Friday, December 20, 2013

रिखियां : सामाजिक जानकारियों का एक महाग्रंथ


प्रिय समाज बंधुओं,
सादर जय बाबा री,
आपको यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता होगी कि हमारे समाज के बारे में विस्तृत जानकारियों से भरपूर एक महाग्रंथ ‘रिखिया’ नाम से प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें समाज का इतिहास, रीति-रिवाज, संत-महात्मा, अधिकारी-कर्मचारी, पंच-पटेल, भोपा-पुजारी, वकील, डाॅक्टर, इंजीनियर, जनप्रतिनिधि, उद्यमी, समाज सेवकों तथा मीडियाकर्मियों के बारे में विस्तृत जानकारियां समाहित होगी, आपसे अनुरोध है कि आप अपने इलाके से समाज के बारे में शीघ्र सप्रमाण जानकारियां भिजवावें तथा व्यक्तिगत जानकारी आपके तथा आपके परिवार के बारे में भी भिजवाने की कृपा करावें। 
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Saturday, November 23, 2013

बढ़ रहा है शर्मा का जनाधार, कम नहीं है गुर्जर के जीतने के आसार

लखन सालवी (भीलवाड़ा/माण्डल)-
माण्डल विधानसभा क्षेञ में वोटों के ध्रुवीकरण से राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे है। कांग्रेस के पूर्व विधायक रामलाल जाट द्वारा क्षेञ छोड़कर आसीन्द जाने और भाजपा द्वारा कालू लाल गुर्जर को प्रत्याशी घोषित करने के बाद से ही कयास लगाए जा रहे है कि क्षेञ से कांग्रेस का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाएगा वहीं भाजपा के लोग अपनी जीत लगभग तय मानकर निश्चिंत नजर आने लगे थे। जैसे ही कांग्रेस ने रामपाल शर्मा को अपना प्रत्याशी घोषित किया तो भाजपा उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित-सी हो गई। उसके बाद नामांकन पञ दाखिल करने के दौरान भाजपा उम्मीदवार के साथ क्षेञ के हजारों कार्यकर्ताओं की रैली ने भी भाजपा उम्मीदवार के जीतने की संभावनाएं व्यक्त कर ही दी थी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रत्याशी रामपाल शर्मा ने अपने प्रस्तावकों के साथ बिना किसी दिखावे के साधारण तरीके से नामांकन पञ दाखिल किया था। लेकिन ज्यों-ज्यों मतदान का दिन नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों भाजपा उम्मीदवार के चुनाव जीत जाने की निश्चिंतता, जीत की सुनिश्चितता और जीत की संभावनाओं का आंकलन बिगड़ता नजर आ रहा है।

गुर्जर के वोट बैंक में शर्मा की सेंध

मोटा का खेड़ा में जनसभा को सम्बोधित करते रामपाल शर्मा
यूं तो जिले के माण्डल विधानसभा क्षेञ को गुर्जर बाहुल्य माना जाता है। हांलाकि जातिय जनगणना की रिपोर्ट जगजाहिर नहीं हुई है लेकिन राजनेताओं द्वारा अनुमानित तौर पर क्षेञ को किसी ना किसी जाति बाहुल्य बना दिया जाता हैं। चुनाव के पूर्व टिकट मांगने वालो ने भी अपनी-अपनी जाति की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई और अपनी जाति का पूरा समर्थन प्राप्त होने की बातें भी कही। भाजपा उम्मीदवार कालू लाल गुर्जर अपने जाति का पूरा समर्थन प्राप्त होने की बात कहते हुए अपने आप सर्वाधिक मजबूत मान रहे है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या गुर्जर जाति के सभी मतदाता भाजपा के गुर्जर उम्मीदवार को वोट देंगे ? देखने में तो नहीं लेकिन सुनने में यही आता है कि गुर्जर मतदाता गुर्जर उम्मीदवार को वोट देंगे। दूसरी तरफ क्षेञ में चुनाव प्रचार कर रहे कांग्रेस उम्मीदवार रामपाल शर्मा के लिए गुर्जर बाहुल्य गांवों में गुर्जर जाति के लोगों का समर्थन मिल रहा हैं। उल्लेखनीय है कि उपरमाळ क्षेञ को गुर्जर बाहुल्य क्षेञ माना जाता है और कथित तौर पर गुर्जर जाति के मतदाता भाजपा के उम्मीदवार कालू लाल गुर्जर के साथ हैं। दूसरी तरफ आजकल उपरमाळ क्षेञ में रामपाल शर्मा का व्यापक जनसम्पर्क चल रहा है। उन्होंने करेड़ा, मरवेड़ा, सेहणुन्दा, मोटा का खेड़ा सहित दर्जन भर गुर्जर बाहुल्य गांवों में जनसम्पर्क किया है। इस दौरान गांवों में गुर्जर जाति के लोगों ने रामपाल शर्मा का भव्य स्वागत करते हुए गांव की चौपालों पर जाजम बिछा कर न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बैठने की जगह दी बल्कि शर्मा को जीताने की हुंकार भी भरी है।  कीडिमाल के पूर्व सरपंच उंकार लाल गुर्जर, पंचायत समिति सदस्य घीसू लाल गुर्जर, मोटा का खेड़ा के आसूराम गुर्जर, थाणा गांव के छोगा लाल गुर्जर, ज्ञानगढ़ के पूरणमल गुर्जर, गोरख्या के नैनालाल गुर्जर सहित दर्जनों गुर्जर नेता कांग्रेस प्रत्याशी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जनसम्पर्क करते नजर आ रहे है इससे साफ जाहिर है कि कालू लाल गुर्जर के वोट बैंक में सेंध लग गई है और गुर्जर मतदाता एकमत होकर भाजपा उम्मीदवार कालू लाल गुर्जर के साथ नहीं है। हालांकि कांग्रेस के पास क्षेञ के एक वरिष्ठ गुर्जर नेता पहले से ही साथ है लेकिन यह गुर्जर नेता इन दिनों चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे है। वो घर बैठकर ही स्वजातिय लोगों को सामूहिक निर्णय करने के लिए अपने घर आने का न्यौता दे रहे है लेकिन उनके स्वजातिय लोगों का कहना है कि जब कांग्रेस ने टिकट रामपाल शर्मा को दे दिया है, हम पार्टी के साथ है तो फिर निर्णय किस बात का करना है, सो वे वरिष्ठ गुर्जर की बात को अनसुना कर लगातार रामपाल शर्मा के साथ जनसम्पर्क में जुटे हुए है। 

हो रहा है वोटों का ध्रुवीकरण, लामबंद्ध हो रहे गैरगुर्जर मतदाता

गुर्जरों के लामबंद्ध होने की कथित सूचनाओं के बाद क्षेञ के अन्य जातियों व वर्गों के लोग लामबंद्ध हो कर कांग्रेस के पक्ष में खड़े दिख रहे है।  जीत या हार का सेहरा बंधवाने वाला दलित वोट बैंक भी कांग्रेस के पलड़े में जा रहा है, दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान के संस्थापक व सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी का रामपाल शर्मा के साथ दिखना, इस बात का पुख्ता प्रमाण है।
इस चुनाव में ब्राह्मण मतदाता भी लामबंद्ध होकर कांग्रेस से जुड़ रहे है। ब्राह्मणों की इस एकजूटता का सारा श्रेय रामपाल शर्मा को जाता है। दूरदर्शी सोच रखते हुए अदृश्य रहकर वर्तमान की राजनीति करने में माहिर शर्मा ने पंचायतीराज चुनाव में गोपाल सारस्वत को प्रधान बनवाकर ब्राह्मण समुदाय को राजनीति के करीब लाने का सफल प्रयास किया और उसके बाद करेड़ा क्षेञ में पांव जमाने के लिए अदृश्य रहकर अपने चेहते विनोद तिवारी को ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया। गत वर्षों में प्रधान व ब्लॉक अध्यक्ष ने मिलकर ब्राह्मण मतदाताओं को कांग्रेस से जोडऩे के प्रयास किए है, जिसका फायदा इस चुनाव में रामपाल शर्मा को मिलता दिखाई दे रहा है। एक तरफ रामपाल शर्मा क्षेञ के गांवों-गांवों में जाकर सभी वर्गों के मतदाताओं से सम्पर्क कर रहे है वहीं ब्लॉक अध्यक्ष विनोद तिवाड़ी, प्रधान गोपाल सारस्वत, निम्बाहेड़ा जाटान के पूर्व सरपंच गोपाल लाल तिवाड़ी सहित एक दर्जन ब्राह्मण नेता समाज को कांग्रेस के पक्ष में लाने के लिए कमर कसे हुए है। वहीं दूसरी तरफ सीसीबी अध्यक्ष चेतन डिडवाणिया, उदयलाल गाडऱी जैसे लोग जीत के लिए अपने-अपने  स्तर पर प्रयास कर रहे है। कान्फेड अध्यक्ष मोना शर्मा ने भी महिलाओं की टुकड़ी के साथ मोर्चा संभाला हुआ वह घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार पार्टी प्रतिबद्धता के चलते ब्राह्मण मत शत प्रतिशत कांग्रेस खाते में नहीं जायेगा लेकिन बीते चुनावों की अपेक्षा इस चुनाव में कांग्रेस के खाते में ब्राह्मण मतों की बढ़ोतरी जरूर होगी। जनसम्पर्क के दौरान करेड़ा में अपार जन समर्थन से इस बात का अंदेशा सहज ही लगाया जा सकता है।

ससुराल व ननिहाल से विश्वास

क्षेञ में ससुराल व ननिहाल होने का फायदा भी शर्मा को मिलेगा। जानकारी के अनुसार कांग्रेस प्रत्याशी रामपाल शर्मा का ससुराल करेड़ा में है जो कि उपरमाळ क्षेञ का ह्दय स्थल है वहीं ननिहाल माण्डल विधानसभा के ही भगवानपुरा गांव में है।  शर्मा अपने आप को क्षेञ का दामाद व भाणेज बताकर मतदाताओं से वोट की मांग कर रहे है।  शर्मा को विश्वास है कि क्षेञ में ससुराल व ननिहाल होने से उन्हें जरूर फायदा मिलेगा।

यहां भाजपा का जनाधार

समर्थकों के साथ कालू लाल गुर्जर  
ऐसा नहीं है कि हर गांव में कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन मिल रहा हो। उपखण्ड मुख्यालय के पास की पीथास, अमरगढ़, चांखेड, बागौर, बावलास सहित दर्जनभर ग्राम पंचायतों में कांग्रेस की हालात ठीक नहीं है। इन ग्राम पंचायतों के सैकड़ों गांवों में कालू लाल गुर्जर का बोलबाला है। जनसम्पर्क के दौरान के माहौल के अनुसार इस क्षेञ में रामपाल शर्मा को बढ़त मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे है। बागौर सरपंच कालू लाल जाट, चांखेड सरपंच पुत्र मदन लाल जाट जैसे दर्जनों जनाधार खो चूके नेताओं की बदौलत इस क्षेञ में गैरजाट, दलित व अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस से बिखरे हुए है। 

कांग्रेस का बागी, भाजपा के लिए दु:खदायी 

कांग्रेस से बागी उम्मीदवार दुर्गपाल सिंह अपने समर्थकों सहित क्षेञ में जनसम्पर्क में लगे हुए है। वे क्षेञ के सभी बूथों पर अपने बूथ कार्यकर्ता लगा पायेंगे इसमें अभी संशय है लेकिन राजपूत व मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हो सकते है ऐसा होने पर कांग्रेस की बजाए भाजपा को अधिक नुकसान होने के आसार है। माण्डल के पूर्व चैयरमेन रमेश बूलिया, पूर्व सरपंच जाकिर खां, महिपाल वैष्णव, आबिद हुसैन शेख सहित दर्जन भर वरिष्ठ कार्यकताओं के साथ क्षेञ में जनसम्पर्क कर रहे राजपुरा के दुर्गपाल सिंह कांग्रेस को शायद ही अधिक नुकसान पहुंचा पायेंगे। जानकारी के अनुसार न तो रामपाल शर्मा और न ही कांग्रेस पार्टी के किसी पदाधिकारी ने बागी उम्मीदवार दुर्गपाल सिंह को मनाने की चेष्टा की है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस यहां अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रही है। जानकारी के अनुसार दुर्गपाल सिंह क्षेञ के मुस्लिम व राजपूत मतदाताओं को लुभाने में सफल हो सकते है। दूसरी तरफ  गुर्जरों का रामपाल शर्मा के प्रति जुड़ाव व राजपूत एवं मुस्लिम वोट बैंक का दुर्गपाल सिंह की ओर झुकाव कालू लाल गुर्जर के लिए माथे का दर्द बनता जा रहा है। 
बहरहाल भाजपा प्रत्याशी अपने स्वजाति मतदाताओं के मतों के आधार पर चुनाव जीतने का तो कांग्रेस उम्मीदवार गुर्जर वोट बैंक में सेंध कर व ब्राह्मण मतदाताओं को एक जाजम पर लाकर चुनाव जीतने का सपना देख रहे है वहीं बागी उम्मीदवार अपने स्वजाति व अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपने साथ मिलाने का भ्रम पालते हुए कांग्रेस उम्मीदवार की लूटिया डूबोने  का सपना देख रहे है वहीं दूसरी ओर क्षेञ में तीव्र गति से वोटों का ध्रुवीकरण हो रहा है जो भाजपा उम्मीदवार के लिए चुनौती बनता जा रहा है। राजनीतिक अनुभवियों की माने तो भाजपा प्रत्याशी कालूलाल गुर्जर को हराना आसान नहीं है, वे परिपक्व राजनीतिज्ञ है और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर है।

Tuesday, October 22, 2013

अभी तो मैं जवान हुआ हूं – गुर्जर

विधानसभा चुनाव होने वाले है . . . गिनती के दिन शेष रहे है . . . हालांकि अभी तक पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। पार्टियां अपने प्रत्याशी घोषित करने में ज्यों-ज्यों देरी कर रही है त्यों-त्यों टिकट की दावेदारी करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई दिग्गजों को टिकट प्राप्त करने में पसीने छूट रहे है तो कई सत्ता लोलुप्ता के चलते जयपुर से लेकर दिल्ली तक के चक्कर काट रहे है।
कालु लाल गुर्जर
भीलवाड़ा जिले की माण्डल विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक कालू लाल गुर्जर पुनः माण्डल से प्रबल दावेदारी ठोक रहे है। पूर्व वसुंधरा राजे की सरकार में मंत्री रह चुके कालू लाल गुर्जर से लखन सालवी की बातचीत के संपादित अंश -
आप कहां से दावेदारी कर रहे है ?
मैं पहले माण्डल से चुनाव लड़ चुका हूं, यहां की जनता से मेरा जुड़ाव है इसलिए इस बार भी माण्डल से ही दावेदारी कर रहा हूं।
आप सहाड़ा-रायपुर विधानसभा क्षेत्र के मूल निवासी है, वहां आपके चुनाव जीतने की संभावनाएं भी व्यक्त की जा रही है, आप वहां से क्यों चुनाव नहीं लड़ते है ?
सहाड़ा-रायपुर विधानसभा क्षेत्र में 100 प्रतिशत जीत की संभावना है लेकिन माण्डल से दावेदारी करने के दो महत्वपूर्ण कारण है। पहला मैं इस क्षेत्र से हटता हूं तो यह सीट कांग्रेस के खाते में चली जाएगी, जो मैं नहीं चाहता। दूसरा मैंनें पिछला चुनाव माण्डल विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था तथा मामूली वोटों के अंतर से मैं चुनाव हार गया था और हार कर क्षेत्र छोड़ना मुझे मंजूर नहीं।
अगर माण्डल क्षेत्र में पार्टी किसी ओर को टिकट देती है तो आप क्या करेंगे ?
देखिए अव्वल तो पार्टी मुझे ही टिकट देगी, हां पार्टी किसी दिग्गज को टिकट देती है तो अलग बात है।
सुनने में आया है कि पार्टी आपको आसीन्द से टिकट दे रही है ? आसीन्द गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है।
मैं किसी भी सूरत में माण्डल के अलावा कहीं ओर से चुनाव नहीं लडूंगा। मेरा जुड़ाव माण्डल क्षेत्र के लोगों से रहा है, पिछले 2 दशक से मेरा कार्य क्षेत्र माण्डल है, ऐसे में अन्य किसी क्षेत्र में जाकर चुनाव नहीं लड़ना चाहता हूं।
आप बुजुर्ग है, आपको नहीं लगता है कि युवाओं को आगे आने का मौका देना चाहिए ?
कौन कहता है मैं बुढ़ा हूं ? अभी तो मैं जवान हुआ हूं। आपको बता दूं कि 50 वर्ष की आयु तक तो राजनीतिक परिपक्वता आती ही नहीं है, लगभग 60 से 70 वर्ष की आयु राजनीतिक व्यक्ति राजनीति में परिपक्व होता है तो बताइयें राजनीतिक रूप से मैं बूढ़ा हूं या जवान।
लेकिन आप तो युवा उम्र में मंत्री बने थे ।
हां मैं 36 वर्ष की आयु में मंत्री बना था। मंत्रियों में सबसे छोटा था, उस वक्त हमारी ही पार्टी के दिग्गज मेरा विरोध करते थे, कहते थे कि ‘‘ये अभी क्या समझता है राजनीति में, इसे क्यूं मंत्री बना दिया।’’
आपके अनुसार युवाओं को टिकट नहीं देना चाहिए ?
नहीं . . .नहीं . . मेरा मतलब ये नहीं है लेकिन अभी राजस्थान में भाजपा की सरकार लाना है तो नए चेहरों की बजाए जिताउ दावेदारों को ही टिकट दिए जाने चाहिए।
आपको माण्डल विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिलता है तो आप किन मुद्दों पर चुनाव लडेंगे ?
पार्टी के घोषणा पत्र के आधार पर चुनाव लडूंगा। लेकिन भ्रष्टाचार व विकास अह्म मुद्दे होंगे।
आपको बता दे कि माण्डल से कालू लाल गुर्जर के बाद बनेड़ा पूर्व उपप्रधान गजराज सिंह राणावत की मजबूत दावेदारी दिखाई पड़ रही है। वहीं बावलास के जसवंत सिंह, युवा नेता कमल सिंह पुरावत व मणिराज सिंह भी टिकट की दावेदारी प्रस्तुत कर चुके है। राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह अपने पुत्र अभिजीत सिंह को माण्डल से चुनाव लड़वाना चाह रहे है।
बहरहाल कालू लाल गुर्जर माण्डल क्षेत्र को किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाह रहे है, वहीं वी.पी. सिंह के चलते भाजपा कालू लाल गुर्जर को आसीन्द से चुनाव लड़ाने पर आमादा है। अब देखना है कि वी.पी सिंह अपने पुत्र को चुनावी रण में माण्डल के मैदान में उतार पाते है या नहीं, वहीं गजराज सिंह राणावत टिकट पाने में किस हद तक सफल होंगे और कालू लाल गुर्जर की हठ कितनी रंग ला पाऐगी।

Monday, October 21, 2013

कार्य ऐसा करे जिस पर समाज गर्व करे-मेघवंशी

सिंगोली/भीलवाड़ा - रिखियों के समाज में कई संत महापुरूषों ने जन्म लिया, स्वामी गोकुलदास जी जैसे संत ने समाज को दिशा दी। वर्तमान में समाज उनके बताए हुए मार्ग पर संगठित होकर  चल रहा है वहीं समाज उन्हें पूज रहा है। केवल गोकुलदास जी महाराज ही नहीं वरन् समाज के जिन लोगों ने समाज व देश हित में कार्य किया आज उन्हें भी पूजा जा रहा है, हमें भी कुछ ऐसा करना है जिस पर समाज गौरवान्वित हो सके। ये कहा रामदेव सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष भंवर मेघवंशी ने। वे रविवार को माण्डलगढ़ तहसील के सिंगोली (चारभुजा) गांव में अखिल मेघवंशी (बलाई) समाज महासभा की जिला शाखा द्वारा आयोजित जिला स्तरीय प्रतिभा एवं संत समागम समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत रत्न बाबा भीमराव अम्बेडकर ने दलित उत्थान का महत्त्वपूर्ण कार्य किया और सबको एक वोट देने का अधिकार दिया। मेघवंशी ने समाज के युवाओं को इशारा करते हुए कहा कि राजनीति व सत्ता में भागीदारी के बगैर समाज का विकास दूर की कौड़ी है। उन्होंने अपील की कि पिछले पंचायतीरात चुनाव में समाज ने एकजूट होकर जिस प्रकार समाज की बेटी का समर्थन किया और जिला परिषद का चुनाव जीतवाकर जिले का प्रथम पद दिलवाया उसी प्रकार आगामी विधानसभा चुनाव में भी समाज को आगे लाए।

समारोह का शुभारम्भ साध्वी माया भारती ने समाज के आराध्य देव बाबा रामदेव महाराज के भजन गाकर किया। उसके बाद समाज के प्रतिभावान छात्र-छात्राओं का तथा नव नियुक्त सरकारी कर्मचारियों को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

समारोह की अध्यक्षता जिला मेघवंशी महासभा के जिलाध्यक्ष भवानीराम मेघवंशी ने की वहीं मुख्य अतिथि रामदेव सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष भंवर मेघवंशी थे। साथ ही अखिल मेघवंशी महासभा पुष्कर की जिला शाखा भीलवाड़ा के जिलाध्यक्ष मदन लाल मेघवंशी,  जिला मेघवंशी महासभा के जिलाध्यक्ष भवानीराम मेघवंशी, उपाध्यक्ष प्रहलाद मेघवंशी, अखिल भारतीय मेघवंशी (सालवी) सेवा संस्थान के जिलाध्यक्ष बहादुर मेघवंशी, पुष्कर महासभा के पूर्व जिलाध्यक्ष नाथूलाल बलाई, मेघवंशी (बलाई) युवा महासभा के जिलाध्यक्ष गोवर्धन लाल बलाई, सुरेश मेघवंशी सरपंच (रूपपुरा-आसीन्द) ब्यावर मेघवंशी महासभा के जिलाध्यक्ष अर्जुनराम दुखाडि़या, ब्यावर मेघवंशी विवाह समिति के अध्यक्ष हजारी लाल चेपूल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

समारोह में समाज के दूर दराज के लोगों ने शिरकत की। मेघवंशी (बलाई) जिला युवा महासभा के जिला प्रवक्ता राजेन्द्र बलाई ने बताया कि समारोह में मेवाड़, मारवाड़ व हाड़ौती क्षेत्र के सैकड़ों समाजबंधु उपस्थित थे।

सत्यनारायण मेघवंशी, धनराज मेघवंशी सहित आयोजन समिति के सदस्यों ने अतिथियों का फूलमालाएं पहनाकर व साफा बंधवाकर स्वागत किया।

कार्यक्रम में राष्ट्रीय कवि राजकुमार बादल भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे साथ ही उन्होंने मंच संचालन भी किया। उन्होंने आयोजन समिति के सदस्यों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि युवा साथियों ने एक नई परम्परा की शुरूआत की जो समाज को नई दिशा में ले जाएगी। सम्मान पाकर समाज की प्रतिभाएं निश्चित ही उत्कृष्ट कार्य करेंगी।’’

Monday, September 16, 2013

बंजर धरती उगलने लगी है सोना


  • लखन सालवी 

भीलवाड़ा जिला खानों के कारण प्रसिद्ध रहा है। नवीन जिंदल जैसे लोग भी इस जिले में आने से अपने आप को रोक नहीं सके। जिले के भूगर्भ में कहीं सैंड स्टोन है तो कहीं ग्रेनाइट की चट्टानें फैली हुई है। न जाने कहां कहां से लोग भीलवाड़ा की धरा पर आकर धरती को पोली कर रहे है। करेंगे भी क्यों नहीं . . . आखिर इस धरा ने अपने भीतर खजाना जो समेट रखा है।

भीलवाड़ा जिले में दो क्षेत्र ऐसे है जो उपरमाल के नाम से जाने जाते है। एक उपरमाल जिला मुख्यालय के पूर्व की ओर स्थित है वहीं दूसरा जिला मुख्यालय के पश्चिम में स्थित है। दोनों ही उपरमाल क्षेत्र व्यापारिक दृष्टि से भीलवाड़ा जिले को विश्वपटल पर पहचान दिला रहे है। पूर्वी उपरमाल क्षेत्र सेंड स्टोन की बदौलत प्रसिद्ध है वहीं पश्चिमी उपरमाल ग्रेनाइट उत्पादन के लिए मशहूर हो रहा है। दो दशक पूर्व इस क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में विद्यमान काले पत्थर की पहचान जब ग्रेनाइट के रूप में हुई तो अन्य जिलों व राज्यों के ग्रेनाइट उद्यमी भी यहां आकर कारोबार करने लगे। पश्चिमी उपरमाल में स्थापित हो चुके ग्रेनाइट उद्योग पर रिपोर्ट - 

जिले के करेड़ा कस्बे के पश्चिम की ओर उपरमाल क्षेत्र है। करीब एक दशक पूर्व यहां ग्रेनाइट की दर्जनों खानें शुरू हुई और तब से इनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। खास बात यह है कि छोटे-छोटे उद्यमियों ने मिलकर इस उद्योग को पनपाया है। ग्रेनाइट की गुणवत्ता व प्रचुरता को देखते हुए अन्य जिलों व राज्यों के उद्यमी भी यहां आए है। वैसे अधिकतर उद्यमी स्थानीय गांवों के किसान परिवारों के लोग ही है, जिन्होंने न केवल भूगर्भ में छिपे पत्थर की पहचान ग्रेनाइट पत्थर के रूप में की बल्कि दूरदर्शिता और मेहनत के बूते धरती के गर्भ से इस काले पत्थर को बाहर निकाल कर इस उद्योग को आगे बढ़ाया है।

कभी इस क्षेत्र में हर तरफ काला पत्थर ही दिखाई देता था और इस पत्थर को यहां के लोग कोसते थे। लेकिन इस काले पत्थर ने उपरमाल की काया पलट दी। आज क्षेत्र में दर्जनों ग्रेनाइट की खाने संचालित है। जिनसे न केवल यहां के लोग आर्थिक सुदृढ़ हो रहे है बल्कि राजकीय कोष में भी वृद्धि कर रहे है। 

ग्रेनाइट खानें के मालिक विनोद तिवारी के अनुसार ग्रेनाइट उद्योग की बदौलत सरकार को वर्ष 2009 में 3 लाख 99 हजार का राजस्व प्राप्त हुआ जो निरन्तर बढ़ता ही गया। वर्ष 2010 में राजस्व आय बढ़कर 46 लाख रुपए हो गई। वहीं इस वर्ष 3 करोड़ 21 लाख की राजस्व आय हुई है अर्थात् ग्रेनाइट व्यवसाय केवल उद्यमियों को नहीं बल्कि सरकार को भी आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहा है।

यूं शुरू हुआ ग्रेनाइट उद्योग

गोवर्धनपुरा गांव के एक किसान परिवार में जन्में तथा 5वीं तक पढ़े नाथू लाल गुर्जर (58 वर्ष) जानमाने ग्रेनाइट व्यवसायी है। यही वे शख्स है जिन्होंने सबसे पहले इस क्षेत्र के काले पत्थर को भूगर्भ से बाहर निकाला और उसकी कटिंग इत्यादि करवाकर ग्रेनाइट को उजागर किया और वर्तमान में गुणवत्तायुक्त ग्रेनाइट का उत्पादन कर रहे है। नाथू लाल गुर्जर सरपंच भी रहे। सरपंच रहते हुए ग्राम पंचायत क्षेत्र में बेहतर कार्य करवाए जिस पर इन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। 

क्षेत्र के पूर्व विधायक कालू लाल गुर्जर के करीबी माने जाने वाले नाथू लाल गुर्जर बताते है कि दो दशक पूर्व इस क्षेत्र में न कोई उद्योग धंधे थे और ना ही किसी प्रकार का रोजगार ही उपलब्ध था। 1992 में माण्डल विधानसभा क्षेत्र के विधायक कालु लाल गुर्जर राजस्थान सरकार में मंत्री थे। उन्होंने उपरमाळ क्षेत्र में ग्रेनाइट पत्थर होने का इशारा किया था। तब मैंनें सन् 1993 में काले पत्थर को निकाला और उसे कटवाकर उस पर पाॅलिस करवाई तो पता चला कि वह साधारण पत्थर नहीं वरन् ग्रेनाइट है। जब ग्रेनाइट होने की पुष्टि हो गई तो क्षेत्र के लोगों के खानों (माइन्स) के लिए लगभग 1500 फाइलें लगाई गई थी। कईयों के एक-एक हैक्टयर की खानें आवंटित भी हुई लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण अधिकतर लोग खानें शुरू नहीं कर पाए। दरअसल खानें आरम्भ करने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की आवश्यकता थी। लोगों के पास इतना पैसा नहीं था कि मशीनरी खरीद पाते। लेकिन उद्यमियों में दूरदर्शिता थी, उन्होंने कड़ी मेहनत की और विभिन्न देशी उपायों से पत्थर को बाहर निकालने और बेचने लगे। नतीजतन छोटे उद्यमी समृद्ध हुए। अब वे तकनीक तथा बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग कर काले पत्थर को भूगर्भ से बाहर निकाल रहे है।

पहले कोई बेटी नहीं देता था अब रिश्तेदारो की कतार है

नाथू लाल गुर्जर बताते है कि एक समय था जब कोई भी व्यक्ति उपरमाल क्षेत्र में अपनी बेटी देना पसंद नहीं करता था। कारण था यहां न किसी प्रकार का उद्योग था और ना ही खेती योग्य धरती थी। ग्रेनाइट के उत्पादन के बाद यह क्षेत्र समृद्ध हो गया है। लोगों की बंजर जमीनें मंहगे दामों में बिक रही है वहीं बेरोजगारों को भी रोजगार मिला है। चूंकि क्षेत्र के लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न हुए है तो रिश्ते भी आगे होकर आ रहे है। 

अब वेस्टेज से काॅबल बनाने तैयारी 

टीआर ग्रेनाइट की मालिक गीता देवी गुर्जर का सपना ग्रेनाइट पत्थर के काॅबल बनाने का है। उनका मानना है कि सेंड स्टोन के वेस्टेज पत्थरों से काॅबल बनाए जा सकते है तो ग्रेनाइट के वेस्टेज का उपयोग कर अवश्य ही काॅबल बनाए जा सकते है। उल्लेखनीय है कि छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों यानि कि वेस्टेज पत्थर से ईंट के आकार का ब्लाॅक बनाया जाता है जिसे काॅबल कहा जाता है। गीता देवी ग्रेनाइट पत्थर की कटिंग को सबसे बड़ी चुनौती मानती है। उन्होंने बताया कि वायरसा नामक मशीन से पत्थर के बड़े ब्लाॅक तो काटे जा सकते है लेकिन भारत में ऐसी कोई मशीन नहीं जिससे ग्रेनाइट पत्थर के ईंट के साइज के ब्लाॅक काटे जा सके। उन्होंने बताया कि चीन ने ऐसी मशीन इजाद कर ली है हम उस मशीन को मंगवाने की तैयारी कर रहे है। 

चुनौतियां का सामना करते हुए कर रहे है उज्जवल भविष्य का निर्माण

सवाईभोज, टीआर, नवकार, तिरूपति, अनमोल, बालाजी, सिद्धी विनायक, भैरूनाथ, राधिका, कविता, शान, जगदम्बा, जैसी दर्जनों ग्रेनाइट माइन्सें क्षेत्र को बेहतर ग्रेनाइट उत्पादन का केंद्र बना रही है। ग्रेनाइट माइन्स से पत्थर निकालने के लिए तकनीकी संसाधनों का उपयोग करने में माहिर ग्रेनाइट व्यवसायी राजमल जैन का कहना है कि ग्रेनाइट उद्योग को ऊंचाई प्रदान करने में लगे क्षेत्र के छोटे-छोटे उद्यमियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन वे चुनौतियों का सामना करते हुए ग्रेनाइट उद्योग को बढ़ाने में लगे है। उन्होंने बताया कि वैश्विक मंदी का असर इस कारोबार पर भी पड़ रहा है। वहीं क्षेत्र के कुछ हिस्से में क्रेक जोन होने के कारण भी उद्यमियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में कुछ उद्यमी बिजली कनेक्शन के लिए दौड़ रहे है। बिजली कनेक्शन नहीं होने के कारण बड़े-बड़े जनरेटरों से बिजली बनाकर मशीनरी को चला रहे है। ईंधन पर अधिक खर्च हो रहा है जबकि खर्च की एवज में उत्पादन कम हो रहा है। 

ग्रेनाइट व्यवसायी व राजनेता लाखाराम गुर्जर ने बताया कि कई लोगों को विद्युत हेतु बड़े ट्रांसफार्मर की आवश्यकता है। विद्युत विभाग के अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि ट्रांसफार्मर के लिए हैदराबाद में आवेदन करना होगा। बहरहाल विद्युत के अभाव में कईयों की माइन्सें नुकसान में चल रही है। लेकिन उद्यमी इन समस्याओं का डटकर सामना कर रहे है, वर्तमान में कई उद्यमी जीरो प्रोफिट पर माइन्स संचालित कर इस उद्योग को जीवित रखने का प्रयास कर रहे है।

बालाजी ग्रेनाइट के मालिक विनोद तिवाड़ी बताते है कि बड़े उद्यमी इस क्षेत्र में नहीं आए है इस कारण भी इस कारोबार को व्यापक पहचान नहीं मिल पाई है इस कारण इस व्यवसाय को ऊंचाई पर पहुंचने में समय लग रहा है। उन्होंने बताया कि बड़े उद्यमियों को जमीनों के बड़े भाग नहीं मिल पा रहे है इस कारण वे यहां आने के इच्छुक नही है। उन्होंने बताया कि छोटे उद्यमियों ने समूह बनाकर इस कारोबार को ऊंचाई देने के लिए कमर कस ली है।

दोहन ही नहीं करते वरन पर्यावरण के प्रति सजग भी है हम - तिवाड़ी

युवा नेता विनोद तिवाड़ी ने बताया कि ग्रेनाइट माइन्सों के अलग-अलग कलस्टर बने हुए है। कलस्टर वार अलग-अलग समिति बनी हुई है। कलस्टर संख्या 2 व 3 के अध्यक्ष नाथू लाल गुर्जर है, उनकी अध्यक्षता वाला फाकोलिया-धुंवाला ग्रेनाइट एसोसिएशन भी बना हुआ है। एसोसिएशन के सचिव तिवाड़ी ने बताया कि एसोसिएशन के मार्फत हम पर्यावरण विकास पर खास ध्यान दे रहे है। उन्होंने कहा कि हम पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने देना चाहते है इसके लिए हम समय-समय पर पेड़-पौधे भी लगाते है। 

तिवाड़ी ने बताया कि कलस्टर ने करेड़ा स्थित सरकारी अस्पताल को भी गोद लिया है। इस अस्पताल में 3 सालों में 7 लाख रुपए खर्च किए जाने है जिनमें से एक लाख रुपए खर्च किए जा चुके है। 

एसोसिएशन उपाध्यक्ष राजमल जैन ने बताया कि कलक्टर ओंकार सिंह ने हमें जमीन आवंटित करने के लिए आश्वस्त किया है। अगर जमीन आवंटित की जाती है तो हम उसमें भारी संख्या में पेड़-पौधे लगाकर उस पर विकास करवायेंगे।

बहरहाल उपरमाल क्षेत्र के लोग बरसों से पड़ी बंजर जमीनों को उद्यमियों को बेच रहे है वहीं दूर दराज के उद्यमी जमीनों को खरीद कर अपना भाग्य आजमा रहे है। ग्रेनाइट उद्योग की शुरूआत करने वाले नाथू लाल गुर्जर अपने सपनों को साकार करते हुए आगे बढ़ रहे है। उनका कहना है कि ‘‘कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता है, तबीयत से एक पत्थर तो उछालों यारों’’। 

बूथ जीते तो हम जीते : कार्यक्रम एक नतीजे अनेक


  • लखन सालवी

टिकीट किसे मिलेगा ? कौन किसके साथ होगा ? और कौन जीतेगा ? सब कुछ भविष्य की गर्त में छिपा हुआ है, लेकिन ‘‘बूथ जीते तो हम जीते’’ कार्यक्रम से कुछ लोगों को बहुत फायदा हो रहा है। उनके लिए फायदा ऐसा रहा कि ‘‘सांप भी मर गया और लाठी भी ना टूटी’’।

भाजपा अपने बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को सशक्तः बनाने के लिए हर जिले में तहसीलवार बूथ लेवल के साधारण सदस्यों की बैठकें करवा रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वसुंधरा राजे ने इन बैठकों का प्रयोजन भी स्पष्ट रखा है कि ‘‘बूथ जीते तो हम जीते’’। यह गतिविधि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने ठीक समय पर की है। खास बात यह है कि इस कार्यक्रम के कई नतीजे सामने आ रहे है। जिससे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को दोहरे-तिहरे लाभ मिल रहे है। जिलास्तर व बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं का समन्वय तो हो ही रहा है साथ ही संगठन के कार्यकर्ताओं के आपसी मतभेद उजागर होने के साथ कार्यकर्ताओं के सुझाव और आगामी विधानसभा चुनाव में क्षेत्र से जिताऊ उम्मीदवार कौन है, इसके रूझान भी मिल रहे है। और यह सब सूबे का ताज हासिल करने के प्रयास में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए मददगार साबित हो रहे है। वहीं राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों को अपना दमखम बताने का मौका मिल रहा है। 

हाल ही में भीलवाड़ा जिले में तहसीलवार बूथ लेवल के साधारण सदस्यों की बैठकें आयोजित की गई। इन बैठकों में भाजपा जिलाध्यक्ष सहित विभिन्न प्रकोष्ठों के जिलाध्यक्ष, मण्डल अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों ने भाग लिया। सम्बंधित विधानसभा क्षेत्रों से भाजपा से उम्मीदवारी की मांग कर रहे लोगों ने भी इन बैठकों में भाग लिया। जिनमें भाजपा से उम्मीदवारी जता रहे लोगों की संगठन में पैठ व काबिलियत की असलियत देखने को मिली। 


17 अगस्त को बनेड़ा तहसील के सभी बूथ लेवल के साधारण सदस्यों की बैठक आयोजित की गई। बनेड़ा के मण्डल अध्यक्ष पंचायत समिति के पूर्व प्रधान गजराज सिंह राणावत के नेतृत्व में आयोजित इस बैठक में 3000 से अधिक लोगों ने भाग लिया, जिनमें से लगभग 2700 तो साधारण सदस्य ही थे। साधारण सदस्यों में भी अधिकतर युवा थे। साधारण सदस्यों की भारी तादाद और बूथ को मजबूत बनाने के लिए उनके सुझावों को सुनकर राज्यसभा सांसद के मुंह से भी तारीफ निकली। राजनीतिक जानकारों के अनुसार युवाओं के धड़े का बनेड़ा मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत के साथ होना महत्वपूर्ण है। इस बैठक में राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह, जिला महामंत्री कैलाश काबरा, भाजपा युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष प्रशान्त मेवाड़ा, भीलवाड़ा विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी सहित भाजपा समर्थित बनेड़ा क्षेत्र की ग्राम पंचायतों के सरपंच व पंचायत समिति सदस्य उपस्थित थे।

बैठक के दौरान मंच से गजराज सिंह राणावत को माण्डल से प्रत्याशी बनाने की मांग की गई, वहीं बैठक में आए लोगों ने भी हाथ खड़े कर इस मांग का समर्थन किया। उल्लेखनीय है कि गजराज सिंह राणावत बनेड़ा पंचायत समिति के पूर्व प्रधान है तथा वर्तमान में उनकी पत्नि पुष्प कंवर राणावत पंचायत समिति की प्रधान है। जाहिर है कि गजराज सिंह राणावत की बनेड़ा क्षेत्र की जनता में गहरी पैठ है। 

 वहीं माण्डल तहसील के भगवानपुरा में भी साधारण सदस्यों की बैठक हुई। मकसद वही - बूथ जीतेगा तो हम जीतेंगे। बैठक माण्डल के मण्डल अध्यक्ष मणिराज सिंह के नेतृत्व में आयोजित की गई थी वहीं राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह बतौर मुख्य अतिथि तथा भाजपा जिलाध्यक्ष सुभाष बेहडिया व बनेड़ा मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बैठक में सुशील नुवाल, किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष रामेश्वर जाट, जिला परिषद के प्रतिपक्ष के नेता कमल सिंह पुरावत, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के हमीद शेख सहित कई सक्रिय कार्यकर्ता उपस्थित थे। यहां स्थानीय युवा कार्यकर्ताओं ने अपने क्षेत्र के पूर्व विधायक व मंत्री कालू लाल गुर्जर का विरोध कर दिया, विरोध से नाराज हुए गुर्जर ने वरिष्ठ भाजपाईयों की मौजुदगी में मंच पर अपशब्द कह डाले जिससे माहौल और खराब हो गया। यही नहीं कालू लाल गुर्जर के गुट के लोगों व भाजपा युवा कार्यकर्ताओं के साथ हाथापाई तक की नौबत आ गई। युवा कार्यकर्ताओं ने गुर्जर हाय-हाय के नारे भी लगाए और वी.पी. सिंह से गुर्जर को टिकिट नहीं देने की मांग भी की। कई कार्यकर्ताओं ने तो बैठक का बहिष्कार तक कर दिया। वहां साफ जाहिर हुआ कि क्षेत्र के जमीनी स्तर से जुड़े कार्यकर्ता पूर्व विधायक कालू लाल गुर्जर से खफा है। इस घटना पर वरिष्ठ भाजपाईयों का कहना है कि कालू लाल गुर्जर वरिष्ठ है उन्हें संयम रखना चाहिए था तथा अपने उपर लग रहे आरोपों के खण्डन में अपना पक्ष रखना था। कार्यकर्ता के हाथ से माइक छीनना गुर्जर जैसे कार्यकर्ता को शोभा नहीं देता। 

बैठक में हुए विवाद को लेकर कालू लाल गुर्जर ने अब भी अडि़यल रैवेया अपना रखा है और इसी अडि़यल रैवये के कारण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में गुर्जर के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। भगवानपुरा में आयोजित बैठक में माण्डल कस्बे के प्रद्युम्न जोशी व विनोद सुवालका जैसे सक्रिय कार्यकर्ताओं ने गुर्जर की खिलाफत की थी, जिसे लेकर गुर्जर व गुर्जर के समर्थकों व माण्डल क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के बीच विवाद हुआ था। उस विवाद पर कालु लाल गुर्जर का कहना है कि पार्टी से जुड़े कुछ नए कार्यकर्ताओं ने गलत कहा था जिन्हें मेरे समर्थकों ने समझा दिया। दूसरी तरफ माण्डल के युवा कार्यकर्ताओं का कहना है कि कालू लाल गुर्जर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते है, जिस बारे में बैठक में मुद्दा उठाया था लेकिन कालु लाल गुर्जर ने हमें नहीं बोलने दिया और माइक छीन लिया बाद में गुर्जर के स्वजाति बंधुओं ने हमारे साथ अभ्रद व्यवहार किया। 
कालू लाल गुर्जर के स्वजाति बंधुओं ने जब भाजपा युवा कार्यकर्ताओं से विवाद किया तो भाजपा युवा कार्यकर्ताओं ने उनसे कहा कि यह भाजपा की बैठक ना कि किसी जाति विशेष और बैठक में बोलने का सभी को अधिकार है।

माण्डल की बैठक में कालू लाल गुर्जर का विरोध हुआ, युवा कार्यकर्ताओं में वरिष्ठ नेता गुर्जर के प्रति भारी आक्रोष व्याप्त था जबकि बनेड़ा के बूथ लेवल के साधारण सदस्यों की बैठक में कार्यकर्ताओं में समन्वय व एकजूटता नजर आई। गजराज सिंह राणावत की माण्डल क्षेत्र में मजबूत पकड़ है वहीं कालू लाल गुर्जर का भारी विरोध हो रहा है। वैसे राणावत का कहना है कि पार्टी का निर्णय अंतिम है और मैं पार्टी के निर्णय के साथ रहूंगा।

बहरहाल माण्डल में भाजपा से पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर, बनेड़ा मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत, जिला परिषद नेता प्रतिपक्ष कमल सिंह पुरावत व माण्डल मण्डल अध्यक्ष मणिराज सिंह दावेदारी कर रहे है। हालांकि राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह अपने बेटे के लिए माण्डल में नई जगह तलाश रहे थे लेकिन भगवानपुरा में आयोजित बैठक की आंखों देखी के बाद शायद उन्होंने माण्डल से ऐसी उम्मीद छोड़ दी है। भगवानपुरा में हुई साधारण सदस्यों की बैठक में कालू लाल गुर्जर व युवा कार्यकर्ताओं के बीच हुए विवाद को देखकर तो राज्यसभा सांसद इतने दुःखी हुए है कि मंच से कह तक दिया कि ऐसी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे दावेदारी कर रहे लोगों की जमीनी स्थिति भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तक निश्चित ही पहुंच ही रही होगी। 

टिकीट किसे मिलेगा ? कौन किसके साथ होगा ? और कौन जीतेगा ? सब कुछ भविष्य की गर्त में छिपा हुआ है, लेकिन ‘‘बूथ जीते तो हम जीते’’ कार्यक्रम से कुछ लोगों को बहुत फायदा हो रहा है। उनके लिए फायदा ऐसा रहा कि ‘‘सांप भी मर गया और लाठी भी ना टूटी’’।

Thursday, July 25, 2013

बिखरी-बिखरी है भाजपा वहीं सिमटी-सिमटी है कांग्रेस

  • लखन सालवी


राजस्थान विधानसभा चुनाव नजदीक है। भाजपा जहां बिना चुनाव लड़े ही सत्ता अपनी मुट्ठी में देख रही है वहीं भारी उठापटक के कारण कांग्रेस को सत्ता वापसी की चिंता हो रही है। ज्यों-ज्यों चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, राज्यभर में दोनों की प्रमुख दलों के लोगों में आपसी खिंचतान के साथ गुटबाजी सामने आ रही है। कांग्रेस का सीमित होना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चिंतित कर रहा है वहीं भाजपा में बिखराव वसुंधरा राजे को परेशान कर रहा है।

इन दिनों भीलवाड़ा में भाजपा व कांग्रेस में जबरदस्त हलचल मची हुई है। गली मोहल्लों में राजनीतिक चर्चाओं से माहौल गरम है तो राजनीतिक गलियारों में तो यह चर्चाएं उफान पर होनी लाजमी है ही। 

कांग्रेस की बजाए भाजपा में गुटबाजी व खिंचतान अधिक हो रही है। भाजपा के लोगों के बीच की गुटबाजी जिले की जनता के सामने आ चुकी है। हाल ही में वसुंधरा राजे ने सुराज संकल्प यात्रा के बहाने जिले में भाजपा की स्थिति की जानकारी ली। यात्रा के दौरान भी पार्टी से जुड़े लोगों में एकजुटता नहीं दिखी। 

जिले की स्थितियों को सुधारने एवं फीडबैक लेने के लिए वसुंधरा राजे ने प्रभारी नियुक्त किए है। ये प्रभारी समय-समय पर जिले में आकर फीडबैक ले रहे है तथा रणनीति के तहत तैयारियां कर अमली जामा पहना रहे है। 20 जुलाई को भाजपा राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्योदान सिंह, पार्टी प्रदेश महामंत्री सतीश पूनिया एवं पूर्व सांसद व भाजपा जिला प्रभारी मानवेन्द्र सिंह भीलवाड़ा आए हालांकि इन नेताओं ने बताया वे पदाधिकारियों एवं जिला पदाधिकारियों से चर्चा कर बूथ लेवल पर कार्यकर्ता तैनाती के बारे में चर्चा करने आए है लेकिन उन्होंने वास्तव में तो इस दौरे से जिले में भाजपा की स्थिति का आंकलन किया। उन्होंने जिले के पदाधिकारी, मण्डल अध्यक्ष एवं महामंत्री, प्रकोष्ठों एवं मोर्चों के जिलाध्यक्ष एवं महामंत्री, पूर्व विधायक, पंचायत समिति प्रधान, नगरीय निकाय अध्यक्ष, निवर्तमान जिला एवं मण्डल अध्यक्ष के साथ बैठक कर विस्तृत जानकारी ली। बैठक के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडि़या के खिलाफ नारेबाजी की। नारेबाजी करने वाले भी कोई सामान्य कार्यकर्ता नहीं थे। पार्षद प्रशान्त त्रिवेदी व भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के शहर अध्यक्ष संजय ढ़ाबरिया सहित कई जानेमाने प्रमुख भाजपा कार्यकर्ता थे। बैठक के दौरान कईयों ने तो अपने बायोडेटा देते हुए टिकीट की मांग भी कर दी। जिलाध्यक्ष के खिलाफ नारेबाजी की घटना भाजपा में असंतुष्टि की ओर इशारा कर रही है। 

जिले में भाजपा के तीन धडे है। एक धड़ा जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडि़या का है तो दूसरा विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी का। ये दोनों धड़े संघ से जुड़े हुए है। तीसरा धड़ा राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह के साथ है जो प्योर वंसुधरा राजे गुट से है। 

भाजपा के पास जनाधार वाले नेता नहीं है और ना ही कोई प्रमुख मुद्दा ही है। जिले में 7 विधानसभा सीटें है जिनमें से वर्तमान में 3 सीटें भाजपा के खाते में है। भाजपा के इनसे ज्यादा सीटें जीतने के आसार भी नजर नहीं आ रहे है। 

भाजपा न केवल जिलास्तर पर बल्कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में भी गुटों में बिखरी हुई है। सहाड़ा-रायपुर विधानसभा क्षेत्र में एक तरफ पूर्व खाद एवं बीज मंत्री डाॅ. रतन लाल जाट है तो दूसरी तरफ पिछले विधानसभा चुनाव में वंचित कर दिए गए रूप लाल जाट है। डाॅ. रतन लाल जाट से असंतुष्ट लोगों का भी एक अलग गुट है जिसने डाॅ. जाट को पिछले दो विधानसभा चुनावों में हराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। डाॅ. जाट पिछले दो विधानसभा चुनाव हार चुके है, इस बार उनके पुत्र सुरेश चैधरी ने दावेदारी की है। 

माण्डल विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर की प्रबल दावेदारी मानी जा रही है लेकिन इनके खिलाफ राजपूत ग्रुप सक्रिय है। सुजुकी ग्रुप आॅफ इंडस्ट्रीज के वाइस पे्रसिडेंट (कार्मिक) गजराज सिंह राणावत भी प्रबल दावेदारी प्रस्तुत कर चुके है। जिला परिषद सदस्य कमल सिंह पुरावत, छोटु सिंह (मेजा) सहित कई राजपूत नेता न केवल दावेदारी पेश कर रहे है बल्कि लामबंद हो रहे है। सूत्रों के अनुसार सांसद वी.पी. सिंह अपने पुत्र को माण्डल से चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों के साथ जनता को भाजपा की खिंचतान साफ दिखाई दे रही है और बिखरती जा रही भाजपा के चर्चे चाय की दूकानों पर खूब हो रहे है। 

आसीन्द विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा 3 जातियों के गुटों में बटी है। यहां मुख्यतः गुर्जर, ब्राह्मण व राजपूत समुदाय के भाजपा के परम्परागत वोट है। गुर्जर वोट विधायक राम लाल गुर्जर, मोहरा के सरपंच हरजीराम गुर्जर (भाजपा जिला महामंत्री) व धनराज गुर्जर में बटे हुए है जबकि तीनों में खींचतान है। वहीं ब्राह्मण वोट विट्ठल शंकर अवस्थी (भीलवाड़ा विधायक) के साथ है। भीलवाड़ा विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी आसीन्द विधानसभा क्षेत्र के बदनोर कस्बे के मूल निवासी है तथा क्षेत्र में अपने समुदाय में पकड़ रखते है। राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह इस विधानसभा क्षेत्र के ही है। वे राजपूत समुदाय पर पकड़ रखते है। इन तीनों जातियों का नेतृत्व करने वालों में आपस में समन्वय नहीं है अर्थात स्पष्ट रूप से बिखराव की स्थिति है।

विधानसभा क्षेत्र शाहपुरा भी गुटबाजी से अछूता नहीं है। यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। यहां भाजपा के कैलाश काबरा, रघुनन्दन सोनी व गजराज सिंह प्रमुख लोग है जो हार-जीत को प्रभावित करते है। बीजेपी के 35 लोगों की उम्मीदवारी की लम्बी सूची भाजपा में फूट को दर्शा रही है। यहां बाहरी भाजपा नेता भी हस्तक्षेप करना चाह रहे है। पिछले दो-तीन माह में कैलाश मेघवाल ने बार-बार शाहपुरा आकर अपनी उम्मीदवारी जता दी है वहीं शंभूदयाल बडगुर्जर भी उम्मीदवार की कतार में है। 

माण्डलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कीर्ति कंवर उम्मीदवारी जता रही है। पिछले चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार वह पुरजोर उम्मीदवारी जता रही है वहीं राजनीति में खिलाड़ी बद्रीप्रसाद गुरूजी, करण सिंह ओस्तवाल, राजकुमार आंचलिया इत्यादि भी उम्मीदवारी कर रहे है। जिनमें से शायद ही कोई चुनाव जीत पाएगा लेकिन हां कोई भी किसी को जीतने नहीं देगा। 

पिछले चुनाव में पूरे जिले में गुटबाजी से कोई अछूता है तो वह है जहाजपुर विधानसभा क्षेत्र। यहां विधायक शिवजीराम मीणा का कोई विकल्प ही नहीं है और ना ही किसी प्रकार की गुटबाजी सामने आई है।

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की गुटबाजी साफ दिखाई दे रही है। वहीं भीलवाड़ा शहर की भाजपा की स्थिति को ठीक नहीं कहा जा सकता है। यह भाजपा की परम्परागत सीट है। यहां भी भाजपा 3 गुटों में बट चुकी है। जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडि़या और विट्ठल शंकर अवस्थी में घमासान है वहीं दामोदर अग्रवाल भी प्रभावी है। उद्यमी बहेडि़या अपने कद पर तो विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी को अपने समुदाय के वोटरों का दंभ है वहीं दामोदर अग्रवाल भी अपने समुदाय की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए काटाफासी करेंगे ही। 

आगामी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी जता रहे भाजपा के लोग गुटबाजी व राजनीतिक महत्त्वकांक्षा के चलते पार्टी सिद्धांतों को ताक में रख चुके है। सत्ता पर कौन काबिज होगा यह तो भविष्य की गर्त में छुपा है लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में भाजपा बिखरी-बिखरी हुई है। 

सिमटी-सिमटी है कांग्रेस

राजनीतिक जानकारों की माने तो बिखरने पर किसी दल को जितना नुकसान होता है उतना ही नुकसान सिमट जाने पर भी होता है। वर्तमान में जिले में कांग्रेस 3 लोगों में सिमट गई है। इन सिमटें हुए लोगों की बदौलत पार्टी केंद्रीय मंत्री डाॅ. सी.पी. जोशी पर केंद्रीत हो गई है। जिले में डाॅ. जोशी के दाएं-बाएं दो व्यक्ति है, एक तरफ पूर्व मंत्री व विधायक राम लाल जाट तथा दूसरी ओर यूआईटी चैयरमेन रामपाल शर्मा। ये दोनों की व्यक्ति जिले की कांग्रेस की कमान संभालें हुए है। इनके बूते कांग्रेस जिले में जीत का परचम लहरापाएगी ! इसमें हरेक को संशय है। 

वरिष्ठ कांग्रेसजन देवेन्द्र सिंह सहित धीरज गुर्जर, हगामी लाल मेवाड़ा जैसे असंतुष्ट लोगों की भी भरमार है। वहीं विधायक कैलाश त्रिवेदी व विधायक महावीर मोची जैसे लोग मझधार में है। मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री के दो अलग-अलग गुट है जो एक दूसरे को ठिकाने लगाने के प्रयास करेंगे। जानकारी के अनुसार वन एवं पर्यावरण मंत्री बीना काक का दामाद रिझु झुनझुनवाला भी भीलवाड़ा में अपने लिए नई जगह तलाश रहे है जो कि डाॅ. जोशी के विरोधी गुट के माने जाते है। 

बहरहाल जिले में बिखरी-बिखरी भाजपा की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं है, गुटबाजी, खिंचतान व अंतर्कलह के चलते राजनीतिक समीकरण अभी से बिगड़ने लगे है। वहीं सिमटी-सिमटी कांग्रेस सिमटते-सिमटते 2-3 लोगों में ही सिमट जाएगी जो ना एक संगठन के लिहाज से ठीक है और ना ही आगमी विधानसभा चुनाव के लिहाज से ठीक है। हालांकि चुनाव में कौन-किसको मात देगा इस पर अभी कुछ बताना जल्दबाजी होगी क्योंकि टिकट वितरण भी चुनाव में हार-जीत को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण फैक्टर होगा।

Tuesday, June 25, 2013

निजी बस पलटी, 2 की मौत, दो दर्जन से अधिक घायल

लखन सालवी/माण्डल/भीलवाड़ा  
दुर्घटनाग्रस्त बस को जप्त कर थाने ले जाते हुए 
25 June 2013- दोपहर करीब 1 बजे करेड़ा से भीलवाड़ा आ रही एक निजी बस माण्डल कस्बे के निकट स्थित तालाब की पाळ के पास विकट मोड़ पर अनियंत्रित होकर पलट गई। इस दुर्घटना में 2 लोगों की मौत हो गई तथा दो दर्जन से अधिक यात्री घायल हो गए।

जानकारी के अनुसार तालाब की पाळ के पास मोड़ पर अचानक सामने से जेसबी मशीन आ गई, बस ड्राइवर ने जेसीबी मशीन से भीडंत को बचाना चाहा और बस को नीचे उतारना चाहा, हड़बड़ाहट में बस  अनियंत्रित होकर पलटी खा गई। इस दुर्घटना में दो दर्जन से अधिक जने घायल हो गए। घायलों को माण्डल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया जहां दो दर्जन घायलों का उपचार किया गया शेष गंभीर घायलों को भीलवाड़ा रेफर किया गया। 

धीरज माली, मदन माली, रामकन्या, सम्पत हरिजन, नन्द गाडरी, प्रकाश तेली, रवि जाट, विष्णु, लादू तेली, नारायण जाट, डिम्पल कोली, हर्षिता सोनी, राजी माली, किरण कंवर और लक्की सिंह को माण्डल चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जबकि 20 घायलों को महात्मा गांधी चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जहां घायलों का उपचार किया जा रहा है। 

2 लोगों की मौत

दुर्घटना में करेड़ा निवासी बंशीलाल सालवी व अज्ञात 40 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई। मृतक के पास 46 हजार 500 रुपये की नकदी भी मिली है।

ये हुए घायल, जिनका महात्मा गांधी चिकित्सालय में ईलाज चल रहा है

चिलेश्वर निवासी नन्दु कंवर पत्नी शंभू राजपूत (45) भगवानपुरा निवासी शांतिदेवी पत्नी लक्ष्मीलाल पारासर (55), बगता का खेड़ा निवासी मियाराम पिता रमेमा गुर्जर (40), मालास निवासी किस्मत कंवर पुत्री पुष्करसिंह राजपूत (9 ) जगदीश कंवर पत्नी पुष्कर सिंह राजपूत (28), छोटी रूपाहेली निवासी गोटिया पिता अमरसिंह राजपूत(10), करेड़ा निवासी शबनम पत्नी वसीम बिसायती (21) मनोहरपुरा निवासी उगमनाथ पिता देवानाथ योगी (45), शिवनाथ पिता देवानाथ योगी (54), कबराडिया निवासी जमनालाल पिता काशीराम जोशी (47), चावण्डिया निवासी देऊ पत्नी नन्दलाल बलाई (55) नन्दलाल पिता मांगीलाल बलाई (35), बोरखेड़ा निवासी मिठू कंवर पत्नी धनसिंह राजपूत (40), गलवा निवासी नन्दकंवर पत्नी महेन्द्रसिंह (30), करेड़ा निवासी भंवरी बाई पत्नी भीखा गुवारिया (45), कबराडिया निवासी सीतादेवी पत्नी कैलाश चन्द्र जोशी (42), चिलेश्वर निवासी प्रमोद कंवर पत्नी गणपतसिंह राजपूत (18)।

महात्मा गांधी चिकित्सालय में
घायलों की कुशलक्षेम पूछते जनप्रतिनिधि
प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं समाजसेवी पहुंचे घायलों की सुध लेने

दुर्घटना की सूचना मिलने के तुरन्त बाद माण्डल क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों एवं समाजसेवियों ने महात्मा गांधी चिकित्सालय पहुंचकर घायलों की सुध ली। 

प्रशासनिक अधिकारियों में माण्डल के उपखण्ड अधिकारी नरेन्द्रसिंह तथा तहसीलदार गोपीलाल चन्देल घायलों से मिले। वहीं जनप्रतिनिधियों में भाजपा के बनेड़ा मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत, अनुसूचित जाति मोर्चा (भाजपा) के मण्डल अध्यक्ष राजमल खींची, माण्डल के प्रधान गोपाल सारस्वत, पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर व डेयरी चेयरमेन रतन लाल चौधरी तथा सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी, महिपाल वैष्णव, गौभक्त देबी लाल मेघवंशी, लादू लाल मेघवंशी इत्यादि ने घायलों से मिलकर कुशलक्षेम पूछी व घायलों के परिजनों को ढांढस बंधाया। 

कौन था ड्राइवर, किसकी है बस ?

पुलिस को अभी तक ड्राइवर की जानकारी नहीं मिल पाई है। माण्डल थाने से प्राप्त सूचना के अनुसार दुर्घटना के बाद से ही ड्राइवर का पता लगाया जा रहा है लेकिन अभी तक बस ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। बस के कंडेक्टर का मोबाइल स्वीच आॅफ पाया गया जिस कारण ड्राइवर व बस मालिक के बारे में किसी प्रकार की जानकारी नहीं मिल पाई है। 

बस ( आरजे 06 पीए 2851) को जप्त कर लिया गया है। ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है तथा बस के कागजात नहीं मिल पाने के कारण बस मालिक के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।- गौरव यादव, थानाधिकारी-माण्डल। 


Thursday, June 20, 2013

आरोपी खूले घूम रहे है और पीडि़त पुलिस दफ्तरों में


  • लखन सालवी

कोशीथल/भीलवाड़ा -  न्याय के लिए कभी थाने, कभी डिप्टी ऑफिस तो कभी एसपी ऑफिस के चक्कर लगा रहा है कोशीथल गांव का नंगजीराम बलाई। 23 मई को गंगापुर थाने में दर्ज हुई एफआईआर के अनुसार 2 मई को दोपहर करीब 12 बजे मांगीलाल तेली ने नंगजीराम बलाई के मोबाइल नम्बर पर कॉल कर उसे घर पर बुलाया। खेत पर काम होने की वजह से नंगजीराम उसके घर नहीं जा सका। शाम को वह अपने घर पर बैठा था कि महेन्द्र आचार्य एवं जगदीश तेली मोटर साईकिल लेकर आए और नगजीराम को मांगीलाल तेली के घर चलने को कहा। नगजीराम उनके साथ मांगीलाल तेली के घर के बाहर पहुंचा ही था कि मांगीलाल ने उसे जातिगत गालियां निकालते हुए दिन में फोन पर बुलाने पर नहीं आने का उलाहना देते हुए कमरे में चलने को कहा। नगजीराम ने भागना चाहा तो उसे घसीटकर घर के एक  कमरे में ले जाया गया और मारपीट की गई।

घटना के 21 दिन बाद दर्ज हुई एफआईआर

पुलिस अधिकारी किस तरह से पीडि़त गरीब लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करते है इसकी बानगी नगजीराम बलाई के साथ हुई मारपीट के मामले से साफ जाहिर होती है। 

जानकारी के अनुसार नगजीराम बलाई के साथ 2 मई की शाम को मारपीट की गई। नगजीराम 17 किलोमीटर दूर गंगापुर थाने में घटना के दूसरे दिन यानि कि 3 मई को पहुंच गया। जहां से उसे पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय भेज दिया गया और उसके बाद पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नौजिया पीडि़त नगजीराम बलाई को आए दिन कार्यालय बुलाते रहे और अंत में 23 मई को एफआईआर दर्ज की गई।

आशा से निराशा की ओर

जिस दिन नगजीराम बलाई के साथ मारपीट हुई, वह उसके दूसरे दिन ही न्याय के लिए थाने में चला गया और आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दे दी। लेकिन पुलिस प्रशासन ने उसे इस कदर एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगावाए कि उसका पुलिस व्यवस्था से ही विश्वास उठ गया है। उसे न्याय की उम्मीद थी लेकिन 2 मई के बाद के घटनाक्रम से वह निराश होता जा रहा है।  

क्या है घटनाक्रम

  • पीडि़त के साथ 2 मई को मारपीट होती है।
  • पीडि़त 3 मई को गंगापुर थाने में लिखित रिपोर्ट देता है। थाने वाले अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का मामला बताते हुए उसे पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय में भेज देते है। पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नौजिया पीडि़त की रिर्पोर्ट दर्ज करवाने की बजाए उसे दूसरे दिन सुबह 10 बजे आने को कहते है।
  • 4 मई को नगजीराम बलाई पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय में पहुंचता है, आरोपियों को भी वहां देखकर चैंक जाता है। नगजीराम ने बताया कि पुलिस उपाधिक्षक ने दोनों पक्षों को बैठा कर समझौते के लिए दबाव बनाया लेकिन जब मैंनें समझौते के लिए इंकार कर दिया तो उन्होंने मुझे 15 मई को वापस आने को कहा।
  • 15 मई को नगजीराम वापस डिप्टी ऑफिस गया, वहां उसे डिवाईएसपी नहीं मिले, फोन किया तो उन्होंने बाहर होने का हवाला देते हुए 20 मई को आने को कहा। 
  • 20 मई को नगजीराम ने घर से ही डिवाईएसपी को कॉल किया। उन्होंने 21 मई को 2 बजे डिप्टी ऑफिस आने को कहा।
  • 21 मई को नगजीराम दोपहर 2 बजे डिप्टी कार्यालय पहुंच गया। दोपहर 2 बजे से सांय 5.00 बजे तक डिप्टी ऑफिस परिसर में बैठा रहा। सायं 5.00 बजे डिवाईएसपी सत्यनारायण कन्नौजिया कार्यालय में आए और नगजीराम को आश्वासन दिया कि वो 22 मई को मौका निरीक्षण करने आयेंगे।
  • 22 मई को डिवाईएसपी ने मौके का निरीक्षण किया। नगजीराम ने बताया कि डीवाईएसपी ने उसे गवाहों को लेकर 23 मई को कार्यालय में लाने को कहा। 
  • 23 मई को सुबह 10 बजे नगजीराम मामले के गवाहों को लेकर डीवाईएसपी कार्यालय गया। नगजीराम ने बताया कि गवाहों के बयान नहीं लिए गए। डीवाईएसपी ने मुझे एक लिफाफा देकर उसे थाने में देने को कहा। मैंनें वह लिफाफा गंगापुर थाने में ले जाकर दे दिया। उन्होंने मुझे एफआईआर दे दी। 

नगजीराम का कहना है कि गवाह पुलिस उपाधिक्षक के समक्ष 3-4 बार उपस्थित होकर बयान दे चूके है लेकिन अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

नगजीराम ने बताया कि पुलिस उपाधिक्षक कार्यवाही नहीं करना चाहते है, आरोपियों से पूछताछ करने की बजाए बार-बार मुझे व गवाहों को डिप्टी कार्यालय बुला कर पूछताछ की गई व समझौते के लिए दबाव बनाया गया।

पुलिस उपाधिक्षक से न्याय की उम्मीद छोड़ चूके पीडि़त ने 6 जून 2013 जिला पुलिस अधीक्षक के नाम अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन दिया। लेकिन नतीजा सिफर रहा।


डिवाईएसपी कार्यालय में ली 5000 की रिश्वत
पुलिस उपाधिक ने 4000 व रीडर ने लिए 1000 रुपए

नगजीराम ने बताया कि 22 मई को मौका निरीक्षण करने पहुंचे डिवाईएसपी के साथ आए रीडर ने उससे 23 मई को कार्यालय में 5000 रुपए लाने को कहा। 23 मई को नगजीराम ने 1000 रुपए रीडर (चाचा) को दिए एवं 4000 रुपए डिवाईएसपी को दिए। नगजीराम ने बताया कि डिवाईएसपी ने रुपए अपने हाथ में नहीं लेकर टेबल की दराज को खोलकर उसमें रखवाए।

पुलिस व्यवस्था से हार चुके नगजीराम ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि मैं आरोपियों को सबक सिखाना चाहता हूं ताकि वो भविष्य में किसी गरीब के साथ मारपीट न करे। मैं गांव का किसान हूं, न्याय के लिए दौड़ रहा हूं लेकिन सच्चाई का साथ देने वाला कोई नहीं है।

एफआईआर दर्ज होने में हुई देरी के बारें में पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नोजिया ने बताया कि उर्स में मेरी ड्यूटी लगी थी, इस कारण परिवाद की जांच में देरी हुई। एफआईआर दर्ज करने में देरी होने के पीछे यही कारण रहा है।

वहीं रिश्वत लेने के आरोप पर डीवाईएसपी ने बताया कि ‘‘नगजीराम झूठा आरोप लगा रहा है, मैंनें नगजीराम से पैसे नहीं लिए है।

Friday, June 14, 2013

अब तो कलक्टर साब भी मुझे नाम से जानते है

  • लखन सालवी

ये है नाथी बाई, सबसे वंचित और शोषित समुदाय में जन्मी और पली बढ़ी, वर्तमान में भीलवाड़ा जिले की माण्डल तहसील की संतोकपुरा ग्राम पंचायत के वार्ड नम्बर 5 की वार्ड पंच है। नाथी बाई को वार्ड पंच साहिबा कहकर सम्बोधित करते है तो उनकी आंखों में चमक नजर आती है। ये चमक है कुशल नेतृत्व की। महिला आरक्षण की बदौलत नेतृत्व को हाथों में पाकर नाथी बाई बहुत खुश है। यूं तो जन पैरवी का कार्य वह बरसों से कर रही है, लेकिन वार्ड पंच बनने के बाद उसे और अधिकार मिल गए जिससे जन पैरवी व ग्राम विकास करने में उसे मजबूती मिली।

वार्ड की जनता ने उसे दूसरी बार वार्ड पंच बनाया है। इससे पहले भी वह 2 उम्मीदवारों को हराकर वार्ड पंच का चुनाव जीती थी। बकोल नाथी बाई इस बार वार्डवासियों ने मेरी एक न चलने दी और वार्ड पंच का चुनाव लड़वा कर ही माने। मैंनें चुनाव लड़ने के लिए इंकार कर दिया था, तब सभी वार्डवासी इक्कट्ठे होकर मेरे घर के बाहर धरने पर बैठ गए, मैंनें चुनाव लड़ने के लिए हामी भरी तब जाकर वो माने। नाथी बाई की ग्रामवासियों में पैठ ही ऐसी बन गई है कि वोटों की पेटी ने उसे कभी मायूस नहीं किया।

वार्ड नम्बर 5 की महिलाओं व पुरूषों के हुई बातचीत के अनुसार नाथी बाई उनके लिए किसी मसीहा से कमतर नहीं है। वो वार्ड पंच तो पिछले कुछ सालों में बनी है। जबकि वह कई सालों से दबे कुचले समाजों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। वह दमित लोगों की मदद करती है। पैरवी चाहे थाने में करनी हो या जिला कलक्ट्रेट में, ग्राम पंचायत में करनी हो या पंचायत समिति में वह हर समय तत्पर रहती है। यही वजह है कि वार्डवासी उसे ही वार्ड पंच के रूप में देखना पसंद करते है। 

वह गरीब परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल करवाने के लिए प्रयासरत है। गरीबों के नाम बीपीएल सूची में जुड़वाने के लिए वह ग्राम पंचायत से लेकर जिला कलक्ट्रेट तक पैरवी कर रही है। वह इस मामले में जिला कलक्टर से भी मिली है। 

वार्ड पंच बनने के बाद उसमें आत्म बल बढ़ा है। वह ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक वंचितों की पैरवी करती है। उनका कहना है कि अब तो कलक्टर साब भी मुझे नाम से जानते है। नाथी बाई ने बताया कि  ‘‘मैंनें उनसे कई बार वंचितों की समस्याओं को लेकर शिकायतें की है।’’

नाथी बाई घुमन्तु समुदाय की कंजर जाति की महिला है। जीवन के 5 दशक देख चुकी नाथी बाई कहती है कि नेतृत्व देने की बात तो दूर, कोई हम पर विश्वास ही नहीं करता था। पुलिस तो आए दिन अत्याचार करती रहती थी, जहां कहीं भी चोरी, डकैती या कोई गुनाह होता, जिस शहर या कस्बे के समीप हमारी यायावरी कौम के लोग बसे होते, पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती। पुलिस न केवल पुरूषों को गिरफ्तार करती बल्कि महिलाओं को भी पकड़कर थाने में बंद कर देती थी। वह कहती है कि इससे बुरा और क्या हो सकता है कि थाने में रिपोर्ट लिखवाने जाने वाले पीडि़त के खिलाफ ही पुलिस मुकदमा दर्ज कर उसे फर्जी केस में बंद कर देती! वह कहती है कि पहले थाने में जाने से शर्म आती थी क्योंकि थानेवाले बेशर्मी से गंदी भाषा का उपयोग करते थे। लेकिन अब किसी की हिम्मत नहीं जो मुझसे गंदी जबान से बात कर सके।

नाथी बाई कभी स्कूल नहीं जा पाई। वह बताती है उस जमाने में तो यायावर जातियों के लोगों को अत्यन्त हैय दृष्टि से देखा जाता था। इन जातियों के लोग का अभी भी बराबरी के लिए संघर्ष जारी है। वह बताती है ‘‘मेरे पिताजी ने मुझे आखर ज्ञान दिया। मैं कोई भी पत्र पढ़ लेती हूं और कभी-कभी अखबार भी पढ़ती हूं। मुझे सिर्फ पढ़ना आता है, अच्छे से लिखना नहीं आता है।’’ 

वार्ड की महिला गौरी व डाली ने बताया कि ‘‘कतराई सरपंच बणग्या अर कतराई वार्ड पंच। पण कोई म्हाका वार्ड में विकास न करायो। न तो नालियां बणई अर् न सीमेन्ट की सड़का बणई। भगवान भलो विज्यो नाथी बाई को म्हाका वार्ड में सड़का भी बणवाई और नालियां बी बणवाई।’’ (कई सरपंच बने और वार्ड पंच भी लेकिन किसी ने हमारे वार्ड में विकास नहीं करवाया। न नालियां बनाई गई और न ही सीमेन्ट की सड़के बनाई। जबकि दूसरे वार्डों में कई विकास हुए। ईश्वर भला करे नाथी बाई का जिसने हमारे वार्ड में सड़के, नालियां बनवाई।)

सड़कें और नालियां आसानी से नहीं बना दी गई। नाथी बाई ने बताया कि ग्राम पंचायत में प्रस्ताव लिखवाने से लेकर तत्कालीन पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास मंत्री कालू लाल गुर्जर से भी वार्ड के विकास की मांग कई बार की। उसने बताया कि जब भी मंत्रीजी सड़क मार्ग से गुजरते मैं सड़क पर ही खड़ी हो जाती, वो वहां से निकलते तो मैं उनसे ग्राम विकास की मांग करती। गांव में सड़कें तो बन गई लेकिन विकास कार्यों में भाई-भतीजावाद करते हुए कंजर बस्ती को सड़क से वंचित रखा गया।

वार्ड के विकास के लिए सदैव तत्पर रहती है। यह उसके अथक प्रयासों की ही बानगी है कि कंजर बस्ती में 5 लाख की लागत का सामुदायिक भवन बनाया गया है। उसने पानी की समस्या से जूझ रही बस्ती की महिलाओं को हैण्डपम्प लगवाकर राहत दी। 

विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर उसने सरकारी योजनाओं की जानकारियां प्राप्त की। अपनी ग्राम पंचायत में विधवा, विकलांग, वृद्वा महिलाओं के पेंशन के आवेदन करवाएं है। वह दावे के साथ कहती है कि मेरे वार्ड में ऐसी कोई महिला या पुरूष शेष नहीं है जिसका पेंशन  के लिए आवेदन नहीं किया गया हो। 

बस्ती के लोगों में जागरूकता की बहुत कमी है। पेंशन योजनाओं का लाभ दिलवाना हो या चयनित सूची में शामिल करवाना, इन्द्रा आवास योजना का लाभ दिलवाना हो मुख्यमंत्री आवास योजना का, सभी कार्य नाथी बाई ही करती है। पहले योजना को समझती है फिर पात्रता को और उसके बाद उसकी आंखे पात्र लोगों को ढूंढने लगती है। पात्रों का चयन कर ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखती है और योजना का लाभ दिलवाकर ही चैन की सांस लेती है। 

कंजर बस्ती जिस भूमि पर बसी हुई है, वह ग्राम पंचायत की आबादी भूमि में है लेकिन इसमें से कुछ हिस्सा यूआईटी क्षेत्र में आता है। यूआईटी द्वारा उस जमीन पर बसे परिवारों को भूखण्ड़ों के पट्टे नहीं दिए जा रहे है। यह चिंता नाथी बाई को खाए जा रही है वह लगातार प्रयास कर रही है कि उन लोगों को पट्टे दिलवाने के लिए।
बस्ती के चारों और फेक्ट्रियां है। खुली जगह नहीं है। महिलाओं को शौच के परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नाथी बाई बस्ती में शौचालय बनवाने के प्रयास भी कर रही है। वह बताती है कि फेक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी व कचना नालों में जमा हो जाता है जिससे गंदा पानी नालों से बाहर निकलकर रास्ते में भर जाता है। रास्तें में किचड़ हो जाने से बस्ती के लोगों को आने जाने में समस्या आ रही है। वहीं पास में ही सरकारी विद्यालय है, बच्चों को भी किचड़ में से होकर जाना पड़ रहा है। 

नाथी बाई की माने तो घुमन्तु समुदाय में पैदा होने वाला हर शख्स अपने साथ मुसीबतें लेकर आता है, जो खुद तो मुसीबतें झेलता ही है, अपने परिवार व रिश्तेदारों को मुसीबतों में डाल देता है। उसने बताया कि ‘‘मैंनें ताउम्र मुश्किलों का डट कर सामना किया है और करती रहूंगी क्योंकि कठिनाइयां रूकने वाली नहीं है, आती रहेगी।’’

जिला कलक्टर ओंकार सिंह कहते है कि ‘‘पंचायतीराज में आरक्षण से महिलाओं को सम्बल मिला है। नाथी बाई जैसी जुंजारू महिलाओं को आगे आने का मौका मिला है। वाकई वो ग्राम विकास में विशेष रूचि लेती है और गांव की तस्वीर बदल रही है।’’ 

Tuesday, June 11, 2013

गहलोत साब, ये पब्लिक है . . सब जानती है


  • लखन सालवी 

विधानसभा चुनाव नजदीक है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार का इस शासन काल का यह अंतिम वर्ष है। राजस्थान सरकार ने कई लोक लुभावनी योजनाएं लागू की, जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नए विधेयक भी लागू किए लेकिन जमीनी स्तर पर ना तो योजनाएं क्रियान्वित हो पाई है और ना ही नये विधेयक जनता को राहत दे पाए है।

सूबे के सरदार आजकल संदेश यात्रा निकाल रहे है, इस यात्रा के माध्यम से जन-जन तक पहुंचने और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों की जानकारी दी जा रही है। इस यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत शिक्षा क्षेत्र में विकास की बात भी कर रहे है लेकिन राज्य में स्थितियां वैसी नहीं है जैसी बताई जा रही है। बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग के साथ कार्य कर चुके परशराम बंजारा का कहना है कि शिक्षा का अधिकार कानून पूरे देश में लागू किया गया, 3 साल में ढांचागत व्यवस्थाएं की जानी थी। इसके लिए मार्च-2013 की डेटलाइन थी, मार्च बीत चुका है लेकिन अभी तक ढांचागत व्यवस्थाएं नहीं की गई है। विद्यालयों में टायलेट बना दिए गए है लेकिन सभी बंद पड़े है। सफाई कर्मचारी नहीं है। शिक्षा के अधिकार कानून की बूरीगत है। वे बताते है कि राजस्थान में छात्र-अध्यापक का अनुपात तो ठीक है, लेकिन वितरण ठीक नहीं है। कहीं बहुत छात्र है पर अध्यापक नहीं है, कहीं छात्रों की संख्या कम है मगर अध्यापक अधिक है। साथ ही विद्यालयों में नामांकन तो ठीक है लेकिन बच्चों का ठहराव नहीं है। बंजारा ने बताया कि सरकार ने घुमन्तु जातियों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के कोई प्रयास नहीं किए है।

बारां जिले के किशनगंज के राधा किशन शर्मा बताते है कि सरकार ने बिना सोचे समझे विद्यालय भवन बनवा दिए। लेकिन उन विद्यालयों में ना तो अध्यापक है ना ही किसी प्रकार की सुविधाएं। विद्यालयों में नामांकन बढ़ने की बात को सिरे से नकारते हुए शर्मा कहते है कि फर्जी नामांकन किया गया है जिससे मिड-डे मिल में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। वहीं किशनगंज तहसील के राधापुरा सहित दर्जन भर विद्यालय भवनों की स्थिति जीर्णशीर्ण है, जिनकी देखभाल सरकार से नहीं हो पा रही है, सरकार ताबड़तोड़ नए विद्यालय भवन बनवाती जा रही है और पुराने का ख्याल ही नहीं है।

ग्रामीणों की माने तो सरकार ने निजी विद्यालयों को बढ़ावा देने का काम किया है। सैकेंड़ों विद्यालय नियम विरूद्ध चल रहे है। इन विद्यालयों में न केवल शिक्षा के अधिकार अधिनियम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही वरन जनता से वसूली भी की जा रही है।

भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक महावीर मोची व माण्डलगढ़ विधान सभा क्षेत्र के विधायक प्रदीप सिंह का कहना है कि ऐसा नहीं है सरकार ने बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रयास नहीं किए हो। सरकार ने जनता को जागरूक करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम संचालित किए। पलायन पर जाने वाले बच्चों को भी शिक्षा से जोड़ने के पुख्ता बंदोबस्त किए है लेकिन कर्मचारी वर्ग ने सरकार की योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने में मदद नहीं की है। फलतः कर्मचारी वर्ग बच्चों को जोड़ने में नाकाम रहे है। यहां तक की अध्यापक वर्ग को स्वयं अपने ऊपर ही कांफीडेंस नहीं है इसलिए वो अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने के लिए भेज रहे है। 

सरकार भले ही ढोल पीटे और विभाग भले की आंकड़ों का खेल खेले लेकिन सच्चाई यहीं है कि इस अधिनियम को लागू करने के बाद से विद्यालयों के रजिस्ट्ररों में नामांकन तो बढ़ा लेकिन वास्तविकता में बच्चों को शिक्षा से नहीं जोड़ा गया। वहीं अध्यापक वर्ग का कहना है कि सरकार ने अध्यापक वर्ग को तो मल्टीटास्किंग मशीन बना दिया है, जिनसे मनचाहा कार्य करवाया जा रहा है। 

वहीं ग्रामीण शिक्षा पर कार्य कर रहे रामराय आचार्य बताते है कि सरकार और विभाग भले ही आंकड़ों का खेल खेले लेकिन सच्चाई यहीं है कि इस अधिनियम को लागू करने के बाद से विद्यालयों के रजिस्ट्ररों में नामांकन तो बढ़ा लेकिन वास्तविकता में बच्चों को शिक्षा से नहीं जोड़ा गया। उन्होंने बताया कि राज्य में कार्यरत गैर सरकारी संगठन अल्लारिप्पू द्वारा 10 जिलों मंे सर्वे किया जिसकी रिपोर्ट दिसम्बर 2012 में जारी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी विद्यालयों में भारी संख्या में फर्जी नामांकन पाया गया। 

बारां जिले में कार्यरत हाड़ौती मीडिया रिसोर्स सेंटर से जुड़े योगीराज ओझा ने बताया कि बारां जिले के शाहबाद ब्लाक के मडी सहजना गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 25 से अधिक बच्चों का नामांकन बताया गया है जबकि विद्यालय कई दिनों से बंद मिला, मजे की बात है वहां नियुक्त अध्यापक को वेतन मिलता रहा। इसी जिले के किशनगंज ब्लाॅक के नया गांव विद्यालय में 35 बच्चों का नामांकन था, अध्यापक ने अपने बच्चों के नाम भी फर्जी नामांकित कर दिए थे, जबकि अध्यापक के बच्चे पास के गांव में स्थित निजी विद्यालय में पढ़ाई कर रहे है। इस विद्यालय में पिछले साल एक भी छात्र की भौतिक उपस्थिति रही। इस जिले में सुहांस सहित दर्जन भर विद्यालयों में ऐसे ही हालात मिले। जानकारी के अनुसार अध्यापक नामांकन के समय फर्जी नामांकन कर देते है और बाद में ड्राॅप आउट बता देते है।

रामराय आचार्य के कथन को इस उदाहरण से बल मिलता है कि भीलवाड़ा जिले के माण्डल तहसील मुख्यालय के समीप स्थित कालबेलिया बस्ती में 60 परिवार निवास करते है, इस बस्ती में 130 मतदाता है। इस समुदाय के लोग अत्यंत गरीबी में जी रहे है। कई सालों पहले 2 परिवारों के इंदिरा आवास योजना के तहत आवास बनाए गए थे बाकी के परिवार टपरियों और तम्बूओं में ही निवास कर है। खेती के लिए एक इंच जमीन भी नहीं है। गरीबी की आग के थपेड़ों में झुलस रहे इन परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल नहीं किए गए है। इस बस्ती में 3 से 14 साल के करीब 50 बच्चें है। उनके से 30 बच्चों को बस्ती का ही पूरण कालबेलिया पढ़ाता है। वो दिन में ईट भट्टे पर काम करता है और रात में बच्चों को पढ़ाता है। पूरण ने बताया कि विद्यालय दूर होने के कारण बच्चों के परिजन उन्हें वहां नहीं भेजते है।

पूरण कालबेलिया का यह काज राज्य में सत्ताधीन सरकार एवं सरकारी व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है। यह तो महज एक उदाहरण है राज्य भर में ऐसे सैकड़ों मामले है। कई सरकारी स्कूलों में अध्यापक है, स्कूलों के नाम पर लाखों रुपए वार्षिक खर्च भी किया जा रहा है लेकिन उन स्कूलों में एक भी बच्चे का नामांकन नहीं है। बारां जिले के आदिवासी क्षेत्र के शाहबाद कस्बे के वरिष्ठ पत्रकार रामप्रसाद माली का कहना है कि राजस्थान सरकार अंधी हो चुकी है, एक जगह विद्यालय है, अध्यापक है, पर बच्चें नहीं और दूसरी जगह विद्यालय है, बच्चों का नामांकन है, पर अध्यापक नहीं ऐसे में सरकार को चाहिए कि व्यवस्थाएं सुधारें।

शिक्षाविद् बताते है कि शिक्षा का निजीकरण होता जा रहा है। पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर डाले तो निजी विद्यालयों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है साथ ही निजी विद्यालयों में बच्चों के नामांकन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों लोगों का रूझान निजी विद्यालयों की ओर बढ़ रहा है ? जबकि सरकार शिक्षा पर अरबों रुपए खर्च कर रही है। 

शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे उदयपुर के हरिओम सोनी व भंवर सिंह चंदाणा का कहना है कि सरकारी व्यवस्था से जनता का मोह उठ चुका है आखिर उठेगा भी क्यूं नहीं 25 हजार से 40 हजार रुपए मासिक वेतन वाले सरकारी अध्यापक द्वारा बच्चों को दी जा रही शिक्षा 1500 रुपए से 6000 रुपए मासिक वेतन वाले निजी विद्यालय के अध्यापक से कमत्तर जो है। उनका मानना है कि बच्चों को पढ़ाने की सरकारी अध्यापकों की मानसिकता ही नहीं रही है। 

भंवर सिंह चंदाणा ने बताया कि लोकल लेवल पर पाॅलिटिक्स हावी है जो अध्यापकों की नियुक्ति पर विपरित असर करती है। उन्होंने बताया कि नई नियुक्तियों में प्रावधान किया गया है कि कम से कम ढ़ाई साल तक एक जगह रहना होगा, इससे सुधार की गुंजाइस है। 

हरिओम सोनी ने बताया कि आज के समय में लोग क्वालिटी एज्यूकेशन को देखते है। निजी विद्यालयों में क्वालिटी एज्यूकेशन पर ध्यान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में 70 से 80 प्रतिशत सरकारी अध्यापकों के बच्चें निजी विद्यालयों में पढ़ रहे है। 

वे चिंता प्रकट करते हुए कहते है कि शिक्षा को लेकर राजस्थान सरकार की विरोधाभाषी नीति है। बताया कि एक तरफ सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालय है, कलक्टर भी चाहता है कि उसका बच्चा वहां पढ़ें। दूसरी तरफ सरकार द्वारा ही संचालित सरकारी विद्यालय है जिनमें वहां का अध्यापक भी नहीं चाहता उसके बच्चे वहां पढ़ें। इससे साफ है सरकार की शिक्षा नीति ठीक नहीं है। सोनी ने बताया कि सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सतत् मूल्यांकन पद्धति लागू की है लेकिन वो भी मजाक जैसा है। 

शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लेकर शिक्षाविदों में भी भारी विरोधाभास है। राइट टू एज्यूकेशन एक्ट के पक्षधर एवं इस एक्ट की ड्राफटिंग कमेटी की सदस्य रहे विनोद रैना के कहते है कि सरकार को राइट टू एज्यूकेशन कानून को प्रभावी रूप से लागू करना है और इस कानून के दायरें में रहकर ही व्यवस्थाएं बनाना है, अध्यापकों की नियुक्ति करनी है और नए स्कूल खोलने है। कानून के तहत प्रत्येक एक किलोमीटर की दूरी पर एक प्राथमिक स्कूल होना चाहिए और प्रत्येक 2 किलोमीटर की दूरी पर एक उच्च प्राथमिक स्कूल होना चाहिए। स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा भेजे जाने वाले प्रस्ताव के अनुसार स्कूलों का निर्माण किया जाना है। रैना स्वीकार करते है कि कई कारणों से सरकारी स्कूलों के प्रति जनता की सोच ठीक नहीं है लोग सरकारी स्कूलों में बच्चों को नहीं पढ़ाना चाह रहे है। उनका मानना है कि अगर इस एक्ट को प्रभावी रूप से लागू किया जाता है तो निश्चित रूप से सरकारी स्कूलों की स्थितियां सुधरेगी और जनता में भी सरकारी स्कूलों की छवि में सुधार आएगा। रैना ने राइट टू एज्यूकेशन पर जोर देते हुए बताया कि मध्यप्रदेश के सिलौर जिले के नसरूलाह ब्लाॅक में लोगों ने 13 निजी स्कूलों से बच्चों को वापस सरकारी स्कूलों में दाखिल करवाया। 

विनोद रैना का कहना है कि जो अध्यापक कहते है कि सरकार ने उन्हें मल्टी टास्किंग मशीन बना दिया है वो सरासर गलत है। अव्वल तो कानून में लिखा है कि इलेक्शन में उन्हें जिम्मेदारी लेनी है लेकिन अगर सरकार अन्य काम सौंपती है तो अध्यापकों को चाहिए कि वो एसएमसी में इसकी शिकायत दर्ज करवाएं या कोर्ट में जाए। दरअसल संघर्ष कोई नहीं करना चाह रहा है इसलिए स्थितियों में सुधार नहीं हो पा रहा है। 

मध्यप्रदेश के शिक्षाविद अनिल सदगोपाल राइट टू एज्यूकेशन के घोर विरोधी है। उनका मानना है कि राइट टू एज्यूकेशन से व्यवस्था में बदलाव नहीं पाएगा। उनकी बात सही भी लगती है क्योंकि इस एक्ट के अनुसार तो वर्तमान में राजस्थान में 1 लाख 22000 प्राथमिक स्कूल होेने चाहिए जबकि वर्तमान में 75000 स्कूल ही है। अध्यापक वितरण के बारे में भी एक्ट में साफ बताया गया है कि प्रत्येक स्कूल में 30 बच्चों पर एक अध्यापक होना चाहिए जो पता नहीं कब संभव हो पाएगा और जब तब अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हो पाएगी तब तक स्थितियों में सुधार हो पाना नामुमकिन है। 

सरकारी विद्यालयों में नामांकन कम होने या उपस्थिति कम होने की बात पर शिक्षा विभाग के अधिकारी कर्मचारी उखड़ जाते है, कहते है - परिजन बच्चों को विद्यालय में नहीं भेजना चाहते है तो हम क्या करें ? कई बार कहते है कि - बच्चे पढ़ना नहीं चाहते है इसलिए विद्यालय में नहीं आते है। लेकिन ये तमात बातें निराधार है। सच्च तो यह है कि सूचना एवं क्रांति के युग में शिक्षा की महत्ता को मजदूर वर्ग भी अच्छे से जानने लगा है और वे अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है।

यह सटीक उदाहरण होगा ये जानने के लिए कि गरीब से गरीब व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है- गत दिनों बारां जिले से एक सूचना मिली। सूचना देने वाले ने बताया कि सरकार निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही है जबकि बारां जिले के किशनगंज ब्लाॅक के भंवरगढ़ गांव में संचालित दूसरा दशक परियोजना द्वारा आवासीय कैम्प में पढ़ाए जा रहे बच्चों से 18 किलो अनाज लिया जा रहा है जबकि अमूमन बच्चें बीपीएल श्रेणी के परिवारों के है। वाकई यह गंभीर मुद्दा था। इस मामले की तह तक गए तो जानकारी मिली कि दूसरा दशक परियोजना भंवरगढ़ द्वारा आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है तथा क्षेत्र के अशिक्षित किशोर-किशोरियों को नामांकित कर शिक्षा दी जाती है। यहां प्रतिवर्ष अशिक्षित एवं ड्राप आउट 50 किशोर एवं 50 किशोरियों को शिक्षा दी जाती है। संस्था से जुड़े विजय मेहता ने बताया कि सालभर में 2 आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है जिन पर लगभग 7 लाख रुपए खर्च किए जाते है।

मेहता ने बताया कि कई बार आवासीय कैम्प का समापन हो जाने के बावजूद किशोर-किशोरियां संस्था में ही आगे की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर करते है। उनके परिजन भी चाहते है कि उनके बच्चे संस्था में पढ़ें। ऐसे में किशोर-किशोरियों को पढ़ाने के लिए संस्था द्वारा अगल से आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है। इन कैम्प में पढ़ने वालों के परिजनों से 18 किलो गेहूं लिए जाते है। विदित रहे कि संस्था में पढ़ने वाले अमूमन बच्चे-बच्ची बीपीएल परिवार के होते है। उनके परिवार को सरकार से 35 किलो गेहूं प्रतिमाह मिलता है। यह सोचनीय है कि परिजन अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार से मिलने वाले अनाज में से आधे से भी अधिक को संस्था में जमा करवा देते है। वहीं जोधपुर जिले के बाप ब्लाॅक में संचालित दूसरा दशक परियोजना में लोग 1000 रुपए मासिक देकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे है। अर्थात् वे अपने बच्चे-बच्चों को हर तकलीफ सहन करके भी पढ़ाना चाहते है।

उल्लेखनीय है कि राज्य में दूसरा दशक परियोजना नामक एक संगठन संचालित है। इस संगठन का राज्य के 7 जिलों में कार्य है। इसके द्वारा एक वर्ष में 2 बार आवासीय कैम्प आयोजित करवाए जाते है जिनमें करीब 900 किशोर-किशोरियों को शिक्षा दी जाती है।

बहरहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संदेश यात्रा के बहाने अपने शासन काल में लागू की गई योजनाओं व अधिनियमों से जनता को भुनाने के लिए राज्य भर की जनता के बीच जा रहे है। संदेश यात्रा से वो कांग्रेस की छवि में कितनी ग्रोथ ला पायेंगे ये तो भविष्य की गर्त में छुपा है लेकिन जगजाहिर तो यह कि - राज्य में शिक्षा की स्थिति बिगड़ती जा रही है।