Monday, June 10, 2013

चुनौतियों के साथ पढ़ाई व ग्राम विकास

  • लखन सालवी

दहलीज को पार करना महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती थी खासकर गांवों की महिलाओं के लिए। 1993 में महिलाओं को आरक्षण दिया गया, उससे पहले तो समाज ने उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि से वंचित ही रखा। सरकार ने पिछले 2 दशक में महिला सशक्तीकरण को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाए है। महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत किए हुए अभी तीन वर्ष ही हुए है, लेकिन सत्ता का हस्तान्तरण वास्तविक रूप में दिखने लगा है। वंचित, दलित व आदिवासी महिलाओं को भी आगे आने का मौका मिला है। कभी हस्ताक्षर करते कांपते हुए हाथ अब फर्राट से हस्ताक्षर कर रहे है। उन्में आत्मविश्वास का जबरदस्त विकास हुआ है। कभी घूंघट में मूंह छिपाए हुए कोने में बैठी रहने वाली महिला पंच-सरपंचों से घूंघट का त्याग कर दिया है। सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न तरीकों से जानकारियां प्राप्त कर पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधि पुरूषों को पीछे छोड़ते हुए एक कदम आगे चल कर सर्वांगीण विकास कर रही है।

राजसमन्द जिले की देवगढ़ पंचायत समिति की विजयपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच रूकमणी देवी सालवी जब सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए घूंघट की आड़ में घर की चौखट लांग कर बाहर निकली तो उसे गुडि़या कहते हुए अट्हास किया गया। चुनाव के दौरान ही उस अट्हास को धत्ता बताते हुए रूकमणी देवी ने न केवल घूंघट की आड़ तो तोड़ा बल्कि चुप्पी भी तोड़ दी। चुनाव जीतने के बाद तो उसे ऐसे पंख लगे कि विजयपुरा ग्राम पंचायत में विकास कार्यों की कतार लगा दी। तमाम विकास योजनाओं का लाभ जनता को दिलवाया। ग्राम पंचायत में पारदर्शिता को इस कदर स्थापित किया कि उसकी ग्राम पंचायत राज्य ही नहीं वरन देश भर में पारदर्शिता के मामले में जानी जाने लगी है, आलम यह है कि विजयपुरा ग्राम पंचायत की पारदर्शिता को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है। कोई दो राय नहीं कि पंचायतों को स्वायत्तशासी बनाने में भी महिलाओं ने अह्म भूमिका अदा की है। 

सरपंच ही नहीं वरन वार्ड पंच बन कर भी महिलाएं विकास करवा रही है। प्रस्तुत है पढ़ाई को बीच में छोड़कर वार्ड पंच बनी आदिवासी समुदाय की नवली गरासियां की वार्ड पंचाई पर एक  रिपोर्ट - 

पंचायतीराज के चुनाव आए तो सिरोही जिले की आबू रोड़ पंचायत समिति की क्यारिया ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 8 के जागरूक लोग वार्ड पंच की उम्मीदवारी के लिए शिक्षित महिला ढूंढने लगे। दरअसल वार्ड पंच की सीट महिला आरक्षित थी। इस वार्ड में आदिवासी समुदाय के परिवारों की बाहुलता है। सभी परिवारों में थाह ली पर उम्र के तीन दशक पार चुकी कोई शिक्षित महिला नहीं मिली। तब लोगों की नजर नवली पर पड़ी। तब नवली 11वीं की पढ़ाई कर रही थी। लोगों ने उसके समक्ष वार्ड पंच का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा। नवली ने हामी भर ली, दूसरी तरफ उसके परिजन भी उसके निर्णय से खुश थे। 

वार्ड पंच प्रत्याशी तय करने में लोगों को इतनी मशक्कत करनी पड़ी! वार्ड संख्या 8 के लोगों ने बताया कि कई वार्ड पंच बन गए और सरपंच भी लेकिन हमारे वार्ड में अपेक्षित विकास नहीं हुआ था। उनका मानना है कि अशिक्षित व विकास योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कोई भी वार्ड पंच उनके वार्ड में विकास नहीं करवा सका। वे बताते है कि यहीं कारण था कि हमनें शिक्षित महिला को चुनाव लड़वाने की ठानी।

खैर . . . नवली के चुनाव लड़ने के फैसले से उन वार्डवासियों का आधा कार्य सम्पन्न हो गया। चुनाव का समय नजदीक आया तो वार्ड पंच का चुनाव लड़ने के लिए नवली गरासिया ने आवेदन प्रस्तुत किया, उसके साथ उसके वार्ड की 2 अन्य महिलाओं ने भी आवेदन किए लेकिन वार्ड के लोगों ने तो ठान ही लिया था कि शिक्षित महिला को ही चुनाव जिताना है। बस उन्होंने शिक्षित नवली गरासिया को चुनाव जीता कर ही दम लिया।

नवली चुनाव तो जीत गई लेकिन उसे ग्राम पंचायत, विकास कार्यों एवं पंचायतीराज की लेसमात्र भी जानकारी नहीं थी। ऐसे में वार्ड का विकास करवाना उसके लिए चुनौतीपूर्ण था। नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद ग्राम पंचायत में गई तो असहज महसूस किया। वो बताती है कि जानकारियों का न होना मन को कमजोर बनाता है। मैं ग्राम पंचायत में जाती जरूर थी लेकिन एक अन्य महिला वार्ड पंच के पास बैठ जाती थी। वो अशिक्षित वार्ड पंच थी और मैं शिक्षित वार्ड पंच लेकिन दोनों में ही जानकारियों का अभाव था और बेहद झिझक थी। 

पढ़ाई जारी रखना चाहती है
वार्ड पंच नवली गरासिया
नवली वार्ड पंच क्या बनी, उसकी पढ़ाई भी छूट गई। हालांकि वह पढ़ाई जारी रख सकती थी लेकिन अब पढ़ाई से ज्यादा उसे पंचायतीराज को जानने की इच्छा बढ़ गई थी, इसलिए वह ग्राम पंचायत, वार्ड, विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र आदी के ही चक्कर लगाती रहती। उसके नियमित निरीक्षण के कारण कुछ सुधार तो हुए लेकिन नवली अपने वार्ड की मूल समस्याओं का निपटारा करना चाहती थी। 

ग्राम पंचायत की बैठकों में पुरूष वार्ड पंचों की भांति उसने भी अपने वार्ड के मुद्दे उठाने आरम्भ कर दिए। उसने अपने वार्ड के विकास के लिए प्रस्ताव भी लिखवाए। वार्ड पंच नवली ने महिलाओं व बच्चों की समस्याओं के प्रति वह हमेशा संवदेनशील रही और लगातार प्रयास कर उनकी समस्याओं के समाधान भी करवाए। 

कार्यकाल का पहला साल तो ऐसे ही बीत गया। नवली ने एक साल की समीक्षा की तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई। एक साल बीत गया था लेकिन नवली अपने वार्ड के लिए कुछ विशेष नहीं कर पाई थी। इसी समय उसकी मुलाकात हुई क्षेत्र में कार्य कर रहे एक सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं से। यह सामाजिक संगठन आमजन में जागृति लाने, सरकार की विकास योजनाओं की जानकारियां जन-जन तक पहुंचाने एवं वंचितों को उपर उठाने के लिए कार्य कर रहा है। जनचेतना संस्था नामक इस संगठन द्वारा समय-समय पर विभिन्न मुद्दों व विषयों को लेकर कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती है। नवली गरासिया व कई महिलाओं ने इस संगठन से जुड़कर से जानकारियां प्राप्त की। वह जानकार हुई और अपने अधिकारों को उपयोग करते हुए ग्राम विकास करवा रही है। 

वार्ड पंच ने वार्ड में जाकर महिलाओं के साथ बैठक की तो पता चला कि महानरेगा के तहत वार्ड संख्या 8 में कोई काम नहीं करवाया गया था और ना ही उसके वार्ड की महिलाओं ने महानरेगा में कार्य किया था। उसने कार्यशालाओं में मिली जानकारियों का उपयोग करना आरम्भ किया और ग्राम सभा में रेड़वाकलां में नाड़ी निर्माण करवाने का प्रस्ताव लिखवाया। बाद में नाड़ी निर्माण की स्वीकृति आ गई और वार्ड की 150 महिलाओं को रोजगार मिला। 

महिला मजदूरों का कहना  है कि पूर्व में अन्य वार्डों में  ही महानरेगा के काम हुए थे। दूर होने के कारण वार्ड संख्या 8 की महिलाओं ने महानरेगा के लिए आवेदन ही नहीं किए। उन्होंने बताया कि अगर हमारे वार्ड क्षेत्र में महानरेगा का कार्य स्वीकृत नहीं होता तो हम शायद ही कभी महानरेगा में काम करने जा पाती।

महिलाओं के नाम पर पट्टे बनवाने, इंदिरा आवास योजना की किस्त के रूपये महिलाओं के नाम पर जारी करवाने एवं हैण्डपम्प लगवाने के कार्यों से नवली गरासिया वार्ड संख्या 8 ही नहीं अपितु पूरे ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं की चहेती बन गई।  

महिला जनप्रतिनिधियों के 3 साल पूर्ण होने पर उनकी उपलब्धियों
एवं चुनौतियों पर द हंगर प्रोजेक्ट जयपुर द्वारा जोधपुर में
आयोजित एक दिवसीय सेमीनार में अपने अनुभव शेयर करती
वार्ड पंच नवली गरासिया
नवली ने अपने समुदाय की महिलाओं की दयनीय दशा को बदलने की दिशा में महत्वूर्ण कार्य किए है। वह बताती है कि मकानों के पट्टे पुरूषों के नाम पर जारी किए जाते थे। इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण की राशि भी परिवार के मुखिया पुरूष के नाम पर ही जारी की जाती थी। अधिकतर मामलों में पुरूष इंदिरा आवास की किस्त के रूपयों को अन्य कार्यों में खर्च कर देते है, ऐसे में ग्राम पंचायत के दबाव के कारण घटिया सामग्री का उपयोग कर मकान बना लिया जाता है। कई ऐसे मामले ऐसे मामले भी आते है कि पत्नि के जीवित होने पर भी पति दूसरी पत्नि ले आते है। पहली पत्नि को जबरन घर से निकाल दिया जाता है। ऐसे में मजबूरीवश उस महिला या तो अपने मायके जाना पड़ता है या अन्य पुरूष से शादी करनी पड़ती है और ऐसा उसके साथ कई बार हो जाता है। महिलाओं को सम्मान मिले और उनकी सुरक्षा हो, इस बारे में नवली ने गहराई से सोचा और ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखा कि मकानों के पट्टे महिलाओं के नाम बनाए जावे और इंदिरा आवास योजना की राशि भी महिला के नाम ही जारी की जाए ताकि पुरूष द्वारा महिला को घर से बाहर निकाल देने और दूसरी पत्नि ले आने पर पहली पत्नि अधिकार एवं सम्मान सहित अपने घर में रह सके। हालांकि ग्राम पंचायत के पुरूष वार्ड पंचों ने उसके प्रस्तावों का विरोध किया लेकिन नवली ने अपने प्रस्ताव लिखवाकर ही दम लिया। नवली का मानना है कि ऐसा करने से इस प्रकार के मामलों में कमी आएगी।

महिला सशक्तीकरण के लिए तो नवली गरासिया ने बहुत कार्य किए। उसने सिर्फ ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं को ही उनके अधिकार दिलवाने में मदद नहीं कि बल्कि महिला वार्ड पंचों को भी उनके अधिकार दिलवाने के लिए पैरवी की। ग्राम पंचायत में कुल 11 वार्ड है। 6 महिला वार्ड पंच है। नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद जब वह ग्राम सभा में गई तो देखा कि महिला वार्ड पंच तो एक तरफ घूंघट ताने बैठी रहती थी और वार्ड पंच पति ग्राम सभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे थे। यहां तक कि सरपंच संतोष देवी गरासिया की बजाए सरपंच पति ने ग्राम सभा की बागडोर अपने हाथ संभाल रखी थी। एक साल तो ऐसे ही चलता रहा लेकिन सामाजिक संगठन से जुड़कर जागरूक हुई तो नवली ने ग्राम सभा में सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों का विरोध करना आरम्भ कर दिया, नतीजा . . . सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों को ग्राम सभा से अपना हस्तक्षेप रोकना पड़ा। 

वार्ड की महिलाओं ने बताया कि ‘‘हमें पानी की समस्या से जुझना पड़ रहा था। हमें दूर-दराज से पानी लाना पड़ रहा था। हमने कई बार इस समस्या से वार्ड पंच (नवली) को अवगत कराया। नवली ने कैसे किया यह तो हमें नहीं पता लेकिन उसने हमारे वार्ड में हैण्डपम्प खुदवा दिया। अब हमारे पानी की समस्या नहीं है। नवली ने बताया कि उसने हैण्डपम्प लगवाने के लिए ग्राम पंचायत की बैठकों में प्रस्ताव लिखवाए, साथ ही पंचायत समिति के अधिकारी को भी बताया। वार्ड में कई महिनों से खराब पड़े ट्यूबवेल को भी ठीक कराया, जिससे पेयजलापूर्ति की समस्या से वार्डवासियों को निदान मिल गया। आजकल वाटरलेवल के नीचे चले जाने से पुनः पेयजल की समस्या आन खड़ी हुई है। उसने बताया कि मैंनें ग्राम पंचायत में वार्डवासियों को पेयजल मुहैया कराने के लिए टेंकरों द्वारा जलापूर्ति करवाने का प्रस्ताव लिखवाया है। 

नवली बताती है कि वार्ड में जाने का कच्चा रास्ता है, जो इतना उबड़ खाबड है कि सरकारी अधिकारी तो वार्ड में आने का नाम ही नहीं लेते है। सरकार की चिकित्सा सेवा मुहैया कराने वाली 108 एम्बुलेंस भी वार्ड में नहीं आ पाती है। मैं ग्रेवल सड़क बनवाकर इस गंभीर समस्या से वार्डवासियों को निजात दिलवाना चाहती हूं। ग्राम पंचायत में सड़क निर्माण के लिए प्रस्ताव लिखवाया है लेकिन जिला परिषद से अभी तक स्वीकृति नहीं आई है। 

ग्राम पंचायत में करवाए गए विकास कार्यों की
जानकारी देते हुए वार्ड पंच नवली गरासिया
शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझने वाली नवली ने सबसे पहले तो आदिवासी लड़के-लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए घर-घर गई, महिलाओं को समझाया, पुरूषों को समझाया और लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में भागीदारी निभाई। जब स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ा तो प्राथमिक विद्यालय को क्रमोन्नत करवाकर उच्च प्राथमिक विद्यालय करवाया ताकि वार्ड व गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़े। 

बच्चे विद्यालय तो जाने लगे लेकिन बारिस के दिनों में बच्चों के लिए पानी का एक नाला रोड़ा बन गया। वार्ड के बच्चे बारिस के दिनों में स्कूल नहीं जा पा रहे थे। दरअसल वार्ड और स्कूल के बीच एक पानी का नाला है जिसमें बारिस का पानी तेज बहाव से बहता है। नवली ने नाले पर पक्की पुलिया बनवाने का प्रस्ताव लिखवाया। उसने बताया कि पुलिया का निर्माण हो चुका है और अब बच्चों को स्कूल जाने में कोई परेशानी नहीं है।

छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए भी सफल प्रयास किए गए। राज्य सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग के छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए मां-बाड़ी केंद्र संचालित किए जाते है। इन केंद्रों में बच्चों को न केवल शिक्षा प्रदान की जाती है बल्कि उन्हें पोषण भी दिया जाता है। बच्चों को पाठ्य सामग्री से लेकर, कपड़े, स्वेटर, टाई, बेल्ट, जूते, मौज तथा सुबह का नाश्ता व मध्याहन भोजन निःशुल्क दिया जाता है। यहीं नहीं बच्चों को पढ़ाने एवं नाश्ता व मध्याहन भोजन बनाने के लिए भी आदिवासी वर्ग के ही महिला, पुरूष को नियुक्त किया जाता है। जानकारी के अनुसार जिस बस्ती या वार्ड में 30 छोटे बच्चों का नामांकन हो जाता है वहीं  मां-बाड़ी केंद्र खोला जाता सकता है। वार्ड पंच नवली गरासिया ने घर-घर जाकर सर्वे किया। जिसमें पाया गया कि वार्ड संख्या 8 में छोटे बच्चों की संख्या 30 से अधिक थी जबकि वहां मां-बाड़ी केंद्र हीं चल रहा था। तब उसने प्रशासन से मां-बाड़ी खोलने की पैरवी की। उसके अथक प्रयासों से वार्ड में बंद पड़े मां-बाड़ी केंद्र को शुरू किया गया। उसके इस प्रयास से न केवल बच्चें शिक्षा से जुड़े पाए अपितु आदिवासी समुदाय के 1 युवा व 2 महिलाओं को रोजगार भी मिला। 

यहीं नहीं नवली ने महिलाओं को भी शिक्षित किया। उसने अपने घर पर चिमनी के उजाले में महिलाओं का पढ़ाना आरम्भ किया और कई महिलाओं का साक्षर बना दिया। नवली स्नातक की डिग्री प्राप्त करना चाहती है। सरपंच बनने के बाद एक साल तो उसने अपनी पढ़ाई ड्राप कर दी लेकिन उसके बाद उसने ओपन स्टेट से 12वीं की पढ़ाई की है। वो पढ़ती भी है और वार्ड पंच का दायित्व निभाती है। 

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की आजादी एवं उनका प्रतिनिधित्व पुरूषों को रास नहीं आ रहा है। इसके कई उदाहरण देखने को मिले है। नवली की बढ़ती प्रसिद्धी से भी कई लोगों को ईष्र्या है। एक सिरफिरे ने तो नवली के मोबाइल फोन पर कॉल किया और अश्लील बातें कही, यही नहीं पुलिस में शिकायत करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी। नवली भी कहां डरने वाली थी वह उसके खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज करवाने गई। लेकिन थाने वालों ने एफआईआर दर्ज नहीं की। तब वह पुलिस अधीक्षक के पास गई और थानेदार व अश्लील कॉल करने वाले अंजान व्यक्ति की शिकायत की। पुलिस अधीक्षक के आदेशों के बाद थाने में एफआईआर दर्ज हुई और अश्लील पढ़ाई जारी रखना चाहती है वार्ड पंच नवली गरासिया रने वाले को गिरफ्तार किया गया साथ ही वार्ड पंच नवली के जानमाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी ली। 

आदिवासी सरपंच सरमी देवी गरासिया हो या वार्ड नवली बाई गरासिया, सरपंच यशोदा सहरिया हो या वार्ड पंच मांगी देवी सहरिया या हो दलित रूकमणी देवी सालवी हो या हो गीता देवी रेगर इन के सहित मनप्रीत कौर, राखी पालीवाल, वर्धनी पुरोहित व कमलेश मेहता जैसी राजस्थान की सैकड़ों महिला पंच-सरपंचों के हौसलों व उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखकर लगता है कि 73वें संविधान संशोधन की भावना पूरी हो रही है। पहली पीढ़ी की महिला जनप्रतिनिधि घूंघट में थी आज एक भी घूंघट में नहीं है अर्थात् कोई माने या ना माने तृणमूल स्तर पर बदलाव आ ही गए है। 

सपनों को साकार करने में जुटी है एक उपसरपंच

  • लखन सालवी 

 गांव में लोगों के साथ बैठक करते हुए 
राखी पालीवाल, राजस्थान के राजसमन्द जिले की उपली ओड़ण ग्राम पंचायत की उपसरपंच। जिसने बचपन से ही ग्राम विकास के सपने देखे, उपसरपंच रह चुके अपने पिता से प्रेरणा लेकर वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और निर्विरोध उपसरपंच बनकर अपने गांव की तस्वीर को बदलने में जुट गई।

राखी एक आम लड़की थी, स्कूल में पढ़ती थी, गांव में घूमती थी। खेलने कूदने की उम्र में गांव की समस्याओं पर चिंतित होती थी और उसी चिंता ने उसे ग्राम विकास के सपने देखने पर मजबूर कर दिया। आज उसने न केवल ग्राम विकास में अह्म भूमिका निभाई है बल्कि गांव के महिला, पुरूषों व युवाओं को जागरूक करने का कार्य भी किया है।

जागरूक युवाओं व संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ
राखी बताती है कि ‘‘मेरे पिताजी पहले ही ग्राम पंचायत के उपसरपंच रह चुके थे। मैं अपने पिताजी को कहती थी कि मैं पढ़ लिखकर वकील बनूंगी तो मेरे पिताजी कहते थे कि पढ़ लिखकर सरपंच बनना है। तब से ही मैं सरपंच बनने की इच्छुक थी। 2005 में सरपंच बनने की तीव्र इच्छा जगी। मगर पुरूष आरक्षित सीट होने के कारण मैं चुनाव नहीं लड़ पाई। ऐसे में पिताजी की राय से वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और चुनाव जीत कर निर्विरोध उपसरपंच बनी।

उपसरपंच बनते ही सपना देखा कि गांव की दशा बिगड़ी हुई है। कच्ची सड़कों को पक्का बनाना है, बिजली की व्यवस्था करनी है, महिलाओं के लिए शौचालय का निर्माण करवाना है, स्नानघर बनवाना है और गांव को साफ सुथरा बनाना है। उसने गांव की दशा को  सुधारने का सपना देखा। विकास के प्रति दृढ़ संकल्पित थी लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पंचायत में जाकर करना क्या है? उपसरपंच के क्या दायित्व होते है ? शुरू में तो ग्राम पंचायत में जाने से ही झिझक हो रही थी। अभी तो राखी के हौसलों ने उड़ान भरना आरम्भ ही किया था, झिझक को तोड़ा और ग्राम पंचायत में गई। शुरू-शुरू में ग्राम पंचायत के कार्यों को समझने की कोशिश की। ग्राम पंचायत के कामकाज को समझने में भारी दिक्कत आई, सबसे बड़ी समस्या थी कि कामकाज के बारे में बताने वाला कोई नहीं था। हालांकि वो ग्राम सचिव, रोजगार सहायक से जानकारी लेती लेकिन अभी उसे बहुत जानकारियां लेनी थी। इसी दरमियां ग्राम पंचायत में ग्राम सभा के दौरान एक गैर सरकारी संगठन से लोगों से उसकी मुलाकात हो गई। बस यहीं से उसके हौसलें की उड़ान को चार पंख लग गए। गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर राखी ने पंचायतराज की हरेक जानकारी को प्राप्त कर लिया और लग गई ग्राम विकास करने में . . .।

गांव की एक समस्या तो उसे बचपन से परेशान किए हुए थी, वो थी महिलाओं के लिए शौचालय नहीं होना। महिलाओं का खूले में शौच जाना उसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं था। वह अपनी गली मोहल्ले की महिलाओं को तो टोंकती भी रहती थी लेकिन टोंक देना इसका समाधान नहीं था। महिलाएं खुले में शौच नहीं करे इसके लिए वह सुबह 5 बजे ही अपनी मोटर बाइक पर गांव के चक्कर लगाती, कोई भी महिला खुले में शौच करती हुई पाई जाती तो वह उसे टोंकती। लेकिन धीरे-धीरे उसे महिलाओं की इस समस्या की जड़ पकड़ में आई। आखिर उन महिलाओं के पास उपाय ही क्या था। जब राखी ने महिलाओं को टोंकना बंद किया और शौचालय बनवाने की मुहिम में लग गई। ग्राम पंचायत की बैठक हो या पंचायत समिति की बैठक या गैर सरकारी संगठनों की बैठक सभी में राखी ने अपने गांव की इस समस्या से अवगत कराया।

राखी बताती है कि सरपंच जुगलकिशोर माली एवं मैंने अपनी ग्राम पंचायत की दयनीय दशा को सुधारने के लिए कई जतन किए। उसने बताया कि हमारे प्रयासों से मिराज गु्रप नाम की एक संस्था ने मेरी ग्राम पंचायत को गोद ले लिया और अब वो संस्था हमारे गांव को निर्मल ग्राम पंचायत बनाने के लिए कार्य कर रही है। संस्था के द्वारा ग्राम पंचायत क्षेत्र में पेड़ लगाए गए है, साफ-सफाई भी करवाई जाती है तथा कचरा पात्र लगाए गए है ताकि लोग कचरा खूले में फैंकने की बजाए कचना पात्रों में डाल सके। राखी बताती है शौचालय के निर्माण के लिए जगह तय नहीं हो पा रही है, जिस प्रस्तावित जगह पर शौचालय बनाया जाना है उसके पास मंदिर होने के कारण अन्य जगह तलाशी जा रही है। उसका कहना है कि वह इस सपने को पूरा जरूर करेगी।

फेसबुक के द्वारा उठाती है गांव के मुद्दों को

सूचना क्रांति के इस युग में इंटरनेट का बड़ा महत्त्व है। उसने इंटरनेट की महत्ता को अच्छे से समझा है। इंटरनेट के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त की है। आजकल फेसबुक पर ग्रामीणों की शिकायतों को शेयर करती है। उसने ग्राम पंचायत क्षेत्र में सूचना की है कि लोग अपनी शिकायतें उसके फेसबुक पेज पर डाल सकते है। राखी के फेसबुक पेज से जिला कलक्टर एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी जुड़े हुए है। राखी ग्रामीणों से प्राप्त शिकायतों एवं समस्याओं को जिला कलक्टर एवं अन्य अधिकारियों को इंटरनेट के माध्यम से भेजती है और
स्कूली बालिकाओं के साथ 
अपने फेसबुक अकाउण्ट पर शेयर कर जगजाहिर भी करती है। फेसबुक के माध्यम से उसने गांव की कई समस्याओं एवं लोगों की शिकायतों का निवारण करवाया है। यहीं नहीं वह अपने घर पर महिलाओं को निःशुल्क कम्प्यूटर भी सीखाती है। 

महिला सशक्तीकरण के लिए सतत् प्रयास 

महिलाओं को सख्त करने के लिए राखी ने एक कदम बढ़ाकर कार्य किया है। महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने व उन्हें जागरूक करने के महत्त्वपूर्ण कार्य किए। बालिका शिक्षा पर विशेष कार्य किए है, बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने के लिए वह घर-घर गई बालिकाओं के परिजनों को समझाया और बेटियों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वह आए दिन स्कूलों में जाती है और बालिकाओं से चर्चा करती है उनका मनोबल बढ़ाती है। राखी बताती है कि अब तो गांव में स्कूल है, मैं जब पढ़ती थी तो रोजाना 5 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में जाना पड़ता था। 

 बेटी बचाओं आन्दोलन के तहत
निकाली गई रैली में भाग लेते हुए
 
उपसरपंच बेटी बचाओं आंदोलन से भी जुड़ी हुई है, कन्या भ्रूण हत्या का जमकर विरोध करती है। साथ ही गांव में इस मुद्दें पर निगरानी भी रखती है। वह आए दिन आंगनबाड़ी केंद्रों का निरीक्षण करती है। उपसरपंच की सक्रियता को देखकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं भी सक्रिय हो गई है। 

राखी का मानना है कि आंगनबाड़ी केंद्र पर निरीक्षण करने से गर्भवती महिलाओं की जानकारी मिल जाती है। वह केंद्र पर गर्भवती महिलाओं, बच्चों के नामांकन व बच्चों की उपस्थिति, पोषाहार तथा अन्य व्यवस्थाओं के साथ गर्भवती महिलाओं व उन्हें लगाए जाने वाले टीकों की जानकारी भी लेती है। पेंशन योजनाओं का लाभ दिलवाने हो या पालनहार योजना का, इनके लिए आवेदन करने हेतु उसने गांव की महिलाओं को जागरूक किया और उनके आवेदन करवाए।

महिलाओं के साथ समूह बैठक करती है और उन्हें जागरूकता के पाठ पढ़ाती है। वह अपने घर पर महिलाओं को कम्प्यूटर सीखाती है। साथ ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, हस्तकला आदि सीखाती है। उसकी मेहनत का ही परिणाम है कि उसके उपसरपंच बनने के बाद ग्राम सभा में गांव की महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। राखी बताती है कि उपसरपंच बनने के बाद जब ग्राम सभाओं में गई तो वहां महिलाओं की संख्या नगण्य थी। यहां तक की महिला वार्ड पंच भी ग्राम सभा में नहीं आती थी। पुरूषों का ही जमावड़ा रहता था, ऐसी परिस्थिति में मैं महिलाओं से मिली और उन्हें ग्राम सभा में आने के लिए तैयार किया। प्रयास कर महिला वार्ड पंचों को ग्राम सभाओं से जोड़ा।

उपसरपंच वकील बनने का सपना भी संजोये हुए है। उपसरपंच बनने के बाद भी अपनी पढ़ाई को निरन्तर जारी रखा। बी.ए. करने के बाद इस वर्ष एल.एल.बी. प्रथम वर्ष की परीक्षा भी दे चुकी है। सपने देखना और उन्हें पूरा करने की आदी हो चुकी राखी पालीवाल निश्चित ही वकालत करने का सपना भी पूरा करेंगी।

आंगनबाड़ी केंद्र में लेपटाप पर इन्टरनेट के द्वारा
महिला एवं बाल विकास की जानकारी देते हुए
उपसरपंच राखी का कहना है कि अगर गैर सरकारी संगठन (आस्था संस्था) के कार्यकर्ताओं का साथ ना मिला होता तो उसे अपने सपने पूरे करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता। वो बताती है कि संस्था द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर ही मैंनें पंचायतीराज के बारे में तथा सरकारी योजनाओं, उपसरपंच के दायित्वों एवं कम्प्युनिटी मोबिलाईजेशन को समझा, इसी समझ के कारण में ग्राम विकास के कार्य कर पा रही हूं। उसने बताया कि राज्य सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने से भी जानकारियां बढ़ी। राखी ने बताया कि आस्था संस्था से जुड़ने के बाद वह कई कार्यक्रमों में गई जहां विभिन्न जिलों से आई महिला जनप्रतिनिधियों से मिलने और उनसे सीखने का मौका मिला। संस्था संगठनों के ऐसे कार्यक्रमों की सराहना करती हुई कहती है कि राज्य में कई महिला जनप्रतिनिधि पंचायतीराज में अव्वल कार्य कर रही है, जो किसी न किसी संस्था से जुड़ कर जागरूक हुई है।

हाल ही में वोडाफोन फाउण्डेशन ने अपने रेड रिक्सा रिवोल्यूशन कार्यक्रम के तहत राखी पालीवाल का इन्टरव्यू देश-दूनिया तक पहुंचाया है। वहीं www.nrisamay.com ने भी राखी के इन्टरव्यू का अपनी वेबसाइट पर प्रसारण किया। हालात यह है कि पंचायतीराज में अपने गांव का विकास करवाने के कारण मीडिया में सुर्खियों रहने वाली व अपने सपनों को साकार करने में लगी राखी पालीवाल के जज्बे को राजसमन्द जिले के ही नहीं वरन देश, विदेश के लोग भी सलाम कर रहे है। 

Saturday, April 13, 2013

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा - राज नहीं समाज बदलने की कवायद


  • लखन सालवी

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा का रथ 
चुनावी वर्ष है, जहां राजनैतिक पार्टियां अपनी छवि सुधारने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में यात्राएं निकाल रही है वहीं राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में इन दिनों एक ऐसी यात्रा निकाली जा रही है जो राजनीति से परे है। यह यात्रा दलित, आदिवासी, घुमन्तु एवं वंचित वर्ग के लोगों के द्वारा निकाली जा रही है

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा 5 अप्रेल को भीलवाड़ा के सीरडि़यास गांव स्थित अम्बेडकर भवन से रवाना हुई जो भीलवाड़ा व राजसमन्द जिले के सैकड़ों गांवों में होती हुई 14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में पहुंचेगी जहां डॅा. भीमराव अम्बेडकर की 122वीं जयंती के अवसर में महासमारोह आयोजित किया जाएगा। दलित आदिवासी एंव घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान (डगर) के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने कहा कि हम महापुरूषों को भूले नहीं इसके लिए यह यात्रा निकाली जा रही है। हम इस यात्रा के जरिये कबीर, फुले एवं के संदेश को जन-जन तक पहुंचाकर समाज में जागृति लाने का प्रयास कर रहे है।

‘‘जय भीम’’ व ‘‘जिन्दाबाद’’ के नारे लगाकर रैली निकालते युवा
यह चेतना यात्रा जैसे ही गांवों में पहुंचती है, गांव के दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोग ढ़ोल नगाड़ों के साथ यात्रियों पर पुष्प वर्षा करते है, उन्हें तिलक लगाते है, उन्हें फूल मालाएं पहनाते है और राजस्थान की संस्कृति के अनुसार यात्रियों को साफे बंधवाते है। कई गांवों व कस्बों में तो विशाल वाहन रैलियां भी निकाली गई। चेतना यात्रा को वाहन रैली के रूप में सम्मान सहित एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचाया गया। रैलियों में साथ चले वाहनों पर लगे लाल झण्ड़ों पर लिखे ‘‘जय भीम’’ व ‘‘जिन्दाबाद’’ के नारे एक नए किस्म के वामपंथी अम्बेडकरवाद का संकेत भी देते है। जिसने भी राजनीतिक लोगों के माथे पर खिंच  की लकीरें खींच दी है।

खेतों में काम के बावजूद यात्रा को अपार समर्थन

सम्मलेन में उपस्थिति जन
महात्मा फुले विचार मंच के जिलाध्यक्ष महिपाल वैष्णव ने बताया कि 15 से 40 साल के युवाओं के द्वारा यह यात्रा निकाली जा रही हैं। यात्रा के दौरान कहीं पर कार्यकर्ता सम्मेलन तो कहीं दलित सम्मेलन, कहीं आध्यात्मिक सम्मेलन तो कहीं स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित किए जा रहे है। गांवों, कस्बों व शहरों में निकाली गई वाहन रैलियां में युवाओं की भागीदारी सर्वाधिक रही है। हालांकि यात्रा में यात्री के रूप में पूरे समय 40-50 लोग निरन्तर चल रहे है लेकिन गांवों में आयोजित सम्मेलन व रैलियों में दलित वर्ग के लोगों की भारी उपस्थित यह साबित करने के लिए काफी है कि यात्रा को अपार जन समर्थन मिल रहा है। इस समय गांवों में खेतों में भारी काम है बावजूद इसके गांवों की महिलाएं, पुरूष व युवा यात्रा के समर्थन में आ रहे है और जगह-जगह पर यात्रा का स्वागत कर रहे है। यात्रा में शामिल अधिकतर लोग दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के है। विभिन्न स्थानों पर आयोजित सम्मेलनों को यही लोग सम्बोधित कर रहे है अर्थात् वक्ता भी इनके और श्रोता भी इन्हीं के। यह वंचित वर्ग के लोगों के आत्मनिर्भर होने की दिशा में शुभ संकेत माना जा रहा है।  


कहीं जय भीम-जय भवानी तो कहीं जय भीम-जय रूपसिंह के नारे 

सर्वण जातियां भी अब दलित समुदाय के साथ जुड़कर एकता के नारे लगाने लगी है। यात्रा के दौरान भीलवाड़ा जिले करेड़ा क्षेत्र के राजपूत नेता मोहन सिंह ने धुंवाला में आयोजित सभा में कहा कि राजपूत व दलित समुदाय के बीच पीढि़यों से नाता रहा है। दलित समुदाय राजपूत समाज से जुड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि दलित व राजपूत समुदाय के लोगों में भेदभाव अपेक्षाकृत कम ही रहा है अतः इन समुदायों को मिलकर बदलाव के लिए कार्य करने चाहिए। उन्होंने जय भीम-जय भवानी का नारा दिया। वहीं यात्रा के दौरान कई जगहों पर घुमन्तु समुदायों के लोगों द्वारा सम्मेलन आयोजित किए गए। शाहपुरा की डाबला चंदा पंचायत कालुराम बंजारा द्वारा आयोजित घुमन्तु सम्मेलन में जय भीम-जय रूपसिंह के नारे भी लगाए गए। 

यात्रा के दौरान सभा को सम्बोधित करते परशराम बंजारा
डगर के प्रदेश संयोजक परशराम बंजारा ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि घुमन्तु समुदाय के लोग बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के योगदान को स्वीकारने लगे है तथा अब राजस्थान की 52 घुमन्तु जातियां अपने संविधान प्रदत्त अधिकार को प्राप्त करने की लड़ाई लड़ने को तत्पर हो रहे है।

अम्बेडकर सांस्कृतिक विचार मंच आसीन्द के तहसील संयोजक डालचंद रेगर का भी कमोबेश यही कहना है कि बाबा साहेब अम्बेडकर को देश के तमाम वर्गों तक ले जाने की शुरूआत इस यात्रा ने कर दी है। उनका कहना है कि यह यात्रा स्वतः स्फूर्त है, इसका किसी राजनैतिक पार्टी से इसका कोई लेना-देना नहीं है और इसको वंचित वर्ग के लोग ही चला रहे है। यानि की फण्ड भी उनका और फण्डा भी उनका और गजब तो यह है कि इस बार डण्डा और झण्डा भी उनका ही है। एक तरह से कहा जाये तो यह दलितों के आत्मनिर्भर बनने की शुरूआत है जिससे राजनैतिक दलों व राजनेताओं में खलबली मची हुई है।

डॅा. भीमराव अम्बेडकर जयंती समारोह समिति के संयोजक राजमल खींची ने बताया कि इस यात्रा को प्रशासन ने काफी गंभीरता से लिया है। यात्रा जहां-जहां जा रही है पुलिस प्रशासन वहां सुरक्षा के बंदोबस्त कर रहा है। यात्रा में एक अद्भूत रथ शामिल है जो दरअसल एक ट्रक है जिस पर बड़े-बड़े बैनर लगाए गए है जिनमें संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले व डॅा. भीमराव अम्बेडकर के विचार लिखे है।

अत्याचार बर्दाश्त नहीं, चेतना यात्रा ने ली पीडि़तों की सुध

महापुरूषों के संदेश को जन-जन पहुंचाने के साथ-साथ यह यात्रा उन गांवों में भी जा रही है जहां दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोगों के साथ अत्याचार की घटनाएं हुई है। यात्रा के लोग उन गांवों में जाकर पीडि़त लोगों से मिल रहे है उन्हें न्याय दिलवाने के लिए पैरवी करने के साथ-साथ उन्हें हिम्मत भी दिला रहे है। 

खून से सने कपड़े दिखाता बन्ना लाल 
यात्रा जब राजसमन्द जिले की भीम तहसील के शक्करगढ़ गांव में पहुंची तो यहां दलित परिवार के बन्ना लाल ने बताया कि मजूदरी मांगने के कारण उस पर सर्वण जाति के एक युवक ने तलवार से हमला कर जान से मारने का प्रयास किया। तलवार के वार से बन्ना लाल के सिर पर गंभीर चोट आई और ईलाज के दौरान उसके सिर में 18 टांके लगाए गए। पुलिस ने अनुसूचित जाति अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की बजाए आईपीसी की धारा 302 व अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर इतिश्री कर ली। वहीं आरोपी अभी भी खुलेआम घूम रहा है। डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने बन्ना लाल व उसके परिवारजनों को आश्वस्त किया कि बन्ना लाल पर जानलेवा हमला करने के  आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही करवायी जाएगी। वहीं उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों से आव्हान् किया कि बन्ना लाल के सिर से बहा खून किसी भी दलित के बहने वाला आखिरी कतरा होना चाहिए। भीम के तहसील कार्यालय के बाहर भी सभा को सम्बोधित करते हुए मेघवंशी ने कहा कि अगर प्रशासन ने बन्ना लाल के मामले में शीघ्र कार्यवाही नहीं की तो आन्दोलन किया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि दलित आदिवासी एवं घुमन्तु जातियों पर कहीं पर भी अत्याचार कदापि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

डगर के जिला संयोजक महादेव रेगर ने बताया कि वैसे तो दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु परिवारों के साथ होने वाले अत्याचार की घटनाओं में डगर हमेशा पीडि़त के पक्ष में खड़ा होता है लेकिन दूर-दराज के गांवों में होने वाले अत्याचार के कई मामले हम तक नहीं पहुंच पाते है ऐसे में चेतना यात्रा के लोग दूर-दराज के गांवों के उन पीडि़तों के पास भी गए जिन पर अत्याचार हुए है। इस दौरान उनकी केस स्टडी लिखी गई और 14 अप्रेल को आजाद चौक में अत्याचार के मामलों से प्रशासन को अवगत कराकर कार्यवाही की मांग की जाएगी।

सभा को सम्बोधित करते निखिल डे
भीलवाड़ा जिले की आसीन्द तहसील के जगपुरा गांव में दलित स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित किया गया। चेतना यात्रा के यहां आने के पीछे एक और मकसद भी था, वो था अपने अधिकारों के लिए लड़ रही दलित महिला लेहरी देवी को ताकत देने का। लेहरी देवी ने जगपुरा के भारत सिंह राजपूत नाम के व्यक्ति से ढ़ाई लाख रुपए मंे एक मकान खरीदा। विक्रेता ने मकान की रजिस्ट्री भी लेहरी देवी के नाम करवा दी। मकान पर कब्जा एक माह बाद देने की बात हुई लेकिन एक माह बीतने पर विक्रेता ने मकान खाली करने से इंकार कर दिया। तब से ही लेहरी देवी मकान पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष कर रही है। जानकारी के अनुसार सर्वण जाति के लोग नहीं चाहते कि कोई दलित परिवार उनके मोहल्ले में आए। 

यहां पर आयोजित दलित स्वाभिमान सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के सदस्य निखिल डे ने कहा कि लेहरी देवी अपने संवैधानिक हक की मांग कर रही है और कानून के दायरे में कर रही है इसके बावजूद भी उसे आज तक न्याय नहीं मिलना शर्म की बात है। उन्होंने लेहरी देवी के संघर्ष में एकजूटता दिखाने और उसके अधिकार को प्राप्त करने के संघर्ष में संगठन की मदद का भरोसा दिया। चेतना यात्रा के बारे में बोलते हुए निखिल डे ने कहा कि हमारा लोकतंत्र ही इसलिए जीवित है क्योंकि समाज में ऐसी यात्राएं निकलती है और ऐसी यात्राएं बाबा साहेब को दलितों का नहीं वरन इस पूरे देश का एवं मानवता का मसीहा बनाती है। उन्होंने कहा कि हमें संगठित होकर दलित अत्याचार के खिलाफ आवाजें उठानी पड़ेगी। 

दलितों में परस्पर भोज का आयोजन: भेदभाव मिटाने की मुहिम

चेतना यात्रा के दौरान दलित व आदिवासी जातियों के मध्य व्याप्त भेदभाव को दूर करने का संदेश देते हुए कई जगहों पर सामूहिक भोजों का आयोजन किया गया। इन सामूहिक भोज के कार्यक्रमों में सभी वर्गों के लोगों ने एक साथ एक जाजम पर भोजन ग्रहण किया। यात्रा से जुड़े डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने बताया कि दलितों, आदिवासियों एवं घुमन्तुओं के बीच के भेदभाव को खत्म करना अतिआवश्यक है अन्यथा भेदभाव को मिटाने की बातें करना बेमानी है।

उन्होंने यात्रा की सफलता के बारे में बताते हुए कहा कि इस दौरान कहीं आदिवासी सम्मेलन हुआ तो कहीं दलित सम्मेलन, हर दिन एक ना एक जगह पर घुमन्तु सम्मेलन भी हो रहा है। जिस प्रकार तकरीबन दो जिलों की 10 विधानसभा क्षेत्रों में इस यात्रा को समर्थन दिया मिला, वह अकल्पनीय है। 

हथाई पर एक साथ बैठे महिला पुरूष
समानता के अधिकार की पैरवी: महिलाओं को दिलाया बराबरी का अधिकार

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा के संयोजक परशमराम बंजारा ने बताया कि यात्रा के दौरान राजसमन्द जिले के शक्करगढ़ तथा भीलवाड़ा जिले के चिताम्बा गांव की हथाई पर सभा का आयोजन किया गया। देखा कि सभी महिलाएं हथाई के नीचे बैठी थी वहीं पुरूष हथाई पर बैठे थे। यात्रा के संयोजक ने वंचित समुदाय से आव्हान् किया संविधान में सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है ऐसे में सभी के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने बताया कि इन दोनों स्थानों पर लोगों ने प्रण लिया कि वे महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करेंगे उन्हें नीचे नहीं बिठायेंगे। उन्होंने हथाई से नीचे बैठी महिलाओं को तुरन्त हथाई पर पुरूषों के साथ बैठा कर समानता की मिसाल कायम की।


जन सहयोग से हो रहे है आयोजन

14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में अम्बेडकर जयंती समारोह आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम के संयोजक राजमल खींची ने बताया कि जिसमें हजारों महिला पुरूष भाग लेंगे।

 संजाड़ी का बाडि़या में यात्रा के संयोजक को
सहायता राशी देते हुए
निश्चित ही इस चेतना यात्रा और अम्बेडकर जयंती समारोह के आयोजन के लिए बड़ी धन राशि की आवश्यकता पड़ी है। चेतना यात्रा व जयंती समारोह का आयोजन भले ही कुछ संगठनों से साझे प्रयासों से किया जा रहा हो लेकिन आयोजन में हो रहे खर्च में जन भागीदारी है। चेतना यात्रा के दौरान गांवों व कस्बों से दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु जातियों के लोगों ने सहयोग राशि दी है। भीलवाड़ा जिले के छोटे से गांव संजाड़ी का बाडि़या के वंचित वर्ग के लोगों को जब पता चला कि यह यात्रा जनसहयोग से चल रही है तो उन्होंने महज 5 मिनट में 5 हजार रुपए एकत्र कर यात्रा को सहयोग के रूप में भेंट किए। वहीं रायपुर तहसील के रामा गांव के नगजीराम सालवी व बोराणा गांव के गोपी लाल सालवी ने 25-25 हजार रुपए की सहयोग राशी दी। ऐसा नहीं है कि यात्रा को केवल एक जाति विशेष या एक वर्ग विशेष के लोगों ने सहयोग किया हो। यात्रा को दलित, आदिवासी, घुमन्तु एवं वंचित वर्ग के लोगों सहित अन्य वर्गों के मानवतावादी एवं इंसानियत को चाहने वाले लोगों ने भी सहयोग किया है और इस तरह तकरीबन डेढ़ लाख रुपए जनसहयोग के रूप में प्राप्त हुआ है। 


राजसत्ता मकसद नहीं-मेघवंशी
वंचित समुदायों को एकजूट करने के लिए रामदेव सेना के गठन की घोषणा

राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोगों का कहना है कि चुनावी साल है इसलिए दलित वर्ग के लोग अपनी ताकत दिखाने के लिए इस यात्रा का आयोजन कर रहे है। वहीं कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा के संयोजक परशराम बंजारा के अनुसार यह यात्रा संत कबीर, महात्मा त्योतिबा फुले व डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचार एवं संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से निकाली जा रही है। 

चेतना यात्रा से जुड़े सामाजिक न्याय समिति जयपुर के सचिव गोपाल वर्मा का कहना है कि यह जन जागृति का कार्य है, चेतना यात्रा के माध्यम से महापुरूषों के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस पूरे आयोजन में जबरदस्त जनभागीदारी दिखी है। जनभागीदारी से  सामूहिकता बढ़ी है एवं दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के बीच का भेदभाव कम होता नजर आ रहा है और वंचित लोग एकजुट हो रहे है। 

शाहपुरा में प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए 
सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने शाहपुरा में आयोजित प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया कि चेतना यात्रा किसी पार्टी या किसी राजनेता के लिए नहीं निकाली जा रही है। उन्होंने साफ किया वो किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं है और ना ही राजनीति में जाना चाहते है। उल्लेखनीय है कि भंवर मेघवंशी को लेकर शाहपुरा क्षेत्र में कयास लगाए जा रहे थे कि अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट होने के कारण मेघवंशी यहां से चुनाव लडेंगे। मेघवंशी ने इस तरह की राजनैतिक अटकलों पर विराम लगाते हुए स्पष्ट किया कि न वो किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होंगे और ना ही चुनाव लडेंगे क्योंकि राजसत्ता उनका मकसद नहीं है, समाज में बदलाव के लिए निरन्तर कार्य करना है। उन्होंने दलित आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए उपरोक्त वर्गों के 5000 युवाओं की एक रामदेव सेना का गठन की घोषणा भी की जो शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीकों से न्याय समानता के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष करेगी। 


खैर, चेतना यात्रा अपने मकसद को लेकर आगे बढ़ रही है, वहीं इस यात्रा ने जिले की आबादी के तकरीबन 45 प्रतिशत मतदाता जो कि अनुसूचित जाति, जनजाति एवं घुमन्तु तथा अल्पसंख्यक वर्गों के है, उन्हें राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक रूप से मजबूत करने का काम किया है तथा पूरे जिले के राजनैतिक समीकरणों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। बहरहाल दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के बीच महापुरूषों के संदेश को लेकर निकाली जा रही चेतना यात्रा में चल रहे यात्री महापुरूषों के संदेश तो जन-जन तक पहुंचा ही रहे साथ ही सभी को 14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में आकर अम्बेडकर जयंती समारोह में आने का न्यौता (निमन्त्रण) भी दे रहे है। उम्मीद की जा रही है कि 10 हजार से भी ज्यादा लोग इस बार जिला मुख्यालय पर अम्बेडकर जयंती मनाने के लिए पहुचेंगे। इस जयंती समारोह में किसी भी स्थानीय जनप्रतिनिधि को आमन्त्रित नहीं किया जाना भी कौतुहल का विषय बना हुआ हैं। आयोजकों का मानना है   कि  इस बार वे केवल दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्गों के लिए आवाज उठाने वाले लोगों को ही स्थान देंगे भले ही वो किसी भी विचारधारा अथवा दल से क्यू ना जोड़े हो। दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्गों की अपनी तरह की अनूठी एवं आत्मनिर्भर इस कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा ने पूरे जिले में सभी की नींद उड़ा रखी है। अत्याचारी भय के मारे सो नहीं पा रहे है वहीं दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोगों को लम्बी नींद से निरन्तर जगाया जा रहा है। शासन और प्रशासन, राजनेता और नौकरशाही सब कोई हैरान है और वंचित दिखाना चाहते है उनमें भी जान है, उनके हौसलों की भी उड़ान है। 

पीले चावल देकर दिया आने का न्यौता


कल सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता और संत करेंगे सभा को सम्बोधित


भीलवाड़ा में लोगों को पीले चावल देते हुए
लखन सालवी (भीलवाड़ा) - कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा आज भीलवाड़ा पहुंची। रथ सहित यात्रा शहर की विभिन्न दलित बस्तियों में गई। जहां यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। वहीं यात्रियों ने सभी दलित बस्तियों के लोगों को पीले चावल देकर डॅा. अम्बेडकर जयंती समारोह में आने का न्यौता दिया।

यात्रा के साथ चल रहे डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी, यात्रा के संयोजक परशराम बंजारा, जयपुर से आए आरटीआई मंच राजस्थान के कमल टांक, मुकेश गोस्वामी, डगर के ललित मेघवंशी, कालबेलिया अधिकार मंच राजस्थान के रतननाथ कालबेलिया इत्यादि ने विभिन्न दलित बस्तियों में लोगों को पीले चावल देकर 14 अप्रेल को आजाद चौक में आयोजित समारोह में आने का न्यौता दिया।

आयोजन समिति ने लिया आजाद चौक का जायजा

आयोजन समिति के संयोजक राजमल खींची, भंवर मेघवंशी, महिपाल वैष्णव, प्रहलाद राय मेघवंशी सहित समिति के सदस्यों ने आज आजाद चौक में डॅा. अम्बेडकर जयंती समारोह के आयोजन को लेकर हो रही तैयारियों का जायजा लिया।

ये करेंगे समारोह को सम्बोधित

आयोजन समिति के संयोजक राजमल खींची ने बताया कि डॅा. अम्बेडकर जयंती समारोह को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य श्रीमती अरूणा रॅाय, बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल, डूंगरपुर-बांसवाड़ा के सांसद ताराचंद भगारो, राज्यसभा सांसद डी.राजा, नेशनल फेडरेशन फार इंडियन वुमेंस की राष्ट्रीय सचिव श्रीमती एनी राजा, राष्ट्रीय रोजगार परिषद के सदस्य निखिल डे एवं डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी सम्बोधित करेंगे।

समारोह में भाग लेंगे संत

डॅा. अम्बेडकर जयंती समारोह में सद्गुरू सैलानी दरबार करेड़ा के गद्दीनसीन बाबा सलीम सैलानी तथा महंत सत्यप्रकाश त्यागी (रामद्वारा-गुलाबपुरा) सहित कई संत समारोह में भाग लेंगे।

निकाली जाएगी विशाल रैली

आज प्रातः 11 बजे सुखाडिया सर्किल से विशाल रैली निकाली जाएगी जिसे समाजसेवी अशोक कोठारी हरी झण्डी दिखाकर रवाना करेंगे। रैली सुखाडिया सर्किल से अजमेर चौराहा होते हुए अम्बेडकर सर्किल पर पहुंचेगी जहां डॅा. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को माल्यार्पित की जाएगी। वहां से रैली महाराणा टॅाकिज होते हुए आजाद चौक पहुंचेगी जहां विशाल जयंती समारोह आयोजित किया जाएगा। समारोह में करीबन 10000 लोगों के भाग लेने की संभावना है।


Sunday, February 3, 2013

मियाला में सालवी समाज का विवाह सम्मेलन सम्पन्न


29 जोड़े बंधे परिणय सूत्र में 

  • लखन सालवी

1 फरवरी को राजसमन्द जिले के मियाला गांव में सालवी समाज द्वारा सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में 29 जोड़े परिणय सूत्र में बंधे। उल्लेखनीय है कि मियाला गांव में सालवी समाज के आराध्य देव रूणिचा के श्री बाबा रामदेव के काका श्री धनराजजी की समाधी स्थित है और प्रति वर्ष भादवा माह की बीज पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

सम्मेलन में मेवाड़ व मारवाड़ क्षेत्र के सालवी समाज के करीबन 25000 महिला पुरूषों ने भाग लिया। सम्मेलन में पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल, डॅा. अशोक मेघवाल, पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह रावत, पूर्व विधायक बंशी लाल गहलोत, ब्यावर के अर्जुनराम दुखाडि़या, भीलवाड़ा के भंवर मेघवंशी, भीलवाड़ा जिला प्रमुख सुशीला सालवी, गंगापुर के मोहन लाल बलाई, आसीन्द के बहादुर मेघवंशी, देवगढ़ के किशन लाल सालवी, सहित कई समाजसेवियों ने भाग लिया।

ताकत पदों में नहीं . . . समाज में है - मेघवंशी

सम्मेलन के दौरान आशीर्वाद समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के दौरान सम्मेलन में आए मेवाड़ व मारवाड़ क्षेत्र की सभी बैठकों के अध्यक्षों एवं अतिथियों का साफा बंधवाकर स्वागत किया गया। स्वागत समारोह में सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने नव विवाहितों के मंगल जीवन की कामनाएं करते हुए कहा कि यह संतों का समाज है। इस समाज में गोकुलदास महाराज, गरीब साहेब महाराज, अणछी बाई जैसे ओजस्वी संतों ने जन्म लिया। हमें अपने समाज के महान संतों के उपदेशों को जीवन में उतारना चाहिए और बाबा भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा पर चलते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह न केवल विवाह सम्मेलन है बल्कि समाज की एकजुटता का परिचायक है। सम्मेलन से समाज की एकजुटता व ताकत नजर आती है। उन्होंने कहा कि समाज के कई लोग समाज की बदौलत उच्चे पदों तक पहुंच जाते है। लोग समझने लगते है कि उच्चे पदों में ताकत होती है जबकि ताकत पदों में नहीं . . . समाज में होती है। 

भंवर मेघवंशी ने कहा कि कमजोर वर्ग के साथ छलावा हो रहा है और दबाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि समाज को राजनैतिक रूप से मजबूत बनाना है और राजनीतिक ताकत को बढ़ाकर समाज को आगे लाना है। ना किसी एक राजनैतिक पार्टी से जुड़ना है और ना ही राजनीति से दूर रहना है। 

आशीर्वाद समारोह को सम्बोधित करते हुए पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह ने कहा कि होड़ के इस दौर में विवाह कार्यक्रमों में खर्च बढ़ता जा रहा है। बढ़ते हुए खर्च में लोग दबते जा रहे है। ऐसे में मितव्ययता की दिशा में इस प्रकार के विवाह सम्मेलन बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

कार्यक्रम में शिरकत करने आई भीलवाड़ा की जिला प्रमुख सुशीला सालवी ने कहा कि समाज में जागृति आई है। समाज की बेटियां पढ़ लिख रही है और आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि अगर बेटियों को सम्मान मिलेगा तो वो और आगे बढ़ पाएगी। 

बनाओं बाबा रामेदव सेना - मेघवाल

पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल ने समारोह में शिरकत कर रहे समाज के लोगों से आव्हान् करते हुए कहा कि सामूहिक विवाह की प्रवृति को अधिकाधिक प्रयोग में लाया जावें। उन्होंने कहा कि मन की भावना से इस प्रकार के आयोजन किए जाए। ऐसे आयोजन बहुउद्देशीय हो जाते है। यह आयोजन मितव्ययता का सार्थक परिणाम तो है ही साथ ही इस प्रकार के आयोजनों से समाज जुड़ता है तथा समाज के लोगों में परस्पर प्रेम भाव बढ़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों में कई लोग मंचों पर बोलना भी सीख रहे है, समाज की महिलाओं को भी बोलने का मौका मिल रहा है। महिलाएं आगे आई है और बोल रही है, भीलवाड़ा जिले की समाज की बेटी जिला प्रमुख बनी और राजनीति में भूमिका निभा रही है। आज उसे मंच पर बोलते देख अच्छा लगा कि वो बोलना सीख रही है। 

मेघवाल ने अपने संबोधन में समाज को संगठित होने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि आज बुनकर समाज विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। कहीं सूत्रकार तो कहीं सालवी, कहीं बुनकर तो कहीं बलाई, कहीं मेघवाल तो कहीं मेघवंशी के नाम से जाना जाता है। लेकिन विभिन्न नामों से जाने जाना वाले इस ‘सूत कातने वाले’ समाज को एकजूट होना है। उन्होंने कहा कि ‘सरनमे’ की कोई परवाह नहीं है, जिसे जो नाम अच्छा लगे वो उस नाम का उपयोग करें लेकिन जब समाज की एकजुटता की बात आए तो सभी एक जाजम पर एक साथ बैठे। 

मेघवाल ने कहा कि हम सभी बाबा रामदेव को मानने वाले है, सभी रामदेव पीर की जय बोलते है। राज्य की सबसे ज्यादा जनसंख्या अनुसूचित जाति व जनजाति की है। अनुसूचित जाति की बलाई, रेगर, बैरवा, सहित कई जातियों के लोग बाबा रामेदव को मानते है। ये सभी बाबा रामदेव को अपना आराध्य देव मानते है। दलितों के देव कहे जाने वाले बाबा रामदेव को सभी धर्मों के लोग मानते है। हिन्दू उन्हें अपने आराध्य देव मानते है वहीं वो मुसलमानों के पीर कहलाते है। साम्प्रदायिक सद्भाव का इससे बड़ा उदाहरण कहीं ओर देखने को नहीं मिलेगा। उन्होंने समाज को जागरूक होकर संगठित होने का आव्हान करते हुए कहा कि अब समय आ गया है अपनी साम्प्रदायिक एकता को दिखाने का और अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्ग को मिलकर बाबा रामदेव की सेना बनाने का।


अखिल भारतीय सालवी महासभा एवं विकास संस्थान की ओर से मियाला में हुए इस सामूहिक विवाह सम्मेलन में 29 वर-वधु परिणय सूत्र में बंधे। 1 फरवरी को सुबह 7 बजे से विवाह सम्मेलन की रस्में पूरी हुई। वर-वधुओं की बैंड-बाजों के साथ सामूहिक बिन्दौली निकाली गई।

आयोजन स्थल पर बनाए गए विशेष विवाह मण्डप में तोरण की रस्में हुई। पंडित मूलाराम आर्य व धर्मवीर आर्य ने पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न कराया। वहीं दोपहर में आयोजित हुए आशीर्वाद समारोह की अध्यक्षता पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल ने की। समारोह के मुख्य अतिथि सांसद गोपाल सिंह शेखावत थे। विशिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह रावत, पूर्व विधायक बंशीलाल गहलोत, भंवर मेघवंशी, भीलवाड़ा की जिला प्रमुख सुशीला सालवी व देवगढ़ के प्रधान हमीर सिंह रावत उपस्थित थे।अतिथियों का आयोजकों की ओर जेठाराम ने स्वागत किया। सम्मेलन को सफल बनाने में वेणाराम नागर, रूपाराम जलवाणिया, देवी लाल नगोड़ा, नाथूराम मेलका, अरूण कुमार बरोला, डाउराम मेमात, भीमराज भाटी, हरीश कुमार, गणेशराम भाटी, घीसूलाल, पुखरात, खीमाराम कटारिया, दुर्गालाल, कालूराम इत्यादी का सराहनीय सहयोग रहा।
बहरहाल क्षेत्र के 29 जोड़ों का विवाह सम्मेलन सम्पन्न हो गया है। दूल्हें अपनी दुल्हनों के साथ दाम्पत्य जीवन जीने के लिए अपने-अपने घरों में पहुंच चुके है वहीं सम्मेलन में आशीर्वाद समारोह में पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल द्वारा किए गए आव्हान् पर समाज के लोगों ने एकजुट होना आरम्भ कर दिया है और जमीनी स्तर पर बाबा रामदेव सेना का निर्माण आरम्भ हो गया है। वहीं क्षेत्र के भाजपा व कांग्रेस के नेताओं की नींद हराम हो गई है क्योंकि उन्हें दलित व अल्पसंख्यक वोट बैंक अपने पाले से बाहर जाता दिखाई दे रहा है।

Sunday, January 6, 2013

बलाई (बुनकर) अब नीच कैसे हो गए ?


हर जगह सुनने को मिलता है कि सूचना एवं क्रांति के इस आधुनिक युग में छुआछूत जैसी दुर्भावनाएं नहीं रही है, लेकिन ये सच नहीं है। कथित सवर्ण समुदायों के लोगों की सवर्णवादी मानसिकता बढ़ती जा रही है। वहीं दलित मुद्दों पर काम कर लोगों की माने तो उनका कहना है कि ‘‘सवर्ण समुदायों के लोगों की मंदिरों की सम्पत्ति पर गिद्ध दृष्टि है, वो माहौल बनाकर दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करते है और फिर मंदिर की सम्पति पर कब्जा कर लेते है। मंदिरों से दलित पुजारियों को बाहर निकालने की घटनाओं पर नजर डाले तो इन दलित कार्यकर्ताओं की बातें कटु सत्य प्रतीत होती है। यह सच है, वरना थला गांव का बलाई जाति का परिवार बरसों बाद नीच कैसे हो गया ?

भीलवाड़ा जिले की रायपुर तहसील के थला गांव में दलित पुजारी को मंदिर व मंदिर की कृषि भूमि से यह कहते हुए बेदखल कर दिया कि ‘‘तुम नीच जात के हो, आज के बाद मंदिर में मत आना वरना गांव से बाहर कर देंगे।’’ यही नहीं बरसों पहले देवनारायण मंदिर परिसर में दलित पुजारी हजारी लाल बलाई द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को भी तोड़ दिया। 

जानकारी के अनुसार रायपुर तहसील के थला गांव के लेहरू लाल बलाई के पिता ने कई बरसों पूर्व गांव मंे ही स्थित देवनारायण मंदिर के पास लोगों के बैठने के लिए एक सार्वजनिक सराय का निर्माण करवाया था। तब से ही आमजन उस सराय का उपयोग करते आ रहे है। लेकिन 20 नवम्बर 2012 को सुबह कुमावत जाति के भगवान लाल, लादूलाल, गणेश लाल, पारस लाल, भैरू लाल व भोजाराम सहित कुमावत जाति के अन्य लोगों ने हमसलाह होकर उस सार्वजनिक सराय को तोड़ दिया। लेहरू लाल ने सराय को तोडने का विरोध किया तो आरोपियों ने उसके साथ दुव्यर्वहार करते हुए जातिगत गालियां निकाली। यही नहीं आरोपियों ने दलित लेहरू लाल को धारदार हथियार से मारने का प्रयास भी किया। लेहरू लाल बलाई ने रायपुर थाने में इस आशय की रिपोर्ट दी है। पुलिस राजनेताओं के दबाव में है और अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है। भट्ट ग्रंथ (भाट की पौथी) के अनुसार लेहरू लाल के पूर्वज पीढि़यों से देवनारायण मंदिर की पूजा करते आ रहे है। 

मेरे दादाजी (अमरा लाल बलाई) ने बरसों पहले देवनारायण मंदिर का निर्माण किया था। मूर्ति स्थापना के बाद से ही मेरे दादाजी मंदिर की पूजा अर्चना करते रहे। बाद में मेरे पिता (हजारी लाल बलाई) ने मंदिर के पास ही एक सराय का निमार्ण किया। मंदिर की पूजा अर्चना शुरू से ही मेरे परिवारजन करते रहे लेकिन करीब 20 साल पहले कुमावत जाति के दंबग लोगों ने मेरे को पिता को मंदिर से बेदखल कर निकाल दिया और स्वयं पूजा करने लगे। मेरे पिता ने मंदिर से बेदखल करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था। वो मामला अभी तक न्यायालय में विचाराधीन है। अब कुमावत जाति के लोगों ने मंदिर के नाम दर्ज कृषि भूमि पर से भी हमें बेदखल कर उस पर कब्जा कर लिया है। हमने न्यायालय की शरण ली है। - लेहरू लाल बलाई, गांव-थला, तहसील-रायपुर, जिला-भीलवाड़ा (राज.) 

भीलवाड़ा जिले के माण्डल विधानसभा क्षेत्र के सूलिया गांव में दलित पुजारी को मंदिर पर प्रवेश नहीं करने दिया गया नतीजा दलित संगठित हुए और आंदोलन किया और गुर्जर जाति के लोगों के भारी विरोध और धमकियों के बावजूद मंदिर में प्रवेश करके दम लिया। जानकारी के अनुसार सूलिया में स्थित देवनारायण मंदिर की पूजा पीढि़यों से बलाई समुदाय के पुजारी करते आ रहे थे। तत्कालीन गुर्जर जाति के लोगों को दलित पुजारियों से कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन वर्ष 2006 (सूचना एवं क्रांति का समय) में गुर्जरों ने दलित पुजारियों को मारपीट कर मंदिर से बेदखल कर दिया। हालांकि दलित पुजारियों ने संघर्ष कर पुनः पूजा के अधिकार को प्राप्त कर लिया। माना जाता है कि इस मामले में तत्कालीन पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर ने अपने समुदाय के लोगों की मदद की। गुर्जरों की दादागिरी से पीडि़त दलित वर्ग एकजुट हुआ आगामी विधानसभा चुनावों में कालु लाल गुर्जर को हार का मुंह देखना पड़ा।

कुछ महीनों पूर्व जिला प्रमुख सुशीला सालवी के पीहर थाणा गांव में दलित पुजारी जयराम बलाई को मंदिर और मंदिर की कृषि भूमि से बेदखल कर दिया। जयराम बलाई की निजी सम्पत्ति को भी गुर्जरों ने नष्ट कर दिया। जयराम बलाई की ओर से पुलिस थाना करेड़ा में 2 एफआईआर दर्ज है। अब 2012 के आखिरी माह में रायपुर तहसील के थला गांव में कथित सवर्ण कुमावत जाति के लोगों ने देवनारायण मंदिर परिसर में दलितों द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को यह कहते हुए ढ़हा दिया कि ‘‘बलाईयों द्वारा बनाई सराय को यहां नहीं रहने देंगे।’’ यही नहीं उन्होंने राजस्व रिकार्ड में दलित पुजारी के नाम दर्ज मंदिर की जमीन से दलित पुजारी के परिवार को बेदखल करते हुए उस पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया।

पिछले कुछ सालों में अकेले भीलवाड़ा जिले में दलितों को मंदिर में नहीं जाने देने व बरसों से मंदिर की पुजा अर्चना करते आ रहे दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करने की कई घटनाएं हुई। लेकिन दलित संघर्ष कर अपने अधिकारों को पाने में कामयाब रहे - परसराम बंजारा, दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान

*लेखक खबरकोश डॅाटकॅाम के सहसंपादक है। 

Wednesday, January 2, 2013

भीलवाड़ा जिले का सियासी हालचाल


  • लखन सालवी
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॅा. सी.पी. जोशी का संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा कभी राजनीतिक रूप से कांग्रेस के लिये गढ़ हुआ करता था वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिये भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था, भीलवाड़ा जिले ने राज्य को 3 बार प्रतिनिधित्व करने वाला मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर दिया, कभी गिरधारी लाल व्यास प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे, इस तरह मेवाड़ में भीलवाड़ा अह्म स्थान रखता रहा है।
जाट                              जोशी                               शर्मा
कभी सत्ता की धुरी बने रहने वाला भीलवाड़ा अब राज्य मंत्रीमण्डल में एक अदद मंत्री पद के लिये भी तरसा हुआ है जबकि 7 विधानसभाओं में से 4 पर कांग्रेस काबिज है, कांग्रेस की आपसी फूट फजीहत और गुटबाजी के चलते सत्ता में होकर भी कांग्रेसजन सत्ता का स्वाद नहीं ले पा रहे है, विधानसभा चुनाव के बाद से ही रामलाल-रामपाल की जोड़ी ही जिले के हर फैसले करती रही है, बाद में लोकसभा में भीलवाड़ा से जीतकर पहुंचे डॅा. जोशी के बाद जाट-जोशी-शर्मा’ की तिकड़ी ने सत्ता प्रतिष्ठान पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली जिसके चलते विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह, युवक कांग्रेस नेता धीरज गुर्जर तथा हगामी लाल मेवाड़ा जैसे कांग्रेस नेता हाशिये पर चले गये तथा जाट-जोशी-शर्मा’ समूह ने पूरी तरह शासन सत्ता और प्रशासन पर पकड़ बना ली। आज जबकि विधानसभा चुनावों में महज एक साल बचा है, ऐसे वक्त में भी जिले में कांग्रेस बुरी तरह से गुटबाजी की शिकार है और कांग्रेसी नेता एक दूसरे को निपटाने के लिये कमर कसे हुये है।
हरेक विधानसभा क्षेत्र का विश्लेषण करने से पहले हमें मुख्य विपक्षी दल भाजपा के अन्दरूनी हालातों पर भी नजर डाल लेनी चाहिए, कहा जा सकता है कि कांग्रेस के हालात से भी भाजपा के हालात अधिक बदतर है जिलाध्यक्ष सुभाष बहेडि़या जो कि नितिन गड़करी की भांति एक उद्यमी है तथा अपनी उद्यमिता एवं ऐश्वर्य के चलते संघ परिवार के आशीर्वाद के पात्र भी है, उनका भी एक गुट बना हुआ है जिसमें अधिकांशतः जनाधार विहीन नेता है, वहीं वसुंधरा राजे खेमे के खास सिपहसालार राज्यसभा सांसद वी.पी. सिंह का गुट हैं, संघ और वसु ग्रुप दोनों ही एक दूसरे को निपटाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते है। फलस्वरूप एक रचनात्मक विपक्ष के बजाय भीलवाड़ा भाजपा गुटबाजियों में फंसा हुआ एक दबाव समूह ज्यादा दिखाई पड़ती है।
वर्तमान में जिले में भाजपा के 3 विधायक है। भीलवाड़ा से विट्ठल शंकर अवस्थी जो कि संघ के बेहद प्रतिबद्ध स्वयंसेवक और लोकप्रिय नेता है, उन्होंने पार्टी में अपनी पकड़ बेहद मजबूत कर ली है, वहीं आसीन्द विधायक रामलाल गुर्जर, अपनी सादगी और सरल स्वभाव के चलते तथा ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ की नीति पर सतत चलायमान है किंतु यह माना जा रहा है कि इस बार उन्हें गुर्जर समाज के धर्म स्थल सवाईभोज के मुखिया मंहत भूदेवदास अथवा हरजीराम गुर्जर से कड़ी चुनौती मिल सकती है वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मावे के प्रतिष्ठित व्यवसायी शांति लाल गुर्जर को भी मैडम आसीन्द विधानसभा क्षेत्र से चांस दे सकती है। वहीं आसीन्द में कांग्रेस से रामलाल जाट का आगमन तय माना जा रहा है, वहीं नगर पालिका चैयरमेन हगामी लाल मेवाड़ा किसी भी कीमत पर चुनाव लड़ने पर आमदा है, अगर ऐसा होता है तो रामलाल जाट के लिए यह चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन गुटबाजी में बिखरी भाजपा उनके लिये सुकुन की बात होगी। आसीन्द में दलितों व आदिवासियों की भी मजबूत स्थिति है तथा वे अगर कांग्रेस का साथ नहीं देते है तो कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी के लिये जीत हासिल कर पाना लगभग असंभव ही होगा।
धीरज गुर्जर
वहीं जहाजपुर विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान विधायक शिवजीराम मीणा का कोई विकल्प नजर नहीं आता है, इस बार भी उन्हीं को टिकट मिलना तय माना जा रहा है और जीत के भी कयास लगाए जा रहे है क्योंकि जहाजपुर में कांग्रेस के पराजित उम्मीदवार धीरज गुर्जर पूर्व मंत्री रतन लाल ताम्बी तथा यूआईटी भीलवाड़ा के चैयरमेन रामपाल शर्मा के चक्रव्यूह से जूझ रहे है। कहा जा रहा है कि डॅा. जोशी भी उन्हें नापसंद करते है। ऐसे में उनका जहाजपुर से टिकट भी खटाई में पड़ सकता है मगर हेम सुल्तानिया व पृथ्वीराज मीणा आदि धीरज गुर्जर के साथ पूरी शिद्दत से लगे हुए है। माण्डलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के वर्तमान विधायक पी.के. सिंह को प्रधान गोपाल मालवीय तथा पूर्व विधायक भंवर लाल जोशी से सावधान रहने की जरूरत है, वहीं बृजराज कृष्ण उपाध्याय, कैलाश मीणा तथा इंजिनियर कन्हैया लाल धाकड़ भी दौड़ में शरीक है, भाजपा के बागी बद्री प्रसाद गुरूजी भी भाजपा में वापसी का रास्ता तलाश रहे है, मगर उन्हें कोई खिड़की दरवाजा ही नजर नहीं आ रहा है।
भीलवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में बहेडिया की चाल गुलाबचंद कटारिया को लाकर विट्ठल शंकर अवस्थी को साफ कर देने की है मगर कटारिया छोटी सादड़ी के अपने पुराने क्षेत्र को टटोल रहे है, ऐसे में उनका भीलवाड़ा आना संदिग्ध ही है तब भाजपा की मजबूरी होगी कि वह अवस्थी को ही दोहराये। कांग्रेस के लिये तो अनिल डांगी, ओम नराणीवाल जैसे चूक चूके नेता ही बचे है भीलवाड़ा प्रयोग हेतु . ., लेकिन शहर के मुसलमानों की कांग्रेस से नाराजगी को दूर करने के लिये कांग्रेस यहां से अल्पसंख्यक कार्ड भी खेल सकती है तथा पूर्व विधायक हफीज मोहम्मद के पुत्र याकूब मोहम्मद को उम्मीदवारी मिल सकती है, वैसे लाइन में तो नगर परिषद में विपक्ष के नेता अब्दुल सलाम मंसूरी भी है मगर उन्हें कोई भी सीरियस नेता ही नहीं मानता है, शहर में अरविन्द केजरीवाल की ‘‘आप’’ समेत कई छुटपुट पार्टियां भी है मगर उन्हें जनता वोट देकर अपना मत गंवाना उचित नहीं समझेगी, फिल्म कलाकार राजू जांगिड़ भी इस बार भीलवाड़ा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दावेदारी कर रहे है वहीं कुछ लोग दबी जबान से यह भी कहते पाये जाते है कि कांग्रेस और भाजपा नों में ही बाहरी उम्मीदवार की संभावना है।
कालु लाल गुर्जर
गजराज सिंह राणावत
जिला मुख्यालय से निकटवर्ती माण्डल विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के सबसे प्रबल दावेदार पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर है, जिन्हें सुजुकी प्रोसेस के जनरल मैनेजर और बनेड़ा के पूर्व प्रधान गजराज सिंह की मजबूत चुनौती झेलनी पड़ रही है तथा राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि भाजपा इस बार माण्डल क्षेत्र में राजपूत समाज के गजराज सिंह को टिकट देने का मन बना चुकी है क्योंकि कालु लाल गुर्जर से कार्यकर्ता तो नाराज है ही, गुर्जर समुदाय के उम्मीदवार से दलित सहित कई जातियां भी नाखुश है।
कांग्रेस के वर्तमान विधायक तथा पूर्व मंत्री राम लाल जाट के क्षेत्र बदलने की चर्चा जोरों पर है, ऐसे में उनके विकल्प के रूप में रामपाल शर्मा अथवा उनकी पत्नि मोना शर्मा को लोग स्वाभाविक रूप से उम्मीदवार के रूप में देख रहे है। निम्बाहेड़ा जाटान के पूर्व सरपंच गोपाल तिवाड़ी ने अपनी आर्थिक सुदृढ़ता और अपने छोटे भाई विनोद तिवाड़ी को ब्लॅाक कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाकर राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है तथा उन्होंने कांग्रेस टिकट की दावेदारी करने तथा टिकट नहीं मिलने पर बसपा अथवा निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली है ऐसा बताया जा रहा है। प्रबल दावेदार के रूप में पूर्व विधायक विजय सिंह के सुपुत्र राजपुरा ठाकुर दुर्गपाल सिंह का भी नाम सामने आ रहा है, उन्होंने भी टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके सबको चकित कर दिया है।
कैलाश त्रिवेदी
रायपुर-सहाड़ा क्षेत्र की भाजपा डॅा. रतन लाल जाट तथा रूप लाल जाट नामक दो खेमों में स्पष्ट विभक्त है, लादू लाल पितलिया की इस बार उम्मीदवारी प्रबल है मगर पूर्वमंत्री डॅा. रतन लाल जाट की पकड़ क्षेत्र व ऊपर मजबूत हुई है। इस बार उनका पुत्र कमलेश चौधरी (प्रधान-पंचायत समिति सहाड़ा) भी है तथा डॅा. जाट पूरे वक्त खूब सक्रिय है, ऐसे में उन्हीं को टिकट मिलेगा, ऐसा माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस के वर्तमान विधायक कैलाश त्रिवेदी को भूमि विकास बैंक के चैयरमेन चेतन प्रकाश डिडवाणिया के अलावा कोई खास चुनौती नहीं है तथा उन्होंने भी अपनी पकड़ बरकरार रखी है।
बनेड़ा-शाहपुरा की सुरक्षित सीट पर वर्तमान में महावीर जीनगर कांग्रेस के विधायक है, इस बार जाट-जोशी-शर्मा’ तिकड़ी जिला प्रमुख सुशीला सालवी को उम्मीदवार बनाने जा रही है, जिनकी बहुत बुरी हार की भविष्यवाणी अभी से की जा सकती है। वहीं जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॅा. आर.सी. सामरिया के भी चुनाव मैदान में कांग्रेस से उतरने की संभावना है। प्यारे लाल खोईवाल जैसे नेताओं के भी नाम यदाकदा सामने आते है। कहा जा रहा है कि जनता इन्हें वोट नहीं देगी इसलिये पार्टी भी इन्हें टिकट नहीं देगी। मगर कुछ स्थानीय नेता जरूर कोशिश में लगे हुये है जिनमें अम्बेड़कर मंच के नेता देबी लाल बैरवा का नाम प्रमुख है। भाजपा इस बार शाहपुरा से पूर्व मंत्री मदन दिलावर को उम्मीदवार बनाने जा रही है, संघ के लोग भी दिलावर को चाहते है मगर वसु खेमा उन्हें निपटाने के लिये कमर कसे हुये है वहीं सुभाष बहेडि़या मदन दिलावर को लाने पर आमदा है जिसका तमाम स्थानीय लोग अभी से विरोध जता रहे है, वहीं कालु लाल गुर्जर रामदेव बैरवा नामक (बसपा से कांग्रेस होते हुये भाजपा में पहुंचे) युवानेता को आगे किये हुये है वहीं भवानी राम मेघवंशी, गोपाल बुनकर, नाथु लाल बलाई, राजू खटीक, प्रभु खटीक, अविनाश जीनगर, मोहर रेगर आदि भी चुनाव तैयारियों में जुटे हुये है लेकिन भाजपा हो अथवा कांग्रेस शाहपुरा में दोनों पार्टियां आपसी गुटबाजी व सिर फुटौव्वल के चलते एक दूसरे को ठिकाने लगाने में मशगूल है, रिजर्व सीट का निर्णय जनरल लोगों के जरिये ही होता है जबकि जनरल सीटों का निर्णय जिले में दलित आदिवासी करते है, ऐसे में देखते है कि किसका भाग्य प्रबल होता है जो राज्य विधानसभा की दहलीज तक पहुंचता है। फिलहाल तो चौसर बिछ रही है, शतरंज के पासे अभी चलने बाकी है। किसी ने ठीक ही तो कहा है - चांदनी बाकी है और शराब बाकी है, अभी तो तेरे मेरे बीच सैकड़ों हिसाब बाकी है। तो इंतजार कीजिये राजनीतिक नफे नुकसान और सियासी हिसाब किताब का।
 लेखक  www.khabarkosh.com के Sub-editor है।