Monday, November 28, 2016

मेरे पास बीबी है, बच्चे है, घर है, गाड़ी है, तुम्हारे पास क्या है ? हैं

फाल्कन ट्रावेल्स मुझे अलसुबह मुम्बई पहुंचा देगी इसकी उम्मीद नहीं थी। ऐसा मालूम होता तों मैं 17 सितम्बर की शाम को उदयपुर से रवाना होता। खैर . . अब मुम्बई पहुंच गया हूं तो वैचारिक दोस्तों से मिलने की ठान ली। टाटा इंस्टीट्यूट अॅाफ सोशल सांइन्सेज मुम्बई के न्यू कैम्पस में पहुंचना था मुझे। एक साथी ने बताया था कि बांद्रा से बस पकड़कर वहां पहुंचना है लेकिन बस का नम्बर तो मैंनें उससे पूछा ही नहीं। अब ? अब क्या करूं ? बारिश भी हो रही थी। पास ही एक टैक्सी पड़ी थी, नाटे कद के ड्राइवर ने मेरी ओर देखते हुए ठोड़ी ऊपर करते हुए कहा - कहां जाओगे सर ? सर सुनकर अपन में भी सर वाली फिलिंग आ गई। मैंनें कहा - भाई मुझे चेम्बूर में देवनार बस डिपो के पास जो TISS का न्यू कैम्पस है ना, वहां जाना है। वो बोला बैठिए। मैं बोला-क्या लोगे ? उसने कहा- दूर है 350 रूपए लगेंगे। मैंनें कहा- मीटर नहीं है क्या ? उसने कार में बैठते हुए कहा - ये अच्छा है आप मीटर से चलिए। मैंनें मन में सोचा, साला कहीं बिल ज्यादा तो नहीं आ जाएगा, मीटर से चलने की कहने पर ये ड्राइवर लोग घूमा-फिरा के किलोमीटर निकालते है। कन्फ्यूज्ड था लेकिन हिम्मत की और कह दिया - मीटर से चलो। उसके चेहरे की खुशी देखकर मुझे लग रहा था कि वो कुछ ना कुछ गड़बड़ी करेगा।
अभी कार एक-दो किलोमीटर ही चली थी, मैंनें उससे पूछा-क्या नाम है आपका ? वो बोला पंकज कुमार (30 Year)।
मैंनें पूछा-कहां के हो ?
उसने कहा-बिहार का हूं।
मैंनें फिर पूछा- यहां कब आए ?
उसने कहा - 15 साल हो गए।
मैं चाह रहा था कि वो अपनी पूरी कहानी बताए लेकिन वो मेरे सवाल का जवाब देकर रूक जाता था। मैंनें सवाल करने का अंदाज बदला।
मुम्बई तो बड़ा महंगा शहर है, मंहगाई के इस दौर में घर चल जाता है ?
बस पंकज कुमार शुरू हो गया, बोला - हां सही कह रहे है, मुश्किल तो बहुत है, पर क्या करें, 15 साल से यहीं रह रहे है तो सेट हो गया है। दो बच्चों का, पत्नि का, बूढ़े मां-बाप का और दो छोटे भाईयों का देखना पड़ता है। बहुत मेहनत की तब जाकर इतना कर पा रहा हूं। 8 साल से तो यह कार चला रहा हूं। अपनी ही है। 6 लाख में नई आती हैं।
बिहार के गया स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर ही है मेरा गांव। एक बड़ा भाई है जो दिल्ली में सेट हो गया है। भाभी और बच्चे भी उसी के पास है। गांव में पूरे 10 बीघा जमीन है। ट्यूबवेल खुदवा दी मैंनें। बंटाई पर दे देता हूं। खूब अनाज हो जाता है परिवार के लिए। दो भाई है, एक तो प्राईवेट संस्थान से आईटीआई में डिप्लोमा कर रहा है, दूसरे ने एग्जाम देकर इंजीनियर में प्रवेश पाया है, उसकी फीस कम है। प्राईवेट वाले की अधिक है। उसके लिए पूरे 60,000 रूपए का बंदोबस्त करना पड़ा था मुझे। दोनों भाईयों की पढ़ाई का खर्चा में ही उठाता हूं। दोनों को अलग-अलग बाइक दिलवा रखी है। कॅालेज जाने के लिए चाहिए न सर। अभी भाईयों को सारा खर्च में देता हूं, क्या है क नहीं दो तो गांव वाले हसेंगे, कि दोनों भाई बाहर चले गए, जिन्दगी भर बोलेंगे कि भाईयों को पढ़ाया नहीं। अपने को इज्जत से रहने का। गांव में इज्जत तो बना के रखनी पड़ती है न सर। मैं तो पढ़ नहीं पाया। 10 तक ही पढ़ा। हां अभी बीबी को पढ़ा रहा हूं। वो अभी गया से ही बी.ए. कर रही है। इस साल फाइनल ईयर है उसका। मैं छोड़ के आ जाता हूं वहां। वो पढ़ना चाह रही है तो अपन काय को रोके?
अच्छा आप कब आए यहां ? और क्यों आए ? इतने महंगे शहर में घर बना लिया, इतना सब कैसे किया ? मैंनें पूछा
सर मैं 2001 में मुम्बई आ गया। मैं तो नहीं आता पर क्या है मां-बाप शादी करवाने पर तुले हुए थे। सर आप ही बताओ, उस समय मैं कुछ कमाता नहीं था तो शादी कैसे कर लेता ? शादी करना मतलब जिम्मेदारी संभालना। मेरे गांव के बहुत लड़के यहां मुम्बई में अॅाटो चलाने का काम करते थे। मैं भी घर से भाग कर यहां आ गया। बहुत तकलीफें झेली सर यहां। क्या बताउं आपको, खाने को तक नहीं मिलता था। कुछ दिनों तक एक दोस्त के साथ गाड़ी चलाई उसके बाद बस चलाने का काम मिल गया। बस चलाई, फिर एक सेठ मिल गया। बरसों तक उसकी कार चलाई। सेठ अच्छा आदमी था। खूब पैसे वाला था। पर उसके परिवार वाले हरामी थे। कुछ सालों तक तो ठीक चला लेकिन बाद में कभी 2-5 मिनिट लेट हो जाता तो परिवार वाले चिड़चिड़ करते थे। अपने को यह सब पसंद नहीं था। मैंनें तो सेठ को बोल दिया कि मैं अब काम नहीं करूंगा।
पर सर सेठ था बहुत अच्छा। उसने मुझे बचत करना सिखाया। मैंनें पूरे छः साल तक सेठ की कार चलाई थी। उसने ही मुझे 2.50 लाख रूपए में घर दिलवाया। सेठ मुझे 8000 रूपए देता था। इसमें से 5000 हर महीने की किस्त कट जाती थी। मेरा तो कोई खर्चा थाइज नइ। 2010 में मैंनें शादी की। पहीले घर बनाया, फिर शादी की। पहीले शादी कर लेता तो बीवी को कहां रखता ? सर, घर तो पहीले चाहिए न ?
जब से पंकज कुमार बोलने लगा तब से मैं - सही बात है, सही बात है कहता जा रहा था। बीच-बीच में कहानी समझने के लिए कुछ हल्के फुल्के सवाल भी करते जा रहा था।
उसकी कहानी दनादन चल रही थी.... मेरे दो बच्चे है। दोनों स्कूल जाते है। मैं दूसरों के भरोसे नहीं रहीता। मैं खूद बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता हूं और लाता भी खूद ही हूं। धंधे पे बाद में जाने का, पहीले घर का मामला देखने का। सर बच्चों की पढ़ाई पर ही ज्यादा खर्च हो रहा है। पर कमा भी तो उन्हीं के लिए रहे है न सर। बाकी क्या है, अपना तो हो गया है।
अब क्या है कि मुम्बई में सेट हो गया है अपना मामला। बीवी बच्चे सब यहीं है। कभी कभार गांव जा आते है। गांव में करे भी तो क्या करें। गांव में खर्चा तो कम है। पर कमाई नहीं है। यहां कमाई अच्छी है पर खर्चा बहुत है। पर एक बात है सर यहां कभी हाथ खाली नहीं रहता है। बच्चों को अच्छा ऐज्यूकेशन मिल रहा है। वहां क्या करेगा गांव में ? हैं ?. . . इधर 25-30 हजार रूपया महीना का कमा लेता हूं, कुछ रूपए गांव भी भेजता हूं। बचत भी करता हूं।
मैं जब मुम्बई में आया तब इतना ट्राफिक नहीं था, धीरे-धीरे बढ़ा। ट्राफिक बढ़ने से हमारा धंधा बढ़ता है सर।
अच्छा सर अन्दर ले लूं ? बात बंद करके वह बोला।
क्या न्यू कैम्पस आ गया ? मैंनें पूछा।
कार TISS के न्यू कैम्पस के बाहर आ चुकी थी। वो मुझे कैम्पस के अंदर तक छोड़कर गया।
पंकज के साथ हुई बातचीत का दौर समाप्त हो गया। जाते वक्त वो जो मुस्कुराया... उसे देखकर मुझे लगा जैसे वो कह रहा है -
मेरे पास बीबी है, बच्चे है, घर है, गाड़ी है, तुम्हारे पास क्या है ? हैं ?

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