Monday, September 16, 2013

बंजर धरती उगलने लगी है सोना


  • लखन सालवी 

भीलवाड़ा जिला खानों के कारण प्रसिद्ध रहा है। नवीन जिंदल जैसे लोग भी इस जिले में आने से अपने आप को रोक नहीं सके। जिले के भूगर्भ में कहीं सैंड स्टोन है तो कहीं ग्रेनाइट की चट्टानें फैली हुई है। न जाने कहां कहां से लोग भीलवाड़ा की धरा पर आकर धरती को पोली कर रहे है। करेंगे भी क्यों नहीं . . . आखिर इस धरा ने अपने भीतर खजाना जो समेट रखा है।

भीलवाड़ा जिले में दो क्षेत्र ऐसे है जो उपरमाल के नाम से जाने जाते है। एक उपरमाल जिला मुख्यालय के पूर्व की ओर स्थित है वहीं दूसरा जिला मुख्यालय के पश्चिम में स्थित है। दोनों ही उपरमाल क्षेत्र व्यापारिक दृष्टि से भीलवाड़ा जिले को विश्वपटल पर पहचान दिला रहे है। पूर्वी उपरमाल क्षेत्र सेंड स्टोन की बदौलत प्रसिद्ध है वहीं पश्चिमी उपरमाल ग्रेनाइट उत्पादन के लिए मशहूर हो रहा है। दो दशक पूर्व इस क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में विद्यमान काले पत्थर की पहचान जब ग्रेनाइट के रूप में हुई तो अन्य जिलों व राज्यों के ग्रेनाइट उद्यमी भी यहां आकर कारोबार करने लगे। पश्चिमी उपरमाल में स्थापित हो चुके ग्रेनाइट उद्योग पर रिपोर्ट - 

जिले के करेड़ा कस्बे के पश्चिम की ओर उपरमाल क्षेत्र है। करीब एक दशक पूर्व यहां ग्रेनाइट की दर्जनों खानें शुरू हुई और तब से इनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। खास बात यह है कि छोटे-छोटे उद्यमियों ने मिलकर इस उद्योग को पनपाया है। ग्रेनाइट की गुणवत्ता व प्रचुरता को देखते हुए अन्य जिलों व राज्यों के उद्यमी भी यहां आए है। वैसे अधिकतर उद्यमी स्थानीय गांवों के किसान परिवारों के लोग ही है, जिन्होंने न केवल भूगर्भ में छिपे पत्थर की पहचान ग्रेनाइट पत्थर के रूप में की बल्कि दूरदर्शिता और मेहनत के बूते धरती के गर्भ से इस काले पत्थर को बाहर निकाल कर इस उद्योग को आगे बढ़ाया है।

कभी इस क्षेत्र में हर तरफ काला पत्थर ही दिखाई देता था और इस पत्थर को यहां के लोग कोसते थे। लेकिन इस काले पत्थर ने उपरमाल की काया पलट दी। आज क्षेत्र में दर्जनों ग्रेनाइट की खाने संचालित है। जिनसे न केवल यहां के लोग आर्थिक सुदृढ़ हो रहे है बल्कि राजकीय कोष में भी वृद्धि कर रहे है। 

ग्रेनाइट खानें के मालिक विनोद तिवारी के अनुसार ग्रेनाइट उद्योग की बदौलत सरकार को वर्ष 2009 में 3 लाख 99 हजार का राजस्व प्राप्त हुआ जो निरन्तर बढ़ता ही गया। वर्ष 2010 में राजस्व आय बढ़कर 46 लाख रुपए हो गई। वहीं इस वर्ष 3 करोड़ 21 लाख की राजस्व आय हुई है अर्थात् ग्रेनाइट व्यवसाय केवल उद्यमियों को नहीं बल्कि सरकार को भी आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहा है।

यूं शुरू हुआ ग्रेनाइट उद्योग

गोवर्धनपुरा गांव के एक किसान परिवार में जन्में तथा 5वीं तक पढ़े नाथू लाल गुर्जर (58 वर्ष) जानमाने ग्रेनाइट व्यवसायी है। यही वे शख्स है जिन्होंने सबसे पहले इस क्षेत्र के काले पत्थर को भूगर्भ से बाहर निकाला और उसकी कटिंग इत्यादि करवाकर ग्रेनाइट को उजागर किया और वर्तमान में गुणवत्तायुक्त ग्रेनाइट का उत्पादन कर रहे है। नाथू लाल गुर्जर सरपंच भी रहे। सरपंच रहते हुए ग्राम पंचायत क्षेत्र में बेहतर कार्य करवाए जिस पर इन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। 

क्षेत्र के पूर्व विधायक कालू लाल गुर्जर के करीबी माने जाने वाले नाथू लाल गुर्जर बताते है कि दो दशक पूर्व इस क्षेत्र में न कोई उद्योग धंधे थे और ना ही किसी प्रकार का रोजगार ही उपलब्ध था। 1992 में माण्डल विधानसभा क्षेत्र के विधायक कालु लाल गुर्जर राजस्थान सरकार में मंत्री थे। उन्होंने उपरमाळ क्षेत्र में ग्रेनाइट पत्थर होने का इशारा किया था। तब मैंनें सन् 1993 में काले पत्थर को निकाला और उसे कटवाकर उस पर पाॅलिस करवाई तो पता चला कि वह साधारण पत्थर नहीं वरन् ग्रेनाइट है। जब ग्रेनाइट होने की पुष्टि हो गई तो क्षेत्र के लोगों के खानों (माइन्स) के लिए लगभग 1500 फाइलें लगाई गई थी। कईयों के एक-एक हैक्टयर की खानें आवंटित भी हुई लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण अधिकतर लोग खानें शुरू नहीं कर पाए। दरअसल खानें आरम्भ करने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की आवश्यकता थी। लोगों के पास इतना पैसा नहीं था कि मशीनरी खरीद पाते। लेकिन उद्यमियों में दूरदर्शिता थी, उन्होंने कड़ी मेहनत की और विभिन्न देशी उपायों से पत्थर को बाहर निकालने और बेचने लगे। नतीजतन छोटे उद्यमी समृद्ध हुए। अब वे तकनीक तथा बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग कर काले पत्थर को भूगर्भ से बाहर निकाल रहे है।

पहले कोई बेटी नहीं देता था अब रिश्तेदारो की कतार है

नाथू लाल गुर्जर बताते है कि एक समय था जब कोई भी व्यक्ति उपरमाल क्षेत्र में अपनी बेटी देना पसंद नहीं करता था। कारण था यहां न किसी प्रकार का उद्योग था और ना ही खेती योग्य धरती थी। ग्रेनाइट के उत्पादन के बाद यह क्षेत्र समृद्ध हो गया है। लोगों की बंजर जमीनें मंहगे दामों में बिक रही है वहीं बेरोजगारों को भी रोजगार मिला है। चूंकि क्षेत्र के लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न हुए है तो रिश्ते भी आगे होकर आ रहे है। 

अब वेस्टेज से काॅबल बनाने तैयारी 

टीआर ग्रेनाइट की मालिक गीता देवी गुर्जर का सपना ग्रेनाइट पत्थर के काॅबल बनाने का है। उनका मानना है कि सेंड स्टोन के वेस्टेज पत्थरों से काॅबल बनाए जा सकते है तो ग्रेनाइट के वेस्टेज का उपयोग कर अवश्य ही काॅबल बनाए जा सकते है। उल्लेखनीय है कि छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों यानि कि वेस्टेज पत्थर से ईंट के आकार का ब्लाॅक बनाया जाता है जिसे काॅबल कहा जाता है। गीता देवी ग्रेनाइट पत्थर की कटिंग को सबसे बड़ी चुनौती मानती है। उन्होंने बताया कि वायरसा नामक मशीन से पत्थर के बड़े ब्लाॅक तो काटे जा सकते है लेकिन भारत में ऐसी कोई मशीन नहीं जिससे ग्रेनाइट पत्थर के ईंट के साइज के ब्लाॅक काटे जा सके। उन्होंने बताया कि चीन ने ऐसी मशीन इजाद कर ली है हम उस मशीन को मंगवाने की तैयारी कर रहे है। 

चुनौतियां का सामना करते हुए कर रहे है उज्जवल भविष्य का निर्माण

सवाईभोज, टीआर, नवकार, तिरूपति, अनमोल, बालाजी, सिद्धी विनायक, भैरूनाथ, राधिका, कविता, शान, जगदम्बा, जैसी दर्जनों ग्रेनाइट माइन्सें क्षेत्र को बेहतर ग्रेनाइट उत्पादन का केंद्र बना रही है। ग्रेनाइट माइन्स से पत्थर निकालने के लिए तकनीकी संसाधनों का उपयोग करने में माहिर ग्रेनाइट व्यवसायी राजमल जैन का कहना है कि ग्रेनाइट उद्योग को ऊंचाई प्रदान करने में लगे क्षेत्र के छोटे-छोटे उद्यमियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन वे चुनौतियों का सामना करते हुए ग्रेनाइट उद्योग को बढ़ाने में लगे है। उन्होंने बताया कि वैश्विक मंदी का असर इस कारोबार पर भी पड़ रहा है। वहीं क्षेत्र के कुछ हिस्से में क्रेक जोन होने के कारण भी उद्यमियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में कुछ उद्यमी बिजली कनेक्शन के लिए दौड़ रहे है। बिजली कनेक्शन नहीं होने के कारण बड़े-बड़े जनरेटरों से बिजली बनाकर मशीनरी को चला रहे है। ईंधन पर अधिक खर्च हो रहा है जबकि खर्च की एवज में उत्पादन कम हो रहा है। 

ग्रेनाइट व्यवसायी व राजनेता लाखाराम गुर्जर ने बताया कि कई लोगों को विद्युत हेतु बड़े ट्रांसफार्मर की आवश्यकता है। विद्युत विभाग के अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि ट्रांसफार्मर के लिए हैदराबाद में आवेदन करना होगा। बहरहाल विद्युत के अभाव में कईयों की माइन्सें नुकसान में चल रही है। लेकिन उद्यमी इन समस्याओं का डटकर सामना कर रहे है, वर्तमान में कई उद्यमी जीरो प्रोफिट पर माइन्स संचालित कर इस उद्योग को जीवित रखने का प्रयास कर रहे है।

बालाजी ग्रेनाइट के मालिक विनोद तिवाड़ी बताते है कि बड़े उद्यमी इस क्षेत्र में नहीं आए है इस कारण भी इस कारोबार को व्यापक पहचान नहीं मिल पाई है इस कारण इस व्यवसाय को ऊंचाई पर पहुंचने में समय लग रहा है। उन्होंने बताया कि बड़े उद्यमियों को जमीनों के बड़े भाग नहीं मिल पा रहे है इस कारण वे यहां आने के इच्छुक नही है। उन्होंने बताया कि छोटे उद्यमियों ने समूह बनाकर इस कारोबार को ऊंचाई देने के लिए कमर कस ली है।

दोहन ही नहीं करते वरन पर्यावरण के प्रति सजग भी है हम - तिवाड़ी

युवा नेता विनोद तिवाड़ी ने बताया कि ग्रेनाइट माइन्सों के अलग-अलग कलस्टर बने हुए है। कलस्टर वार अलग-अलग समिति बनी हुई है। कलस्टर संख्या 2 व 3 के अध्यक्ष नाथू लाल गुर्जर है, उनकी अध्यक्षता वाला फाकोलिया-धुंवाला ग्रेनाइट एसोसिएशन भी बना हुआ है। एसोसिएशन के सचिव तिवाड़ी ने बताया कि एसोसिएशन के मार्फत हम पर्यावरण विकास पर खास ध्यान दे रहे है। उन्होंने कहा कि हम पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने देना चाहते है इसके लिए हम समय-समय पर पेड़-पौधे भी लगाते है। 

तिवाड़ी ने बताया कि कलस्टर ने करेड़ा स्थित सरकारी अस्पताल को भी गोद लिया है। इस अस्पताल में 3 सालों में 7 लाख रुपए खर्च किए जाने है जिनमें से एक लाख रुपए खर्च किए जा चुके है। 

एसोसिएशन उपाध्यक्ष राजमल जैन ने बताया कि कलक्टर ओंकार सिंह ने हमें जमीन आवंटित करने के लिए आश्वस्त किया है। अगर जमीन आवंटित की जाती है तो हम उसमें भारी संख्या में पेड़-पौधे लगाकर उस पर विकास करवायेंगे।

बहरहाल उपरमाल क्षेत्र के लोग बरसों से पड़ी बंजर जमीनों को उद्यमियों को बेच रहे है वहीं दूर दराज के उद्यमी जमीनों को खरीद कर अपना भाग्य आजमा रहे है। ग्रेनाइट उद्योग की शुरूआत करने वाले नाथू लाल गुर्जर अपने सपनों को साकार करते हुए आगे बढ़ रहे है। उनका कहना है कि ‘‘कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता है, तबीयत से एक पत्थर तो उछालों यारों’’। 

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