Sunday, July 15, 2012

मैं चाहे ये करूं, चाहे वो करूं. . . मेरी मर्जी !


हाल - ए - नरेगा

लखन सालवी
भीलवाड़ा जिले में महानरेगा के तहत स्वीकृत हुए केटेगरी-4 के कार्य पूर्ण नहीं हो पाए है। 14,663 व्यक्तिगत कार्य स्वीकृत हुए थे। जिनमें से केवल 5,825 पर ही कार्य पूर्ण हुए है। जून माह तक 39 प्रतिशत कार्यों के लिए मस्टरोल जारी हो पाए है। शेष अधर झूल में है। प्रशासन का कहना है कि मजदूर नहीं मिल रहे है। ये प्रशासन का अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए दिया गया बयान है।
काम पूरे नहीं हो पाने में मजदूरों की कमी को सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। जबकि स्थिति विपरीत है। मजदूर काम की मांग कर रहे है लेकिन उन्हें काम नहीं दिया जा रहा है। कही मजदूरों को आवेदन की रसीद नहीं दी जा रही है तो कही उन्हें काम का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। जिले की सहाड़ा पंचायत समिति के उल्लाई गांव के लोगों ने महानरेगा में काम के लिए आवेदन किए। वो बताए अनुसार महानरेगा कार्यस्थल पर पहुंच गए लेकिन वहां पता चला कि उनके नाम मस्टरोल में थे ही नहीं। उनके लिए मस्टरोल ही जारी नहीं किए गए। अधिकतर महिला मजदूर थी वो धूप में पैदल कार्यस्थल पर गई और अगले दिन काम मिल जाने के आश्वासन पर पुनः घर को लौट आई।
रायपुर पंचायत समिति के रामा गांव में तो मजदूरों के नाम ही पंचायत समिति के कम्प्यूटरों से डिलीट कर दिए गए है। उन मजदूरों को महानरेगा में काम नहीं दिया जा रहा है। पूर्व सरपंच नंगजीराम सालवी ने पंचायत समिति के अधिकारियों व कर्मचारियों से कई बार शिकायत की लेकिन मजदूरों के नाम वापस नहीं जोड़े गए। नगंजीराम सालवी ने बताया कि जिन मजदूरों के नाम डिलीट हुए है उनमें अधिकतर अनुसूचित जनजाति के लोग हैै, जिनकी आजीविका महानरेगा ही है। काम नहीं मिलने से उन्हें भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने इस मामले से मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के कार्यकर्ताओं को अवगत कराया। एमकेएसएस से जुड़े कमल टांक ने बताया कि विभाग के कार्यक्रम निदेशक से वे मिले, उन्होंने आश्वासन दिया कि वो जल्दी ही मजदूरों के नाम पुनः जुड़वायेंगे। बहरहाल रामा गांव के अनुसूचित जनजाति के मजदूरों को करीबन दो माह से काम नहीं मिला है, उन्हें परेशानियांे का सामना करना पड़ रहा है।
महुआ खुर्द में गांव में तो कुछ सर्वण जातियों के लोगों को तो केटेगरी-4 कांटे की तरह चुभ रहा है। वो इस कांटे को निकाल फैंकना चाह रहे है। सरकार भले ही महुआ खुर्द के अनुसूचित जाति एवं जनजाति व बीपीएल परिवारों को प्राथमिकता देते हुए उनके खेतों में केटेगरी-4 के माध्यम से विकास करवाना चाह रही है, लेकिन यहां की कथित ऊंची जातियों के लोगों को यह मंजूर नहीं है। वो अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के खेतों में महानरेगा के तहत काम करने नही जा रहे है, यही नही वो अन्य मजदूरों को भी काम पर नहीं जाने के लिए भड़का रहे है। एससी/एसटी के खेतों पर कार्य करने के लिए मस्टररोल जारी होने पर वो कार्य का ही बहिष्कार कर रहे है।
जहाजपुर पंचायत समिति के पण्डेर ग्राम पंचायत की सहायक सचिव तो पंचायत में अपनी मनमर्जी चला रही है। वो न तो मजदूरों के आवेदन प्रपत्र-6 भरती है और ना ही उन्हें पावती रसीद देती है। मजदूर आवेदन की रसीद मांगते है तो कहती है कि - ‘‘रसीद दूं या न दूं मेरी मर्जी’’ तुम्हें तो काम मिल जाएगा।
25 जून को कुछ महिला मजदूर राजीव गांधी सेवा केंद्र में महानरेगा के तहत काम के लिए आवेदन करने गई। महिला ने रोजगार सहायक रूकमणी लखारा को आवेदन पत्र भरने को कहा लेकिन रूकमणी ने आवेदन पत्र भरने से इंकार कर दिया। महिला मजदूरों ने हंगामा किया। वहां मौजूद कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं ने पंचायत समिति के विकास अधिकारी को अवगत कराया। विकास अधिकारी कन्हैया लाल वर्मा ने सहायक सचिव को फोन कर आवेदन पत्र भरने के निर्देश दिए। सहायक सचिव रूकमणी लखारा ने विकास अधिकारी के निर्देश की पालना नही करते हुए एक कागज पर सभी मजदूरों के नाम नोट कर उन्हें जाने को कह दिया। महिलाओं ने पावती रसीद की मांग करते हुए फिर से हंगामा किया। महिला मजदूरों एवं सहायक सचिव के बीच काफी देर तक बहस होती रही। वहां मौजूद सरपंच पति ने महिला मजदूरों को शांत कर घर भेजा।
एक रोजगार सहायक की इस प्रकार की कर्तव्य विमुखता व अधिकारी के निर्देश को हवा कर देने के रैवये से साफ जाहिर है कि ग्राम पंचायतों में महानरेगा श्रमिकों के अधिकारों का हृास किया जा रहा है। फिर ऐसे रैवये से गरीब मजदूरों को रोजगार गारण्टी योजना से मोह भंग नहीं होगा तो क्या होगा ?
राजनीतिक लोगों की भी ये मंशा नहीं है कि केटेगरी-4 के काम हो। कार्य संपादित करवाने वाली स्थानीय एजेन्सी ग्राम पंचायते भी केटेगरी-4 के कामों से मुंह फेरे बैठी है। सरपंचों को केटेगरी-4 के काम करवाने में कोई खास रूचि नहीं है। उन्हें रूचि है पक्के काम करवाने में। सरकार अगर पक्के कामों की स्वीकृति दे दे फिर तो उन्हें मजदूर भी मिल जाएंगे और वो कार्य भी नियत तिथि पूर्व ही पूर्ण भी करवा देंगे। प्रशासनिक अधिकारी भी बिना कमीशन के कार्यों में कोई खास रूचि नहीं लेते। ऐसी स्थिति में केटेगरी-4 के काम पूरे हो तो कैसे ?
प्रशासन व सरकार रोजगार गारण्टी योजना के नाम पर कितना ही भुनाने की कोशीश करे लेकिन हकीकत तो यही है कि इस प्रकार की घटनाओं से मजदूरों का महानरेगा के प्रति मोह निरन्तर कम होता जा रहा है।

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