-10 आवास निर्माणाधीन है। लाभार्थियाओं ने बताया कि पिछले एक साल से निर्माण कार्य चल रहा है। लेकिन अभी तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। इन आवासों के निर्माण में लाभार्थियाओं के परिवार के दो सदस्यों ने काम किया था। लेकिन इन्हें 1000-1000 रुपए काटकर भुगतान किया गया। आवास  में  बनाई जा रही आलमारी में फर्सी के दो फीट लम्बे टुकड़े लगाने की एवज में ये रुपए काटे जा रहे है। गड़ेपान गांव में बने सहरिया आवासों के निर्माण में लाभार्थियाओं के परिवार जनों ने नींव खोदने से लेकर छत डलने तक काम किया लेकिन उन्हें भुगतान नहीं किया गया। 
ये स्थिति तो है वर्ष 2008-09 यानि की 2 साल पहले स्वीकृत हुए आवासों की। वर्ष 2009-10 व 2010-11 में स्वीकृत हुए सहरिया आवास तो अभी कागजों से ही बाहर नहीं निकल पाए है। 
सहरिया आवास के निर्माण के लिए प्रत्येक हेतु 87250 रुपए स्वीकृत हुए थे। अगर ये आवास उसी वर्ष में बन जाते तो कम लागत में गुणवत्ता वाले आवास बनते। लेकिन कार्य समय पर नहीं करवाया गया जिससे महंगाई की मार सहरिया आवासों पर पड़ रही है। सिमेंट, लोहा, बजरी, पत्थर आदी के भाव बढ़ने के कारण लागत राशि बढ़ गई है आलम ये है कि गुणवत्ता वाले आवास नहीं बन पा रहे है। कारण जो भी रहे लेकिन यह तो स्पष्ट है कि सहरियाओं के साथ विकास योजनाओं के नाम पर छलावा हो रहा है। शाहबाद ब्लाक के मुंडियर गांव  में  सहरिया आवासों का निर्माण हुए एक साल से अधिक हो गया है लेकिन उनमें एक भी परिवार रहने नहीं गया है। सहरिया लोगों का कहना है कि हम मौत के मुंह में नहीं जाना चाहते, वे आवास कभी भी ढ़ह सकते है। 
सहरिया आवासों की गुणवत्ता इस बात से स्पष्ट होती है कि अतिवृष्टि में क्षतिग्रस्त हुए मकानों  में  सहरियाओं की झौपडि़यों व कच्चें मकानों के बाद सर्वाधित सहरिया आवास ही थे। पक्के सहरिया आवास क्यूं ढ़हे ? यह भी जानने की कोशीश की गई तो पाया कि सहरिया आवासों निर्माण में दिवारों से भी अंदर की ओर छत डाली गई। छतें दिवारों से एक इंच भी बाहर रखने की बजाए और अंदर की तरफ ही डाली गई। जिससे बारिस का पानी छत से सीधा जमीन पर गिरने की बजाए आवास की दिवारों में जाता है। जिससे कमजोर दिवारें गिली होकर धराशायी हो गई। 
शाहबाद के मामोनी गांव  में  आवास स्वीकृति के दो साल बाद अब निर्माण कार्य आरंभ करवाया जा रहा है। ऐसे में महंगाई की मार लाभार्थियाओं पर पड़ती नजर आ रही है। 
सरकार सहरिया आवास निर्माण सरकारी संगठन स्वच्छ परियोजना द्वारा करवा रही है। प्रत्येक आवास हेतु 87250 रुपए स्वीकृत हुए थे, बावजूद इन आवासों की स्थिति इंदिरा आवास योजना के तहत बने आवासों से भी खराब है। 
खैर सहरिया आवासों के निर्माण में देरी व घटिया निर्माण के पीछे कारण जो भी हो लेकिन सहरिया समुदाय के लोगों के साथ तो छलावा ही हो रहा है। 


फोटों केप्सन -
1. किशनगंज के लक्ष्मीपुरा में अधूरे पड़े सहरिया आवास, यहां एक साल से काम बंद है। 
2. नयागांव में निर्माणाधीन सहरिया आवास, इनका निर्माण कार्य एक साल से जारी है। 

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