Sunday, May 10, 2015

विधायक व प्रधान ने किया जनसम्पर्क

जन सम्पर्क के दौरान ग्रामीणों की समस्याएं सुनते विधायक व प्रधान
गोगुन्दा- क्षेत्रीय विधायक प्रताप लाल गमेती व प्रधान पुष्कर तेली ने बुधवार को अम्बावा, पडावली कलां, पड़ावली खुर्द, मादड़ा, वास, वीरपुरा व समीजा ग्राम पंचायतों में जनसम्पर्क किया। इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से रूबरू होकर उनकी समस्याओं को सुना। विधायक ने विभागीय अधिकारियों को जन समस्याओं का निपटारा समय पर करने के निर्देश दिए।

जनसम्पर्क के दौरान विधायक ने ग्रामीणों से कहा कि जिन लोगों के बरसों से वन भूमि पर कब्जे हैं, वे वन भूमि अधिकार अधिनियम के तहत पट्टों के लिए आवेदन करें। इस दौरान जेलाई माता के मंदिर तक रोड़ निर्माण के लिए विधायक मद से 5 लाख रूपए देने की घोषणा वहीं प्रधान पुष्कर तेली ने पंचायत समिति मद से 5 लाख रूपए की घोषणा की।
 
ग्रामीणों ने बताई बिजली, पानी व सड़क

ग्रामीणों ने विधायक को बिजली, पानी व सड़क की समस्याएं बताई। विधायक ने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए कि वो जन समस्याओं को समाधान समय पर करें। जन सम्पर्क के दौरान लक्ष्मण सिंह झाला, उप प्रधान पप्पू राणा, नवल सिंह चंदाणा सहित कार्यकर्ता साथ थे।

ग्राम सचिव की मनमानी, पंचायत के लगा गया ताला

कोशीथल 5 मई 2015 - कोशीथल गांव के शिक्षित व जागरूक युवा वार्ड पंच गांव के विकास को तत्पर हैं लेकिन सरकारी कर्मचारी हैं कि विकास में बाधा बन रहे हैं। वार्ड पंच गांव के विकास में भागीदारी के लिए ग्राम पंचायत में पहुंचते हैं तो सरकारी कर्मचारी गायब हो जाता हैं। ऐसे में वार्ड पंच अपने वार्डों के विकास की बात ग्राम पंचायत में नहीं रख पा रहे हैं।

कोरम की बैठक में बुलाया और ताला जड़ कर चला गया
 
पंचायत में खड़े वार्ड पंच व ग्रामीण
ग्राम पंचायत ने 5 मई को कोरम की बैठक आयोजित करने का हवाला देते हुए, लिखित पत्र भेजकर वार्ड पंचों को कोरम की बैठक में बुलाया। वार्ड पंच नारायण लाल जाट, दिलखुश सुर्या, मोहम्मद शरीफ, इन्द्रा देवी, लाली देवी, रेखा देवी, सीता देवी सहित वार्ड पंच कोरम की बैठक में पहुंचे तो पंचायत भवन के ताला लटका हुआ था। काफी इंतजार के बाद विरोध प्रदर्शन कर वार्ड पंच पुनः घरों को लौट गए। 
 
उल्लेखनीय हैं कि इस ग्राम पंचायत में पंचायतीराज चुनाव के बाद ऐसा तीसरी बार हुआ हैं। कोरम की बैठक के दिन पंचायत के कर्मचारी ताला लगाकर रफ्फूचक्कर हो जाते हैं। वार्ड पंचों ने ग्राम सचिव की शिकायत विकास अधिकारी से भी की लेकिन विकास अधिकारी कर्मचारी के विरूद्ध कार्यवाही करने की बजाए चुप्पी साधे हुए हैं।
 
जिला कलेक्टर को भेजा ज्ञापन
 
उपसरपंच नारायण लाल जाट ने कहा कि ग्राम सचिव ने पूर्व में भी कोरम की बैठक के दिन पंचायत नहीं खोली। जिसकी शिकायत विकास अधिकारी से की लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। आज भी कोरम की बैठक होनी थी, महिला व पुरूष वार्ड पंच उपलस्थित हुए लेकिन पंचायत भवन पर ताला लगा हुआ हैं। हमने इसकी शिकायत जिला कलेक्टर को भेजी हैं।
 
कैसे होगा ग्राम का विकास
 
सामाजिक कार्यकर्ता जयंति लाल नेहरिया ने बताया कि पहली पढ़े लिखे युवा वार्ड पंच बनकर ग्राम पंचायत में गए हैं। ये सक्रिय वार्ड पंच ग्राम का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। प्रत्येक कोरम की बैठक के निश्चित दिन इन वार्ड पंचों का पंचायत भवन पर पहुंचना इस बात का द्योतक हैं कि वो विकास के लिए आमादा हैं लेकिन पंचायत के कर्मचारी ताला लगा जाते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो ग्राम का विकास कैसे होगा।

हनुमान जी की कृपा . . .

बहुरूपिया अमरनाथ ठेठ उज्जैन से आज गोगुन्दा आए। ये भी प्रवासी, मैं भी प्रवासी। अमरनाथ देश के विभिन्न राज्यों में बहुरूपिया बनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र में तशरीफ लेकर आए तो उनकी गदा को छूने का मन किया। हनुमान जी (बहुरूपिया) की कृपा से इच्छापूर्ति हो गई।

आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक बदलाव

  • लखन सालवी
स्टेप एकडेमी अदक्ष युवक-युवतियां को दक्ष बनाकर उनके आर्थिक पक्ष को मजबूत बनाने के साथ ही सामाजिक बदलाव की भूमिका भी निभा रही हैं। वे युवतियां जो अकेली कभी घर ही दहलीज लांघ कर शहरों में नहीं गई, उन्होंने दक्षता हासिल की और आत्मनिर्भर हुई हैं। वे पुरूषों जैसे काम कर रही हैं, उन्हें कई बंधनों से स्वतंत्रता मिली हैं। प्रशिक्षण से महिला सशक्तिकरण के साथ सामाजिक बदलाव भी दिखाई देने लगे हैं।
गुन्दाली गांव में मोबाइल की एकमात्र दूकान हैं। यहां मोबाइल ऐसेसीरीज, नए सिम कार्ड, रिचार्ज कूपन मिलते हैं। मोबाईल रिपेरिंग की सुविधा भी यहां उपलब्ध हैं। इस दूकान पर एक लड़की को मोबाइल की रिपेरिंग करते देख हर अंजान व्यक्ति अचम्भा करता हैं। मेहन्दी के कोण चलाने वाले हाथों में होट गन और आयरन जैसे उपकरण नजर आने लगे तो इस बदलाव की स्थिति को देखकर अचंम्भित हो जाना लाजमी हैं।

पिता की किराणें की दूकान चलाते-चलाते नीलम ऊब चुकी थी। हां इतना जरूर हुआ कि व्यवसाय में उसकी रूचि बढ़ गई थी। आजीविका ब्यूरों के एक कार्यकर्ता ने उसे मोबाईल प्रशिक्षण की जानकारी दी तो उसे इतनी खुशी मिली, मानो रामजी मिल गए हो।

21 वर्षीय नीलम जैन उदयपुर जिले की गोगुन्दा तहसील के गुन्दाली गांव की हैं। गुन्दाली ग्राम पंचायत मुख्यालय हैं। नीलम ने पिछले वर्ष बी.ए. की डिग्री प्राप्त कर ली हैं। वह बचपन से ही पिता की किराणे की दूकान पर सहयोग करती रही थी। घर में रूके रहना उसे पसंद नहीं हैं। नया सीखना व लोगों के बीच बने रहना उसे अच्छा लगता हैं। पिता की दूकान पर काम करते हुए उसने खुद की दूकान लगाने ख्वाब देखा। लड़कियों को कहीं भी अकेले नहीं आने-जाने दिया जाता हैं, यह पारम्परिक नियम नीलम पर भी लागू था। वह व्यवसाय करना चाहती थी, लेकिन उसे किराणें के अलावा दूसरे व्यवसायों का अनुभव नहीं था और घर वाले भी नहीं चाहते थे। मनमसोस कर वह बेमन से किराणे की दूकान में पिता जी मदद कर रही थी।
 
नवम्बर 2012 में नीलम की मुलाकात आजीविका ब्यूरो के कार्यकर्ता जसवंत मेघवाल से हुई। उन्होंने नीलम को मोबाइल रिपेयरिंग  प्रशिक्षण कार्यक्रम की जानकारी दी। प्रशिक्षण की बात सुनकर उसकी उसकी आंखों की चमक तेज हो गई। उसे अपना ख्वाब पूरा करने का मौका दिखाई पड़ रहा था। जसवंत मेघवाल ने स्टेप एकडेमी में रहने, खाने-पीने सम्बंधीत व्यवस्थाओं व प्रशिक्षण कार्यशाला के बारे में बताया। बातचीत से पता चला कि नीलम अपना खुद का व्यवसाय करना चाहती हैं। तब कार्यकर्ता ने उसे मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लेने का सलाह दी। नीलम ने यह प्रशिक्षण लेने का निश्चय कर लिया।
 
उसने अपने माता-पिता को बताया कि वह स्टेप एकडेमी में मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लेना चाहती हैं। उसकी बात सुनकर एक बार तो परिवार के सभी सदस्यों ने साफ इंकार कर दिया। नीलम प्रशिक्षण लेने की जिद पर अड़ गई। अंततः माता-पिता उसकी जिद आगे झूके। उन्होंने नीलम को प्रशिक्षण लेने की स्वीकृति दे दी। पर पिता के मन में स्टेप एकडेमी के माहौल को लेकर संकोच था। वे नीलम को छोड़ने के  बहाने स्टेप एकडेमी गए और वहां का माहौल देखा तब जाकर संतुष्टि हुई।
 
नीलम ने 1 माह (दिसम्बर-2012) तक मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण लेने के बाद उसने मोबाईल रिपेरिंग के उपकरण खरीदें। धीरे-धीरे मोबाइल की ऐसेसीरीज रखने लगी, फिर मोबाइल के पाट्र्स, नए सिम कार्ड व रिर्चाज कूपन रखने लगी। कुछ महीनों तक महज 1000-1500 रूपए कमा पाती थी। धीरे-धीरे उसकी उसकी पहचान मोबाइल रिपेयरिंग मिस्त्री के रूप में हुई। आज 3000-5000 रूपए मासिक तक कमा लेती हैं। आस-पास के गांवों के लोग मोबाइल संबंधी समस्याओं को लेकर उसी के पास आते हैं। नीलम कहती हैं कि ‘‘गांव में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या कम हैं, जिस कारण इतनी ग्राहकी नहीं हैं। लेकिन मुझे अपने आप गर्व हैं कि मैं मोबाइल रिपेयर कर सकती हूं। लोगों के मोबाइल रिपेयर करती हूं तो मुझे बहुत खुशी होती हैं।’’
 
वह बताती हैं कि - ‘‘मैंनें अलग दूकान नहीं लगाई, पापा की किराणे की दूकान में ही मोबाइल का सामान रखने लगी। दोनों काम साथ में हो जाते हैं। पहले रिपेयरिंग का काम शुरू किया, उसके बाद ऐसेसीरिज रखने लगी, फिर रिचार्ज और नए सिम कनेक्शन का काम साथ में शुरू किया।’’

अधिकतर मोबाइलों में स्पीकर, माइक, एलसीडी, सिम साॅकेट, मेमोरी कार्ड साॅकेट व चार्जिंग साॅकेट की समस्याएं आती हैं। नीलम पीसीबी (पिन्टेड सक्रिट बोर्ड) को अच्छे से समझती हैं। पीसीबी पर जम्पर लगाने हो या इंटिग्रेटेड सक्रिट, आयरन व होट गन के द्वारा आसानी से लगा देती हैं।
 
वह कहती हैं कि शुरू-शुरू में तो आयरन व होट गन चलाने में दिक्कत होती थी, लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं हैं। वह बताती हैं कि पहले तो घर वाले भी अकेले कहीं नहीं जाने देते थे, अब तो मैं कई प्रकार के काम करती हूं, बैंक की एजेण्ट भी हूं, काम करने के लिए घर व गांव से बाहर जाना ही पड़ता हैं।
 
उसे मोबाइल साॅफ्टवेयर का अनुभव नहीं हैं। स्मार्ट व एंड्राएड मोबाइल में आने वाली एप्लीकेशन संबंधीत खराबी को वह ठीक नहीं कर पाती हैं। अब वह मोबाइल साॅफ्टवेयर तथा एप्लीकेशन इंस्टालेशन करना सीखना चाहती हैं। बताती हैं कि गांव में मोबाइल का उतना क्रेज नहीं हैं जितना कस्बों व शहरों में हैं लेकिन नई टेक्नोलाॅजी को वह सिखना चाहती हैं। अभी महेंगे हैण्डसेट्स को उदयपुर भेज कर ठीक करवाती हैं।

हाथों से तकदीर लिखने की कवायद

  • लखन सालवी
अतीत के पन्नों को उलटते हुए वह बताती हैं कि चंद लोग होते हैं जो हम जैसे असहाय लोगों के दर्द को समझते हैं और मरहम लगाने की चेष्टा करते हैं। वह अतीत को भूल जाना चाहती हैं और भविष्य को अपनें हाथों से संवारने की जिद पर अड़ी हुई हैं। जीवन के तीन दशक पूरे करने जा रही केसर मीणा दोनों पैरों से विकलांग हैं, हाथों के सहारें चलती हैं।
 डूंगरपुर जिले की साबला तहसील के छोटे से गांव गडा अरेन्डिया की केसर मीणा दोनों पैरों से विकलांग हैं। 9वीं कक्षा पास नहीं कर पाई तो 10वीं की परीक्षा ओपन से दी लेकिन पास नहीं हो पाई। उसे हर काम में सहारे की जरूरत पड़ती हैं। बताती हैं कि अब तक देर से ही सही सहारे मिलते रहे हैं लेकिन अब मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं हैं। मैं खुद के सहारे पर जीवन जीना चाहती हूं। वह छोटे भाई व पिताजी के साथ रहती हैं। बड़ा भाई शादी के बाद अलग रहने लगा। पिताजी बूढ़े हो गए हैं, अब वे काम नहीं कर सकते हैं। छोटा भाई भी उसे बोझ समझता हैं। केसर बताती हैंे कि अमूमन लोग हम विकलांगों को बोझ मानते हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो हमारी मदद करते हैं, राह दिखाते हैं, हौंसला बढ़ाते हैं।

केसर मीणा हाल में स्टेप एकेडमी उदयपुर में व्यावसायिक सिलाई का प्रशिक्षण ले रही हैं। वहां कई युवतियां सिलाई का प्रशिक्षण ले रही हैं। सभी पैरों से चलने वाली मशीनों पर सिलाई सीखती हैं वहीं केसर हाथ से चलने वाली मशीन से। उसे मलाल हैं कि उसके पैर नहीं हैं, वह कहती हैं पैर होते तो मैं भी फटाफट सिलाई कर पाती, हाथ से मशीन को तेज गति से नहीं चलाया जा सकता हैं। जुदा हालातों के बावजूद वह हताश नहीं हैं, कहती हैं “हाथ से चलने वाली मशीन से सिलाई सीख लूंगी और बाद में बिजली से चलने वाली मशीन ले आऊंगी।“ वह बताती हैं कि एक माह पहले तक जीवन के प्रति कोई उमंग ही नहीं थी। जीवन जीने की कोई राह ही नजर नहीं आती थी। एक माह में ही इतने ख्वाब बुन लिए कि अब उन्हें पूरा करने की तैयारी करने लगी हैं।

स्टेप एकेडमी आने की राह उसे सामाजिक कार्यकर्ता साधना कंवर ने दिखाई। वह आजीविका ब्यूरों द्वारा आसपुर में संचालित श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने गडा अरेन्डिया गांव में एक बैठक की। केसर ने भी इस बैठक में भाग लिया। साधना कंवर ने स्टेप एकडेमी व वहां संचालित प्रशिक्षणों के बारे में जानकारी दी। तब केसर के जीवन में नई उमंग पैदा हुई। उसने तय कर लिया कि उसे व्यवसायिक सिलाई का प्रशिक्षण लेना हैं।

11 साल पहले केसर की मां का देहावसान हो गया। केसर के 4 बहनें हैं, 2 उससे बड़ी हैं व 2 उससे छोटी। उसके एक बड़ा और एक छोटा भाई हैं। दोनों भाईयों व चारों बहनों की शादियां हो चुकी हैं। बड़ा भाई मुम्बई में होटल में कार्य करता हैं तथा छोटा भाई उदयपुर में कडि़या कार्य करता हैं। शादी से पहले चारों बहनें भी कडि़या कार्य करती थी। जिससे परिवार का गुजारा चलता था। उनकी शादियां हो जाने के बाद परिवार आर्थिक तंगी में आ गया। खेती के नाम पर महज 2 बीघा जमीन हैं। बारिश के दिनों में खेत में पानी भर जाता हैं जिससे फसल नहीं हो पाती हैं। रबी की फसल हो पाती हैं, लेकिन इतना ही उपजता हैं कि परिवार का आधे साल का गुजारा हो जाए। 

केसर बचपन से ही मुश्किलों का सामना कर रही हैं। बचपन से हाथों के बल पर रेंगकर स्कूल जाती थी। पहली से पांचवी तक की पढ़ाई तो गांव के स्कूल में पूरी कर ली। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से दूर जाना था। पिताजी इतने सक्षम नहीं थे कि उसे पढ़ा पाते। स्कूल की एक अध्यापिता ने उसके पिताजी को छात्रावास के बारे में जानकारी दी। पिताजी उसे साईकिल पर बैठाकर 5 किलोमीटर दूर स्थित छात्रावास में ले गए। छात्रावास के वार्डन ने केसर की हालत देखी तो उसके पिताजी से कहा ‘‘यहां पानी की बहुत समस्या हैं, हेण्डपम्प से पानी भरकर लाना पड़ता हैं, यह पानी कैसे लाएगी, कपड़े कैसे धोएंगी?’’ उसने केसर की विकलांगता को देखते हुए प्रवेश देने से इंकार कर दिया।

केसर के अब तक के जीवन में करीब दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जिन्होंने उसकी मदद की। छात्रावास का वार्डन भी उनमें से एक हैं। एक बार तो वार्डन ने प्रवेश देने से इंकार कर दिया लेकिन उसने केसर की ओर गौर से देखा तो उसका मन पसीज गया, वह प्रवेश देने पर तैयार हो गया। उसने केसर के पिता से कहा कि छात्रावास में 30-35 छात्राएं हैं, वो उसकी मदद कर दिया करेंगी। केसर को प्रवेश दे दिया गया। केसर कुछ ही समय में सब छात्राओं के साथ घुलमिल गई। सभी उसकी सहेलियां बन गई। सहेलिया बारी-बारी से हर दिन उसके लिए हेण्डपम्प से पानी ले आती, उसके कपड़े सूखाने जैसे कामों में भी मदद कर देती। वह 3 साल तक वहां रही। वहां संगीता व दीपिका उसकी अजीज सहेलियां थी। वे दोनों हर वक्त उसका ख्याल रखती। छात्रावास से स्कूल आना-जाना हो या घर से छात्रावास आना-जाना हो केसर को समस्या का सामना करना पड़ता था। उसे बस में चढ़ने-उतरने में बड़ी दिक्कत होती। खासकर गर्मी के दिनों में। गर्मी के दिनों में हाथों के बल रेंग कर चलना उसके लिए बहुत मुश्किल था। अपनी तीन पहिया साईकिल वह लम्बी दूरी तक नहीं चला पाती थी। दीपिका उसे छात्रावास से स्कूल ले जाने व लाने में मदद करती थी। अवकाश होने पर जब घर जाती तो संगीता तीन पहिया साईकिल में केसर को उसके घर छोड़कर फिर अपने गांव जाती। संगीता का घर केसर के गांव से थोड़ी दूर ही हैं। 9वीं की परीक्षा में केसर एक विषय में फेल हो गई। तब नियमों का हवाला देकर उसे छात्रावास से निकाल दिया गया।

उसमें पढ़ने की ललक थी। 10वीं की परीक्षा ओपन से दी, लेकिन परीक्षा केंद्र सागवाड़ा में था। बस में आना-जाना पड़ता था। केंद्र तक पहुंचने में उसे बहुत दिक्कतें आई। अंकल का लड़का उसे बस तक छोड़ देता। सागवाड़़ा में बस से उतर कर आॅटों से वह परीक्षा केन्द्र तक पहुंचती। उसके पास बस किराए के लिए पर्याप्त रूपए भी नहीं थे। बेरण अपंगता व गरीबी के चलते वह परीक्षा पास नहीं कर पाई। उसने विकलांग कार्ड बनवाया था लेकिन वह कहीं खो गया, उसे नहीं मालूम की नया कार्ड कहां और कैसे बनता हैं। कार्ड न होने से बसों में उसे यात्रा व्यय में छूट नहीं मिल पाती हैं।

एक बार 15 अगस्त के अवसर पर गांव के सरकारी विद्यालय में आयोजित समारोह देखने जा रही थी तो उसकी सहेली संगीता उसे मिली। केसर के गांव में संगीता की मौसी भी रहती हैं। अक्सर संगीता गर्मियों की छुट्टियों में अपनी मौसी के यहां आ जाती हैं। बातचीत के दौरान केसर को पता चला कि संगीता को सिलाई करना आता हैं। उसने संगीता से कहा कि वह उसे सिलाई सीखा दे। संगीता तैयार हो गई। उसके बाद जब तक संगीता गडा अरेन्डिया में रही, केसर उसके पास गई और सिलाई सीखी। उसे हर महीने 500 रूपए विकलांग पेंशन के रूप में मिलते हैं। इन पैसों को जोड़कर उसने सिलाई की मशीन खरीद ली। जब से उसने सिलाई करना सीखा, उसके बाद से घर की किसी भी महिला को किसी ओर से सिलाई करवाने की जरूरत नहीं पड़ी। पर सिलाई में वह इतनी दक्ष नहीं हो पाई थी कि इससे व्यवसाय कर सके। स्टेप एकडेमी में सिलाई का प्रशिक्षण पूरा होने वाला हैं। उसने राजपूती ड्रेस व सलवार सूट बनाना सीख लिया हैं। कहती हैं “सिलाई की दूकान लगाऊंगी।“

उसने अब तक शादी नहीं की। कहती हैं “शादी के कई रिश्ते आए लेकिन विकलांगों के। मेरा विवाह विकलांग से ही करवाना चाहते हैं। कोई गैर विकलांग मुझसे शादी नहीं करना चाहता। मुझे किसी विकलांग से शादी करने में कोई हर्ज नहीं हैं लेकिन मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं, इसलिए पहले खुद कमाऊंगी, फिर शादी करूंगी।“

मजदूर दिवस पर मजदूर मेला

मेले से लौटकर 
गोगुन्दा/उदयपुर - विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र व श्रमिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में राज तिलक स्थल परिसर में मजदूर मेला आयोजित किया गया। इसमें क्षेत्र में सक्रिय बजरंग, जरगा, सायरा व रानी लक्ष्मी बाई निर्माण श्रमिक संगठनों से मजदूरों ने हर्षोल्लास के साथ भाग लिया। मेले में गोगुन्दा, बरवाड़ा व सायरा क्षेत्र के करीब 500 श्रमिकों ने भाग लिया। मेले से पूर्व विशाल रैली निकाली गई, जो बायपास चौराहें से रवाना होकर गोगुन्दा के मुख्य मार्गों से होते हुए राज तिलक स्थल पर पहुंची।
  
लड़ाई जारी रखे - राणा

मजदूर मेले को सम्बोधित करते हुए उप प्रधान पप्पू राणा ने कहा कि इस देश की संसद से लेकर आम सड़क मजदूरों ने बनाई हैं। सदियों पहले अमेरिका के मजदूरों ने शोषण के विरूद्ध आवाज उठाई। आज भी कमोबेश मजदूरों का शोषण जारी हैं। मजदूरों को एकजूट होकर शोषण के खिलाफ लड़ाई जारी रखनी होगी।


उपखण्ड अधिकारी सत्यनारायण आर्चाय ने कहा कि अच्छा लगता हैं यह जानकर कि आदिवासी क्षेत्रों के मजदूर भी संगठित होकर मजदूर दिवस जैसे अवसर पर आयोजन करने लगे हैं। सरकार ने सामाजिक सुरक्षा के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित की हैं। मजदूरों को संगठित होने के साथ जागरूक होकर इन योजनाओं से जुड़ना होगा। शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मजदूरों को अपने बच्चों घर व खेती के कामों में लगाने की बजाए पढ़ाना चाहिए। शिक्षा से ही बदलाव होगा।
उन्होंने कहा कि आजीविका ब्यूरो व ऐसी ही कई संस्थाएं मजदूरों को जागरूक करने, उन्हें संगठित करने का कार्य कर रही हैं। मैं ऐसी संस्थाओं को धन्यवाद देता हूं क्योंकि मैंनें भी कभी मजदूरी की थी, मजदूर के दर्द को मैं अच्छे से समझता हूं।

मांगों को लेकर मजदूरों ने दिए ज्ञापन

मेले के दौरान श्रमिक संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर पुलिस अधीक्षक के नाम थानाधिकारी को व श्रम आयुक्त के नाम उपखण्ड अधिकारी को ज्ञापन दिया। बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन के मोती लाल गमेती ने कहा कि क्षेत्र के विभिन्न थानों में लम्बे समय से मजदूरी भुगतान संबंधी परिवाद दर्ज हैं जिन पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। श्रमिक संगठनों के लोगों ने पुलिस अधीक्षक के नाम थानाधिकारी हनवंत सिंह सोढ़ा को ज्ञापन दिया। वहीं जरगा निर्माण श्रमिक संगठन के गेहरी लाल मेघवाल ने श्रम विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि विभाग द्वारा हितलाभ स्वीकृत करने में मनमानी की जा रही हैं। जिन श्रमिकों ने वर्ष 2012-13 में विभिन्न हितलाभों के लिए आवेदन किए, उन्हें आज तक हितलाभ नहीं मिले हैं जबकि जिन लोगों ने वर्ष 2013-14 व 2014-15 में आवेदन किए उनके वेरीफिकेशन किए जाकर हितलाभ प्रदान किए जा रहे हैं। श्रमिक संगठनों ने अंशदान जमा कराने की व्यवस्था ब्लाॅक स्तर पर करने की व्यवस्था करने, हितलाभ स्वीकृति की व्यवस्था सुनिश्चिित करने जैसी मांगों को लेकर श्रम आयुक्त के नाम उपखण्ड अधिकारी को ज्ञापन सौंपा।

मजदूरों ने लिया खेल प्रतियोगिताओं में भाग
मेले के दौरान विभिन्न खेल गतिविधियां आयोजित की गई। महिला श्रमिकों ने कुर्सी दौड़ व चम्मच रेस प्रतियोगिताओं में भाग लिया। वहीं पुरूषों ने खो-खो व कब्बड़ी खेली। विजेताओं को अतिथियों ने पुरस्कार दिया।

मजदूरों ने लगाई छाछ, पोहे, पुड़ी की स्टाॅलें

मजदूर मेले में चाय, छाछ, पोहे व पुड़ी-सब्जी की स्टालें लगाई गई। मोड़ी गांव के भंवर लाल लौहार ने कहा कि यह मेला हैं और मेले में खाने-पीने की चीजें नहीं हो तो कैसा मेला। इसलिए संगठन से जुड़े श्रमिकों ने अपनी व्यवस्था से दूकानें लगाई। उन्होंने बताया कि हमारा ध्येय हैं कि मजदूर दिवस पर मजदूरों को शुद्ध व सस्ते खाद्य पदार्थ मिले। अथितियों ने छाछ की स्टाॅल पर छाछ पीकर मेले का उद्घाटन किया।  स्टाॅलों का संचालन श्रमिकों ने ही किया। प्रत्येक स्टाॅल को 5-5 गु्रपों ने संचालित किया। प्रत्येक ग्रुप में 3 पुरूष व 2 महिला श्रमिक शामिल थे। मेले का संचालन मोती लाल गमेती, नारायण लाल सुथार, भंवर लाल लौहार ने किया।