Sunday, May 13, 2018

ऐसे है भीलवाड़ा वाले भंवर मेघवंशी . . .

  • लखन सालवी
आप भी उनके बारे में अपने अनुभव अपनी वॉल पर लिखिए और हेश टैग करिए और खास लोगों को टैग भी करिए। ये करना इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि समाजसेवी, लेखक, पत्रकार व चिंतक भंवर मेघवंशी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की और उस आखिरी पोस्ट के बाद उन्होंने फेसबुक को डिएक्टीवेट कर दिया, व्हाट्सएप्प बंद कर दिया, जितनी भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वे सक्रिय थे, सब से निष्क्रिय हो गए। देशभर के लाखों लोगों के मोबाइल में सेव उनके नम्बर भी अब बंद आ रहे है। उनकी आखिरी फेसबुक पोस्ट से ज्ञात होता है कि पूर्व में उनके साथ काम कर चुके उनके साथियों, कुछ दलित संगठनों व अन्य संगठनों के लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर तथा माउथ पब्लिसिटी के माध्यम से उनके खिलाफ उलजलूल बातें लिखी और कही गई है। उन लोगों ने जगह-जगह प्रचार किया है कि एक दलित उत्पीड़न के प्रकरण को दबाने की एवज में भंवर मेघवंशी ने विपक्षियों से 15 लाख रूपए लिए है। ऐसे कई मिथ्या आरोपों से भंवर मेघवंशी आहत हुए है और उन्होंने फेसबुक पर घोषणा कर दी कि अब वो संघर्षों वाले काम को विराम देकर शांति के साथ सृजन वाले काम करेंगे। उनका ऐसा करना लाजमी है, क्योंकि है तो वो भी इंसान ही, आखिर जिस वर्ग के लोगों के लिए वे आधी उम्र तक लड़ते रहे है, जिन वर्ग के लोगों को जागरूक करने के लिए काम करते है आज उसी वर्ग में से चंद लालची लोग उन पर मिथ्या आरोप लगा रहे है और गांव-गांव जाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे है और इस वर्ग के हम जैसे कथित जागरूक लोग चुपचाप बैठे देख-सुन रहे है, न सच्च को सामने लाना चाह रहे है और ना सच्च को जानना चाह रहे है तो ऐसे में भंवर मेघवंशी के इस कदम को मैं उचित मानता हूं . . . जिंदा है तब तक काम तो करने ही है, मगर जिस वर्ग के लोगों को संघर्ष करना सिखाया, जागरूक करने का प्रयास किया अगर वे इतने सालों बाद भी ये सब कुछ नहीं सीख पाए है या जानबूझ कर सीखे हुए का उपयोग नहीं करना चाह रहे है तो फिर इसका अंत क्या है ? आज यही सबसे बड़ा सवाल है।


भंवर मेघवंशी ने संघर्षों की राह छोड़ने का फैसला लिया है और इस फैसले से दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू समुदायों के जागरूक लोगों को गहरी पीड़ा हो रही है। खासकर युवा वर्ग हतोत्साहित हो रहा है। मुझे भी बड़ा दुःख हुआ। उन पर इस प्रकार के आरोप लगाने, उन्हें भ्रष्ट, बिकने वाला, और सौदेबाजी करने वाला बताने वालों की मैं कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूं। मैं हवाई बातें नहीं लिख रहा हूं, तथ्यों सहित बात करूंगा। भंवर मेघवंशी का जीवन एक खुली किताब की तरह है। अब तक जिस किसी स्वच्छ मन के, ईमानदार, सहज तथा निःस्वार्थ व्यक्ति का भंवर मेघवंशी से वास्ता पड़ा है, वो उनके बारे में अच्छी और सच्ची जानकारी दे सकता है। मेरा मानना है कि आज हर उस व्यक्ति को भंवर मेघवंशी के बारे में अपने अनुभव लिखकर सोशल मीडिया के माध्यम से जगजाहिर करने चाहिए। जैसे कि मैं कर रहा हूं . . . यह एक नवाचार है, जिसके माध्यम से हम किसी भी व्यक्ति की अच्छी या बूरी छवि को समाज के सामने स्पष्ट कर सकते है। तो इसकी शुरूआत मैं कर देता हूं . . . आप भी लिखिएगा . . .
मुझे ऐसे मिले भंवर जी (पहली मुलाकात) . . .
Bhanwar Meghwanshi
मैं भीलवाड़ा जिले के कोशीथल गांव का हूं, 2006 या 2007 की बात है, तब मैं स्ट्रींगर के रूप में दैनिक भास्कर के साथ काम कर रहा था। मैं अपने केबिन में बैठा था, तब पड़ौसी गांव गलवा के बद्री लाल जाट मुझसे मिलने आए। उसके चारदिवारी युक्त बाड़े को ग्राम पंचायत ने जेसीबी द्वारा नस्तेनाबूत कर दिया था इसलिए वो कई दिनों से ग्राम पंचायत से पीड़ित थे। वो अपने भूखण्ड व ग्राम पंचायत द्वारा की गई कार्यवाही से संबंधित दस्तावेज ग्राम पंचायत से मांग रहे थे लेकिन ग्राम पंचायत द्वारा नहीं दिए जा रहे थे। बद्री लाल मुझसे सलाह लेने आए थे कि अब उन्हें क्या करना चाहिए ? मैंनें उन्हें सूचना का अधिकार कानून के बारे में बताया और सूचना लेने के लिए आवेदन करने की बात कही। साथ ही सूचना प्राप्त करने का आवेदन पत्र भी दिया जो उदयपुर की आस्था संस्था द्वारा तैयार किया गया था। वो आवेदन पत्र थोड़ा मटमेला हो गया था और उसका एक कॉलम समझ में नहीं आ रहा था। उसके बारे में जानने के लिए मैंनें उसके नीचे लिखे हुए भंवर सिंह चंदाणा के नम्बर पर कॉल किया और जानकारी चाही तो उन्होंने मेरा पता पूछने के बाद मुझे भंवर मेघवंशी के नम्बर देते हुए उनसे मदद लेने को कहा। मुझे भंवर मेघवंशी के पत्रकार होने, समाजसेवी होने की बात भी भंवर सिंह चंदाणा ने ही बताई। इससे पहले मैंनें भंवर मेघवंशी का नाम न कभी कहीं पढ़ा था और ना ही कहीं सुना था। चंदाणा द्वारा दिए गए नम्बर पर मैंनें कॉल किया और भंवर मेघवंशी से पहली बार बात हुई। मैंनें अपनी समस्या पहले बताई, उन्होंने मेरा परिचय लिया। बहुत ही शांत व सभ्य तरीके से बात की। इस दिन से पहले मुझसे इतने सभ्य तरीके से किसी ने बात नहीं की। फोन कॉल पर ही उन्होंने मेरी समस्या का समाधान कर दिया यानि कि मुझे जानकारी दे दी। उसके बाद उन्होंने मुझे आगामी एक सप्ताह के बीच की कोई तारीख बताते हुए आग्रह किया कि मैं उस तिथि को ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों के साथ रायपुर आऊं। उन्होंने बताया कि सगरेव गांव में दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार किए गए है, उन्हें न्याय दिलवाने के लिए रायपुर में सम्मेलन रखा गया है। फोन कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद मैंनें खूब सोचा। पत्रकार के दिमाग में जितने नेगेटिव/पॉजिटिव सवाल आते है, वे सभी मेरे दिमाग में उमड़े। यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि भंवर मेघवंशी में कोई तो पॉजिटिव एनर्जी है, जिसने मुझ जैसे दंभी और आडू बुद्वि को सम्मेलन की ओर खिंच लिया, मैंनें अपने स्तर पर भंवर मेघवंशी के बारे में जानकारी जुटाई, सगरेव की घटना की जानकारी ली और उसके बाद तीन दिन तक अपने स्तर पर सम्मेलन का प्रचार-प्रसार किया और अंततः कई साथियों के साथ सगरेव सम्मेलन में पहुंचा। भीलवाड़ा व राजसमन्द जिले के विभिन्न गांवों के कोई 3000 से अधिक लोग थे वहां। ज्यादातर मेरे परिचित थे। पाण्डाल के पास खड़े डिवाईएसपी रघुनाथ गर्ग से पूछा कि भंवर मेघवंशी कौन है ? तो उन्होंने बताया कि - जो मंच संचालन कर रहे है, वो ही भंवर मेघवंशी है। सामने देखा तो मंच पर समाजसेविका अरूणा रॉय, निखिल डे और कई लोग डाइस पर बैठे हुए है और एक डेढ़ पसली युवक मंच संचालन कर रहा है, और वो ही भंवर मेघवंशी है! मैं पाण्डाल के बाहर पीछे ही पीछे डीवाईएसपी रघुनाथ गर्ग और गंगापुर एसएचओ राम सिंह चौधरी के पास खड़ा-खड़ा मंच संचालनकर्ता को देखता रहा। टेंट की वजह से अंधेरा-सा होने व बहुत दूर होने के कारण मंच संचालनकर्ता की शक्ल साफ नहीं दिखाई दे रही थी इसलिए कान खोलकर उसके शब्दों को सुनकर रहा था। सधे हुए, साफ और असरदार शब्द और वाक्यों को सुनकर मेरा रौम-रौम खिल उठा। शरीर में सिहरन दौड़ उठी। मुझे गर्व हुआ कि मेरे वर्ग में ऐसा बंदा भी है। अब मैं धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ने लगा, पहुंचा तब तक सम्मेलन समापन की घोषणा हो चुकी थी और एमकेएसएस के मोहन बा, चुन्नी बाई व शंकर सिंह के साथ कम्प्यूनिकेशन टीम ढ़ोल की थाप जागरूकता और आंदोलन के गीत गा रहे थे।
कई लोग अरूणा रॉय को घेर के खड़े थे तो कई लोग निखिल डे को। भंवर मेघवंशी भीलवाड़ा मीडिया के जिला स्तरीय पत्रकारों के साथ बातचीत कर रहे थे। मैं भी पास जाकर खड़ा हो गया और मौका देखकर परिचय देते हुए हाथ आगे बढ़ा दिया और उन्होंने भी बड़ी सहजता के साथ मेरा थाम लिया जो आज तक नहीं छूटा। वो बहुत व्यस्त होते जा रहे थे, अरूणा रॉय व निखिल डे का इंटरव्यू करवाने की रिक्वेस्ट लिए मीडिया के लोग बार-बार उनके पास आ रहे थे। कई सामाजिक कार्यकर्ता आ रहे थे उनसे मिलने के लिए। वहीं कभी पुलिस के लोग आकर मिल रहे थे। कंधे पर कपड़े का थैला लटकाए भंवर मेघवंशी हर व्यक्ति से बड़े आराम के साथ मिल रहे थे और साथ ही अपने कुछ साथियों को दिशा निर्देश भी देते जा रहे थे। सारी व्यवस्थाएं भंवर मेघवंशी ही कर रहे थे। अभी तक मैंनें पीड़ित परिवार के लोगों को नहीं देखा। अंत में भंवर मेघवंशी से मिलकर रवाना हुआ तो वे बोले - इस मुद्दे पर भी कुछ लिखना लखन जी। मैंनें सोचा लिखकर क्या करूंगा, अखबार में तो रायपुर संवाददाता की ही खबर छपेगी, मैं लिखकर कहां छपावाउंगा।
पढ़ाकू और लिखाकूं है मेघवंशी, युवाओं को मोटिवेशन देना कोई इनसे सीखें


Bhanwar Meghwanshi Address the Third National Youth convention In Udaipur 
हमारी पहली मुलाकात के कुछ दिनों बाद भीलवाड़ा में सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान राजस्थान के द्वारा राष्ट्रीय युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया। भंवर मेघवंशी के आग्रह पर मैं भी इस सम्मेलन का हिस्सा बना और यहां से भंवर मेघवंशी को करीब से देखने और समझने के अवसर मिलने लगे। वे बहुत ही शानदार मैंनेजमेंट करते है। मंच संचालन में उनका कोई सानी नहीं। मैनजमेंट करना, बोलना, लिखना व पढ़ना। उनके जीवन की ये चार बातें मैं बहुत ही कम समय में अच्छे से जान गया। चूंकि मैं पत्रकारिता कर रहा था इसलिए उन्होंने हर अवसर पर मुझे लिखने की सलाह दी। जयपुर से प्रकाशित विविधा फीचर्स की कॉपी दी और अपनी मासिक पत्रिका डायमण्ड इंडिया की प्रति देकर युवा सम्मेलन के संदर्भ में डायमण्ड इंडिया के लिए लिखने का आग्रह किया। यही दौर था मेरा लेखन कार्य शुरू करने का। अब आए दिन उनसे मिलने का मौका ढूंढ़ा करता था मैं। कभी भीलवाड़ा, कभी सिरड़ियास तो कभी कहीं ओर। मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। उनके बैग में कई किताबें हुआ करती थी, घर के कमरे की हर ताक में किताबों की ढे़री लगी रहती थी। महीने के कोई पचास से अधिक साप्ताहिक और मासिक अखबार राज्य भर से डाक द्वारा उनके घर पर आते थे। मैं तो कहता हूं भंवर मेघवंशी खुद एक चलती फिरती लाइब्रेरी है। अब मैं किताबें पढ़ने लगा, कई प्रकार के अखबार पढ़ने लगा। महिला हिंसा, दलित उत्पीड़न सहित कई मुद्दों को उनके साथ रहकर समझा। फिर नौकरी करने चला गया मगर हमारा संपर्क बना रहा। ये सच है कि उनसे सम्पर्क नहीं हुआ होता तो मैं आज जिस जगह हूं, वहां नहीं होता। मेरे सोचने, समझने, कार्य करने का दायरा इन्हीं की वजह से बढ़ा। मेरे जैसे कई युवा साथी है, जो इनसे प्रेरणा पाकर आगे बढ़े है।
ऐसा है मेघवंशी का काम करने का तरीका
In Kala KheraVillage for fact Finding
जहां कहीं भी दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू समुदाय के लोगों पर अत्याचार होता, भंवर मेघवंशी अपने युवा साथियों के साथ बैठकर रणनीति बनाते, युवा टीम के साथ वहां पहुंचते। सबसे पहले फैक्ट फाइंडिंग करते, यानि मामले की छानबीन करते, ताकि पहले स्वयं संतुष्ट हो सके कि मामला कितना सही है। बाद में फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट बनाते और उसे प्रशासनिक अधिकारियों को सौंप कर पीड़ित को न्याय देने की मांग करते। जो पीड़ित न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए अडिग पाया जाता, वे ऐसे पीड़ितों की मदद करते। जो पीड़ित खुद ही ढुलमुल रवैये का पाया जाता, तब वे अपने स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र भेजकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते। 


पूछिए कस्तुरी इनकी क्या लगती है जो ये बड़ारड़ा पहुंच गए मदद करने ! पीड़ितों की मदद करने का कोई दायरा नहीं
Meeting with Kasturi Bai at Balarada (Chittorgarh)
केवल दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू वर्ग के पीड़ित लोगों के लिए ही भंवर मेघवंशी ने संघर्ष नहीं किए बल्कि हर पीड़ित व शोषित इंसान की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते है। सूलिया के दलितों का मंदिर प्रवेश मामला, सगरेव के दलितों पर अत्याचार का मामला, बनेड़ा के दलितों का यज्ञ से बहिष्कार का मामला, शंभूगढ़ के दलितों का यज्ञ से बहिष्कार का मामला, काला का खेड़ा के दलित परिवार पर उत्पीड़न का मामला, सूलिया के बालू जी गुर्जर पर उत्पीड़न मामला, हलेड़ की कमला बाई जाट व उनकी बहनों पर उत्पीड़न का मामला, बाला का खेड़ा में नायक जाति के किशोर को जिंदा जलाने का प्रयास करने का मामला, रायपुर की घाटी निवासी कालबेलिया परिवार की नाबालिग लड़की पर अत्याचार का मामला, बड़ा महुआ के दलित परिवारों का सामूहिक बहिष्कार का मामला, राजसमन्द जिले के गुणिया गांव के दलित व्यक्ति की पगड़ी जला देने और जान से मारने की धमकी का मामला, चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन ब्लॉक के बलारड़ा गांव की कस्तुरी बाई के परिवार पर अत्याचार का मामला, भीलवाड़ा जिले की लीला भील की हत्या का मामला, पोण्डरास में दफन के लिए दो गज जमीन का मामला, राजसमंद के सोलंकियों का गुढ़ा की दलित महिला को डायन कहकर प्रताड़ित करने का मामला . . . अनगिनत मामलें है, बहुत लम्बी सूची है, जिनमें मेघवंशी ने प्रत्यक्ष रूप से पीड़ितों की मदद की। 

Meeting With Ad DM of Rajasmand Regarding Guniya Issue
उन्होंने हर पीड़ित की मदद करने का प्रयास किया, चाहे वो दलित हो, आदिवासी हो, घुमन्तू वर्ग से हो या किसी भी वर्ग से। युवाओं को संगठित किया, उनकी प्रतिभा को पहचाने कर उसे निखारने का कार्य भी बखूबी किया। कई बार ऐसा हुआ जब अत्याचार का कोई मामला उन तक पहुंचा, पीड़ित लोग उनसे मिले, न्याय दिलवाने के लिए मदद करने की गुजारिश की, मेघवंशी ने रणनीति बनाई, टीम बनाकर रणनीति के अनुसार प्रक्रिया की, फैक्ट फाइंडिंग की, धरने, प्रदर्शन किए, कलेक्टर-एसपी से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिए और पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए संघर्ष किया, मैं पूरे समय इस प्रक्रिया में शामिल रहा। मैंनें देखा ऐसे कार्य के लिए उन्होंने पीड़ित परिवार, उसके रिश्तेदार या किसी से एक रूपए की मांग नहीं की। उन्होंने कुछ समूहों से बात कर उल्टा पीड़ित को आर्थिक मदद दिलवाई। कुछ समूहों से बात कर उन्हें आंदोलन को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी। इससे लोगों में नेतृत्व की क्षमता भी बढ़ी और उन्होंने आगे आकर जिम्मेदारियां ली। किसी ने तख्तियां बनाने की जिम्मेदारी ली तो किसी ने टेंट लगाने की जिम्मेदारी ली। मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि उन्होंने जितने भी आंदोलन किए, धरने-प्रदर्शन किए, सब लोकतांत्रिक तरीके से किए। समुदायों के लोगों को मुद्दे से जोड़ा और नेतृत्व सौंपकर सामूहिकता का भाव पैदा किया। मतलब उनके द्वारा किए गए संघर्ष बहुउद्देशीय रहे है।
संघर्ष के कई साथी खिलाफ भी हुए . . . वे वास्तविक साथी थे ही नहीं
जन अधिकारों की पैरवी के लिए किए गए संघर्षों में भंवर मेघवंशी के साथ कई लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। वो जब भी अपनी मुख्य टीम में किसी नए व्यक्ति को शामिल करते थे तो मैं हमेशा विरोध किया करता था। मेरा मानना था व्यक्ति को जांच परख कर कोर ग्रुप में शामिल किया जाए। इस मामले में मेघवंशी ने तानाशाही रवैया अपनाया। अपने अनस्ट्रक्चर्ड कोर ग्रुप में अपनी मर्जी से लोगों को शामिल कर लिया। जो बाद में उनके ही विरोधी बन गए। मेघवंशी अपनी व्यस्ततम जीवन शैली के कारण अपने साथ जुड़े लोगों की कुण्डली की जांच नहीं कर पाए।
Ambedkar Jayanti Samaroh 2013 at Azaad Chouk Bhilwara
होता यूं था कि जैसे किसी गांव का कोई मुद्दा सामने आया। पीड़ितों ने न्याय दिलवाने में सहयोग की अपेक्षा की। तब उस गांव के या उस क्षेत्र के या उस जाति समुदाय के कुछ लोग भंवर मेघवंशी से मिलने आ जाते और संघर्ष की लड़ाई में साथ जुड़ जाते। धीरे-धीरे वे अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए दिन - रात भंवर मेघवंशी के पीछे-पीछे घूमने लगते। दरअसल वे अपनी राजनीति चमकाने की मंशा पाले हुए होते थे। कई ऐसे थे जो धरने, प्रदर्शन को सम्बोधित करने की चाह में उनसे जुड़ जाते, कई ऐसे भी होते जो धरने प्रदर्शन का नेतृत्व कर नायक बनने का ख्वाब पाले हुए होते थे। कई लोग अपनी रोटियां सकने के लिए भंवर मेघवंशी का इस्तेमाल करने की गरज से साथ जुड़ते। पर जब कई दिनों-महीनों तक मेघवंशी के साथ चलने के बाद भी उनके ख्याब, सपने, अरमान पूरे नहीं होते तब वे भंवर मेघवंशी का साथ छोड़ देते और हर जगह उनका दुष्प्रचार करना आरम्भ कर देते। यह मैंनें प्रत्यक्ष रूप से देखा है और समय-समय पर भंवर मेघवंशी को अवगत भी कराया और कई बार तो ऐसे लोगों को मूंह पर भी बोला कि स्वार्थी लोगों को भंवर मेघवंशी से नहीं जुड़ना चाहिए।

अभावों में भी खुद्दारी और मजे से जीने वाले इंसान है भंवर मेघवंशी !
Bhanwar Meghwanshi
भंवर मेघवंशी संघर्ष पूर्ण जीवन को भी मस्ती से जीने वाले इंसान है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों को अंगीकार किए हुए और कबीर की वाणी का रस पीए हुए इंसानियत पर चलते है। चूल्हे के पास बैठकर बेंगन, टमाटर की सब्जी बनाकर हमें खिला देते है। कभी जीप में साथ लेकर चलते है तो कभी 15 किलोमीटर पैदल चला देते है। अलमस्त है, फक्कड़ है। कई बार हमारे पास भीलवाड़ा से सिरडियास आने का कोई साधन नहीं होता, आज भी बसों की गैलेरी में खड़े होकर सफर कर लेते है। कभी कोई साथी रेवदर, तो कभी कोई साथी जालोर, फालना, बूंदी बुलाते है कार्यक्रमों में। तब सोच में पड़ जाते है कि कैसे जाया जाए। बड़ा बैग कंधे पर लेकर रोड़वेज बस में चढ़ जाते है। तब मुझे बहुत दुःख होता है कि मैं उनकी कोई मदद नहीं कर पाता। कई बार बसों में चढ़ाने, उतारने के अवसर मिलते रहे है मुझे। बुलाने वालों को नहीं पता होता है कि उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है, वे कैसे आयेंगे। कैसे अपना परिवार चलाते होंगे। कहीं-कहीं लोग उन्हें भेंट स्वरूप 1000-2000 के लिफाफे जरूर पकड़ा देते है। कई ऐसे चाहने वाले भी है उनके, जो इनकी फक्कड़ता को जानते है, वे जब भी किसी अवसर पर इनसे मिलते है तो धीरे से उनकी जेब में कुछ नोट सरका देते है। प्रहलाद राय मेघवंशी को तो इनका क्रेडिट कार्ड ही समझ लिजिए।
फक्कड़ होने के बावजूद भंवर मेघवंशी के चेहरे पर कभी सीकन के भाव नहीं आते। कभी स्पूर्ति खत्म नहीं होती, उत्साह का कभी अवसान नहीं होता। समय के अनुसार हवाई जहाज, ट्रेन, बस, जीप में सफर करते है और जरूरत पड़ने पर कंधे पर बैग लटका कर पैदल भी चल पड़ते है। होटल में खा लेते है, रेस्टोरेंट में भी खाते है और कभी कभी तो रोड़ साइड़ ढ़ाबे पर मिलने वाले पराठें से भी काम चला लेते है। कभी कुछ नहीं मिला तो सड़क पर खड़े पानी पताशें खाकर ही संतुष्ट हो जाते है। ऐसा कईयों बार हुआ और आज भी होता रहता है, मैं कई अवसरों पर साथ रहा हूं। हर माहौल, हर परिस्थिति में जीना, चलना और संघर्ष करना आता है उन्हें।
कई काम शुरू किए और एक साल में ही बंद कर दिए गए
डायमण्ड इंडिया का पाक्षिक प्रकाशन आरंभ किया था। अच्छी डिमाण्ड हो चली ही अखबार की, भीलवाड़ा में। सम्पादन का कार्य भंवर मेघवंशी के जिम्मे था। मैं सह सम्पादक था। पर भंवर मेघवंशी तो भंवर मेघवंशी ठहरे, इनके पैरों में नहीं बल्कि दिमाग में भंवरी (चकरी) सेट है। जैसे ही कहीं अत्याचार, उत्पीड़न के समाचार इन्हें मिलते है, ये पहुंच जाते वहां। फिर न्याय समानता की लड़ाई लड़ते हुए कई दिनों तक वापिस ऑफिस नहीं आते। मैं बहुत जोर देता बुलाने पर तो फिर एक दिन बैठाकर प्यार से कह देते यह काम अपने लिए नहीं है लखन जी, अपन तो संघर्ष ही कर सकते है और अखबार का प्रकाशन कर आखिर हम क्या हासिल कर लेंगे। और एक दिन डायमण्ड इंडिया फिर से बंद हो गया।
कभी खबरकोश डॉटकॉम की शुरूआत की, उसे भी एक साल से अधिक नहीं चला पाए। जयपुर में एक दफ्तर खोलकर कंसलटेंसी का कार्य आरम्भ किया लेकिन भंवर मेघवंशी की संघर्षों की ताकत के आगे उसने भी दम तोड़ दिया। रिखिया, बाबा रामदेव पीर एक पुर्नविचार जैसी कई पुस्तकें प्रकाशित की जिनमें भी लाखों का दिवाला आया।

ऐसे होती है थोड़ी बहुत आय
Discuss with Youth in a Workshop at Kotra (Udaipur)
खेती के कारण इनके घर का अनाज भण्डार सदैव भरा रहता है, खेत से ही सब्जियां आदी आ जाती है। परिवार के लोग मिलकर खेती व घर का काम करते है। भंवर मेघवंशी को देश भर में कई सामाजिक संगठनों के लोग विभिन्न मुद्दों पर बोलने के लिए, डॉक्टूमेंटशन के लिए, मुद्दे आधारिक किताबें लिखने के लिए बुलाते रहते है। कई शैक्षणिक संस्थान भी इन्हें रिसोर्स परसन के रूप में बुलाते है। वहीं कुछ सालों से इन्हें सेमीनार, कार्यशालाओं व सम्मेलनों में भी बुलाया जाने लगा है। इन सब कार्यों की एवज में इन्हें मानेदय दिया जाता है। विगत कुछ माह से इनके यूट्यूब चैनल शून्यकाल से इन्हें आय होने लगी है। इन सब से इनका जीवन चल रहा है।
Hira Lal Megwhanshi
जीप की पूरी कहानी तो सुनिए हीरजी की जबानी

कुछ साल पहले इन्होंने एक बोलेरो जीप खरीदी थी। विरोधी लोगों ने खूब सवाल उठाए कि समाजसेवी भंवर मेघवंशी ने जीप कैसे खरीदी, खरीदन के लिए रूपए कहां से आए, आदि-आदि। दरअसल रायपुर सम्मेलन के दौरान ही मित्र बने रेह गांव के हीरा लाल मेघवंशी (हीरजी) जो कभी ड्राइवर चलाया करते थे, उस सम्मेलन के बाद सदा के लिए भंवर मेघवंशी के साथी हो गए और वे हर समय भंवर मेघवंशी के साथ रहने लगे। हीरजी को साथ जोड़े रखने के लिए जीप की आवश्यकता महसूस की गई। तब भंवर मेघवंशी ने लोन पर जीप ली। लोन की कुछ किस्ते हीरजी ने जीप किराये पर चलाकर जमा कराई, वहीं कुछ किस्ते भंवर मेघवंशी के दोस्तों ने जमा कराई, जिनका भुगतान भंवर मेघवंशी ने बाद में किया। अब तो वो जीप भी थक चुकी है, जिसे पुनः ऊर्जावान बनाने की जरूरत है।
अंत में . . . मैं यह कहना चाहता हूं कि 2007 से लेकर आज तक कई यात्राओं, संघर्षों, आंदोलनों आदि में मैं कई समय भंवर मेघवंशी के साथ रहा। कभी मैंनें उन्हें किसी से अनैतिक सौदेबाजी करते हुए नहीं देखा। आज पीड़ित भी जिंदा और पीड़ितों को पीड़ा देने वाले भी जिंदा है, उनसे मुखातिब होकर भी हम भंवर मेघवंशी के बारे में उनके विचार जान सकते है। मैंनें तो देखा और जो अनुभव किया वो लिख दिया। अगर आपका भी इनसे कोई वास्ता पड़ा है तो अपने अनुभव शेयर किजिए, मुझे लगता है इस माध्यम से भी हम सच्चाई को सबके सामने रख सकते है। 

Friday, May 4, 2018

ये विदाई नहीं थी, ना ही बहुत स्नेह था, ये तो ताकत को सलाम था

आदरणीया डॉ. अंजली जी,

आप हवा के झोंके की तरह आए और उसी तरह चले गए। बहुत सारी यादें, बहुत सारी मुस्कुराहटें, बहुत सारी सकारात्मक ऊर्जा और न्याय व समानता की डगर हमारे लिए छोड़कर। आपका बहुत-बहुत आभार। आज बहुत खुशी हुई ये देखकर कि आपको सैकड़ों लोग शुभकामनाएं देकर, शॉल ओढ़ाकर, फूलमालाएं पहनाकर, बुके भेंट कर आपको विदा कर रहे थे, वहीं आपके कुछ सहकर्मी अश्रुपुरित आंखों से विदाई दे रहे थे। कई स्वार्थी लोग थे, सभी अपने-अपने एजेण्ड के तहत विदाई दे रहे थे। कई मौके की नजाकत को देखकर कदम उठा रहे थे लेकिन कड़वा मगर सच्चा तथ्य यह है कि चंद लोगों को छोड़कर बाकी सभी लोग ताकत को सलाम कर रहे थे। कुछ अपनी अपेक्षाओं को साकार करने की जुगत में अवसर का सदुपयोग कर रहे थे। उम्मीद है आप भली भांति जान रहे होंगे क्योंकि मैं मानता हूं कि चेहरों को पढ़ने में अब आप पारखी हो ही चुके है। 


इन सब बातों से इतर मुझे आपका अघोषित विदाई समारोह बहुत अच्छा लगा। अच्छी लगी आपकी उत्सुकता, आपकी मुस्कुराहट, आपकी बिना किसी मन में मेल रखे सबको साथ लेकर चलने की सोच। मैंनें आपके चहरे पर विदाई के दर्द को भी महसूस किया। अपने सहकर्मी व्यास जी, मांगी लाल जी, धर्मेन्द्र जी और आपके ड्राइवर साहब से विदा लेते समय आपने अपने आंसुओं को आंखों से सीधे अपने दिल में खींच कर गालों पर लुढ़कने से रोक कर भी ये साबित कर दिया कि आप वाकई ताकतवर हो। फिर भी आपके हार्दिक वियोग को वहां खड़े सहज वृत्ति वाले लोगों ने आसानी से देख लिया। वैसे आप कोई एलियन तो है नहीं जो आपको न समझा जा सके।
विदाई समारोह में लोग आपकी खिदमत में कसीदे पढ़ रह थे और आप कसीदे सुन-सुनकर कुर्सी पर बिदक रहे थे। आखिर क्यूं नहीं बिदकेंगे, आपने महज 7 माह में अपने इतने फॉलोअर जो बना लिए। सो वन अनादर पॉइंट इज देट ‘यू आर ए गुड लीडर एलसो’ मैं भी देखकर न केवल गौरवान्वित हो रहा था बल्कि मेरा मन प्रफुल्लित हो रहा था। आप अक्टूबर-17 में गोगुन्दा आए, चर्चाएं थी कि आप महज तीन माह तक यहां सेवाएं देंगे। मगर इस क्षेत्र के हम लोगों का सौभाग्य ही रहा। आप करीब 7 माह तक यहां रहे और कई इनोवेटिव व अविस्मरणीय कार्य यहां किए। 

सादगी की मिशाल है आप

विगत 7 माह में मैंनें नोटिस किया कि आप वंचितों, गरीबों एवं महिला सशक्तिकरण की हिमायती है। सरल व्यवहार, मृदुभाषा और सकारात्मक कार्य शैली की धनी है आप। आईएएस जैसे ओहदे पर मैंनें आप जैसी विलक्षण प्रतिभा कहीं नहीं देखी। आपने एक दिन दिव्यांग आईएएस ईला जी का विडियो साझा किया था। ये देखकर आपके मानवीय दृष्टिकोण की झलक मिली। आज सुबह ही गोगुन्दा के दो 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों से चर्चा कर रहा था। राज घरानों से संबंधित इन दोनों नागरिकों ने बताया कि वे क्यूं आपने मिलने आपके चैम्बर में आए थे और आपने किस तरह उन्हें सम्मान देकर उनकी व्यथा सुनी। छोटे-बड़ों को सम्मान देना यानि समानता का व्यवहार करना तो कोई आपसे सीखे। वाकई आप मिशाल है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की समानता की अवधारणा को लागू होते हुए मैनें आपसे देखा। 


आप को जब भी कॉल करता था तो सामने से आप की आवाज आया करती थी - हां पत्रकार साहब बताइए। शुरू-शुरू में मैं झेंप जाया करता था, दिमाग दौड़ाता था कि मैंने तो कहीं पत्रकारिता की धौंस नहीं दिखाई। कई बार कई-कई घंटों तक सोचता रहता था कि एसडीएम साहिबा ने मुझे पत्रकार साहब क्यों कहा ? एक बार तो शायद मैंनें आपसे पूछ ही लिया था। पर फिर कई मौको पर आपको आपके वाहन के ड्राइवर को ड्राइवर साहब, ग्राम पंचायत के सचिव को सचिव साहब कहते हुए देखा तो पता चल गया कि ये आपका हर नागरिक को सम्मान देने का नैचर है। सॉरी मैं एक वाक्य भूल गया, राजघरानों से ताल्लुक रखने वाले उन दो बुजुर्गों में से एक ने मुझे कहा कि ये एसडीएम कोई अच्छे मेनर्स वाली फैमिली की लगती है। बोले - अजी संस्कारवान परिवार के लक्षण तो संतानों में साफ नजर आते है। बहुत संस्कारित परिवार की बेटी है ये। आगे बोले - कमबख्त ये लोग इन्हें कैसे नहीं समझ पाए, कीड़े पड़ेंगे इन लोगों के। जब आज ही आपकी विदाई होने की खबर मैंनें उन्हें दी तो वे दुःखी हो गए। आपके धूर विरोधियों को इतने श्राप दे दिए कि पूछिए मत। यहां मैंनें तय किया कि जीवन में इस प्रकार जो किसी को सर्वाधित चाहता है, उसके बारे में उन्हें सेड़ न्यूज कभी मत दो। 

काम जो बाकी रहे गए, आप जहां भी जाए पूरे करना

आपने हर चैलेंज को सहर्ष स्वीकार किया। मजावड़ी व विसमा में आयोजित की गई चौपाल हो या आकस्मिक निरीक्षण करने की बात हो। आपने आते ही हॉस्पीटल में निरीक्षण किया। आपकी जानकारियों का खजाना देखकर आश्चर्य हुआ। मेडिकल फिल्ड की महत्वपूर्ण जानकारियां आप बखूबी जानती है। क्षेत्र में मरीजों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे बंगाली व झोलाछाप डॉक्टरों के विरूद्ध ठोस कार्यवाही देखने का मेरा सपना आपने अधूरा रख दिया। आप जहां भी जाएं ऐसे लोगों के खिलाफ जरूर कार्यवाही करिएगा। मैंनें देखा है ऐसे लोग पानी के इंजेक्शन मरीजों को लगाकर उनसे 300-400 वसूल लेते है। 


कई बार जो जैसे दिखते है, वे वैसे होते नहीं है 

आपने एक आवासीय विद्यालय पर काफी मेहरबानी की। निश्चित तौर पर आपकी मेहरबानी से उस विद्यालय के स्टाफ, वहां अध्ययनरत छात्राओं व जनप्रतिनिधियों में उत्साह का संचार हुआ। वहां उत्तरोत्तर वृद्धि देखने को मिली। उस विद्यालय के सर्वसर्वा अच्छे गुणों वाले है, साफ छवि के है, सब कुछ ठीक करते है, इन्हें लेकर सत्य जुदा है। ये ऐसे लोग है जो जैसे दिखते है वैसे है नहीं है। चरित्र तो इनका लंगोट खोल कर तार पर टंगा हुआ है। बस इनकी नंगाई को अबोध बालिकाएं नहीं देख ले कहीं। मैं तो आप से पहले वहां कभी गया ही नहीं लेकिन आपके साथ महज दो बार जाने में सभी अच्छाइयों के पीछे खतरनाक वाली बुराई को भी देख-समझ आया। ये बहुत ही खतरनाक वाला अनुभव है। इस नकारा गया तो यह सब कुछ नस्तेनाबूत कर देता है। 


मेरा अंज्म्पशन . . . 

जब गोगुन्दा के एसडीएम बनकर आए थे। मेरा अंज्म्प्शन था कि आप आईएएस है और आप निश्चित तौर पर इस क्षेत्र के लिए अच्छा करेंगे और एक एसडीएम की तरह कार्य करेंगे और आपने कर दिखाया। एक मसले को हल करने के लिए आपने मध्यस्तता की। मेरी जानकारी के अनुसार वह सफल मध्यस्तता थी। एक बार तो यह मध्यस्तता सफल रही। लेकिन स्वयंभू सत्ताधीश ने राजी खुशी मध्यस्तता कर लेने के बाद दूसरे दिन मध्यस्तता को ठुकुरा दिया जिसका नतीजा हम सभी ने देख लिया। 

शुरूआती दिनों में स्वयंभू सत्ताधीश के यहां लंच करते हुए देखा तो मानो धरती तले से जमीं खिसक गई। मन में सोचा - कहां है आईएएस का प्रॉटोकॉल। कहां है एसडीएमगिरी की तटस्थता। उस दिन लगा कि गई भैंस पानी में। 

लगा कि पुरूष वर्ग के उपखण्ड व जिला स्तर के अधिकारी जिन कथित सत्ताधीशों के आगे साष्टांग दण्डवत करते पाए जाते हो वहां आप क्या कर लेंगी। लेकिन आपने कर दिखाया। अंतिम 15 दिनों में तो आपने जो डेयरिंग कार्य किए है, काबिल तारीफ है। खेद है यहां का उत्साही युवा आपको नहीं समझ पाया . . . 

याद रहेंगे सामाजिक बदलाव के आपके अनुकरणीय प्रयास 


आदिवासी क्षेत्र के छात्रावासों व स्कूलों की छात्राओं की माहवारी से जुडे मुद्दों पर कोई नहीं सोचता। अधिकारी वर्ग में से भी कई आदिवासी क्षेत्रों से बटोरने में लगे रहते है। आपने अलग किया। बालिकाओं को मशीन के माध्यम से सेनेटरी पेड मुहैया करवाने की शुरूआत आपके होते ही संभव हो पाई। महात्मा ज्योति बा फूले की जयंती शायद ही इस क्षेत्र में मनाई गई हो। आपने शुरूआत करवा दी। स्कूली बालिकाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने का बीड़ा भी आपने उठाया। आपके दफ्तर में आकर आपसे एक बार मिला हर नागरिक आपका कायल है। वे आपकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते है। बस आप भी अथक प्रयास करते रहिएगा। न्याय, समानता की डगर पर चलते हुए आप अथक चलते रहिएगा। आपके ड्राइवर साहब के मनोवियोग को ध्यान में रखते हुए कबीर साहेब की पंक्तियां - कबीरा जब हम पैदा भये, हम रोये जग हंसे, ऐसी करनी कर चलो कि हम हंसे, जग रोये। 

ताकत को सलाम है, हम साथ - साथ है . . . 

जिंदाबाद . . .

असीम शुभकामनाओं के साथ,

आपके पत्रकार साहब - लखन सालवी