Tuesday, June 25, 2013

निजी बस पलटी, 2 की मौत, दो दर्जन से अधिक घायल

लखन सालवी/माण्डल/भीलवाड़ा  
दुर्घटनाग्रस्त बस को जप्त कर थाने ले जाते हुए 
25 June 2013- दोपहर करीब 1 बजे करेड़ा से भीलवाड़ा आ रही एक निजी बस माण्डल कस्बे के निकट स्थित तालाब की पाळ के पास विकट मोड़ पर अनियंत्रित होकर पलट गई। इस दुर्घटना में 2 लोगों की मौत हो गई तथा दो दर्जन से अधिक यात्री घायल हो गए।

जानकारी के अनुसार तालाब की पाळ के पास मोड़ पर अचानक सामने से जेसबी मशीन आ गई, बस ड्राइवर ने जेसीबी मशीन से भीडंत को बचाना चाहा और बस को नीचे उतारना चाहा, हड़बड़ाहट में बस  अनियंत्रित होकर पलटी खा गई। इस दुर्घटना में दो दर्जन से अधिक जने घायल हो गए। घायलों को माण्डल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया जहां दो दर्जन घायलों का उपचार किया गया शेष गंभीर घायलों को भीलवाड़ा रेफर किया गया। 

धीरज माली, मदन माली, रामकन्या, सम्पत हरिजन, नन्द गाडरी, प्रकाश तेली, रवि जाट, विष्णु, लादू तेली, नारायण जाट, डिम्पल कोली, हर्षिता सोनी, राजी माली, किरण कंवर और लक्की सिंह को माण्डल चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जबकि 20 घायलों को महात्मा गांधी चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जहां घायलों का उपचार किया जा रहा है। 

2 लोगों की मौत

दुर्घटना में करेड़ा निवासी बंशीलाल सालवी व अज्ञात 40 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई। मृतक के पास 46 हजार 500 रुपये की नकदी भी मिली है।

ये हुए घायल, जिनका महात्मा गांधी चिकित्सालय में ईलाज चल रहा है

चिलेश्वर निवासी नन्दु कंवर पत्नी शंभू राजपूत (45) भगवानपुरा निवासी शांतिदेवी पत्नी लक्ष्मीलाल पारासर (55), बगता का खेड़ा निवासी मियाराम पिता रमेमा गुर्जर (40), मालास निवासी किस्मत कंवर पुत्री पुष्करसिंह राजपूत (9 ) जगदीश कंवर पत्नी पुष्कर सिंह राजपूत (28), छोटी रूपाहेली निवासी गोटिया पिता अमरसिंह राजपूत(10), करेड़ा निवासी शबनम पत्नी वसीम बिसायती (21) मनोहरपुरा निवासी उगमनाथ पिता देवानाथ योगी (45), शिवनाथ पिता देवानाथ योगी (54), कबराडिया निवासी जमनालाल पिता काशीराम जोशी (47), चावण्डिया निवासी देऊ पत्नी नन्दलाल बलाई (55) नन्दलाल पिता मांगीलाल बलाई (35), बोरखेड़ा निवासी मिठू कंवर पत्नी धनसिंह राजपूत (40), गलवा निवासी नन्दकंवर पत्नी महेन्द्रसिंह (30), करेड़ा निवासी भंवरी बाई पत्नी भीखा गुवारिया (45), कबराडिया निवासी सीतादेवी पत्नी कैलाश चन्द्र जोशी (42), चिलेश्वर निवासी प्रमोद कंवर पत्नी गणपतसिंह राजपूत (18)।

महात्मा गांधी चिकित्सालय में
घायलों की कुशलक्षेम पूछते जनप्रतिनिधि
प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं समाजसेवी पहुंचे घायलों की सुध लेने

दुर्घटना की सूचना मिलने के तुरन्त बाद माण्डल क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों एवं समाजसेवियों ने महात्मा गांधी चिकित्सालय पहुंचकर घायलों की सुध ली। 

प्रशासनिक अधिकारियों में माण्डल के उपखण्ड अधिकारी नरेन्द्रसिंह तथा तहसीलदार गोपीलाल चन्देल घायलों से मिले। वहीं जनप्रतिनिधियों में भाजपा के बनेड़ा मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत, अनुसूचित जाति मोर्चा (भाजपा) के मण्डल अध्यक्ष राजमल खींची, माण्डल के प्रधान गोपाल सारस्वत, पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर व डेयरी चेयरमेन रतन लाल चौधरी तथा सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी, महिपाल वैष्णव, गौभक्त देबी लाल मेघवंशी, लादू लाल मेघवंशी इत्यादि ने घायलों से मिलकर कुशलक्षेम पूछी व घायलों के परिजनों को ढांढस बंधाया। 

कौन था ड्राइवर, किसकी है बस ?

पुलिस को अभी तक ड्राइवर की जानकारी नहीं मिल पाई है। माण्डल थाने से प्राप्त सूचना के अनुसार दुर्घटना के बाद से ही ड्राइवर का पता लगाया जा रहा है लेकिन अभी तक बस ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। बस के कंडेक्टर का मोबाइल स्वीच आॅफ पाया गया जिस कारण ड्राइवर व बस मालिक के बारे में किसी प्रकार की जानकारी नहीं मिल पाई है। 

बस ( आरजे 06 पीए 2851) को जप्त कर लिया गया है। ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है तथा बस के कागजात नहीं मिल पाने के कारण बस मालिक के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।- गौरव यादव, थानाधिकारी-माण्डल। 


Thursday, June 20, 2013

आरोपी खूले घूम रहे है और पीडि़त पुलिस दफ्तरों में


  • लखन सालवी

कोशीथल/भीलवाड़ा -  न्याय के लिए कभी थाने, कभी डिप्टी ऑफिस तो कभी एसपी ऑफिस के चक्कर लगा रहा है कोशीथल गांव का नंगजीराम बलाई। 23 मई को गंगापुर थाने में दर्ज हुई एफआईआर के अनुसार 2 मई को दोपहर करीब 12 बजे मांगीलाल तेली ने नंगजीराम बलाई के मोबाइल नम्बर पर कॉल कर उसे घर पर बुलाया। खेत पर काम होने की वजह से नंगजीराम उसके घर नहीं जा सका। शाम को वह अपने घर पर बैठा था कि महेन्द्र आचार्य एवं जगदीश तेली मोटर साईकिल लेकर आए और नगजीराम को मांगीलाल तेली के घर चलने को कहा। नगजीराम उनके साथ मांगीलाल तेली के घर के बाहर पहुंचा ही था कि मांगीलाल ने उसे जातिगत गालियां निकालते हुए दिन में फोन पर बुलाने पर नहीं आने का उलाहना देते हुए कमरे में चलने को कहा। नगजीराम ने भागना चाहा तो उसे घसीटकर घर के एक  कमरे में ले जाया गया और मारपीट की गई।

घटना के 21 दिन बाद दर्ज हुई एफआईआर

पुलिस अधिकारी किस तरह से पीडि़त गरीब लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करते है इसकी बानगी नगजीराम बलाई के साथ हुई मारपीट के मामले से साफ जाहिर होती है। 

जानकारी के अनुसार नगजीराम बलाई के साथ 2 मई की शाम को मारपीट की गई। नगजीराम 17 किलोमीटर दूर गंगापुर थाने में घटना के दूसरे दिन यानि कि 3 मई को पहुंच गया। जहां से उसे पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय भेज दिया गया और उसके बाद पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नौजिया पीडि़त नगजीराम बलाई को आए दिन कार्यालय बुलाते रहे और अंत में 23 मई को एफआईआर दर्ज की गई।

आशा से निराशा की ओर

जिस दिन नगजीराम बलाई के साथ मारपीट हुई, वह उसके दूसरे दिन ही न्याय के लिए थाने में चला गया और आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दे दी। लेकिन पुलिस प्रशासन ने उसे इस कदर एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगावाए कि उसका पुलिस व्यवस्था से ही विश्वास उठ गया है। उसे न्याय की उम्मीद थी लेकिन 2 मई के बाद के घटनाक्रम से वह निराश होता जा रहा है।  

क्या है घटनाक्रम

  • पीडि़त के साथ 2 मई को मारपीट होती है।
  • पीडि़त 3 मई को गंगापुर थाने में लिखित रिपोर्ट देता है। थाने वाले अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का मामला बताते हुए उसे पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय में भेज देते है। पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नौजिया पीडि़त की रिर्पोर्ट दर्ज करवाने की बजाए उसे दूसरे दिन सुबह 10 बजे आने को कहते है।
  • 4 मई को नगजीराम बलाई पुलिस उपाधिक्षक कार्यालय में पहुंचता है, आरोपियों को भी वहां देखकर चैंक जाता है। नगजीराम ने बताया कि पुलिस उपाधिक्षक ने दोनों पक्षों को बैठा कर समझौते के लिए दबाव बनाया लेकिन जब मैंनें समझौते के लिए इंकार कर दिया तो उन्होंने मुझे 15 मई को वापस आने को कहा।
  • 15 मई को नगजीराम वापस डिप्टी ऑफिस गया, वहां उसे डिवाईएसपी नहीं मिले, फोन किया तो उन्होंने बाहर होने का हवाला देते हुए 20 मई को आने को कहा। 
  • 20 मई को नगजीराम ने घर से ही डिवाईएसपी को कॉल किया। उन्होंने 21 मई को 2 बजे डिप्टी ऑफिस आने को कहा।
  • 21 मई को नगजीराम दोपहर 2 बजे डिप्टी कार्यालय पहुंच गया। दोपहर 2 बजे से सांय 5.00 बजे तक डिप्टी ऑफिस परिसर में बैठा रहा। सायं 5.00 बजे डिवाईएसपी सत्यनारायण कन्नौजिया कार्यालय में आए और नगजीराम को आश्वासन दिया कि वो 22 मई को मौका निरीक्षण करने आयेंगे।
  • 22 मई को डिवाईएसपी ने मौके का निरीक्षण किया। नगजीराम ने बताया कि डीवाईएसपी ने उसे गवाहों को लेकर 23 मई को कार्यालय में लाने को कहा। 
  • 23 मई को सुबह 10 बजे नगजीराम मामले के गवाहों को लेकर डीवाईएसपी कार्यालय गया। नगजीराम ने बताया कि गवाहों के बयान नहीं लिए गए। डीवाईएसपी ने मुझे एक लिफाफा देकर उसे थाने में देने को कहा। मैंनें वह लिफाफा गंगापुर थाने में ले जाकर दे दिया। उन्होंने मुझे एफआईआर दे दी। 

नगजीराम का कहना है कि गवाह पुलिस उपाधिक्षक के समक्ष 3-4 बार उपस्थित होकर बयान दे चूके है लेकिन अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

नगजीराम ने बताया कि पुलिस उपाधिक्षक कार्यवाही नहीं करना चाहते है, आरोपियों से पूछताछ करने की बजाए बार-बार मुझे व गवाहों को डिप्टी कार्यालय बुला कर पूछताछ की गई व समझौते के लिए दबाव बनाया गया।

पुलिस उपाधिक्षक से न्याय की उम्मीद छोड़ चूके पीडि़त ने 6 जून 2013 जिला पुलिस अधीक्षक के नाम अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन दिया। लेकिन नतीजा सिफर रहा।


डिवाईएसपी कार्यालय में ली 5000 की रिश्वत
पुलिस उपाधिक ने 4000 व रीडर ने लिए 1000 रुपए

नगजीराम ने बताया कि 22 मई को मौका निरीक्षण करने पहुंचे डिवाईएसपी के साथ आए रीडर ने उससे 23 मई को कार्यालय में 5000 रुपए लाने को कहा। 23 मई को नगजीराम ने 1000 रुपए रीडर (चाचा) को दिए एवं 4000 रुपए डिवाईएसपी को दिए। नगजीराम ने बताया कि डिवाईएसपी ने रुपए अपने हाथ में नहीं लेकर टेबल की दराज को खोलकर उसमें रखवाए।

पुलिस व्यवस्था से हार चुके नगजीराम ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि मैं आरोपियों को सबक सिखाना चाहता हूं ताकि वो भविष्य में किसी गरीब के साथ मारपीट न करे। मैं गांव का किसान हूं, न्याय के लिए दौड़ रहा हूं लेकिन सच्चाई का साथ देने वाला कोई नहीं है।

एफआईआर दर्ज होने में हुई देरी के बारें में पुलिस उपाधिक्षक सत्यनारायण कन्नोजिया ने बताया कि उर्स में मेरी ड्यूटी लगी थी, इस कारण परिवाद की जांच में देरी हुई। एफआईआर दर्ज करने में देरी होने के पीछे यही कारण रहा है।

वहीं रिश्वत लेने के आरोप पर डीवाईएसपी ने बताया कि ‘‘नगजीराम झूठा आरोप लगा रहा है, मैंनें नगजीराम से पैसे नहीं लिए है।

Friday, June 14, 2013

अब तो कलक्टर साब भी मुझे नाम से जानते है

  • लखन सालवी

ये है नाथी बाई, सबसे वंचित और शोषित समुदाय में जन्मी और पली बढ़ी, वर्तमान में भीलवाड़ा जिले की माण्डल तहसील की संतोकपुरा ग्राम पंचायत के वार्ड नम्बर 5 की वार्ड पंच है। नाथी बाई को वार्ड पंच साहिबा कहकर सम्बोधित करते है तो उनकी आंखों में चमक नजर आती है। ये चमक है कुशल नेतृत्व की। महिला आरक्षण की बदौलत नेतृत्व को हाथों में पाकर नाथी बाई बहुत खुश है। यूं तो जन पैरवी का कार्य वह बरसों से कर रही है, लेकिन वार्ड पंच बनने के बाद उसे और अधिकार मिल गए जिससे जन पैरवी व ग्राम विकास करने में उसे मजबूती मिली।

वार्ड की जनता ने उसे दूसरी बार वार्ड पंच बनाया है। इससे पहले भी वह 2 उम्मीदवारों को हराकर वार्ड पंच का चुनाव जीती थी। बकोल नाथी बाई इस बार वार्डवासियों ने मेरी एक न चलने दी और वार्ड पंच का चुनाव लड़वा कर ही माने। मैंनें चुनाव लड़ने के लिए इंकार कर दिया था, तब सभी वार्डवासी इक्कट्ठे होकर मेरे घर के बाहर धरने पर बैठ गए, मैंनें चुनाव लड़ने के लिए हामी भरी तब जाकर वो माने। नाथी बाई की ग्रामवासियों में पैठ ही ऐसी बन गई है कि वोटों की पेटी ने उसे कभी मायूस नहीं किया।

वार्ड नम्बर 5 की महिलाओं व पुरूषों के हुई बातचीत के अनुसार नाथी बाई उनके लिए किसी मसीहा से कमतर नहीं है। वो वार्ड पंच तो पिछले कुछ सालों में बनी है। जबकि वह कई सालों से दबे कुचले समाजों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। वह दमित लोगों की मदद करती है। पैरवी चाहे थाने में करनी हो या जिला कलक्ट्रेट में, ग्राम पंचायत में करनी हो या पंचायत समिति में वह हर समय तत्पर रहती है। यही वजह है कि वार्डवासी उसे ही वार्ड पंच के रूप में देखना पसंद करते है। 

वह गरीब परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल करवाने के लिए प्रयासरत है। गरीबों के नाम बीपीएल सूची में जुड़वाने के लिए वह ग्राम पंचायत से लेकर जिला कलक्ट्रेट तक पैरवी कर रही है। वह इस मामले में जिला कलक्टर से भी मिली है। 

वार्ड पंच बनने के बाद उसमें आत्म बल बढ़ा है। वह ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक वंचितों की पैरवी करती है। उनका कहना है कि अब तो कलक्टर साब भी मुझे नाम से जानते है। नाथी बाई ने बताया कि  ‘‘मैंनें उनसे कई बार वंचितों की समस्याओं को लेकर शिकायतें की है।’’

नाथी बाई घुमन्तु समुदाय की कंजर जाति की महिला है। जीवन के 5 दशक देख चुकी नाथी बाई कहती है कि नेतृत्व देने की बात तो दूर, कोई हम पर विश्वास ही नहीं करता था। पुलिस तो आए दिन अत्याचार करती रहती थी, जहां कहीं भी चोरी, डकैती या कोई गुनाह होता, जिस शहर या कस्बे के समीप हमारी यायावरी कौम के लोग बसे होते, पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती। पुलिस न केवल पुरूषों को गिरफ्तार करती बल्कि महिलाओं को भी पकड़कर थाने में बंद कर देती थी। वह कहती है कि इससे बुरा और क्या हो सकता है कि थाने में रिपोर्ट लिखवाने जाने वाले पीडि़त के खिलाफ ही पुलिस मुकदमा दर्ज कर उसे फर्जी केस में बंद कर देती! वह कहती है कि पहले थाने में जाने से शर्म आती थी क्योंकि थानेवाले बेशर्मी से गंदी भाषा का उपयोग करते थे। लेकिन अब किसी की हिम्मत नहीं जो मुझसे गंदी जबान से बात कर सके।

नाथी बाई कभी स्कूल नहीं जा पाई। वह बताती है उस जमाने में तो यायावर जातियों के लोगों को अत्यन्त हैय दृष्टि से देखा जाता था। इन जातियों के लोग का अभी भी बराबरी के लिए संघर्ष जारी है। वह बताती है ‘‘मेरे पिताजी ने मुझे आखर ज्ञान दिया। मैं कोई भी पत्र पढ़ लेती हूं और कभी-कभी अखबार भी पढ़ती हूं। मुझे सिर्फ पढ़ना आता है, अच्छे से लिखना नहीं आता है।’’ 

वार्ड की महिला गौरी व डाली ने बताया कि ‘‘कतराई सरपंच बणग्या अर कतराई वार्ड पंच। पण कोई म्हाका वार्ड में विकास न करायो। न तो नालियां बणई अर् न सीमेन्ट की सड़का बणई। भगवान भलो विज्यो नाथी बाई को म्हाका वार्ड में सड़का भी बणवाई और नालियां बी बणवाई।’’ (कई सरपंच बने और वार्ड पंच भी लेकिन किसी ने हमारे वार्ड में विकास नहीं करवाया। न नालियां बनाई गई और न ही सीमेन्ट की सड़के बनाई। जबकि दूसरे वार्डों में कई विकास हुए। ईश्वर भला करे नाथी बाई का जिसने हमारे वार्ड में सड़के, नालियां बनवाई।)

सड़कें और नालियां आसानी से नहीं बना दी गई। नाथी बाई ने बताया कि ग्राम पंचायत में प्रस्ताव लिखवाने से लेकर तत्कालीन पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास मंत्री कालू लाल गुर्जर से भी वार्ड के विकास की मांग कई बार की। उसने बताया कि जब भी मंत्रीजी सड़क मार्ग से गुजरते मैं सड़क पर ही खड़ी हो जाती, वो वहां से निकलते तो मैं उनसे ग्राम विकास की मांग करती। गांव में सड़कें तो बन गई लेकिन विकास कार्यों में भाई-भतीजावाद करते हुए कंजर बस्ती को सड़क से वंचित रखा गया।

वार्ड के विकास के लिए सदैव तत्पर रहती है। यह उसके अथक प्रयासों की ही बानगी है कि कंजर बस्ती में 5 लाख की लागत का सामुदायिक भवन बनाया गया है। उसने पानी की समस्या से जूझ रही बस्ती की महिलाओं को हैण्डपम्प लगवाकर राहत दी। 

विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर उसने सरकारी योजनाओं की जानकारियां प्राप्त की। अपनी ग्राम पंचायत में विधवा, विकलांग, वृद्वा महिलाओं के पेंशन के आवेदन करवाएं है। वह दावे के साथ कहती है कि मेरे वार्ड में ऐसी कोई महिला या पुरूष शेष नहीं है जिसका पेंशन  के लिए आवेदन नहीं किया गया हो। 

बस्ती के लोगों में जागरूकता की बहुत कमी है। पेंशन योजनाओं का लाभ दिलवाना हो या चयनित सूची में शामिल करवाना, इन्द्रा आवास योजना का लाभ दिलवाना हो मुख्यमंत्री आवास योजना का, सभी कार्य नाथी बाई ही करती है। पहले योजना को समझती है फिर पात्रता को और उसके बाद उसकी आंखे पात्र लोगों को ढूंढने लगती है। पात्रों का चयन कर ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखती है और योजना का लाभ दिलवाकर ही चैन की सांस लेती है। 

कंजर बस्ती जिस भूमि पर बसी हुई है, वह ग्राम पंचायत की आबादी भूमि में है लेकिन इसमें से कुछ हिस्सा यूआईटी क्षेत्र में आता है। यूआईटी द्वारा उस जमीन पर बसे परिवारों को भूखण्ड़ों के पट्टे नहीं दिए जा रहे है। यह चिंता नाथी बाई को खाए जा रही है वह लगातार प्रयास कर रही है कि उन लोगों को पट्टे दिलवाने के लिए।
बस्ती के चारों और फेक्ट्रियां है। खुली जगह नहीं है। महिलाओं को शौच के परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नाथी बाई बस्ती में शौचालय बनवाने के प्रयास भी कर रही है। वह बताती है कि फेक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी व कचना नालों में जमा हो जाता है जिससे गंदा पानी नालों से बाहर निकलकर रास्ते में भर जाता है। रास्तें में किचड़ हो जाने से बस्ती के लोगों को आने जाने में समस्या आ रही है। वहीं पास में ही सरकारी विद्यालय है, बच्चों को भी किचड़ में से होकर जाना पड़ रहा है। 

नाथी बाई की माने तो घुमन्तु समुदाय में पैदा होने वाला हर शख्स अपने साथ मुसीबतें लेकर आता है, जो खुद तो मुसीबतें झेलता ही है, अपने परिवार व रिश्तेदारों को मुसीबतों में डाल देता है। उसने बताया कि ‘‘मैंनें ताउम्र मुश्किलों का डट कर सामना किया है और करती रहूंगी क्योंकि कठिनाइयां रूकने वाली नहीं है, आती रहेगी।’’

जिला कलक्टर ओंकार सिंह कहते है कि ‘‘पंचायतीराज में आरक्षण से महिलाओं को सम्बल मिला है। नाथी बाई जैसी जुंजारू महिलाओं को आगे आने का मौका मिला है। वाकई वो ग्राम विकास में विशेष रूचि लेती है और गांव की तस्वीर बदल रही है।’’ 

Tuesday, June 11, 2013

गहलोत साब, ये पब्लिक है . . सब जानती है


  • लखन सालवी 

विधानसभा चुनाव नजदीक है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार का इस शासन काल का यह अंतिम वर्ष है। राजस्थान सरकार ने कई लोक लुभावनी योजनाएं लागू की, जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नए विधेयक भी लागू किए लेकिन जमीनी स्तर पर ना तो योजनाएं क्रियान्वित हो पाई है और ना ही नये विधेयक जनता को राहत दे पाए है।

सूबे के सरदार आजकल संदेश यात्रा निकाल रहे है, इस यात्रा के माध्यम से जन-जन तक पहुंचने और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों की जानकारी दी जा रही है। इस यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत शिक्षा क्षेत्र में विकास की बात भी कर रहे है लेकिन राज्य में स्थितियां वैसी नहीं है जैसी बताई जा रही है। बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग के साथ कार्य कर चुके परशराम बंजारा का कहना है कि शिक्षा का अधिकार कानून पूरे देश में लागू किया गया, 3 साल में ढांचागत व्यवस्थाएं की जानी थी। इसके लिए मार्च-2013 की डेटलाइन थी, मार्च बीत चुका है लेकिन अभी तक ढांचागत व्यवस्थाएं नहीं की गई है। विद्यालयों में टायलेट बना दिए गए है लेकिन सभी बंद पड़े है। सफाई कर्मचारी नहीं है। शिक्षा के अधिकार कानून की बूरीगत है। वे बताते है कि राजस्थान में छात्र-अध्यापक का अनुपात तो ठीक है, लेकिन वितरण ठीक नहीं है। कहीं बहुत छात्र है पर अध्यापक नहीं है, कहीं छात्रों की संख्या कम है मगर अध्यापक अधिक है। साथ ही विद्यालयों में नामांकन तो ठीक है लेकिन बच्चों का ठहराव नहीं है। बंजारा ने बताया कि सरकार ने घुमन्तु जातियों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के कोई प्रयास नहीं किए है।

बारां जिले के किशनगंज के राधा किशन शर्मा बताते है कि सरकार ने बिना सोचे समझे विद्यालय भवन बनवा दिए। लेकिन उन विद्यालयों में ना तो अध्यापक है ना ही किसी प्रकार की सुविधाएं। विद्यालयों में नामांकन बढ़ने की बात को सिरे से नकारते हुए शर्मा कहते है कि फर्जी नामांकन किया गया है जिससे मिड-डे मिल में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। वहीं किशनगंज तहसील के राधापुरा सहित दर्जन भर विद्यालय भवनों की स्थिति जीर्णशीर्ण है, जिनकी देखभाल सरकार से नहीं हो पा रही है, सरकार ताबड़तोड़ नए विद्यालय भवन बनवाती जा रही है और पुराने का ख्याल ही नहीं है।

ग्रामीणों की माने तो सरकार ने निजी विद्यालयों को बढ़ावा देने का काम किया है। सैकेंड़ों विद्यालय नियम विरूद्ध चल रहे है। इन विद्यालयों में न केवल शिक्षा के अधिकार अधिनियम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही वरन जनता से वसूली भी की जा रही है।

भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक महावीर मोची व माण्डलगढ़ विधान सभा क्षेत्र के विधायक प्रदीप सिंह का कहना है कि ऐसा नहीं है सरकार ने बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रयास नहीं किए हो। सरकार ने जनता को जागरूक करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम संचालित किए। पलायन पर जाने वाले बच्चों को भी शिक्षा से जोड़ने के पुख्ता बंदोबस्त किए है लेकिन कर्मचारी वर्ग ने सरकार की योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने में मदद नहीं की है। फलतः कर्मचारी वर्ग बच्चों को जोड़ने में नाकाम रहे है। यहां तक की अध्यापक वर्ग को स्वयं अपने ऊपर ही कांफीडेंस नहीं है इसलिए वो अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने के लिए भेज रहे है। 

सरकार भले ही ढोल पीटे और विभाग भले की आंकड़ों का खेल खेले लेकिन सच्चाई यहीं है कि इस अधिनियम को लागू करने के बाद से विद्यालयों के रजिस्ट्ररों में नामांकन तो बढ़ा लेकिन वास्तविकता में बच्चों को शिक्षा से नहीं जोड़ा गया। वहीं अध्यापक वर्ग का कहना है कि सरकार ने अध्यापक वर्ग को तो मल्टीटास्किंग मशीन बना दिया है, जिनसे मनचाहा कार्य करवाया जा रहा है। 

वहीं ग्रामीण शिक्षा पर कार्य कर रहे रामराय आचार्य बताते है कि सरकार और विभाग भले ही आंकड़ों का खेल खेले लेकिन सच्चाई यहीं है कि इस अधिनियम को लागू करने के बाद से विद्यालयों के रजिस्ट्ररों में नामांकन तो बढ़ा लेकिन वास्तविकता में बच्चों को शिक्षा से नहीं जोड़ा गया। उन्होंने बताया कि राज्य में कार्यरत गैर सरकारी संगठन अल्लारिप्पू द्वारा 10 जिलों मंे सर्वे किया जिसकी रिपोर्ट दिसम्बर 2012 में जारी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी विद्यालयों में भारी संख्या में फर्जी नामांकन पाया गया। 

बारां जिले में कार्यरत हाड़ौती मीडिया रिसोर्स सेंटर से जुड़े योगीराज ओझा ने बताया कि बारां जिले के शाहबाद ब्लाक के मडी सहजना गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 25 से अधिक बच्चों का नामांकन बताया गया है जबकि विद्यालय कई दिनों से बंद मिला, मजे की बात है वहां नियुक्त अध्यापक को वेतन मिलता रहा। इसी जिले के किशनगंज ब्लाॅक के नया गांव विद्यालय में 35 बच्चों का नामांकन था, अध्यापक ने अपने बच्चों के नाम भी फर्जी नामांकित कर दिए थे, जबकि अध्यापक के बच्चे पास के गांव में स्थित निजी विद्यालय में पढ़ाई कर रहे है। इस विद्यालय में पिछले साल एक भी छात्र की भौतिक उपस्थिति रही। इस जिले में सुहांस सहित दर्जन भर विद्यालयों में ऐसे ही हालात मिले। जानकारी के अनुसार अध्यापक नामांकन के समय फर्जी नामांकन कर देते है और बाद में ड्राॅप आउट बता देते है।

रामराय आचार्य के कथन को इस उदाहरण से बल मिलता है कि भीलवाड़ा जिले के माण्डल तहसील मुख्यालय के समीप स्थित कालबेलिया बस्ती में 60 परिवार निवास करते है, इस बस्ती में 130 मतदाता है। इस समुदाय के लोग अत्यंत गरीबी में जी रहे है। कई सालों पहले 2 परिवारों के इंदिरा आवास योजना के तहत आवास बनाए गए थे बाकी के परिवार टपरियों और तम्बूओं में ही निवास कर है। खेती के लिए एक इंच जमीन भी नहीं है। गरीबी की आग के थपेड़ों में झुलस रहे इन परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल नहीं किए गए है। इस बस्ती में 3 से 14 साल के करीब 50 बच्चें है। उनके से 30 बच्चों को बस्ती का ही पूरण कालबेलिया पढ़ाता है। वो दिन में ईट भट्टे पर काम करता है और रात में बच्चों को पढ़ाता है। पूरण ने बताया कि विद्यालय दूर होने के कारण बच्चों के परिजन उन्हें वहां नहीं भेजते है।

पूरण कालबेलिया का यह काज राज्य में सत्ताधीन सरकार एवं सरकारी व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है। यह तो महज एक उदाहरण है राज्य भर में ऐसे सैकड़ों मामले है। कई सरकारी स्कूलों में अध्यापक है, स्कूलों के नाम पर लाखों रुपए वार्षिक खर्च भी किया जा रहा है लेकिन उन स्कूलों में एक भी बच्चे का नामांकन नहीं है। बारां जिले के आदिवासी क्षेत्र के शाहबाद कस्बे के वरिष्ठ पत्रकार रामप्रसाद माली का कहना है कि राजस्थान सरकार अंधी हो चुकी है, एक जगह विद्यालय है, अध्यापक है, पर बच्चें नहीं और दूसरी जगह विद्यालय है, बच्चों का नामांकन है, पर अध्यापक नहीं ऐसे में सरकार को चाहिए कि व्यवस्थाएं सुधारें।

शिक्षाविद् बताते है कि शिक्षा का निजीकरण होता जा रहा है। पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर डाले तो निजी विद्यालयों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है साथ ही निजी विद्यालयों में बच्चों के नामांकन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों लोगों का रूझान निजी विद्यालयों की ओर बढ़ रहा है ? जबकि सरकार शिक्षा पर अरबों रुपए खर्च कर रही है। 

शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे उदयपुर के हरिओम सोनी व भंवर सिंह चंदाणा का कहना है कि सरकारी व्यवस्था से जनता का मोह उठ चुका है आखिर उठेगा भी क्यूं नहीं 25 हजार से 40 हजार रुपए मासिक वेतन वाले सरकारी अध्यापक द्वारा बच्चों को दी जा रही शिक्षा 1500 रुपए से 6000 रुपए मासिक वेतन वाले निजी विद्यालय के अध्यापक से कमत्तर जो है। उनका मानना है कि बच्चों को पढ़ाने की सरकारी अध्यापकों की मानसिकता ही नहीं रही है। 

भंवर सिंह चंदाणा ने बताया कि लोकल लेवल पर पाॅलिटिक्स हावी है जो अध्यापकों की नियुक्ति पर विपरित असर करती है। उन्होंने बताया कि नई नियुक्तियों में प्रावधान किया गया है कि कम से कम ढ़ाई साल तक एक जगह रहना होगा, इससे सुधार की गुंजाइस है। 

हरिओम सोनी ने बताया कि आज के समय में लोग क्वालिटी एज्यूकेशन को देखते है। निजी विद्यालयों में क्वालिटी एज्यूकेशन पर ध्यान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में 70 से 80 प्रतिशत सरकारी अध्यापकों के बच्चें निजी विद्यालयों में पढ़ रहे है। 

वे चिंता प्रकट करते हुए कहते है कि शिक्षा को लेकर राजस्थान सरकार की विरोधाभाषी नीति है। बताया कि एक तरफ सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालय है, कलक्टर भी चाहता है कि उसका बच्चा वहां पढ़ें। दूसरी तरफ सरकार द्वारा ही संचालित सरकारी विद्यालय है जिनमें वहां का अध्यापक भी नहीं चाहता उसके बच्चे वहां पढ़ें। इससे साफ है सरकार की शिक्षा नीति ठीक नहीं है। सोनी ने बताया कि सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सतत् मूल्यांकन पद्धति लागू की है लेकिन वो भी मजाक जैसा है। 

शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लेकर शिक्षाविदों में भी भारी विरोधाभास है। राइट टू एज्यूकेशन एक्ट के पक्षधर एवं इस एक्ट की ड्राफटिंग कमेटी की सदस्य रहे विनोद रैना के कहते है कि सरकार को राइट टू एज्यूकेशन कानून को प्रभावी रूप से लागू करना है और इस कानून के दायरें में रहकर ही व्यवस्थाएं बनाना है, अध्यापकों की नियुक्ति करनी है और नए स्कूल खोलने है। कानून के तहत प्रत्येक एक किलोमीटर की दूरी पर एक प्राथमिक स्कूल होना चाहिए और प्रत्येक 2 किलोमीटर की दूरी पर एक उच्च प्राथमिक स्कूल होना चाहिए। स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा भेजे जाने वाले प्रस्ताव के अनुसार स्कूलों का निर्माण किया जाना है। रैना स्वीकार करते है कि कई कारणों से सरकारी स्कूलों के प्रति जनता की सोच ठीक नहीं है लोग सरकारी स्कूलों में बच्चों को नहीं पढ़ाना चाह रहे है। उनका मानना है कि अगर इस एक्ट को प्रभावी रूप से लागू किया जाता है तो निश्चित रूप से सरकारी स्कूलों की स्थितियां सुधरेगी और जनता में भी सरकारी स्कूलों की छवि में सुधार आएगा। रैना ने राइट टू एज्यूकेशन पर जोर देते हुए बताया कि मध्यप्रदेश के सिलौर जिले के नसरूलाह ब्लाॅक में लोगों ने 13 निजी स्कूलों से बच्चों को वापस सरकारी स्कूलों में दाखिल करवाया। 

विनोद रैना का कहना है कि जो अध्यापक कहते है कि सरकार ने उन्हें मल्टी टास्किंग मशीन बना दिया है वो सरासर गलत है। अव्वल तो कानून में लिखा है कि इलेक्शन में उन्हें जिम्मेदारी लेनी है लेकिन अगर सरकार अन्य काम सौंपती है तो अध्यापकों को चाहिए कि वो एसएमसी में इसकी शिकायत दर्ज करवाएं या कोर्ट में जाए। दरअसल संघर्ष कोई नहीं करना चाह रहा है इसलिए स्थितियों में सुधार नहीं हो पा रहा है। 

मध्यप्रदेश के शिक्षाविद अनिल सदगोपाल राइट टू एज्यूकेशन के घोर विरोधी है। उनका मानना है कि राइट टू एज्यूकेशन से व्यवस्था में बदलाव नहीं पाएगा। उनकी बात सही भी लगती है क्योंकि इस एक्ट के अनुसार तो वर्तमान में राजस्थान में 1 लाख 22000 प्राथमिक स्कूल होेने चाहिए जबकि वर्तमान में 75000 स्कूल ही है। अध्यापक वितरण के बारे में भी एक्ट में साफ बताया गया है कि प्रत्येक स्कूल में 30 बच्चों पर एक अध्यापक होना चाहिए जो पता नहीं कब संभव हो पाएगा और जब तब अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हो पाएगी तब तक स्थितियों में सुधार हो पाना नामुमकिन है। 

सरकारी विद्यालयों में नामांकन कम होने या उपस्थिति कम होने की बात पर शिक्षा विभाग के अधिकारी कर्मचारी उखड़ जाते है, कहते है - परिजन बच्चों को विद्यालय में नहीं भेजना चाहते है तो हम क्या करें ? कई बार कहते है कि - बच्चे पढ़ना नहीं चाहते है इसलिए विद्यालय में नहीं आते है। लेकिन ये तमात बातें निराधार है। सच्च तो यह है कि सूचना एवं क्रांति के युग में शिक्षा की महत्ता को मजदूर वर्ग भी अच्छे से जानने लगा है और वे अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है।

यह सटीक उदाहरण होगा ये जानने के लिए कि गरीब से गरीब व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है- गत दिनों बारां जिले से एक सूचना मिली। सूचना देने वाले ने बताया कि सरकार निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही है जबकि बारां जिले के किशनगंज ब्लाॅक के भंवरगढ़ गांव में संचालित दूसरा दशक परियोजना द्वारा आवासीय कैम्प में पढ़ाए जा रहे बच्चों से 18 किलो अनाज लिया जा रहा है जबकि अमूमन बच्चें बीपीएल श्रेणी के परिवारों के है। वाकई यह गंभीर मुद्दा था। इस मामले की तह तक गए तो जानकारी मिली कि दूसरा दशक परियोजना भंवरगढ़ द्वारा आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है तथा क्षेत्र के अशिक्षित किशोर-किशोरियों को नामांकित कर शिक्षा दी जाती है। यहां प्रतिवर्ष अशिक्षित एवं ड्राप आउट 50 किशोर एवं 50 किशोरियों को शिक्षा दी जाती है। संस्था से जुड़े विजय मेहता ने बताया कि सालभर में 2 आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है जिन पर लगभग 7 लाख रुपए खर्च किए जाते है।

मेहता ने बताया कि कई बार आवासीय कैम्प का समापन हो जाने के बावजूद किशोर-किशोरियां संस्था में ही आगे की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर करते है। उनके परिजन भी चाहते है कि उनके बच्चे संस्था में पढ़ें। ऐसे में किशोर-किशोरियों को पढ़ाने के लिए संस्था द्वारा अगल से आवासीय कैम्प आयोजित किए जाते है। इन कैम्प में पढ़ने वालों के परिजनों से 18 किलो गेहूं लिए जाते है। विदित रहे कि संस्था में पढ़ने वाले अमूमन बच्चे-बच्ची बीपीएल परिवार के होते है। उनके परिवार को सरकार से 35 किलो गेहूं प्रतिमाह मिलता है। यह सोचनीय है कि परिजन अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार से मिलने वाले अनाज में से आधे से भी अधिक को संस्था में जमा करवा देते है। वहीं जोधपुर जिले के बाप ब्लाॅक में संचालित दूसरा दशक परियोजना में लोग 1000 रुपए मासिक देकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे है। अर्थात् वे अपने बच्चे-बच्चों को हर तकलीफ सहन करके भी पढ़ाना चाहते है।

उल्लेखनीय है कि राज्य में दूसरा दशक परियोजना नामक एक संगठन संचालित है। इस संगठन का राज्य के 7 जिलों में कार्य है। इसके द्वारा एक वर्ष में 2 बार आवासीय कैम्प आयोजित करवाए जाते है जिनमें करीब 900 किशोर-किशोरियों को शिक्षा दी जाती है।

बहरहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संदेश यात्रा के बहाने अपने शासन काल में लागू की गई योजनाओं व अधिनियमों से जनता को भुनाने के लिए राज्य भर की जनता के बीच जा रहे है। संदेश यात्रा से वो कांग्रेस की छवि में कितनी ग्रोथ ला पायेंगे ये तो भविष्य की गर्त में छुपा है लेकिन जगजाहिर तो यह कि - राज्य में शिक्षा की स्थिति बिगड़ती जा रही है। 

भीलवाड़ा जिले में सुराज संकल्प यात्रा को मिला भारी समर्थन


गाजों-बाजों के साथ जगह-जगह हुआ वसुंधरा राजे का भव्य स्वागत
मुस्लिम समुदाय के लोग जुड़े बीजेपी से

  • लखन सालवी


सुराज संकल्प यात्रा राज्यभर में जा रही है, जगह-जगह अपार जनसमूह द्वारा किए जा रहे स्वागत को देखकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रसन्नचित है। 22 मई को सुराज संकल्प यात्रा भीलवाड़ा जिले में पहुंची। कई जगहों पर यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। स्वागत सभाओं में ढ़ोल नगाड़ों के साथ वसुंधरा राजे की जय-जयकारे के नारों से वातावरण वसुंधरामय हो गया। जहां तेज धूप से प्रदेश जल रहा है वहीं भरी दोपहरी में अपार जन समूहों को पार्टी की झण्डियां हाथों में लिए देखकर राजे को सुराज का सपना साकार होता दिख रहा है।

तीन दिवसीय यात्रा ऊंचा गांव से जिले में प्रवेश हुई। यहां लोगों ने राजे का भव्य स्वागत किया तथा तलवार भेंट की गई। भाजपा जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडिया, पूर्वमंत्री कालूलाल गुर्जर व पूर्व मंत्री डाॅ. रतन लाल जाट, विधायक विट्ठलशंकर अवस्थी, शिवजीराम मीणा, राम लाल गुर्जर, कीर्ति कुमारी, दामोदर अग्रवाल, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष ललिता समदानी सहित अनेक नेताओं ने सुराज संकल्प यात्रा का स्वागत किया। यहां राजे ने 5 मिनिट का भाषण दिया और यात्रा आगे बढ़ गई। यहां से युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष प्रशांत मेवाड़ा के नेतृत्व में करीब 700 मोटर साइकिल सवार यात्रा के रथ व लवाजमें के साथ हो गए।

जहाजपुर, बीगोद व शाहपुरा में उमड़ा जन सैलाब

यात्रा के पहले दिन 22 मई को 3 बड़ी सभाएं की गई वहीं 40 जगहों पर पुष्प वर्षा से सुराज संकल्प यात्रा का स्वागत किया गया। पहली आम सभा जहाजपुर बसस्टेण्ड पर, दूसरी आम सभा बीगोद में तथा तीसरी आम सभा शाहपुरा के महलों की चैक में आयोजित की गई। इस बीच जगह-जगह पर यात्रा का स्वागत किया गया। वहीं वसुंधरा राजे के दीदार के लिए लोगों को घंटों तक कड़ी धूप में तपना पड़ा। आलम यह था कि स्वागत के लिए तपती धूप में घंटों से इंतजार कर रहे जन समूह सुराज संकल्प यात्रा के रथ में वसुंधरा राजे को देखकर खुश हो जाते। फूलों की वर्षा करते, वसुंधरा राजे का अभिवादन करते, राम-राम करते और यात्रा आग बढ़ जाती। 

सभाओं में राजे ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने दिल्ली में कोयला, जयपुर में जमीन, होटल व भीलवाड़ा में डालडा मिल घोटाल पर कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने गांवों की समस्याओं पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि गांवों में लोग पानी, बिजली, सड़कों जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है। 30 जिलों के 48 प्रतिशत जल स्त्रोतों का पानी पीने योग्य नहीं है। राज्य स्कूलों में अध्यापकों की कमी, अस्पतालों में डाॅक्टरों की कमी होनेे का हवाला देते हुए राज्य सरकार को कोसा। राजे ने असुरक्षित महिलाओं, बेरोजगार युवाओं व आत्महत्या करने को मजबूत किसानों के मुद्दे भी उठाएं। उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों एवं बालिकाओं के साथ हो रहे बलात्कार के मामलों में कहा कि मूकबधिर विद्यालयों में पढ़ रही बालिकाओं के साथ बलात्कार हो रहे है। चिंता प्रकट करते हुए राजे ने कहा कि सरकारी परिसरों में महिलाएं सुरक्षित नहीं है तो बाकी जगहों पर महिलाओं की क्या दशा होगी! राजे ने जहाजपुर में काॅलेज खोलने की मांग का समर्थन किया। वसुंधरा ने कहा कि विधानसभा नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया के खिलाफ साजिश रचकर उन्हें बंद करने के प्रयास किए जा रहे है लेकिन हम सरकार की साजिश के खिलाफ लडेंगे। 

बीगोद में आयोजित सभा में उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं की संख्या को देखते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों को अपना ही वोट मानती है। अल्पसंख्यक आज भी विकास की दृष्टि से पिछड़े हुए है। उन्होंने जनता से आव्हान् किया कि अगर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाया जाएगा तो इन सभी कमियों को दूर कर दिया जाएगा। शाहपुरा में राजे ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि राजस्थान में भी गुजरात की तर्ज पर ही विकास कार्य करवाए जायेंगे। 

इन्होंने किया सम्बोधित

बीगोद में हुई आम सभा को को सांसद वी.पी. सिंह, पूर्व सांसद मानवेन्द्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश मेघवाल, पूर्व मंत्री रतन लाल जाट, प्रदेश महामंत्री सतीश पूनिया, भाजपा प्रदेश प्रतिनिधि कीर्ति कुमारी, जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडिया, पूर्व जिलाध्यक्ष दामोदर अग्रवाल, जिला उपाध्यक्ष सत्यनारायण उपाध्याय, वरिष्ठ नेता एवं पूर्व जिला मंत्री हरीश चंद्र भट्ट, भाजयुमो प्रदेश मंत्री राजकुमार आंचलिया ने भी संबोधित किया। 
वहीं शाहपुरा में पालिका अध्यक्ष कन्हैया लाल धाकड़, नगर महामंत्री पंकज सुगंधी, मंडल महामंत्री शिवराज कुमावत, ओम प्रकाश व्यास आदि ने सम्बोधित किया। 


23 मई को सुराज संकल्प यात्रा शाहपुरा क्षेत्र के अरनिया घोड़ा, राज्यास, अरवड़, कोठियां से होती हुई गुलाबपुरा पहुंची। यहां से आगूंचा होते हुए बनेड़ा क्षेत्र में प्रवेश हुई। इस क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही पहले गांव डाबला में हजारों की ताताद में एकत्र लोगों में राजे का भव्य स्वागत किया। यहां राजे ने भव्य पाण्डाल के नीचे आयोजित सभा में उपस्थिति जनता को सम्बोधित किया। युवा कार्यकर्ताओं के जोश और भीड़ के पीछे छीपे चेहरे की मनःस्थिति को भांपते हुए राजे ने यहां 15 मिनिट का भाषण दिया। हर जगह देरी से पहुंचने के बावजूद भी आलम यह था कि लोग वसुंधरा राजे को सुनने के लिए बेताब दिखे। 

मुस्लिम मतदाताओं ने चांदी का मुकुट पहनाकर किया राजे का सम्मान
राजे ने कमालपुरा दरगाह में चढ़ाई चादर

सुराज संकल्प यात्रा को मुसलमान मतदाताओं का भारी संख्या में समर्थन मिला। जहाजपुर की अंजुमन कमेटी के सदर उस्मान दुर्रानी के नेतृत्व में मुस्लिम समाज के कई लोगों ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा की। वहीं बनेड़ा क्षेत्र के मुस्लिम वर्ग के विभिन्न समुदायों के लोग भाजपा से जुड़ गए। उल्लेखनीय है कि बनेड़ा तहसील क्षेत्र में मुस्लिम कायमखानी समुदाय की बाहुलता है। आम तौर पर देखा गया है कि राजनीति कार्यक्रमों में इस समुदाय की महिलाओं को दूर रखा गया लेकिन यात्रा के दौरान पहली बार परिवर्तन देखने को मिला। कायमखानी व अन्य मुस्लिम समुदायों की महिलाएं इस बार हजारों की संख्या में घरों से निकलकर बाहर आई और राजे का स्वागत सत्कार किया। कमालपुरा दरगाह पर पहुंचत कर वसुंधरा राजे ने दरगाह में चादर चढ़ाकर मन्नत मांगी। वहीं दरगाह के बाहर आयोजित सभा में आजिमूद्दीन शाह दरगाह कमेटी के संरक्षक आबिद हुसैन शेख, सदर सरदार मोहम्मद, मुंसी खान, हमीद हुसैन, पप्पू खान, रज्जाक मोहम्मद, महबूब भाई सहित मुस्लिम समुदाय की ओर से वसंुधरा राजे को चांदी का मुकुट पहनाया कर स्वागत किया। बाद में चांदी के मुकुट को राजे ने दरगाह में भेंट कर दिया। इस दौरान भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारी भी सभा में मौजूद रहे। 

मुस्लिम मतदाताओं को बीजेपी की सुराज संकल्प यात्रा का इस प्रकार स्वागत करना कांग्रेसी नेताओं के लिए चिंता का विषय बन गया है। वहीं राजनीतिक उठापटक पर नजरें जमाये रखने वाले लोगों ने बताया कि कांग्रेसी गुट के सीसीबी अध्यक्ष भंवरू खां के क्षेत्र के मुस्लिमानों का बीजेपी में घुस जाना राजनीतिक बदलाव की ओर इशारा कर रहा है। इस समुदाय के महिला-पुरूषों द्वारा सुराज संकल्प यात्रा व वसुंधरा राजे का स्वागत करना कहीं ना कहीं कांग्रेसी ताजदारों को पसीने छुड़ाने लगा है।

कमालपुरा दरगाह पर सभा के आयोजन करने व मुस्लिम समुदाय को बीजेपी से जोड़ने में गजराज सिंह राणावत की अह्म भूमिका बताई जा रही है। जानकारों के अनुसार पिछले 4 सालों में गजराज सिंह राणावत ने अपने व्यक्तिगत प्रभाव से कांग्रेस के वोट बैंक को बीजेपी के वोट बैंक में तब्दील किया है। गजराज सिंह राणावत के साथ युवा कार्यकर्ताओं की लम्बी फौज है वहीं राजमल खटीक जैसे युवा जनप्रतिधियों को समूह है जो जनता में अपनी गहरी पैठ बना चुके है। 

बनेड़ा में 9 स्वागत व 2 आम सभाओं के आयोजन: गजराज सिंह राणावत का बढ़ा कद

आखिर बनेड़ा क्षेत्र में 9 स्वागत सभाएं एवं 2 आम सभाएं क्यों जबकि शेड्यूल प्रोग्राम के अनुसार बनेड़ा क्षेत्र में एक भी आम सभा प्रस्तावित नहीं थी। कार्यक्रम के अनुसार डाबला, बदरखा, उपरेड़ा, बनेड़ा एवं कमालपुरा में स्वागत कार्यक्रम आयोजित किए जाने थे। लेकिन सुराज संकल्प यात्रा जब बनेड़ा तहसील क्षेत्र के डाबला, कोडलाई, भटेड़ा, झांतल, लाम्बा, भीमपुरा, मुसी में पहुंची तो वहां ढोल-नगाड़ों के साथ वसुंधरा राजे का भव्य स्वागत किया। कहीं फूल मालाएं भेंट की गई तो कहीं चांदी का मुकूट, कहीं फूलों के गुलदस्ते भेंट किए गए तो कहीं तलवारें। स्वागत कर रहे महिला-पुरूषों के जोश को देखकर राजे अपने आप को नहीं रोक पाई और सुराज संकल्प यात्रा के रथ से न केवल नीचे उतरी बल्कि जगह-जगह स्वागत सभाओं को संबोधित भी किया। राजे ने अकेले बनेड़ा तहसील क्षेत्र में 9 स्वागत सभाएं तथा 2 आम सभाओं को सम्बोधित किया। इन सभी सभाओं का आयोजन बनेड़ा क्षेत्र के चेहते गजराज सिंह राणावत के नेतृत्व में किया गया था। खास बात यह रही की राजे ने हर जगह पर रथ से नीचे उतर कर लोगों को अभिवादन स्वीकार किया और स्वागत सभा को सम्बोधित किया। 

माण्डल विधानसभा क्षेत्र के करेड़ा में हुई सभा, माण्डल चौराहें पर नहीं रूकी यात्रा

माण्डल विधानसभा क्षेत्र से कालू लाल गुर्जर ने चुनाव हारा था। राजे के मुख्यमंत्री कार्यकाल में कालू लाल गुर्जर पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास मंत्री थे। वे इस बार पुनः माण्डल से टिकीट के लिए दावेदारी जता रहे है। सुराज संकल्प यात्रा के दौरान उन्होंने अजमेर रोड़ पर माण्डल चौराहें पर सुराज संकल्प यात्रा एवं वसुंधरा राजे के स्वागत का कार्यक्रम रखा था लेकिन राजे इस कार्यक्रम में अधिक नहीं रूकी। यहां उन्हें तलवार भेंट कर चुनरी ओढ़ाई गई। राजे ने स्वागत सत्कार स्वीकार किया और हाथ हिलाकर भीलवाड़ा के आजाद चौक के लिए रवाना हो गई। एक पूर्व मंत्री द्वारा आयोजित किए गए स्वागत कार्यक्रम में राजे का नहीं रूकना चर्चा का विषय बना रहा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर की बजाए इस बार माण्डल विधानसभा क्षेत्र से गजराज सिंह राणावत को टिकीट दिया जा सकता है। इस बारे में तर्क दिए जा रहे है कि माण्डल क्षेत्र से सटे बनेड़ा क्षेत्र में वसुंधरा राजे ने गजराज सिंह राणावत के नेतृत्व में आयोजित 9 स्वागत एवं 2 आम सभाओं को सम्बोधित किया जबकि पूर्व मंत्री द्वारा आयोजित सभा को सम्बोधित ही नहीं किया इससे गजराज सिंह राणावत की वसुंधरा राजे से नजदीकियां जाहिर हो रही है। वहीं गजराज सिंह राणावत का कार्यक्षेत्र माण्डल विधानसभा क्षेत्र में होने के कारण कयास लगाए जा रहे है कि उन्हें टिकीट दिया जा सकता है। 


राजे रात्रि 9.45 बजे भीलवाड़ा के आजाद चौक में आयोजित आम सभा में पहुंची। वो यहां 3 घंटे देरी से पहुंची थी। राजे के स्वागत के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं की टोलियां सुखाडि़या सर्किल पर पहुंच गई यहां से विशाल रैली के रूप में यात्रा आजाद चौक पहुंची। अपने सम्बोधन में राज्य सरकार की नीतियों को कोसते हुए कहा कि राज्य सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां नहीं बनाई नतीजा मिले, फेक्ट्रियां गुजरात पलायन कर रही है। 


आजाद चौक की आम सभा को गुलाबचंद कटारिया ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने कांग्रेस सरकार व मंत्रियों को जमकर कोसा और कहा कि ईमानदारी की खातिर मुझे जेल भी जाना पड़ा तो जाउंगा। 

24 मई को यात्रा सहाड़ा-रायपुर विधानसभा क्षेत्र के गांवों में गई। क्षेत्र के गंगापुर कस्बे के समीप स्थित मेला ग्राउण्ड में विशाल सभा का आयोजन किया गया। यहां पूर्व मंत्री डाॅ. रतन लाल जाट के नेतृत्व में हजारों की संख्या में कार्यकर्ता एवं गांवों की जनता ने सभा में भाग लिया। राजे ने अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए गंगाबाई साहिबा के मंदिर में दर्शन कर आर्शीवाद लिया। यहां से यात्रा विभिन्न गांवों में जन सम्पर्क करते हुए माण्डल विधानसभा क्षेत्र के करेड़ा कस्बे में पहुंची। जहां सीनियर सैकेण्डरी स्कूल के ग्राउण्ड में विशाल सभा का आयोजन किया गया। पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर इस आयोजन के कर्ताधर्ता थे। यहां से यात्रा आसीन्द विधानसभा में पहुंची। जहां बदनोद में आमसभा आयोजित की गई। यहां हजारों की तादाद में लोग देर रात तक रूके रहे। सांसद वी.पी. सिंह व विधायक राम लाल गुर्जर सहित कार्यकर्ताओं ने राजे का भव्य स्वागत किया। यात्रा का तीसरा चरण यहीं पर समाप्त कर दिया गया। 

पते की बात 

यात्रा हो या सभा, इनके लिए भीड़ का होना अतिआवश्यक है। अगर किसी सभा को सम्बोधित करने वाले को सुनने के लिए पर्याप्त श्रोता नहीं हो तो सम्बोधनकर्ता के हौसलें पस्त हो जाते है वहीं श्रोताओं की संख्या अनगिनित हो तो सम्बोधनकर्ता का आत्मविश्वास बढ़ जाता है और वह न केवल खुश हो जाता है बल्कि अपने संदेश को प्रभावी तरीके से श्रोताओं तक पहुंचा सकता है अर्थात् कोई यात्रा हो या सभा, उनकी सफलता लोगों की संख्या पर निर्भर करती है। महंगाई के इस युग में लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वे यात्राओं व सभाओं में घंटों रूक सके। सुराज संकल्प यात्रा के दौरान जगहों-जगहों पर आयोजित स्वागत सभाओं व आम सभाओं में जन समूहों का पूरे समय तक उपस्थित रहना स्थानीय जनप्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं का जनता साथ जुड़ाव को दर्शाता है। राजनीतिक जानकारों की माने तो जनप्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं का यह जुड़ाव ही चुनावों में हार जीत तय करता है। सांसद वी.पी. सिंह, विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी, विधायक राम लाल गुर्जर व विधायक शिवजीराम मीणा ने तो भीड़ जुटाई ही साथ ही शाहपुरा के देवकीनन्दन सोनी, लक्ष्मी लाल सोनी हो या बनेड़ा के भाजपा के मण्डल अध्यक्ष गजराज सिंह राणावत, सहाड़ा के सुरेश चौधरी हो या आसीन्द धनराज गुर्जर, इन्होंने कड़ी मेहनत कर जनता को सुराज संकल्प यात्रा से जोड़ा। इनका जनता के साथ ऐसा जुड़ाव है कि राजे के कार्यक्रमों में निर्धारित समय से कई घंटों देरी से पहुंचने पर भी लोग स्वागत के लिए रूके रहे।

Monday, June 10, 2013

चुनौतियों के साथ पढ़ाई व ग्राम विकास

  • लखन सालवी

दहलीज को पार करना महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती थी खासकर गांवों की महिलाओं के लिए। 1993 में महिलाओं को आरक्षण दिया गया, उससे पहले तो समाज ने उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि से वंचित ही रखा। सरकार ने पिछले 2 दशक में महिला सशक्तीकरण को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाए है। महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत किए हुए अभी तीन वर्ष ही हुए है, लेकिन सत्ता का हस्तान्तरण वास्तविक रूप में दिखने लगा है। वंचित, दलित व आदिवासी महिलाओं को भी आगे आने का मौका मिला है। कभी हस्ताक्षर करते कांपते हुए हाथ अब फर्राट से हस्ताक्षर कर रहे है। उन्में आत्मविश्वास का जबरदस्त विकास हुआ है। कभी घूंघट में मूंह छिपाए हुए कोने में बैठी रहने वाली महिला पंच-सरपंचों से घूंघट का त्याग कर दिया है। सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न तरीकों से जानकारियां प्राप्त कर पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधि पुरूषों को पीछे छोड़ते हुए एक कदम आगे चल कर सर्वांगीण विकास कर रही है।

राजसमन्द जिले की देवगढ़ पंचायत समिति की विजयपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच रूकमणी देवी सालवी जब सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए घूंघट की आड़ में घर की चौखट लांग कर बाहर निकली तो उसे गुडि़या कहते हुए अट्हास किया गया। चुनाव के दौरान ही उस अट्हास को धत्ता बताते हुए रूकमणी देवी ने न केवल घूंघट की आड़ तो तोड़ा बल्कि चुप्पी भी तोड़ दी। चुनाव जीतने के बाद तो उसे ऐसे पंख लगे कि विजयपुरा ग्राम पंचायत में विकास कार्यों की कतार लगा दी। तमाम विकास योजनाओं का लाभ जनता को दिलवाया। ग्राम पंचायत में पारदर्शिता को इस कदर स्थापित किया कि उसकी ग्राम पंचायत राज्य ही नहीं वरन देश भर में पारदर्शिता के मामले में जानी जाने लगी है, आलम यह है कि विजयपुरा ग्राम पंचायत की पारदर्शिता को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है। कोई दो राय नहीं कि पंचायतों को स्वायत्तशासी बनाने में भी महिलाओं ने अह्म भूमिका अदा की है। 

सरपंच ही नहीं वरन वार्ड पंच बन कर भी महिलाएं विकास करवा रही है। प्रस्तुत है पढ़ाई को बीच में छोड़कर वार्ड पंच बनी आदिवासी समुदाय की नवली गरासियां की वार्ड पंचाई पर एक  रिपोर्ट - 

पंचायतीराज के चुनाव आए तो सिरोही जिले की आबू रोड़ पंचायत समिति की क्यारिया ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 8 के जागरूक लोग वार्ड पंच की उम्मीदवारी के लिए शिक्षित महिला ढूंढने लगे। दरअसल वार्ड पंच की सीट महिला आरक्षित थी। इस वार्ड में आदिवासी समुदाय के परिवारों की बाहुलता है। सभी परिवारों में थाह ली पर उम्र के तीन दशक पार चुकी कोई शिक्षित महिला नहीं मिली। तब लोगों की नजर नवली पर पड़ी। तब नवली 11वीं की पढ़ाई कर रही थी। लोगों ने उसके समक्ष वार्ड पंच का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा। नवली ने हामी भर ली, दूसरी तरफ उसके परिजन भी उसके निर्णय से खुश थे। 

वार्ड पंच प्रत्याशी तय करने में लोगों को इतनी मशक्कत करनी पड़ी! वार्ड संख्या 8 के लोगों ने बताया कि कई वार्ड पंच बन गए और सरपंच भी लेकिन हमारे वार्ड में अपेक्षित विकास नहीं हुआ था। उनका मानना है कि अशिक्षित व विकास योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कोई भी वार्ड पंच उनके वार्ड में विकास नहीं करवा सका। वे बताते है कि यहीं कारण था कि हमनें शिक्षित महिला को चुनाव लड़वाने की ठानी।

खैर . . . नवली के चुनाव लड़ने के फैसले से उन वार्डवासियों का आधा कार्य सम्पन्न हो गया। चुनाव का समय नजदीक आया तो वार्ड पंच का चुनाव लड़ने के लिए नवली गरासिया ने आवेदन प्रस्तुत किया, उसके साथ उसके वार्ड की 2 अन्य महिलाओं ने भी आवेदन किए लेकिन वार्ड के लोगों ने तो ठान ही लिया था कि शिक्षित महिला को ही चुनाव जिताना है। बस उन्होंने शिक्षित नवली गरासिया को चुनाव जीता कर ही दम लिया।

नवली चुनाव तो जीत गई लेकिन उसे ग्राम पंचायत, विकास कार्यों एवं पंचायतीराज की लेसमात्र भी जानकारी नहीं थी। ऐसे में वार्ड का विकास करवाना उसके लिए चुनौतीपूर्ण था। नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद ग्राम पंचायत में गई तो असहज महसूस किया। वो बताती है कि जानकारियों का न होना मन को कमजोर बनाता है। मैं ग्राम पंचायत में जाती जरूर थी लेकिन एक अन्य महिला वार्ड पंच के पास बैठ जाती थी। वो अशिक्षित वार्ड पंच थी और मैं शिक्षित वार्ड पंच लेकिन दोनों में ही जानकारियों का अभाव था और बेहद झिझक थी। 

पढ़ाई जारी रखना चाहती है
वार्ड पंच नवली गरासिया
नवली वार्ड पंच क्या बनी, उसकी पढ़ाई भी छूट गई। हालांकि वह पढ़ाई जारी रख सकती थी लेकिन अब पढ़ाई से ज्यादा उसे पंचायतीराज को जानने की इच्छा बढ़ गई थी, इसलिए वह ग्राम पंचायत, वार्ड, विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र आदी के ही चक्कर लगाती रहती। उसके नियमित निरीक्षण के कारण कुछ सुधार तो हुए लेकिन नवली अपने वार्ड की मूल समस्याओं का निपटारा करना चाहती थी। 

ग्राम पंचायत की बैठकों में पुरूष वार्ड पंचों की भांति उसने भी अपने वार्ड के मुद्दे उठाने आरम्भ कर दिए। उसने अपने वार्ड के विकास के लिए प्रस्ताव भी लिखवाए। वार्ड पंच नवली ने महिलाओं व बच्चों की समस्याओं के प्रति वह हमेशा संवदेनशील रही और लगातार प्रयास कर उनकी समस्याओं के समाधान भी करवाए। 

कार्यकाल का पहला साल तो ऐसे ही बीत गया। नवली ने एक साल की समीक्षा की तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई। एक साल बीत गया था लेकिन नवली अपने वार्ड के लिए कुछ विशेष नहीं कर पाई थी। इसी समय उसकी मुलाकात हुई क्षेत्र में कार्य कर रहे एक सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं से। यह सामाजिक संगठन आमजन में जागृति लाने, सरकार की विकास योजनाओं की जानकारियां जन-जन तक पहुंचाने एवं वंचितों को उपर उठाने के लिए कार्य कर रहा है। जनचेतना संस्था नामक इस संगठन द्वारा समय-समय पर विभिन्न मुद्दों व विषयों को लेकर कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती है। नवली गरासिया व कई महिलाओं ने इस संगठन से जुड़कर से जानकारियां प्राप्त की। वह जानकार हुई और अपने अधिकारों को उपयोग करते हुए ग्राम विकास करवा रही है। 

वार्ड पंच ने वार्ड में जाकर महिलाओं के साथ बैठक की तो पता चला कि महानरेगा के तहत वार्ड संख्या 8 में कोई काम नहीं करवाया गया था और ना ही उसके वार्ड की महिलाओं ने महानरेगा में कार्य किया था। उसने कार्यशालाओं में मिली जानकारियों का उपयोग करना आरम्भ किया और ग्राम सभा में रेड़वाकलां में नाड़ी निर्माण करवाने का प्रस्ताव लिखवाया। बाद में नाड़ी निर्माण की स्वीकृति आ गई और वार्ड की 150 महिलाओं को रोजगार मिला। 

महिला मजदूरों का कहना  है कि पूर्व में अन्य वार्डों में  ही महानरेगा के काम हुए थे। दूर होने के कारण वार्ड संख्या 8 की महिलाओं ने महानरेगा के लिए आवेदन ही नहीं किए। उन्होंने बताया कि अगर हमारे वार्ड क्षेत्र में महानरेगा का कार्य स्वीकृत नहीं होता तो हम शायद ही कभी महानरेगा में काम करने जा पाती।

महिलाओं के नाम पर पट्टे बनवाने, इंदिरा आवास योजना की किस्त के रूपये महिलाओं के नाम पर जारी करवाने एवं हैण्डपम्प लगवाने के कार्यों से नवली गरासिया वार्ड संख्या 8 ही नहीं अपितु पूरे ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं की चहेती बन गई।  

महिला जनप्रतिनिधियों के 3 साल पूर्ण होने पर उनकी उपलब्धियों
एवं चुनौतियों पर द हंगर प्रोजेक्ट जयपुर द्वारा जोधपुर में
आयोजित एक दिवसीय सेमीनार में अपने अनुभव शेयर करती
वार्ड पंच नवली गरासिया
नवली ने अपने समुदाय की महिलाओं की दयनीय दशा को बदलने की दिशा में महत्वूर्ण कार्य किए है। वह बताती है कि मकानों के पट्टे पुरूषों के नाम पर जारी किए जाते थे। इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण की राशि भी परिवार के मुखिया पुरूष के नाम पर ही जारी की जाती थी। अधिकतर मामलों में पुरूष इंदिरा आवास की किस्त के रूपयों को अन्य कार्यों में खर्च कर देते है, ऐसे में ग्राम पंचायत के दबाव के कारण घटिया सामग्री का उपयोग कर मकान बना लिया जाता है। कई ऐसे मामले ऐसे मामले भी आते है कि पत्नि के जीवित होने पर भी पति दूसरी पत्नि ले आते है। पहली पत्नि को जबरन घर से निकाल दिया जाता है। ऐसे में मजबूरीवश उस महिला या तो अपने मायके जाना पड़ता है या अन्य पुरूष से शादी करनी पड़ती है और ऐसा उसके साथ कई बार हो जाता है। महिलाओं को सम्मान मिले और उनकी सुरक्षा हो, इस बारे में नवली ने गहराई से सोचा और ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखा कि मकानों के पट्टे महिलाओं के नाम बनाए जावे और इंदिरा आवास योजना की राशि भी महिला के नाम ही जारी की जाए ताकि पुरूष द्वारा महिला को घर से बाहर निकाल देने और दूसरी पत्नि ले आने पर पहली पत्नि अधिकार एवं सम्मान सहित अपने घर में रह सके। हालांकि ग्राम पंचायत के पुरूष वार्ड पंचों ने उसके प्रस्तावों का विरोध किया लेकिन नवली ने अपने प्रस्ताव लिखवाकर ही दम लिया। नवली का मानना है कि ऐसा करने से इस प्रकार के मामलों में कमी आएगी।

महिला सशक्तीकरण के लिए तो नवली गरासिया ने बहुत कार्य किए। उसने सिर्फ ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं को ही उनके अधिकार दिलवाने में मदद नहीं कि बल्कि महिला वार्ड पंचों को भी उनके अधिकार दिलवाने के लिए पैरवी की। ग्राम पंचायत में कुल 11 वार्ड है। 6 महिला वार्ड पंच है। नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद जब वह ग्राम सभा में गई तो देखा कि महिला वार्ड पंच तो एक तरफ घूंघट ताने बैठी रहती थी और वार्ड पंच पति ग्राम सभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे थे। यहां तक कि सरपंच संतोष देवी गरासिया की बजाए सरपंच पति ने ग्राम सभा की बागडोर अपने हाथ संभाल रखी थी। एक साल तो ऐसे ही चलता रहा लेकिन सामाजिक संगठन से जुड़कर जागरूक हुई तो नवली ने ग्राम सभा में सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों का विरोध करना आरम्भ कर दिया, नतीजा . . . सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों को ग्राम सभा से अपना हस्तक्षेप रोकना पड़ा। 

वार्ड की महिलाओं ने बताया कि ‘‘हमें पानी की समस्या से जुझना पड़ रहा था। हमें दूर-दराज से पानी लाना पड़ रहा था। हमने कई बार इस समस्या से वार्ड पंच (नवली) को अवगत कराया। नवली ने कैसे किया यह तो हमें नहीं पता लेकिन उसने हमारे वार्ड में हैण्डपम्प खुदवा दिया। अब हमारे पानी की समस्या नहीं है। नवली ने बताया कि उसने हैण्डपम्प लगवाने के लिए ग्राम पंचायत की बैठकों में प्रस्ताव लिखवाए, साथ ही पंचायत समिति के अधिकारी को भी बताया। वार्ड में कई महिनों से खराब पड़े ट्यूबवेल को भी ठीक कराया, जिससे पेयजलापूर्ति की समस्या से वार्डवासियों को निदान मिल गया। आजकल वाटरलेवल के नीचे चले जाने से पुनः पेयजल की समस्या आन खड़ी हुई है। उसने बताया कि मैंनें ग्राम पंचायत में वार्डवासियों को पेयजल मुहैया कराने के लिए टेंकरों द्वारा जलापूर्ति करवाने का प्रस्ताव लिखवाया है। 

नवली बताती है कि वार्ड में जाने का कच्चा रास्ता है, जो इतना उबड़ खाबड है कि सरकारी अधिकारी तो वार्ड में आने का नाम ही नहीं लेते है। सरकार की चिकित्सा सेवा मुहैया कराने वाली 108 एम्बुलेंस भी वार्ड में नहीं आ पाती है। मैं ग्रेवल सड़क बनवाकर इस गंभीर समस्या से वार्डवासियों को निजात दिलवाना चाहती हूं। ग्राम पंचायत में सड़क निर्माण के लिए प्रस्ताव लिखवाया है लेकिन जिला परिषद से अभी तक स्वीकृति नहीं आई है। 

ग्राम पंचायत में करवाए गए विकास कार्यों की
जानकारी देते हुए वार्ड पंच नवली गरासिया
शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझने वाली नवली ने सबसे पहले तो आदिवासी लड़के-लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए घर-घर गई, महिलाओं को समझाया, पुरूषों को समझाया और लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में भागीदारी निभाई। जब स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ा तो प्राथमिक विद्यालय को क्रमोन्नत करवाकर उच्च प्राथमिक विद्यालय करवाया ताकि वार्ड व गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़े। 

बच्चे विद्यालय तो जाने लगे लेकिन बारिस के दिनों में बच्चों के लिए पानी का एक नाला रोड़ा बन गया। वार्ड के बच्चे बारिस के दिनों में स्कूल नहीं जा पा रहे थे। दरअसल वार्ड और स्कूल के बीच एक पानी का नाला है जिसमें बारिस का पानी तेज बहाव से बहता है। नवली ने नाले पर पक्की पुलिया बनवाने का प्रस्ताव लिखवाया। उसने बताया कि पुलिया का निर्माण हो चुका है और अब बच्चों को स्कूल जाने में कोई परेशानी नहीं है।

छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए भी सफल प्रयास किए गए। राज्य सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग के छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए मां-बाड़ी केंद्र संचालित किए जाते है। इन केंद्रों में बच्चों को न केवल शिक्षा प्रदान की जाती है बल्कि उन्हें पोषण भी दिया जाता है। बच्चों को पाठ्य सामग्री से लेकर, कपड़े, स्वेटर, टाई, बेल्ट, जूते, मौज तथा सुबह का नाश्ता व मध्याहन भोजन निःशुल्क दिया जाता है। यहीं नहीं बच्चों को पढ़ाने एवं नाश्ता व मध्याहन भोजन बनाने के लिए भी आदिवासी वर्ग के ही महिला, पुरूष को नियुक्त किया जाता है। जानकारी के अनुसार जिस बस्ती या वार्ड में 30 छोटे बच्चों का नामांकन हो जाता है वहीं  मां-बाड़ी केंद्र खोला जाता सकता है। वार्ड पंच नवली गरासिया ने घर-घर जाकर सर्वे किया। जिसमें पाया गया कि वार्ड संख्या 8 में छोटे बच्चों की संख्या 30 से अधिक थी जबकि वहां मां-बाड़ी केंद्र हीं चल रहा था। तब उसने प्रशासन से मां-बाड़ी खोलने की पैरवी की। उसके अथक प्रयासों से वार्ड में बंद पड़े मां-बाड़ी केंद्र को शुरू किया गया। उसके इस प्रयास से न केवल बच्चें शिक्षा से जुड़े पाए अपितु आदिवासी समुदाय के 1 युवा व 2 महिलाओं को रोजगार भी मिला। 

यहीं नहीं नवली ने महिलाओं को भी शिक्षित किया। उसने अपने घर पर चिमनी के उजाले में महिलाओं का पढ़ाना आरम्भ किया और कई महिलाओं का साक्षर बना दिया। नवली स्नातक की डिग्री प्राप्त करना चाहती है। सरपंच बनने के बाद एक साल तो उसने अपनी पढ़ाई ड्राप कर दी लेकिन उसके बाद उसने ओपन स्टेट से 12वीं की पढ़ाई की है। वो पढ़ती भी है और वार्ड पंच का दायित्व निभाती है। 

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की आजादी एवं उनका प्रतिनिधित्व पुरूषों को रास नहीं आ रहा है। इसके कई उदाहरण देखने को मिले है। नवली की बढ़ती प्रसिद्धी से भी कई लोगों को ईष्र्या है। एक सिरफिरे ने तो नवली के मोबाइल फोन पर कॉल किया और अश्लील बातें कही, यही नहीं पुलिस में शिकायत करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी। नवली भी कहां डरने वाली थी वह उसके खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज करवाने गई। लेकिन थाने वालों ने एफआईआर दर्ज नहीं की। तब वह पुलिस अधीक्षक के पास गई और थानेदार व अश्लील कॉल करने वाले अंजान व्यक्ति की शिकायत की। पुलिस अधीक्षक के आदेशों के बाद थाने में एफआईआर दर्ज हुई और अश्लील पढ़ाई जारी रखना चाहती है वार्ड पंच नवली गरासिया रने वाले को गिरफ्तार किया गया साथ ही वार्ड पंच नवली के जानमाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी ली। 

आदिवासी सरपंच सरमी देवी गरासिया हो या वार्ड नवली बाई गरासिया, सरपंच यशोदा सहरिया हो या वार्ड पंच मांगी देवी सहरिया या हो दलित रूकमणी देवी सालवी हो या हो गीता देवी रेगर इन के सहित मनप्रीत कौर, राखी पालीवाल, वर्धनी पुरोहित व कमलेश मेहता जैसी राजस्थान की सैकड़ों महिला पंच-सरपंचों के हौसलों व उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखकर लगता है कि 73वें संविधान संशोधन की भावना पूरी हो रही है। पहली पीढ़ी की महिला जनप्रतिनिधि घूंघट में थी आज एक भी घूंघट में नहीं है अर्थात् कोई माने या ना माने तृणमूल स्तर पर बदलाव आ ही गए है। 

सपनों को साकार करने में जुटी है एक उपसरपंच

  • लखन सालवी 

 गांव में लोगों के साथ बैठक करते हुए 
राखी पालीवाल, राजस्थान के राजसमन्द जिले की उपली ओड़ण ग्राम पंचायत की उपसरपंच। जिसने बचपन से ही ग्राम विकास के सपने देखे, उपसरपंच रह चुके अपने पिता से प्रेरणा लेकर वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और निर्विरोध उपसरपंच बनकर अपने गांव की तस्वीर को बदलने में जुट गई।

राखी एक आम लड़की थी, स्कूल में पढ़ती थी, गांव में घूमती थी। खेलने कूदने की उम्र में गांव की समस्याओं पर चिंतित होती थी और उसी चिंता ने उसे ग्राम विकास के सपने देखने पर मजबूर कर दिया। आज उसने न केवल ग्राम विकास में अह्म भूमिका निभाई है बल्कि गांव के महिला, पुरूषों व युवाओं को जागरूक करने का कार्य भी किया है।

जागरूक युवाओं व संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ
राखी बताती है कि ‘‘मेरे पिताजी पहले ही ग्राम पंचायत के उपसरपंच रह चुके थे। मैं अपने पिताजी को कहती थी कि मैं पढ़ लिखकर वकील बनूंगी तो मेरे पिताजी कहते थे कि पढ़ लिखकर सरपंच बनना है। तब से ही मैं सरपंच बनने की इच्छुक थी। 2005 में सरपंच बनने की तीव्र इच्छा जगी। मगर पुरूष आरक्षित सीट होने के कारण मैं चुनाव नहीं लड़ पाई। ऐसे में पिताजी की राय से वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और चुनाव जीत कर निर्विरोध उपसरपंच बनी।

उपसरपंच बनते ही सपना देखा कि गांव की दशा बिगड़ी हुई है। कच्ची सड़कों को पक्का बनाना है, बिजली की व्यवस्था करनी है, महिलाओं के लिए शौचालय का निर्माण करवाना है, स्नानघर बनवाना है और गांव को साफ सुथरा बनाना है। उसने गांव की दशा को  सुधारने का सपना देखा। विकास के प्रति दृढ़ संकल्पित थी लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पंचायत में जाकर करना क्या है? उपसरपंच के क्या दायित्व होते है ? शुरू में तो ग्राम पंचायत में जाने से ही झिझक हो रही थी। अभी तो राखी के हौसलों ने उड़ान भरना आरम्भ ही किया था, झिझक को तोड़ा और ग्राम पंचायत में गई। शुरू-शुरू में ग्राम पंचायत के कार्यों को समझने की कोशिश की। ग्राम पंचायत के कामकाज को समझने में भारी दिक्कत आई, सबसे बड़ी समस्या थी कि कामकाज के बारे में बताने वाला कोई नहीं था। हालांकि वो ग्राम सचिव, रोजगार सहायक से जानकारी लेती लेकिन अभी उसे बहुत जानकारियां लेनी थी। इसी दरमियां ग्राम पंचायत में ग्राम सभा के दौरान एक गैर सरकारी संगठन से लोगों से उसकी मुलाकात हो गई। बस यहीं से उसके हौसलें की उड़ान को चार पंख लग गए। गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर राखी ने पंचायतराज की हरेक जानकारी को प्राप्त कर लिया और लग गई ग्राम विकास करने में . . .।

गांव की एक समस्या तो उसे बचपन से परेशान किए हुए थी, वो थी महिलाओं के लिए शौचालय नहीं होना। महिलाओं का खूले में शौच जाना उसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं था। वह अपनी गली मोहल्ले की महिलाओं को तो टोंकती भी रहती थी लेकिन टोंक देना इसका समाधान नहीं था। महिलाएं खुले में शौच नहीं करे इसके लिए वह सुबह 5 बजे ही अपनी मोटर बाइक पर गांव के चक्कर लगाती, कोई भी महिला खुले में शौच करती हुई पाई जाती तो वह उसे टोंकती। लेकिन धीरे-धीरे उसे महिलाओं की इस समस्या की जड़ पकड़ में आई। आखिर उन महिलाओं के पास उपाय ही क्या था। जब राखी ने महिलाओं को टोंकना बंद किया और शौचालय बनवाने की मुहिम में लग गई। ग्राम पंचायत की बैठक हो या पंचायत समिति की बैठक या गैर सरकारी संगठनों की बैठक सभी में राखी ने अपने गांव की इस समस्या से अवगत कराया।

राखी बताती है कि सरपंच जुगलकिशोर माली एवं मैंने अपनी ग्राम पंचायत की दयनीय दशा को सुधारने के लिए कई जतन किए। उसने बताया कि हमारे प्रयासों से मिराज गु्रप नाम की एक संस्था ने मेरी ग्राम पंचायत को गोद ले लिया और अब वो संस्था हमारे गांव को निर्मल ग्राम पंचायत बनाने के लिए कार्य कर रही है। संस्था के द्वारा ग्राम पंचायत क्षेत्र में पेड़ लगाए गए है, साफ-सफाई भी करवाई जाती है तथा कचरा पात्र लगाए गए है ताकि लोग कचरा खूले में फैंकने की बजाए कचना पात्रों में डाल सके। राखी बताती है शौचालय के निर्माण के लिए जगह तय नहीं हो पा रही है, जिस प्रस्तावित जगह पर शौचालय बनाया जाना है उसके पास मंदिर होने के कारण अन्य जगह तलाशी जा रही है। उसका कहना है कि वह इस सपने को पूरा जरूर करेगी।

फेसबुक के द्वारा उठाती है गांव के मुद्दों को

सूचना क्रांति के इस युग में इंटरनेट का बड़ा महत्त्व है। उसने इंटरनेट की महत्ता को अच्छे से समझा है। इंटरनेट के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त की है। आजकल फेसबुक पर ग्रामीणों की शिकायतों को शेयर करती है। उसने ग्राम पंचायत क्षेत्र में सूचना की है कि लोग अपनी शिकायतें उसके फेसबुक पेज पर डाल सकते है। राखी के फेसबुक पेज से जिला कलक्टर एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी जुड़े हुए है। राखी ग्रामीणों से प्राप्त शिकायतों एवं समस्याओं को जिला कलक्टर एवं अन्य अधिकारियों को इंटरनेट के माध्यम से भेजती है और
स्कूली बालिकाओं के साथ 
अपने फेसबुक अकाउण्ट पर शेयर कर जगजाहिर भी करती है। फेसबुक के माध्यम से उसने गांव की कई समस्याओं एवं लोगों की शिकायतों का निवारण करवाया है। यहीं नहीं वह अपने घर पर महिलाओं को निःशुल्क कम्प्यूटर भी सीखाती है। 

महिला सशक्तीकरण के लिए सतत् प्रयास 

महिलाओं को सख्त करने के लिए राखी ने एक कदम बढ़ाकर कार्य किया है। महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने व उन्हें जागरूक करने के महत्त्वपूर्ण कार्य किए। बालिका शिक्षा पर विशेष कार्य किए है, बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने के लिए वह घर-घर गई बालिकाओं के परिजनों को समझाया और बेटियों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वह आए दिन स्कूलों में जाती है और बालिकाओं से चर्चा करती है उनका मनोबल बढ़ाती है। राखी बताती है कि अब तो गांव में स्कूल है, मैं जब पढ़ती थी तो रोजाना 5 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में जाना पड़ता था। 

 बेटी बचाओं आन्दोलन के तहत
निकाली गई रैली में भाग लेते हुए
 
उपसरपंच बेटी बचाओं आंदोलन से भी जुड़ी हुई है, कन्या भ्रूण हत्या का जमकर विरोध करती है। साथ ही गांव में इस मुद्दें पर निगरानी भी रखती है। वह आए दिन आंगनबाड़ी केंद्रों का निरीक्षण करती है। उपसरपंच की सक्रियता को देखकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं भी सक्रिय हो गई है। 

राखी का मानना है कि आंगनबाड़ी केंद्र पर निरीक्षण करने से गर्भवती महिलाओं की जानकारी मिल जाती है। वह केंद्र पर गर्भवती महिलाओं, बच्चों के नामांकन व बच्चों की उपस्थिति, पोषाहार तथा अन्य व्यवस्थाओं के साथ गर्भवती महिलाओं व उन्हें लगाए जाने वाले टीकों की जानकारी भी लेती है। पेंशन योजनाओं का लाभ दिलवाने हो या पालनहार योजना का, इनके लिए आवेदन करने हेतु उसने गांव की महिलाओं को जागरूक किया और उनके आवेदन करवाए।

महिलाओं के साथ समूह बैठक करती है और उन्हें जागरूकता के पाठ पढ़ाती है। वह अपने घर पर महिलाओं को कम्प्यूटर सीखाती है। साथ ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, हस्तकला आदि सीखाती है। उसकी मेहनत का ही परिणाम है कि उसके उपसरपंच बनने के बाद ग्राम सभा में गांव की महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। राखी बताती है कि उपसरपंच बनने के बाद जब ग्राम सभाओं में गई तो वहां महिलाओं की संख्या नगण्य थी। यहां तक की महिला वार्ड पंच भी ग्राम सभा में नहीं आती थी। पुरूषों का ही जमावड़ा रहता था, ऐसी परिस्थिति में मैं महिलाओं से मिली और उन्हें ग्राम सभा में आने के लिए तैयार किया। प्रयास कर महिला वार्ड पंचों को ग्राम सभाओं से जोड़ा।

उपसरपंच वकील बनने का सपना भी संजोये हुए है। उपसरपंच बनने के बाद भी अपनी पढ़ाई को निरन्तर जारी रखा। बी.ए. करने के बाद इस वर्ष एल.एल.बी. प्रथम वर्ष की परीक्षा भी दे चुकी है। सपने देखना और उन्हें पूरा करने की आदी हो चुकी राखी पालीवाल निश्चित ही वकालत करने का सपना भी पूरा करेंगी।

आंगनबाड़ी केंद्र में लेपटाप पर इन्टरनेट के द्वारा
महिला एवं बाल विकास की जानकारी देते हुए
उपसरपंच राखी का कहना है कि अगर गैर सरकारी संगठन (आस्था संस्था) के कार्यकर्ताओं का साथ ना मिला होता तो उसे अपने सपने पूरे करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता। वो बताती है कि संस्था द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर ही मैंनें पंचायतीराज के बारे में तथा सरकारी योजनाओं, उपसरपंच के दायित्वों एवं कम्प्युनिटी मोबिलाईजेशन को समझा, इसी समझ के कारण में ग्राम विकास के कार्य कर पा रही हूं। उसने बताया कि राज्य सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने से भी जानकारियां बढ़ी। राखी ने बताया कि आस्था संस्था से जुड़ने के बाद वह कई कार्यक्रमों में गई जहां विभिन्न जिलों से आई महिला जनप्रतिनिधियों से मिलने और उनसे सीखने का मौका मिला। संस्था संगठनों के ऐसे कार्यक्रमों की सराहना करती हुई कहती है कि राज्य में कई महिला जनप्रतिनिधि पंचायतीराज में अव्वल कार्य कर रही है, जो किसी न किसी संस्था से जुड़ कर जागरूक हुई है।

हाल ही में वोडाफोन फाउण्डेशन ने अपने रेड रिक्सा रिवोल्यूशन कार्यक्रम के तहत राखी पालीवाल का इन्टरव्यू देश-दूनिया तक पहुंचाया है। वहीं www.nrisamay.com ने भी राखी के इन्टरव्यू का अपनी वेबसाइट पर प्रसारण किया। हालात यह है कि पंचायतीराज में अपने गांव का विकास करवाने के कारण मीडिया में सुर्खियों रहने वाली व अपने सपनों को साकार करने में लगी राखी पालीवाल के जज्बे को राजसमन्द जिले के ही नहीं वरन देश, विदेश के लोग भी सलाम कर रहे है।