Monday, July 14, 2014

तीसरी किस्त कब दोगे सचिव साब ?

उदयपुर जिले के गोगुन्दा ब्लॅाक की रावलिया खुर्द ग्राम पंचायत की अणछी बाई मेघवाल विधवा है। वह बीपीएल श्रेणी है। उसके पक्का मकान नहीं था तो उसने ग्राम पंचायत में इंदिरा आवास योजना के तहत आवास निर्माण हेतु आवेदन किया। ग्राम पंचायत ने प्रपोजल भेजा, जिला परिषद से स्वीकृत सूची में अणछी बाई का नाम भी आ गया। उसे अपार खुशी हुई कि अब उसके भी पक्का आवास बन जाएगा।

ग्राम पंचायत के सचिव ने उसे बताया कि आवास के लिए 45000 रुपए स्वीकृत हुए है, तुम आवास का निर्माण कार्य आरम्भ करवा दो, रूपए किस्तों में आएंगे। अणछी बाई ने अपने परिचितों से रूपए उधार लेकर निर्माण कार्य आरम्भ करवा दिया। उसने शिविर के दौरान दर्ज करवाई शिकायत में बताया कि उसे पहली किस्त के रूप में 4000 रुपए मिले, दूसरी किस्त के रूप में 20000 रुपए मिले, तीसरी किस्त अभी तक नहीं आई। 

जानकारी के अनुसार वर्ष 2012-13 में अनुसूचित जाति वर्ग के परिवार को इंदिरा आवास योजना के तहत आवास निर्माण हेतु 50,000 रुपए 3 किस्तों में स्वीकृत किए जाते थे। पहली किस्त आवास की स्वीकृति के साथ ही जारी हो जाती थी जो कि 5000 रुपए थी, दूसरी किस्त 20,000 रुपए आधा निर्माण हो जाने पर जारी होती थी, पूरा निर्माण हो जाने एवं ग्राम पंचायत द्वारा यूसी, सीसी जारी हो जाने पर तीसरी किस्त के रूप में 25,000 रुपए जारी होते थे। 

किस्तों के भुगतान को लेकर उठे सवाल

अणछी देवी को ग्राम पंचायत से पहली किस्त के रूप में 4000 रुपए ही क्यूं दिए गए, जबकि किस्त की राशि 5000 रुपए थी। दूसरी किस्त की राशि 20000 रुपए थी जो अणछी देवी को मिल चुकी है। आवास का कार्य पूरा हुए डेढ़ साल से अधिक समय हो चुका है अभी तक तीसरी किस्त क्यूं जारी नहीं हुई ?


Tuesday, July 1, 2014

लखन सालवी: पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष

लखन सालवी: पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष: लखन सालवी  पंचायतीराज में महिलाओं को मिले आरक्षण के बूते दलित, आदिवासी महिलाओं को भी पंच-सरपंच के पद मिले है, बावजूद पंच-सरपंच बनी ऐस...

पद से ज्यादा कुर्सी के लिए संघर्ष


  • लखन सालवी 

पंचायतीराज में महिलाओं को मिले आरक्षण के बूते दलित, आदिवासी महिलाओं को भी पंच-सरपंच के पद मिले है, बावजूद पंच-सरपंच बनी ऐसी कई महिलाएं है जो रूढि़वादी परम्पराओं एवं महिला विरोधी रीति-रिवाजों के निर्वहन को जीवन का महत्वपूर्ण कर्तव्य समझते हुए अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पा रही है। महिला विरोधी ताकतें भी उन्हें उनके अधिकार और कर्तव्य समझने में रोड़े लगाती है, ताकि पुरूष सत्ता का हस्तान्तरण न हो सके। फिर भी कुछ महिलाओं ने अनपढ़ होते हुए भी अपने अधिकार जाने है और कुर्सी की ताकत को पहचान कर गांव की सत्ता को संभाला है। 

बदलाव: अपने घर पर पति के साथ कुर्सी पर बैठी हंजा देवी
आरक्षण का लाभ चलकर हंजा भील की दहलीज तक पहुंचा। सरपंच पद के चुनाव थे, सिरोही जिले की रेवदर पंचायत समिति की बांट ग्राम पंचायत में सरपंच पद अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित था। गांव के कुछ लोगों ने हंजा के पति को समझाया कि वह अपनी पत्नि को चुनाव लड़वावे। पति ने हंजा देवी को चुनाव लड़ने के लिए कहा तो सुनकर हंजा एकबार तो झेंप गई। हंजा का कहना है कि अनपढ़ और ग्राम पंचायत के बारे में अजांन एक वंचित महिला के समक्ष इस प्रकार का प्रस्ताव आए तो उसका झेंप जाना स्वाभाविक है। 
उसने काफी सोचा और अंत में चुनाव लड़ने के लिए हामी भर ली। उसने बताया कि मैंनें सोचा कि घर व खेती का काम तो जीवन भर करना ही है, सरपंच बनने का मौका मिला रहा है तो क्यूं चूकूं। हंजा नहीं चूकी, उसने चुनाव लड़ा और 4 उम्मीदवारों को हराकर 871 मतों से चुनाव जीता। हंजा अपना नाम लिख लेती है, वह निःसंतान है। 
हंजा सरपंच बनकर बड़ी खुश हुई लेकिन अब उसे सरपंचाई करने का डर सताने लगा। वह न तो सरपंच के अधिकार जानती थी और ना ही ग्राम पंचायत की क्रियाप्रणाली को। पहली बार ग्राम पंचायत में गई तो वहां बिछी जाजम पर बैठने की बजाए उस जगह बैठी जहां लोगों ने अपने जूते खोल रखे थे। गांव की रीत के अनुसार कोई भी महिला जाजम पर पुरूषों के बराबर नहीं बैठती है और हंजा ने रीतियों की पालना शत प्रतिशत सुनिश्चित कर रखी थी। वह कोरम में लम्बा घूंघट ताने बैठी रहती, मुंह से आवाज तक नहीं निकालती, सचिव जहां कहता वहां हस्ताक्षर कर देती। सरपंच बनने के बाद भी उसकी जिन्दगी में कोई बदलाव आया नहीं सिवाए ‘‘सरपंच साब’’ सम्बोधन सुनने के।
हंजा ने बताया कि - ‘‘एक बार विकास अधिकारी ग्राम पंचायत में आए, मैं फर्श पर बैठी थी उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठने का कहा लेकिन मैं कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मुझे कुर्सी पर बैठने के बारे में सोचने मात्र से ही डर लगता था, मुझे लगता था कि कुर्सी पर बैठूंगी तो गांव के लोग कहेंगे कि सरपंच बना दी तो औकात भूल गई, कुर्सी पर बैठने लगी है।’’
हंजा की जिन्दगी में बदलाव तब आया जब वह एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित महिला पंच-सरपंच सम्मान समारोह मंे शिरकत करने गई। इस सम्मान समारोह में रेवदर पंचायत समिति क्षेत्र की कई महिला पंच-सरपंच आई हुई थी, कुछ महिलाएं तो पुरूषों की बराबरी पर मंच पर कुर्सियों में बैठी थी, जिन्हें देखकर हंजा अचंभित हो गई। वहां महिला पंच-सरपंचों ने पंच-सरपंचाई करने में आ रही चुनौतियों एवं सफलताओं की कहानियां बयां की। जिन्हें सुनकर हंजा का आत्मसम्मान भी जाग उठा। इस समारोह में संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार एवं सरपंच के अधिकार के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद हंजा देवी उस संस्था द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने लगी और अपने आपको जानकार बनाया। सम्मान समारोह के बाद ग्राम पंचायत में गई तो फर्श पर बैठने की बजाए सरपंच की कुर्सी पर जाकर बैठी। हंजा के विरोधियों ने उसके इस व्यवहार की खिलाफत कर दी, उसे ताने मारे, उसे कुर्सी से उठाकर पुनः जाजम से नीचे बैठाने की खूब कोशिशें की गई। उन्हें आदिवासी महिला का सरपंच की कुर्सी पर बैठना ठीक नहीं लग रहा था। उपसरपंच व पुरूष पंच हंजा देवी को देख लेने की धमकी देते हुए ग्राम पंचायत से चले गए। उन्होेंने गांव में जाकर हंजा देवी के कुर्सी पर बैठने की बात को तुल पकड़ा दी, हंजा के कुर्सी पर बैठने को मर्यादा के खिलाफ बता कर हंजा के खिलाफ माहौल बना दिया। यही नहीं हंजा के इस कदम से उसका पति भी उससे नाराज हो गया। लेकिन अब हंजा को किसी की परवाह नहीं थी, उसने अपने अधिकार जाने लिए थे। 
सरपंच की कुर्सी पर बैठने बाद उसे कुर्सी की ताकत का अहसास हो गया। उसने बरसो से पंचायत के सामने चल रही शराब की दुकान को हटाकर अन्य जगह स्थानान्तरित करने का प्रस्ताव पंचायत मे रखा जिसका काफी विरोध हुआ लेकिन हंजा देवी के इरादे अब मजबूत हो चुके थे उसने इसके लिए लगातार प्रयास किये और उस शराब की दुकान को पंचायत के सामने से हटाकर ही दम लिया। 
हंजा ने अपने अधिकारों का उपयोग करना तो आरम्भ कर दिया लेकिन अशिक्षित होने का दंश उसे अब तक झेलना पड़ रहा है। वह अनपढ़ है और उसका पति भी अनपढ़। पंचायत के सचिव राम लाल शर्मा ने उसके अनपढ़ होने का लाभ उठाकर 7 लाख रुपए का गबन कर दिया, आॅडिट हुई तो 7 लाख का गबन होना पाया गया। दूसरी तरफ राम लाल शर्मा का तो आॅडिट से पहले ही अन्यत्र स्थानान्तरण हो चुका था। जानकारी के अनुसार बांट ग्राम पंचायत क्षेत्र के माटासन गांव में पटवार भवन व सामुदायिक भवन का निमार्ण कार्य अधूरा पड़ा हुआ था जबकि ग्राम सचिव ने कार्यपूर्ण प्रमाण पत्र एवं उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए थे। आॅडिट हुई तो साफ तौर पर हंजा देवी को गुनहगार बना दिया गया और उस पर पंचायत के 7 लाख रूपए का गबन का आरोप लगाकर उससे वसूली करने का आदेश दे दिया गया। हंजा देवी निर्दोष थी, अब उसे अपने आप को निर्दोष साबित करना था और इसके लिए पूर्व सचिव राम लाल शर्मा को बांट ग्राम पंचायत में नियुक्त करवाना था। हंजा ने प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क किया, उन्हें पूरी बात बताई और रामलाल शर्मा को पुनः बांट ग्राम पंचायत में लगाने की मांग की। उसने पंचायत समिति की बैठक में भी राम लाल शर्मा द्वारा ग्राम विकास कार्यों में की गई गड़बड़ी के बारे में बताया। अंततः राम लाल शर्मा को पुनः बांट पंचायत में नियुक्ति दी गई। उसके बाद हंजा ने आगे होकर आॅडिट की मांग की, पुनः आॅडिट हुई और ग्राम सचिव राम लाल शर्मा दोषी पाया गया। हंजा देवी ने सचिव से 7 लाख रुपए की वसूली की और उसके बाद पुनः उसके स्थानान्तरण की मांग की और स्थानान्तरण करवा कर मानी। 
आज भी हजंा देवी को सरपंचाई करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आए दिन उसके विरोधी उसे परेशान करते रहते है, वे चाहते है कि हंजा डरकर सरपंचाई छोड़ दे। उसके विरोधियों ने कभी शराबियों को शराब पिलाकर ग्राम पंचायत भेजा तो कभी राशन कार्ड के आवेदन पत्र पंचायत से 2 रुपए में ले जाकर 100 रुपए में बेचकर हंजा के खिलाफ अराजकता का माहौल बनाया। लेकिन अब तो हंजा भी चुनौतियों का सामना करना सीख चुकी है। राशन कार्ड के लिए ग्राम पंचायत से 2-2 रुपए में आवेदन पत्र दिए जा रहे थे। कुछ युवा ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक से आवेदन पत्र ले जा रहे थे और गांव में 100-100 रुपए में बेच रहे थे। राशन कार्ड के आवेदन पत्र बाजार में 100 रुपए की कीमत में बिकने की बात गांव में फैल गई। लोग हंजा देवी पर राशन कार्ड आवेदन पत्र में घोटाला करने का आरोप लगाने लगे। हंजा देवी को इस मामले का पता चला तो वह ग्राम पंचायत में गई। वहां देखा तो ग्राम सेवक भी घबरा रही थी, हंजा देवी ने उसे हिम्मत बंधाई और ग्राम पंचायत में बैठकर राशन कार्ड के आवेदन पत्र अपने हाथों से देना शुरू कर दिया और गांव वालों को समझाया कि वे ग्राम पंचायत में आकर आवेदन पत्र ले, बाजार से किसी से ना खरीदे। वहीं शराब पीकर ग्राम पंचायत में आकर गालियां देने वाले शराबियों को पुलिस को सूचना देकर पकड़वाया। 
हंजा देवी तो महज एक उदाहरण है, सरमी बाई गरासिया, विद्या देवी सहरिया जैसी सैकड़ों आदिवासी एवं दलित महिला जनप्रतिनिधि ऐसी है जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है, दबंगों द्वारा उन्हें दबाया जा रहा है लेकिन वे अपनी सूझबूझ से ग्राम पंचायत की कुर्सी संभाल रही है। 

Sunday, June 29, 2014

श्रमिक सम्मेलन व जनसुनवाई सम्पन्न

गोगुन्दा (उदयपुर)- गोगुन्दा में श्रमिक सम्मेलन व जनसुनवाई कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। आजीविका ब्यूरो, श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र, बजरंग, जरगा, सायरा व लक्ष्मीबाई निर्माण श्रमिक संगठन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में उपखण्ड क्षेत्र के करीब 3000 महिला-पुरूष श्रमिकों ने भाग लिया।
दोपहर 12 बजे शुरू हुए जनसुनवाई कार्यक्रम में विधायक प्रताप गमेती, श्रम आयुक्त दीपक उप्रेति, जिला पुलिस उपाधिक्षक (गिर्वा) दिव्या मित्तल, उपखण्ड अधिकारी राजेन्द्र अग्रवाल, थानाप्रभारी हनुवंत सिंह आाजीविका ब्यूरो के सचिव कृष्णावतार शर्मा, अरावली निर्माण सुरक्षा संघ के , लीड सेल के नाना लाल मीणा एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में आए श्रमिकों ने अपनी समस्याओं से पैनल में मौजूद जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को अवगत कराया। इस दौरान प्रवासी श्रमिकों के साथ कार्यस्थल पर होने वाले अत्याचार, काम का भुगतान नहीं होने, काम के निर्धारित समय से अधिक कार्य करवाकर शोषण करने सम्बंधित कई मामले सामने आए। वहीं महानरेगा श्रमिकों ने समय पर भुगतान नहीं होने के मामलों से प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया।
जनसुनवाई में सामने आया कि क्षेत्र से अन्य राज्यों में मजदूरी पर जाने वाले श्रमिकों के साथ कार्यस्थल पर दुर्घटना हो जाने पर नियोक्ताओं द्वारा उनको मुआवजा देना तो दूर, ईलाज भी नहीं करवाया जाता है। जनसुनवाई से निकलकर आया कि नियोक्ता अथवा ठेकेदार क्षेत्र के नाबालिगों को भी मजदूरी के लिए ले जाते हैै, कई ऐसे नौजवान है जिनके साथ कार्यस्थल पर दुघर्टनाएं हुई, जिनमें उन्हें हाथ-पैर गंवाने पड़े और वे अब कभी काम नहीं कर पायेंगे।
केस – 1
अब कभी काम नहीं कर सकेगा भूरी लाल… 
भट्टी में झुलसकर निःषक्त हुआ भूरी लाल
भट्टी में झुलसकर निःषक्त हुआ भूरी लाल
गोगुन्दा उपखण्ड के नान्देषमा गांव के 18 वर्षीय भूरी लाल ने मजदूरी के लिए प्रवास के दौरान अपने साथ घटी दुर्घटना की दास्तां बयां की तो सुनने वाले हरेक की आंखे छलछला आई। भूरी लाल को उसके ही गांव का भैरू लाल लौहार गुजरात के वापी स्थित अपनी नमकीन बनाने की फैक्ट्री में नमकीन पैकिंग कार्य के लिए ले गया। भूरी लाल ने वहां 6-7 महीने तक कार्य किया, वह भैरू लाल लौहार से मेहनताना मांगता तो लौहार मेहनताने की राशि उसके पिता को दे देने की बात कह देता। उसने बताया कि एक दिन वह फैैक्ट्री में काम कर रहा था, आग की भट्टी से गर्म तेल की कड़ाई उतारते समय फिसल जाने से गर्म तेल उसके शरीर पर गिर गया, गर्म तेल से बचने के लिए पीछे हटा तो आग की भट्टी में जा गिरा जिससे उसके हाथ, पैर, सिर व सीना बूरी तरह से जल गया। उस दिन भैरू लाल लौहार भी गांव आया हुआ था तब अन्य साथियों ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया। दूसरे दिन भैरू लाल लौहार वहां पहुंच गया। करीब एक माह तक सरकारी अस्पताल में भूरी लाल का ईलाज चला, वह पूरा ठीक भी नहीं हुआ था कि भैरू लाल ने उसे बस में बैठाकर गांव भेज दिया।
भूरी लाल ने बताया कि भैरू लाल लौहार ने मुआवजा देना तो दूर, न तो उसके मेहनताने का भुगतान किया और न ही ईलाज का खर्च उठाया। भूरी लाल के 3 भाई व 3 छोटी बहिनें है, पिताजी बकरियां चराते है और केवल 2 बीघा जमीन ही है जिसमें से केवल एक फसल हो पाती है। स्थिति यह है कि गर्म तेल व आग से बूरी तरह से झुलस जाने के कारण भूरी लाल के बाए हाथ की दो, दाएं हाथ की एक अंगुली व दाएं पैर का अंगुठा काट दिया गया। उसके हाथ की चमड़ी झुलस जाने के कारण हथेलिया मूड़ गई, जिनसे अब वह कुछ भी काम नहीं कर सकता। भूरी लाल विकलांग हो चुका है, उसने विकलांग पेंशन के लिए दो बार आवेदन किया लेकिन अभी तक पेंषन जारी नहीं हुई है।
नाबालिग मजदूर धूलाराम अपने पिता के साथ
नाबालिग मजदूर धूलाराम अपने पिता के साथ
केस-2
धूलाराम ने भी गवां दिया हाथ…
गोगुन्दा उपखण्ड की ऊखलियात ग्राम पंचायत के रणेजी गांव के विजारपरवा गांव के 13 वर्षीय धूलाराम पिता वालाराम गरासिया को करीब 4 वर्ष पूर्व जसवंतगढ़ का रोशन लाल (ठेकेदार) होटल में रसोई कार्य के लिए लेकर गया। वहां करंट लगने से वह बूरी तरह घायल हो गया, जिससे उसके दोनों पैरों के घूटने, सीना व बायां हाथ बूरी तरह से झुलस गया। बाद में ईलाज के दौरान उसका हाथ काट दिया गया।
धूलाराम के पिता वालाराम ने बताया कि रोशन लाल ने न तो मुआवजा दिया, न ही ईलाज का खर्च उठाया और मेहनताने का भुगतान भी नहीं किया।
ऐसे भी कई मामले सामने आए जिनमें प्रवास पर गए श्रमिकों को नियोक्ता व ठेकेदार द्वारा भुगतान नहीं किया। श्रमिकों को गुजरात ले जाकर डरा-धमका कर काम करवाया गया, बाद में श्रमिक किसी प्रकार भाग कर वापस गांव आए। वहीं गलतो का गुढ़ा निवासी सुमेर सिंह, पालीदाणा गांव के देवेन्द्र पालीवाल सहित कई स्थानीय ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों को गुजरात राज्य के विभिन्न स्थानों पर ले जाकर काम करवाकर काम का भुगतान नहीं करने की षिकायतें आई।
पूर्व प्रवासी मजदूर रूप लाल अपनी प्रवास की कहानी बताते हुए
पूर्व प्रवासी मजदूर रूप लाल अपनी प्रवास की कहानी बताते हुए
46 मजदूरों के एक लाख रूपए अटके है ठेकेदार के पास
दादिया ग्राम पंचायत के ईटों का खेत गांव के रूप लाल गरासिया ने बताया कि ठेकेदार सुमेर सिंह उसके सहित क्षेत्र के 46 युवाओं को 2009-10 में काम के लिए राजकोट ले गया। उसने राजकोट की अलग-अलग होटलों में इन मजदूरों को काम पर लगाया और होटल मालिकों से रूपए ले लिए। मजदूर कभी रूपए मांगते तो सुमेर सिंह उनके साथ मारपीट करता। सभी युवा मजदूर बाद में एक-एक कर वहां से भाग आए। श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र ने मजदूरों एवं ठेकेदार सुमेर सिंह के बीच सुलह करवाकर करीब 60000 रुपए का भुगतान तो करवा दिया लेकिन अभी तक करीब एक लाख का भुगतान अटका हुआ है।
भुगतान से सम्बंधीत करीब 13 मामले सामने आए जिनमें प्रवासी मजदूरों को नियोक्ता व ठेकेदारों ने काम करवाने के बाद काम का भुगतान नहीं किया।
किसने क्या कहा
ssjआजीविका ब्यूरो के सचिव कृष्णावतार शर्मा ने जनसुनवाई कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए पैनल में बैठे प्रशासनिक अधिकारियों से आग्रह किया कि वे मजदूरों के मामलों को संवेदनशीलता से लेकर उनका निपटारा करवाने की पहल करें। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का जीवन मजदूरी पर निर्भर है, अगर उन्हें मजदूरी का भुगतान नहीं मिलेगा तो परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आते रहते है जिनमें ठेकेदारों या नियोक्ता द्वारा मजदूरों का भुगतान नहीं किया जाता है, प्रशासन ऐसे विवादों का निपटारा करने के लिए कोई व्यवस्था स्थापित करें। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से आग्रह किया कि कई मामलों में ठेकेदार व श्रमिक स्थानीय होते है, ऐसे मामलों में दोनों पक्षों को थाने में बुलाकर मामले का निस्तारण करवावें।
श्रम आयुक्त दीपक उप्रेति ने बताया कि मजदूर कहां, किसके यहां, किस दर पर और कितने दिन तक काम कर रहे है, उसके सबूत अवश्य रखें। जिस राज्य में मजदूरी करते है, वहां अपने अधिकारों का हनन होने की स्थिति में उसी राज्य के श्रम विभाग में शिकायत करें। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद श्रमिकों से आव्हान् किया कि वे नियोक्ताओं व ठेकेदारों के आश्वासनों पर विश्वास न कर मजदूरी के लिए लिखित अनुबंध करें।
पुलिस उपाधिक्षक (गिर्वा) दिव्या मित्तल ने बताया कि जो लोग मजदूरी के लिए अन्य राज्यों में जाते है लेकिन कई समय तक उनकी खैर खबर नहीं आती है, ऐसे लोगों की गुमसुदगी की रिपोर्ट थाने में अवश्य दर्ज करवावें। उन्होंने कहा कि जिन मजदूरों का भुगतान नहीं किया जाता है वे मजदूर थाने में रिपोर्ट दर्ज करावें। उन्होंने आश्वासन दिया कि रिपोर्ट दर्ज करवाने पर अवश्य कार्यवाही की जाएगी।
रावलिया खुर्द के मजदूरों द्वारा महानरेगा भुगतान नहीं होने की शिकायत करने पर उपखंड अधिकारी राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि पोस्ट आॅफिस से भुगतान में देरी हो रही है, पोस्ट मास्टर से बात कर ली गई है, सोमवार से भुगतान शुरू कर दिया जाएगा।
विधायक प्रताप गमेती ने कहा कि साईकिल वितरण, चैक वितरण की ओर अधिक ध्यान रखने की बजाए मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जब मैं सरपंच था तब भी बच्चों को काम पर ले जाने वाले ठेकेदारों की खिलाफत की और अब भी करता हूं लेकिन परिजनों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजे ना कि काम पर दूसरे राज्यों में। उन्होंने कहा कि वे मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है एवं उनके हितों की पैरवी विधानसभा में करेंगे।
प्रवासी रसोई कार्य श्रमिकों ने दिया उपखण्ड अधिकारी को ज्ञापन
कार्यक्रम के दौरान प्रवासी रसोई श्रमिकों ने अपनी समस्याएं बताते हुए उपखण्ड अधिकारी को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में मांग की गई कि ठेकेदारों को न्यूनतम मजदूरी दर से कम भुगतान नहीं करने, ओवरटाइम कार्य का भुगतान करने एवं श्रमिकों द्वारा किए गए कार्य का भुगतान समय पर करने हेतु पाबंद किया जाए।
उठी सार्वजनिक शौचालय बनवाने की मांग
कार्यक्रम के दौरान विभिन्न श्रमिक संगठनों से जुड़ी महिला श्रमिकों ने प्रशासन पर नाराजगी व्यक्त करते हुए विधायक प्रताप लाल गमेती को बताया कि उपखण्ड मुख्यालय होने के बावजूद गोगुन्दा में सार्वजनिक शौचालय नहीं है। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक शौचालय निर्माण की मांग को लेकर पूर्व में प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन दिए गए लेकिन शौचालय निर्माण नहीं करवाया गया।
जानकारी के अनुसार उपखण्ड मुख्यालय होने के कारण उपखण्ड क्षेत्र के विभिन्न गांवों से हजारों की संख्या में महिला-पुरूष गोगुन्दा आते है। कई बार आने-जाने के लिए बसस्टेण्ड पर घंटों खड़े रहना पड़ता है। सार्वजनिक शौचालय नहीं होने से यात्रियों सहित आमजन को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जनसुनवाई में श्रमिक संगठनों की ओर से सार्वजनिक शौचालय की मांग को लेकर विधायक प्रताप लाल गमेती को ज्ञापन सौंपा गया। वहीं विधायक ने सार्वजनिक शौचालय बनवाने का आश्वासन दिया।
कम पड़े पाण्डाल
कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी अधिक रही। 2500 श्रमिकों के भाग लेने की संभावना के चलते 2500 लोगों के लिए ही बैठने की व्यवस्था की गई थी लेकिन अपेक्षा से अधिक लोगों के आ जाने से पाण्डाल छोटे पड़ गए। बाद में तुरता फुरती में दरियां मंगवा कर पेड़ के नीचे बैठने की व्यवस्था की गई।

Wednesday, March 19, 2014

नानी का प्यार अमर रहे

केवलूपोश कमरे के एक कोने में लकड़ी के छोटे दरवाजे वाली कोठी (भण्डार गृह), दूसरे कोने में मिट्टी का चुल्हा, तीसरे कोने में दलिया बनाने की घट्टी और चैथे कोने की दिवार में बनी ताक (आलमारी) में नानी की लोहे की पेटी और उसी दिवार पर नानी-नानी की तस्वीर व साथ में उसकी बहिन की बेटी व दामाद की एक तस्वीर टंगी हुई है। उन दो तस्वीरों के पास एक हाथ पंखा लटका हुआ है। नानी के घर के एक कमरे की यही दशा है। मैं 20 साल पहले से ये दशा देखता आ रहा हूं, कुछ भी नहीं बदला है नानी के इस कमरे में, ना कमरे की सूरत बदली, ना नानी का व्यवहार ना हमारे प्रति उसका प्यार।
हम 5 भाई बहिन है। सबसे बड़ा मैं, मेरे से छोटी एक बहिन, उससे छोटी एक बहिन, उससे छोटी एक और बहिन और उससे छोटा एक भाई। हम सभी नानी के प्यारे रहे है। मेरे और मुझ से दो छोटी बहिनों के संतानें है। अब नानी हमसे ज्यादा हमारी संतानों को प्यार करने लगी हैं। वह उन्हें बहुत दुलारती है, उनका खूब ख्याल करती है। 
इस बार होली पर मेरी सभी बहिनें ससुराल से आई हुई थी। होली के दूसरे दिन बोली की नानी के घर जाना है। मैं भी कई बरसों से गया नहीं था तो जाने का मन बना लिया। अपनी कार में 4 बड़ी सवारियों के साथ 5 छोटी सवारियों को ठूंसा, भला हो हुंडई कम्पनी वाले का जिसने सेंट्रो जैसी मजबूत कार बनाई। हम नानी के पास पहुंचे। सभी बच्चे नानी के इर्दगिर्द बैठ गए, नानी बीच में। बातों का सिलसिला आरम्भ हो गया। मैं फिजीकल रूप से तो वहीं था लेकिन मन मेरा जीवन संगिनी में अटका हुआ था। आंखों के सामने उसका चेहरा बार-बार आ रहा था, कार में जगह नहीं थी इस कारण वह नहीं आ पाई। मैंनें घर से रवाना होते समय उसकी मनःस्थिति भांप ली थी लेकिन क्या कर सकता था ? कोई उपाय नहीं था। मैं नानी के घर की पोळ में बैठा हुआ था। अचानक उठा और उस कमरे में गया जिसमें बचपन में मैंनें कई रातें गुजारी थी। 
कमरे में घुसते ही सामने की दिवार में नजर पड़ी। कुछ नहीं बदला था वहां, 20 साल में कुछ भी नवाचार नहीं हुआ। दिवार पर दो तस्वीरों के पास एक हाथ पंखा लटक रहा था। दिवार में बनी हुई एक परमानेंट अलमारी में नानी की लोहे की पेटी रखी हुई थी
वह आज भी मुझे ‘‘भाया’’ कहकर बुलाती है और 20 साल पहले भी ‘‘भाया’’ कहकर बुलाती थी। नानी की उम्र करीब 80 वर्ष है। उसने अपने में जीवन बहुत मेहनत की। नाना जी स्व. श्री उदयराम जी देवनारायण भगवान के मंदिर के पुजारी थे। गांव वाले नाना जी को ‘‘भोपाजी’’ कहते थे और नानी जी को ‘‘भोपी मां’’, आज भी नानी देवरिया में ‘‘भोपी मां’’ के नाम से ही जानी जाती है।  
ननिहाल देवरिया गांव, हमारे गांव से 5 किलोमीटर दूर ही है और हमारे खेतों वाले रास्ते से जाया जाए तो महज 3 किलोमीटर ही पड़ता है। बचपन में मैं महिने में एक-दो बार नानी के पास चला जाया करता था, नानी से 10-20 रुपए जो मिलते थे। हालांकि कमी किसी बात की हमारे घर में भी नहीं थी, पिताजी ने जीवन में कभी घी नहीं खाया लेकिन हमारे लिए दुधारू गाय अथवा भैंसें हमेशा पाली। दुध, घी, छाछ, राबड़ी की कभी कमी नहीं आने दी। बावजूद हमें पिताजी से बहुत डर लगता था, किसी काम में कुछ गलती हो जाने पर पिताजी बहुत डांटते थे, वहीं मम्मी से तो ओर अधिक डर रहता था। गलती करने पर मम्मी डांटती नहीं, मारती थी वो भी लकड़ी के डण्डे से (गेती, कुल्हाड़ी या फावड़े के बेसे से)। तो भय के मारे मम्मी-पाप्पा का हमारे प्रति सारा प्रेम गौण हो गया। बस एक मात्र नानी ही थी, जिस पर हमारा सारा जोर चलता था। हमारे सारे नाटक नानी को देखने-सुनने पड़ते, हमारी सारी मांगे नानी को ही पूरी करनी पड़ती थी, वैसे मांगे भी बड़ी से बड़ी 10-20 रुपए तक ही सीमित थी। 
आज नानी के कमरे को देखते-देखते मैं बचपन में चला गया, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे 10 साल का लखन नानी के घर आया है। कमरे के कोने में बनी हुई कोठी आज भी वैसी की वैसी है, जिसमें नानी महीने भर की अपनी यात्रा के दौरान जुटाई गई सामग्री को रखती है। यथा कहीं से मिठाई आई तो उसे कोठी में रखेगी, कहीं से फल मिले तो उन्हें भी कोठी में रखेगी, कहीं मंदिर से प्रसाद मिला तो उसे भी कोठी में रखेगी और फिर उस दिन, जिस दिन वह हमारे घर आती है तो कोठी में से सारी सामग्री निकाल कर ले आती है।
आज नानी ने सबको रूकने के लिए कहा लेकिन बहिनों ने व्रत किए थे और वे वापस कोशीथल जाना चाहती थी, मैं चाह रहा था कि आज की रात नानी के घर रूका जाए लेकिन मनमसोस कर वापस रवाना होना पड़ा। 
उससे पहले नानी ने अपने सब नवासे-नवासियों को खर्च के लिए 10-10 रुपए दिए। उसके पास इतने खुल्ले रुपए नहीं थे। मैं वहीं था इसलिए मुझसे मांग लिए, वरना मोहल्ले में जाती, खुल्ले लेकर आती और सब को बांटती।
नानी से रुपए पाकर बच्चे बड़े खुश हुए . . . नानी का प्यार अमर रहे 

Sunday, February 16, 2014

ताणवाण में प्रतिभा सम्मान समारोह सम्पन्न


  • लखन सालवी 

अब ग्रामीण क्षेत्र के दलित समुदायों में भी शिक्षा के प्रति चेतना आई है, दलित बुनकर समुदाय के लोग अपने समुदाय के प्रतिभावान छात्र-छात्राओं का सम्मान कर उन्हें प्रोत्साहित करने लगे है जो शिक्षा के प्रति उनकी जागरूकता को प्रकट कर रहा है। 
हाल ही में 16 फरवरी को राजसमन्द जिले के आमेट कस्बे के निकट ताणवाण गांव में स्थित देवनारायण मार्बल परिसर में प्रतिभावान छात्र-छात्राओं का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जिसमें माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में प्रदेश स्तर पर प्रथम स्थान, जिला स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले तथा नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए परीक्षा उत्र्तीण करने वाले छात्र-छात्राओं को प्रसस्ति पत्र व प्रोत्साहन राशि देकर सम्मानित किया गया। 
इस कार्यक्रम की आयोजन समिति के सदस्य प्यार चन्द सालवी ने बताया कि यह द्वितीय सम्मान समारोह है, इससे पूर्व गत वर्ष प्रथम समारोह का आयोजन किया गया था। राजसमन्द जिले की आमेट व देवगढ़ तहसील क्षेत्र के समुदाय शिक्षित युवाओं व जागरूक दानदाताओं ने इस कार्यक्रम को आयोजित करने का बीड़ा उठाया है। 
कुंभलगढ़ के ब्लाॅक शिक्षा अधिकारी ने कहा कि बड़ी खुशी की बात है कि हम समाज की प्रतिभाओं को तरासने के लिए तत्पर है। उन्होंने समारोह को सम्बोधित करते हुए बेटे-बेटियों को समानता से शिक्षा देने पर जोर दिया, साथ ही उन्होंने कहा कि प्रतिभावान छात्र-छात्रों के बायोडेटा मंगवाकर उनके मार्गदर्शन के लिए केरियर काउंसलिंग भी करवानी चाहिए ताकि उचित समय पर प्रतिभाओं को उचित निर्णय लेने में मदद मिल सके। 
समारोह को सम्बोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा कि बुनकर समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। इस समुदाय में जन्में कई लोगों ने राष्ट्रहित में बलिदान किए, धार्मिक प्रवृति के कारण ख्याति प्राप्त की। उन्होंने बताया कि इतिहासकारों ने भी बुनकर समुदाय पर कुठाराघात किया गया है, मेहरानगढ़ के किले के लिए राजाराम मेघवाल ने बलिदान दिया लेकिन इतिहास ने कहीं भी उस बलिदान का जिक्र नहीं किया, पिछोला की झील के मन्ना जी मेघरिख कुर्बान हुए जिसे भी इतिहास ने ओझल कर दिया, बीकानेर के करणी मंदिर के बारे में तो खूब गुणगान किए जाते है लेकिन उस मंदिर के लिए कुबार्न हुए दरशरथ मेघवाल के बारे में उल्लेख नहीं किया जाता है। उन्होंने कहा कि चित्तौडगढ़ के उदय सिंह को बचाने के लिए पन्नाधाय के बलिदान की कहानियां तो खूब लिखी जाती है, बार-बार अहसास करवाया जाता है लेकिन उदय सिंह को कड़े पहरे के बीच झूठे पत्तल-दोने की टोकरी में छिपाकर ले जाने वाले ‘किरत बारी’ के समर्पण व निडरता की कहानी को दो पंक्तियों में समाप्त कर दिया जाता है अगर किरत बारी ने निडरता नहीं दिखाई होती, अगर उसने त्याग, समर्पण की भावना को छोड़कर बनवीर के साथ हाथ मिला लिया होता तो क्या होता . . न उदय सिंह बचता और न ही महाराणा प्रताप होते। मेघवंशी ने कहा कि दलितों के गौरवशाली इतिहास को आज ही नहीं युगों से दबाया जाता रहा है लेकिन अब हमें अपना इतिहास हमें खुद ही लिखना होगा। 
उन्होंने डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों से अवगत कराते हुए कहा कि वर्तमान में दलितों को पुनः हासिए पर धकलने के प्रयास किए जा रहे है, हमें उन्हें समझकर दलित उत्थान विरोधी ताकतों को रोकना होगा। उन्होंने कहा कि दलित विरोधी ताकतें ‘‘आरक्षण’’ को घृणित बताने में लगी हुई है तथा अयोग्य बताकर दलितों को पदौन्नति में आरक्षण से वंचित करने की साजिशें की जा रही है। अब समय आ गया है दलितों को संगठित होकर आवाज उठाने का। 
समारोह के दौरान आईडाणा के बाबू लाल सालवी ने घोषणा की कि समाज के जो भी छात्र-छात्राएं माध्यमिक शिक्षा में राज्य स्तर पर मेरिट में स्थान में प्राप्त करेंगे उन्हें 21000 रुपए तथा जिला स्तर पर मेरिट में स्थान प्राप्त करेंगे उन्हें 11000 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। 
सम्मान समारोह की अध्यक्षता गादरोला (जसवंतपुरा) के गोमाराम सालवी ने की, वहीं मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी थे। समारोह को सामाजिक कार्यकर्ता बाबू लाल सालवी, सालवी समाज मियाला के अध्यक्ष जेठाराम कतिरिया, व्याख्याता गणेश भाटी, जिला परिषद सदस्य बंशी लाल सालवी, ब्लाॅक शिक्षा अधिकारी (कुंभलगढ़) मोहन लाल सालवी, सालवी समाज राजसमन्द के जिलाध्यक्ष देवी लाल सालवी, रूपाराम जलवाणिया इत्यादि ने सम्बोधित किया। समारोह का संचालन कवि खेमराज सालवी ने किया। 

Thursday, February 13, 2014

‘‘आप’’ को समर्पित राजस्थानी गानें


  • लखन सालवी
मेरे पड़ौस में शादी है, वैसे कई घरों में शादियां है, शादियों में डीजे का प्रचलन बढ़ गया है। चारों तरफ बड़े-बड़े लाउडस्पीकर कर्कश ध्वनि फैला रहे है। सायं 7 बजे से एक लेख लिखने का प्रयास कर रहा था लेकिन लाउडस्पीकर पर बज रहे राजस्थानी गानों के कारण लेख का एक पैरा पूरा नहीं कर पाया। जैसे ही लिखने लगता या तो गानों के रिदम मेरा मन खींच लेते या गानों की धुन मन मोह लेती। कुछ गानों ने तो बचपन की यादों को तरो ताजा कर दिया . . और मैं बचपन की यादों में खो गया . . अब गानें बजना बंद हो गए है . . . मैं भी यादों से बाहर बाहर निकल गया हूं। 

एक बात तो है, राजस्थानी, ग्रामीण परिवेश के गानों ने शहरी लोगों का भी मन मोह लिया है तभी तो हर्ष मना रहे है लोगों के घरों में बज रहे लाउडस्पीकरों में बार-बार राजस्थानी गानें सुनाई दे रहे है। 
आपा चकरी में झुलांगा, आपा डोलर में हिंदाला, लारे चालेनी . . . धापुड़ी ऐ
अर...र.र.रर.र.र. रे कोनी चालू रे बजरंगा, थारा दादा की मैं साली
इस गाने ने देसाई, लंगर बीड़ी की याद ताजा कर दी। गांवों में मेलों का बड़ा महत्व रहा है, मेलों में गांवों की संस्कृति की झलक मिलती थी, दोस्त मिलते थे, खूब जलेबियां और गुलाब जामुन खाए जाते, डोलर में हिंदे खाते, अपनी-अपनी गोपियों को पाटले, बिंदियां, पाउडर, चूडि़यां और न जाने क्या-क्या दिलाते थे। उन्हीं मेलों में देसाई बीड़ी, लंगर बीड़ी सहित कई बीड़ी कम्पनियां सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित करवाती थी, उन कार्यक्रमों में राजस्थानी गानों पर कलाकर नृत्य प्रस्तुत करते थे। उसी समय का मशहूर गाना है ये - आपा चकरी में झुलांगा, आपा डोलर में हिंदाला, लारे चालेनी . . . धापूड़ी ऐ 


आजकल एक अन्य गाने ने उत्सवों के मौसम को रंगीन बना रखा है. . . 
अमलीड़ो . . अमलीड़ो . . . अमलीड़ो घोड़ो
भगता ने लागो भालो, यो बाबो भोलो भालो, 
यो नाग पिलसवा वालो यो बाबो भालो अमलीड़ो
गांजा की चिलमा पीवे, यो भांग धतूरा खावे, यो बाबो भोलो अमलीड़ो
इस गाने ने काफी प्रसिद्धी पाई है, इस गाने के बोल आसानी से बोले जा सकते है ओर इसका रिदम ऐसा है कि हर कोई थिरकने पर मजबूर हो जाता है। 

ढ़ोल बाजे रे, डीजे बाजे, या तो छम्मक, छम्मक डीजे उपर गौरी नाचे
अरे बासा कांई देखरिया हो ?
चालबा दे चालबा दे, झणकार उडबा दे
या तो छम्मक, छम्मक डीजे पर गौरी नाचे
इस गाने ने कान पका दिए है। भई अब तो बस करो . . . मुझे लगता है कोई नहीं मानने वाला है . . सब इसके दिवाने हो रहे है।  

एक गाना तो बहूत ही शर्मिन्दा कर रहा है, मुझे लगता है कि परिजनों के सामने इस गाने को सुनना मेरे लिए मुमकिन नहीं है लेकिन शहरी युवा पीढ़ी (मेल-फिमेल) इस गाने पर जमकर एंजोय कर रहे है। गाने के बोल ठीक है लेकिन उच्चारण बेहूदा है . . .
गायक गा रहा है - ब्याण म्हारी, ब्याण म्हारी, ब्याण म्हारी
लेकिन उच्चारण में लगता है - गणमरी, गणमरी, गणमरी (यह शब्द एक गाली है।)

एक अजीब-सा गाना यह भी है . . . पर मस्त है, भीलवाड़ा जिले की बनेड़ा तहसील के निवासी पूसालाल माली ने इसे अच्छे रिदम पर गाया है - 
आज तो पीणो वे वे जितो पिलो, काले पीओला म्हारों डोपो
मूच्छया पर फेर लो जी, गुल्ली-डांडो मूच्छियां पर फेर लो जी 

‘‘बोल शंकरिया’’ भी अपडेट हो गया है - 
मंगरा का रे, मंगरा का रे, मंगरा का खेता में बकरियां बोली रे-बोल शंकरिया

डीजे पर राजस्थानी रिमेक्स गानों की भी भरमार है। डीजे औरतों की परेशानी का सबब बन गया है, जहां शहरी युवक-युवतियां डीजे पर राजस्थानी रिमिक्स गानों पर जमकर उछल-कूद रहे है वहीं औरतें सही से नाच नहीं पा रही है। राजस्थानी औरतें पहले धुन पकड़ती है फिर मूड बनाकर रिदम पर पैर उठाने लगती है फिर रंग में आकर पैरों को धीरे-धीरे उठाते हुए हाथों को लहराते हुए नाचने लगती है। डीजे पर बज रहे रिमिक्स गानें उनकी समझ से परे है। वह डीजे वालों पर चिल्लाती है, कहती है एक गाने को तो पूरा बजने दे लेकिन बेचारा डीजे वाला भी क्या करे ? 5 मिनिट के रिमिक्स गाने में कोई 10 से अधिक राजस्थानी गानें है। 

वीणा कैसेट के बारे में बताऊंगा तो राजस्थानी गानों की तौहीन मानी जाएगी। वीणा के गाने तो राजस्थान की शान है। वीणा कैसेट के गानें जरूर औरतों की मंशाएं पूर्ण कर रहे है। 

गाने बहुत है . . . बज रहे है . . . अब तो मैं भी पूरा रंग में हूं . . . हे शादियां करने वालो, हे डीजे पर नाचने वालों . . क्यूं सबको परेशान कर रहे हो, ये डीजे वाले गाने बेहूदा गाने ‘‘आप’’ को ही समर्पित, आप क्यूं नहीं चले जाते किसी टापू पर लो एक गाना में भी गाए देता हूं -
सबकी लगा के वाट
सबकी बणा के घाट
गाणे-वाणे बाजण दो, 
कानों में डाल के उंगली, मुझको तो सोण दो
सबकी लगा के वाट
गरम पाणी करके मुझको, एसएण्डएफ पी लेणे दो