Sunday, January 6, 2013

बलाई (बुनकर) अब नीच कैसे हो गए ?


हर जगह सुनने को मिलता है कि सूचना एवं क्रांति के इस आधुनिक युग में छुआछूत जैसी दुर्भावनाएं नहीं रही है, लेकिन ये सच नहीं है। कथित सवर्ण समुदायों के लोगों की सवर्णवादी मानसिकता बढ़ती जा रही है। वहीं दलित मुद्दों पर काम कर लोगों की माने तो उनका कहना है कि ‘‘सवर्ण समुदायों के लोगों की मंदिरों की सम्पत्ति पर गिद्ध दृष्टि है, वो माहौल बनाकर दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करते है और फिर मंदिर की सम्पति पर कब्जा कर लेते है। मंदिरों से दलित पुजारियों को बाहर निकालने की घटनाओं पर नजर डाले तो इन दलित कार्यकर्ताओं की बातें कटु सत्य प्रतीत होती है। यह सच है, वरना थला गांव का बलाई जाति का परिवार बरसों बाद नीच कैसे हो गया ?

भीलवाड़ा जिले की रायपुर तहसील के थला गांव में दलित पुजारी को मंदिर व मंदिर की कृषि भूमि से यह कहते हुए बेदखल कर दिया कि ‘‘तुम नीच जात के हो, आज के बाद मंदिर में मत आना वरना गांव से बाहर कर देंगे।’’ यही नहीं बरसों पहले देवनारायण मंदिर परिसर में दलित पुजारी हजारी लाल बलाई द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को भी तोड़ दिया। 

जानकारी के अनुसार रायपुर तहसील के थला गांव के लेहरू लाल बलाई के पिता ने कई बरसों पूर्व गांव मंे ही स्थित देवनारायण मंदिर के पास लोगों के बैठने के लिए एक सार्वजनिक सराय का निर्माण करवाया था। तब से ही आमजन उस सराय का उपयोग करते आ रहे है। लेकिन 20 नवम्बर 2012 को सुबह कुमावत जाति के भगवान लाल, लादूलाल, गणेश लाल, पारस लाल, भैरू लाल व भोजाराम सहित कुमावत जाति के अन्य लोगों ने हमसलाह होकर उस सार्वजनिक सराय को तोड़ दिया। लेहरू लाल ने सराय को तोडने का विरोध किया तो आरोपियों ने उसके साथ दुव्यर्वहार करते हुए जातिगत गालियां निकाली। यही नहीं आरोपियों ने दलित लेहरू लाल को धारदार हथियार से मारने का प्रयास भी किया। लेहरू लाल बलाई ने रायपुर थाने में इस आशय की रिपोर्ट दी है। पुलिस राजनेताओं के दबाव में है और अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है। भट्ट ग्रंथ (भाट की पौथी) के अनुसार लेहरू लाल के पूर्वज पीढि़यों से देवनारायण मंदिर की पूजा करते आ रहे है। 

मेरे दादाजी (अमरा लाल बलाई) ने बरसों पहले देवनारायण मंदिर का निर्माण किया था। मूर्ति स्थापना के बाद से ही मेरे दादाजी मंदिर की पूजा अर्चना करते रहे। बाद में मेरे पिता (हजारी लाल बलाई) ने मंदिर के पास ही एक सराय का निमार्ण किया। मंदिर की पूजा अर्चना शुरू से ही मेरे परिवारजन करते रहे लेकिन करीब 20 साल पहले कुमावत जाति के दंबग लोगों ने मेरे को पिता को मंदिर से बेदखल कर निकाल दिया और स्वयं पूजा करने लगे। मेरे पिता ने मंदिर से बेदखल करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था। वो मामला अभी तक न्यायालय में विचाराधीन है। अब कुमावत जाति के लोगों ने मंदिर के नाम दर्ज कृषि भूमि पर से भी हमें बेदखल कर उस पर कब्जा कर लिया है। हमने न्यायालय की शरण ली है। - लेहरू लाल बलाई, गांव-थला, तहसील-रायपुर, जिला-भीलवाड़ा (राज.) 

भीलवाड़ा जिले के माण्डल विधानसभा क्षेत्र के सूलिया गांव में दलित पुजारी को मंदिर पर प्रवेश नहीं करने दिया गया नतीजा दलित संगठित हुए और आंदोलन किया और गुर्जर जाति के लोगों के भारी विरोध और धमकियों के बावजूद मंदिर में प्रवेश करके दम लिया। जानकारी के अनुसार सूलिया में स्थित देवनारायण मंदिर की पूजा पीढि़यों से बलाई समुदाय के पुजारी करते आ रहे थे। तत्कालीन गुर्जर जाति के लोगों को दलित पुजारियों से कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन वर्ष 2006 (सूचना एवं क्रांति का समय) में गुर्जरों ने दलित पुजारियों को मारपीट कर मंदिर से बेदखल कर दिया। हालांकि दलित पुजारियों ने संघर्ष कर पुनः पूजा के अधिकार को प्राप्त कर लिया। माना जाता है कि इस मामले में तत्कालीन पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर ने अपने समुदाय के लोगों की मदद की। गुर्जरों की दादागिरी से पीडि़त दलित वर्ग एकजुट हुआ आगामी विधानसभा चुनावों में कालु लाल गुर्जर को हार का मुंह देखना पड़ा।

कुछ महीनों पूर्व जिला प्रमुख सुशीला सालवी के पीहर थाणा गांव में दलित पुजारी जयराम बलाई को मंदिर और मंदिर की कृषि भूमि से बेदखल कर दिया। जयराम बलाई की निजी सम्पत्ति को भी गुर्जरों ने नष्ट कर दिया। जयराम बलाई की ओर से पुलिस थाना करेड़ा में 2 एफआईआर दर्ज है। अब 2012 के आखिरी माह में रायपुर तहसील के थला गांव में कथित सवर्ण कुमावत जाति के लोगों ने देवनारायण मंदिर परिसर में दलितों द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को यह कहते हुए ढ़हा दिया कि ‘‘बलाईयों द्वारा बनाई सराय को यहां नहीं रहने देंगे।’’ यही नहीं उन्होंने राजस्व रिकार्ड में दलित पुजारी के नाम दर्ज मंदिर की जमीन से दलित पुजारी के परिवार को बेदखल करते हुए उस पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया।

पिछले कुछ सालों में अकेले भीलवाड़ा जिले में दलितों को मंदिर में नहीं जाने देने व बरसों से मंदिर की पुजा अर्चना करते आ रहे दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करने की कई घटनाएं हुई। लेकिन दलित संघर्ष कर अपने अधिकारों को पाने में कामयाब रहे - परसराम बंजारा, दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान

*लेखक खबरकोश डॅाटकॅाम के सहसंपादक है। 

Wednesday, January 2, 2013

भीलवाड़ा जिले का सियासी हालचाल


  • लखन सालवी
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॅा. सी.पी. जोशी का संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा कभी राजनीतिक रूप से कांग्रेस के लिये गढ़ हुआ करता था वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिये भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था, भीलवाड़ा जिले ने राज्य को 3 बार प्रतिनिधित्व करने वाला मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर दिया, कभी गिरधारी लाल व्यास प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे, इस तरह मेवाड़ में भीलवाड़ा अह्म स्थान रखता रहा है।
जाट                              जोशी                               शर्मा
कभी सत्ता की धुरी बने रहने वाला भीलवाड़ा अब राज्य मंत्रीमण्डल में एक अदद मंत्री पद के लिये भी तरसा हुआ है जबकि 7 विधानसभाओं में से 4 पर कांग्रेस काबिज है, कांग्रेस की आपसी फूट फजीहत और गुटबाजी के चलते सत्ता में होकर भी कांग्रेसजन सत्ता का स्वाद नहीं ले पा रहे है, विधानसभा चुनाव के बाद से ही रामलाल-रामपाल की जोड़ी ही जिले के हर फैसले करती रही है, बाद में लोकसभा में भीलवाड़ा से जीतकर पहुंचे डॅा. जोशी के बाद जाट-जोशी-शर्मा’ की तिकड़ी ने सत्ता प्रतिष्ठान पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली जिसके चलते विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह, युवक कांग्रेस नेता धीरज गुर्जर तथा हगामी लाल मेवाड़ा जैसे कांग्रेस नेता हाशिये पर चले गये तथा जाट-जोशी-शर्मा’ समूह ने पूरी तरह शासन सत्ता और प्रशासन पर पकड़ बना ली। आज जबकि विधानसभा चुनावों में महज एक साल बचा है, ऐसे वक्त में भी जिले में कांग्रेस बुरी तरह से गुटबाजी की शिकार है और कांग्रेसी नेता एक दूसरे को निपटाने के लिये कमर कसे हुये है।
हरेक विधानसभा क्षेत्र का विश्लेषण करने से पहले हमें मुख्य विपक्षी दल भाजपा के अन्दरूनी हालातों पर भी नजर डाल लेनी चाहिए, कहा जा सकता है कि कांग्रेस के हालात से भी भाजपा के हालात अधिक बदतर है जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडि़या जो कि नितिन गड़करी की भांति एक उद्यमी है तथा अपनी उद्यमिता एवं ऐश्वर्य के चलते संघ परिवार के आशीर्वाद के पात्र भी है, उनका भी एक गुट बना हुआ है जिसमें अधिकांशतः जनाधार विहीन नेता है, वहीं वसुंधरा राजे खेमे के खास सिपहसालार राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह का गुट हैं, संघ और वसु ग्रुप दोनों ही एक दूसरे को निपटाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते है। फलस्वरूप एक रचनात्मक विपक्ष के बजाय भीलवाड़ा भाजपा गुटबाजियों में फंसा हुआ एक दबाव समूह ज्यादा दिखाई पड़ती है।
वर्तमान में जिले में भाजपा के 3 विधायक है। भीलवाड़ा से विट्ठल शंकर अवस्थी जो कि संघ के बेहद प्रतिबद्ध स्वयंसेवक और लोकप्रिय नेता है, उन्होंने पार्टी में अपनी पकड़ बेहद मजबूत कर ली है, वहीं आसीन्द विधायक रामलाल गुर्जर, अपनी सादगी और सरल स्वभाव के चलते तथा ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ की नीति पर सतत चलायमान है किंतु यह माना जा रहा है कि इस बार उन्हें गुर्जर समाज के धर्म स्थल सवाईभोज के मुखिया मंहत भूदेवदास अथवा हरजीराम गुर्जर से कड़ी चुनौती मिल सकती है वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मावे के प्रतिष्ठित व्यवसायी शांति लाल गुर्जर को भी मैडम आसीन्द विधानसभा क्षेत्र से चांस दे सकती है। वहीं आसीन्द में कांग्रेस से रामलाल जाट का आगमन तय माना जा रहा है, वहीं नगर पालिका चैयरमेन हगामी लाल मेवाड़ा किसी भी कीमत पर चुनाव लड़ने पर आमदा है, अगर ऐसा होता है तो रामलाल जाट के लिए यह चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन गुटबाजी में बिखरी भाजपा उनके लिये सुकुन की बात होगी। आसीन्द में दलितों व आदिवासियों की भी मजबूत स्थिति है तथा वे अगर कांग्रेस का साथ नहीं देते है तो कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी के लिये जीत हासिल कर पाना लगभग असंभव ही होगा।
धीरज गुर्जर
वहीं जहाजपुर विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान विधायक शिवजीराम मीणा का कोई विकल्प नजर नहीं आता है, इस बार भी उन्हीं को टिकट मिलना तय माना जा रहा है और जीत के भी कयास लगाए जा रहे है क्योंकि जहाजपुर में कांग्रेस के पराजित उम्मीदवार धीरज गुर्जर पूर्व मंत्री रतन लाल ताम्बी तथा यूआईटी भीलवाड़ा के चैयरमेन रामपाल शर्मा के चक्रव्यूह से जूझ रहे है। कहा जा रहा है कि डॅा. जोशी भी उन्हें नापसंद करते है। ऐसे में उनका जहाजपुर से टिकट भी खटाई में पड़ सकता है मगर हेम सुल्तानिया व पृथ्वीराज मीणा आदि धीरज गुर्जर के साथ पूरी शिद्दत से लगे हुए है। माण्डलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के वर्तमान विधायक पी.के. सिंह को प्रधान गोपाल मालवीय तथा पूर्व विधायक भंवर लाल जोशी से सावधान रहने की जरूरत है, वहीं बृजराज कृष्ण उपाध्याय, कैलाश मीणा तथा इंजिनियर कन्हैया लाल धाकड़ भी दौड़ में शरीक है, भाजपा के बागी बद्री प्रसाद गुरूजी भी भाजपा में वापसी का रास्ता तलाश रहे है, मगर उन्हें कोई खिड़की दरवाजा ही नजर नहीं आ रहा है।
भीलवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में बहेडिया की चाल गुलाबचंद कटारिया को लाकर विट्ठल शंकर अवस्थी को साफ कर देने की है मगर कटारिया छोटी सादड़ी के अपने पुराने क्षेत्र को टटोल रहे है, ऐसे में उनका भीलवाड़ा आना संदिग्ध ही है तब भाजपा की मजबूरी होगी कि वह अवस्थी को ही दोहराये। कांग्रेस के लिये तो अनिल डांगी, ओम नराणीवाल जैसे चूक चूके नेता ही बचे है भीलवाड़ा प्रयोग हेतु . ., लेकिन शहर के मुसलमानों की कांग्रेस से नाराजगी को दूर करने के लिये कांग्रेस यहां से अल्पसंख्यक कार्ड भी खेल सकती है तथा पूर्व विधायक हफीज मोहम्मद के पुत्र याकूब मोहम्मद को उम्मीदवारी मिल सकती है, वैसे लाइन में तो नगर परिषद में विपक्ष के नेता अब्दुल सलाम मंसूरी भी है मगर उन्हें कोई भी सीरियस नेता ही नहीं मानता है, शहर में अरविन्द केजरीवाल की ‘‘आप’’ समेत कई छुटपुट पार्टियां भी है मगर उन्हें जनता वोट देकर अपना मत गंवाना उचित नहीं समझेगी, फिल्म कलाकार राजू जांगिड़ भी इस बार भीलवाड़ा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दावेदारी कर रहे है वहीं कुछ लोग दबी जबान से यह भी कहते पाये जाते है कि कांग्रेस और भाजपा नों में ही बाहरी उम्मीदवार की संभावना है।
कालु लाल गुर्जर
गजराज सिंह राणावत
जिला मुख्यालय से निकटवर्ती माण्डल विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के सबसे प्रबल दावेदार पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर है, जिन्हें सुजुकी प्रोसेस के जनरल मैनेजर और बनेड़ा के पूर्व प्रधान गजराज सिंह की मजबूत चुनौती झेलनी पड़ रही है तथा राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि भाजपा इस बार माण्डल क्षेत्र में राजपूत समाज के गजराज सिंह को टिकट देने का मन बना चुकी है क्योंकि कालु लाल गुर्जर से कार्यकर्ता तो नाराज है ही, गुर्जर समुदाय के उम्मीदवार से दलित सहित कई जातियां भी नाखुश है।
कांग्रेस के वर्तमान विधायक तथा पूर्व मंत्री राम लाल जाट के क्षेत्र बदलने की चर्चा जोरों पर है, ऐसे में उनके विकल्प के रूप में रामपाल शर्मा अथवा उनकी पत्नि मोना शर्मा को लोग स्वाभाविक रूप से उम्मीदवार के रूप में देख रहे है। निम्बाहेड़ा जाटान के पूर्व सरपंच गोपाल तिवाड़ी ने अपनी आर्थिक सुदृढ़ता और अपने छोटे भाई विनोद तिवाड़ी को ब्लॅाक कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाकर राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है तथा उन्होंने कांग्रेस टिकट की दावेदारी करने तथा टिकट नहीं मिलने पर बसपा अथवा निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली है ऐसा बताया जा रहा है। प्रबल दावेदार के रूप में पूर्व विधायक विजय सिंह के सुपुत्र राजपुरा ठाकुर दुर्गपाल सिंह का भी नाम सामने आ रहा है, उन्होंने भी टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके सबको चकित कर दिया है।
कैलाश त्रिवेदी
रायपुर-सहाड़ा क्षेत्र की भाजपा डॅा. रतन लाल जाट तथा रूप लाल जाट नामक दो खेमों में स्पष्ट विभक्त है, लादू लाल पितलिया की इस बार उम्मीदवारी प्रबल है मगर पूर्वमंत्री डॅा. रतन लाल जाट की पकड़ क्षेत्र व ऊपर मजबूत हुई है। इस बार उनका पुत्र कमलेश चौधरी (प्रधान-पंचायत समिति सहाड़ा) भी है तथा डॅा. जाट पूरे वक्त खूब सक्रिय है, ऐसे में उन्हीं को टिकट मिलेगा, ऐसा माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस के वर्तमान विधायक कैलाश त्रिवेदी को भूमि विकास बैंक के चैयरमेन चेतन प्रकाश डिडवाणिया के अलावा कोई खास चुनौती नहीं है तथा उन्होंने भी अपनी पकड़ बरकरार रखी है।
बनेड़ा-शाहपुरा की सुरक्षित सीट पर वर्तमान में महावीर जीनगर कांग्रेस के विधायक है, इस बार जाट-जोशी-शर्मा’ तिकड़ी जिला प्रमुख सुशीला सालवी को उम्मीदवार बनाने जा रही है, जिनकी बहुत बुरी हार की भविष्यवाणी अभी से की जा सकती है। वहीं जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॅा. आर.सी. सामरिया के भी चुनाव मैदान में कांग्रेस से उतरने की संभावना है। प्यारे लाल खोईवाल जैसे नेताओं के भी नाम यदाकदा सामने आते है। कहा जा रहा है कि जनता इन्हें वोट नहीं देगी इसलिये पार्टी भी इन्हें टिकट नहीं देगी। मगर कुछ स्थानीय नेता जरूर कोशिश में लगे हुये है जिनमें अम्बेड़कर मंच के नेता देबी लाल बैरवा का नाम प्रमुख है। भाजपा इस बार शाहपुरा से पूर्व मंत्री मदन दिलावर को उम्मीदवार बनाने जा रही है, संघ के लोग भी दिलावर को चाहते है मगर वसु खेमा उन्हें निपटाने के लिये कमर कसे हुये है वहीं सुभाष बहेडि़या मदन दिलावर को लाने पर आमदा है जिसका तमाम स्थानीय लोग अभी से विरोध जता रहे है, वहीं कालु लाल गुर्जर रामदेव बैरवा नामक (बसपा से कांग्रेस होते हुये भाजपा में पहुंचे) युवानेता को आगे किये हुये है वहीं भवानी राम मेघवंशी, गोपाल बुनकर, नाथु लाल बलाई, राजू खटीक, प्रभु खटीक, अविनाश जीनगर, मोहर रेगर आदि भी चुनाव तैयारियों में जुटे हुये है लेकिन भाजपा हो अथवा कांग्रेस शाहपुरा में दोनों पार्टियां आपसी गुटबाजी व सिर फुटौव्वल के चलते एक दूसरे को ठिकाने लगाने में मशगूल है, रिजर्व सीट का निर्णय जनरल लोगों के जरिये ही होता है जबकि जनरल सीटों का निर्णय जिले में दलित आदिवासी करते है, ऐसे में देखते है कि किसका भाग्य प्रबल होता है जो राज्य विधानसभा की दहलीज तक पहुंचता है। फिलहाल तो चौसर बिछ रही है, शतरंज के पासे अभी चलने बाकी है। किसी ने ठीक ही तो कहा है - चांदनी बाकी है और शराब बाकी है, अभी तो तेरे मेरे बीच सैकड़ों हिसाब बाकी है। तो इंतजार कीजिये राजनीतिक नफे नुकसान और सियासी हिसाब किताब का।
 लेखक  www.khabarkosh.com के Sub-editor है।