Saturday, April 21, 2012

सामाजिक संस्थाओं के काले कारनामें


कानून बनाने व कानून लागू करने की मांग करने वाले स्वयं कानूनों की अवहेलना कर रहे है

बारां जिले का एक एनजीओ कई सालों से भ्रष्टाचार कर रहा है

अनियमितता के मामले में उसके खिलाफ कोर्ट में मामला विचाराधीन है

बंधुआ मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाने वाले इस एनजीओ का डायरेक्टर खुद बंधुआ मजदूरी करवाता है।

महिला अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने वाला खुद महिलाओं के साथ अत्याचार करता है।

इस एनजीओ में कार्यरत कई कार्यकर्ता शादीसुदा होने के बावजूद एनजीओ में ही कार्य कर रही बालाओं से शारीरिक संबंध रखते है। अपनी सेलेरी का आधा हिस्सा उन खुबसूरत बालाओं पर खर्च कर देते है, और वो बात करते है महिला अत्याचारों की खिलाफत की, बात करते है कानूनों की पालना करने की ...... क्या वो कर रहे है हिन्दू मैरिज एक्ट की पालना?

सूचना के अधिकार के कानून को लागू करवाने के लिए किए गए आंदोलन में भाग लेने वाला यह शख्स अपनी संस्था की सूचनाएं नहीं देता है।

ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए कार्यो का सामाजिक अंकेक्षण करने का ठेका लेने वाले इस एनजीओ का सामाजिक अंकेक्षण करना जरूरी है। एक ग्राम पंचायत का सामाजिक अंकेक्षण इस एनजीओ ने किया, सरपंच ने इस एनजीओ के कारनामे उजागर करने की धमकी दी तो सामाजिक अंकेक्षण का लचीला कर दिया। अर्थात् सरकारी ओडिटर्स की तरह ले दे के मामला ठण्डे बस्ते में डाल दिया।

इस एनजीओं के खिलाफ . . . .  मेरी एक खास रिपोर्ट . . .  जल्दी ही . . .

एनजीओ - सरकार के बाद करप्शन की सबसे बड़ी दूकानें (कुछ को छोड़ कर) है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अधिकतर एनजीओ भ्रष्टाचार में लिप्त है।
ऐसे एनजीओ के खिलाफ भी हमें आवाज उठानी होगी, वरना ऐसे लोग समाज को दीमक भांति चट कर जाएंगे।

ऐसे एनजीओ के खिलाफ अब आप क्या कहिएगा ?

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