Saturday, April 13, 2013

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा - राज नहीं समाज बदलने की कवायद


  • लखन सालवी

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा का रथ 
चुनावी वर्ष है, जहां राजनैतिक पार्टियां अपनी छवि सुधारने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में यात्राएं निकाल रही है वहीं राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में इन दिनों एक ऐसी यात्रा निकाली जा रही है जो राजनीति से परे है। यह यात्रा दलित, आदिवासी, घुमन्तु एवं वंचित वर्ग के लोगों के द्वारा निकाली जा रही है

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा 5 अप्रेल को भीलवाड़ा के सीरडि़यास गांव स्थित अम्बेडकर भवन से रवाना हुई जो भीलवाड़ा व राजसमन्द जिले के सैकड़ों गांवों में होती हुई 14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में पहुंचेगी जहां डॅा. भीमराव अम्बेडकर की 122वीं जयंती के अवसर में महासमारोह आयोजित किया जाएगा। दलित आदिवासी एंव घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान (डगर) के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने कहा कि हम महापुरूषों को भूले नहीं इसके लिए यह यात्रा निकाली जा रही है। हम इस यात्रा के जरिये कबीर, फुले एवं के संदेश को जन-जन तक पहुंचाकर समाज में जागृति लाने का प्रयास कर रहे है।

‘‘जय भीम’’ व ‘‘जिन्दाबाद’’ के नारे लगाकर रैली निकालते युवा
यह चेतना यात्रा जैसे ही गांवों में पहुंचती है, गांव के दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोग ढ़ोल नगाड़ों के साथ यात्रियों पर पुष्प वर्षा करते है, उन्हें तिलक लगाते है, उन्हें फूल मालाएं पहनाते है और राजस्थान की संस्कृति के अनुसार यात्रियों को साफे बंधवाते है। कई गांवों व कस्बों में तो विशाल वाहन रैलियां भी निकाली गई। चेतना यात्रा को वाहन रैली के रूप में सम्मान सहित एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचाया गया। रैलियों में साथ चले वाहनों पर लगे लाल झण्ड़ों पर लिखे ‘‘जय भीम’’ व ‘‘जिन्दाबाद’’ के नारे एक नए किस्म के वामपंथी अम्बेडकरवाद का संकेत भी देते है। जिसने भी राजनीतिक लोगों के माथे पर खिंच  की लकीरें खींच दी है।

खेतों में काम के बावजूद यात्रा को अपार समर्थन

सम्मलेन में उपस्थिति जन
महात्मा फुले विचार मंच के जिलाध्यक्ष महिपाल वैष्णव ने बताया कि 15 से 40 साल के युवाओं के द्वारा यह यात्रा निकाली जा रही हैं। यात्रा के दौरान कहीं पर कार्यकर्ता सम्मेलन तो कहीं दलित सम्मेलन, कहीं आध्यात्मिक सम्मेलन तो कहीं स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित किए जा रहे है। गांवों, कस्बों व शहरों में निकाली गई वाहन रैलियां में युवाओं की भागीदारी सर्वाधिक रही है। हालांकि यात्रा में यात्री के रूप में पूरे समय 40-50 लोग निरन्तर चल रहे है लेकिन गांवों में आयोजित सम्मेलन व रैलियों में दलित वर्ग के लोगों की भारी उपस्थित यह साबित करने के लिए काफी है कि यात्रा को अपार जन समर्थन मिल रहा है। इस समय गांवों में खेतों में भारी काम है बावजूद इसके गांवों की महिलाएं, पुरूष व युवा यात्रा के समर्थन में आ रहे है और जगह-जगह पर यात्रा का स्वागत कर रहे है। यात्रा में शामिल अधिकतर लोग दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के है। विभिन्न स्थानों पर आयोजित सम्मेलनों को यही लोग सम्बोधित कर रहे है अर्थात् वक्ता भी इनके और श्रोता भी इन्हीं के। यह वंचित वर्ग के लोगों के आत्मनिर्भर होने की दिशा में शुभ संकेत माना जा रहा है।  


कहीं जय भीम-जय भवानी तो कहीं जय भीम-जय रूपसिंह के नारे 

सर्वण जातियां भी अब दलित समुदाय के साथ जुड़कर एकता के नारे लगाने लगी है। यात्रा के दौरान भीलवाड़ा जिले करेड़ा क्षेत्र के राजपूत नेता मोहन सिंह ने धुंवाला में आयोजित सभा में कहा कि राजपूत व दलित समुदाय के बीच पीढि़यों से नाता रहा है। दलित समुदाय राजपूत समाज से जुड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि दलित व राजपूत समुदाय के लोगों में भेदभाव अपेक्षाकृत कम ही रहा है अतः इन समुदायों को मिलकर बदलाव के लिए कार्य करने चाहिए। उन्होंने जय भीम-जय भवानी का नारा दिया। वहीं यात्रा के दौरान कई जगहों पर घुमन्तु समुदायों के लोगों द्वारा सम्मेलन आयोजित किए गए। शाहपुरा की डाबला चंदा पंचायत कालुराम बंजारा द्वारा आयोजित घुमन्तु सम्मेलन में जय भीम-जय रूपसिंह के नारे भी लगाए गए। 

यात्रा के दौरान सभा को सम्बोधित करते परशराम बंजारा
डगर के प्रदेश संयोजक परशराम बंजारा ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि घुमन्तु समुदाय के लोग बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के योगदान को स्वीकारने लगे है तथा अब राजस्थान की 52 घुमन्तु जातियां अपने संविधान प्रदत्त अधिकार को प्राप्त करने की लड़ाई लड़ने को तत्पर हो रहे है।

अम्बेडकर सांस्कृतिक विचार मंच आसीन्द के तहसील संयोजक डालचंद रेगर का भी कमोबेश यही कहना है कि बाबा साहेब अम्बेडकर को देश के तमाम वर्गों तक ले जाने की शुरूआत इस यात्रा ने कर दी है। उनका कहना है कि यह यात्रा स्वतः स्फूर्त है, इसका किसी राजनैतिक पार्टी से इसका कोई लेना-देना नहीं है और इसको वंचित वर्ग के लोग ही चला रहे है। यानि की फण्ड भी उनका और फण्डा भी उनका और गजब तो यह है कि इस बार डण्डा और झण्डा भी उनका ही है। एक तरह से कहा जाये तो यह दलितों के आत्मनिर्भर बनने की शुरूआत है जिससे राजनैतिक दलों व राजनेताओं में खलबली मची हुई है।

डॅा. भीमराव अम्बेडकर जयंती समारोह समिति के संयोजक राजमल खींची ने बताया कि इस यात्रा को प्रशासन ने काफी गंभीरता से लिया है। यात्रा जहां-जहां जा रही है पुलिस प्रशासन वहां सुरक्षा के बंदोबस्त कर रहा है। यात्रा में एक अद्भूत रथ शामिल है जो दरअसल एक ट्रक है जिस पर बड़े-बड़े बैनर लगाए गए है जिनमें संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले व डॅा. भीमराव अम्बेडकर के विचार लिखे है।

अत्याचार बर्दाश्त नहीं, चेतना यात्रा ने ली पीडि़तों की सुध

महापुरूषों के संदेश को जन-जन पहुंचाने के साथ-साथ यह यात्रा उन गांवों में भी जा रही है जहां दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोगों के साथ अत्याचार की घटनाएं हुई है। यात्रा के लोग उन गांवों में जाकर पीडि़त लोगों से मिल रहे है उन्हें न्याय दिलवाने के लिए पैरवी करने के साथ-साथ उन्हें हिम्मत भी दिला रहे है। 

खून से सने कपड़े दिखाता बन्ना लाल 
यात्रा जब राजसमन्द जिले की भीम तहसील के शक्करगढ़ गांव में पहुंची तो यहां दलित परिवार के बन्ना लाल ने बताया कि मजूदरी मांगने के कारण उस पर सर्वण जाति के एक युवक ने तलवार से हमला कर जान से मारने का प्रयास किया। तलवार के वार से बन्ना लाल के सिर पर गंभीर चोट आई और ईलाज के दौरान उसके सिर में 18 टांके लगाए गए। पुलिस ने अनुसूचित जाति अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की बजाए आईपीसी की धारा 302 व अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर इतिश्री कर ली। वहीं आरोपी अभी भी खुलेआम घूम रहा है। डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने बन्ना लाल व उसके परिवारजनों को आश्वस्त किया कि बन्ना लाल पर जानलेवा हमला करने के  आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही करवायी जाएगी। वहीं उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों से आव्हान् किया कि बन्ना लाल के सिर से बहा खून किसी भी दलित के बहने वाला आखिरी कतरा होना चाहिए। भीम के तहसील कार्यालय के बाहर भी सभा को सम्बोधित करते हुए मेघवंशी ने कहा कि अगर प्रशासन ने बन्ना लाल के मामले में शीघ्र कार्यवाही नहीं की तो आन्दोलन किया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि दलित आदिवासी एवं घुमन्तु जातियों पर कहीं पर भी अत्याचार कदापि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

डगर के जिला संयोजक महादेव रेगर ने बताया कि वैसे तो दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु परिवारों के साथ होने वाले अत्याचार की घटनाओं में डगर हमेशा पीडि़त के पक्ष में खड़ा होता है लेकिन दूर-दराज के गांवों में होने वाले अत्याचार के कई मामले हम तक नहीं पहुंच पाते है ऐसे में चेतना यात्रा के लोग दूर-दराज के गांवों के उन पीडि़तों के पास भी गए जिन पर अत्याचार हुए है। इस दौरान उनकी केस स्टडी लिखी गई और 14 अप्रेल को आजाद चौक में अत्याचार के मामलों से प्रशासन को अवगत कराकर कार्यवाही की मांग की जाएगी।

सभा को सम्बोधित करते निखिल डे
भीलवाड़ा जिले की आसीन्द तहसील के जगपुरा गांव में दलित स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित किया गया। चेतना यात्रा के यहां आने के पीछे एक और मकसद भी था, वो था अपने अधिकारों के लिए लड़ रही दलित महिला लेहरी देवी को ताकत देने का। लेहरी देवी ने जगपुरा के भारत सिंह राजपूत नाम के व्यक्ति से ढ़ाई लाख रुपए मंे एक मकान खरीदा। विक्रेता ने मकान की रजिस्ट्री भी लेहरी देवी के नाम करवा दी। मकान पर कब्जा एक माह बाद देने की बात हुई लेकिन एक माह बीतने पर विक्रेता ने मकान खाली करने से इंकार कर दिया। तब से ही लेहरी देवी मकान पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष कर रही है। जानकारी के अनुसार सर्वण जाति के लोग नहीं चाहते कि कोई दलित परिवार उनके मोहल्ले में आए। 

यहां पर आयोजित दलित स्वाभिमान सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के सदस्य निखिल डे ने कहा कि लेहरी देवी अपने संवैधानिक हक की मांग कर रही है और कानून के दायरे में कर रही है इसके बावजूद भी उसे आज तक न्याय नहीं मिलना शर्म की बात है। उन्होंने लेहरी देवी के संघर्ष में एकजूटता दिखाने और उसके अधिकार को प्राप्त करने के संघर्ष में संगठन की मदद का भरोसा दिया। चेतना यात्रा के बारे में बोलते हुए निखिल डे ने कहा कि हमारा लोकतंत्र ही इसलिए जीवित है क्योंकि समाज में ऐसी यात्राएं निकलती है और ऐसी यात्राएं बाबा साहेब को दलितों का नहीं वरन इस पूरे देश का एवं मानवता का मसीहा बनाती है। उन्होंने कहा कि हमें संगठित होकर दलित अत्याचार के खिलाफ आवाजें उठानी पड़ेगी। 

दलितों में परस्पर भोज का आयोजन: भेदभाव मिटाने की मुहिम

चेतना यात्रा के दौरान दलित व आदिवासी जातियों के मध्य व्याप्त भेदभाव को दूर करने का संदेश देते हुए कई जगहों पर सामूहिक भोजों का आयोजन किया गया। इन सामूहिक भोज के कार्यक्रमों में सभी वर्गों के लोगों ने एक साथ एक जाजम पर भोजन ग्रहण किया। यात्रा से जुड़े डगर के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने बताया कि दलितों, आदिवासियों एवं घुमन्तुओं के बीच के भेदभाव को खत्म करना अतिआवश्यक है अन्यथा भेदभाव को मिटाने की बातें करना बेमानी है।

उन्होंने यात्रा की सफलता के बारे में बताते हुए कहा कि इस दौरान कहीं आदिवासी सम्मेलन हुआ तो कहीं दलित सम्मेलन, हर दिन एक ना एक जगह पर घुमन्तु सम्मेलन भी हो रहा है। जिस प्रकार तकरीबन दो जिलों की 10 विधानसभा क्षेत्रों में इस यात्रा को समर्थन दिया मिला, वह अकल्पनीय है। 

हथाई पर एक साथ बैठे महिला पुरूष
समानता के अधिकार की पैरवी: महिलाओं को दिलाया बराबरी का अधिकार

कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा के संयोजक परशमराम बंजारा ने बताया कि यात्रा के दौरान राजसमन्द जिले के शक्करगढ़ तथा भीलवाड़ा जिले के चिताम्बा गांव की हथाई पर सभा का आयोजन किया गया। देखा कि सभी महिलाएं हथाई के नीचे बैठी थी वहीं पुरूष हथाई पर बैठे थे। यात्रा के संयोजक ने वंचित समुदाय से आव्हान् किया संविधान में सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है ऐसे में सभी के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने बताया कि इन दोनों स्थानों पर लोगों ने प्रण लिया कि वे महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करेंगे उन्हें नीचे नहीं बिठायेंगे। उन्होंने हथाई से नीचे बैठी महिलाओं को तुरन्त हथाई पर पुरूषों के साथ बैठा कर समानता की मिसाल कायम की।


जन सहयोग से हो रहे है आयोजन

14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में अम्बेडकर जयंती समारोह आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम के संयोजक राजमल खींची ने बताया कि जिसमें हजारों महिला पुरूष भाग लेंगे।

 संजाड़ी का बाडि़या में यात्रा के संयोजक को
सहायता राशी देते हुए
निश्चित ही इस चेतना यात्रा और अम्बेडकर जयंती समारोह के आयोजन के लिए बड़ी धन राशि की आवश्यकता पड़ी है। चेतना यात्रा व जयंती समारोह का आयोजन भले ही कुछ संगठनों से साझे प्रयासों से किया जा रहा हो लेकिन आयोजन में हो रहे खर्च में जन भागीदारी है। चेतना यात्रा के दौरान गांवों व कस्बों से दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु जातियों के लोगों ने सहयोग राशि दी है। भीलवाड़ा जिले के छोटे से गांव संजाड़ी का बाडि़या के वंचित वर्ग के लोगों को जब पता चला कि यह यात्रा जनसहयोग से चल रही है तो उन्होंने महज 5 मिनट में 5 हजार रुपए एकत्र कर यात्रा को सहयोग के रूप में भेंट किए। वहीं रायपुर तहसील के रामा गांव के नगजीराम सालवी व बोराणा गांव के गोपी लाल सालवी ने 25-25 हजार रुपए की सहयोग राशी दी। ऐसा नहीं है कि यात्रा को केवल एक जाति विशेष या एक वर्ग विशेष के लोगों ने सहयोग किया हो। यात्रा को दलित, आदिवासी, घुमन्तु एवं वंचित वर्ग के लोगों सहित अन्य वर्गों के मानवतावादी एवं इंसानियत को चाहने वाले लोगों ने भी सहयोग किया है और इस तरह तकरीबन डेढ़ लाख रुपए जनसहयोग के रूप में प्राप्त हुआ है। 


राजसत्ता मकसद नहीं-मेघवंशी
वंचित समुदायों को एकजूट करने के लिए रामदेव सेना के गठन की घोषणा

राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोगों का कहना है कि चुनावी साल है इसलिए दलित वर्ग के लोग अपनी ताकत दिखाने के लिए इस यात्रा का आयोजन कर रहे है। वहीं कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा के संयोजक परशराम बंजारा के अनुसार यह यात्रा संत कबीर, महात्मा त्योतिबा फुले व डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचार एवं संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से निकाली जा रही है। 

चेतना यात्रा से जुड़े सामाजिक न्याय समिति जयपुर के सचिव गोपाल वर्मा का कहना है कि यह जन जागृति का कार्य है, चेतना यात्रा के माध्यम से महापुरूषों के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस पूरे आयोजन में जबरदस्त जनभागीदारी दिखी है। जनभागीदारी से  सामूहिकता बढ़ी है एवं दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के बीच का भेदभाव कम होता नजर आ रहा है और वंचित लोग एकजुट हो रहे है। 

शाहपुरा में प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए 
सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने शाहपुरा में आयोजित प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया कि चेतना यात्रा किसी पार्टी या किसी राजनेता के लिए नहीं निकाली जा रही है। उन्होंने साफ किया वो किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं है और ना ही राजनीति में जाना चाहते है। उल्लेखनीय है कि भंवर मेघवंशी को लेकर शाहपुरा क्षेत्र में कयास लगाए जा रहे थे कि अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट होने के कारण मेघवंशी यहां से चुनाव लडेंगे। मेघवंशी ने इस तरह की राजनैतिक अटकलों पर विराम लगाते हुए स्पष्ट किया कि न वो किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होंगे और ना ही चुनाव लडेंगे क्योंकि राजसत्ता उनका मकसद नहीं है, समाज में बदलाव के लिए निरन्तर कार्य करना है। उन्होंने दलित आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए उपरोक्त वर्गों के 5000 युवाओं की एक रामदेव सेना का गठन की घोषणा भी की जो शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीकों से न्याय समानता के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष करेगी। 


खैर, चेतना यात्रा अपने मकसद को लेकर आगे बढ़ रही है, वहीं इस यात्रा ने जिले की आबादी के तकरीबन 45 प्रतिशत मतदाता जो कि अनुसूचित जाति, जनजाति एवं घुमन्तु तथा अल्पसंख्यक वर्गों के है, उन्हें राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक रूप से मजबूत करने का काम किया है तथा पूरे जिले के राजनैतिक समीकरणों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। बहरहाल दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु समुदायों के बीच महापुरूषों के संदेश को लेकर निकाली जा रही चेतना यात्रा में चल रहे यात्री महापुरूषों के संदेश तो जन-जन तक पहुंचा ही रहे साथ ही सभी को 14 अप्रेल को भीलवाड़ा के आजाद चौक में आकर अम्बेडकर जयंती समारोह में आने का न्यौता (निमन्त्रण) भी दे रहे है। उम्मीद की जा रही है कि 10 हजार से भी ज्यादा लोग इस बार जिला मुख्यालय पर अम्बेडकर जयंती मनाने के लिए पहुचेंगे। इस जयंती समारोह में किसी भी स्थानीय जनप्रतिनिधि को आमन्त्रित नहीं किया जाना भी कौतुहल का विषय बना हुआ हैं। आयोजकों का मानना है   कि  इस बार वे केवल दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्गों के लिए आवाज उठाने वाले लोगों को ही स्थान देंगे भले ही वो किसी भी विचारधारा अथवा दल से क्यू ना जोड़े हो। दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्गों की अपनी तरह की अनूठी एवं आत्मनिर्भर इस कबीर-फुले-अम्बेडकर चेतना यात्रा ने पूरे जिले में सभी की नींद उड़ा रखी है। अत्याचारी भय के मारे सो नहीं पा रहे है वहीं दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के लोगों को लम्बी नींद से निरन्तर जगाया जा रहा है। शासन और प्रशासन, राजनेता और नौकरशाही सब कोई हैरान है और वंचित दिखाना चाहते है उनमें भी जान है, उनके हौसलों की भी उड़ान है। 

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