Sunday, July 15, 2012

सम्मिलित रूप से करें सुरक्षा सामलात की - बारेठ


  • लखन सालवी
भीलवाड़ा. गांवों में सामलाती भूमियों की सुरक्षा व उनका विकास साझे प्रयासों से ही संभव है। गांवों में कुंआ, तालाब, बावडी, जमीनें, मंदिर सभी सामलाती होते है और इन्हें पवित्र माना जाता है लेकिन समय के साथ-साथ सामुदायिकता समाप्त होती जा रही है। ‘एक सब के लिए, सब एक के लिए’ जैसे नारे अब सुनाई नही पड़ रहे है। उन्होंने कहा कि सामुलात के बीच बढ़ रही दूरी को पाटने के लिए मीडिया अह्म भूमिका निभा सकता है और वो सामुदायिकता को बढ़ावा दे सकता है। उपरोक्त विचार व्यक्त किए बीबीसी हिन्दी के वरिष्ठ संवाददाता नारायण बारेठ ने।
वे फाउन्डेशन फॅार इकोलॅाजिकल सिक्योरिटी द्वारा भीलवाड़ा के एक होटल में सामलात संसाधनों के प्रति जागृति विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला के आरंभ में जिले के थाणा गांव की सामलात भूमि के लिए किए गए संघर्ष एवं वहां की सामलात भूमि पर किए गए विकास कार्यों पर बनी डॅाक्यूमेंट्री फिल्म को प्रदर्शित किया गया।
एफईएस के रीजनल टीम लीडर बी.के. शर्मा ने मीडिया कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में बताया कि सरकार ने सामलाती भूमियों को बचाने एवं उनके सुरक्षा तथा विकास के लिए नीतियां बनाई है। नीतियों के अनुरूप  एफईएस द्वारा राज्य के 7 जिलों में कार्य किया जा रहा है। सामलाती भूमि में लगातार हो रही कमी पर चिंता प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी भूमियों में पिछले 20 वर्षों में 20 प्रतिशत की कमी आई है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो सामलाती भूमि एक दिन गरीबों के हाथ से निकल जाएगी। उनका कहना था कि सामलाती जमीनों से हर ग्रामीण को लाभ मिलता है और सबसे गरीब व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। उनका परिवार ही सामलाती जमीन पर होने वाली उपज पर निर्भर करता है।
हिन्दुस्तान टाइम्स जयपुर के पूर्व सम्पादक व विकासशील समाज अध्ययनपीठ के सीनियर फैलो वरिष्ठ पत्रकार विपुल मुद्गल ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया के सकारात्मक एवं सुझावात्मक लेखन से बड़े बदलाव आ सकते है। महानरेगा के तहत विभिन्न प्रकार के कार्य करवाने के सुझाव दिए जा सकते हैै। हस्तशिल्प जैसे कार्य महानरेगा के तहत करवाए जा सकते है। उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायते अपने अधिकारों एवं संसाधनों का उपयोग कर ग्राम पंचायतों को सशक्त बना सकती है। उन्होंने ग्रामीण विकास की योजनाएं ग्राम सभा के जरिये बनाये जाने पर भी जोर दिया।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में सामलात संसाधनों को बचाने में मीडिया की भूमिका विषय पर पैनल चर्चा आयोजित की गई। इस चर्चा में वैकल्पिक मीडिया की ओर से भंवर मेघवंशी, विविधा फीचर्स के सम्पादक बाबू लाल नागा, राजस्थान पत्रिका के उप संपादक निलेश कांठेड तथा दैनिक भास्कर के नवीन जोशी ने अपने विचार रखे। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी ने की।
पत्रिका के निलेश कांठेड ने कहा कि मीडिया सक्रियता से कार्य कर रहा है। उन्होंने प्रशासन की सक्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि मीडिया द्वारा उठाए जाने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रशासन कार्यवाही क्यों नही करता है ? दैनिक भास्कर के संवाद प्रतिनिधि नवीन जोशी ने भ्रष्टाचार के आरोपों में लिप्त सरपंचों के विरूद्ध प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नही करने के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि प्रशासन वैध मामलों में भी कार्यवाही नही करता है। उन्होंने बताया कि गंगापुर कस्बे के तालाब की जमीन (सामलाती भूमि) में कॅालोनी बन गई है, थाना भी तालाब की जमीन में बना दिया है। खबर प्रकाशित होने के बावजूद भी अभी तक प्रशासन ने कोई ठोस कार्यवाही आरंभ नहीं की है।
सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी ने कहा कि मीडिया की साख बरकरार है, प्रशासन कार्यवाही करता भी है। किसी मुद्दे पर प्रशासन कार्यवाही नही करता है तो पत्रकारों को हौंसला नही खोना चाहिए। कई मुद्दों पर कार्यवाही नही हो पाती है लेकिन पत्रकारों को अपना दायित्व निभाना चाहिए। उन्होंने सभी को सुझाव दिया कि सामलात भूमि की सुरक्षा व उसके विकास में सामलाती प्रयास करें।
वैकल्पिक मीडिया की ओर से खबरकोश डॅाटकॅाम के सम्पादक भंवर मेघवंशी ने कहा कि गांवों में सामलाती भूमियों की सुरक्षा की हालात बेहद खराब है। गांवों में सामलाती जमीनों को दबंगों ने अपने कब्जे में कर रखा है। उन्होंने सुझाव दिया एफईएस संस्था को पत्रकारों को या अन्य सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवाओं का चयन कर उन्हें सामलात विषय पर मीडिया फैलोशिप देनी चाहिए ताकि वो सामलात भूमियों की सुरक्षा एवं उन पर हुए विकास पर लेखन कार्य कर सके। उनका लेखन देशभर में पहुंचेगा और उससे लोग जागरूक होकर इस दिशा में सोचना एवं कार्य करना आरंभ करेंगे।
कार्यक्रम का संचालन एफईएस के शांतनु सिंहा रॅाय ने किया। कार्यशाला को जोधपुर से आए राजस्थान उच्च न्यायालय के एडवोकेट एवं सामलाती भूमि के संदर्भ में कई पीआईएल दर्ज करवा चुके संजीव पुरोहित ने भी संबोधित किया। इस मौके पर जिले के विभिन्न हिस्सों से आये मीडियाकर्मी, स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा अधिवक्ता व मीडिया स्टूडेन्ट्स भी मौजूद थे।

आजाद कब आजाद होंगे ?


  • लखन सालवी
यहां सूर्योदय के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति के आगे पर्दा ऐसे डलता है जैसे किसी रंगमंच पर कार्यक्रम के समाप्त होते ही पर्दा डला हो। भोर के साथ ही आजाद की मूर्ति पर्दो के पीछे ढ़क दी जाती है और देर रात वापस पर्दे हटा लिए जाते है, जब जगत सो चुका होता है।
आजाद चौक . . . भीलवाड़ा शहर के मध्य सार्वजनिक स्थान है। यहां चारदीवारी युक्त एक मैदान है और एक सभा भवन भी है। आए दिन इस मैदान में भजन संध्या, धार्मिक कथाओं, मेलों व सभाओं का आयोजन होता रहता है। इसके मुख्यद्वार पर चंद्रशेखर आजाद की मूर्ति लगी हुई है, लेकिन आजकल यहां कुछ व्यापारियों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है। अतिक्रमण इस कदर किया है कि आजाद की मूर्ति तो दिखाई ही नहीं देती है। सुबह होते ही मूर्ति के आगे कपड़े की अस्थाई दूकानें बना दी जाती है उन दूकानों में बैग, जूते इत्यादि का व्यापार किया जाता है और अंधेरा होने के साथ ही कपड़े की दूकानें समेट ली जाती है। हालात ऐसे है कि सूर्योदय के साथ ही किसी रंगमंच पर कार्यक्रम के पूरे हो जाने पर डलने वाले पर्दे की तरह आजाद की मूर्ति के आगे पर्दा डल जाता है। जब सारा शहर सो चुका होता है तब उसके आगे से पर्दा हटता है। उस समय मूर्ति को देखने वाला कोई नही होता है।
स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के अवसर पर देशप्रेम दिखाने वालों को भी आजाद की फिक्र नहीं है। अतिक्रमणकारियों के हौसेलें इतने बुलन्द है कि अतिक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। एक अस्थाई दूकान वाले ने कुछ माह पूर्व तक करीबन 8 फीट जगह पर अतिक्रमण किया था अब उसने करीब 40 फीट 25 फीट लम्बी व 8 फीट चौड़ी अस्थाई दूकान बना ली है। इस दूकान में चार काउन्टर है। एक पर बैग, दूसरे पर जूते, तीसरे पर श्रृंगार सामग्री तो चौथे पर अण्डर गारमेन्ट बेचे जा रहे है।
आजाद चौक के पास ही है सूचना केंद्र चौराहा। जो आजकल चौपाटी जैसा बन गया है, लाजमी है कि शाम होते ही शहरवासी खरीददारी, खाने-पीने व मनोरजंन के लिए यहां आते है। इन दिनों आम का सीजन है तो यहां आम के ठेले वालों की भरमार है। वैसे तो 3-4 ट्रेफिक पुलिस कान्सटेबल यहां नियुक्त है लेकिन ठेले वालों के आगे उनकी क्या बिसात कि वो मार्ग अवरूद्ध होने से रोक ले। वो यदा कदा अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर ठेले वालों को वहां से रड़का देते है। लेकिन ठेले वाले वापस अपना कब्जा जमा लेते है।
खैर, सूचना केंद्र चौराहे पर भीड़ चलती रहती है। कुछ क्षण के लिए मार्ग बाधित होता है और फिर चल पड़ता है लेकिन आजाद चौक पर तो बैग और जूतों की अस्थाई दूकान वालों ने अतिक्रमण कर आजाद भवन में जाने का मार्ग पूर्ण बाधित कर दिया है। लोगों का कहना है कि अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कई बार शिकायतें की लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। अब तो लोगों ने शिकायतें करना ही बंद कर दिया। कुछ लोगों का कहना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय नेताओं से जुड़े लोग अतिक्रमण करवाने में मदद कर रहे है और वो शिकायतों पर कार्यवाही नहीं होने देते है।
आजाद मैदान में नाट्क के आयोजन होते रहते है, वहां कार्यक्रम के दौरान पर्दे डलते है और उठते है। हजारों की संख्या में दर्शक देखते है। आजादी की तहरीक के महानायक आजाद की मूर्ति के आगे गिरते व उठते पर्दे को सिवाए आजाद की मूर्ति के अलावा कोई नहीं देख रहा है। आजाद हिन्दूस्तान के आजाद नागरिकों की करतूत को देखकर आजाद की आत्मा भी आंसू बहा रही होगी। बहरहाल आजाद हो इंतजार है कि वो इस अतिक्रमण से आजाद हो !

मैं चाहे ये करूं, चाहे वो करूं. . . मेरी मर्जी !


हाल - ए - नरेगा

लखन सालवी
भीलवाड़ा जिले में महानरेगा के तहत स्वीकृत हुए केटेगरी-4 के कार्य पूर्ण नहीं हो पाए है। 14,663 व्यक्तिगत कार्य स्वीकृत हुए थे। जिनमें से केवल 5,825 पर ही कार्य पूर्ण हुए है। जून माह तक 39 प्रतिशत कार्यों के लिए मस्टरोल जारी हो पाए है। शेष अधर झूल में है। प्रशासन का कहना है कि मजदूर नहीं मिल रहे है। ये प्रशासन का अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए दिया गया बयान है।
काम पूरे नहीं हो पाने में मजदूरों की कमी को सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। जबकि स्थिति विपरीत है। मजदूर काम की मांग कर रहे है लेकिन उन्हें काम नहीं दिया जा रहा है। कही मजदूरों को आवेदन की रसीद नहीं दी जा रही है तो कही उन्हें काम का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। जिले की सहाड़ा पंचायत समिति के उल्लाई गांव के लोगों ने महानरेगा में काम के लिए आवेदन किए। वो बताए अनुसार महानरेगा कार्यस्थल पर पहुंच गए लेकिन वहां पता चला कि उनके नाम मस्टरोल में थे ही नहीं। उनके लिए मस्टरोल ही जारी नहीं किए गए। अधिकतर महिला मजदूर थी वो धूप में पैदल कार्यस्थल पर गई और अगले दिन काम मिल जाने के आश्वासन पर पुनः घर को लौट आई।
रायपुर पंचायत समिति के रामा गांव में तो मजदूरों के नाम ही पंचायत समिति के कम्प्यूटरों से डिलीट कर दिए गए है। उन मजदूरों को महानरेगा में काम नहीं दिया जा रहा है। पूर्व सरपंच नंगजीराम सालवी ने पंचायत समिति के अधिकारियों व कर्मचारियों से कई बार शिकायत की लेकिन मजदूरों के नाम वापस नहीं जोड़े गए। नगंजीराम सालवी ने बताया कि जिन मजदूरों के नाम डिलीट हुए है उनमें अधिकतर अनुसूचित जनजाति के लोग हैै, जिनकी आजीविका महानरेगा ही है। काम नहीं मिलने से उन्हें भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने इस मामले से मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के कार्यकर्ताओं को अवगत कराया। एमकेएसएस से जुड़े कमल टांक ने बताया कि विभाग के कार्यक्रम निदेशक से वे मिले, उन्होंने आश्वासन दिया कि वो जल्दी ही मजदूरों के नाम पुनः जुड़वायेंगे। बहरहाल रामा गांव के अनुसूचित जनजाति के मजदूरों को करीबन दो माह से काम नहीं मिला है, उन्हें परेशानियांे का सामना करना पड़ रहा है।
महुआ खुर्द में गांव में तो कुछ सर्वण जातियों के लोगों को तो केटेगरी-4 कांटे की तरह चुभ रहा है। वो इस कांटे को निकाल फैंकना चाह रहे है। सरकार भले ही महुआ खुर्द के अनुसूचित जाति एवं जनजाति व बीपीएल परिवारों को प्राथमिकता देते हुए उनके खेतों में केटेगरी-4 के माध्यम से विकास करवाना चाह रही है, लेकिन यहां की कथित ऊंची जातियों के लोगों को यह मंजूर नहीं है। वो अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के खेतों में महानरेगा के तहत काम करने नही जा रहे है, यही नही वो अन्य मजदूरों को भी काम पर नहीं जाने के लिए भड़का रहे है। एससी/एसटी के खेतों पर कार्य करने के लिए मस्टररोल जारी होने पर वो कार्य का ही बहिष्कार कर रहे है।
जहाजपुर पंचायत समिति के पण्डेर ग्राम पंचायत की सहायक सचिव तो पंचायत में अपनी मनमर्जी चला रही है। वो न तो मजदूरों के आवेदन प्रपत्र-6 भरती है और ना ही उन्हें पावती रसीद देती है। मजदूर आवेदन की रसीद मांगते है तो कहती है कि - ‘‘रसीद दूं या न दूं मेरी मर्जी’’ तुम्हें तो काम मिल जाएगा।
25 जून को कुछ महिला मजदूर राजीव गांधी सेवा केंद्र में महानरेगा के तहत काम के लिए आवेदन करने गई। महिला ने रोजगार सहायक रूकमणी लखारा को आवेदन पत्र भरने को कहा लेकिन रूकमणी ने आवेदन पत्र भरने से इंकार कर दिया। महिला मजदूरों ने हंगामा किया। वहां मौजूद कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं ने पंचायत समिति के विकास अधिकारी को अवगत कराया। विकास अधिकारी कन्हैया लाल वर्मा ने सहायक सचिव को फोन कर आवेदन पत्र भरने के निर्देश दिए। सहायक सचिव रूकमणी लखारा ने विकास अधिकारी के निर्देश की पालना नही करते हुए एक कागज पर सभी मजदूरों के नाम नोट कर उन्हें जाने को कह दिया। महिलाओं ने पावती रसीद की मांग करते हुए फिर से हंगामा किया। महिला मजदूरों एवं सहायक सचिव के बीच काफी देर तक बहस होती रही। वहां मौजूद सरपंच पति ने महिला मजदूरों को शांत कर घर भेजा।
एक रोजगार सहायक की इस प्रकार की कर्तव्य विमुखता व अधिकारी के निर्देश को हवा कर देने के रैवये से साफ जाहिर है कि ग्राम पंचायतों में महानरेगा श्रमिकों के अधिकारों का हृास किया जा रहा है। फिर ऐसे रैवये से गरीब मजदूरों को रोजगार गारण्टी योजना से मोह भंग नहीं होगा तो क्या होगा ?
राजनीतिक लोगों की भी ये मंशा नहीं है कि केटेगरी-4 के काम हो। कार्य संपादित करवाने वाली स्थानीय एजेन्सी ग्राम पंचायते भी केटेगरी-4 के कामों से मुंह फेरे बैठी है। सरपंचों को केटेगरी-4 के काम करवाने में कोई खास रूचि नहीं है। उन्हें रूचि है पक्के काम करवाने में। सरकार अगर पक्के कामों की स्वीकृति दे दे फिर तो उन्हें मजदूर भी मिल जाएंगे और वो कार्य भी नियत तिथि पूर्व ही पूर्ण भी करवा देंगे। प्रशासनिक अधिकारी भी बिना कमीशन के कार्यों में कोई खास रूचि नहीं लेते। ऐसी स्थिति में केटेगरी-4 के काम पूरे हो तो कैसे ?
प्रशासन व सरकार रोजगार गारण्टी योजना के नाम पर कितना ही भुनाने की कोशीश करे लेकिन हकीकत तो यही है कि इस प्रकार की घटनाओं से मजदूरों का महानरेगा के प्रति मोह निरन्तर कम होता जा रहा है।

पद बचाने के लिए कर दी कन्या भ्रूण हत्या !!


सरंपच की जघन्य करतूत!

बनेड़ा पंचायत समिति की महुआ खुर्द ग्राम पंचायत के सरपंच जगदीश भील ने अपनी सरपंचाई बचाने के चक्कर में 5 माह का गर्भ गिरवा दिया, जिसकी शिकायत उसके पंचायत क्षेत्र के निवासी रतनलाल ने जिला कलक्टर को कर दी तथा दस्तावेजी सबूत पेश कर कन्या भ्रूण  हत्या करवाने के आरोपी सरपंच के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसके खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।
यह अत्यंत दुःखद बात है कि एक तरफ सरकार, मीडिया, पंचायतराज संस्थाएं, स्वैच्छिक संगठन और पूरा समाज गिरते लिंगानुपात से चिंतित है तथा कन्या भ्रूण  हत्या के विरुद्ध देशव्यापी अभियान छिड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर पंचायत राज संस्थाओं के जिम्मेदार जन प्रतिनिधि जो कि तृणमूल स्तर के लोकतंत्र की केंद्रीय इकाई ग्रामसभा के कर्णधार है, वे स्वयं ही भ्रूण  हत्या में शामिल होकर ऐसी करतूतें कर रहे है कि सरकार और समाज के तमाम प्रयास व्यर्थ साबित हो रहे है।
जिला कलक्टर भीलवाड़ा औंकार सिंह को दिए ज्ञापन में ग्रामीण रतनलाल ने बताया कि जगदीश भील की पत्नी सजना भील को 5 माह का गर्भ था, बाल विकास परियोजना अधिकारी बनेड़ा के गर्भवती महिला रजिस्टर में सरपंच की पत्नी सजना भील का नाम ‘‘गर्भवती और धात्री महिलाओं’’ के रिकॅार्ड  में दर्ज है तथा 21 मार्च से 20 अप्रेल 2012 की अवधि में उसे 3 माह की गर्भवती होना दर्शाया गया है, 21 अप्रेल से 20 मई की अवधि में सरपंच पत्नी सजना भील को 4 माह का गर्भ था, 21 मई से 20 जून 2012 की अवधि में 5 माह का गर्भ होने का उल्लेख है मगर अचानक 14 जून 2012 को सरपंच से इस रिकॅार्ड में छेड़छाड़ करवा कर गर्भवती महिला सजना भील पत्नी जगदीश भील पर लाइन फिरवा दी और नाम हटवा दिया।
ग्रामीण रतनलाल के मुताबिक इसी दिन सरपंच अपनी पत्नी को लेकर एक जीएनएम के जरिए भीलवाड़ा के एक निजी अस्पताल पहुंचा तथा लिंग परीक्षण करवाया, जिसमें उसे पता चला कि उसकी पत्नी की कोख में पल रहा जीव ‘बेटा’ नहीं होकर ‘बेटी’ है तो उसे लगा कि एक बेटी के लिए सरपंच का पद गंवाना ठीक नहीं है अगर बेटा होता तो ठीक होता, क्योंकि सरपंच के जो संतानें है, कहा जाता है उसमें कोई बेटा नहीं है, बेटियां है तथा एक बच्चा है जो किन्नर है! गर्भ के भ्रूण  के लिंग परीक्षण से बेटी का पता चलने पर उसी दिन इस कन्या भ्रूण की हत्या सरपंच द्वारा करवा दी गई, इस बात की खबर ग्राम पंचायत क्षेत्र में फैलने से ग्रामीणों में काफी चर्चाएं खड़ी हो गई, चारों तरफ सरपंच जगदीश भील के कारनामों की ही चर्चा हो रही है।
अंततः एक ग्रामीण रतनलाल ने हिम्मत करके विकास अधिकारी बनेड़ा, उपखंड मजिस्टेªट बनेड़ा, सीईओ जिला परिषद भीलवाड़ा, जिला कलक्टर, संभागीय आयुक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा मुख्यमंत्री को ज्ञापन तथा गर्भवती महिला का रजिस्टर की प्रतिलिपि भेजकर पूरे मामले की जांच किए जाने की मांग की है तथा कन्या भ्रूण  हत्या का जघन्य पाप करने के आरोपी सरपंच को बर्खास्त करने की मांग की है।

चुनौतियों से टकराती ये महिला सरपंच

लखन सालवी

महिला जनप्रतिनिधि ईमानदारी, पारदर्शिता और निडरता से राजनीति में भागीदारी निभा रही है। मुख्यतः गांव की राजनीति के बिगड़े स्वरूप को पुनः सुधार रही है। राजसमन्द जिले की कई ग्राम पंचायतों की महिला पंच सरपंच पंचायत का बेहतर संचालन कर रही है। अब इनके कार्यों को देखने से के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे है और इनके कार्यों से प्रेरणा लेकर जा रहे है। एक गीत की लाइनें है . . .


तोड़-तोड़ के बंधनों को देखो बहनें आती है,
ओ देखो लोगों देखो बहनें आती है,
आयेंगी, जुल्म मिटायेंगी, वो तो नया ज़माना लायेंगी  . . . 
वाकई में बहनें आगे आई है, वो जुल्म मिटा रही है और ज़माने को बदल रही है। वर्धनी पुरोहित, राखी पालीवाल, मांगी देवी जटिया, चुन्नी बाई, रूकमणी सालवी एवं गीता रेगर जैसी अनेक महिलाएं उदाहरण है। ये सभी सरपंच है और ग्राम पंचायतों का प्रतिनिधित्व कर रही है और गांवों की राजनीति में सक्रिय भागीदारी निभा रही है। इन्होंने उपरोक्त गीत के भावों को सार्थक कर दिखाया है।
जो ना कर सका कोई वो कर दिखाया वर्धनी पुरोहित ने
राजसमन्द जिले की ओड़ा ग्राम पंचायत की सरपंच वर्धनी पुरोहित ने हाल ही अवैध रेत के दोहन को रोकने की कार्यवाही की है। यूं तो बजरी का अवैध दोहन कई बरसों से चल रहा है। जब वर्धनी पुरोहित को पता चला कि अवैध बजरी दोहन को रूकवाना उसके अधिकार क्षेत्र में है तो उसने भारी विरोध और दबाव के बावूजद उसने अवैध दोहन रूकवा दिया और टोल वसूली शुरू करवा दी है। इससे ग्राम पंचायत की आय भी बढ़ी है। हाल ही उसने अवैध दोहन कर बजरी ले जा रहे ट्रेक्टर मालिकों के खिलाफ कार्यवाही करवाई है। उसकी शिकायत पर 17 ट्रेक्टर जब्त हुए है।
बालिका शिक्षा और ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी पर ध्यान दे रही है राखी
उम्र 24 साल, आंखों में तेज है और वो जुंजारू है। जब से समझदार हुई तब से एक सपना देखने लगी थी। सपना था गांव की राजनीति की बागडोर संभालने का, वह सरपंच बनाना चाहती थी। बताती है कि 1995 में उसके पिताजी सरपंच थे। सन् 2009 में खुद ने चुनाव लड़ने की सोची लेकिन पुरूष आरक्षित सीट होने के कारण सरपंच का चुनाव लड़ना सपना बन कर रह गया। लेकिन राजनीति में आने का मादा रखती थी सो उसने वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और निर्विरोध उपसरपंच निर्वाचित हुई। चुनाव जीतते ही कोई दर्जन भर चुनौतीपूर्ण कार्यों को सूची थी उसके पास।
यहां बात हो रही है खमनोर पंचायत समिति की उपली ओडण ग्राम पंचायत की उपसरपंच राखी पालीवाल की। वो बताती है कि गांव में गंदी राजनीति थी, अमीरों को गरीबी का तमगा दे दिया गया था जबकि गरीब परिवार बीपीएल में जोड़े जाने का इंतजार कर रहे थे। राखी ने तय कर लिया कि फर्जी बीपीएल परिवारों को बीपीएल सूची में से हटवाना है और वास्तविक गरीब लोगों को बीपीएल में जुड़वाना है। उसने यह कार्य करके दिखाया। फर्जी नामों को सूची से हटवाने के लिए वह जिला कलक्टर से मिली। तो कलक्टर ने अपात्र बीपीएल परिवारों की सूची एवं पात्र परिवारों की सूची उपखंड अधिकारी को देने के लिए कहा। 10 ऐसे परिवारों के नाम बीपीएल सूची मंे शामिल थे जो कि अमीर थे। राखी ने उन सभी अमीर परिवार वालों के नाम बीपीएल सूची से हटवाए और उतने ही गरीब परिवारों के नाम बीपीएल सूची में जुड़वाए।
राखी पालीवाल ने बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। वो बाइक चलाती है, उसने गांव में घूमकर अपने स्तर पर अध्ययन किया तो पाया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग की कई बालिकाएं शिक्षा से वंचित थी। तो उसने उन सभी बालिकाओं और उनके परिवार जनों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने का प्रयास किया, रैली निकाली। लगभग 35 बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने में कामयाब रही। राखी ने पहले माहौल तैयार किया, बालिकाओं से बात की। शिक्षा के प्रति उनकी रूचि को जाना। हालांकि पहले तो बालिकाओं के परिजन उन्हें पढ़ाने के लिए तैयार नही हुए। बालिकाओं का भी मानना था कि उनकी लड़कियां बड़ी हो गई है अब पहली, दूसरी कक्षा में पढ़ने के लिए जाएगी तो शर्म आएगी। लेकिन जब राखी ने उन्हें समझाया कि अब सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि अशिक्षित रह गए बच्चें उम्र के अनुसार उचित कक्षा में प्रवेश पा सकते है। इस बात की जानकारी अशिक्षित बालिकाओं व उनके परिजनों को नहीं थी। राखी ने हर एक वार्ड में जाकर बालिकाओं से बात की उन्हें शिक्षा का अधिकार कानून की जानकारी दी। परिणाम स्वरूप सैकड़ों अशिक्षित बालक-बालिकाएं शिक्षा से जुड़े।
राखी बताती है कि उप सरपंच बनने के बाद ग्राम पंचायत में जाकर अपने कत्र्तव्यों को निभाने को भी बड़ी चुनौती के रूप में ले रही थी। क्योंकि न तो पंचायतीराज की जानकारी थी और ना ही किन्हीं विकास योजनाओं की। यहां तक कि उप सरपंच के अधिकारों की जानकारी भी नहीं थी। उसने बताया कि क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर सामाजिक संगठन ‘‘आस्था’’ एवं ‘‘जतन’’ के द्वारा समय-समय पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर उसने पंचायतीराज को जाना एवं स्वयं के अधिकारों की जानकारी मिली। वो इन संस्थाओं को ही अपना गुरू मानती है।
वो बताती है कि उप सरपंच बनने के शुरूआती कुछ महिनों तक देखा कि ग्राम सभा में महिला वार्ड पंचों की व महिलाओं की उपस्थिति कम रहती थी। उसने ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में कार्य करना आरंभ किया। वह वार्डो में गई और महिलाओं तथा वार्ड पंचों को ग्राम सभा में भाग लेने को कहा। उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी दी और कोरम में उनकी भागीदारी की महत्ता के बारे में बताया। इतना कुछ करने के बावजूद भी जब ग्राम सभाओं में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ी तो राखी ने सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के सहयोग से 14 फरवरी 2012 को एक ग्राम सभा का आयोजन करवाया। इस ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए वो कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर गई और पीले चावल देकर ग्राम सभा में आमंत्रित किया। राखी का यह प्रयास सफल रहा। इस मेहनत का परिणाम यह रहा कि सभी वार्ड पंच महिलाएं ग्राम पंचायत में आई और अपने वार्ड के मुद्दे रखे। गांव की महिलाओं भी बढ़ चढ़कर ग्राम सभा में भाग लिया। अब राखी ने वार्ड पंच महिलाओं की टोली बना ली। वो उन्हें प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ले जाती है। वे वार्ड पंच महिलाएं भी चेत रही है। वो महिलाओं को संगठित कर रही है और उन्हें रोजगार दिलवाने एवं विकास योजनाओं के लाभ दिलवाने के सतत प्रयासरत है।
बचपन से राखी को एक बात चुभती थी, वो देखती थी महिलाएं खुले में शौच करती थी। उपसरपंच बनने बाद शौचालय बनवाने की मांग प्रमुखता से की। वो महिलाओं को भी खुले में शौच न करने के लिए कहती। उससे कुछ हद तक फर्क पड़ा। लेकिन वो महिलाएं कहां जाए जिनके घरों में शौचालय नहीं थे। उसने शौचालय निर्माण के लिए ग्राम सभा में प्रस्ताव लिखवाए है तथा आजकल शौचालय निर्माण करवाने की जुगत में लगी है।
मुझे बताओं कि किस-किस ने कितने-कितने दिन काम किया ? 

गुंजोल ग्राम पंचायत की चुन्नी बाई ने राजीव गांधी सेवा केंद्र के निर्माण में ग्राम सचिव द्वारा की जा रही गड़बडि़यों को पकड़ लिया। केंद्र के निर्माण में प्रयुक्त हुए मस्टरोल में फर्जी हाजरियां भरी गई थी। जब सचिव मस्टरोल पर सरपंच के हस्ताक्षर करवाने आया तो सरपंच ने साफ कह दिया कि मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगी। पहले मुझे बताओं कि किस-किस ने कितने-कितने दिन काम किया। ऐसे लोगों की हाजरियां भरी गई थी जो कभी काम पर आए है नहीं थे। फर्जी हाजरियों से लगभग 23000 रुपए का घोटाला ग्राम सेवक करता लेकिन ऐन वक्त पर चुन्नी बाई को जानकारी मिल जाने से उसने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। विकास अधिकारी ने भी चुन्नी बाई को हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया लेकिन वो टस की मस नहीं हुई और हस्ताक्षर नहीं किए। उसने 23000 रुपए घोटाल की भेंट चढ़ने से बचा लिए।
चुन्नी बाई कहती है कि सरपंच का चुनाव था, अनुसूचित जनजाति की महिला के लिए आरक्षित सीट थी। तब तक दबंगों का राज रहा था ग्राम पंचायत पर तो कोई भी अनुसूचित जाति की महिला सरपंच का चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थी। मैं तो चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकती थी। मुझे तो ग्राम पंचायत में क्या होता है इसकी जानकारी भी नहीं थी। चुनाव के ठीक 3 दिन पहले ही मुझे सरपंच बनाने की चर्चा चली। गांव के लोग हमारे घर आए और मुझे निर्विरोध सरपंच बनाने की बात कही। मैंने पहले तो मना कर दिया लेकिन ग्रामीणों एवं समुदाय के लोगों के आग्रह में मैं तैयार हो गई और निर्विरोध सरपंच चुनी गई।
बेबाकी से कर रही है गांव का विकास
राजसमन्द जिले की रेलमगरा पंचायत समिति की पछमता ग्राम पंचायत की सरपंच मांगी देवी ने कई दशकों से बिजली की बाट जोह रहे भील बस्ती व इंदिरा कॅालोनी के परिवारों को रोशन कर दिया है। वो बताती है कि गांव के सभी के घरों में बिजली थी लेकिन पास की भील बस्ती व इन्दिरा कॅालोनी में बसे परिवारों के घरों में अंधेरा था, वहां तक बिजली नहीं पहुंचाई गई थी। मैंने सरपंच बनते ही पहला काम उन बस्तियों में बिजली कनेक्शन करवाने का किया।
वो धमकियों के बावजूद दबंगों से कभी नहीं डरी। गांवों में दबंग लोग ग्राम पंचायत की भूमि पर अतिक्रमण कर लेते है। कई बार तो वो मुख्य मार्ग को भी अपने कब्जे में ले लेते है। मांगी बाई के गांव में भी ऐसा ही हुआ कुछ लोगों ने ग्राम पंचायत की भूमि पर अतिक्रमण करते हुए आम रास्ते को बाधित कर दिया लोगों को आने-जाने में परेशानी होने लगी। तब मांगी बाई ने प्रशासन की मदद लेकर अतिक्रमण को हटवाया। उसे काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा।
दलितों के लिए बेबाकी से काम किया। हरिजन बस्ती के घरों से निकलने वाले गंदे पानी को दूर ले जाने के लिए नाली निर्माण करवाना था। जब नाली निर्माण का कार्य आरम्भ किया जो जाट समुदाय के लोगों ने विरोध कर दिया। दरअसल जाटों के मोहल्ले में पूर्व में नाली निर्माण हो चुका था। वो नहीं चाहते थे कि हरिजनों के घरों से निकला गंदा पानी उनके घरों के बाहर होकर निकले। तमाम विरोध के बावजूद मांगी बाई ने हरिजन बस्ती में नाली बनवाई। उसका कहना है कि ग्राम पंचायत द्वारा विकास कार्यों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सभी को समान अधिकार प्राप्त है। अधिकारों की जानकारी कहां से मिली ? इस प्रश्न के जवाब में वो कहती है संस्थाओं द्वारा हमें प्रशिक्षण दिए गए। उन प्रशिक्षणों में ही मैंने अपने अधिकारों और ग्राम पंचायतों के बारे में जानकारी हासिल की है।
पारदर्शिता की मिशाल बनी रूकमणी 
पारदर्शिता के मामले में भी महिला जनप्रतिनिधि अव्वल है। राजसमन्द जिले के विजयपुरा की सरपंच रूकमणी देवी की बदौलत ग्राम पंचायत में पूर्णपारदर्शिता स्थापित हो चूकी है। वो अपने हर काम के खर्च को ग्राम पंचायत क्षेत्र में जहां भी खाली दिवार दिखती है वहां पीला रंग पुतवा कर मंडवा देती है। कार्य में खर्च हुए का ब्यौरा कोई भी वहां पर देख सकता है। रूकमणी से पूर्व उसके पति कालूराम सालवी यहां के सरपंच थे। उन्होंने पारदर्शी ग्राम पंचायत का सपना देखा था और कार्य शुरू किया था। कालूराम के काम को रूकमणी ने और आगे बढ़ाया है। आदर्श ग्राम पंचायत बन चुकी विजयपुरा ग्राम पंचायत से प्रेरणा लेने आजकल देशभर के विभिन्न क्षेत्रों के पंच-सरपंच आ रहे है।
आड़े हाथों लेती है चुनौतियों को
राजसमन्द जिले की जूणदा ग्राम पंचायत की सरपंच गीता देवी रेगर नित नई चुनौतियों का सामना कर राजनीति में अपने आप को स्थापित कर रही है। उसके गांव में सर्वण जाति के लोग अनुसूचित जाति के लोगों के दूल्हे को घोड़ी पर बैठकर बिन्दौली नहीं निकालने देते थे। चुनाव से पहले ही अपने देवर की बिन्दौली निकलवा दी। कुछ समय बाद सरपंच का चुनाव लड़ा, चुनाव में घोड़ी पर बिन्दौली निकलवाने का दुस्साहस तकलीफदायी था। वो चुनाव जीतने पर आडे़ आ रहा था। लेकिन राजनीति का पहले पड़ाव को संघर्ष एवं सूझबूझ से पार कर लिया और सरपंच बन गई। सरपंच बनते ही उनके सामने चुनौती थी पिछले 24 वर्ष से बंद पड़ी रोड लाईट को 26 जनवरी को चालू करवाना। जिसे उसने चालू करवा दिया। रोड़ लाइट का पुराना बिल बकाया था। ग्राम पंचायत की आमदनी बढ़ाकर उसने रोड़ लाइट का बिजली बिल जमार करवा दिया और अब गांव में उजाला हो चुका है। आजकल वो पेयजलापूर्ति को चुनौती के रूप देख रही है। उसका कहना है कि इस वर्ष में पेयजल मुहैया करवाने के लिए पाइप लाइन व पानी की टंकी बनवाने के लिए कार्य प्रमुखता से करना है।
इन महिला जन प्रतिनिधियों के हौसलों को देखकर ऐसा है कि अब ये चेत (जागरूक) चूकी है और जमाने को बदलकर ही दम लेगी।