Friday, April 22, 2016

सुन लो दलित विरोधियों . . . अब हम स्वतंत्र हैं, तुम अपनी पाचन शक्ति बढ़ा लो

बच नहीं सकती गोगुन्दा पुलिस, एफआईआर दर्ज करनी ही होगी

  • राजस्थान के उदयपुर जिले के गोगुन्दा से

एक वक्त था जब दलित जातियों को कतिपय ऊंची जातियों के लोगों ने गुलाम बना रखा था। उन्होंने लम्बे समय तक दलितों का शोषण किया। उन्हें मानसिक तौर पर गुलाम बना दिया गया। शोषित दलितों ने गुलामी को ही अपनी नियति समझ ली। ऐसा कई युगों तक हुआ। अंग्रेजों के शासन के दौरान देश अंग्रेजों का गुलाम हो गया लेकिन इस काल में दलितों को कुछ हद तक ऊंची जातियों की गुलामी से मुक्ति मिली। उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद भारत का संविधान बनाया गया। भारत के संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, जीने का अधिकार, शोषण के विरूद्ध अधिकार सहित मूलभूत अधिकार प्रदान किए गए। ये अधिकार केवल दलितों को ही प्रदत्त नहीं हैं, ये अधिकार देश के तमाम नागरिकों को प्रदत्त हैं। 

कई बरसों तक इन अधिकारों की जानकारी दलित समुदायों के लोगों तक नहीं पहुंची। अशिक्षा सबसे बड़ा कारण रहा। देश के कई गैर दलित लोग जिनके मन में दलितों के प्रति संवेदनाएं थी, उन्होंने तथा दलित समुदायों के पढ़े-लिखे लोगों ने इन अधिकारों को दलित समुदायों में फैलाने में योगदान दिया।

संविधान लागू होने के बाद से आजतक समाज में कई परिवर्तन हुए। जहां ‘‘सबका साथ-सबका विकास’’ परिकल्पना पर चलने वाले लोग देश में सामाजिक एकता के लिए प्रयास कर रहे हैं। सम्प्रभू व अखण्ड़ भारत की स्थापना करने में लगे हैं वहीं दूसरी और खासकर ग्रामीण भारत में कई गैर दलितों द्वारा दलितों की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा हैं। कहीं उन्हें दलितों का अच्छे कपड़े पहनना नहीं पच रहा हैं, कईयों को दलित महिलाओं के अच्छे आभूषण धारण करना नहीं भा रहा हैं। कईयों को दलितों के अच्छे मकान सूंई की तरह चुभ रहे हैं। अनेक को दलितों समुदायों द्वारा सामाजिक कार्यक्रम करना पंसद नहीं आ रहा हैं। देखा जाए तो गैर दलित कतिपय लोग दलितों की समृद्धि से कुंठित हो गए हैं। वे दलितों को गुलाम बना कर ही रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं दलित अब भी वो ही कार्य करें जो गैर दलित चाहते हैं। वे उनसे अपने घरों व खेतों में काम करवाना चाहते हैं और मानसिक गुलाम बनाए रखना चाहते हैं।

21 अप्रेल 2016 की रात को गोगुन्दा तहसील के ओबरा कलां गांव में मेघवाल समुदाय के एक परिवार में विवाह आयोजन था। इस परिवार के युवा गुजरात राज्य के शहर में व्यवसाय करते हैं। कड़ी मेहनत कर उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया हैं। विवाह के शुभ प्रसंग पर परिवार के लोगों ने दुल्हें की घोड़े पर बिन्दौली निकालने का निर्णय किया। बैण्ड बाजे मंगवाए गए, घोड़ा मंगवाया गया। घोड़े को सजाया गया। दूल्हा भी बड़ी ही खुशी के साथ घोड़े पर सवार हुआ। बैण्ड़ बाजे वालों ने ‘‘आज मेरे यार की शादी हैं’’ नामक गाने की धुन छेड़ी। समुदाय की युवक-युवतियां, महिला-पुरूष, बच्चें और दूल्हें के साथी सजधज कर बिन्दौली में आए थे। दरअसल विवाह आयोजन में बिन्दौली एक रस्में हैं, बिन्दौली निकालने से गांव के प्रत्येक परिवार को मालूम हो जाता हैं कि किस परिवार के किस सदस्य का विवाह हो रहा हैं। मतलब बिन्दौली विवाह के सार्वजनिक प्रचार-प्रसार का माध्यम हैं। और बिन्दौली दूल्हें के करीबी लोगों के आनन्द लेने का अवसर भी होता हैं।

बीते बुधवार यानि 21 अप्रेल 2016 की रात को मेघवाल परिवार के युवक की बिन्दौली परवान पर थी। बिन्दौली में समुदाय के महिला-पुरूष हर्षोंल्लास के साथ नाच गा रहे थे। तभी कतिपय गैर दलित लोग बिन्दौली के आड़े आ गए और बिन्दौली निकालने पर नाराजगी जताते हुए गाली गलौच करने लगे। उनका कहना था कि ‘‘तुम नीची जाति के होकर इस प्रकार से बिन्दौली कैसे निकाल सकते हो ?’’ वे बेचारे गफलत हैं, उन्हें मालूम नहीं हैं कि देश में 1949 से संविधान लागू हैं। मेघवाल समुदाय के लोग उनकी तरह गूंपे नहीं हैं। उन्हें अपने संवैधानिक हकों की जानकारी हैं। इस बार वे चूके नहीं। तुरन्तु पुलिस थाने में फोन कर बताया कि उनके संवैधानिक हकों का हनन किया गया हैं। कुछ समाज कंटकों ने बिन्दौली को रूकवाया हैं, जबरन दूल्हें को घोड़े पर से उतारा हैं और जातिगत गांलियां निकाली हैं। पीडि़तों की शिकायत के बाद कुछ ही देर बाद गोगुन्दा पुलिस थाने की गाड़ी मौके पर पहुंच गई। पुलिस ने आरोपियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। पुलिस के आते ही आरोपी भी रफ्फूचक्कर हो गए। अंततः पुलिस जाप्ते में बिन्दौली निकाली गई।

गैर दलित कतिपय लोगों को मेघवाल समुदाय के दूल्हे की बिन्दौली नहीं अखरी। उन्होंने बिन्दौली को रोकना चाहा लेकिन अंततः क्या हुआ ? उन कतिपय लोगों को मूंह की खानी पड़ी। बिन्दौली रोकने वाले अब थूंक कर चाट रहे हैं, पुलिस थाने में कह रहे हैं कि हमने बिन्दौली को नहीं रूकवाया। ओबरा कलां के मेघवाल समुदाय के युवाओं का तो इन थूंक कर चाटने वाले जैसे लोगों से यहीं कहना हैं कि भाईयों अब तुम्हारे दादा-परदादा वाला समय नहीं रहा हैं। जितना अत्याचार करना था, जितना गुलाम बनाकर रखना था तुमने बना लिया हमारे पुरखों को। अब हम पर गुलामी लादने का प्रयास मत करो।

ओबरा कलां के मेघवालों ने हिम्मत दिखाई, संवैधानिक हक को पाने के लिए बस एक फोन ही किया और नतीजा सामने हैं। उन्होंने बिन्दौली रोकने वालों के विरूद्ध गोगुन्दा पुलिस थाने में रिपोर्ट दी हैं। वहीं गोगुन्दा थाने से जानकारी मिली कि ओबरा कलां के गोपी लाल मेघवाल की रिपोर्ट पर कार्यवाही करते हुए आरोपियों को पाबंद किया गया हैं। पुलिस थाने की इस मामूली सी कार्यवाही का विरोध करते हुए मेघवाल समुदाय के लोगों ने बताया कि अगर पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर कार्यवाही नहीं की तो वे आन्दोलन करेंगे। मेघवाल समुदाय के अन्य गांवों के लोग ओबरा कलां के लोगों से कह रहे हैं कि ‘‘तुम संघर्ष करों, हम तुम्हारे साथ हैं।’’
मामले की जानकारी मिलने पर दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान (डगर) के संस्थापक भंवर मेघवंशी ने कहा कि दलित की बिन्दौली को रोकने, जातिगत गांलिया देने के आरोपियों के विरूद्ध अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की जानी चाहिए।

बाडमेर के गणपत मेघवाल का कहना हैं कि भारत की आजादी के बाद से कई दलित समुदायों के लोग गुलाम मानसिकता से आजाद हुए हैं। उन्हें संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, वे समानता के लिए लड़ रहे हैं, व्यवसायों में आगे बढ़े हैं, अच्छे घर बना रहे हैं, आर्थिक प्रगति की हैं और मजे से जी रहे हैं। अब जरूरत हैं दलित विरोधी उन गैर दलितों को अपनी पाचन शक्ति बढ़ाने की, उन्हें दलितों की इस आर्थिक प्रगति को पचाना होगा, उनकी स्वतंत्रता को पचाना होगा, उनकी ताकत भी पचाना होगा। अगर अब स्वतंत्रता के अधिकार, समानता के अधिकार का उल्लंघन किया या किसी प्रकार का अत्याचार करने की चेष्टा की तो अंजाम भुगतना होगा। हम अंत तक कानूनी लड़ाई लडेंगे।

जय भीम। 

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