Monday, December 29, 2014

साड्डा हक ऐथ्थे रख

आजीविका ब्यूरो की कानूनी शिक्षण एवं पैरवी ईकाई भी है। इस ईकाई के द्वारा श्रमिकों के श्रम भुगतान, मुआवजे, दुर्घटना, मारपीट के विवादों में श्रमिकों को निःशुल्क परामर्श देने, उनके विवाद दर्ज कर कानूनी सहायता प्रदान करने तथा पीडि़त श्रमिक व विपक्षी के बीच सुलह करवाने का कार्य प्रमुखता से किया जाता है। यह ईकाई आजीविका ब्यूरो द्वारा संचालित विभिन्न श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्रों के माध्यम से श्रमिकों को निःशुल्क कानूनी शिक्षण एवं पैरवी सेवा प्रदान की जाती है। इस सेवा के अंतर्गत गांवों मंे पैरालीगल नियुक्त किए गए है जो उन्हीं क्षेत्र के है तथा श्रमिकों के साथ होने वाले अन्याय के प्रति उन्हें सजग करते है, कानूनी शिक्षण प्रदान करते है और जिन श्रमिकों के साथ किसी प्रकार का शोषण होता है ऐसे श्रमिकों को कानूनी परामर्श देते है तथा उन्हें कानूनी सहायता करते है। एक केस स्टड़ी . . .

साड्डा हक ऐथ्थे रख : वेणी सिंह को मिला काम का मेहनताना

श्रमिक भरसक मेहनत करता है बावजूद उसका शोषण होता रहता है। असंगठित व निजी क्षेत्र में श्रमिकों को मेहनता ने का भुगतान समय पर नहीं करने, दुर्घटना घटित हो जाने पर मुआवजा नहीं दिए जाने, न्यूनतम मजदूरी से कम का भुगतान करने जैसे मामले अकसर सामने आते रहते है। गैर सरकारी संस्थानों में हीन हीं वरन सरकारी विभागों में संविदा पर नियुक्त श्रमिक भी शोषण से बचे नहीं है।
सरकारी विभागों में भी श्रमिकों की नियुक्ति की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में सरकार प्लेसमेंट एजेन्सियों के मार्फत संविदाकर्मियों के द्वारा कार्य करवा रही है। कहीं कार्यक्रम अधिकारी तो कहीं इंजीनियर, कहीं कम्प्यूटरकर्मी तो कहीं बाबू, कहीं ड्राइवर तो कहीं रसोई श्रमिक के रूप् में संविदा पर नियुक्ति दी जा रही है। यह अच्छा भी, क्योंकि इससे श्रमिकों को भी सरकारी कामकाजों में रोजगार के अवसर मिले है लेकिन प्लेसमेंट एजेन्सियों द्वारा श्रमिकों के शोषण करने के मामले भी सामने आ रहे है। पीडि़त श्रमिकों द्वारा शोषण के खिलाफ शिकायत भी की जाती है तो विभाग प्लेसमेंट एजेन्सी का मामला बताकर हाथ खड़े कर देती है। ऐसे में श्रमिक अपने आपको ठगा-सा महसूस करने लगता है। ऐसा ही हुआ उदयपुर जिले के गोगुन्दा क्षेत्र के गायरियावास गांव के वेणी सिंह खरवड़ के साथ।

वेणी सिंह खरवड़
वेणी सिंह खरवड़ (54 वर्ष) रसोई श्रमिक है। उन्होंने गोगुन्दा कस्बे में स्थित आबकारी थाने की मेस में रसोई बनाने का कार्य किया। जानकारी के अनुसार प्लेसमेंट एजेन्सी एम एस एन्टरप्राईजेज (उदयपुर) ने 01 सितम्बर 2013 से वेणी सिंह खरवड़ को 3000 रूपए मासिक के आधार पर गोगुन्दा के आबकारी थाने में रसोई बनाने के लिए नियुक्त किया। आबकारी थाने से वेणी सिंह के गांव के बीच 4 किलोमीटर की दूरी है। सर्दी हो या गर्मी या फिर वर्षा ऋतु, वह रोजाना सुबह 6.30 बजे तक आबकारी थाने पहुंचता और थाने के कर्मचारियों के लिए खाना बनाता। सुबह का खाना बनाने के बाद घर चला जाता, दिन में घर व खेती का काम करता और शाम को फिर आबकारी थाने में आकर कर्मचारियों के लिए शाम का खाना बनाता रहा। वेणी सिंह ने बताया कि दोनों समय खाना बनाने के महज 100 रुपए ही मिलते थे लेकिन क्या करता ? इसके अलावा रोजगार का कोई अवसर भी तो नहीं था।

वेणी सिंह जब से काम पर लगा तब से लेकर 31 मार्च 2014 तक उसे प्लेसमेंट एजेन्सी द्वारा महज 3000 रुपए का भुगतान किया गया था। वेणी सिंह ने कई बार मेहनताने का तकाजा किया था लेकिन प्लेसमेंट एजेन्सी के डायरेक्टर ने भुगतान नहीं किया। वेणी सिंह ने आबकारी थानाधिकारी से भी इसकी शिकायत की लेकिन उन्होंने प्लेसमेंट एजेन्सी व श्रमिक के बीच हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
स्थिति ऐसी थी कि कहीं नौकरी ना छूट जाए इस डर से उसे खाना दोनों समय बनाना था जबकि मेहनताने का भुगतान नहीं किया जा रहा था। इसी दौरान उसे एक स्थानीय वकील ने श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र के बारे में बताया। उसे बताया कि केंद्र श्रमिकों का अटका भुगतान कानूनी तरीके से दिलवाने में सहायता करता है।
तब 2 अगस्त 2014 को वेणी सिंह केंद्र पर उपस्थित हुए और अपनी समस्या बताई। केंद्र से उन्हें कानूनी परामर्श दिया गया। उनसे काम से जुड़े दस्तावेज मांगे तो उन्होंने बताया कि आबकारी थाने में रजिस्टर में रोजाना उपस्थिति दर्ज की जाती है, उस रजिस्टर के अलावा कोई प्रमाण नहीं है।
केंद्र के कार्यकर्ता ने उसे उसके मामले से जुड़े कानूनी पक्षों के बारे में बताते हुए, विवाद के समाधान हेतु परामर्श दिया और द्वितीय व तृतीय पक्ष के संदर्भ में जानकारियां ली। केंद्र के कार्यकर्ता द्वारा मामले में हस्तक्षेप करते हुए द्वितीय व तृतीय पक्ष से वेणी सिंह द्वारा दर्ज करवाए गए विवाद के बारे में चर्चा की गई। द्वितीय पक्ष ने तृतीय पक्ष को जिम्मेदार बताते हुए भुगतान करने से इंकार कर दिया।
इसी दरमियां ‘‘सरकार आपके द्वार अभियान’’ के तहत ग्राम पंचायत व ब्लाॅक स्तर पर जनसुनवाई शिविर आयोजित किए जाने की सरकार के कार्यक्रम की जानकारी मिली। इस अभियान के तहत राज्य सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री उदयपुर संभाग में रहे और ग्राम पंचायत व ब्लाॅक स्तर पर जनसुनवाई की। केंद्र के कार्यकर्ता ने इस अभियान का लाभ लेकर मामले का समाधान करने का विचार बनाया और 20 अगस्त को चांटिया खेड़ी ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत स्तरीय जनसुनवाई शिविर में वेणी सिंह खरवड़ से शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें द्वितीय पक्ष से कार्य का भुगतान करवाने की मांग की। मंत्री से सुनवाई करते हुए आबकारी थानाधिकारी को 23 अगस्त तक वेणी सिंह को भुगतान करवाने के मौखिक आदेश दिए। 23 अगस्त को वेणी सिंह खरवड़ पंचायत समिति स्तरीय जनसुनवाई में नहीं पहुंच पाया लेकिन जनसुनवाई में उसकी शिकायत पर पुनः सुनवाई हुई। जैसे ही उसकी शिकायत मंत्री के हाथ में आई, मंत्री ने आबकारी थानाधिकारी को जवाब के लिए बुलाया और शिकायत निवारण के बारे में पूछा तो आबकारी थानाधिकारी ने कहा कि वेणी सिंह खरवड़ को बकाया राशि का भुगतान बीते कल कर दिया गया है। शिविर में मौजूद लोगों ने मंत्री द्वारा की गई कार्यवाही पर जमकर कर तालियां बजाई और मंत्री की हौसलां अफजाई की।
दूसरी ओर वेणी सिंह खरवड़ को ब्लाॅक स्तरीय जनसुनवाई शिविर में चले घटनाक्रम की जानकारी मिली तो वह जलभून कर रह गया। अब वह केंद्र द्वारा की जा रही कार्यवाही के भरोसे था। केंद्र द्वारा द्वितीय व तृतीय पक्ष को मामले के संदर्भ में अपना पक्ष रखने एवं विवाद में सुलह हेतु आमंत्रित किया। केंद्र नोटिस जाने के बाद द्वितीय व तृतीय पक्ष अपना पक्ष रखने केंद्र पर तो नहीं आए लेकिन वेणी सिंह को बकाया भुगतान कर दिया। वेणी सिंह ने बताया कि द्वितीय पक्ष ने 13000 रुपए का भुगतान 20 अक्टूबर 14 व 5000 रुपए 2 नवम्बर 14 को कर दिया।
वेणी सिंह खरवड़ रसोई कार्य में ही दक्ष है और गांव व परिवार को नहीं छोड़ना चाहते है इसलिए ही उन्होंने बहुत कम मेहनताने में भी आबकारी थाने में रसोई कार्य को निरन्तर चालू रखा। अब प्लेसमेंट एजेन्सी ने वेणी सिंह खरवड़ को नई नियुक्ति दी है और नियमित भुगतान भी किया जा रहा है।

Tuesday, December 23, 2014

साड्डा हक ऐथ्थे रख : वेणी सिंह को मिला काम का मेहनताना

श्रमिक भरसक मेहनत करता है बावजूद उसका शोषण होता रहता है। असंगठित व निजी क्षेत्र में श्रमिकों को मेहनता ने का भुगतान समय पर नहीं करने, दुर्घटना घटित हो जाने पर मुआवजा नहीं दिए जाने, न्यूनतम मजदूरी से कम का भुगतान करने जैसे मामले अकसर सामने आते रहते है। गैर सरकारी संस्थानों में हीन हीं वरन सरकारी विभागों में संविदा पर नियुक्त श्रमिक भी शोषण से बचे नहीं है।

सरकारी विभागों में भी श्रमिकों की नियुक्ति की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में सरकार प्लेसमेंट एजेन्सियों के मार्फत संविदाकर्मियों के द्वारा कार्य करवा रही है। कहीं कार्यक्रम अधिकारी तो कहीं इंजीनियर, कहीं कम्प्यूटरकर्मी तो कहीं बाबू, कहीं ड्राइवर तो कहीं रसोई श्रमिक के रूप् में संविदा पर नियुक्ति दी जा रही है। यह अच्छा भी, क्योंकि इससे श्रमिकों को भी सरकारी कामकाजों में रोजगार के अवसर मिले है लेकिन प्लेसमेंट एजेन्सियों द्वारा श्रमिकों के शोषण करने के मामले भी सामने आ रहे है। पीडि़त श्रमिकों द्वारा शोषण के खिलाफ शिकायत भी की जाती है तो विभाग प्लेसमेंट एजेन्सी का मामला बताकर हाथ खड़े कर देती है। ऐसे में श्रमिक अपने आपको ठगा-सा महसूस करने लगता है। ऐसा ही हुआ उदयपुर जिले के गोगुन्दा क्षेत्र के गायरियावास गांव के वेणी सिंह खरवड़ के साथ।

वेणी सिंह खरवड़ (54 वर्ष) रसोई श्रमिक है। उन्होंने गोगुन्दा कस्बे में स्थित आबकारी थाने की मेस में रसोई बनाने का कार्य किया। जानकारी के अनुसार प्लेसमेंट एजेन्सी एम एस एन्टरप्राईजेज (उदयपुर) ने 01 सितम्बर 2013 से वेणी सिंह खरवड़ को 3000 रूपए मासिक के आधार पर गोगुन्दा के आबकारी थाने में रसोई बनाने के लिए नियुक्त किया। आबकारी थाने से वेणी सिंह के गांव के बीच 4 किलोमीटर की दूरी है। सर्दी हो या गर्मी या फिर वर्षा ऋतु, वह रोजाना सुबह 6.30 बजे तक आबकारी थाने पहुंचता और थाने के कर्मचारियों के लिए खाना बनाता। सुबह का खाना बनाने के बाद घर चला जाता, दिन में घर व खेती का काम करता और शाम को फिर आबकारी थाने में आकर कर्मचारियों के लिए शाम का खाना बनाता रहा। वेणी सिंह ने बताया कि दोनों समय खाना बनाने के महज 100 रुपए ही मिलते थे लेकिन क्या करता ? इसके अलावा रोजगार का कोई अवसर भी तो नहीं था।

वेणी सिंह जब से काम पर लगा तब से लेकर 31 मार्च 2014 तक उसे प्लेसमेंट एजेन्सी द्वारा महज 3000 रुपए का भुगतान किया गया था। वेणी सिंह ने कई बार मेहनताने का तकाजा किया था लेकिन प्लेसमेंट एजेन्सी के डायरेक्टर ने भुगतान नहीं किया। वेणी सिंह ने आबकारी थानाधिकारी से भी इसकी शिकायत की लेकिन उन्होंने प्लेसमेंट एजेन्सी व श्रमिक के बीच हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

स्थिति ऐसी थी कि कहीं नौकरी ना छूट जाए इस डर से उसे खाना दोनों समय बनाना था जबकि मेहनताने का भुगतान नहीं किया जा रहा था। इसी दौरान उसे एक स्थानीय वकील ने श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र के बारे में बताया। उसे बताया कि केंद्र श्रमिकों का अटका भुगतान कानूनी तरीके से दिलवाने में सहायता करता है।
तब 2 अगस्त 2014 को वेणी सिंह केंद्र पर उपस्थित हुए और अपनी समस्या बताई। केंद्र से उन्हें कानूनी परामर्श दिया गया। उनसे काम से जुड़े दस्तावेज मांगे तो उन्होंने बताया कि आबकारी थाने में रजिस्टर में रोजाना उपस्थिति दर्ज की जाती है, उस रजिस्टर के अलावा कोई प्रमाण नहीं है।

केंद्र के कार्यकर्ता ने उसे उसके मामले से जुड़े कानूनी पक्षों के बारे में बताते हुए, विवाद के समाधान हेतु परामर्श दिया और द्वितीय व तृतीय पक्ष के संदर्भ में जानकारियां ली। केंद्र के कार्यकर्ता द्वारा मामले में हस्तक्षेप करते हुए द्वितीय व तृतीय पक्ष से वेणी सिंह द्वारा दर्ज करवाए गए विवाद के बारे में चर्चा की गई। द्वितीय पक्ष ने तृतीय पक्ष को जिम्मेदार बताते हुए भुगतान करने से इंकार कर दिया।

इसी दरमियां ‘‘सरकार आपके द्वार अभियान’’ के तहत ग्राम पंचायत व ब्लाॅक स्तर पर जनसुनवाई शिविर आयोजित किए जाने की सरकार के कार्यक्रम की जानकारी मिली। इस अभियान के तहत राज्य सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री उदयपुर संभाग में रहे और ग्राम पंचायत व ब्लाॅक स्तर पर जनसुनवाई की। केंद्र के कार्यकर्ता ने इस अभियान का लाभ लेकर मामले का समाधान करने का विचार बनाया और 20 अगस्त को चांटिया खेड़ी ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत स्तरीय जनसुनवाई शिविर में वेणी सिंह खरवड़ से शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें द्वितीय पक्ष से कार्य का भुगतान करवाने की मांग की। मंत्री से सुनवाई करते हुए आबकारी थानाधिकारी को 23 अगस्त तक वेणी सिंह को भुगतान करवाने के मौखिक आदेश दिए। 23 अगस्त को वेणी सिंह खरवड़ पंचायत समिति स्तरीय जनसुनवाई में नहीं पहुंच पाया लेकिन जनसुनवाई में उसकी शिकायत पर पुनः सुनवाई हुई। जैसे ही उसकी शिकायत मंत्री के हाथ में आई, मंत्री ने आबकारी थानाधिकारी को जवाब के लिए बुलाया और शिकायत निवारण के बारे में पूछा तो आबकारी थानाधिकारी ने कहा कि वेणी सिंह खरवड़ को बकाया राशि का भुगतान बीते कल कर दिया गया है। शिविर में मौजूद लोगों ने मंत्री द्वारा की गई कार्यवाही पर जमकर कर तालियां बजाई और मंत्री की हौसलां अफजाई की।

दूसरी ओर वेणी सिंह खरवड़ को ब्लाॅक स्तरीय जनसुनवाई शिविर में चले घटनाक्रम की जानकारी मिली तो वह जलभून कर रह गया। अब वह केंद्र द्वारा की जा रही कार्यवाही के भरोसे था। केंद्र द्वारा द्वितीय व तृतीय पक्ष को मामले के संदर्भ में अपना पक्ष रखने एवं विवाद में सुलह हेतु आमंत्रित किया। केंद्र नोटिस जाने के बाद द्वितीय व तृतीय पक्ष अपना पक्ष रखने केंद्र पर तो नहीं आए लेकिन वेणी सिंह को बकाया भुगतान कर दिया। वेणी सिंह ने बताया कि द्वितीय पक्ष ने 13000 रुपए का भुगतान 20 अक्टूबर 14 व 5000 रुपए 2 नवम्बर 14 को कर दिया।

वेणी सिंह खरवड़ रसोई कार्य में ही दक्ष है और गांव व परिवार को नहीं छोड़ना चाहते है इसलिए ही उन्होंने बहुत कम मेहनताने में भी आबकारी थाने में रसोई कार्य को निरन्तर चालू रखा। अब प्लेसमेंट एजेन्सी ने वेणी सिंह खरवड़ को नई नियुक्ति दी है और नियमित भुगतान भी किया जा रहा है।

Wednesday, December 10, 2014

श्रमिकों के प्रति संवेदनशील हो प्रशासनिक अधिकारी - प्रताप गमेती

श्रमिक हितलाभ वितरण कार्यक्रम में बोले विधायक, 150 श्रमिकों को वितरित की साईकिलें
कार्यक्रम को सम्बोधित करते विधायक प्रताप गमेती
गोगुन्दा (10 दिसम्बर 2014) - कृषि उपज मण्डी मंे आयोजित श्रमिक हितलाभ वितरण कार्यक्रम में बोलते हुए विधायक प्रताप गमेती ने कहा कि लगभग पूरे गोगुन्दा क्षेत्र को टीएसपी से जोड़ दिया गया हैै। सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के लिए भी सरकार कर्मकार कल्याण मण्डल के जरिए सतत प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों को श्रमिकों के मुद्दों के प्रति संवेदनशील होना पडेगा तथा उन्हें योजनाओं के लाभ दिलवाने के लिए प्रयास करना होगा।

उल्लेखनीय है कि श्रम विभाग एवं अरावली निर्माण मजदूर सुरक्षा संगठन के संयुक्त तत्वावधान में कृषि उपज मण्डी परिसर में हितलाभ वितरण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें गोगुन्दा, सायरा, बरवाड़ा व बड़गांव क्षेत्र के 150 महिला व पुरूष श्रमिकों को साईकिलें वितरित की गई।

आजीविका ब्यूरो द्वारा संचालित श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र के समन्वयक राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम में अरावली सहित क्षेत्रीय बजरंग, जरगा, सायरा व लक्ष्मी बाई निर्माण श्रमिक संगठन ने सहयोग किया। 

अरावली निर्माण श्रमिक सुरक्षा संगठन के संरक्षक नाना लाल मीणा ने कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की विस्तृत जानकारी देते हुए कार्यक्रम में उपस्थित श्रमिकों से आव्हान् किया कि वे इन योजनाओं की जानकारी संगठन के माध्यम से प्रत्येक निर्माण श्रमिक तक पहुंचाए। 

श्रमिकों को साईकिल वितरित करते हुए 
उन्होंने राजस्थान भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा जारी परिचय पत्र को पंचायत समिति स्तर पर नवीनीकरण की व्यवस्था करने, ग्राम पंचायतों द्वारा महानरेगा के तहत दिए गए कार्य दिवसों को प्रमाणित करने एवं परिचय पत्र के लिए आवेदन हेतु पंचायत समिति स्तर पर ही व्यवस्था करने की मांग की। वहीं बजरंग, जरगा, सायरा व लक्ष्मी बाई निर्माण श्रमिक संगठनों के लोगों ने श्रम आयुक्त पंतजली भू, उपखण्ड अधिकारी व क्षेत्रीय विधायक प्रताप गमेती को श्रमिकों की मागों को लेकर श्रम मंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। 

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए श्रम आयुक्त पतजंली भू ने कहा कि कर्मकार कल्याण मण्डल से जुड़े श्रमिकों को हित लाभ दिए जाने में आ रही समस्याओं के समाधान के प्रयास किए जाएंगेे तथा जिन हिताधिकारियों को आवेदन के बावजूद लाभ नहीं मिले है उनकी फाइलों की जांच कर सूचित किया जाएगा। 

कार्यक्रम को उपखण्ड अधिकारी सत्यनारायण आचार्य, अरावली निर्माण श्रमिक सुरक्षा संगठन के अध्यक्ष अब्दुल जब्बार, कवि सोहन लाल कोठारी ने भी सम्बोधित किया वहीं पुलिस थाना अधिकारी हनुवंत सिंह सोढ़ा व विभिन्न श्रमिक संगठनों के पदाधिकारी उपस्थित रहे। 

Wednesday, November 12, 2014

कानूनी शिक्षण अभियान


हरी झण्डी दिखाकर रथ को रवाना करते हुए 
आज (12 नवम्बर 2014) सुबह 10.30 बजे गोगुन्दा केंद्र द्वारा निकाले जा रहे ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ को स्टेप एकेडमी के संजय चित्तोड़ा ने हरी झण्ड़ी दिखाई वहीं मंगल कार्य के लिए मांगलिक नहीं था तो हमारे भाईसाब ने हमें चाय पिलाकर रवाना किया। उल्लेखनीय है कि एक बोलेरो जीप को हमारे द्वारा रथ के रूप में सजाया गया। उस पर लेबर लाइन की तख्तियां, कानूनी सेवा के फ्लेक्स, बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन के बैनर इत्यादि लगाए गए। रथ में लाउडस्पीकर लगाया जिसके माध्यम से कानूनी सेवा का प्रचार प्रसार किया गया। 

रथ में पैरालीगल मालूराम गमेती, भंवर लाल व कलेक्टिव सदस्य पन्ना लाल गमेती, केंद्र के कार्यकर्ता दिलीप गमेती तथा कानूनी शिक्षण एवं पैरवी ईकाई उदयपुर के भास्कर सिंह के साथ मैं भी था। वैसे भास्कर जी दोपहर में हमारे साथ हुए थे। रथ में लाउडस्पीकर को सेट करने का मैंनें ही किया था सो मशीन, माइक व बैट्री को सबसे पीछे वाली सीट पर ही सेट किया। रथ की रवानगी के साथ ही मैं पिछली सीट पर जम गया और जमकर प्रचार प्रचार किया। ऐसा करने से बचपन की ‘‘ठप्पो-ठप्पो रे ठप्पो’’ की यादें ताजा हो गई। पंचायतीरात व विधानसभा चुनावों में बचपन में जीपों में बैठकर खूब चुनाव प्रचार किया करता था। तब ना किसी विचारधारा के साथ था और ना ही किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव था, बस बालमन को चुनाव प्रचार करने में आनन्द आता था इसलिए पिताजी की भंयकर डांट के बावजूद भी प्रचारों की गाडि़यों में माइक पर चिल्लाना अच्छा लगता था। माइक पर बोली जाने वाली पंक्तियां आज भी याद है . .  भाईयों और बहनों, आपके अपने लाडले, सेवाभावी, कर्मठ, लोकप्रिय उम्मीदवार ‘‘फलाणा’’ को चुनाव चिन्ह ‘‘ढिमका’’  पर चैकड़ी की मौहर लगाकर भारी मतों से विजयी बनावें! आश्चर्य!!! मुझे आज भी वे पंक्तियां हूबहू याद है ! 

खैर . . . गोगुन्दा से रवाना होकर ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ बांसड़ा, फूटिया, मोड़ी, छिपाला होते हुए दोपहर 2 बजे भैरूनाथ भोजनालय पर पहुंचा। जहां हम सब ने ‘‘दोपेरी’’ की, नाश्ते में 3 किलो केले और 2-2 समोसे तो हम पहले ही दबा चुके थे। खाने के बाद रैम एक्टिवेट हुई, सैकेण्डरी मैमोरी में हलचल हुई और तन्द्रा टूटी, भई अब तक केवल एक विवाद सामने आया है जिस पर परामर्श दिया गया और प्रार्थी को 14 नवम्बर को लीगल डे पर बुलाया गया। मात्र 25-30 हाजरी डायरियां वितरित हो पाई है, हां कानूनी सेवा की जानकारी व कानूनी शिक्षण जरूर हम 200-50 लोगों को दे चुके थे। 

पर अब रथ की दशा को सुधारते हुए दिशा देना महत्वपूर्ण हो गया। अब तक हमें पता पड़ चुका था कि मजदूर तो मजदूरी करने गए है, गांवों में उनके घरों के दरवाजों पर ताले लटक रहे है, अमूमन गांव वाले भी अपने खेतों में चारा काटने या रबी की फसलें बोने में व्यस्त हैं, ऐसी दशा में क्या किया जाए ? तब तय किया कि रूट पर आ रहे गांवों में अधिक समय गंवाने की बजाए केंद्र से किसी ना किसी रूप से जुड़े गांव के किसी व्यक्ति को सूचना दी जाए कि रथ पुनः गांव में इतनी बजे आएगा और यहां बैठक आयोजित करेंगे। यह भी तय हुआ कि रूट पर कहीं अधिक संख्या में समूह में लोग नजर आयेंगे तो वहां नुक्कड़ सभा करके कानूनी शिक्षण दिया जाएगा या उनसे संवाद किया जाएगा। 

हम आगे बढ़ने ही वाले थे कि इत्ते में मुझे क्लेक्टिव सदस्य खेमराज गमेती का काॅल आ गया, बोले - नमस्कार, मुझे बगडून्दा ग्राम पंचायत में जाना था लेकिन मैं नहीं जा पाया। मजाम गांव की क्लेक्टिव से जुड़ी महिलाएं अपनी समस्याओं को लेकर ग्राम पंचायत बगडून्दा में सुबह 9 बजे से बैठी है आप तुरन्त वहां पहुंचे। अब मैं उलझन में पड़ गया, क्या करूं, क्या ना करूं, न किसी महिला के संपर्क नम्बर थे ना ही ग्राम पंचायत के सचिव या रोजगार सहायक के संपर्क नम्बर थे जो उनसे संपर्क कर मामले को सुलटाता, मैं उधेड़बुन में ही था कि संकटमोचन भास्कर जी हमारे सामने प्रकट हो गए, उन्हें तुरन्त जीप में स्थान दिया और मैं उनकी बाइक लेकर बगडून्दा के लिए रवाना हुआ, उनसे कहा कि रथ को रूट के मुताबिक लेकर आवे, मैं उन्हें बगडून्दा में मिल जाऊंगा।


बगडून्दा पहुंचा तो 8-9 महिलाएं बैठी हुई थी, वे अपने गांव में पिछले एक साल से खराब पड़े हेण्डपम्पों को ठीक करवाने की मांग को लेकर ग्राम पंचायत में आई थी, ग्राम पंचायत खुली थी लेकिन उसमें केवल चैकीदार बैठा था। रोजगार सहायक के मोबाइल नम्बर लिए काॅल करने का प्रयास किया तो पता चला कि नेटवर्क इमरजेंसी मोड़ में है। भला हो चौकीदार का उसने पास के एक कार्यालय से एक फोन लाकर दिया, उससे रोजगार सहायक को काॅल किया तो उसने बताया कि वो विशेष कार्य से पंचायत समिति कार्यालय गया हुआ है। उसे मामले से अवगत कराया गया, उसने चौकीदार से कहा कि वो महिलाओं का मांग पत्र ले लेवें और मुझे आश्वस्त किया वो पावती रसीद शिकायतकर्ता के घर भिजवा देगा। महिलाओं के रूके हुए भुगतान के बारे में उसे बताया उसने कहा कि वो एक-दो दिन में भुगतान करवा देगा। 

महिलाएं खुश होकर घरों को लौट गई, मैं भी ग्राम पंचायत से निकल कर बगडून्दा गांव की चौपाल पर आ गया। वहां बैठकर आगे के रूट पर गौर किया तो पता चला कि यहां से हमें भूत मंगरी जाना है। ‘‘भूत मंगरी’’ का नाम मस्तिष्क में आते ही क्षेत्र में व्याप्त भूतों की दंत कथाओं की ओर ध्यान चला गया और भूत मंगरी के बारे में काल्पनिक दृश्य दृष्टिपटल पर घूमने लगे। सामाजिक कार्यकर्ता विनय-चारूल भरवाड़ के गीत ‘‘मेरे हाथों को ये जानने का हक रे’’ के बोल कानों में पड़े तो मैं भूतों के माया जाल से बाहर निकला, सामने नजर गई तो पाया ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ बगडून्दा चौपाल के करीब आ चुका था। रथ में बज रह लाउडस्पीकर से ही विनय-चारूल की आवाज सुनाई दे रही थी। यहां सभी साथियों ने बड़े प्रेम से एनर्जी बूस्ट (चाय) को चुस्कियों के साथ पिया। 10-15 प्रवासी श्रमिकों के साथ चर्चा के बाद रथ आगे बढ़ा और उभेश्वर विकास संस्था परिसर के पास होता हुआ बगडून्दा का खेड़ा गांव पहुंचा। यहां राजीव जी व कृष्णा जी के पुराने साथी गल्लाराम जी गमेती ने रथ का स्वागत किया। वे अकेले शख्स थे जो गांव में नजर आए, गांव के अमूमन घरों के दरवाजों पर ताले लटक रहे थे, घड़ी के कांटों की गणित 3.30 बजा रही थी। 

मेरे लेप्पी की घड़ी रात की 11.30 बजा रही है, सुबह जल्दी उठना है क्योंकि सुबह 8.00 बजे रथ रवाना करना है। तो साथियों आज का सफर यहीं पर समाप्त करता हूं, कभी राजीव जी व कृष्णा जी की कर्मस्थली रहे बगडून्दा का खेड़ा से रथ आगे कहां गया ? वहां हमने क्या किया ? आदि जानने के लिए पढि़ए मेरी आगामी पोस्ट . . . 

आपका साथी
लखन 

Monday, November 10, 2014

प्रशिक्षण से शुरू हुई बदलाव की बयार

  • लखन सालवी 

बरवाड़ा क्षेत्र में मार्बल फिटिंग ठेकेदार के रूप में बंशी लाल गमेती एक जाना पहचाना नाम है। 26 वर्षीय बंशी लाल को बैलदार के काम से मार्बल फिटिंग ठेकेदार तक के सफर में कई चुनौतियां का सामना करना पड़ा। बकौल बंशी लाल, आजीविका ब्यूरो के कार्यकर्ता मोहन लाल गमेती ने आजीविका ब्यूरो द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में न बताया होता तो वह इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता।

बंशी लाल गमेती उदयपुर जिले के गोगुन्दा उपखण्ड क्षेत्र की करदा ग्राम पंचायत के तमणियां गांव का निवासी है। 2008 में आजीविका ब्यूरो के श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र गोगुन्दा द्वारा मार्बल फिटिंग का आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (एक माह) आयोजित किया। उस दौरान बरवाड़ा क्षेत्र में कार्य कर रहे ब्यूरो के कार्यकर्ता मोहन लाल गमेती ने बंशी लाल को रोजगार परामर्श देते हुए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताया। मोहन लाल ने सुझाव दिया कि उसे मार्बल फिटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त करने चाहिए। बंशी लाल इस सुझाव को आत्मसात करना चाह रहा था लेकिन उसके सामने एक दुविधा थी कि बेरोजगार होकर प्रशिक्षण प्राप्त करें या प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार के अच्छे अवसर तलाश करें! वह बैलदारी का कार्य कर रहा था जिससे उसे 60 रूपए प्रतिदिन के मिल रहे थे। बैलदारी छोड़कर प्रशिक्षण प्राप्त करने जाने का निर्णय करना मुश्किल हो रहा था लेकिन अंततः उसने प्रशिक्षण प्राप्त करने की राह चुनी और प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़कर मार्बल फिटिंग का कार्य सीखा। 

प्रशिक्षण के दौरान मार्बल फिटिंग का कार्य सीखाने के साथ ही जीवन में उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई। उसका कहना है कि प्रशिक्षण के दौरान जीवन कौशल के बारे में भी बताया गया जो जीवन जीने में उपयोगी साबित हो रहा है। 

‘‘बैलदारी तो करता ही था, चिनाई कार्य व
मार्बल फिटिंग कार्य शायद में बिना प्रशिक्षण
के भी सीख लेता लेकिन प्रशिक्षण के दौरान
हमें जीवन जीने की जो कला सिखाई
गई वो मैं शायद ही कहीं ओर सीख पाता।’’
- बंशी लाल गमेती
बंशी लाल की शादी बचपन में ही हो गई थी, 10वीं तक पढ़ने की इच्छा थी लेकिन परिवार के हालात ऐसे हो गए कि पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 2005 में आजीविका के लिए महाराष्ट्र के मुम्बई शहर में प्रवास पर गया और वहां स्टील के चम्मच बनाने की फैक्ट्री में कार्य किया। यहां 8 घंटे काम के बदले मेहनताना 48 रूपए था। 4 घंटे ओवर टाईम कार्य करना पड़ता था जिसके पेटे 24 रूपए अलग से दिए जाते थे। बंशी लाल ने यहां पूरी लगन से कार्य किया, बाद में उसे हैल्पर से आॅपरेटर बना दिया, अब उसकी मासिक तन्ख्वाह 4500 रुपए हो गई मगर प्रतिदिन 12 घंटे काम करना पड़ता। दूसरी तरफ 2500 रूपए तो वहीं खर्च हो जाते, जो बचते वो परिवार के लिए नाकाफी थे। इस कार्य को करते हुए बंशी ने महसूस किया कि वह आर्थिक रूप से कभी मजबूत नहीं हो पाएगा, उसने वापस गांव लौटने का निश्चय कर लिया और 2007 में मुम्बई को अलविदा कह दिया। 

प्रवास से गांव लौटे बंशी को बेरोजगारी खल रही थी, उसने कई जगह काम ढूंढ़े लेकिन कहीं काम नहीं मिला। वह जिस कार्य को करने में दक्ष था वह काम यहां नहीं था और जहां था वहां पूरा मेहनताना नहीं था। बेरोजगारी को दूर करने के गांव में दो ही विकल्प मौजूद थे, पहला - कृषि कार्य व दूसरा-पिताजी के साथ निर्माण कार्यों में मजदूरी करने का (उसके पिता निर्माण कार्य में चिनाई कार्य करते थे।)। उसे दूसरा विकल्प ठीक लगा और वह निर्माण कार्यों में बैलदारी का कार्य करने लगा। यहां उसे 60 रूपए दिहाड़ी मिलती। 

प्रशिक्षण से उसके जीवन में बड़े बदलाव हुए और निरन्तर होते जा रहे है, मार्बल फिटिंग कार्य में दक्ष होकर उदयपुर शहर में एक ठेकेदार के यहां 100 रूपए दिहाड़ी पर 5-6 माह तक कार्य किया। उसके बाद नाथद्वारा में 200 रूपए प्रतिदिन की दर से मार्बल फिटिंग कार्य किया, इस कार्य में इतना परिपक्व हो गया कि वहां कार्य करते हुए 15 दिन ही हुए थे और ठेकेदार ने उसका काम देखते हुए उसकी मजदूरी बढ़ाकर 250 रुपए प्रतिदिन कर दी। उदयपुर, दिल्ली, जोधपुर, भीलवाड़ा सहित कई शहरों में वह मार्बल फिटिंग का कार्य कर चुका है। पिछले 3 साल से वह ठेकेदारी कर रहा है, प्रतिमाह 5-10 मार्बल मिस्त्रियों को वह रोजगार देता है। अब उसे काम ढूंढ़ना ही नहीं पड़ता है, लोग उसे ढ़ूंढ़ते-ढ़ूंढ़ते आ जाते है। अब वह गोगुन्दा क्षेत्र में ही कार्य कर रहा है। उसका कहना है कि उसे यहीं काम मिल जाता है।

प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार पाया और आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुआ, उसने अपना मकान बना लिया है, दुपहिया वाहन भी है। बच्चों को भी गैर सरकारी विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलवा रहा है। वह किसी प्रकार का व्यसन नहीं करता है, वहीं घर, परिवार व समाज में उसे सम्मान मिल रहा है। उसने बताया कि लोग अपने समान किसी को नहीं होने देते है लेकिन मैंनें अपने कई साथियों को मार्बल फिटिंग का कार्य सिखाया है। 

मेरा विवाह 2001 में हुआ जब मेरी उम्र करीब 13 साल थी। मेरे समुदाय में अमूमन कम उम्र में ही शादी करवा दी जाती है। कम उम्र में विवाह होने का ही नतीजा है कि मेरे 3 संतानें है, 2 लड़के व 1 लड़की। लेकिन मैं अपने बच्चों का विवाह कम उम्र में नहीं करूंगा। - बंशी लाल गमेती

व्यसन से मुक्त रहने की बात हो या बाल विवाह न करने की बात हो। अपने सहयोगी को आगे बढ़ाने की बात हो या परिवार को मजबूत करने की बात हो, ये सब उसने प्रशिक्षण में ही सीखा और जीवन में अपना जिसका ही परिणाम है कि उसके जीवन में बड़े बदलाव दिखलाई दे रहे है।

Saturday, October 18, 2014

मेल मिलाप कार्यक्रम सम्पन्न

17 अक्टूबर 2014 को गोगुन्दा के भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केंद्र में मेल मिलाप कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें 43 पूर्व प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया। 

कार्यक्रम के दौरान बिजली फिटिंग, नल फिटिंग, चिनाई कार्य में दक्षता प्राप्त कर कार्य रहे प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए वहीं संदर्भ व्यक्तियों ने विभिन्न खेलों व गतिविधियों के माध्यम से रोजगार को बेहतर बनाने की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उपाया सुझाए। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता व जुड़ाव संस्था के जवानमल गमेती ने की। वहीं युवा मण्डल अध्यक्ष षिवलाल गमेती बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए जवानमल गमेती ने कहा कि आजीविका ब्यूरो ने गोगुन्दा क्षेत्र के युवाओं को प्रशिक्षण देकर विभिन्न कार्यों में दक्ष बनाया है। आप सभी युवाओं ने भी इसी संस्था से प्रशिक्षण प्राप्त किया और आज बेहतर रोजगार प्राप्त आर्थिक रूप से सख्त हुए है और सम्मानजनक जीवन जी रहे हैै। अब आप लोगों का दायित्व है कि क्षेत्र के बेरोजगार व अप्रषिक्षित युवाओं को इस संस्था से जोड़े ताकि वे भी प्रषिक्षण लेकर दक्ष हो सके। 

इस अवसर पर शिव लाल गमेती ने एक कहानी बताकर प्रतिभागियों का ध्यान जीवन में आने वाली चुनौतियों की ओर आकर्षित किया, उन्होंने बताया दो तराशे जा सकने वाले बड़े पत्थर थे, एक मूर्तिकार ने दोनों से कहा कि मैं मूर्ति बनाना चाहता हूं, आप में से कौन तैयार है ? एक पत्थर ने मूर्ति का रूप धारण करने से इंकार कर दिया वहीं दूसरा मूर्ति बनने के लिए तैयार हो गया। उसे पता था कि मूर्तिकार छैनी व हथोड़े से उस पर हजारों चोटें करेगा। उसके निराकार रूप को छलनी कर देगा मगर उसने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। 

मूर्तिकार ने उस पत्थर को तराशना आरम्भ कर दिया, कुछ दिनों बाद उसने पत्थर को मूर्ति का रूप  दे दिया। उस मूर्ति को कुछ लोगों ने खरीद लिया और सम्मान के साथ मंदिर में स्थापित कर दिया। घी, दूध, गंगाजल, तेल इत्यादि से स्नान करवाया, कुमकुम का तिलक किया, पूजा की, गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकाली। इतना ही मंदिर में स्थापित करने के बाद से तो गांवों-गांवों से महिला-पुरूष उसके सामने सिर झुकाने आने लगे। रोजाना सुबह-शाम उसकी पूजा की जाती, घी-तेल के दिए जलते, खुश्बुओं से रंजित अगरबत्तियां जलाई जाती। मंदिर में स्थापित होकर पत्थर अपने आप को खुशकिस्मत मान रहा था। उसे आजीवन के लिए सम्मान जो मिल गया था।

दूसरी तरफ जिस पत्थर ने मूर्ति बनने से इंकार कर दिया था, मूर्तिकार ने उसे मंदिर के द्वार पर रख दिया, अब वहां आने वाले लोग अपने साथ लाए नारियलों को उस पर फोड़ते। रोजाना हजारों नारियल उस पर फोड़े जाते और वो जमाने भर के नारियलों की चोटें खा-खाकर दुःखी था। 

शिव लाल गमेती ने प्रतिभागियों से आव्हान करते हुए कहा कि आजीविका ब्यूरो एक मूर्तिकार है और आप जैसे युवा पत्थर है, आप सब मूर्ति बने यह अच्छी बात है लेकिन जो नारियल फुड़वा रहे है ऐसे पत्थरों को भी मूर्ति बनने के लिए प्रेेरित करे। 

कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा हाल ही में नल फिटिंग प्रषिक्षण प्राप्त कर चुके युवाओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए व पूर्व प्रशिक्षणार्थियों में से चयनित प्रशिक्षणार्थियों को सम्मानित किया गया वहीं कार्यक्रम का संचालन राजमल कुलमी ने किया। 

Thursday, October 9, 2014

हे देवेन्द्र . . . तेरी मौत पर तो इन्द्र भी रोया !


  • लखन सालवी (क्रोध पर काबू के लिए प्रयासरत तेरा एक मित्र)


हे देवेन्द्र . . . मैं तुम्हारा बहुत सम्मान करता था, तुम्हारी कर्मठता, कर्तव्यपरायणता व जज्बातों के कारण ही तो तुम से जुड़ाव हुआ था। गोगुन्दा आगमन के साथ ही फिल्ड में जाने का पहला मौका भी तुम्हारे साथ ही मिला। 26 जून के सम्मेलन की सूचना करने अपन रात की 10 बजे तक ऊंचे पहाड़ों पर बसे आदिवासी परिवारों के लोगों को कर रहे थे। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं जहां काम करने जा रहा हूं वहां इतना जुझारू साथी मिलेगा। कुछ ही दिनों के अंतराल में महसूस हो गया कि तुम एकचित्त मानस नहीं हो। पल में तौला-पल में माशा... हो जाते हो। काम भी अनेक करते हो। तुम्हारे प्लाॅट की कहानी भी तुमने बताई। तुम्हारे दिल में कितना दर्द था ये तुमने चेहरे पर या आंखों में कभी जाहिर नहीं होने दिया। एक दिन हंसते-हंसते दिल दहलाने बात तुमने कही तो मैंनें तुमसे एक वादा लिया और तुमने सहर्ष दिया... लेकिन तुमने वो वादा तोड़ दिया।

तुम्हारा वादा जाता रहा . . . तो तुम्हारे लिए मेरे मन में जो सम्मान था वो अब नहीं रहा और मैं ‘‘आप’’ से ‘‘तुम’’ पर आ गया। तुम्हारे गुस्से की ऐसी की तैसी . . . अब तुम ऊपर बैठ कर नीचे का तमाशा देख रहे हो ? कैसा लग रहा है ये तमाशा ? यार तूने खुश के बारे में भी नहीं सोचा। माता-पिता, भाई, भार्या के बारे में भी नहीं सोचा ? तेरा छोटा भाई बहुत तड़फा रे देवेन्द्र . . .। पिताजी भी बहुत रोये, माताजी का तो रो-रोकर बुरा हाल हो गया। तेरे पिताजी कितने अच्छे इंसान है! तेरे आखिरी समय की बातें हमसे साझा कर रहे थे, जैसे कृष्ण-सुदामा का पाठ कर रहे थे. . . आ हा.. हा.. हा, कितनी चाह रखते थे तुम्हारे प्रति। आसपुर, गोगुन्दा, बरवाड़ा, सायरा, उदयपुर केद्रों से सभी साथी तुम्हारे शव की यात्रा में आए। जो नहीं आ सके वो मोबाइल पर काॅल करके पल-पल की खबरें लेते रहे। तुम्हारी मौत पर श्मसान में सबने खूब आंसू बहाए, कोई आंखों से आंसू बहाकर रोया तो कोई दिल से रोया... और तो और तुम्हारी अंत्येष्ठि पर देवों का देव इन्द्र भी रोया। मगर मैं नहीं रोया, ना दिल से.. ना ही आंखों से। 

परन्तु हे देवेन्द्र, हे परम आत्मा. . . तुम्हारी सहृदयता व स्वस्थमना की बातें सभी कर रहे थे। हे मित्र मैं तुम्हारे जोश, तुम्हारे जज्बात, तुम्हारी कर्तव्यपरायणता को सलाम करता हूं . . . मुस्कुरा मत... तेरे अंतिम कर्म (लास्ट वर्क) पर मैं तूझे लानत भेजता हूं। तेरे निर्जीव शरीर को जब जलाया तो कई लोगों ने तुझे गालियां भी दी, सुनी की नहीं। तेरे इस कर्म को किसी ने नहीं सराहा।

हे देवेन्द्र . . तेरी बहुत याद आएगी यार, अब मैं स्टेपलर, पचिंग मशीन, स्केल, फाइलें, फेविस्टीक, रिपोर्ट फाॅरमेट इत्यादि किससे मागूंगा ? और कौन देगा ? सुबह से दृष्टि पटल पर तेरी ही सूरत फिल्म की तरह चल रही है। देख ना सब सो गए है, शांति, लालू, विनय, मोहित, दिलीप सभी सो गए है। मुझे नींद ही नहीं आ रही है। 

बहुत जिंदाबाद, जिंदाबाद करता था तू। लोगों को जिंदाबाद का अर्थ भी बताता था ना, अब लोग मुझसे पूछेंगे तो क्या जवाब दूंगा उन्हें मैं। जब मुर्दा ही होना था तो लोगों को क्यों जिंदाबाद का अर्थ समझाता था। यार तू तो मुक्ति पा गया, मुझे क्यूं सुक्तियों में उलझा गया।

तू मुझे मारसाब कहता था तो कीक लगती थी। आई मिस यू देव  :(


हमेशा देर कर देता हूँ मैं, हर काम करने में.

जरुरी बात कहनी हो, कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो, उसे वापस बुलाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..

मदद करनी हो उसकी, यार को ढ़ाढ़स बंधाना हो,
बहुत देहरीना रस्तों पर, किसी से मिलने जाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..

बदलते मौसमों की सैर में, दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो, किसी को भूल जाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..

किसी को मौत से पहले, किसी गम से बचाना हो,
हकीकत और थी कुछ, उसको जाके ये बताना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं….. (मुनीर)

अंत में . . .जो जिंदा है उनके लिए -

नर हो न निराश करो मन को
आज का वातावरण कुछ ऐसा है जो सकारात्मक कार्यों में लगे लोग अक्सर निराशा की तरफ धकेलता है। ऐसे में भारत के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी की ये पंक्तियाँ आशा की नई किरण जगाती है। कृपया इन्हें जीवन में उतारें। 

Tuesday, September 23, 2014

यादगार: स्टाफ कैंप-2014

फीडबैक कम वृतांत

‘‘शायद आप पढ़ते-पढ़ते थक सकते है लेकिन क्या करूं मैं बोलता नहीं और कमबख्त ये अंगुलिया है कि लिखने से बाज नहीं आती’’ - लखन हैरान

आज आजीविका ब्यूरो में अपन को 3 माह पूरे हुए है। आजीविका ब्यूरो में अब तक का सफर बहुत अच्छा रहा है। अपने अधिकारों से बेखबर, सबसे वंचित व हासिए पर जी रहे लोगों के अधिकारों की पैरवी करने, उनके परिवारों को सषक्त करने, जनकल्याणकारी योजनाओं से जुड़ाव करने व उनके युवाओं को रोजगार के क्षेत्र में दक्ष बनाने का कार्य आजीविका ब्यूरो द्वारा किया जा रहा है। (हकीकत तो यह है कि आजीविका द्वारा किए जा रहे कार्यों को शब्दों में पिरौने की कोशिश करूं तो यह अन्याय होगा)। आजीविका का काम मुझे बहुत पंसद आया, नतीजतन मैं पत्रकारिता जगत को टाटा करके सामाजिक क्षेत्र में आया। ओह साॅरी . . . साॅरी. . .साॅरी. मैं स्टाफ कैंप कें संदर्भ में अपनी बात कहना चाह रहा हूं . . .  ये बावरा मन भी ना, कहां से कहां चला जाता है। 
खैर . . . आता हूं मुद्दे पर। एक दिन गोगुन्दा सेंटर पर कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क टटोलते वक्त कुछ फोटोग्राफ दिखाई दिए जिसमें राजीव जी नाच रहे थे, आभा जी साधु बनी हुई थी, कोई धोती कुर्ता पहनकर तो कोई लहंगा चोली में नाच रहा था। मेरे एक परिचित सीएसडीएस के विपुल मुद्दगल भी दिखाई पड़े तो मैंनें उत्सुकतावश सेंटर पर सेवाएं दे रहे उदय सिंह राव से उन फोटों के बारे में पूछा। उन्होंने मुझे बताया कि ये हमारे स्टाफ कैंप के फोटो है। पहली बार मैंनें स्टाफ कैंप के बारे में सुना। उन्होंने बताया कि 3 दिवसीय स्टाफ कैंप किसी पर्यटक पाॅइन्ट पर आयोजित किया जाता है, जिसमें आजीविका ब्यूरों के सभी केंद्रों के सभी साथी भाग लेते है। कैंप में विभिन्न विषयों के संदर्भ में कार्यशालाएं आयोजित की जाती है और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी। स्टाफ कैंप का वर्णन उदय सिंह राव ने जिस प्रकार से किया उससे मैं रोमांचित हो उठा, इसके पीछे एक कारण था . . . मेरा कला प्रेमी होना। मैंनें कहा ना . . . बावरा मन हकीकत में जीने ही नहीं देता . . . ले गया सपने में . . . अब मैं स्टाफ कैंप में था। सपने से कब बाहर निकला पता ही नहीं चला, तब तक उदय सिंह राव जी भी आजीविका ब्यूरो से इस्तीफा देकर जा चूके थे। 
सपना भी भूल गया और स्टाफ कैंप भी। सुबह 6.30 बजे से दिनचर्या आरम्भ होकर कभी रात की करीब 9.00 बजे तो कभी 1.00 बजे तक, मस्ती से चल रही थी। 4 सितम्बर को गोगुन्दा केंद्र पर मासिक समीक्षा बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें राजीव जी, कृष्णा जी व आभा जी ने भी भाग लिया था। इसी दौरान राजीव जी ने स्टाफ कैंप का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सभी तैयारियों के साथ स्टाफ कैंप में आवें। राजीव जी को मैं कई बरसों से जानता हूं और मेरे मस्तिष्क की सैकेण्डरी मैमोरी में यह सुरक्षित है कि - वे एक गंभीर प्रकार के सामाजिक कार्यकर्ता है। वो तो पुराने स्टाफ कैंप के फोटों देखने से पहली बार लगा कि वो 
कामों में व्यस्तता के चलते 12 सितम्बर तक तो कुछ कर नहीं पाया। अब थोड़ा सोचा तो ख्याल आया कि क्यूं ना एक नाटक का मंचन किया जाए, जिसमें सभी साथियों की भूमिका निर्धारित की जाए। अपनी एक बूरी आदत है, जो सोचते है कर लेते है। विरह की अग्नि में जलने की बजाए क्रियटीविटी में रम जाना आदत में रहा है तो रात के समय का उपयोग अच्छे से कर लेते है। रात थी, मैं था और मेरी कलम, नतीजा यह रहा - ‘‘आदिवासी युवा: प्रवास, विवाह और विरह’’  षिर्षक का एक नाटक तैयार हो गया। इसमें संवाद के साथ कुछ गानें भी थे। पर्दें के पीछे रहना अच्छा लगता है, सो पूरे नाटक में मैंनें अपनी भूमिका नेपथ्य से गायन की स्वयं ही सुरक्षित रख ली। 
स्टाफ कैंप के सजीव चित्र पुनः मन मंदिर में छाने लगे। एक ईमेल पढ़ा तो पता चला कि हमारे केंद्र की ओर से ‘‘पल्लो लटके’’ शिर्षक वाले राजस्थानी गाने पर प्रस्तुति दी जानी है। मेरी तो और भी अधिक अपेक्षा थी, मैं तो कोई धांसू (सबको फना कर देने वाली) प्रस्तुति देने की सोच रहा था, (केंद्र के सभी साथियों की सहभागिता वाली) . . . पर अपन भी मंजे हुए खिलाड़ी है। अकेले ‘‘पल्लो लटके’’ गाने पर प्रस्तुति को मेरा मन अधिक मोहित कर देने वाली मानने को तैयार नहीं था। मैं कुछ सोच ही रहा था कि साथियों ने कहा कि राजस्थानी गानों को मिलाकर एक ‘‘रिमिक्स सोंग’’ बनाया जाए और उस पर प्रस्तुति दी जाए। 
अब दो प्रकार की चुनौतियां मेरे सामने थी। एक तो राजस्थानी गानों का चयन करना और दूसरा साॅफ्टवेयर कबाडना। साॅफ्टवेयर के माध्यम से ही राजस्थानी गानों को मिलाकर ‘‘रिमिक्स सोंग’’ बनाना संभव था। 
16 की सुबह नाटक को साथियों के समक्ष रखा तो सभी ने सहमति दे दी। तय किया गया कि सायरा व बरवाड़ा केंद्र के साथियों को भी 17 सितम्बर की रात गोगुन्दा केंद्र पर बुला लिया जाए और उस रात नाटक व रिमिक्स सोंग पर तैयारी कर ली जाए। 
17 की शाम को साथी केंद्र पर पहुंच गए, ढोलक में कुछ खराबी थी, जिसे ठीक करवा लिया गया। जद्दोजहद के बाद इसी शाम एक अपूर्ण ‘‘रिमिक्स सोंग’’ भी बना लिया।
एंट्री सोंग ‘‘गुल्ली डांडों मूच्छया पर फेर लो जी’’ हमारी मंच पर उपस्थिति को दर्शाने वाला था, उसके बाद ‘‘पल्लो लटके’’ प्रस्तुति का थीम सोंग था, उसके बाद ‘‘पीली लुगड़ी, लाम्बोें घूंघट काड लेबा दे’’ और ‘‘आपा चकरी में झूलांगा, आपा डोलरे में हिंदांगा, लारा चाले नी धापूड़ी ऐ’’ ये दोनों हर किसी को झूमने पर मजबूर कर देने वाले सोेंग थे। 
गाने अच्छे थे, बोले भी अच्छे और रिदम भी अच्छा। केंद्र के सभी साथियों को ग्रुप डांस करना था। रियाज के लिए सभी तैयार थे, राजमल कुलमी जी, इनका नाम लेते ही मुझे लगा कि ये डांस नहीं कर सकेंगे लेकिन जब नाचने का अभ्यास आरम्भ हुआ तो मैं कुलमी का ‘‘जुलमी’’ रूप देखकर अचंभित रह गया। अभ्यास के दौरान वो जबरदस्त नृत्य प्रस्तुत कर रहे थे। नृत्य के कुछ स्टेप सिखाने में हमारे रिजनल काॅर्डिनेटर (उन्हें सिजनल काॅर्डिनेटर कह दूं तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी, क्योंकि वे रिजनल काॅर्डिनेटर के रूप में कभी-कभी ही नजर आते है बाकी तो दोस्त ही बने रहते है।) की पत्नि शोभा जी ने भी मदद की। कई बार रिटेक हुए . . . रात के 10 बजते-बजते सभी थक कर चूर हो गए। डांस करने की जिन की इच्छा नहीं थी वो तो मन ही मन कोस भी रहे थे। रात 10 बजे बाद सभी ने साथ खाना खाया। खाने के बाद नाटक का अभ्यास किया जाना था लेकिन वापस लौटे तो आधे साथी गायब थे। जो बचे उनमें मंजू जी, देवेन्द्र जी, हिमांशु जी, जसवंत जी, लालू जी, शांति जी, गुलाबी जी व मैं था। हमने एक बार नाटक का अभ्यास करना तय किया और . . . एक-डेढ़ घंटे में अभ्यास कर ही लिया। सभी को अच्छा लगा और सभी मंचन को उत्साहित नजर आए। घड़ी 1 बजा चुकी थी। सुबह जल्दी उठना था। 11.30 बजे तक उदयपुर हेडआॅफिस पहुंचना था सो . . . सो गए। 
सुबह 8.30 बजे सभी चलने को तैयार थे, सभी को साथ चलना था लेकिन विभिन्न कारणों के चलते हम किस्तों में उदयपुर पहुंचे। उदयपुर से रवाना हुए तो रास्ते में पता चला कि ढ़ोलक व हारमोनियम तो केंद्र पर ही भूल गए। अब ये जिम्मेदारी मेरे पर आन पड़ी। चित्तौड़गढ़ में पुराने संपर्कों को याद किया, पहला नाम सांवर जी सामने आया, फोन बुक में संपर्क नम्बर जुड़ने के बाद मुश्किल से मिटाता हूं, इस आदत का यहां लाभ मिला। सांवर जी ने मेरी जिम्मेदारी ओढ़ ली। ढोलक व हारमोनियम की व्यवस्था कर दी।
सास्वत को सास्वत ही रहने दो भई
जहां कैम्प आयोजित हुआ वहां व्यवस्थाएं अद्भूत थी। व्यवस्था करने वाली टीम को साधुवाद। बस से उतर कर सांवलिया अतिथि गृह के सामने पहुंचे तो देखा कि सभी साथी दिवारों पर चस्पा कागजों में नजर गड़ाए हुए है, परीक्षा कक्ष में जाने से पहले या परीक्षा परिणाम की सूचना देखने वाला सीन याद आ गया। मैंनें मेरा नाम ढूंढा तो मिला नहीं, मिलता कैसे सूची में मेरा सरकारी नाम लिखा था। साला सास्वत को कोई नहीं मानता, सब को सरकारी ही सही लगता है। मेरे नाम का बड़ा चक्कर है। सरकारी रिकाॅर्ड में मेरा नाम लखन की बजाए भगवान विष्णु की पत्नि की नाम किसने लिखा ? किंवदती है कि मुझे स्कूल में भर्ती करवाने गए मेरे बड़े पिताजी व प्रधानाध्यापक रूस्तम अली शेख के बीच हुए मिस कम्यूनिकेशन के कारण सरकारी रिकाॅर्ड में मेरा नाम लखन की जगह भगवान विष्णु की पत्नि का नाम दर्ज हो गया। पर वास्तव में तो यह ये खोज का विषय है। 
छोड़ों भी जाने दो रहने यार, करने दो मुझको कैंप की बातें चार
नाम के चक्कर की बातें छोड़कर कैंप की बातों की ओर आते है। सभी के साथ में भी अतिथिगृह में प्रवेश हुआ, मुझे कमरा नम्बर 115 में स्थान दिया गया था। इस संख्या के कमरे में गया तो अधिकतर साथी गोगुन्दा क्षेत्र के ही मिले। आरएसएसए गोगुन्दा, सलुम्बर, केलवाड़ा के साथियों का साथ मिला। हेडआॅफिस से संबंध रखने वाले अम्बा लाल जी भी इसी कमरे में थे। बाथरूम में बहुत अच्छा गाते है। शाम को दो घंटे के लिए घूमने का मौका मिला। भास्कर जी, संजय जी, राजेश जी, हिरा लाल जी, जितेन्द्र जी, महेन्द्र जी व रमेश जी के साथ किले पर स्थित काली मां के मंदिर गए, वहां से कीर्ति स्तम्भ होते हुए लौट आए। थोड़ा समय था तो मैं निकल पड़ा अतिथिगृह का मुहायना करने। कमरों के बाहर पहुंचा, कमरों को देखा, बाहर चस्पा नामों को पढ़ा, इस व्यवस्था ने मुझे चैंका दिया। 
सांस्कृतिक कार्यक्रम आरम्भ होने की घोषणा हुई तो साथ में यह भी घोषणा हुई कि पहली प्रस्तुति गोगुन्दा की है। हमारे ग्रुप ने प्रस्तुति दी, सबको अच्छी भी लगी। आपने तालियां बजाकर उत्साहवर्धन किया इसके लिए धन्यवाद। 
कृष्णा जी ने हारमोनियम बजाते हुए गणपति वन्दना की, उनका यह रूप अच्छा लगा। मैं भूल रहा हूं, कैम्प के शुरूआत में कैम्प के उद्देश्य इत्यादि के बारे में जिस तरह से एक गतिविधि के माध्यम से बताया गया, वह तरीका मैंनें पहली बार देखा। राजीव जी, संजय जी व . . . क्या नाम है उनका ? हां याद आया जैनब अली, ने बातचीत करते हुए संदर्भ रखे। ये बेजोड़े तरीका था। 
वहीं दिलीप जी गमेती व रमेष जी बुनकर की काॅमेड़ी तो संजय जी चित्तौड़ा व जितेन्द्र जी जैन का नृत्य जोरदार था। आभा जी की ड्रेस भी किसी मायने में कम नहीं लगी मुझे और उनकी गंभीरता . . . उनकी गंभीरता के सामने तो हिमालय को भी कमतर समझता हूं मैं। 
कार्यशालाएं . . . कार्यशालाएं न होकर परीक्षालय थी। कार्यशालाओं में जो कुछ हुआ उससे हकीकत सामने आई। 
निजी महत्वाकांक्षा का रखा ध्यान 
एक सत्र में राजीव जी ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने केंद्र के या अन्य किसी व्यक्ति से उसके बारे में कुछ सकारात्मक विचार रखना चाहता है तो रख सकता है गर विचार रखने का अवसर नहीं मिल रहा है तो वह उसे व्यक्ति से व्यक्तिगत मिलकर अपने मन की बात कह दे। राजीव जी को मैं अपने मन की बात कहना चाहता था लेकिन समय नहीं मिला। इस मंच के माध्यम से मैं राजीव जी तक एक बात पहुंचाना चाहता हूं कि - राजीव जी, पुरस्कृत करने की श्रृंखला के दौरान आपने जो एक निर्णय लिया वह बहुत महत्वपूर्ण था, आपके उस कदम से वहां मौजूद हर शख्स प्रभावित हुआ होगा लेकिन मैं सर्वाधिक प्रभावित हुआ। अंतिम सत्र जिसमें अगले एक दशक में आजीविका ब्यूरो क्या करना चाहता है, इस हेतु आगामी योजना बताई जानी थी। सत्र से पूर्व आपने कुछ साथियों को इशारा कर बाहर बुलाया, उनसे चर्चा की और उन्हें मंच से बोलने के लिए तैयार किया। वे मंच पर आए और आगामी एक दशक की योजना के बारे में बताया। आपके इस तरीके से भी मैं बहुत प्रभावित हुआ। उभरते नेतृत्व को दिशा देना व नेतृत्व उभारना कोई आपसे सीखे। प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक व वेब पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े मेरे साथी मेरे आजीविका ब्यूरो के साथ जुड़कर काम करने की स्थिति को आश्चर्य से देखते है। वे कहते है कि मैं गलत कर रहा हूं लेकिन आप जैसे लोगों के साथ काम करने को अपना सौभाग्य समझता हूं। मुझे लगने लगा है कि यहां आकर मैंनें कोई गलती नहीं की है। 
आपको बोरियत महसूस ना हो इसलिए ऐसी गंभीर बातों को यहीं पर विराम देता हूं। स्टाप कैम्प के दौरान एक खास बात रही जो मैं जीवन में कभी भूल नहीं पाउंगा। मैं अपने ट्रावेल बैग में आवश्यक सामान ले गया था। उसमें ट्वाॅयलेट किट, कपड़े, जूते, स्लीपर इत्यादि थे। कमरा नम्बर 115 में जाने के बाद मैंनें बैग से सबसे पहले अपनी स्लीपर बाहर निकाली। पहले दिन मैं स्लीपर का उपयोग कर सका। दूसरे दिन सुबह मैंनंे स्लीपर को खोजा पर नहीं मिली, मैंनें सोचा शायद कोई साथी पहनकर गया होगा। डिनर के वक्त देखा कि हाॅल के बाहर स्लीपर पड़ी हुई है। मैंने बाहर खड़े रहकर नजर रखी लेकिन बहुत देर तक किसी ने नहीं पहनी तो मैं नजर रखते-रखते थक गया। भूख लग रही थी तो मैं भी डिनर लेने हाॅल में चला गया। डिनर लेने के बाद बाहर आकर देखा तो स्लीपर गायब थी। सोचा पहनने वाला साथी कमरे में ले गया होगा। कमरे में जाकर देखा तो वहां भी स्लीपर नहीं मिली। 
तीसरे दिन सुबह उस साथी को बहुत कोसा। हरेक कमरे में जाकर देखा लेकिन स्लीपर कहीं नहीं दिखी। चाय के दौरान हाॅल में जाने लगा तो बाहर स्लीपर पड़ी दिखी। बाहर खड़े रहकर फिर इंतजार किया लेकिन किसी ने नहीं पहनी। तब मैं भी चाय पीने हाॅल में चला गया, वहां गुड मार्निंग कहने में व्यस्त हो गया। बाहर आकर देखा तो स्लीपर फिर गायब थी। 
मुझे अपनी खोजी पत्रकारिता पर तरस आ रहा था। एक स्लीपरधारी साथी को पकड़ने में मैं सफल नहीं हो पा रहा था। फिर अपना जिद करो दुनिया बदलों का नारा भी तो अकेली स्लीपर को उठाकर कमरे में ले जाने से रोक रहा था। मैं उस शख्स से मिलना चाह रहा था। उससे शिकायत करने की बजाए अहसास कराना चाह रहा था कि भाई साब कोई भी व्यक्ति यात्रा करता है तो अपने साथ अपना पूरा घर साथ ले जाने की बजाए उन महत्वपूर्ण उपयोगी चीजों को ही साथ अपने साथ लेता जिनकी उसे सख्त जरूरत होती है। मुझे स्लीपर की सख्त जरूरत होती है, आप बिना इजाजत के कैसे किसी व्यक्ति की चीजों का उपयोग कर सकते है। 
चाय के बाद नाष्ते के दौरान हाॅल में जाते हुए मैंनें बाहर ध्यान से देखा लेकिन इस बार स्लीपर बाहर नहीं दिखी। नाष्ता लेने के बाद बाहर निकला तो स्लीपर पड़ी हुई थी। इस बार मैं बाहर पिल्लर के पास खड़ा हो गया। जो कोई यह हरकत कर रहा था, उसे अकेले में खूब खरी-खरी सुनाने की इच्छा थी लेकिन इस बार भी में चूक गया, किसी से बतियाने के बाद स्लीपर की ओर नजर डाली तो वे गायब थी। मनमसोस कर कमरे में चला गया। 
लंच के बाद हाॅल के बाहर स्लीपर पुनः नजर आई, इस बार भी मैं विफल रहा। 
इस तरह अंतिम सत्र के बाद तक स्लीपर मुझे नजर आती रही, मैं असफल निगरानी रखता रहा और स्लीपरधारी को नहीं पकड़ सका। 5-7 साथियों से तो मैंनें पूछा भी सही कि यार मेरी स्लीपर कौन पहन रहा है ? लेकिन किसी को पता नहीं था। 
विदाई हो चुकी थी, लोग हाॅल से बाहर निकल चुके थे। सभी ने अपने कमरे भी खाली कर दिए थे और अतिथिगृह से बाहर निकल चुके थे, मेरी स्लीपर संदिग्ध अवस्था में सेठ सांवरिया के मंदिर के पास पड़ी थी। मैंनें चुपचाप उन्हें उठाया और बैग में धर कर रवाना हो गया। 
कोई मेरी स्लीपर पहनकर घूमता रहा, मुझे इस बात की कोई तकलीफ नहीं है, मुझे मलाल है इस बात का कि मैं यह पता नहीं लगा पाया कि आखिर मेरी स्लीपर किसने पहनी ? पता नहीं लगा सका, शायद कैम्प में नए साथियों से मिलने, बातें करने में इतना मस्त था।
अशोक झा साब कहां गए वो नजर नहीं आए ?

Thursday, September 4, 2014

अब कौन सुनेगा वेणी सिंह की शिकायत ?

सरकार आपके द्वार अभियान के तहत 23 अगस्त को गोगुन्दा में पंचायत समिति स्तरीय जनसुनवाई शिविर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आयोजित किया गया। यहां ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने लोगों की शिकायतों पर सुनवाई की। मंत्री ने सुनवाई करते हुए कई मामलों का हाथों हाथ निस्तारण भी किया लेकिन कई सरकारी अधिकारी ऐसे भी है जिन्होंने शिकायतों पर कार्यवाही करने से बचने के लिए मंत्री को भ्रमित कर दिया। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जो गोगुन्दा के आबकारी थाने से जुड़ा हुआ है। गोगुन्दा थाने के थानाधिकारी ने शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में मंत्री के सामने झूठ बोलकर शिकायत का निस्तारण करवा दिया।

20 अगस्त को चांटिया खेड़ी ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत स्तरीय जनसुनवाई शिविर आयोजित किया गया। काच्छबा ग्राम पंचायत के वेणी सिंह खरवड़ ने अपनी शिकायत दर्ज करवाते हुए आबकारी थाने के मेस में किए गए रसोई बनाने के कार्य का भुगतान करवाने की मांग की। मंत्री से सुनवाई करते हुए आबकारी थानाधिकारी को 23 अगस्त तक वेणी सिंह को भुगतान करने के मौखिक आदेश दिए। 23 अगस्त को वेणी सिंह खरवड़ पंचायत समिति स्तरीय जनसुनवाई में नहीं पहुंच पाया। लेकिन जनसुनवाई में उसकी शिकायत पर पुनः सुनवाई हुई, जैसे ही उसकी शिकायत मंत्री के हाथ में आई, मंत्री ने आबकारी थानाधिकारी को जवाब के लिए बुलाया और शिकायत निवारण के बारे में पूछा तो आबकारी थानाधिकारी ने कहा कि वेणी सिंह खरवड़ को बकाया राशि का भुगतान बीते कल कर दिया गया है। शिविर में मौजूद लोगों ने मंत्री द्वारा की गई कार्यवाही पर जमकर कर तालियां बजाई और मंत्री की हौसलां अफजाई की।
दूसरी ओर वेणी सिंह खरवड़ को यह जानकारी मिली कि मंत्री को थानेदार ने बताया है कि वेणी सिंह को बकाया राशि का भुगतान कर दिया गया है तो वह जलभून कर रह गया, अब उसने ठान लिया कि वह थानेदार की शिकायत पुनः मंत्री गुलाबचंद कटारिया से करेगा।
वेणी सिंह खरवड़ प्लेसमेंट ऐजेन्सी एम.एस. एन्टरप्राजेज के मार्फत गोगुन्दा आबकारी थाने की मेस में रसोई बनाने का कार्य करते है। पिछले वर्ष इन्होंने 3000 प्रतिमाह के वेतन पर 7 माह तक रसोई बनाने का कार्य किया। जिसमें से एक माह का भुगतान प्लेसमेंट एजेन्सी द्वारा कर दिया गया। शेष 6 माह का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जिसकी मांग को लेकर वेणी सिंह खरवड़ ने मंत्री को शिकायत दी थी।
वेणी सिंह ने मजदूरी का भुगतान पाने के लिए गोगुन्दा के श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र में 14 अगस्त को विवाद दर्ज करवाया था। केंद्र से ही उसे परामर्श दिया गया था कि वो एक बार जन सुनवाई शिविर में शिकायत दर्ज करवाएं, इस हेतु केंद्र द्वारा उनकी सहायता भी की गई। वहीं केंद्र द्वारा आबकारी विभाग व प्लेसमेंट एजेन्सी को नोटिस भी भेजे गए है। वेणी सिंह का कहना है वह रूकी हुई राशि पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करेगा। 

वसनी बाई ने की वंचित परिवारों की पैरवी

वह 8 अगस्त 14, शुक्रवार का दिन था। उस दिन करदा ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 6 की महिलाएं अपनी समस्याओं को लेकर पंचायत की एकल खिड़की पर पहुंची। इस वार्ड की जागरूक महिला वसनी बाई पूरे जोश के साथ ग्राम पंचायत में गई, उसके मन में भारी टीस इस बात को लेकर थी कि उसके वार्ड के कई परिवार बीपीएल श्रेणी के काबिल है बावजूद उन्हें इस श्रेणी से वंचित रख दिया गया था। इतने दिनों में वह समझ नहीं पाई थी कि उन परिवारों को बीपीएल श्रेणी में कैसे जुड़ावें। आज वह उन परिवारों को बीपीएल श्रेणी में जुड़वाने की मांग को लेकर ही पंचायत कार्यालय में पहुंची थी। उन्हें बरवाड़ा में संचालित श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र के कार्यकर्ता से जानकारी मिली थी कि ग्राम पंचायत में एकल खिड़की है जहां सुबह 10 बजे से 12 बजे तक ग्रामीणों की शिकायतें दर्ज की जाती है। वसनी बाई के नेतृत्व में कई महिलाएं एकल खिड़की पर एकत्र हुई, पर यह क्या ? यहां तो ग्राम पंचायत भवन ही बंद है!
ग्राम सचिव व रोजगार सहायक के पंचायत कार्यालय पर न होने की शिकायत उपखंड अधिकारी से की तो उन्होंने उपखंड कार्यालय आकर शिकायत करने को कहा। ग्राम पंचायत भवन बंद होने व शिकायत के बावजूद उच्चाधिकारियों का व्यवहार देखकर वसरी बाई को निराशा तो हुई लेकिन उसने हार नहीं मानी। दूसरे दिन वह महिलाओं के साथ उपखण्ड कार्यालय जा धमकी। उसने उपखंड अधिकारी से कहा कि इन महिलाओं के परिवार को बीपीएल श्रेणी में जोड़ो। उपखण्ड अधिकारी राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि बीपीएल श्रेणी में परिवार का पंजीयन करने व हटाने की एक प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया के तहत ही किसी को हटाया या जोड़ा जा सकता है। वसनी बाई ने उस प्रक्रिया के बारे में पूछा तो उपखण्ड अधिकारी ने बताया कि किसी का नाम हटाने या जुड़वाने के लिए उपखण्ड अधिकारी के समक्ष अपील करनी होती है, उपखण्ड अधिकारी अपील की सुनवाई करता है और उस परिवार का पुनः मुल्याकन किया जाता है, मूल्यांकन में अगर परिवार पात्र नहीं है तो उसका नाम हटा दिया है, इसी प्रकार नाम जोड़ा भी जा सकता है। 
वसनी बाई ने उपखण्ड अधिकारी को आवेदन देकर कार्यवाही की मांग की। अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है वहीं वसनी बाई वंचित परिवारों को बीपीएल श्रेणी में जुड़वाने के लिए उपखण्ड अधिकारी के समक्ष अपील करने की तैयारी कर रही है। 
बसनी बाई में नेतृत्व करने व मुद्दों को पहचान कर पैरवी करने की गजब की क्षमता दिखाई पड़ती है, वह श्रमिक संगठन की नेत्री है। यही नहीं सामाजिक वकील बनकर श्रमिक परिवारों के हितों की रक्षा करने की पैरवी करने के लक्षण भी उसमें साफ दिखाई पड़ते है। वो पहल कर कदम उठा रही है वो निरन्तर सीखते हुए मजबूत हो रही है। 

हितों के लिए सचेत

प्रवासी श्रमिक परिवारों की महिलाएं जागरूक हुई है, कभी श्रम शब्द को भी ठीक से न समझ पाती थी, श्रम कल्याण बोर्ड एवं श्रम विभाग जैसे शब्द तो उन्हें विदेशी भाषा के प्रतीत होते थे। आजीविका ब्यूरो द्वारा गोगुन्दा उपखण्ड मुख्यालय पर संचालित श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र के कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे मिशन का असर है कि अब श्रमिक न केवल श्रम शब्द को समझने लगे है बल्कि आगे होकर श्रम विभाग एवं श्रम कल्याण बोर्ड द्वारा संचालित श्रमिक हित योजनाओं का लाभ लेने है।

01 अगस्त 14 को सुबह करीब 10 बजे 4-5 महिलाएं समूह में श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र गोगुन्दा पर आई। उनसे केंद्र पर आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि हम श्रम कल्याण बोर्ड की डायरियों को रिन्युअल कराने आई है। इन महिलाओं को श्रम विभाग के बारे में जानकारी थी, श्रम कल्याण बोर्ड में श्रमिक पंजीयन से लेकर श्रमिक परिचय पत्र की जानकारी भी थी। 
बातचीत के दौरान पता चला कि वे गोगुन्दा बसस्टेण्ड के समीप स्थित नाई मोहल्ले से आई थी। उन्होंने बताया कि वे कई सालों से अमावस्या की बैठक में जा रही है तथा महानरेगा एवं मकान निर्माण में कुली का काम करती है। उन्होंने बताया कि पहले हमें श्रम विभाग के बारे में जानकारी नहीं थी और ना ही श्रमिकों के लिए संचालित सरकारी योजनाओं की जानकारी थी, इस मजदूरों के आॅफिस (श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र) के लोगों ने हमें श्रमिकों के लिए संचालित योजनाओं एवं हमारे अधिकारों के बारे में बताया। पहले तो उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब प्रयास किया, हिताधिकारी के पंजीयन के आवेदन किए और बाद में श्रम विभाग (राजस्थान भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक कल्याण मण्डल) से हमारे श्रमिक डायरियां (परिचय पत्र) बनकर आई तो कंेद्र पर हमारा विश्वास बन गया जो आज तक कायम है। 
ये महिलाएं सशक्त है, इन्होंने अपने हिताधिकारी परिचय पत्र हेतु आवेदन भी खुद ही किए, परिचय पत्र के रिन्युअल के लिए अंशदान भी स्वयं ही जमा करवाकर आती है। उन्होंने बताया कि केंद्र के लोग हमारे आवेदन तैयार करवाने में मदद कर देते है और नई जानकारियां देते है।
खास बात यह है कि सवागी बाई, देवली बाई, भूरी बाई, लक्ष्मी बाई, डाली बाई व नरसी बाई जानकारी लेने या अन्य कामों से सरकारी दफ्तरों में समूह के रूप में जाती है। ये सभी घांचा समुदाय की है। उनका कहना है कि हम पढ़ी लिखी नहीं है, सभी साथ में जाती है तो आत्म विश्वास बना रहता है और जो भी जानकारी मिलती है, अगर हम में से एक भूल भी जाए तो दूसरी को याद रह जाता है।
ये महिलाएं संगठित है और अपने अधिकारों को न केवल जानती है बल्कि अधिकार पाने के लिए संघर्षरत है। 
जब उनसे पूछा गया कि श्रम कल्याण बोर्ड से जारी परिचय पत्र से क्या-क्या लाभ प्राप्त किए जा सकते है तो उन्होंने बताया कि श्रमिक साईकिल सहायता के लिए, दो बेटियों के विवाह हेतु सहायता के लिए, प्रसूति सहायता के लिए व बच्चों की पढ़ाई के लिए छात्रवृति सहायता के लिए आवेदन कर सकता है। केंद्र कार्यकर्ता ने उनकी जानकारी बढ़ाते हुए बताया कि यही नहीं पंजीकृत हिताधिकारियों के लिए स्वावलम्बन पेंशन योजना, मेधावी छात्र-छात्राओं के लिए नकद पुरस्कार योजना संचालित है। साथ ही आवास बनाने के लिए ऋण एवं अग्रिम का भुगतान किया जाता है तथा सामान्य अथवा दुर्घटना में मृत्यु या घायल होने पर सहायता दी जाती है। महिलाओं ने बताया कि उन्हें इनके बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने संकल्प लिया कि वे इन जानकारियों की अन्य समूहों में भी चर्चा करेंगी। 

Wednesday, August 6, 2014

न एकल खिड़की है ना लिए जाते है आवेदन !

जनसुनवाई अधिकार अधिनियम की अनदेखी 

गोगुन्दा - एक तरफ राज्य सरकार ‘‘सरकार आपके द्वार’’ अभियान संचालित कर गांवों के लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत है। राज्य की मुख्यमंत्री स्वयं इस कार्यक्रम की माॅनिटरिंग कर रही है। उदयपुर संभाग में 21 से 23 जुलाई के तक शिविर आयोजित होने वाले है। वहीं दूसरी तरफ ग्राम पंचायतों के कर्मचारियों द्वारा सरकार के इस विशेष अभियान व आदेशों की अवहेलना की जा रही है। 

बुधवार को पाटीया ग्राम पंचायत के कर्मचारियों ने भारोड़ी के ग्रामीणों को खूब छकाया। ग्रामीण भारोड़ी से पाटीया स्थित ग्राम पंचायत के चक्कर लगाते रहे लेकिन ग्राम पंचायत बंद मिलता। अंत में उपखण्ड अधिकारी को फोन कर शिकायत की तो रोजगार सहायक ने राजीव गांधी सेवा केंद्र पर पहुंच कर ग्रामीणों की शिकायतें ली। 

शिकायतों के आवेदन लेकर पंचायत कार्यालय के बाहर खड़े ग्रामीण
जानकारी के अनुसार बुधवार को सुबह 10 बजे भारोड़ी गांव के ग्रामीण अपनी शिकायतें लेकर ग्राम पंचायत कार्यालय की एकल खिड़की सुनवाई अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन करने गए लेकिन ग्राम पंचायत कार्यालय पर ताला जड़ा हुआ था। ग्रामीण 11.30 बजे तक वहां बैठे रहे और बिना आवेदन किए वापस गांव लौट गए। 12.30 बजे उन्हें ग्राम पंचायत में पदेन ग्राम सचिव के आने की सूचना मिली तो वे आवेदन करने के लिए पुनः ग्राम पंचायत कार्यालय में गए। वे वहां पहुंचते उससे पहले ही सचिव पंचायत कार्यालय के ताला लगाकर चला गया। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इसकी शिकायत उपखण्ड अधिकारी से की, बाद में रोजगार सहायक ने पंचायत कार्यालय पहुंच कर ग्रामीणों के आवेदन लेकर रसीदें दी। 

आवेदन लेकर रसीदें देते हुए रोजगार सहायक
क्या है नियम 

सुनवाई का अधिकार अधिनियम 2012 के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत कार्यालय पर एकल खिड़की संचालित होनी चाहिए। नागरिक प्रत्येक कार्य दिवस में सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक एकल खिड़की पर मौखिक या लिखित आवेदन कर रसीद प्राप्त सकते है। 

ऐसे हो रही है पालना !

पाटीया पंचायत कार्यालय पर न एकल खिड़की है और न ही आवेदन लेने की व्यवस्था। सूचना के अधिकार के अधिनियम की धारा 4 के तहत सूचनाएं भी नहीं लिखवाई गई हैै। 

Tuesday, July 22, 2014

बस से कुचलने से महिला की मौत

उदयपुर से गोगुन्दा आ रहे बाइक सवार के पीछे बैठी महिला नीच गिर गई, पीछे से आ रही एक निजी बस अनियंत्रित होकर महिला को रोंदते हुए आगे निकल गई। महिला की मौके पर ही मौत हो गई जबकि निजी बस का ड्राइवर मौके से फरार हो गया। 

गोगुन्दा थाने के एसएसआई लाल चन्द ने बताया कि खेम सिंह उम्र 22 वर्ष आज सुबह अपनी बीमार मां इन्द्रा देवी का ईलाज करवाने के लिए बाइक पर उदयपुर के चिकित्सालय में ले गया था, ईलाज के बाद वापस लौटते समय ईसवाल के नजदीक पीछे से आई एक निजी बस ने उसकी मां को बुरी तरह कुचल दिया। जिससे उसकी मां की मौके पर ही मृत्यु हो गई। 
पुलिस ने घटनास्थल से निजी बस व मोटर साईकिल को जप्त कर लिया है। वहीं गोगुन्दा एसचसी पर मृतका का पोस्टमार्टम कर शव परिजनों को सुपुर्द कर दिया है। 
जानकारी के अनुसार 12 वर्ष पूर्व उसके पिताजी की मृत्यु हो गई थी, अब मां भी नहीं रही। 
उल्लेखनीय है इन्द्रा देवी झुंझारू महिला थी और श्रमिक संगठन से जुड़ी हुई थी, वह महिला श्रमिकों के हितों पर लगातार कई वर्षों से कार्य कर रही थी। महिला श्रमिक संगठन से जुड़ी महिलाओं ने इन्द्रा देवी की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रृद्धांजली दी है। 

Saturday, July 19, 2014

यहां महानरेगा मजदूरों को घर बैठे मिलता है काम का भुगतान

18 अगस्त 2014 को आजीविका ब्यूरो के साथी दिलीप गरासिया के साथ गोगुन्दा उपखण्ड क्षेत्र के फूटिया गांव में जाना हुआ। यहां गमेती बस्ती में महिला व पुरूष मजदूरों के साथ बैठक की। बैठक में मजदूरों को उनके अधिकारों एवं उनके लिए सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के बारे में बताया गया। पेंशन, श्रमिक कल्याण बोर्ड की योजनाएं व महानरेगा सहित मजदूर हितों के बारे में जानकारियों दी। 
महानरेगा पर चर्चा के दौरान महिला मजदूरों ने बताया कि उनके भुगतान में कभी देरी नहीं होती है, भुगतान समय पर घर देने आते है। है न --- चौकानें वाली बात। गोगुन्दा उपखण्ड क्षेत्र की चाटिया खेड़ी ग्राम पंचायत के फूटिया गांव में महानरेगा मजदूरों का भुगतान घर-घर जाकर किया जाता है। भुगतान लेने के लिए मजदूरों को न बैंक जाना पड़ता है न ही पोस्ट आॅफिस। मजदूरों को भी यह नहीं पता कि भुगतान देने वाला कौन है ? अर्थात् भुगतान बैंककर्मी करता है ? पोस्टमैन ? या कोई और . . . . अब मेरे लिए तो ये पहेली बन गई है, इसे सुलझाना ही पड़ेगा --- 


ग्रामीण युवाओं ने लिया ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ का प्रशिक्षण

गोगुन्दा - उपखण्ड क्षेत्र गोगुन्दा के विभिन्न गांवों के 15 युवाओं ने ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ का प्रशिक्षण प्राप्त किया है, प्रशिक्षण पूर्व बेरोजगारी का दंष झेल रहे इन प्रशिक्षित युवाओं को अब अपने ही क्षेत्र में रोजगार मिल सकेगा।  
आजीविका ब्यूरो के राजमल कुलमी ने बताया कि आजीविका ब्यूरो व स्टेप एकेडमी उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस आवासीय प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न वर्गों के 11 ग्रामीण युवाओं ने भाग लिया। उन्होंने बताया कि 30 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, इस दौरान प्रशिक्षकों द्वारा ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ के गुर सिखाये गए। 
प्रशिक्षणार्थी रतन लाल मीणा ने बताया कि वह करीब 6 माह से बेरोजगार था। उसने पूर्व में कई कम्पनियों में अलग-अलग कार्य कर चुका था। कार्य विशेष में दक्ष नहीं होने के कारण उसे हर बार अलग-अलग कार्य करने पड़े लेकिन अब उसने ‘‘हाउस वायरिंग’’ का काम सीख लिया है और इसी काम को करने वाला है। साथ ही उसने बताया कि पहले काम के लिए उसे अन्य राज्यों में जाना पड़ता था लेकिन अब अपने ही क्षेत्र में काम कर सकेगा। 
वहीं प्रशिक्षण ले चुके ओबरा खुर्द निवासी 9वीं पास मीठा लाल गमेती (19 वर्ष) ने बताया कि वह पहले मकान निर्माण कार्य में मजूदरी करता था, जिससे 200 प्रतिदिन कमा लेता था लेकिन उसे महीने में 12-15 दिन ही रोजगार मिल पाता था। आजीविका ब्यूरो द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में उसने मार्बल फिटिंग करना सीख लिया है, अब वह 350 रुपए से 1000 रुपए तक प्रतिदिन कमा सकेगा।
प्रशिक्षण कार्यक्रम समन्वयक राजमल कुलमी ने बताया कि आजीविका ब्यूरो द्वारा न केवल बेरोजगारों युवाओं को विभिन्न कार्यों के प्रशिक्षण दिए जाते है बल्कि स्टेप एकेडमी के सहयोग से उन्हें जीवन कौशल भी सिखाया जाता है। 
ग्रामीण युवाओं ने लिया ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ का प्रशिक्षण 
गोगुन्दा - उपखण्ड क्षेत्र गोगुन्दा के विभिन्न गांवों के 15 युवाओं ने ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ का प्रशिक्षण प्राप्त किया है, प्रशिक्षण पूर्व बेरोजगारी का दंष झेल रहे इन प्रशिक्षित युवाओं को अब अपने ही क्षेत्र में रोजगार मिल सकेगा।  
आजीविका ब्यूरो के राजमल कुलमी ने बताया कि आजीविका ब्यूरो व स्टेप एकेडमी उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस आवासीय प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न वर्गों के 11 ग्रामीण युवाओं ने भाग लिया। उन्होंने बताया कि 30 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, इस दौरान प्रशिक्षकों द्वारा ‘‘हाउस वायरिंग’’ व ‘‘मार्बल फिटिंग’’ के गुर सिखाये गए। 
प्रशिक्षणार्थी रतन लाल मीणा ने बताया कि वह करीब 6 माह से बेरोजगार था। उसने पूर्व में कई कम्पनियों में अलग-अलग कार्य कर चुका था। कार्य विशेष में दक्ष नहीं होने के कारण उसे हर बार अलग-अलग कार्य करने पड़े लेकिन अब उसने ‘‘हाउस वायरिंग’’ का काम सीख लिया है और इसी काम को करने वाला है। साथ ही उसने बताया कि पहले काम के लिए उसे अन्य राज्यों में जाना पड़ता था लेकिन अब अपने ही क्षेत्र में काम कर सकेगा। 
वहीं प्रशिक्षण ले चुके ओबरा खुर्द निवासी 9वीं पास मीठा लाल गमेती (19 वर्ष) ने बताया कि वह पहले मकान निर्माण कार्य में मजूदरी करता था, जिससे 200 प्रतिदिन कमा लेता था लेकिन उसे महीने में 12-15 दिन ही रोजगार मिल पाता था। आजीविका ब्यूरो द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में उसने मार्बल फिटिंग करना सीख लिया है, अब वह 350 रुपए से 1000 रुपए तक प्रतिदिन कमा सकेगा।
प्रशिक्षण कार्यक्रम समन्वयक राजमल कुलमी ने बताया कि आजीविका ब्यूरो द्वारा न केवल बेरोजगारों युवाओं को विभिन्न कार्यों के प्रशिक्षण दिए जाते है बल्कि स्टेप एकेडमी के सहयोग से उन्हें जीवन कौशल भी सिखाया जाता है। 

Monday, July 14, 2014

तीसरी किस्त कब दोगे सचिव साब ?

उदयपुर जिले के गोगुन्दा ब्लॅाक की रावलिया खुर्द ग्राम पंचायत की अणछी बाई मेघवाल विधवा है। वह बीपीएल श्रेणी है। उसके पक्का मकान नहीं था तो उसने ग्राम पंचायत में इंदिरा आवास योजना के तहत आवास निर्माण हेतु आवेदन किया। ग्राम पंचायत ने प्रपोजल भेजा, जिला परिषद से स्वीकृत सूची में अणछी बाई का नाम भी आ गया। उसे अपार खुशी हुई कि अब उसके भी पक्का आवास बन जाएगा।

ग्राम पंचायत के सचिव ने उसे बताया कि आवास के लिए 45000 रुपए स्वीकृत हुए है, तुम आवास का निर्माण कार्य आरम्भ करवा दो, रूपए किस्तों में आएंगे। अणछी बाई ने अपने परिचितों से रूपए उधार लेकर निर्माण कार्य आरम्भ करवा दिया। उसने शिविर के दौरान दर्ज करवाई शिकायत में बताया कि उसे पहली किस्त के रूप में 4000 रुपए मिले, दूसरी किस्त के रूप में 20000 रुपए मिले, तीसरी किस्त अभी तक नहीं आई। 

जानकारी के अनुसार वर्ष 2012-13 में अनुसूचित जाति वर्ग के परिवार को इंदिरा आवास योजना के तहत आवास निर्माण हेतु 50,000 रुपए 3 किस्तों में स्वीकृत किए जाते थे। पहली किस्त आवास की स्वीकृति के साथ ही जारी हो जाती थी जो कि 5000 रुपए थी, दूसरी किस्त 20,000 रुपए आधा निर्माण हो जाने पर जारी होती थी, पूरा निर्माण हो जाने एवं ग्राम पंचायत द्वारा यूसी, सीसी जारी हो जाने पर तीसरी किस्त के रूप में 25,000 रुपए जारी होते थे। 

किस्तों के भुगतान को लेकर उठे सवाल

अणछी देवी को ग्राम पंचायत से पहली किस्त के रूप में 4000 रुपए ही क्यूं दिए गए, जबकि किस्त की राशि 5000 रुपए थी। दूसरी किस्त की राशि 20000 रुपए थी जो अणछी देवी को मिल चुकी है। आवास का कार्य पूरा हुए डेढ़ साल से अधिक समय हो चुका है अभी तक तीसरी किस्त क्यूं जारी नहीं हुई ?


Tuesday, July 1, 2014

लखन सालवी: पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष

लखन सालवी: पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष: लखन सालवी  पंचायतीराज में महिलाओं को मिले आरक्षण के बूते दलित, आदिवासी महिलाओं को भी पंच-सरपंच के पद मिले है, बावजूद पंच-सरपंच बनी ऐस...

पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष


  • लखन सालवी 

पंचायतीराज में महिलाओं को मिले आरक्षण के बूते दलित, आदिवासी महिलाओं को भी पंच-सरपंच के पद मिले है, बावजूद पंच-सरपंच बनी ऐसी कई महिलाएं है जो रूढि़वादी परम्पराओं एवं महिला विरोधी रीति-रिवाजों के निर्वहन को जीवन का महत्वपूर्ण कर्तव्य समझते हुए अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पा रही है। महिला विरोधी ताकतें भी उन्हें उनके अधिकार और कर्तव्य समझने में रोड़े लगाती है, ताकि पुरूष सत्ता का हस्तान्तरण न हो सके। फिर भी कुछ महिलाओं ने अनपढ़ होते हुए भी अपने अधिकार जाने है और कुर्सी की ताकत को पहचान कर गांव की सत्ता को संभाला है। 

बदलाव: अपने घर पर पति के साथ कुर्सी पर बैठी हंजा देवी
आरक्षण का लाभ चलकर हंजा भील की दहलीज तक पहुंचा। सरपंच पद के चुनाव थे, सिरोही जिले की रेवदर पंचायत समिति की बांट ग्राम पंचायत में सरपंच पद अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित था। गांव के कुछ लोगों ने हंजा के पति को समझाया कि वह अपनी पत्नि को चुनाव लड़वावे। पति ने हंजा देवी को चुनाव लड़ने के लिए कहा तो सुनकर हंजा एकबार तो झेंप गई। हंजा का कहना है कि अनपढ़ और ग्राम पंचायत के बारे में अजांन एक वंचित महिला के समक्ष इस प्रकार का प्रस्ताव आए तो उसका झेंप जाना स्वाभाविक है। 
उसने काफी सोचा और अंत में चुनाव लड़ने के लिए हामी भर ली। उसने बताया कि मैंनें सोचा कि घर व खेती का काम तो जीवन भर करना ही है, सरपंच बनने का मौका मिला रहा है तो क्यूं चूकूं। हंजा नहीं चूकी, उसने चुनाव लड़ा और 4 उम्मीदवारों को हराकर 871 मतों से चुनाव जीता। हंजा अपना नाम लिख लेती है, वह निःसंतान है। 
हंजा सरपंच बनकर बड़ी खुश हुई लेकिन अब उसे सरपंचाई करने का डर सताने लगा। वह न तो सरपंच के अधिकार जानती थी और ना ही ग्राम पंचायत की क्रियाप्रणाली को। पहली बार ग्राम पंचायत में गई तो वहां बिछी जाजम पर बैठने की बजाए उस जगह बैठी जहां लोगों ने अपने जूते खोल रखे थे। गांव की रीत के अनुसार कोई भी महिला जाजम पर पुरूषों के बराबर नहीं बैठती है और हंजा ने रीतियों की पालना शत प्रतिशत सुनिश्चित कर रखी थी। वह कोरम में लम्बा घूंघट ताने बैठी रहती, मुंह से आवाज तक नहीं निकालती, सचिव जहां कहता वहां हस्ताक्षर कर देती। सरपंच बनने के बाद भी उसकी जिन्दगी में कोई बदलाव आया नहीं सिवाए ‘‘सरपंच साब’’ सम्बोधन सुनने के।
हंजा ने बताया कि - ‘‘एक बार विकास अधिकारी ग्राम पंचायत में आए, मैं फर्श पर बैठी थी उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठने का कहा लेकिन मैं कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मुझे कुर्सी पर बैठने के बारे में सोचने मात्र से ही डर लगता था, मुझे लगता था कि कुर्सी पर बैठूंगी तो गांव के लोग कहेंगे कि सरपंच बना दी तो औकात भूल गई, कुर्सी पर बैठने लगी है।’’
हंजा की जिन्दगी में बदलाव तब आया जब वह एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित महिला पंच-सरपंच सम्मान समारोह मंे शिरकत करने गई। इस सम्मान समारोह में रेवदर पंचायत समिति क्षेत्र की कई महिला पंच-सरपंच आई हुई थी, कुछ महिलाएं तो पुरूषों की बराबरी पर मंच पर कुर्सियों में बैठी थी, जिन्हें देखकर हंजा अचंभित हो गई। वहां महिला पंच-सरपंचों ने पंच-सरपंचाई करने में आ रही चुनौतियों एवं सफलताओं की कहानियां बयां की। जिन्हें सुनकर हंजा का आत्मसम्मान भी जाग उठा। इस समारोह में संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार एवं सरपंच के अधिकार के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद हंजा देवी उस संस्था द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने लगी और अपने आपको जानकार बनाया। सम्मान समारोह के बाद ग्राम पंचायत में गई तो फर्श पर बैठने की बजाए सरपंच की कुर्सी पर जाकर बैठी। हंजा के विरोधियों ने उसके इस व्यवहार की खिलाफत कर दी, उसे ताने मारे, उसे कुर्सी से उठाकर पुनः जाजम से नीचे बैठाने की खूब कोशिशें की गई। उन्हें आदिवासी महिला का सरपंच की कुर्सी पर बैठना ठीक नहीं लग रहा था। उपसरपंच व पुरूष पंच हंजा देवी को देख लेने की धमकी देते हुए ग्राम पंचायत से चले गए। उन्होेंने गांव में जाकर हंजा देवी के कुर्सी पर बैठने की बात को तुल पकड़ा दी, हंजा के कुर्सी पर बैठने को मर्यादा के खिलाफ बता कर हंजा के खिलाफ माहौल बना दिया। यही नहीं हंजा के इस कदम से उसका पति भी उससे नाराज हो गया। लेकिन अब हंजा को किसी की परवाह नहीं थी, उसने अपने अधिकार जाने लिए थे। 
सरपंच की कुर्सी पर बैठने बाद उसे कुर्सी की ताकत का अहसास हो गया। उसने बरसो से पंचायत के सामने चल रही शराब की दुकान को हटाकर अन्य जगह स्थानान्तरित करने का प्रस्ताव पंचायत मे रखा जिसका काफी विरोध हुआ लेकिन हंजा देवी के इरादे अब मजबूत हो चुके थे उसने इसके लिए लगातार प्रयास किये और उस शराब की दुकान को पंचायत के सामने से हटाकर ही दम लिया। 
हंजा ने अपने अधिकारों का उपयोग करना तो आरम्भ कर दिया लेकिन अशिक्षित होने का दंश उसे अब तक झेलना पड़ रहा है। वह अनपढ़ है और उसका पति भी अनपढ़। पंचायत के सचिव राम लाल शर्मा ने उसके अनपढ़ होने का लाभ उठाकर 7 लाख रुपए का गबन कर दिया, आॅडिट हुई तो 7 लाख का गबन होना पाया गया। दूसरी तरफ राम लाल शर्मा का तो आॅडिट से पहले ही अन्यत्र स्थानान्तरण हो चुका था। जानकारी के अनुसार बांट ग्राम पंचायत क्षेत्र के माटासन गांव में पटवार भवन व सामुदायिक भवन का निमार्ण कार्य अधूरा पड़ा हुआ था जबकि ग्राम सचिव ने कार्यपूर्ण प्रमाण पत्र एवं उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए थे। आॅडिट हुई तो साफ तौर पर हंजा देवी को गुनहगार बना दिया गया और उस पर पंचायत के 7 लाख रूपए का गबन का आरोप लगाकर उससे वसूली करने का आदेश दे दिया गया। हंजा देवी निर्दोष थी, अब उसे अपने आप को निर्दोष साबित करना था और इसके लिए पूर्व सचिव राम लाल शर्मा को बांट ग्राम पंचायत में नियुक्त करवाना था। हंजा ने प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क किया, उन्हें पूरी बात बताई और रामलाल शर्मा को पुनः बांट ग्राम पंचायत में लगाने की मांग की। उसने पंचायत समिति की बैठक में भी राम लाल शर्मा द्वारा ग्राम विकास कार्यों में की गई गड़बड़ी के बारे में बताया। अंततः राम लाल शर्मा को पुनः बांट पंचायत में नियुक्ति दी गई। उसके बाद हंजा ने आगे होकर आॅडिट की मांग की, पुनः आॅडिट हुई और ग्राम सचिव राम लाल शर्मा दोषी पाया गया। हंजा देवी ने सचिव से 7 लाख रुपए की वसूली की और उसके बाद पुनः उसके स्थानान्तरण की मांग की और स्थानान्तरण करवा कर मानी। 
आज भी हजंा देवी को सरपंचाई करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आए दिन उसके विरोधी उसे परेशान करते रहते है, वे चाहते है कि हंजा डरकर सरपंचाई छोड़ दे। उसके विरोधियों ने कभी शराबियों को शराब पिलाकर ग्राम पंचायत भेजा तो कभी राशन कार्ड के आवेदन पत्र पंचायत से 2 रुपए में ले जाकर 100 रुपए में बेचकर हंजा के खिलाफ अराजकता का माहौल बनाया। लेकिन अब तो हंजा भी चुनौतियों का सामना करना सीख चुकी है। राशन कार्ड के लिए ग्राम पंचायत से 2-2 रुपए में आवेदन पत्र दिए जा रहे थे। कुछ युवा ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक से आवेदन पत्र ले जा रहे थे और गांव में 100-100 रुपए में बेच रहे थे। राशन कार्ड के आवेदन पत्र बाजार में 100 रुपए की कीमत में बिकने की बात गांव में फैल गई। लोग हंजा देवी पर राशन कार्ड आवेदन पत्र में घोटाला करने का आरोप लगाने लगे। हंजा देवी को इस मामले का पता चला तो वह ग्राम पंचायत में गई। वहां देखा तो ग्राम सेवक भी घबरा रही थी, हंजा देवी ने उसे हिम्मत बंधाई और ग्राम पंचायत में बैठकर राशन कार्ड के आवेदन पत्र अपने हाथों से देना शुरू कर दिया और गांव वालों को समझाया कि वे ग्राम पंचायत में आकर आवेदन पत्र ले, बाजार से किसी से ना खरीदे। वहीं शराब पीकर ग्राम पंचायत में आकर गालियां देने वाले शराबियों को पुलिस को सूचना देकर पकड़वाया। 
हंजा देवी तो महज एक उदाहरण है, सरमी बाई गरासिया, विद्या देवी सहरिया जैसी सैकड़ों आदिवासी एवं दलित महिला जनप्रतिनिधि ऐसी है जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है, दबंगों द्वारा उन्हें दबाया जा रहा है लेकिन वे अपनी सूझबूझ से ग्राम पंचायत की कुर्सी संभाल रही है।