Tuesday, July 1, 2014

पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष


  • लखन सालवी 

पंचायतीराज में महिलाओं को मिले आरक्षण के बूते दलित, आदिवासी महिलाओं को भी पंच-सरपंच के पद मिले है, बावजूद पंच-सरपंच बनी ऐसी कई महिलाएं है जो रूढि़वादी परम्पराओं एवं महिला विरोधी रीति-रिवाजों के निर्वहन को जीवन का महत्वपूर्ण कर्तव्य समझते हुए अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पा रही है। महिला विरोधी ताकतें भी उन्हें उनके अधिकार और कर्तव्य समझने में रोड़े लगाती है, ताकि पुरूष सत्ता का हस्तान्तरण न हो सके। फिर भी कुछ महिलाओं ने अनपढ़ होते हुए भी अपने अधिकार जाने है और कुर्सी की ताकत को पहचान कर गांव की सत्ता को संभाला है। 

बदलाव: अपने घर पर पति के साथ कुर्सी पर बैठी हंजा देवी
आरक्षण का लाभ चलकर हंजा भील की दहलीज तक पहुंचा। सरपंच पद के चुनाव थे, सिरोही जिले की रेवदर पंचायत समिति की बांट ग्राम पंचायत में सरपंच पद अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित था। गांव के कुछ लोगों ने हंजा के पति को समझाया कि वह अपनी पत्नि को चुनाव लड़वावे। पति ने हंजा देवी को चुनाव लड़ने के लिए कहा तो सुनकर हंजा एकबार तो झेंप गई। हंजा का कहना है कि अनपढ़ और ग्राम पंचायत के बारे में अजांन एक वंचित महिला के समक्ष इस प्रकार का प्रस्ताव आए तो उसका झेंप जाना स्वाभाविक है। 
उसने काफी सोचा और अंत में चुनाव लड़ने के लिए हामी भर ली। उसने बताया कि मैंनें सोचा कि घर व खेती का काम तो जीवन भर करना ही है, सरपंच बनने का मौका मिला रहा है तो क्यूं चूकूं। हंजा नहीं चूकी, उसने चुनाव लड़ा और 4 उम्मीदवारों को हराकर 871 मतों से चुनाव जीता। हंजा अपना नाम लिख लेती है, वह निःसंतान है। 
हंजा सरपंच बनकर बड़ी खुश हुई लेकिन अब उसे सरपंचाई करने का डर सताने लगा। वह न तो सरपंच के अधिकार जानती थी और ना ही ग्राम पंचायत की क्रियाप्रणाली को। पहली बार ग्राम पंचायत में गई तो वहां बिछी जाजम पर बैठने की बजाए उस जगह बैठी जहां लोगों ने अपने जूते खोल रखे थे। गांव की रीत के अनुसार कोई भी महिला जाजम पर पुरूषों के बराबर नहीं बैठती है और हंजा ने रीतियों की पालना शत प्रतिशत सुनिश्चित कर रखी थी। वह कोरम में लम्बा घूंघट ताने बैठी रहती, मुंह से आवाज तक नहीं निकालती, सचिव जहां कहता वहां हस्ताक्षर कर देती। सरपंच बनने के बाद भी उसकी जिन्दगी में कोई बदलाव आया नहीं सिवाए ‘‘सरपंच साब’’ सम्बोधन सुनने के।
हंजा ने बताया कि - ‘‘एक बार विकास अधिकारी ग्राम पंचायत में आए, मैं फर्श पर बैठी थी उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठने का कहा लेकिन मैं कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मुझे कुर्सी पर बैठने के बारे में सोचने मात्र से ही डर लगता था, मुझे लगता था कि कुर्सी पर बैठूंगी तो गांव के लोग कहेंगे कि सरपंच बना दी तो औकात भूल गई, कुर्सी पर बैठने लगी है।’’
हंजा की जिन्दगी में बदलाव तब आया जब वह एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित महिला पंच-सरपंच सम्मान समारोह मंे शिरकत करने गई। इस सम्मान समारोह में रेवदर पंचायत समिति क्षेत्र की कई महिला पंच-सरपंच आई हुई थी, कुछ महिलाएं तो पुरूषों की बराबरी पर मंच पर कुर्सियों में बैठी थी, जिन्हें देखकर हंजा अचंभित हो गई। वहां महिला पंच-सरपंचों ने पंच-सरपंचाई करने में आ रही चुनौतियों एवं सफलताओं की कहानियां बयां की। जिन्हें सुनकर हंजा का आत्मसम्मान भी जाग उठा। इस समारोह में संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार एवं सरपंच के अधिकार के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद हंजा देवी उस संस्था द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने लगी और अपने आपको जानकार बनाया। सम्मान समारोह के बाद ग्राम पंचायत में गई तो फर्श पर बैठने की बजाए सरपंच की कुर्सी पर जाकर बैठी। हंजा के विरोधियों ने उसके इस व्यवहार की खिलाफत कर दी, उसे ताने मारे, उसे कुर्सी से उठाकर पुनः जाजम से नीचे बैठाने की खूब कोशिशें की गई। उन्हें आदिवासी महिला का सरपंच की कुर्सी पर बैठना ठीक नहीं लग रहा था। उपसरपंच व पुरूष पंच हंजा देवी को देख लेने की धमकी देते हुए ग्राम पंचायत से चले गए। उन्होेंने गांव में जाकर हंजा देवी के कुर्सी पर बैठने की बात को तुल पकड़ा दी, हंजा के कुर्सी पर बैठने को मर्यादा के खिलाफ बता कर हंजा के खिलाफ माहौल बना दिया। यही नहीं हंजा के इस कदम से उसका पति भी उससे नाराज हो गया। लेकिन अब हंजा को किसी की परवाह नहीं थी, उसने अपने अधिकार जाने लिए थे। 
सरपंच की कुर्सी पर बैठने बाद उसे कुर्सी की ताकत का अहसास हो गया। उसने बरसो से पंचायत के सामने चल रही शराब की दुकान को हटाकर अन्य जगह स्थानान्तरित करने का प्रस्ताव पंचायत मे रखा जिसका काफी विरोध हुआ लेकिन हंजा देवी के इरादे अब मजबूत हो चुके थे उसने इसके लिए लगातार प्रयास किये और उस शराब की दुकान को पंचायत के सामने से हटाकर ही दम लिया। 
हंजा ने अपने अधिकारों का उपयोग करना तो आरम्भ कर दिया लेकिन अशिक्षित होने का दंश उसे अब तक झेलना पड़ रहा है। वह अनपढ़ है और उसका पति भी अनपढ़। पंचायत के सचिव राम लाल शर्मा ने उसके अनपढ़ होने का लाभ उठाकर 7 लाख रुपए का गबन कर दिया, आॅडिट हुई तो 7 लाख का गबन होना पाया गया। दूसरी तरफ राम लाल शर्मा का तो आॅडिट से पहले ही अन्यत्र स्थानान्तरण हो चुका था। जानकारी के अनुसार बांट ग्राम पंचायत क्षेत्र के माटासन गांव में पटवार भवन व सामुदायिक भवन का निमार्ण कार्य अधूरा पड़ा हुआ था जबकि ग्राम सचिव ने कार्यपूर्ण प्रमाण पत्र एवं उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए थे। आॅडिट हुई तो साफ तौर पर हंजा देवी को गुनहगार बना दिया गया और उस पर पंचायत के 7 लाख रूपए का गबन का आरोप लगाकर उससे वसूली करने का आदेश दे दिया गया। हंजा देवी निर्दोष थी, अब उसे अपने आप को निर्दोष साबित करना था और इसके लिए पूर्व सचिव राम लाल शर्मा को बांट ग्राम पंचायत में नियुक्त करवाना था। हंजा ने प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क किया, उन्हें पूरी बात बताई और रामलाल शर्मा को पुनः बांट ग्राम पंचायत में लगाने की मांग की। उसने पंचायत समिति की बैठक में भी राम लाल शर्मा द्वारा ग्राम विकास कार्यों में की गई गड़बड़ी के बारे में बताया। अंततः राम लाल शर्मा को पुनः बांट पंचायत में नियुक्ति दी गई। उसके बाद हंजा ने आगे होकर आॅडिट की मांग की, पुनः आॅडिट हुई और ग्राम सचिव राम लाल शर्मा दोषी पाया गया। हंजा देवी ने सचिव से 7 लाख रुपए की वसूली की और उसके बाद पुनः उसके स्थानान्तरण की मांग की और स्थानान्तरण करवा कर मानी। 
आज भी हजंा देवी को सरपंचाई करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आए दिन उसके विरोधी उसे परेशान करते रहते है, वे चाहते है कि हंजा डरकर सरपंचाई छोड़ दे। उसके विरोधियों ने कभी शराबियों को शराब पिलाकर ग्राम पंचायत भेजा तो कभी राशन कार्ड के आवेदन पत्र पंचायत से 2 रुपए में ले जाकर 100 रुपए में बेचकर हंजा के खिलाफ अराजकता का माहौल बनाया। लेकिन अब तो हंजा भी चुनौतियों का सामना करना सीख चुकी है। राशन कार्ड के लिए ग्राम पंचायत से 2-2 रुपए में आवेदन पत्र दिए जा रहे थे। कुछ युवा ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक से आवेदन पत्र ले जा रहे थे और गांव में 100-100 रुपए में बेच रहे थे। राशन कार्ड के आवेदन पत्र बाजार में 100 रुपए की कीमत में बिकने की बात गांव में फैल गई। लोग हंजा देवी पर राशन कार्ड आवेदन पत्र में घोटाला करने का आरोप लगाने लगे। हंजा देवी को इस मामले का पता चला तो वह ग्राम पंचायत में गई। वहां देखा तो ग्राम सेवक भी घबरा रही थी, हंजा देवी ने उसे हिम्मत बंधाई और ग्राम पंचायत में बैठकर राशन कार्ड के आवेदन पत्र अपने हाथों से देना शुरू कर दिया और गांव वालों को समझाया कि वे ग्राम पंचायत में आकर आवेदन पत्र ले, बाजार से किसी से ना खरीदे। वहीं शराब पीकर ग्राम पंचायत में आकर गालियां देने वाले शराबियों को पुलिस को सूचना देकर पकड़वाया। 
हंजा देवी तो महज एक उदाहरण है, सरमी बाई गरासिया, विद्या देवी सहरिया जैसी सैकड़ों आदिवासी एवं दलित महिला जनप्रतिनिधि ऐसी है जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है, दबंगों द्वारा उन्हें दबाया जा रहा है लेकिन वे अपनी सूझबूझ से ग्राम पंचायत की कुर्सी संभाल रही है। 

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