Friday, December 30, 2011

अन्ना अभी संडास में है....अन्ना के मीडिया कवरेज पर व्यंग्य ......(लखन सालवी)

अन्ना के मीडिया कवरेज पर व्यंग्य ......
अन्ना अभी रालेगन सिद्दी में है... अभी संडास में है... उन्हें संडास में गए हुए बहोत देर हो गई है... अभी बाहर नहीं निकले है... कल शाम से उनकी तबियत थोड़ी ख़राब थी.....बाहर खेद उनके साथी चिंता में दिखाई दे रहे है.. देखिये देखिये  संडास का दरवाजा खुल रहा है.... अन्ना ठीक है... उनके चेहरे से लग रहा है कि लग रहा है उन्होंने संडास कर लिया है... अब वो बाथरूम की और बढ़ रहे है.. शायद नहाने जा रहे है..... केजरीवाल ने एक कार्यकर्ता को कह दिया है कि वो अन्ना के लिए गरम पानी कर दे, क्योंकि ठण्ड जयादा है.. अन्ना की तबियत ज्यादा ना बिगड़ जाए....
 
पते की बात - अन्ना की तबियत ज्यादा बिगड़ गई तो सारा प्रोग्राम फ़ीस्स्स हो जाएगा... 
 

Thursday, December 29, 2011

कांग्रेस के युवा नेता ने रची सामाजिक संस्था के खिलाफ साजिश

जन संगठनो को दबाने की राजनितिक लोगो द्वारा साज़िशे की जा रही है.. जनता और वंचित वर्गे के लिए जो काम सरकार को करने चाहिए वो गैर सरकारी संगठन कर रहे है.. ये राजनीतिक लोगो की नहीं भा रहा है... वो बिना समाज कार्य किये हुए ही समाज कार्यों के मसीहा बनना चाहते है...
बारां जिले में यूथ कांग्रेस के महासचिव जसविंदर सिंह साबी ने तो एक टीवी पत्रकार के सात मिलकर एक गैर सरकारी संगठन दूसरा दशक परियोजना के खिलाफ षड़यंत्र रच कर संगठन के कार्यकर्ताओं के खिलाफ दो नाबालिग सहरिया समुदाय की लड़कियों के द्वारा एफ आई आर दर्ज करवा दी है.... इस मामले की जानकारी यूथ कांग्रेस के रास्ट्रीय महासचिव राहुल गाँधी और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी तक भी पहुच चुकी है..... मामले की पूरी जानकारी के लिए खबरकोश डोट पर जाएँ..
क्लिक करे... http://www.khabarkosh.com/  और पढ़े लखन सालवी और फ़िरोज़ खान का लेख  "कांग्रेस के युवा नेता ने रची सामाजिक संस्था के खिलाफ साजिश "
 

जाति पंचायत में समाज के ठेकेदारों ने महिलों को नहीं बैठने दिया तो वे बिफर गई

बारां जिले का किशनगंज और शाहबाद क्षेत्र सहरिया जनजाति बाहुल्य है... कुछ महिलाएं जागरूक हुए है.. उन्होंने अन्य समुदायों की महिलाओं के साथ मिलकर अपना संगठन बनाया है जिसे "जागृत महिला संगठन" नाम दिन गया है. सभी महिलाऐं दूसरा दशक परियोजना के साथ जुड़कर जागरूक हुई है.. उनकी जागरूकता 24  दिसंबर को देखने को मिली.. किसी मामले को लेकर सहरिया समुदाय के लोगो के उनके प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सिताबाडी  स्थित वाल्मीकि मंदिर में 84 गाँवों की जाति पंचायत का आयोजन किया था.. पंचायत के आयोजन की सूचना गाँव गाँव में की गई थी... वहा समाज की जागरूक महिलाऐं भी पहुँच गई तो उन्हें पंचायत में भाग लेने आया देख समाज के पञ्च तिलमिला उठे उन्होंने घोषणा कर दी कि यह पुरुषो द्वारा की जाने वाली जाति पंचायत है इसमे महिलों के आने par मनाही है.. जब महिलाएं नहीं मानी तो.. समाज के एक पंच ने महिलों को गाली निकल दी... फिर क्या महिलाऐं ऐसी बिफरी कि पंच दुम दबाकर भाग गए.... महिलाओं ने पंचयत में भाग लिया और अपने बात रखी . .  यही नहीं महिलाओं ने उन पंचो के किलाफ पुलिस में रिपोर्ट भी दी..

पंचायत में अपनी बात रखती ग्यारसी बाई सहरिया

केलवाडा थानाधिकारी को रिपोर्ट देती सहरिया महिलाऐं

Saturday, December 10, 2011

सदी का महाचोर बाबा रामदेव

तहलका के लेटेस्ट अंक में पढ़िए इस सदी के सबसे बड़े चोर बाबा की करतूतों को उजागर करती मनोज रावत की रिपोर्ट 
रिपोर्ट का सार ये है कि बाबा रामदेव - हरिद्वार का सबसे बड़ा जमींदार है, अनुसूचित जातियों के लोगो की जमीन चार सौ बीसी कर खरीदी है, 

रजिस्ट्री कर चोरी किया, भिजली कनेक्सन फर्जी तरीके से करवाया, अनुसूचित जाति के लोगो कि ज़मीं फर्जी तरीके से खरीदी, सरकार को झूंठी जानकारी देकर ज़मीने खरीदी, 
प्रशासनिक अधिकारीयों की मिलीभगती से हजारों बीघा जमीनो का बेनामी ट्रांज़ेक्सन करवाया, 
अब देखना है कि क्या सीलिंग एक्ट के तहत इस बाबा के खिलाफ कोई कार्यवाही होगी ?

लेकिन आप तहलका कि रिपोर्ट जरुर पढ़े... और अधिक से अधिक शेयर करे.... ताकी लोग उसकी हकीकत से वाफिक हो सके...

Friday, December 9, 2011

एफडीआई... रोक पायेंगे ?

यूआईडी का विरोध हुआ था....रोका जा रहा था . .  क्या हुआ ?  रुका ?    नहीं रुका
अब एफडीआई का विरोध हो रहा है.... रोकने के लिए . . . क्या होगा ?  रुकेगा ? ... ????
 
पते की  बात
वैसे इस देश के गरीबो को ना तो यूआईडी से कोई नुकसान है ना ही एफडीआई से.... बल्कि इन से कुछ ना कुछ फायदा ही है

Monday, July 18, 2011

ये पब्लिक है सब जानती है..

लखन 18 July 2011 -  बारां जिलें में हुई अतिवृष्ठी  से कई मकान क्षतिग्रस्त हुए... बारां शहर में बाढ़ आ गई... मंत्री प्रमोद जैन भाया स्वयं  ट्रेक्टर चलाते हुए बारां शहर में घूमें और भूखो को भोज़न दिया. . . उनके काम को मीडिया ने बहोत सराहा. . . ट्रेक्टर चलाते हुए मंत्री भाया की कई फोटोएं छापी. . पर मीडिया ने यह सवाल करने की ज़हमत नहीं उठाई कि खैरुना, सिम्लोद, दिगोद्पार, फतेहपुर, सोडाना का डांडा सहित सैकड़ो गाँवों में भूखे और बिना छत के रहे लोगो की सुध क्यों नहीं ली...
एक्के दुक्के  न्यूज़ पेपर को छोड़ कर सब तमाशेबिनो के तमाशो को  छापते  रहे...
विपक्ष भी मजे लेता नज़र आया... मदन दिलावर भी भाया की देखा देखी ट्रेक्टर पर बैठ कर बारां शहर के गरीबों की सुध लेने पहुंचे. . . मीडिया ना होता तो शायद वो मदद का दिखावा करने भी बाहर नहीं आते... लेकिन मीडिया कवरेज़ को देखते हुए वो भी ट्रेक्टर से लोगो के बीच आये... और तो और वो ट्रेक्टर के इंजन  के आगे लगे बम्पर पर बैठ कर जनता की सुध लेने आये...
और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ उनके गुणगान करता रहा . . जैसे जनता कुछ समझती ही नहीं...अगर भाया और दिलावर गावों में उन गरीबों तक पहुचते जिनके सर पर साया ना रहा... जिनके बच्चे बरसाती बारिश में भीगते रहे.. जिनके आशियाने नहीं रहे... और जो भूखे थे..  तो जनता की जयादा सम्पेती पाते.. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.. राजनेताओं ने तो सुध ना ली पर मीडिया ने भी ना ली..

Tuesday, January 4, 2011

उठने लगी वंचित वर्ग की भूमि अधिकार की मांगे - लखन सालवी


 उठने लगी वंचित वर्ग की भूमि अधिकार की मांगे - लखन सालवी

      देशभर में भूमि के मामले में दलितों की स्थिति ठीक नहीं है। कमजोर शोषित वर्ग की जमीनें छीनी जा रही है, उनकी जमीनों की चंद रूपयों का लालच देकर खरीदी जा रही है। कभी कभार बड़ी जद्दोजहद के बाद दलितों को सरकार भूमि आवंटित करती है। उस पर भी प्रभावशाली उच्च वर्ग के लोग कब्जा कर लेते है। ये वंचित वर्ग के शोषित लोग उन लोगों के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाते और अंतोगत्वा कृषि भूमि आवंटन 1970 के नियम 14 (4) के तहत दलित को किए गए आवंटन को निरस्त कर भूमि ले ली जाती है।
बारां जिले की किशनगंज तहसील की परानियां ग्राम पंचायत के बंजारा जाति के लोगों को 4 वर्ष भूमि आवंटित की गई। सीमांकन करवाने के लिए उन लोगों ने कई बार पटवारी तहसीलदार के चक्कर लगाए लेकिन सीमांकन नहीं करवाया। थक हार के उन लोगों ने खाली पड़ी भूमि पर कब्जा कर काश्त करना आरंभ कर दिया। संयोग से वो खाली भूमि वन विभाग की थी और वनाधिकारी ने उन पर जुर्माना कर दिया। तब से ही वो लोग उस वन भूमि पर काश्त कर रहे है और प्रतिवर्ष जुर्माना दे रहे है। 22 नवम्बर 2010 को परानियां में ‘‘प्रशासन गांव के संग अभियानके तहत शिविर का आयोजन हुआ। उन लोगों ने शिविर प्रभारी को सीमांकन के लिए आवेदन किया। शिविर प्रभारी ने पटवारी को सीमांकन के आदेश दे दिए लेकिन अभी तक सीमांकन नहीं हो पाया है। सीमांकन के अभाव में बंजारा जाति के उन सभी लोगों को पता ही नहीं है उन्हें आवंटित हुई भूमि कहां है। उन्हें  कुछ वर्षो तक और अंधेरे में रखा जाएगा और फिर कृषि भूमि आवंटन नियम 14(4) की कार्यवाही कर भूमि वापस छीन ली जाएगी। ऐसे में क्या उन दलितों को क्या मिलेगा ?
यह तो कृषि भूमि की बात थी। दलितों को तो रिहायशी भूमि भी नहीं दी जाती। कई जगहों पर तो मुर्दे दफनाने के लिए भी भूमि नहीं दी जा रही है। जबकि वंचित वर्ग के लोगों को राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम के नियम 158(1) 158(2) के तहत रियायती दर पर रिहायशी भूखण्ड़ दिए जाने के प्रावधान है। लेकिन राजस्थान में इन नियमों के तहत दिए जाने वाले 7 प्रतिशत भूखण्ड़ कहीं भी दिए गए हो, ऐसा नहीं हुआ है। भीलवाड़ा जिले के कोशीथल गांव में वर्ष 2004 में प्रशासन आपके द्वार अभियान के तहत आयोजित हुए शिविर में 60 लोगों को रिहायती दर पर भुखण्ड़ आवंटित किए गए थे। लेकिन किसी को भी आज तक पट्टें नहीं दिए गए, क्योंकि उनमें 60 फीसदी लोग दलित थे। आवंटन के 6 साल बाद 22 दिसम्बर 2010 को ‘‘प्रशासन गांव के संग अभियानके तहत आयोजित हुए शिविर में इन लोगों ने पुनः पट्टों की मांग की तो विकास अधिकारी ने पुनः आवेदन करने को कहा, ताकि दलित पुनः आवेदन करे और उनके आवेदन को निरस्त किया जा सके। दूसरी तरफ पिछले दो सालों में उच्च वर्गो के करीबन 75 लोगों ने आबादी भूमि पर अवैध कब्जा किया है। उनके साथ 8 भील जाति के लोगों ने भी खाली पड़ी आबादी भूमि में अपने तंबू गाड़ दिए और रहने लगे। उच्च वर्ग को यह नागवार गुजरा और वो इनके तंबू उखाड़ने के प्रयास में लगे है। प्रशासन यह सब कुछ देखकर मौन है।
खैर राजस्थान में ऐसे कई मामले है और दलितों पर अत्याचार का एक बड़ा कारण भूमि है। दलितों की स्थिति में सुधार, खासकर भूमि सुधार पर चर्चाएं होती रही है और उन्हीं चर्चाओ का नतीजा है कि वंचित वर्ग के लोगों की भूमि बचाने उन्हें भूमि दिलवाने के लिए राजस्थान भूमि अधिकार अभियान चलाया जा रहा है। भूमि सुधार की दिशा में आन्दोलन की अतिआवश्यकता महसूस की जा रही है। भूमि सुधार के लिए तैयारी आरंभ हो चुकी है।
भूमि सुधार की उसी दिशा में पहला कदम था कि विकास अध्ययन संस्थान में 28 दिसम्बर 2010 को विकास अध्ययन संस्थान में राजस्थान भूमि अधिकार अभियान की ओर से सेमीनार आयोजित किया गया। एक्शनएड, आइडिया डगर संस्था के सहयोग से आयोजित इस सेमीनार में राजस्थान में दलितों के लिए काम कर रहे 70 लोगों ने भाग लिया और अपने-अपने क्षेत्रों में दलितों की भूमि की स्थिति के बारे में बताया उनकी स्थिति में सुधार के लिए विचार प्रस्ताव रखे। भूमि सुधार पर विकास अध्ययन संस्थान के प्रो. सूनील रे का कहना है कि सूचना के अधिकार, भोजन के अधिकार, शिक्षा के अधिकार कानूनों की तरह ही भूमि अधिकार कानून बनना चाहिए। भूमि के लिए हांलाकि पहले से ही कानून तो बने है लेकिन उनमें कई कमियां है, अनुपालना नहीं हो रही है। हर एक के पास खेती करने रहने के लिए भूमि हो, और यह हक दिलवाने के लिए भूमि अधिकार कानून की सख्त जरूरत है। दलितों को एक हाथ से भूमि देकर दूसरे हाथ से वापस छीनी जा रही है। कृषि भूमि आवंटन नियम के तहत सरकार ने गैर खातेदारी से खातेदारी देकर महज काश्त का अधिकार दिया है, मालिकाना हक नहीं। वंचितों को जमीन एलोट करने की बात पर सरकारें कहती है कि भूमि नहीं है दूसरी तरफ वहीं सरकारें पूंजीपतियों को जमीनें खरीद कर देती है। राजस्थान में सरपल्स भूमि है, भूमि बैंक बनाकर भूमिहीनों को भूमि दी जानी चाहिए।
भूमि अधिकार की मांग को लेकर देश व्यापी भूमि अधिकार जनसत्याग्रह की तैयारी शुरू हो गई है। इस संदर्भ में 26 राज्यों में राज्य स्तर पर वंचित वर्ग के लिए कार्य कर रहे संस्था-संगठनों के लोगों सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श बैठकों का आयोजन हुआ है। 2 अक्टुबर 2011 से भूमि अधिकार की मांग को लेकर देशभर में जीप यात्रा निकाली जाएगी तथा 2 अक्टुबर 2012 से ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी।