Sunday, May 10, 2015

आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक बदलाव

  • लखन सालवी
स्टेप एकडेमी अदक्ष युवक-युवतियां को दक्ष बनाकर उनके आर्थिक पक्ष को मजबूत बनाने के साथ ही सामाजिक बदलाव की भूमिका भी निभा रही हैं। वे युवतियां जो अकेली कभी घर ही दहलीज लांघ कर शहरों में नहीं गई, उन्होंने दक्षता हासिल की और आत्मनिर्भर हुई हैं। वे पुरूषों जैसे काम कर रही हैं, उन्हें कई बंधनों से स्वतंत्रता मिली हैं। प्रशिक्षण से महिला सशक्तिकरण के साथ सामाजिक बदलाव भी दिखाई देने लगे हैं।
गुन्दाली गांव में मोबाइल की एकमात्र दूकान हैं। यहां मोबाइल ऐसेसीरीज, नए सिम कार्ड, रिचार्ज कूपन मिलते हैं। मोबाईल रिपेरिंग की सुविधा भी यहां उपलब्ध हैं। इस दूकान पर एक लड़की को मोबाइल की रिपेरिंग करते देख हर अंजान व्यक्ति अचम्भा करता हैं। मेहन्दी के कोण चलाने वाले हाथों में होट गन और आयरन जैसे उपकरण नजर आने लगे तो इस बदलाव की स्थिति को देखकर अचंम्भित हो जाना लाजमी हैं।

पिता की किराणें की दूकान चलाते-चलाते नीलम ऊब चुकी थी। हां इतना जरूर हुआ कि व्यवसाय में उसकी रूचि बढ़ गई थी। आजीविका ब्यूरों के एक कार्यकर्ता ने उसे मोबाईल प्रशिक्षण की जानकारी दी तो उसे इतनी खुशी मिली, मानो रामजी मिल गए हो।

21 वर्षीय नीलम जैन उदयपुर जिले की गोगुन्दा तहसील के गुन्दाली गांव की हैं। गुन्दाली ग्राम पंचायत मुख्यालय हैं। नीलम ने पिछले वर्ष बी.ए. की डिग्री प्राप्त कर ली हैं। वह बचपन से ही पिता की किराणे की दूकान पर सहयोग करती रही थी। घर में रूके रहना उसे पसंद नहीं हैं। नया सीखना व लोगों के बीच बने रहना उसे अच्छा लगता हैं। पिता की दूकान पर काम करते हुए उसने खुद की दूकान लगाने ख्वाब देखा। लड़कियों को कहीं भी अकेले नहीं आने-जाने दिया जाता हैं, यह पारम्परिक नियम नीलम पर भी लागू था। वह व्यवसाय करना चाहती थी, लेकिन उसे किराणें के अलावा दूसरे व्यवसायों का अनुभव नहीं था और घर वाले भी नहीं चाहते थे। मनमसोस कर वह बेमन से किराणे की दूकान में पिता जी मदद कर रही थी।
 
नवम्बर 2012 में नीलम की मुलाकात आजीविका ब्यूरो के कार्यकर्ता जसवंत मेघवाल से हुई। उन्होंने नीलम को मोबाइल रिपेयरिंग  प्रशिक्षण कार्यक्रम की जानकारी दी। प्रशिक्षण की बात सुनकर उसकी उसकी आंखों की चमक तेज हो गई। उसे अपना ख्वाब पूरा करने का मौका दिखाई पड़ रहा था। जसवंत मेघवाल ने स्टेप एकडेमी में रहने, खाने-पीने सम्बंधीत व्यवस्थाओं व प्रशिक्षण कार्यशाला के बारे में बताया। बातचीत से पता चला कि नीलम अपना खुद का व्यवसाय करना चाहती हैं। तब कार्यकर्ता ने उसे मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लेने का सलाह दी। नीलम ने यह प्रशिक्षण लेने का निश्चय कर लिया।
 
उसने अपने माता-पिता को बताया कि वह स्टेप एकडेमी में मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लेना चाहती हैं। उसकी बात सुनकर एक बार तो परिवार के सभी सदस्यों ने साफ इंकार कर दिया। नीलम प्रशिक्षण लेने की जिद पर अड़ गई। अंततः माता-पिता उसकी जिद आगे झूके। उन्होंने नीलम को प्रशिक्षण लेने की स्वीकृति दे दी। पर पिता के मन में स्टेप एकडेमी के माहौल को लेकर संकोच था। वे नीलम को छोड़ने के  बहाने स्टेप एकडेमी गए और वहां का माहौल देखा तब जाकर संतुष्टि हुई।
 
नीलम ने 1 माह (दिसम्बर-2012) तक मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण लेने के बाद उसने मोबाईल रिपेरिंग के उपकरण खरीदें। धीरे-धीरे मोबाइल की ऐसेसीरीज रखने लगी, फिर मोबाइल के पाट्र्स, नए सिम कार्ड व रिर्चाज कूपन रखने लगी। कुछ महीनों तक महज 1000-1500 रूपए कमा पाती थी। धीरे-धीरे उसकी उसकी पहचान मोबाइल रिपेयरिंग मिस्त्री के रूप में हुई। आज 3000-5000 रूपए मासिक तक कमा लेती हैं। आस-पास के गांवों के लोग मोबाइल संबंधी समस्याओं को लेकर उसी के पास आते हैं। नीलम कहती हैं कि ‘‘गांव में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या कम हैं, जिस कारण इतनी ग्राहकी नहीं हैं। लेकिन मुझे अपने आप गर्व हैं कि मैं मोबाइल रिपेयर कर सकती हूं। लोगों के मोबाइल रिपेयर करती हूं तो मुझे बहुत खुशी होती हैं।’’
 
वह बताती हैं कि - ‘‘मैंनें अलग दूकान नहीं लगाई, पापा की किराणे की दूकान में ही मोबाइल का सामान रखने लगी। दोनों काम साथ में हो जाते हैं। पहले रिपेयरिंग का काम शुरू किया, उसके बाद ऐसेसीरिज रखने लगी, फिर रिचार्ज और नए सिम कनेक्शन का काम साथ में शुरू किया।’’

अधिकतर मोबाइलों में स्पीकर, माइक, एलसीडी, सिम साॅकेट, मेमोरी कार्ड साॅकेट व चार्जिंग साॅकेट की समस्याएं आती हैं। नीलम पीसीबी (पिन्टेड सक्रिट बोर्ड) को अच्छे से समझती हैं। पीसीबी पर जम्पर लगाने हो या इंटिग्रेटेड सक्रिट, आयरन व होट गन के द्वारा आसानी से लगा देती हैं।
 
वह कहती हैं कि शुरू-शुरू में तो आयरन व होट गन चलाने में दिक्कत होती थी, लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं हैं। वह बताती हैं कि पहले तो घर वाले भी अकेले कहीं नहीं जाने देते थे, अब तो मैं कई प्रकार के काम करती हूं, बैंक की एजेण्ट भी हूं, काम करने के लिए घर व गांव से बाहर जाना ही पड़ता हैं।
 
उसे मोबाइल साॅफ्टवेयर का अनुभव नहीं हैं। स्मार्ट व एंड्राएड मोबाइल में आने वाली एप्लीकेशन संबंधीत खराबी को वह ठीक नहीं कर पाती हैं। अब वह मोबाइल साॅफ्टवेयर तथा एप्लीकेशन इंस्टालेशन करना सीखना चाहती हैं। बताती हैं कि गांव में मोबाइल का उतना क्रेज नहीं हैं जितना कस्बों व शहरों में हैं लेकिन नई टेक्नोलाॅजी को वह सिखना चाहती हैं। अभी महेंगे हैण्डसेट्स को उदयपुर भेज कर ठीक करवाती हैं।

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