Sunday, May 10, 2015

हाथों से तकदीर लिखने की कवायद

  • लखन सालवी
अतीत के पन्नों को उलटते हुए वह बताती हैं कि चंद लोग होते हैं जो हम जैसे असहाय लोगों के दर्द को समझते हैं और मरहम लगाने की चेष्टा करते हैं। वह अतीत को भूल जाना चाहती हैं और भविष्य को अपनें हाथों से संवारने की जिद पर अड़ी हुई हैं। जीवन के तीन दशक पूरे करने जा रही केसर मीणा दोनों पैरों से विकलांग हैं, हाथों के सहारें चलती हैं।
 डूंगरपुर जिले की साबला तहसील के छोटे से गांव गडा अरेन्डिया की केसर मीणा दोनों पैरों से विकलांग हैं। 9वीं कक्षा पास नहीं कर पाई तो 10वीं की परीक्षा ओपन से दी लेकिन पास नहीं हो पाई। उसे हर काम में सहारे की जरूरत पड़ती हैं। बताती हैं कि अब तक देर से ही सही सहारे मिलते रहे हैं लेकिन अब मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं हैं। मैं खुद के सहारे पर जीवन जीना चाहती हूं। वह छोटे भाई व पिताजी के साथ रहती हैं। बड़ा भाई शादी के बाद अलग रहने लगा। पिताजी बूढ़े हो गए हैं, अब वे काम नहीं कर सकते हैं। छोटा भाई भी उसे बोझ समझता हैं। केसर बताती हैंे कि अमूमन लोग हम विकलांगों को बोझ मानते हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो हमारी मदद करते हैं, राह दिखाते हैं, हौंसला बढ़ाते हैं।

केसर मीणा हाल में स्टेप एकेडमी उदयपुर में व्यावसायिक सिलाई का प्रशिक्षण ले रही हैं। वहां कई युवतियां सिलाई का प्रशिक्षण ले रही हैं। सभी पैरों से चलने वाली मशीनों पर सिलाई सीखती हैं वहीं केसर हाथ से चलने वाली मशीन से। उसे मलाल हैं कि उसके पैर नहीं हैं, वह कहती हैं पैर होते तो मैं भी फटाफट सिलाई कर पाती, हाथ से मशीन को तेज गति से नहीं चलाया जा सकता हैं। जुदा हालातों के बावजूद वह हताश नहीं हैं, कहती हैं “हाथ से चलने वाली मशीन से सिलाई सीख लूंगी और बाद में बिजली से चलने वाली मशीन ले आऊंगी।“ वह बताती हैं कि एक माह पहले तक जीवन के प्रति कोई उमंग ही नहीं थी। जीवन जीने की कोई राह ही नजर नहीं आती थी। एक माह में ही इतने ख्वाब बुन लिए कि अब उन्हें पूरा करने की तैयारी करने लगी हैं।

स्टेप एकेडमी आने की राह उसे सामाजिक कार्यकर्ता साधना कंवर ने दिखाई। वह आजीविका ब्यूरों द्वारा आसपुर में संचालित श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने गडा अरेन्डिया गांव में एक बैठक की। केसर ने भी इस बैठक में भाग लिया। साधना कंवर ने स्टेप एकडेमी व वहां संचालित प्रशिक्षणों के बारे में जानकारी दी। तब केसर के जीवन में नई उमंग पैदा हुई। उसने तय कर लिया कि उसे व्यवसायिक सिलाई का प्रशिक्षण लेना हैं।

11 साल पहले केसर की मां का देहावसान हो गया। केसर के 4 बहनें हैं, 2 उससे बड़ी हैं व 2 उससे छोटी। उसके एक बड़ा और एक छोटा भाई हैं। दोनों भाईयों व चारों बहनों की शादियां हो चुकी हैं। बड़ा भाई मुम्बई में होटल में कार्य करता हैं तथा छोटा भाई उदयपुर में कडि़या कार्य करता हैं। शादी से पहले चारों बहनें भी कडि़या कार्य करती थी। जिससे परिवार का गुजारा चलता था। उनकी शादियां हो जाने के बाद परिवार आर्थिक तंगी में आ गया। खेती के नाम पर महज 2 बीघा जमीन हैं। बारिश के दिनों में खेत में पानी भर जाता हैं जिससे फसल नहीं हो पाती हैं। रबी की फसल हो पाती हैं, लेकिन इतना ही उपजता हैं कि परिवार का आधे साल का गुजारा हो जाए। 

केसर बचपन से ही मुश्किलों का सामना कर रही हैं। बचपन से हाथों के बल पर रेंगकर स्कूल जाती थी। पहली से पांचवी तक की पढ़ाई तो गांव के स्कूल में पूरी कर ली। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से दूर जाना था। पिताजी इतने सक्षम नहीं थे कि उसे पढ़ा पाते। स्कूल की एक अध्यापिता ने उसके पिताजी को छात्रावास के बारे में जानकारी दी। पिताजी उसे साईकिल पर बैठाकर 5 किलोमीटर दूर स्थित छात्रावास में ले गए। छात्रावास के वार्डन ने केसर की हालत देखी तो उसके पिताजी से कहा ‘‘यहां पानी की बहुत समस्या हैं, हेण्डपम्प से पानी भरकर लाना पड़ता हैं, यह पानी कैसे लाएगी, कपड़े कैसे धोएंगी?’’ उसने केसर की विकलांगता को देखते हुए प्रवेश देने से इंकार कर दिया।

केसर के अब तक के जीवन में करीब दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जिन्होंने उसकी मदद की। छात्रावास का वार्डन भी उनमें से एक हैं। एक बार तो वार्डन ने प्रवेश देने से इंकार कर दिया लेकिन उसने केसर की ओर गौर से देखा तो उसका मन पसीज गया, वह प्रवेश देने पर तैयार हो गया। उसने केसर के पिता से कहा कि छात्रावास में 30-35 छात्राएं हैं, वो उसकी मदद कर दिया करेंगी। केसर को प्रवेश दे दिया गया। केसर कुछ ही समय में सब छात्राओं के साथ घुलमिल गई। सभी उसकी सहेलियां बन गई। सहेलिया बारी-बारी से हर दिन उसके लिए हेण्डपम्प से पानी ले आती, उसके कपड़े सूखाने जैसे कामों में भी मदद कर देती। वह 3 साल तक वहां रही। वहां संगीता व दीपिका उसकी अजीज सहेलियां थी। वे दोनों हर वक्त उसका ख्याल रखती। छात्रावास से स्कूल आना-जाना हो या घर से छात्रावास आना-जाना हो केसर को समस्या का सामना करना पड़ता था। उसे बस में चढ़ने-उतरने में बड़ी दिक्कत होती। खासकर गर्मी के दिनों में। गर्मी के दिनों में हाथों के बल रेंग कर चलना उसके लिए बहुत मुश्किल था। अपनी तीन पहिया साईकिल वह लम्बी दूरी तक नहीं चला पाती थी। दीपिका उसे छात्रावास से स्कूल ले जाने व लाने में मदद करती थी। अवकाश होने पर जब घर जाती तो संगीता तीन पहिया साईकिल में केसर को उसके घर छोड़कर फिर अपने गांव जाती। संगीता का घर केसर के गांव से थोड़ी दूर ही हैं। 9वीं की परीक्षा में केसर एक विषय में फेल हो गई। तब नियमों का हवाला देकर उसे छात्रावास से निकाल दिया गया।

उसमें पढ़ने की ललक थी। 10वीं की परीक्षा ओपन से दी, लेकिन परीक्षा केंद्र सागवाड़ा में था। बस में आना-जाना पड़ता था। केंद्र तक पहुंचने में उसे बहुत दिक्कतें आई। अंकल का लड़का उसे बस तक छोड़ देता। सागवाड़़ा में बस से उतर कर आॅटों से वह परीक्षा केन्द्र तक पहुंचती। उसके पास बस किराए के लिए पर्याप्त रूपए भी नहीं थे। बेरण अपंगता व गरीबी के चलते वह परीक्षा पास नहीं कर पाई। उसने विकलांग कार्ड बनवाया था लेकिन वह कहीं खो गया, उसे नहीं मालूम की नया कार्ड कहां और कैसे बनता हैं। कार्ड न होने से बसों में उसे यात्रा व्यय में छूट नहीं मिल पाती हैं।

एक बार 15 अगस्त के अवसर पर गांव के सरकारी विद्यालय में आयोजित समारोह देखने जा रही थी तो उसकी सहेली संगीता उसे मिली। केसर के गांव में संगीता की मौसी भी रहती हैं। अक्सर संगीता गर्मियों की छुट्टियों में अपनी मौसी के यहां आ जाती हैं। बातचीत के दौरान केसर को पता चला कि संगीता को सिलाई करना आता हैं। उसने संगीता से कहा कि वह उसे सिलाई सीखा दे। संगीता तैयार हो गई। उसके बाद जब तक संगीता गडा अरेन्डिया में रही, केसर उसके पास गई और सिलाई सीखी। उसे हर महीने 500 रूपए विकलांग पेंशन के रूप में मिलते हैं। इन पैसों को जोड़कर उसने सिलाई की मशीन खरीद ली। जब से उसने सिलाई करना सीखा, उसके बाद से घर की किसी भी महिला को किसी ओर से सिलाई करवाने की जरूरत नहीं पड़ी। पर सिलाई में वह इतनी दक्ष नहीं हो पाई थी कि इससे व्यवसाय कर सके। स्टेप एकडेमी में सिलाई का प्रशिक्षण पूरा होने वाला हैं। उसने राजपूती ड्रेस व सलवार सूट बनाना सीख लिया हैं। कहती हैं “सिलाई की दूकान लगाऊंगी।“

उसने अब तक शादी नहीं की। कहती हैं “शादी के कई रिश्ते आए लेकिन विकलांगों के। मेरा विवाह विकलांग से ही करवाना चाहते हैं। कोई गैर विकलांग मुझसे शादी नहीं करना चाहता। मुझे किसी विकलांग से शादी करने में कोई हर्ज नहीं हैं लेकिन मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं, इसलिए पहले खुद कमाऊंगी, फिर शादी करूंगी।“

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