Friday, March 9, 2012

गहलोत साब के राज में . . .


अशोक गहलोत को दलितों व अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री कहा जाता है और कांग्रेस ने तो दलितों व अल्पसंख्यकों को बपौती के रूप में स्थापित कर रखा है। इन्हीं गहलोत व कांग्रेस के शासन में दलितों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जा रहे है वो भी सरकार के लोगों द्वारा, इससे बड़ी बदहाली और क्या हो सकती है। गोपालगढ हो या भीलवाड़ा पुलिस अत्याचार जारी है। सरकार व सरकार के सिपेहसालार दलितों व अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील नहीं है। उल्टा पीडि़तों को और अधिक प्रताडि़त किया जा रहा है। ऐसे कोई दर्जनभर मामले हाल ही में हुए है जिनमें से दो-तीन मामलों से आपको अवगत करा रहा हूं। अब आप ही तय किजिए कि राजस्थान सरकार दलितों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के बाद इनके मामलों में कितनी संवेदनशील है।
भीलवाड़ा जिले में आए दिन दलितों व अल्पसंख्यकों पर जुर्म हो रहे है। कहीं उच्च वर्ग द्वारा उनका बहिष्कार किया जा रहा है, तो कहीं उनकी झौपड़ी को जलाया जा रहा है कहीं साम्प्रदायिकता की आग में जबरन फैंका जा रहा है। जो लोग इन सब के लिए दोषी है, जगजाहिर हो जाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। आखिर क्यों ?
कुछ माह पूर्व जिला मुख्यालय के समीप की एक बस्ती में दो समुदाय के युवाओं में पुरानी रंजिस के चलते झगड़ा हुआ। जिसे दंगा कहा गया। वास्तव में हुआ यूं था कि एक समुदाय के लोग इबादत करके आ रहे थे तब दूसरे समुदाय के लोगों ने उनपर हमला कर दिया। कुछ देर में पुलिस वहां पहूंची और बेकसुरों की बेदर्दी से जमकर पिटाई की। पुलिस प्रड़ताना के खिलाफ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज उठानी चाही तो इस मामले में उनके नाम जोड़कर उन्हें भी प्रताडि़त करने किया गया। अब तो दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। लेकिन आंताताई तो अभी भी खुले आम घूम रहे है।
इससे भी बड़ा मामला एक गांव में हुआ जहां दलितों को प्रताडि़त किया गया। जिले के बड़ा महुआ गांव में उच्च वर्ग के लोगों द्वारा दलितों का सामुहिक बहिष्कार किया गया। दलितों का दोष यह था कि उन्होंने उच्च वर्ग के लोगों के विरोध के बावजूद एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन प्रशासनिक स्वीकृति के बाद किया। सर्वण हिन्दुओं को दलितों का यह दुस्साहस बिलकुल नहीं भाया और उन्होंने 31 दलित परिवारों के लोगों को बहिष्कृत कर दिया। उनका सार्वजनिक स्थलों पर उठना.बैठना बंद कर दिया गया, नाईयों द्वारा बाल काटने से इंकार कर दिया गया, किराणा स्टोर वालों ने सामान देने से इंकार कर दिया, सार्वजनिक होटलों व रेस्टोरेंटों में चाय व खाद्य पदार्थ नहीं दिया गया, अनाज की पिसाई करने से मना कर दिया गया।
यहीं नहीं सरकारी सर्वजनहिताय योजनाओं में भी भेदभाव किया गया दलित मोहल्ले में 5 दिन में एक बार जलापूर्ति की गई जबकि सर्वणों के मोहल्ले में रोजाना जलापूर्ति की जाती रही। यहां तक कि राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम (महानरेगाद्) में भी दलित जाति के लोगों को काम नहीं दिया गया।
दलित आर्थिक रूप से कमजोर हो जाए इसलिए सर्वणों ने दलित मिस्त्रियों को काम पर बुलाना बंद कर दिया, दलित मजदूरों को निर्माण मजदूरी अथवा खेत मजदूरी पर नहीं लगाया गया। इन दलितों के सार्वजनिक बसों व गांव के 35 आॅटो में सफर करने पर भी पांबदी लगा दी गई। आए दिन सवर्णों द्वारा दलितों के विरुद्ध झूठी शिकायतें, परिवाद और मुकदमे दर्ज करवाए गए। दलितों पर किए गए इन अत्याचारों का सूत्रधार बड़ा महुआ का कल्याणमल जाट है। यह महाराष्ट्र के जालना जिले में कम्प्रेशर का व्यवसाय करता है। गांव में उसी का दबदबा है। उसे ‘‘श्री सरकार’’ कहा जाता है। दलितों द्वारा निकाले गए बेवाण से नाराज होकर श्रीसकरकार के नेतृत्व में गांव के ग्रामीणों ने 31 दलित रेगर परिवारों का सामाजिक रूप से बहिष्कार कर दिया। फरमान जारी कर दिया गया कि बहिष्कृत परिवारो के लोगों से गांव का कोई शख्स बात नहीं करेगा। अगर कोई इनकी मदद करेगा अथवा इनसे बात भी करेगा तो उस पर 11 हजार रुपए का आर्थिक दण्ड लगाया जाएगा तथा उसका भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा। 12 सितम्बर 2011 को पीडि़त दलितों ने इस सामाजिक बहिष्कार की शिकायत पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा को कर दी। लेकिन घटनाक्रम के चार माह बाद 24 जनवरी 2012 को मुकदमा दर्ज किया गया।

भंवर मेघवंशी (पूर्व प्रदेश संयोजक - डगर)
दलितों ने न्याय के लिए संघर्ष किया वे 10 बार जिला कलक्टर के पास, 5 बार उपखंड अधिकारी के पास, 6 बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष के पास, 3 बार पुलिस अधीक्षक के पास, 2 बार अतिरिक्त जिला कलक्टर के पास तथा एक बार राज्य के गृह सचिव और एक बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास गए। जब कहीं से भी न्याय नहीं मिला तो पीडि़त लोग दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान के कार्यकर्ताओं से मिले। इस अभियान के पूर्व प्रदेश संयोजक भंवर मेघवंशी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व यूथ कांग्रेस के भंवर जितेन्द्र सिंह को ज्ञापन भेज कर कार्यवाही की मांग की। उसके बाद जिला कलक्टर ओंकार सिंह बड़ा महुआ पहूंचे और दोनों को पक्ष को बुलाकर समझाइस की। उन्होंने दलितों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए न केवल दलितों व सवर्णों के बीच समझौता करवाया बल्कि दलित के घर चाय भी पी। हांलाकि इससे पूर्व पीडि़त दलित जब जिलाधीश ओंकार सिंह के कार्यालय में न्याय की गुहार करने गए तब जिलाधीश महोदय के जहन से संवेदनशीलता यात्रा पर गई हुई थी। खैर उपरोक्त से सरकार व प्रशासन की संवेदनशीलता साफ-साफ समझ आती है।
हाल ही में एक और दलित अत्याचार का मामला सामने आया। भीलवाड़ा के नजदीक ही बालाजी का खेड़ा गांव में एक खेत पर बनी दलित की झौंपड़ी में आग लगा दी। झौंपड़ी सहित उसमे रखा सामान जलकर खाक हो गया। झौंपड़ी में सो रहा शांतिलाल नायक (16 वर्ष) अपनी सूझबूझ से बच गया। आग लगाने वालों की मंशा झौंपड़ी में सो रहे लोगों को जिंदा जलाने की थी। लेकिन संयोग था कि उस दिन दलित परिवार का मुखिया किसी काम से बाहर गया था अतः उसका पुत्र शांतिलाल नायक ही झौंपड़ी में सो रहा था। आग लगने पर शांतिलाल लोहे के पलंग के नीचे छुप गया और बाद में वहां से निकलकर पड़ौस के खेत में भाग गया जिससे उसकी जान बच गई।
उल्लेखनीय है कि बालाजी का खेड़ा में डाक्टर गुप्ता का खेत है। खेत की भूमि को लेकर डाक्टर गुप्ता व मोती कीरए भैरू कीरए शंकर कीर तथा नारायण कीर के बीच विवाद है। डाक्टर गुप्ता की भूमि पर शांतिलाल नायक के पिता रामचंद्र नायक मुनाफे पर खेती करते है। खेत पर ही झौंपड़ी बना रखी है उसी में रहते है। कीर बंधु चाहते है कि रामचंद्र खेती करना छोड़ दे। उन्होंनें वारदात करने से पहले रामचंद्र नायक को धमकी भी दी। तब रामचंद्र ने कीर बंधुओं से मोहलत मांगी थी कि वो खेत में खड़ी फसल ले लेने के बाद अगली बार से डाक्टर गुप्ता के खेत में साझेदारी से खेती का कार्य नहीं करेगा। लेकिन कीर बंधु उसे तुंरत खेत से निकालना चाहते थे। रामचंद्र को बात ना मानते देख उन्होंने झौंपड़ी में आग लगा देने की धमकी भी दी। उसके बाद रामचंद्र नायक को खेत में स्थित झौंपड़ी में सोता समझकर कर आग लगा दी। अगर यह भी मान लिया जाए कि आग लगाने वालों की मंशा रामचंद्र को जलाने की नहीं थी फिर भी उनके द्वारा दलित व्यक्ति को भयभीत करने इस कोशिश से शांतिलाल नायक की जान जा सकती थी। फिर एक दलित की सम्पति को नष्ट करने का अधिकार कीर बंधुओं को किसने दिया ? फिलहाल पुलिस अपने अंदाज में जांच कर रही हैए जो शायद कभी पूरी भी होगी या नहीं लेकिन हां एक दलित की झौंपड़ी को जलाकर अत्याचार करने वाले लोगों को जरूर राहत मिलेगी। बहरहाल दलितों पर किसी भी प्रकार का अत्याचार होने पर आगे आकर आवाज उठाने वाले दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग की अध्यक्ष डा. शांता सिन्हा को पूरे मामले से अवगत कराते हुए कार्यवाही की मांग की है। अलबत्ता दलितों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है, फिर भी हमें गर्व से कह रहे है . . .  जय हिन्द . . . वाह रे हिन्द के लोगों

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