Thursday, May 31, 2012

बंद कर दो तुम्हारे धंधे, हमारी क्यूं वाट लगाते हो ?


कल भारत बंद था, दिहाड़ी मजदूरों को भूखे ही सोना पड़ा
पेट्रोल की कीमत में लगभग साढ़े सात रुपए प्रति लीटर की वृद्धि के विरोध में भाजपा नीत विपक्षी राजग, वाम दलों और व्यापारी संगठनों ने गुरूवार को राष्ट्रव्यापी बंद का आव्हान किया। बंद समर्थक सुबह से ही सड़क पर उतर आए और जबरन बंद करवाया। कई स्थानों पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी। 
भारत बंद, पेट्रोल सस्ता करो, गैस सस्ती करो, टेªन, हवाई जहाज किराया कम करो, ये सब पार्टियों के चैंचले है, वो स्वयं की और अपने चेहते अमीरों की सोचते है, गरीबों की सोचने वाला कोई नहीं है। गरीबी से निकले और अब मध्यमवर्गीय कहलाने लगे परिवारों के लोग भी गरीबों की नहीं सोचते है।
क्या आपको पता है कि भारत बंद से कितने गरीब परिवारों के लोगों को भूखा सोना पड़ा ? पेट्रोल के भाव बढ़ने से वाहन रखने वालों को परेशानी है, वो ही बैठे धरने पर . . . रहे भूखे . . . करे आन्दोलन। क्यों गरीबों को भूखे रहने पर मजबूर करते है ? भारत बंद करने वालों को इन तमाम गरीबों की हाय है कि पेट्रोल के दाम किसी भी सूरत में कम नहीं हो।
क्या कभी इन कथित अमीरों ने किसी गरीब के लिए आन्दोलन किया ? गरीबों के लिए धरने किए ? गरीबों के लिए भारत बंद करवाया ? नहीं  . . गरीबों के लिए ये सब करने में भला उन्हें क्या लाभ। हां पेट्रोल के लिए, गैस, किराया, बिजली आदि का सस्ता करने के लिए भारत बंद करने से तो उन्हें शुद्ध लाभ ही होगा। मान ले कि सरकार ने सब्सिड़ी दे दी तो भी भार किस पर पड़ने वाला है। दाम कम हो भी जाए तो क्या होगा भार तो गरीब पर ही पड़ेगा। 
दूकानें बंद थी, जिन्होंने खोली उनकी जबरन बंद करवा दी गई, चाय की थडि़यों, कटलों आदि को बंद कर दिया गया। सूचनाएं मिली कि जगह-जगह पर जबरन बंद करवाया जा रहा था, यह कैसा बंद ?
चैथे स्तम्भ को भी गरीबों से कोई वास्ता नहीं है। बंद के दौरान खबरें चली - ‘‘बंद करवाने के लिए बेंगलुरू में बीएमटीसी की तीन बसें जला दी गई और 10 अन्य बसों में तोड़फोड़ की गई। बसों का संचालन रोक दिया गया। वहीं राजधानी दिल्ली आॅटों नहीं चले। एम्स के बाहर भारी जाम लग गया है। कोलकता के वीआईपी मार्ग पर भी भारी जाम देखा जा रहा है। आदि . . ’’ 
अखबार खचाखच भरे थे, खबरों से तथा बंद के दृश्यों से। बड़े-बड़े टाइटल थे-‘‘भारत पूर्ण बंद रहा’’। मैं पूछता हूं भारत कहां बंद रहा, जो अखबार, टी.वी. न्यूज चैनल बंद की खबरें दे रहे है उनके संस्थान तो खुले थे। वो बंद नहीं कर सकते थे, आखिर करोड़ों रुपए के विज्ञापन जो मारे जाते उनके। उन्हें बंद के दौरान भी लाभ था और आगामी दो-चार दिनों में तो और अधिक लाभ होने वाला है। बंद सफल के धन्यवाद विज्ञापन जो मिलने वाले है। 
पर्यावरण प्रेमियों का तो कहना है कि ‘‘पेट्रोल के दाम इतने बढ़ जाए कि खरीदना मुश्किल हो जाए, पिछले दो दशकों में वाहनों में भारी बढ़ोतरी हुई है। वाहनों का धुंआ पर्यावरण को दूषित कर रहा है, वाहन तापमान को भी बढ़ा रहे है तथा प्रकृति को नुकसान पहुंच रहा है। क्षणिक विकास के लिए अंधाधुंध दौड़ में हम प्रकृति का सर्वनाश कर रहे है।’’

Sunday, May 27, 2012

नांदी की हो रही है चांदी


मध्याहन भोजन में अनियमितता मामला

लखन सालवी
सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन के नाम पर चटकारने में कोई पीछे नहीं है। ना स्कूलों के अध्यापक, ना मॅानिटरिंग करने वाले और ना ही भोजन तैयार कर वितरण करने वाली एजेन्सियां। नामीगिरामी संस्थाएं भी चटकारने में ही लगी है फिर चाहे वो नांदी फाउण्डेशन हो या फिर अक्षयपात्र। भीलवाड़ा के नांदी फाउण्डेशन की तो चांदी हो रही है। बच्चों के नाम से भोजन सामग्री उठाकर खुद ही जींम रहे है।
भीलवाड़ा के बापुनगर स्थित नांदी फाउण्डेशन में भीलवाड़ा शहर व सुवाणा पंचायत समिति के सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है। मध्याह्न भोजन को स्कूलों तक वितरण करने की जिम्मेदारी भी नांदी फाउन्डेशन की ही है। यूं तो मध्याह्न भोजन में अनियमितताओं को लेकर आए दिन शिकायतें होती रहती है। लेकिन पिछले दिनों सुवाणा पंचायत समिति के कुल स्कूलों में छात्रों की फर्जी उपस्थिति दर्ज कर मध्याह्न भोजन में अनियमितता करने की शिकायतें की गई थी।
जिला कलक्टर ओंकार सिंह की निर्देश पर सुवाणा के उपखंड अधिकारी राजकुमार सिंह के नेतृत्व एक टीम ने नांदी फाउण्डेशन के रसोईघर व स्टॅाक की जांच की गई। उन्होंने पाया कि स्टॅाक रजिस्टर में अनाज उपलब्धता शून्य दर्ज कर रखी थी जबकि गोदाम में 500 क्विंटल गेहूं एवं 900 क्विंटल चावल पाए गए। अनियमितता पाए जाने पर गोदाम को सीज कर दिया है तथा नगर परिषद को सुपुर्द कर दिया गया है। गोदाम में कुकिंग की बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई है इसलिए गोदाम के बाहर दो गार्ड तैनात किए गए है। वहीं जिला कलक्टर ओंकार सिंह ने विशेष जांच के लिए पंचायतीराज विभाग की आयुक्त अर्पणा अरोरा को पत्र लिखा है। जानकारी के अनुसार मध्याह्न भोजन कुकिंग का भुगतान जिला परिषद द्वारा किया जाता है। 15 मई तक का 40 रुपए का भुगतान किया जा चुका है।
बड़ा सवाल यह उठता है कि सारा अनाज बच्चों को खिला दिया गया तो फिर इतना अनाज कैसे बच गया व मध्याह्न भोजन की कुकिंग व स्टाॅक पर मॅानिटरिंग के लिए कर्मचारी नियुक्त है तो फिर वो क्या कर रह रहे थे ? ऐसा भी नहीं है कि सक्षम अधिकारियों ने स्कूलों का निरीक्षण नहीं किया हो, भीलवाड़ा जिले में अधिकारियों ने खूब निरीक्षण किए। निरीक्षण के दौरान स्कूलों में छात्रों की फर्जी उपस्थिति दर्ज किए जाने के मामले सामने आते रहे है। लेकिन मध्याह्न भोजन की सामग्री में अनियमितता को अधिकारी नजरअंदाज करते रहे जिसका नतीजा यह रहा कि नांदी फाउण्डेशन के लोगों ने 900 क्विटंल चावल और 500 क्विटंल गेहूं बचा लिये। शिकायत और जांच नहीं होने की दशा में ये अनाज कालाबाजारी की भेंट चढ़ सकता था।
बारां जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र किशनगंज व शाहबाद में भी ऐसे कई मामले देखने को मिले है। किशनगंज ब्लॅाक के भंवरगढ़ में संचालित अक्षयपात्र द्वारा किशनगंज व शाहबाद की सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन की सप्लाई की जाती है। दोनों की ब्लॅाकों की दो दर्जन से अधिक स्कूलों में निरीक्षण के दौरान पाया गया कि ऐसे छात्रों की भी छात्र उपस्थित रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज थी जो कि उस दिन स्कूल आए ही नहीं थे। प्रत्येक स्कूल में करीबन 10-15 बच्चों की फर्जी उपस्थिति दर्ज थी। किशनगंज ब्लॅाक के ब्रह्मपुरा गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में तो कई दिनों से बच्चों को पोषाहार भी नहीं दिया गया था जबकि रजिस्टर में सभी बच्चों को पोषाहार दिया जाना दर्शाया हुआ था। हालांकि तत्कालीन उपखण्ड अधिकारी मोहन लाल वर्मा ने बीईओं को सुरेश गोठवाल को शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए थे, लेकिन वो हवा हो गए।
ऐसे ही हाल उन स्कूलों के भी है जहां स्कूलों द्वारा ही मध्याह्न भोजन बनवाया जा रहा है। पिछले वर्ष बूंदी जिले के नैनवां ब्लॅाक के बड़ी पड़ाप गांव के स्कूल में प्रधानाध्यापक बच्चों को रसोईघर के बाहर बच्चों को पंक्ति में खड़े कर चावल बांट रहे थे। अचानक स्कूल में पहुंची पत्रकारों की टोली को देखकर वे सकपका गये और बोले कि ‘‘मैं क्या करूं बचे हुए चावलों को, अपने घर ले जाऊं तो चोर कहलाऊंगा, इसलिए स्कूल के बच्चों को ही बांट देता हूं। अध्यापक ने बताया कि पांचवी तक के बच्चों के लिए 100 ग्राम तथा कक्षा 6 से कक्षा 8 तक बच्चों के लिए 150 ग्राम अनाज सरकार द्वारा मुहैया करवाया जाता है। लेकिन बच्चें इतना अनाज खा नहीं पाते है। अध्यापक ने बताया कि जितना सरकार द्वारा दिया जा रहा है, उतना खर्च नहीं हो पाता है।
नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर शिक्षा विभाग के दो अधिकारियों ने बताया कि बच्चों के लिए दी गई राशन सामग्री के खर्च न होने के पीछे दो बड़े कारण है। पहला - बच्चे 100 ग्राम और 150 ग्राम अनाज नहीं खा पाते है और दूसरा - नामांकन के बावजूद बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते है। उन्होंने बताया कि अध्यापक मजबूर है इसलिए बच्चों की फर्जी उपस्थिति दर्ज करनी ही पड़ती है। जब फर्जी उपस्थिति दर्ज करनी पड़ती है तो पोषाहार में गड़बड़ी भी स्वतः ही हो जाती है। भीलवाड़ा में नांदी फाउण्डेशन में अतिरिक्त पाए गए 900 क्विंटल चावल इसी का एक उदाहरण है।

ग्राम सभा की ताकत को समझा और चल पड़ी बदलाव की ओर


पई की पांच महिला पंच, अब कोरम में इनका बहुमत है

लखन सालवी -
इन्होंने घूंघट त्यागा, रूढि़वादी विचारों को त्यागा, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ा, बैठक की, महिलाओं को संगठित किया, शिक्षित हुई, अपने अधिकारों को जाना और आज ग्राम पंचायत में भागीदारी सुनिश्चित कर गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। हालांकि ये सब आसानी से नहीं हुआ, समाज के बुजुर्गों ने बंदिशे लगाई, पतियों ने मारपीट की, देवली (देऊ) बाई के पति ने तो कुल्हाडी से उसके सिर पर वार कर दिया। आंखों के आगे घूंघट रूपी पर्दा तो पीढि़यों से पड़ा ही था उनके, जो उजाले की ओर बढ़ने नहीं देता था। बढ़ती भी तो ढोकर खाकर गिर जाती या गिरा दी जाती थी। पर्दे ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाए रखा। लेकिन इन महिलाओं पर तो जूनून सवार था बदलाव का सामाजिक संगठन के संपर्क में आई, शिक्षित हुई और ग्राम सभा व ग्राम पंचायत की ताकत को समझा। फिर पंचायतीराज व आरक्षण का लाभ लिया, वो न सिर्फ प्रयासों में सफल रही है बल्कि अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित की। देवली बाई कहती है कि लोग देखे तो भले देखे, मैं तो ग्राम सभा में जो कहना होता है बिना घूंघट के खुलकर कहती हूं, मैं घूंघट नहीं निकालती हूं, घूंघट निकालूं तो बोल नहीं पाती हूं।
उदयपुर से 20-25 किलोमीटर दूर के पई गांव की आदिवासी समुदाय की 5 महिलाएं (देवली बाई, कडौली बाई, चौखी बाई, रोड़ी बाई व सोमुदी बाई) बदलाव के लिए सतत प्रयास कर रही है। दो़ दशक पूर्व वे एक सामाजिक संस्था से प्रेरणा लेकर, बंदिशों से आजाद हुई और चुप्पी तोड़कर घर से बाहर निकली। वर्तमान में पांचों महिलाएं पई ग्राम पंचायत में वार्ड पंच है। देवली बाई 3 बार, कडौली बाई 3 बार, रोड़ी बाई 2 बार, चौखी बाई 4 बार तथा सोमुदी बाई 2 बार वार्ड पंच रह चुकी है। कडौली बाई तो पंचायत समिति सदस्य भी चुनी गई। इन महिलाओं ने अन्य महिलाओं को भी आगे लाने का प्रयास किया। इस बार वेलकी बाई को भी वार्ड पंच का चुनाव लड़वाया। ग्राम पंचायत में इनकी पूर्ण भागीदारी नजर आती है। कोरम में इनका बहुमत है। सभी एक सूर में गांव के विकास के लिए प्रस्ताव रखती है।
देवली बाई कहती है गांवों में पुरूषों की राजनीति थी, पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहूंच भी जाती थी तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थी। जब हम पहली बार चुनाव लड़ी तो लोगों ने कहा कि ‘‘क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर।’’ नयाफला गांव के भैरूलाल का कहना है कि वार्ड पंच महिलाओं का यह ग्रुप सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक पहूंचाने में कार्य कर रहा है। ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी भी रखती है। अन्य दिनों में गांवों में जाना, लोगों की समस्याओं को जानना एवं कोरम में उन समस्याओं के निराकरण करवाना ही इनका मुख्य कार्य है।
असाक्षर थी, साक्षरता कार्यक्रम से जुड़कर पहले खुद अक्षर लिखना-पढ़ना सीखी और फिर गांवों  की महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बच्चे बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। संघर्ष किया और ज्ञापन दे दे कर आंगनबाडि़या व स्कूल खुलवाए। जनसमस्याओं के समाधान करना ही इनका मुख्य ध्येय बन गया है। यहीं कारण है कि क्षेत्र की करीबन 3000 महिलाएं इनसे जुड़ी हुई है। वन भूमि अधिकार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार जैसे मुद्दों पर पांचों महिला पंचों ने सक्रिय भूमिका निभाई है। देवली बाई ग्राम पंचायत व पंचायत समिति से सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं लेती रहती है। देवली बाई पूरजोर से सूचनाएं मांगती है वो कहती है कि सूचना दो, अगर नहीं देते हो तो लिखकर दो कि सूचनाएं नहीं दे सकता। उसके सवाल सुनकर अधिकारी भी झेंप जाते है। वो कहती है कि सूचना लेने का हमारा अधिकार है, सूचना देनी ही पडे़गी। कई बार तो उसके आवेदन लेने से ही इंकार कर दिया गया, दो मर्तबा आवेदन की रसीद नहीं दी। विकास अधिकारी ने कह दिया कि सूचना लेकर क्या करोगी ? लेकिन देवली बाई की तर्कसंगत बहस एवं जागरूकता के आगे अधिकारियों को झूकना पड़ा और उन्होंने लिये और सूचनाएं भी दी। देवली बाई ने हाल ही में 27 फरवरी को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके सूचना मांगी है कि "उदयपुर से सराड़ा तक कितने लोगों की जमीन अवाप्त की गई है?"
देहाती वेशभूषा में देवली बाई जब वन भूमि अधिकार के पट्टों आदि के आंकड़े बताती है तो हर कोई चकित रह जाता है। बताती है कि पात्र 103 लोगों को पट्टे दिलवाए है, लगभग 400 आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है। पेंशन योजनाओं के लाभ दिलवाने में सराहनीय कार्य इन्होंने किए है। पात्र महिलाओं के आवेदन करवाए। 2000 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा था, इन्होंने बैठक की और जिला कलक्टर को अवगत कराया, संघर्ष की बदौलत उन्हें रोजगार मिला।
सरकार के ‘प्रशासन गांव के संग अभियान’’ की तरफदारी करते हुए कड़ौली बाई कहती है इस अभियान के तहत आयोजित शिविरों में लोगों के प्रशासन से संबंधित अधिक से अधिक कार्य करवाए जा सकते है। देवली बाई ने बताया कि गांव वालों की समस्याओं के समाधान करने में इस प्रकार के अभियान महत्वपूर्ण है। हमने इस कार्यक्रम के तहत लोगों की राशनकार्ड, जाॅब कार्ड, पेंशन, प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन, जमीन संबंधीत समस्याओं के समाधान करवाए है।
सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों पर निगरानी का कार्य भी करती है। गांव में प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक समय पर नहीं आते थे तथा पूरे समय पर विद्यालय में नहीं रूकता था। देवली बाई को गांव की महिलाओं से जब ये जानकारी मिली तो शिविर में इस मुद्दे को उठाया। शिविर प्रभारी ने उस अध्यापक को हटाकर दूसरे अध्यापक को नियुक्ति करवा दी। उसके बाद से विद्यालय समय पर खुलता है और अध्यापक भी पूरे समय विद्यालय में रूकता है। इसके अलावा वो आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषाहार व विद्यालयों में मिल डे मिल का अवलोकन भी करती है। यहीं नहीं इन महिला पंचों ने साझे प्रयास कर पिपलवास, कुम्हारिया खेड़ा, सूखा आम्बा, निचलाफल, पाबा, किम्बरी में प्राथमिक विद्यालय भी खुलवाए है। विद्यालय खुलवाने के लिए बार-बार ज्ञापन दिए, जिला अधिकारियों से पैरवी की।
सम्मेलन को संबोधित करती बेलकी बाई
वार्ड नम्बर 8 में विद्यालय भवन नहीं है, अध्यापक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाता है, वहीं इस वार्ड में 30 से अधिक बच्चे है लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। आजकल पांचों महिला पंच विद्यालय भवन व आंगनबाड़ी केंद्र के लिए भवन की मांग कर रही है। हाल ही में 14 फरवरी को उन्होंने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर भवन निर्माण की मांग की है।
भ्रष्टाचार की घोर विरोधी है ये पांचो पंच। इन्होंने सूचना के अधिकार का उपयोग कर पई ग्राम पंचायत द्वारा किए गए फर्जीवाड़े को उजागर किया। फर्जीवाडे के जानकारी मिलने बाद इन्होंने सामाजिक अंकेक्षण करवाने का प्रस्ताव रखा। सामाजिक अंकेक्षण किया और पाया गया कि ग्राम पंचायत द्वारा नाली निर्माण नहीं करवाया जबकि नाली निर्माण के नाम फर्जी बिल बाउचर का संधारण कर लाखों रुपयों का गबन कर दिया गया।
कडौली बाई कहती है कि जब हम पहली बार वार्ड पंच बनी तो लोग कहते थे ये क्या कर लेगी घाघरी वाली। लेकिन हमनें जो काम अब तक किए है उन्हें देखकर अब वहीं लोग हमें र्निविरोध वार्ड पंच बनाने लगे है। देवली बाई 3 बार वार्ड पंच रह चुकी है इस बार उसे र्निविरोध वार्ड पंच बनाया गया। रोड़ी बाई का कहना है कि हम किसी से नहीं रूकने वाली है। हम ग्राम पंचायत में न तो कुछ गलत करती है और ना ही गलत होने देती है। वाकई ये महिलाएं घर की दहलीज़ पार कर चुकी है, इन्होंने रूढि़वादी विचारधाराओं को तोड़ा ऐसा लगता है कि - अब ना मूंडेगी, ना रूकेगी ये उड़ चली है खुले गगन में . . .

पूरी हुई आसी की आस


लखन सालवी -  देर से ही सही एक महिला को डायन कह कर प्रताडि़त करने के दोषी 10 जनों को न्यायालय ने जेल भेज दिया है। मामले के अनुसार राजस्थान के राजसमन्द जिले के देवगढ़ थाना क्षेत्र के जीवा का खेड़ा की एक महिला को कुछ लोग डायन कह कर प्रताडि़त कर रहे थे। प्रताड़नाओं से परेशान होकर उस महिला ने पुलिस थाने में शिकायत की थी। जनवरी माह में दर्ज करवाई गई रिपोर्ट पर कार्यवाही करने से पुलिस बचती रही। अत्याचारों के खिलाफ आवाजें उठने के बाद जब जिला प्रशासन पर दबाव बढ़ा तो अब जाकर आरोपियसों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने आरोपियों को 8 मई को कोर्ट में पेश किया जहां से उन सभी को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया।
उल्लेखनीय है कि आसी बाई एक दलित परिवार ही है और उसने खाखरड़ा निवासी आरोपी प्रेमा गुर्जर, मांगु गुर्जर, जयराम गुर्जर, भोजराम गुर्जर, गोपीलाल गुर्जर, देवी लाल गुर्जर, रत्तु गुर्जर, प्रजा गुर्जर, शायरी गुर्जर व मनरूप गुर्जर के खिलाफ 2 जनवरी 2012 को देवगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था। असल में आरोपी पीडि़ता की जमीन पर कब्जा कर रहे थे तथा पीडि़ता को डायन कहकर प्रताडि़त कर रहे थे। चूंकि पीडि़त एक दलित परिवार से है तथा आरोपी सवर्ण दबंग जाति के लोग है, इसी के चलते पुलिस कार्यवाही में लिपापोती करती रही।
जिला कलक्ट्रेट के बाहर विरोध प्रदर्शन करते लोग
हाल ही में 19 अप्रेल को दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान (डगर) के बैनर तले राजसमन्द जिला मुख्यालय पर दलित अत्याचारों के खिलाफ एवं आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें दलित समुदायों के हजारों लोगों ने भाग लिया। साथ ही डगर का प्रतिनिधि मण्डल अतिरिक्त जिला कलक्टर एवं पुलिस अधीक्षक से मिला और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की। पुलिस अधीक्षक ने कार्यवाही का आश्वासन दिया था।
आसी देवी को आस (उम्मीद) थी कि पुलिस कार्यवाही करेगी, बहरहाल देर से ही सही पुलिस ने कार्यवाही की और मुकदमा दर्ज करवाने के चार माह बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया है। हालांकि मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरेगा और इस प्रक्रिया में खूब समय भी लगेगा लेकिन आशी की आस पूरी हुई है और वो खुश है कि आखिर उसे प्रताडि़त करने वालों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।

जलदाय विभाग के कर्मचारियों व ग्राम पंचायत की मिलीभगत


लोगों को पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, हेण्डपंप पानी की कमी को पूरा नहीं कर पा रहे है वहीं लोग टेंकरों से पानी मंगवा कर पी रहे है। गरीबों की दशा तो ओर भी खराब है। एनओसी व नक्सा बनाने के नाम पर ग्राम पंचायत व जलदाय विभाग के कर्मचारी हजारों रुपए ऐंठ रहे है। सैंकड़ो बार चक्कर लगाने पर कहीं जाकर नल कनेक्शन हो पा रहे है।  नल कनेक्शन हो जाने के बाद भी नलों में आवश्यकतानुसार पानी की  सप्लाई नहीं हो पा रही है। दूसरी और एक सज्जन ने जलदाय विभाग से नल कनेक्शन लेकर अपने खेत पर नल लगाया है, वो अपने खेत में नल से पिलाई करना चाहता है।

भीलवाड़ा जिले के कोशीथल गांव में जलदाय विभाग के कर्मचारी से मिलीभगत कर घर की बजाए खेत पर नल कनेक्शन करने का मामला सामने आया है। छोगा लाल तेली ने राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय के पीछे स्थित अपने खेत में नल कनेक्शन करवाया है। जानकारी के अनुसार छोगा लाल तेली के घर पर पहले से ही नल कनेक्शन के होने के बावजूद उसने नए नल कनेक्शन के लिए आवेदन किया। मजे की बात को यह है कि ग्राम पंचायत द्वारा भी बिना तहकीकात किए एनओसी पर हस्ताक्षर कर दिए।
वैसे ग्राम पंचायत भी 200-250 रुपए लेकर एनओसी जारी कर देती है, फिर एनओसी चाहने वाला बीपीएल हो या एपीएल। एनओसी मिलने के बाद जलदाय विभाग द्वारा छोगालाल को नल कनेक्शन स्वीकृत हो गया। छोगालाल ने उक्त कनेक्शन अपने घर पर न करवाकर जलदाय विभाग के स्थानीय कर्मचारियों से मिलीभगत कर खेत पर लगावा दिया। ग्रामीणों द्वारा मामले की शिकायत सरंपच से करने बाद सरपंच शंकरलाल देरासरिया ने भी छोगा लाल तेली के खिलाफ जलदाय विभाग को लिखित में शिकायत भेजी है वहीं ग्रामीणों ने भी शिकायत भेजकर विभाग के कर्मचारियों व छोगालाल के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।

ग्राम पंचायत भी कर रही है एनओसी देने में मनमानी

कोशीथल ग्राम पंचायत द्वारा नल कनेक्शन के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी करने के बदले 250 रुपए की राशि वसूली जा रही है। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत ली गई सूचनाओं से यह खुलासा हुआ है। कोशीथल के नारायण लाल तेली ने 21 सितम्बर 2011 को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करते हुए ग्राम पंचायत से जारी किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्रों के संबंध में सूचनाएं मांगी। ग्राम पंचायत से मिली सूचना के अनुसार ग्राम पंचायत द्वारा हर वर्ग के व्यक्तियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने की एवज में 250 रुपए की राशि वसूली गई है।
उल्लेखनीय है नल कनेक्शन करवाने के लिए ग्राम पंचायत से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है। अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना जलदाय विभाग द्वारा आवेदक को नल कनेक्शन नहीं दिया जा सकता है। नियमानुसार ग्राम पंचायत 20 रुपए की शुल्क अदायगी पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर सकती है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि ग्राम सचिव अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए 250 रुपए की वसूली करता है। यह राशि नहीं देने पर अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है। जबकि जलदाय विभाग द्वारा 301 रुपए की फीस पर नल कनेक्शन मुहैया करवाया जाता है।
आवेदक किसी भी वर्ग का हो प्रत्येक से 250 रुपए वसूले जा रहे है। जनवरी 2007 से अगस्त 2011 तक अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के बदले ग्राम पंचायत ने कोशीथल के 46 लोगों से 11500 रुपए वसूल किए है। इनमें से 16 लोग अनुसूचित जाति के है तथा 7 बीपीएल परिवार के है। 7 बीपीएल में से भी 3 बीपीएल परिवार दलित है। बीपीएल परिवार के देवीलाल रेगर, जयचंद रेगर, कस्तुर सालवी, हजारी रेगर, भंवर माली सहित कईयों से 250 रुपए लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया गया।
नारायण तेली ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में यह भी जानना चाहा कि अनापत्ति प्रमाण पत्र के बदले 250 रुपए की राशि किस नियम व कानून के तहत वसूली गई ? जवाब में ग्राम सचिव ने ग्राम पंचायत के अपने अधिकार क्षेत्र के तहत यह राशि वसूलना बताया है।
गरीब व्यक्ति जैसे तैसे कर 250 रुपए ग्राम पंचायत में जमा करवाकर अनापत्ति प्रमाण पत्र ले लेता है। नल कनेक्शन के लिए जलदाय विभाग के अधिकारी फाइल के साथ नक्से की मांग करते है, नक्सा विभाग का स्थानीय कर्मचारी द्वारा बनाया जाता है। कोशीथल में कार्यरत कर्मचारी नक्सा बनाने की एवज में आवेदक से 800-900 रुपए वसूल रहे है।
भंवर माली, जगदीश माली, नारायण लाल तेली, महावीर टेलर, हेमराज सोनी दर्जनों लोगों ने जलदाय विभाग के कर्मचारियों को रुपए देकर कनेक्शन  करवाए है। जिन-जिन ने भी इस सिस्टम का विरोध किया वो कनेक्शन के लिए तरस रहे है।एक मात्र शख़्स है हिरालाल जीनगर जिसने नल कनेक्शन के लिए ग्राम पंचायत में एनओसी के बदले 250 रुपए नहीं दिए, जलदाय विभाग के कर्मचारियों को बिना पैसे खिलाए नल कनेक्शन करवाने में सफल रहा। हांलाकि उसे खूब चक्कर कटवाए गए लेकिन उसने हार नही मानी। जलदाय विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ तो उसने जयपुर स्थित जलदाय विभाग की हेल्पलाइन पर शिकायतें दर्ज करवाई, तब कहीं जाकर कनेक्शन हो पाया। विकलांग असमल मोहम्मद छीपा नल कनेक्शन के लिए 4 माह तक जलदाय विभाग के दफ्तर के चक्कर लगाने पड़े।
एनओजी जारी करने के बदले 250 रुपए लेने के मामले में ग्राम सचिव सम्पत लाल बोहरा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि - "एनओसी जारी करने के लिए पूर्व में बतौर विकास शुल्क 250 रुपए, एनओसी चाहने वाले प्रत्येक से लिए गए थे लेकिन पिछले दो माह से बीपीएल गरीब परिवारों से यह शुल्क नहीं लिया जा रहा है।