Sunday, March 11, 2012

करेड़ा शरीफ में जश्ने सैलानी में आपका स्वागत है . . .

लम्बे सफर के बाद बिती रात 10 मार्च को करेड़ा शरीफ जाना हुआ। मित्र परसराम बंजारा को दिल्ली जाना था और उनकी दिल्ली इच्छा थी, सरकार सैलानी के पटशिष्य सलीम बाबा साहेब से मिलने की। हमें डगर दिखाने वाले भंवर जी मेघवंशी भी साथ थे। वो हमारे साथ चलने को तैयार तो हो गए लेकिन एक शर्त पर कि ‘‘मैं (भंवर जी मेघवंशी) सलीम बाबा साहेब से मिलने नहीं आउंगा, मैं सरकार सैलानी के साधना स्थल पर उनसे मिलकर आप लोगों का बाहर इंतजार करूंगा।’’ दरअसल दूसरे दिन की सुबह से मेघवंशी जी को करेड़ा शरीफ में ही जायरीन की खिदमत में रहना था और उनका मानना था कि सलीम बाबा साहेब से रात में मिल लिए तो वापस जाने के बारे में सोचना भी दुष्कर होगा। दूसरी ओर मेघवंशी जी को सुबह होने के साथ ही परसराम जी बसस्टेण्ड़ पर छोड़ना था ताकि परसजी दिल्ली जा सके।
सलीम बाबा साहेब
मेघवंशी जी वैसा ही कर रहे थे, जैसा वो सोच कर गए। हमारी एक टोली सरकार के दरबार में पहुंची। मेरा यह पहला मौका था उर्स की तैयारियों को देखने का। लम्बे चोड़े मैदान के आगे शानदार स्टेज तैयार किया जा रहा था। एक सफेदपोष, सफेद पगड़ी वाला शख्स ने आर्कषित कर लिया। वो स्टेज पर अन्य लोगों के साथ दरिया बिछाने व पर्दे लगा रहे थे। मेघवंशी जी हमारी टोली में बीच में आ गए और दबी आवाज में बोले-‘‘अरे यार मुझे देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी।’’ मैंनें मन में सोचा कि हो ना हो यहीं सलीम बाबा साहेब है।  मेघवंशी जी ने कहा कि मुझे अंदर की तरफ छोड़कर आप लोग बाबा साहेब से मिल लीजिए। मेघवंशी जी के साथ हम अंदर गए, वहां सरकार सैलानी से रूबरू(अंतःदर्शन) होने के बाद उनके भक्ति स्थल की ओर गए।
वहां पास ही में कई लोग टेंट की सिलाई में लगे थे। पता चला कि उर्स में आने वाले जायरीन के बैठनें के लिए खुले मैदान में टेंट लगाए जाने है। सार्गिदों (भक्तजनों-अनुयायियों) ने जब टेंट वालों से सम्पर्क किया तो टेंट वालों ने हाथ खड़े कर दिए। असल में सभी टेंट व्यापारियों के टेंट शादी पार्टियों में बुक थे। अब क्या करें . . . सरकार ने कह दिया टेंट खरीद लो। अब क्या मजाल की टेंट ना लगे। कपड़ा खरीदा गया, कारीगर बुलाए गए और सलीम बाबा साहेब के आशियानें के पास देखा तो लगता है कि कोई टेंट बनाने का कारखाना चल रहा है।
अब हम बाहर जाने की तैयारी में ही थे कि खिदमतगारों से पाला पड़ गया। अब खिदमतगारों ने क्या जमकर खिदमत की, पूछिए मत। क्या गुलाब जामुन, क्या बर्फी, क्या अंगूर और ढे़र सारी चीजें हमें खिलाई गई। दो-तीन बार चाय पिलाई। हम पहले ही मेघवंशी जी के घर भोजन करके गए थे। खैर अब हम सरकार सैलानी के जन्नत सैलानी से बाहर निकलें। मेघवंशी जी ने कहा कि आप लोग जाकर बाबा साहेब से मिल लीजिए।
हम बाबा साहेब के दीदार करने गए, एक एक कर उनके राम-राम, सलाम व नमस्कार किया। उन्होंने दुनियावी दिखाई देने वाले तरीकों की बजाए पता नहीं किस तरीके से हमारा नमन स्वीकार किया। और किया भी या नहीं ? नहीं पता। वो चलते जा रहे थे, दरीयां बिछा रहे लोगों के पीछे-पीछे, कह रहे थे ऐसे बिछाओं, वैसे बिछाओं, अरे यूं बिछाओं। और हम उन्हें रोकते हुए पांव छू रहे थे, उनकी राह में रोड़ा बनकर नमस्कार, राम-राम और सलाम कर रहे थे। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो तो आगे बढ़ते जा रहे थे, व्यवस्थाएं करवाने में मस्त थे। उस मस्ती में उन्होंने हमारी ओर देखा तक नहीं, और हो सकता है अपनी आंखों से देखा हो। वो हमें नहीं मालुम।
अब हम लौटने लगे मेघवंशी जी की ओर। हम आगे बढ़ते उससे पहले बाबा साहेब लाइट व्यवस्थाएं कर रहे लोगों से बातचीत करते हुए हमसे आगे-आगे चलने लगे। सामने कोई 200 फीट दूर मेघवंशी जी किन्हीं लोगों से बतिया रहे थे। मेघवंशी जी ने बाबा साहेब को अपनी ओर आते हुए देख, दूसरी राह पकड़ ली, जाने की। उनके पैर जैसे ही जाने के लिए बढ़े, बाबा साहेब के पैर वापस स्टेज की ओर मुड़ गए। वो वापस स्टेज की ओर बढ़ने लगे। हम मेघवंशी जी के पास गए, और उनके साथ घर जाने के लिए आगे बढ़ गए। पीछे से बाबा साहेब आते दिखाई दिए, कुछ लोगों को मेघवंषी जी को बुलाने के लिए भेजा, एक बुलाने के लिए रवाना होकर कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि साहेब ने एक और से कहा कि जा दौड़ के जा और बुला ला भाईसाब को।
दो युवक हांफते-हांफते हमारे पास पहूंचे और कहा, भाईसाब को बाबा साहेब बुला रहे है। अब तो मेघवंशी जी के प्रोग्राम फिस्स्स्स्स। हम सभी गए बाबा साहेब के दरबार में। बोले बैठ जाइए, हम सब बैठ गए, वो दूर-दूर से आए लोगों से बात करने में मस्त। दरबार कैसा ? 10 बाइ 18 का एक कच्चा केवलूपोश कमरा। झूले पर गुरूजी झूल रहे। चारों तरफ गुरूजी की तस्वीरें। बाबा साहेब बैठे हुए, उनके सामने जायरिनों का जत्थे, सलाम करते हुए और बाबा साहेब बड़े ही प्रेम से उनसे बतियातें हुए। आने वाले हर एक को खाने की बोलते। हरेक से कहते है - खाना खाओं, मेरे सामने बैठ कर खाओं या मन करे जहां बैठकर खाओं, खाना खाओं।
हमारे लिए भी फरमान जारी कर दिया, बैठ जाइए। हम सभी लाइन लगा कर उनके सामने ही बैठ गए।
बाबा साहेब ने यारों से कहा - भाई खाना खिलाओं इन्हें।
अरे बाबा साहेब अभी खाया है यहीं पर - हम बोले।
बाबा साहेब ने फिर यारों से कहा- अरे भई थे तो मस्त परांठे बनाओं।
यार बोले - बाबा साब चोकोर वाले बनाउ या गोल वाले ?
बाबा साहेब - भाई मस्त वाले बनाओं।
अब पता नहीं गोल वाले कौनसे थे, चोकोर वाले और मस्त वाले परांठे कौनसे थे। लेकिन थालियां लगा दी गई और फिर परांठे दो सब्जियों के साथ, नमकीन, लापसी, नमकीन, गुलाबजामुन, बर्फी, संतरे, पपीता आए। हम एक दूसरे का मुंह देखते गए और खाते गए। हमार पेट भी पोखर हो गया। सब कुछ उसमें समाता गया।
पर बाबा साहेब, वो तो लगे थे व्यवस्थाओं में। रात की 2 बजे तक हम उनके साथ रहे। वो व्यवस्थाओं में ही लगे थे। इधर जाते उधर जाते, लोगों से मिलते। फिर स्टेज पर जाते, दरियों को ठीक कराते, लाइट ठीक करवाते, बैनर लगवाते रहे। सब कुछ आप के लिए ... आ रहे है ना . ... आप

लखन हैरान

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