Friday, March 30, 2012

डगर के दल ने ली दलित उत्पीड़न मामलों की जानकारी

 
 गुणिया में दलित व्यक्ति की पगड़ी जलाने के मामले की जानकारी
लेते डगर के पूर्व प्रदेश संयोजक भंवर मेघवंशी
30 मार्च 2012। दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान के दल ने गुरूवार को राजसमन्द जिले के गांवों का दौरा कर दलित अत्याचारों के मामलों की जानकारी ली। वे 40 मील, सोलंकियों का गुढ़ा, गुणिया व डेकवाड़ा गांव में गए। उल्लेखनीय है कि कुंआथल ग्राम पंचायत के गुणियां गांव के गोवर्धन लाल बलाई ने 13 मार्च को दिवेर थाने में रिपोर्ट दी थी कि वह 11 मार्च को बियाना में गया था वहां किसन लाल गुर्जर ने अपने साथियों से मिलकर उसके सिर से पगड़ी को छीन लिया और भट्टी में डालकर जला दिया। गोवर्धन लाल के अनुसार वह बियाना गांव में जा रहा था कि पीछे से किसन लाल गुर्जर अपने साथियों सहित आया और वे लोग रास्ता रोक कर उसे एक नोहरे में ले गए।  जहां उसे जातिगत गालियां निकालते हुए उसकी पगड़ी छीन ली और भट्टी में डालकर जला दिया। गोवर्धन लाल को धमकी भी दी कि आगे से वो गुर्जरों के जैसी पगड़ी ना पहने वरना जिस तरह से पगड़ी को भट्टी में डाला उस तरह से उसे भी डाल देंगे।
सोलंकियों का गुढ़ा गांव की एक दलित महिला टमू बलाई को गुर्जर जाति के लोगों द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा है। टमू बाई ने डगर के कार्यकर्ताओं को बताया कि गांव के गुर्जर जाति के लोग उसके बाड़े की चारदिवारी में लगे पत्थरों को ले जाते है। उसने कई बाद उनकी शिकायत की लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही है।
दल के सदस्यों ने 40 मील गांव के पास चल रहे महानरेगा कार्यस्थल पर दो दलित महिलाओं के मटके फोड़ने व जातिगत गालियां निकालने के मामले की जानकारी ली। 40 मील गांव की दलित बलाई जाति की महिलाओं ने डगर के कार्यकर्ताओं को बताया कि वे 27 मार्च को महानरेगा कार्यस्थल पर पानी पिलाने का कार्य कर रही थी।  दोपहर बाद सुखदेव सिंह, सेना सिंह व श्रवण सिंह निवासी सुनातों का बाडि़या आए और सुखदेव सिंह ने जातिगत गालियां देते हुए उनकी पानी की मटकियों को लातें मार कर फोड़ दिया। सूचना मिलने आए पुलिस थाने के कांस्टेबल के साथ भी उसने बद्तमिजी की। कांस्टेबल की सूचना पर पुलिस जाप्ता आया और सुखदेव सिंह को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन पुलिस ने आईपीसी की धारा 107 व 151 में मामला दर्ज कर चालान पेश कर दिए। सुखदेव सिंह पाबंद होकर खुला घुम रहा है। महिलाओं ने पुलिस पर मिलीभगति का आरोप लगाते हुए कहा कि जातिगत गालियां देने वाले व सार्वजनिक अपमान करने वाले के खिलाफ पुलिस अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज करने की बजाए पुलिस ने आरोपी को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार कर चालान पेश किए है। पीडि़त पक्ष ने पुलिस अधीक्षक से मिलकर न्याय दिलवाने की गुहार भी है लेकिन फिलहाल कोई सुनवाई नहीं हुई है।

डेकवाड़ा में मृतक रामलाल के परिवारजनों से चर्चा करते दल के सदस्य
दल के लोगों ने डेकवाड़ा गांव में 3 वर्ष पूर्व हुई राम लाल बलाई की हत्या के मामले में भी जानकारी ली। डेकवाड़ा गांव के लोगों ने उन्हें बताया कि असली आरोपी खुल्ले घूम रहे है जबकि निर्दोषियों को पुलिस ने संदेह के आधार पर पकड़-पकड़ कर खूब पीटा।
डगर के सदस्य भंवर मेघवंशी ने कहा कि राजसमन्द जिले में दलित अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही है। दलितों को मारा जा रहा है, उनका अपमान किया जा रहा है, लेकिन पुलिस व प्रशासन मौन है। उन्होंने बताया कि गुणिया गांव के गोवर्धन लाल बलाई की पगड़ी छीकर जलाने का मामला जब डगर की जानकारी में आया तो डगर द्वारा राजसमन्द जिला कलक्टर व पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन भेजकर कार्यवाही की मांग की गई थी। लेकिन अभी तक अपराधी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। अपराधी खुल्ले आम घूम रहे है और पीडि़त पक्ष को धमका रहे है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पुलिस प्रशासन इसी प्रकार मौन रहा तो शीघ्र ही राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
दल में सदस्य भंवर मेघवंशी, पूर्व सरपंच कालूराम सालवी, मजदूर किसान शक्ति संगठन के खींमाराम कटारिया, खाखरमाला ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच देवीलाल सालवी, प्रभु लाल, हिरालाल मेघवंशी थे।

परधान बन के आ गए

जितने हरामखोर थे कुर्बो-जवार में।
परधान बनके आ गए अगली कतार में।।
दीवार फांदने में यूं जिनका रिकार्ड था।
वे चौधरी बने है उमर के उतार में।।
फौरन खजूर छाप के परवान चढ़ गई।
जो भी ज़मीन ख़ाली पड़ी थी कछार में।।
बंजर ज़मीन पट्टे में जो दे रहे हैं आप।
ये रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखर में।।
जब इस मिनट की पूजा में घंटों गुजार दें।
समझों कोई ग़रीब फंसा है शिकार में।।
                                          - अदम गोण्ड़वी

Tuesday, March 20, 2012

अंधविश्वास से सराबोर भारतीय महिला दिवस

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दशामाता का पूजन करती महिलाएं
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दशामाता का पूजन करती नववधूंए
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Thursday, March 15, 2012

भंवर मेघवंशी पत्रकार नहीं है . . .

वंचितों के लिए लिखने वाला, उनके लिए आवाज उठाने वाला, उनके लिए नारे लगाने वाला, उनके लिए पैरवी करने वाला पत्रकार नहीं
15 मार्च । भीलवाड़ा के प्रेस क्लब ने भंवर मेघवंशी को पत्रकार मानने से  ही इंकार कर दिया है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि वंचितों के लिए लिखने वाला, उनके लिए आवाज उठाने वाला, उनके लिए नारे लगाने वाला, उनके लिए पैरवी करने वाला पत्रकार नहीं हो सकता है। मेघवंशी ने प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए आवेदन किया था।
भीलवाड़ा प्रेस क्लब में सभी साथियों की उपस्थिति में ऐसा कहा गया है तो इससे यह भी शाबित हो गया है कि भीलवाड़ा जिले में वंचित वर्ग के लोगों की आवाज उठाने वाला भंवर मेघवंशी के अलावा कोई नहीं है। क्योंकि सदस्यता न देने का कारण यह बताया गया है कि वो गरीबो के लिए आवाज उठाता है, पीडि़तों के पक्ष में नारे लगाता है।
भंवर मेघवंशी (सम्पादक-डायमंड इंडिया)
उल्लेखनीय है कि वास्तव में भंवर मेघवंशी एक झोलाछाप पत्रकार है। वो गांव में जाते है, गरीब की सुनते है, पीडि़त की सुनते है और लिखते है। वो महज लिखते ही नहीं वरन गरीब व पीडि़त को न्याय दिलवाने के लिए हर स्तर पर प्रयास भी करते है। जरूरत पड़ने पर नारे भी लगा देते है। जब तक पीडि़त को न्याय नहीं मिल जाता, प्रयास करते रहते है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में भंवर मेघवंशी ग्राम गदर पुरस्कार (राज्य स्तरीय) व सरोजिनी नायडू अवार्ड (नेशनल लेवल) से सम्मानित है तथा भीलवाड़ा से डायमण्ड इंडिया नाम की एक मासिक पत्रिका व खबरकोश.काम का प्रकाशन और संपादन करते है। लेकिन प्रेस क्लब ने इन्हें पत्रकार मानने से इंकार किया है। गजब है !
लगता है प्रेस क्लब वालों को वो ही पत्रकार लगता है जो लिखता है, दलाली करता है, सबकों चाय नाश्ता करवाता है। गरीबों के प्रति आत्मीयता रखने वाले, उनके लिए लिखने वाले और उनके लिए आवाज उठाने वाले भंवर मेघवंशी को पत्रकार नहीं माना गया है। वाकई में जमाने को बदल दिया गया है और पत्रकार की परिभाषा को भी। बहरहाल भंवर मेघंवशी ने प्रेस क्लब से आग्रह किया है वो उनका आवेदन पत्र मय आवेदन शुल्क के वापस लौटा दे।

Tuesday, March 13, 2012

दलित की इज्जत को भट्टी में झौंक दिया

पीडि़त-गोरधन बलाई
राजसमन्द जिले की कुंआथल ग्राम पंचायत के गुणियां गांव के गोरधन बलाई का साफा किसन लाल गुर्जर ने छीनकर जला दिया। 11 मार्च को गुणियां का गोरधन बलाई बियाना गांव में बीडि़यां लेने गया था। वह बीडि़यां लेकर सिजारे पर ले रखे खेत पर काम करने जा रहा था कि पिछे से बियाना का किसन लाल गुर्जर अपनी जाति के दो-तीन युवकों के साथ आया और उसे रोककर जातिगत गालियां देते हुए एक नोहरें में ले गए। वहां बैठे हुए गुर्जर जाति के लोगों ने गोरधन बलाई को जातिगत गांलिया दी, उसका साफा छीन लिया और पास में ही जल रही भट्टी में डालकर जला दिया।
उन्होंने न केवल उसे जातिगत गालियां दी बल्कि साफे को जला दिया और किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी। गोरधन उस दिन तो डर के मारे चुपचाप घर पर जाकर सो गया लेकिन दूसरे दिन परिवार के लोगों के पूछने पर पूरी बात उन्हें बताई।
इस दलित समुदाय के लोग सवर्ण गुर्जर जाति के लोगों से डर रहे है। पीडि़त आज 13 मार्च को दिवेर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने गया है। गुर्जर जाति के लोग दबाव बनाने की चेष्टा कर रहे है।
कुछ लोगों ने दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान के भंवर जी मेघवंशी से सम्पर्क कर मदद की गुहार की है। जरूरत पड़ी तो इस मामले में मदद के लिए तैयार रहे। क्या विचार है ?
भंवर मेघवंशी को अपनी व्यथा सुनाते बलाई समुदाय के लोग

Monday, March 12, 2012

जश्न-ए-सैलानी


कलाम पेश करते दिवाना ग्रुप मुम्बई के कव्वाल
मुम्बई के दिवाना कव्वाल ग्रुप ने जश्ने सैलानी में सूफी गायकी से सरकार सैलानी के चाहने वालों को मस्त कर दिया। कव्वाल ने सबसे पहले ख्वाजा मेरे ख्वाजा गाया, जिसे सुनकर श्रोता भक्ति में झूमने लगे। उसके बाद ‘‘पिया हाजी अली’’ गया तो उनपर पैसों की जमकर बरसाद हुई।
करेड़ा शरीफ में उर्स परवान चढ़ने लगा है। दूर दूर से सैलानी सरकार को चाहने वालो के काफिले उर्स में पहूंच रहे है। सरकार के आश्रम में महिला पुरूषों का हुजुम उमड़ रहा है। आश्रम का माहौल भक्तिमय हो गया है। चारों ओर हक सैलानी हक सैलानी की आवाजें गुंज रही है। चित्तौड़गढ़, मंदसौर, मुम्बई सहित कई जगहों से कव्वाल ग्रुप आए है। धूणे पर संतों का जमावड़ा है। लोग दर्शन कर के निहाल हो रहे है। परिसर में जगह जगह एलसीडी लगा दी गई है ताकि स्टेज पर हो रहे कार्यक्रमों को दूर बैठे लोग आराम से देख सके।
उर्स 14 मार्च तक है।

Sunday, March 11, 2012

करेड़ा शरीफ में जश्ने सैलानी में आपका स्वागत है . . .

लम्बे सफर के बाद बिती रात 10 मार्च को करेड़ा शरीफ जाना हुआ। मित्र परसराम बंजारा को दिल्ली जाना था और उनकी दिल्ली इच्छा थी, सरकार सैलानी के पटशिष्य सलीम बाबा साहेब से मिलने की। हमें डगर दिखाने वाले भंवर जी मेघवंशी भी साथ थे। वो हमारे साथ चलने को तैयार तो हो गए लेकिन एक शर्त पर कि ‘‘मैं (भंवर जी मेघवंशी) सलीम बाबा साहेब से मिलने नहीं आउंगा, मैं सरकार सैलानी के साधना स्थल पर उनसे मिलकर आप लोगों का बाहर इंतजार करूंगा।’’ दरअसल दूसरे दिन की सुबह से मेघवंशी जी को करेड़ा शरीफ में ही जायरीन की खिदमत में रहना था और उनका मानना था कि सलीम बाबा साहेब से रात में मिल लिए तो वापस जाने के बारे में सोचना भी दुष्कर होगा। दूसरी ओर मेघवंशी जी को सुबह होने के साथ ही परसराम जी बसस्टेण्ड़ पर छोड़ना था ताकि परसजी दिल्ली जा सके।
सलीम बाबा साहेब
मेघवंशी जी वैसा ही कर रहे थे, जैसा वो सोच कर गए। हमारी एक टोली सरकार के दरबार में पहुंची। मेरा यह पहला मौका था उर्स की तैयारियों को देखने का। लम्बे चोड़े मैदान के आगे शानदार स्टेज तैयार किया जा रहा था। एक सफेदपोष, सफेद पगड़ी वाला शख्स ने आर्कषित कर लिया। वो स्टेज पर अन्य लोगों के साथ दरिया बिछाने व पर्दे लगा रहे थे। मेघवंशी जी हमारी टोली में बीच में आ गए और दबी आवाज में बोले-‘‘अरे यार मुझे देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी।’’ मैंनें मन में सोचा कि हो ना हो यहीं सलीम बाबा साहेब है।  मेघवंशी जी ने कहा कि मुझे अंदर की तरफ छोड़कर आप लोग बाबा साहेब से मिल लीजिए। मेघवंशी जी के साथ हम अंदर गए, वहां सरकार सैलानी से रूबरू(अंतःदर्शन) होने के बाद उनके भक्ति स्थल की ओर गए।
वहां पास ही में कई लोग टेंट की सिलाई में लगे थे। पता चला कि उर्स में आने वाले जायरीन के बैठनें के लिए खुले मैदान में टेंट लगाए जाने है। सार्गिदों (भक्तजनों-अनुयायियों) ने जब टेंट वालों से सम्पर्क किया तो टेंट वालों ने हाथ खड़े कर दिए। असल में सभी टेंट व्यापारियों के टेंट शादी पार्टियों में बुक थे। अब क्या करें . . . सरकार ने कह दिया टेंट खरीद लो। अब क्या मजाल की टेंट ना लगे। कपड़ा खरीदा गया, कारीगर बुलाए गए और सलीम बाबा साहेब के आशियानें के पास देखा तो लगता है कि कोई टेंट बनाने का कारखाना चल रहा है।
अब हम बाहर जाने की तैयारी में ही थे कि खिदमतगारों से पाला पड़ गया। अब खिदमतगारों ने क्या जमकर खिदमत की, पूछिए मत। क्या गुलाब जामुन, क्या बर्फी, क्या अंगूर और ढे़र सारी चीजें हमें खिलाई गई। दो-तीन बार चाय पिलाई। हम पहले ही मेघवंशी जी के घर भोजन करके गए थे। खैर अब हम सरकार सैलानी के जन्नत सैलानी से बाहर निकलें। मेघवंशी जी ने कहा कि आप लोग जाकर बाबा साहेब से मिल लीजिए।
हम बाबा साहेब के दीदार करने गए, एक एक कर उनके राम-राम, सलाम व नमस्कार किया। उन्होंने दुनियावी दिखाई देने वाले तरीकों की बजाए पता नहीं किस तरीके से हमारा नमन स्वीकार किया। और किया भी या नहीं ? नहीं पता। वो चलते जा रहे थे, दरीयां बिछा रहे लोगों के पीछे-पीछे, कह रहे थे ऐसे बिछाओं, वैसे बिछाओं, अरे यूं बिछाओं। और हम उन्हें रोकते हुए पांव छू रहे थे, उनकी राह में रोड़ा बनकर नमस्कार, राम-राम और सलाम कर रहे थे। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो तो आगे बढ़ते जा रहे थे, व्यवस्थाएं करवाने में मस्त थे। उस मस्ती में उन्होंने हमारी ओर देखा तक नहीं, और हो सकता है अपनी आंखों से देखा हो। वो हमें नहीं मालुम।
अब हम लौटने लगे मेघवंशी जी की ओर। हम आगे बढ़ते उससे पहले बाबा साहेब लाइट व्यवस्थाएं कर रहे लोगों से बातचीत करते हुए हमसे आगे-आगे चलने लगे। सामने कोई 200 फीट दूर मेघवंशी जी किन्हीं लोगों से बतिया रहे थे। मेघवंशी जी ने बाबा साहेब को अपनी ओर आते हुए देख, दूसरी राह पकड़ ली, जाने की। उनके पैर जैसे ही जाने के लिए बढ़े, बाबा साहेब के पैर वापस स्टेज की ओर मुड़ गए। वो वापस स्टेज की ओर बढ़ने लगे। हम मेघवंशी जी के पास गए, और उनके साथ घर जाने के लिए आगे बढ़ गए। पीछे से बाबा साहेब आते दिखाई दिए, कुछ लोगों को मेघवंषी जी को बुलाने के लिए भेजा, एक बुलाने के लिए रवाना होकर कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि साहेब ने एक और से कहा कि जा दौड़ के जा और बुला ला भाईसाब को।
दो युवक हांफते-हांफते हमारे पास पहूंचे और कहा, भाईसाब को बाबा साहेब बुला रहे है। अब तो मेघवंशी जी के प्रोग्राम फिस्स्स्स्स। हम सभी गए बाबा साहेब के दरबार में। बोले बैठ जाइए, हम सब बैठ गए, वो दूर-दूर से आए लोगों से बात करने में मस्त। दरबार कैसा ? 10 बाइ 18 का एक कच्चा केवलूपोश कमरा। झूले पर गुरूजी झूल रहे। चारों तरफ गुरूजी की तस्वीरें। बाबा साहेब बैठे हुए, उनके सामने जायरिनों का जत्थे, सलाम करते हुए और बाबा साहेब बड़े ही प्रेम से उनसे बतियातें हुए। आने वाले हर एक को खाने की बोलते। हरेक से कहते है - खाना खाओं, मेरे सामने बैठ कर खाओं या मन करे जहां बैठकर खाओं, खाना खाओं।
हमारे लिए भी फरमान जारी कर दिया, बैठ जाइए। हम सभी लाइन लगा कर उनके सामने ही बैठ गए।
बाबा साहेब ने यारों से कहा - भाई खाना खिलाओं इन्हें।
अरे बाबा साहेब अभी खाया है यहीं पर - हम बोले।
बाबा साहेब ने फिर यारों से कहा- अरे भई थे तो मस्त परांठे बनाओं।
यार बोले - बाबा साब चोकोर वाले बनाउ या गोल वाले ?
बाबा साहेब - भाई मस्त वाले बनाओं।
अब पता नहीं गोल वाले कौनसे थे, चोकोर वाले और मस्त वाले परांठे कौनसे थे। लेकिन थालियां लगा दी गई और फिर परांठे दो सब्जियों के साथ, नमकीन, लापसी, नमकीन, गुलाबजामुन, बर्फी, संतरे, पपीता आए। हम एक दूसरे का मुंह देखते गए और खाते गए। हमार पेट भी पोखर हो गया। सब कुछ उसमें समाता गया।
पर बाबा साहेब, वो तो लगे थे व्यवस्थाओं में। रात की 2 बजे तक हम उनके साथ रहे। वो व्यवस्थाओं में ही लगे थे। इधर जाते उधर जाते, लोगों से मिलते। फिर स्टेज पर जाते, दरियों को ठीक कराते, लाइट ठीक करवाते, बैनर लगवाते रहे। सब कुछ आप के लिए ... आ रहे है ना . ... आप

लखन हैरान

Friday, March 9, 2012

गहलोत साब के राज में . . .


अशोक गहलोत को दलितों व अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री कहा जाता है और कांग्रेस ने तो दलितों व अल्पसंख्यकों को बपौती के रूप में स्थापित कर रखा है। इन्हीं गहलोत व कांग्रेस के शासन में दलितों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जा रहे है वो भी सरकार के लोगों द्वारा, इससे बड़ी बदहाली और क्या हो सकती है। गोपालगढ हो या भीलवाड़ा पुलिस अत्याचार जारी है। सरकार व सरकार के सिपेहसालार दलितों व अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील नहीं है। उल्टा पीडि़तों को और अधिक प्रताडि़त किया जा रहा है। ऐसे कोई दर्जनभर मामले हाल ही में हुए है जिनमें से दो-तीन मामलों से आपको अवगत करा रहा हूं। अब आप ही तय किजिए कि राजस्थान सरकार दलितों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के बाद इनके मामलों में कितनी संवेदनशील है।
भीलवाड़ा जिले में आए दिन दलितों व अल्पसंख्यकों पर जुर्म हो रहे है। कहीं उच्च वर्ग द्वारा उनका बहिष्कार किया जा रहा है, तो कहीं उनकी झौपड़ी को जलाया जा रहा है कहीं साम्प्रदायिकता की आग में जबरन फैंका जा रहा है। जो लोग इन सब के लिए दोषी है, जगजाहिर हो जाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। आखिर क्यों ?
कुछ माह पूर्व जिला मुख्यालय के समीप की एक बस्ती में दो समुदाय के युवाओं में पुरानी रंजिस के चलते झगड़ा हुआ। जिसे दंगा कहा गया। वास्तव में हुआ यूं था कि एक समुदाय के लोग इबादत करके आ रहे थे तब दूसरे समुदाय के लोगों ने उनपर हमला कर दिया। कुछ देर में पुलिस वहां पहूंची और बेकसुरों की बेदर्दी से जमकर पिटाई की। पुलिस प्रड़ताना के खिलाफ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज उठानी चाही तो इस मामले में उनके नाम जोड़कर उन्हें भी प्रताडि़त करने किया गया। अब तो दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। लेकिन आंताताई तो अभी भी खुले आम घूम रहे है।
इससे भी बड़ा मामला एक गांव में हुआ जहां दलितों को प्रताडि़त किया गया। जिले के बड़ा महुआ गांव में उच्च वर्ग के लोगों द्वारा दलितों का सामुहिक बहिष्कार किया गया। दलितों का दोष यह था कि उन्होंने उच्च वर्ग के लोगों के विरोध के बावजूद एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन प्रशासनिक स्वीकृति के बाद किया। सर्वण हिन्दुओं को दलितों का यह दुस्साहस बिलकुल नहीं भाया और उन्होंने 31 दलित परिवारों के लोगों को बहिष्कृत कर दिया। उनका सार्वजनिक स्थलों पर उठना.बैठना बंद कर दिया गया, नाईयों द्वारा बाल काटने से इंकार कर दिया गया, किराणा स्टोर वालों ने सामान देने से इंकार कर दिया, सार्वजनिक होटलों व रेस्टोरेंटों में चाय व खाद्य पदार्थ नहीं दिया गया, अनाज की पिसाई करने से मना कर दिया गया।
यहीं नहीं सरकारी सर्वजनहिताय योजनाओं में भी भेदभाव किया गया दलित मोहल्ले में 5 दिन में एक बार जलापूर्ति की गई जबकि सर्वणों के मोहल्ले में रोजाना जलापूर्ति की जाती रही। यहां तक कि राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम (महानरेगाद्) में भी दलित जाति के लोगों को काम नहीं दिया गया।
दलित आर्थिक रूप से कमजोर हो जाए इसलिए सर्वणों ने दलित मिस्त्रियों को काम पर बुलाना बंद कर दिया, दलित मजदूरों को निर्माण मजदूरी अथवा खेत मजदूरी पर नहीं लगाया गया। इन दलितों के सार्वजनिक बसों व गांव के 35 आॅटो में सफर करने पर भी पांबदी लगा दी गई। आए दिन सवर्णों द्वारा दलितों के विरुद्ध झूठी शिकायतें, परिवाद और मुकदमे दर्ज करवाए गए। दलितों पर किए गए इन अत्याचारों का सूत्रधार बड़ा महुआ का कल्याणमल जाट है। यह महाराष्ट्र के जालना जिले में कम्प्रेशर का व्यवसाय करता है। गांव में उसी का दबदबा है। उसे ‘‘श्री सरकार’’ कहा जाता है। दलितों द्वारा निकाले गए बेवाण से नाराज होकर श्रीसकरकार के नेतृत्व में गांव के ग्रामीणों ने 31 दलित रेगर परिवारों का सामाजिक रूप से बहिष्कार कर दिया। फरमान जारी कर दिया गया कि बहिष्कृत परिवारो के लोगों से गांव का कोई शख्स बात नहीं करेगा। अगर कोई इनकी मदद करेगा अथवा इनसे बात भी करेगा तो उस पर 11 हजार रुपए का आर्थिक दण्ड लगाया जाएगा तथा उसका भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा। 12 सितम्बर 2011 को पीडि़त दलितों ने इस सामाजिक बहिष्कार की शिकायत पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा को कर दी। लेकिन घटनाक्रम के चार माह बाद 24 जनवरी 2012 को मुकदमा दर्ज किया गया।

भंवर मेघवंशी (पूर्व प्रदेश संयोजक - डगर)
दलितों ने न्याय के लिए संघर्ष किया वे 10 बार जिला कलक्टर के पास, 5 बार उपखंड अधिकारी के पास, 6 बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष के पास, 3 बार पुलिस अधीक्षक के पास, 2 बार अतिरिक्त जिला कलक्टर के पास तथा एक बार राज्य के गृह सचिव और एक बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास गए। जब कहीं से भी न्याय नहीं मिला तो पीडि़त लोग दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान के कार्यकर्ताओं से मिले। इस अभियान के पूर्व प्रदेश संयोजक भंवर मेघवंशी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व यूथ कांग्रेस के भंवर जितेन्द्र सिंह को ज्ञापन भेज कर कार्यवाही की मांग की। उसके बाद जिला कलक्टर ओंकार सिंह बड़ा महुआ पहूंचे और दोनों को पक्ष को बुलाकर समझाइस की। उन्होंने दलितों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए न केवल दलितों व सवर्णों के बीच समझौता करवाया बल्कि दलित के घर चाय भी पी। हांलाकि इससे पूर्व पीडि़त दलित जब जिलाधीश ओंकार सिंह के कार्यालय में न्याय की गुहार करने गए तब जिलाधीश महोदय के जहन से संवेदनशीलता यात्रा पर गई हुई थी। खैर उपरोक्त से सरकार व प्रशासन की संवेदनशीलता साफ-साफ समझ आती है।
हाल ही में एक और दलित अत्याचार का मामला सामने आया। भीलवाड़ा के नजदीक ही बालाजी का खेड़ा गांव में एक खेत पर बनी दलित की झौंपड़ी में आग लगा दी। झौंपड़ी सहित उसमे रखा सामान जलकर खाक हो गया। झौंपड़ी में सो रहा शांतिलाल नायक (16 वर्ष) अपनी सूझबूझ से बच गया। आग लगाने वालों की मंशा झौंपड़ी में सो रहे लोगों को जिंदा जलाने की थी। लेकिन संयोग था कि उस दिन दलित परिवार का मुखिया किसी काम से बाहर गया था अतः उसका पुत्र शांतिलाल नायक ही झौंपड़ी में सो रहा था। आग लगने पर शांतिलाल लोहे के पलंग के नीचे छुप गया और बाद में वहां से निकलकर पड़ौस के खेत में भाग गया जिससे उसकी जान बच गई।
उल्लेखनीय है कि बालाजी का खेड़ा में डाक्टर गुप्ता का खेत है। खेत की भूमि को लेकर डाक्टर गुप्ता व मोती कीरए भैरू कीरए शंकर कीर तथा नारायण कीर के बीच विवाद है। डाक्टर गुप्ता की भूमि पर शांतिलाल नायक के पिता रामचंद्र नायक मुनाफे पर खेती करते है। खेत पर ही झौंपड़ी बना रखी है उसी में रहते है। कीर बंधु चाहते है कि रामचंद्र खेती करना छोड़ दे। उन्होंनें वारदात करने से पहले रामचंद्र नायक को धमकी भी दी। तब रामचंद्र ने कीर बंधुओं से मोहलत मांगी थी कि वो खेत में खड़ी फसल ले लेने के बाद अगली बार से डाक्टर गुप्ता के खेत में साझेदारी से खेती का कार्य नहीं करेगा। लेकिन कीर बंधु उसे तुंरत खेत से निकालना चाहते थे। रामचंद्र को बात ना मानते देख उन्होंने झौंपड़ी में आग लगा देने की धमकी भी दी। उसके बाद रामचंद्र नायक को खेत में स्थित झौंपड़ी में सोता समझकर कर आग लगा दी। अगर यह भी मान लिया जाए कि आग लगाने वालों की मंशा रामचंद्र को जलाने की नहीं थी फिर भी उनके द्वारा दलित व्यक्ति को भयभीत करने इस कोशिश से शांतिलाल नायक की जान जा सकती थी। फिर एक दलित की सम्पति को नष्ट करने का अधिकार कीर बंधुओं को किसने दिया ? फिलहाल पुलिस अपने अंदाज में जांच कर रही हैए जो शायद कभी पूरी भी होगी या नहीं लेकिन हां एक दलित की झौंपड़ी को जलाकर अत्याचार करने वाले लोगों को जरूर राहत मिलेगी। बहरहाल दलितों पर किसी भी प्रकार का अत्याचार होने पर आगे आकर आवाज उठाने वाले दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग की अध्यक्ष डा. शांता सिन्हा को पूरे मामले से अवगत कराते हुए कार्यवाही की मांग की है। अलबत्ता दलितों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है, फिर भी हमें गर्व से कह रहे है . . .  जय हिन्द . . . वाह रे हिन्द के लोगों