Saturday, January 14, 2012

ये कैसा विकास: आदिवासी क्षेत्रों की उपेक्षा

नहीं मिल रही मूलभूत सुविधाएं, अनियमितताओं का अंबार


लखन सालवी। 
बारां जिले के आदिम जनजाति सहरिया बाहुल्य क्षेत्र शाहबाद के गांवों में आज भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा है। हाल ही में देश की आजादी के 65वें वर्ष की वर्षगांठ को बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया है, साइनिंग इंडिया कहा जा रहा है। दूसरी ओर इस अंचल के आदिवासी लोग शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा  रहे है। ऐसा ही नजारा देखने को मिला है, खुशालपुरा व शुभधरा गांव में। यहां की मां बाड़ी में छात्रों को पाठ्य पुस्तकें नहीं दी गई है, यहां का आंगनबाड़ी केंद्र बंद रहता है, प्राथमिक विद्यालय के 101 बच्चें एक अध्यापक के भरोसे है। एएनएम भवन है, लेकिन वो एएनएम के बिना रीता पड़ा है। जबकि ये दोनों गांव शाहबाद मुख्यालय से महज क्रमशः 3 व 5 किलोमीटर की दूरी पर है स्थित है।

बंद आंगनबाड़ी, इंतजार करते बच्चें 
17 अगस्त को  खुशालपुरा  का आंगनबाड़ी केंद्र बंद था। केंद्र के बाहर आदिवासी बच्चें हाथों में बर्तन लिए बैठे थे, वो पोषाहार के लिए आए थे। लेकिन ना तो कार्यकर्ता रामप्यारी नामदेव आई और ना ही सहायिका कपूरी बाई। ग्रामीणों ने बताया कि कार्यकर्ता नियमित केंद्र पर नहीं आती है। सहायिका कपूरी बाई सहरिया इसी गांव की है लेकिन वो भी केंद्र को नहीं खोल रही है। कपूरी बाई आजकल कृषि कार्य में लग हुई है। आशा सहयोगिन मीना देवी कई माह से  केंद्र  पर नहीं आ रही है। बच्चें पोषाहार के लिए केंद्र पर आते है लेकिन निराश होकर वापस लौट जाते है। अगर केंद्र नियमित खुले और कार्यकर्ता व सहायिका जिम्मेदारी व लगन से कार्य करती तो इन आदिवासी बच्चों को पोषाहार मिलता और साथ ही वो दो अक्षर बोलना भी सीख जाते। बहरहाल ऐसा नहीं हो रहा है।

स्टाफ की मांग करते ग्रामीण
इसी गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों द्वारा भी मनमर्जी की जा रही है। वो समय पर नहीं आते है। इस विद्यालय में 3 शिक्षकनियुक्त है। 2 अध्यापक है व 1 अध्यापिका। लेकिन महज एक अध्यापक नारायण लाल सहरिया ही नियमित विद्यालय आ रहा है। जानकारी के अनुसार प्रधानाध्यापक मुकेश वैष्णव को सत्र आरंभ होने के पूर्व से ही बाढ़ नियंत्रण के कार्य के लिए तहसील कार्यालय में लगा रखा है। वहीं कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका शमीम बानू नियमित विद्यालय नहीं आ रही है। 17 अगस्त को वह बिना सूचना के अनुपस्थित थी। ग्रामीणों ने बताया कि अध्यापिका महिने में कभी कभार ही आती है तथा देरी से आना व जल्दी घर जाने की आदत पड़ चुकी है। बीईओं शिवनारायण वर्मा ने बताया कि उन्होंने 19 जुलाई को विद्यालय का निरीक्षण किया था, उस दौरान अध्यापिका द्वारा अनियमितता बरतना पाया गया था। 22 जुलाई को उसे कारण बताओं नोटिस भी जारी किया गया, जिसका जवाब उसने दे दिया है। लेकिन उसका जवाब संतुष्टिपूर्ण नहीं था। इसलिए जांच कार्यवाही की जा रही है। उन्होंने बताया कि अध्यापिका के खिलाफ कार्यवाही के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को तथा जिला परिषद को लिखा गया है तथा तहसील में लगा रखे प्रधानाध्यापक को भी विद्यालय में लगवाने के लिए तहसीलदार को पत्र लिखा है। खैर, कारण जो भी है, पर आदिवासी बच्चों को सही मायने में शिक्षा तो नहीं मिल पा रही है। 

पुस्तकों के अभाव में यूं होती है पढ़ाई
आदिवासी सहरिया बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से आरंभ की गई मां-बाडि़यां भी उपेक्षा का शिकार हो रही है। सरकार की एक संस्था (एनजीओ) ‘‘स्वच्छ परियोजना’’ द्वारा मां-बाडि़यों का संचालन किया जा रहा है। सहरिया बाहुल्य किशनगंज व शाहबाद उपखंड क्षेत्र के गांवों में कुल 207 मां-बाडि़यां संचालित है। सत्र आरंभ हुए डेढ़ माह से अधिक हो गया है लेकिन शुभधरा की मां-बाड़ी के बच्चों को अभी तक पाठ्य सामग्री मुहैया नहीं करवाई गई है।  शिक्षा  सहयोगी पप्पू सहरिया ने बताया कि पाठ्य सामग्री की सप्लाई नहीं आई है, इस कारण बोर्ड पर ही पढ़ाया जा रहा है। उसने बताया कि पाठ्य सामग्री लेने के उसे कार्यालय जाना पड़ता है। वह विकलांग होने के कारण कार्यालय जाकर पाठ्य साम्रगी नहीं ला पाया। इस बारे में स्वच्छ परियोजना के पदाधिकारियों से जानकारी चाही तो वे जानकारी देने में टालमटोली करते रहे। उन्होंने नोडल केंद्रों पर पुस्तकें नहीं होने की बात कही। जबकि बीईओं शिवनारायण वर्मा ने बताया कि स्वच्छ परियोजना की डिमाण्ड पर राजस्थान पाठ्य पुस्तक मंडल बारां द्वारा पुस्तकें आवंटित की गई थी। पुस्तकों की कोई कमी नहीं है, स्वच्छ परियोजना द्वारा मां-बाडि़यों के लिए पुस्तकों की डिमाण्ड भेजने पर मुहैया करवा दी जाएगी। एडीएम रामप्रसाद मीणा को जब मां-बाड़ी में पुस्तकें नहीं होने की जानकारी मिली तो उन्होंने स्वच्छ परियोजना के पदाधिकारी को तुरंत पुस्तकें उपलब्ध कराने के निर्देश देते हुए कहा कि क्षेत्र में संचालित सभी मां बाडि़यों में पुस्तकों की सूचना लेकर जहां पुस्तकें नहीं मिली वहां पहुंचावे। मां-बाडि़यों में पढ़ने वाले सहरिया बच्चों को डेªस, टाई, बेल्ट, जूते, मौजे, स्वेटर आदि दिए जाते है। लेकिन इस सत्र में शाहबाद के खुशालपुरा, शुभधरा  किशनगंज  के फल्दी, सोड़ाणा का डांडा, खैरूणा सहित दर्जनों मां बाडि़यों में अभी तक बच्चों को डेªस, जूते, मौजे आदि वितरित नहीं किए गए है। कई मां-बाडि़यों में पिछले वर्ष भी टाई, बेल्ट, जूते व मौजे वितरित नहीं किए गए और ना ही इन पर प्रभावी मानिटरिंग व्यवस्था ही है। जिस कारण मां-बाडि़यों में शिक्षा का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। 

रीता पड़ा एएनएम भवन 
शुभधरा गांव में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है। लाखों की लागत से एएनएम भवन तो बनाए गए लेकिन एएनएम के वहां नहीं ठहरने के कारण एएनएम भवन निर्माण का  उद्देश्य  पूरा नहीं हो पाया है। शुभधरा में 2005 में सहरिया कालोनी के पास एएनएम भवन का निर्माण करवाया गया था। लेकिन अभी तक एएनएम यहां नहीं रहती है, जिससे ग्रामवासियों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। छोटी-मोटी बिमारियों के लिए भी ईलाज के लिए देवरी या शाहबाद जाना पड़ता है। खाली पड़े एएनएम भवन में एक टी.बी. का रोगी अपने परिवार सहित रह रहा है। गिरधारी लाल सहरिया का मकान भारी बारिस के कारण क्षतिग्रस्त हो गया। तब से ही वो अपने बच्चों व परिवार सहित एएनएम भवन में रह रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम पंचायत भवन के पास पूर्व में एएनएम भवन बनाया गया था। लेकिन कार्य पूर्ण नहीं हो पाने के कारण वह अधूरा ही पड़ा है तथा जीर्णशिर्ण हो गया है।  किशनगंज  तहसील के खैरूणा गांव में भी ऐसी ही दशा है एएनएम भवन की। लाखों रुपए खर्च कर शानदार एएनएम भवन बनाया गया था। लेकिन यहां भी एएनएम नहीं रहती है। कन्हैया लाल सहरिया का मकान क्षतिग्रस्त हो गया इसलिए वो इसमें रह रहा है। 

गांव के विकास की धूरी ग्राम पंचायत होती है। शुभधरा ग्राम पंचायत में इन दिनों ताश, जुंआ खेलने वालों और शराबियों का जमावड़ा लगा हुआ है। यहां जुआरी दिन भर ताश खेलते रहते है। कुछ लोगों ने तो ग्राम पंचायत के बरामदे में चारपाईयां डालकर अस्थाई निवास बना दिया है। बरामदे में ही खाना भी बनाया जाता है। 

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Kishanganj, Dist.-Baran (Raj.) 325216

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