Tuesday, April 10, 2012

सेन्डविच बन गए है राजसमन्द के दलित

देश  को आजाद हुए 62 वर्ष हो चुके है, कथित उच्च वर्ग आर्थिक, सामाजिक व अभिव्यक्ति की आजादी के मजे लूट रहा है, लेकिन राजस्थान के दलित अभी आजादी के लिए संघर्ष कर रहे है। न तो उन्हें सार्वजनिक मंच पर बैठने की आजादी मिली है ना ही मनचाहे कपड़े पहनने की। राजस्थान के राजसमन्द जिले में दलितों पर अत्याचार के मामलें बढ़ रहे है। बीते माह में इस जिले के तीन गांवों में दलित अत्याचार की बड़ी घटनाएं हुई है। 
दलितों पर सर्वाधिक अत्याचार गुर्जर व राजपूत जाति के लोग कर रहे है। बियाना गांव के किशन लाल गुर्जर ने दलित व्यक्ति की पगड़ी छीनकर जला दी, सोलंकियों का गुढ़ा गांव की टमु बलाई भी गुर्जर जाति के लोगों से करीबन 5 सालों से संघर्ष कर रही है। डेकवाड़ा गांव में कोई 3 साल पहले गोली दाग कर मारे गए दलित व्यक्ति का हत्यारा राजपूत निकला। अभी हाल में भीम के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर स्थित 40 मील गांव की दो दलित महिलाओं की पानी की मटकियों को राजपूत जाति के एक युवक ने लातें मार कर फोड़ दी। कमोबेश दलितों के साथ छुआछूत व अत्याचार जारी है वहीं पुलिस व प्रशासन मौन है, सरकार तो कहती कुछ और है तथा करती कुछ और है।
गौर करे तो दलितों पर बढ़ोतरी का मुख्य कारण ही पुलिस प्रशासन का नकारात्क रवैया है। तभी तो एक दलित महिला की पानी की मटकियां फोड़ देने एवं उसे जातिगत गालियां देने वाला सुखदेव सिंह राजपूत  (22 वर्ष) खुल्ले आम घूम रहा है। 27 मार्च 2012 को 40 मील गांव की अणछी बलाई व पुष्पा बलाई ने सुखदेव सिंह, श्रवण सिंह व सेना सिंह पर जातिगत गांलिया निकालने व उनकी मटकियां फोड़ देने का आरोप लगाते हुए कार्यवाही की मांग को लेकर भीम थाने में रिपोर्ट दी। उन्होंने थाने में बताया कि वो महानरेगा के तहत सुनातो का बाडि़या गांव में चल रहे ग्रेवल सड़क निर्माण कार्य के लिए 40 मील गांव के पास ग्रेवल खुदाई कार्य पर पानी पिलाने का कार्य कर रही थी। दोपहर में मध्याहन अवकाश  के दौरान वह अन्य मजदूरों के साथ बैठी थी कि ये तीनों आरोपी कार्यस्थल पर आए। इनमें से सुखदेव सिंह वहां पर गाली गलौच करने लगा और सरपंच, सचिव व मेट को गालियां निकालने लगा। फिर उसने अणछी बलाई की पानी की मटकियों को लातें मार कर फोड़ दिया। अणछी बलाई व पुष्पा बलाई ने विरोध किया तो सुखदेव सिंह ने न केवल उन्हें जातिगत गालियां दी बल्कि सरपंच व सचिव से साथ उनके अवैध रखने का लांछन भी लगा दिया। 
 सुखदेव सिंह

दलित महिलाओं ने हिम्मत दिखाई और अपमानित करने वाले सुखदेव सिंह के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। उन के थाने में  रिपोर्ट दर्ज  कराने के कुछ देर बाद ही मेट द्वारा भी सुखदेव सिंह के खिलाफ थाने में  रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस ने मेट की रिपोर्ट पर सुखदेव सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 107 व 151 में मामला दर्ज किया और उसे गिरफ्तार कर लिया। दूसरे दिन सुखदेव सिंह जमानत पर छूट गया। दूसरी तरफ महिलाओं की रिपोर्ट पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। मेट को गाली गलौच की, जिसकी रिपोर्ट पर पुलिस ने सुखदेव सिंह को गिरफ्तार कर हवालात में बंद कर दिया। जबकि दलित महिलाओं की मटकी फोड़ने, जातिगत गालियां निकालने, सरपंच व मेट से अवैध संबंध होने की भ्रामक बातें फैलाकर महिलाओं को मानसिक संताप संताप देने वाले सुखदेव सिंह के खिलाफ कार्यवाही आरम्भ नहीं की।
अणछी देवी व उनके परिजनों को थाने वालों के व्यवहार से ही लग गया था कि वे सुखदेव सिंह के खिलाफ कार्यवाही नहीं करेंगे (क्योंकि सुखदेव सिंह लॅाकअप में भी गाली गलौच कर रहा था, धमकियां दे रहा था और पुलिस चुपचाप सुन रही थी।) , इसलिए वो घटना वाली रात में ही राजसमन्द गई।और पुलिस अधीक्षक से उनके निवास पर जाकर मिली। पुलिस अधीक्षक ने भी पहले तो उनके प्रति संवेदनाएं दिखाने की बजाए उन्हें रात में आने पर दुत्कारा  फिर कार्यवाही करवाने का आश्वासन दिया। 
28 मार्च 2012 को दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान (डगर) के कार्यकर्ताओं ने इस मामले की जानकारी ली। उसके बाद पुलिस हरकत में आई और पुलिस उपाधिक्षक दो दिन बाद मौका स्थल पर गए और 2 अप्रेल 2012 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। मजदूर सच्च बता रहे है व मेट बता रहा है कि सुखदेव सिंह ने अणछी बलाई की मटकियां फोड़ दी और उन्हें जातिगत गालियां निकाली। बावजूद पुलिस अनुसंधान के नाम पर खानापूर्ति कर रही है। 
आरोपी द्वारा मटकियां फोड़ने, जातिगत गालियां देने और इज्जत पर लांछन लगाने से दलित महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहूंची है, घटना के बाद वो जब पुलिस थाने की ओर उनके कदम बढ़ रहे थे तब उनमें जंग जीतने के भाव थे आज उनमें हीनता का भाव चरम पर पहूंच रहा है।
गोवर्धन लाल
इसी जिले में एक दलित को जातिगत गालियां देने व उसकी पगड़ी छीनकर जला देने का आरोपी किशन लाल गुर्जर भी बेखौफ घूम रहा है। 11 मार्च 2012 को गुणिया गांव का गोवर्धन लाल बलाई (दलित, आयु-45 वर्ष) बियाना गांव में गया था, वहां से लौटते वक्त बियाना गांव का  किशन लाल गुर्जर अपने साथियों के साथ आया और गोवर्धन लाल का रास्ता रोक दिया, उन्होंने उसे जातिगत गालियां दी और एक नोहरे में ले गए। वहां गुर्जर जाति के और भी लोग बैठे हुए थे। वहां किशन लाल ने गोवर्धन लाल का अपमान किया गया, उसकी पगड़ी छीन ली और धधकती भट्टी में डालकर जला दी। उसने गोवर्धन लाल को धमकी दी कि अगर आज के बाद गुर्जरों के जैसी पगड़ी बांधी तो तूझे भी भट्टी में डालकर जला दूंगा। पगड़ी छीन लेने और जला देने पर भी अपमान का घड़ा नही भरा तो किशन लाल ने गोवर्धन लाल को सिर पर पगड़ी की जगह औढ़ने के चद्दर को बांधने पर मजबूर किया। गोवर्धन लाल क्या करता, अकेला था उस वक्त, और वे तो कई सारे थे। किशन लाल ने न केवल चद्दर को सिर पर बंधवाया बल्कि इस घटना को किसी को नहीं बताने के लिए कहा, बताने पर जान से मारने की धमकी दी। गुर्जरों की इस धमकी से गोवर्धन लाल इतना डर गया कि उसने इस घटना के बारे में घर वालों को भी नहीं बताया। लेकिन लोगों के द्वारा जब घर वालों को पता चला तो उन्होंने उसे हिम्मत बंधाई। उसके बाद गोवर्धन लाल ने दिवेर पुलिस थाने में 13 मार्च 2012 रिपोर्ट दर्ज करवाई। 
दिवेर थाने में अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत किशन लाल गुर्जर व अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। पुलिस पीडि़त पक्ष के बयान ले चुकी है। लेकिन अभी तक पुलिस ने किशन लाल गुर्जर को गिरफ्तार नहीं किया गया है। वो खुलेआम घूम रहा है। 
टमु बलाई
सोलंकियों का गुढ़ा गांव की एक दलित महिला को गुर्जर जाति के लोगों के आंतक का पिछले 5 साल से सामना कर रही है। टमु बलाई (48 वर्ष) पत्थर फोड़ती है, उन्हें ढ़ोकर लाती है और अपने नोहरे के चारदिवारी करती है। गुर्जर जाति के लोग चारदिवारी से पत्थर उठाकर ले जाते है। ऐसा 5 सालों से कर रहे है। वो ऐसा इसलिए कर रहे है कि टमू बलाई उस नोहरे वाली जमीन को छोड़ दे ताकि वो लोग उस जमीन पर कब्जा कर सके। टमू बाई को परेशान करने के पीछे एक बड़ा कारण टमू बलाई का स्वाभिमानी होना है। वो गुर्जर द्वारा आयोजित भोज में अन्य दलितों की तरह नहीं जाती है। वो कहती है कि मैं गुर्जरों के भोज में जाकर उनकी दबेल नहीं बनना चाहती। गुर्जरों को टमू बलाई की यह स्वाभिमानिता ही पंसद नहीं आती है। इसलिए वो कभी उसके नोहरे से पत्थरों की चोरी कर, कभी उसके खेतों में पशु चराकर तो कभी सार्वजनिक जगहों पर बायकाट कर प्रताडि़त करते रहते है। टमु बलाई पुलिस में शिकायत कर चुकी है। प्रशासनिक अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है लेकिन उसे न्याय नहीं मिल रहा है। 
डगर के जिला संयोजक सोहन लाल भाटी ने बताया कि दलित अत्याचारों के मामलों में कार्यवाही की मांग को लेकर डगर द्वारा जिला कलक्टर व पुलिस अधीक्षक को भेजा गया है। लेकिन पुलिस द्वारा अत्यन्त ही धीमी गति से कार्यवाही की जा रही है। आरोपी खुलेआम घूम रहे जिससे पीडि़त दलित लोग आंतकित है। उन्होंने बताया कि राजसमन्द जिले में दलित अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही। अगर पुलिस का ऐसा ही रैवेया रहा तो राजसमन्द में महासम्मेलन किया जाएगा। 
दलित जागरूक हो रहे है, अब वो अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाने की जुर्रत कर रहे है लेकिन असंवेदनशील पुलिस   प्रशासन है कि अत्याचारियों के खिलाफ एक कदम भी नहीं बढ़ा पा रहा है। सरकारें पुलिस पर अरबों रुपए का खर्च कर रही है, इस खर्च के क्या मायने है ? दलितों के किस काम की है पुलिस और सरकार ? मंत्री, पुलिस सब शपथ ग्रहण करते है कि वो देश की सेवा करेंगे, देश की जनता के हकों की रक्षा करेंगे। क्या हो रही है जनता के हकों की रक्षा ? नहीं हो रही है ना। तो फिर उस शपथ ग्रहण के क्या मायने ?

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