Tuesday, January 4, 2011

उठने लगी वंचित वर्ग की भूमि अधिकार की मांगे - लखन सालवी


 उठने लगी वंचित वर्ग की भूमि अधिकार की मांगे - लखन सालवी

      देशभर में भूमि के मामले में दलितों की स्थिति ठीक नहीं है। कमजोर शोषित वर्ग की जमीनें छीनी जा रही है, उनकी जमीनों की चंद रूपयों का लालच देकर खरीदी जा रही है। कभी कभार बड़ी जद्दोजहद के बाद दलितों को सरकार भूमि आवंटित करती है। उस पर भी प्रभावशाली उच्च वर्ग के लोग कब्जा कर लेते है। ये वंचित वर्ग के शोषित लोग उन लोगों के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाते और अंतोगत्वा कृषि भूमि आवंटन 1970 के नियम 14 (4) के तहत दलित को किए गए आवंटन को निरस्त कर भूमि ले ली जाती है।
बारां जिले की किशनगंज तहसील की परानियां ग्राम पंचायत के बंजारा जाति के लोगों को 4 वर्ष भूमि आवंटित की गई। सीमांकन करवाने के लिए उन लोगों ने कई बार पटवारी तहसीलदार के चक्कर लगाए लेकिन सीमांकन नहीं करवाया। थक हार के उन लोगों ने खाली पड़ी भूमि पर कब्जा कर काश्त करना आरंभ कर दिया। संयोग से वो खाली भूमि वन विभाग की थी और वनाधिकारी ने उन पर जुर्माना कर दिया। तब से ही वो लोग उस वन भूमि पर काश्त कर रहे है और प्रतिवर्ष जुर्माना दे रहे है। 22 नवम्बर 2010 को परानियां में ‘‘प्रशासन गांव के संग अभियानके तहत शिविर का आयोजन हुआ। उन लोगों ने शिविर प्रभारी को सीमांकन के लिए आवेदन किया। शिविर प्रभारी ने पटवारी को सीमांकन के आदेश दे दिए लेकिन अभी तक सीमांकन नहीं हो पाया है। सीमांकन के अभाव में बंजारा जाति के उन सभी लोगों को पता ही नहीं है उन्हें आवंटित हुई भूमि कहां है। उन्हें  कुछ वर्षो तक और अंधेरे में रखा जाएगा और फिर कृषि भूमि आवंटन नियम 14(4) की कार्यवाही कर भूमि वापस छीन ली जाएगी। ऐसे में क्या उन दलितों को क्या मिलेगा ?
यह तो कृषि भूमि की बात थी। दलितों को तो रिहायशी भूमि भी नहीं दी जाती। कई जगहों पर तो मुर्दे दफनाने के लिए भी भूमि नहीं दी जा रही है। जबकि वंचित वर्ग के लोगों को राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम के नियम 158(1) 158(2) के तहत रियायती दर पर रिहायशी भूखण्ड़ दिए जाने के प्रावधान है। लेकिन राजस्थान में इन नियमों के तहत दिए जाने वाले 7 प्रतिशत भूखण्ड़ कहीं भी दिए गए हो, ऐसा नहीं हुआ है। भीलवाड़ा जिले के कोशीथल गांव में वर्ष 2004 में प्रशासन आपके द्वार अभियान के तहत आयोजित हुए शिविर में 60 लोगों को रिहायती दर पर भुखण्ड़ आवंटित किए गए थे। लेकिन किसी को भी आज तक पट्टें नहीं दिए गए, क्योंकि उनमें 60 फीसदी लोग दलित थे। आवंटन के 6 साल बाद 22 दिसम्बर 2010 को ‘‘प्रशासन गांव के संग अभियानके तहत आयोजित हुए शिविर में इन लोगों ने पुनः पट्टों की मांग की तो विकास अधिकारी ने पुनः आवेदन करने को कहा, ताकि दलित पुनः आवेदन करे और उनके आवेदन को निरस्त किया जा सके। दूसरी तरफ पिछले दो सालों में उच्च वर्गो के करीबन 75 लोगों ने आबादी भूमि पर अवैध कब्जा किया है। उनके साथ 8 भील जाति के लोगों ने भी खाली पड़ी आबादी भूमि में अपने तंबू गाड़ दिए और रहने लगे। उच्च वर्ग को यह नागवार गुजरा और वो इनके तंबू उखाड़ने के प्रयास में लगे है। प्रशासन यह सब कुछ देखकर मौन है।
खैर राजस्थान में ऐसे कई मामले है और दलितों पर अत्याचार का एक बड़ा कारण भूमि है। दलितों की स्थिति में सुधार, खासकर भूमि सुधार पर चर्चाएं होती रही है और उन्हीं चर्चाओ का नतीजा है कि वंचित वर्ग के लोगों की भूमि बचाने उन्हें भूमि दिलवाने के लिए राजस्थान भूमि अधिकार अभियान चलाया जा रहा है। भूमि सुधार की दिशा में आन्दोलन की अतिआवश्यकता महसूस की जा रही है। भूमि सुधार के लिए तैयारी आरंभ हो चुकी है।
भूमि सुधार की उसी दिशा में पहला कदम था कि विकास अध्ययन संस्थान में 28 दिसम्बर 2010 को विकास अध्ययन संस्थान में राजस्थान भूमि अधिकार अभियान की ओर से सेमीनार आयोजित किया गया। एक्शनएड, आइडिया डगर संस्था के सहयोग से आयोजित इस सेमीनार में राजस्थान में दलितों के लिए काम कर रहे 70 लोगों ने भाग लिया और अपने-अपने क्षेत्रों में दलितों की भूमि की स्थिति के बारे में बताया उनकी स्थिति में सुधार के लिए विचार प्रस्ताव रखे। भूमि सुधार पर विकास अध्ययन संस्थान के प्रो. सूनील रे का कहना है कि सूचना के अधिकार, भोजन के अधिकार, शिक्षा के अधिकार कानूनों की तरह ही भूमि अधिकार कानून बनना चाहिए। भूमि के लिए हांलाकि पहले से ही कानून तो बने है लेकिन उनमें कई कमियां है, अनुपालना नहीं हो रही है। हर एक के पास खेती करने रहने के लिए भूमि हो, और यह हक दिलवाने के लिए भूमि अधिकार कानून की सख्त जरूरत है। दलितों को एक हाथ से भूमि देकर दूसरे हाथ से वापस छीनी जा रही है। कृषि भूमि आवंटन नियम के तहत सरकार ने गैर खातेदारी से खातेदारी देकर महज काश्त का अधिकार दिया है, मालिकाना हक नहीं। वंचितों को जमीन एलोट करने की बात पर सरकारें कहती है कि भूमि नहीं है दूसरी तरफ वहीं सरकारें पूंजीपतियों को जमीनें खरीद कर देती है। राजस्थान में सरपल्स भूमि है, भूमि बैंक बनाकर भूमिहीनों को भूमि दी जानी चाहिए।
भूमि अधिकार की मांग को लेकर देश व्यापी भूमि अधिकार जनसत्याग्रह की तैयारी शुरू हो गई है। इस संदर्भ में 26 राज्यों में राज्य स्तर पर वंचित वर्ग के लिए कार्य कर रहे संस्था-संगठनों के लोगों सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श बैठकों का आयोजन हुआ है। 2 अक्टुबर 2011 से भूमि अधिकार की मांग को लेकर देशभर में जीप यात्रा निकाली जाएगी तथा 2 अक्टुबर 2012 से ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी।