Saturday, November 17, 2012

यह प्राथमिक कबाड़खाना है !


  • लखन सालवी
कोशीथल गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्वास्थ्य केंद्र नही बल्कि कबाड़खाना है। यहां डॉक्टर की कुर्सी कई महीनों से सूनी पड़ी है, मरीज डॉक्टर के कमरे में देखकर चलते बनते है। जो मजबूर यहां इलाज करवाने आते है वो परेशान है। बहिरंग वार्ड गीता सिस्टर व एक कम्पाउण्डर के भरोसे है। भर्ती वार्ड को सफाई का इंतजार है, दरिया व बेडशीट भी एक बार धुल जाएगी तो साफ दिखाई देने लगेगी। एक बार इलेक्ट्रीशियन से बिजली फिटिंग व्यवस्थित करवा दी जाए तो केंद्र में रोशनी हो सकती है। बहरहाल इन व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने की जहमत उठाने वाला कोई नहीं है।
चिकित्साधिकारी के कमरे में खाली पड़ी कुर्सियां
सहाड़ा तहसील के कोशीथल गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) खस्ता हाल है। व्यवस्थाएं चरमरा गई है। पीएचसी के नाम है तो महज बहिरंग और भर्ती वार्ड। वो भी गंदगी से सराबोर। चिकित्साधिकारी के कमरे में लगी चिकित्सकों की कुर्सियां खाली पड़ी है। वरिष्ठ चिकित्साधिकारी का पद कई महिनों से रिक्त है। डॅा. मोहित डाबी को यहां लगाया गया है लेकिन अभी तक उन्हें रायला से रिलीव नही किया गया है। ऐसे में पीएचसी पर एक भी चिकित्सक नहीं है। हाल में पीएचसी पर डॅा. शांतिलाल जीनगर सप्ताह में दो दिन अपनी सेवाएं दे रहे है। डॉक्टर साहब सप्ताह में 2 दिन यहां आ रहे। बाकी के दिनों में मरीज अपना इलाज गीता सिस्टर (फीमेल नर्स) से करवा रहे है। जब गीता सिस्टर इलाज के लिए हाथ खड़े कर देती है तो गंगापुर या भीलवाड़ा जाकर इलाज करवा रहे है।


बहिरंग वार्ड में सिस्टर व कम्पाण्डर के भरोसे

ग्रामीण अयूब मोहम्मद ने बताया कि ओपीडी एक कम्पाउण्डर व एक फिमेल नर्स गीता देवी के भरोसे है। वैसे इन दोनों की सेवाओं की बदौलत ही इस केंद्र का वजूद बचा है। ये दोनों कर्मचारी बेखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे है। केंद्र का नाम लेते है कि हर किसी की जुबां पर गीता सिस्टर का नाम आता है। वो बुलावे पर मरीज के घर के जाकर भी ईलाज कर रही है। महिलाओं की चहेती है तथा केन्द्र में भर्ती मरीजों की सार-संभाल भी वो ही करती है।
बंद पड़ी ट्यूब लाइटें - जीर्णशीर्ण होता वार्ड
तुलछीराम, रोशन लाल, कैलाश चंद्र ने बताया कि पिछले एक दशक से केंद्र की दशा बिगड़ती जा रही है। पहले भर्ती वार्ड साफ-सुथरा रहता था, यहां महिला व पुरूष डॉक्टर के पद रिक्त नहीं होते थे। मरीजों की भीड़ रहती थी। परिसर में पेड़ पौधे थे। 5 साल से अधिक समय हो गया है यहां कोई महिला डॉक्टर नहीं है।
लोगों का कहना है कि डॅा. फरियाद मोहम्मद और डॅा. फरजाना के स्थानान्तरण के बाद यहां कोई संवेदनशील डॉक्टर नहीं आया। हालात ये है कि अधिकतर लोग गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी करवाने के लिए उन्हें शहरों के चिकित्सालयों में ले जाते है।
कुछ सालों तक तो ब्लॅाक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॅा. सतीश डाबी ने यहां बतौर डॉक्टर सेवाएं दी। वो भी अपने चैम्बर में बैठे अधिकतर समय पीकदान में गुटखा थूकते रहते रहते थे। निश्चित ही उनसे पे्ररणा लेकर कईयों ने गुटखा खाना भी आरंभ किया ही होगा। खैर, वर्तमान में डॅा. सतीश डाबी यहां के चिकित्सक नहीं है, अब वो ब्लॅाक  मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का पद संभाले हुए है। उनका कहना है कि ‘‘पीएचसी पर चिकित्सक के 2, स्टाफ नर्स के 2, एएनएम के 2, लेबर टेक्नीशियन का 1, 2 वार्ड बॉय, 1 स्वीपर, 1 एलएचवी. 1 वरिष्ठ लिपिक तथा 1 ड्राइवर का पद है। इनमें से चिकित्साधिकारी व एक एनएनम का पद रिक्त है।’’ जबकि ग्रामीणों का कहना है कि इतना केंद्र में इतना स्टाफ कभी नजर नहीं आया। कोशीथल के 12 किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। इस पीएचसी के क्षेत्राधीन 15 गांव व 5 उपकेंद्र है। जबकि कोशीथल के आस-आस के 15 गांवों के लोग इलाज के लिए इस पीएचसी पर आते है।

चिकित्सालय है या कबाडखाना

केन्द्र  खस्ता हाल है। भवन व कमरों में कई बरसों से पुताई नहीं करवाई गई है। भर्ती वार्ड में सदियों पुराने बेड व दरियां अस्त-व्यस्त हो रहे है। किन्हीं पर गद्दे है तो कईयों पर फटी पुरानी दरियां बिछा रखी है, बेड सीटें गंदी हो रखी है, ट्यूबलाइटें लगी हुई है नहीं जलती नहीं है। कर्कश ध्वनी के साथ एक-दो पंखे जरूर घूमने लगते है।
वार्ड में अस्त व्यस्त पड़ा सामान
बहिरंग रोगियों का इलाज एक ऐसे कमरें में किया जाता है जहां बेड के नाम पर दो ब्रेंच है। जिन पर मटमैली गंदी दरियां बिछा रखी है। इस कमरे की खिड़कियों से बाहर पड़ी गंदगी की बदबू कमरों आती है। फील्ड कर्मचारियों का सामान भी इसी कमरे में रखा है। मरीजों इसे ‘‘कबाड़खाना’’ कहते है।
यह दशा है कोशीथल के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन। यह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के बाद सरकार की बड़ी योजना है। महानरेगा, नाम आते ही आंखों के सामने दयनीय मजदूरों की व महानरेगा की ध्वस्त होती तस्वीर आ जाती है। महानरेगा में जहां मजदूरों को आवेदन की रसीदें नहीं दी जा रही, समय पर काम नहीं दिया जा रहा है तथा ना ही उन्हें समय पर काम का भुगतान किया जा रहा है। दूसरी ओर सरकारें जन कल्याण के लिए नित नई विकास योजना लागू कर रही है, गरीबों के हित सुरक्षित हो सके इसलिए कानून बनाकर अधिकार प्रदत कर रही है लेकिन भ्रष्ट तंत्र और प्रभावी क्रियान्विति के अभाव में सभी प्रयास दम तोड़ते नजर आ रहे है।
निजी चिकित्सालयों की ओर बढ़ा रूझान सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी और स्टाफ के असंवेदनशील रैवये के कारण उन्हें ईलाज मुहैया नहीं हो पा रहा है। प्रभावी मॅानिटरिंग व्यवस्था नहीं होना भी एक बड़ा कारण उभर कर सामने आया है। ब्लॅाक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय से महज 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित कोशीथल गावं के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दशा इतनी दयनीय है तो अन्य दूर दराज के केंद्रो की क्या दशा क्या होगी इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
लोग गांव के हो या शहर के उनका रूझान सरकारी चिकित्सालयों की बजाए निजी चिकित्सालयों की ओर बढ़ा है। जो लोग गरीब है, वो सरकारी चिकित्सालयों में ही इलाज करवाते है।

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