Wednesday, April 4, 2012

हत्यारें जब बुद्धिजीवी होते है

हत्यारें जब बुद्धिजीवी होते है
वे तुम्हें एैसे नहीं मारते
बख्श देते है तुम्हें तुम्हारी जिंदगी
बड़ी चालाकी से
झपट लेते हैं तुमसे
तुम्हारा वह समय
तुम्हारी वह आवाज
तुम्हारा वह शब्द
जिसमें तुम रहते हो

तुम्हारे छोटे-छोटे सुखों का
ठिकाना ढूंढ लेते हैं
ढूंढ लेते हैं
तुम्हारे छोटे-छोटे
दुखों और उदासियों के काने
बिठा देते हैं पहरे
जहां-जहां तुम सांस लेते हो

रचते हैं झूठ
और चढ़ा लेते है उस पर
तुम्हारे ही समय
तुम्हारी ही आवाज
तुम्हारे ही शब्दों के
वे तुम्हारे ही शब्दों से
कर देते है
तुम्हारी हत्या

              -  योगेन्द्र कृष्ण


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