Wednesday, April 20, 2016

श्रम मंत्री जी, क्या ऐसे होगा निर्माण श्रमिकों का कल्याण ?

लखन सालवी
राजस्थान सरकार के श्रम विभाग के मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टी.टी. श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे हैं। हाल ही में विभाग से सहबद्ध भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार मण्डल की योजनाओं में परिवर्तन किए गए और योजनाओं में सहायता राशि बढ़ाने के साथ नवाचार भी किए गए। कई योजनाओं को बंद किया गया हैं जिससे श्रमिक वर्ग में नाराजगी भी हैं। विवाह सहायता जैसी महत्वाकांक्षी व बाल विवाह रोकने में सहायक रही इस प्रभावी योजना को पूर्णतः बंद कर दिया गया हैं। इस योजना के तहत हिताधिकारी को 51,000 रूपए की सहायता देय थी। साईकिल सहायता योजना को पूर्व में ही बंद कर दिया गया था। विश्वकर्मा पेंशन योजना के हाल किसी से छुपे नहीं हैं, श्रमिकों ने इस योजना के तहत रूपए जमा करवाए। यह योजना पूर्व सरकार के समय में बंद कर दी गई। जिन श्रमिकों ने अंशदान जमा करवाया उनको पेंशन का इंतजार हैं। 

वर्तमान में नई योजना के रूप में शुभ शक्ति योजना आरम्भ की हैं। इस योजना के तहत मण्डल से पंजीकृत श्रमिक की पुत्री को कौशल विकास हेतु, स्वरोजगार हेतु, शिक्षा हेतु या विवाह हेतु 55000 रूपए की सहायता प्रदान की जाएगी। इसमें पात्रता के लिए पुत्री का 8वीं पास होना अनिवार्य हैं। श्रमिक वर्ग का मानना हैं कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जहां पंचायतीराज चुनाव में सरपंच प्रत्याशी के लिए 8वीं पास महिला नहीं मिल पाती हैं वहां इस योजना की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता हैं। श्रमिक हितैषी एक बड़े तबके का मानना हैं कि राज्य सरकार को 8वीं पास की अनिवार्यता पर पुनर्विचार करना चाहिए।

मण्डल की योजनाओं में सहायता राशि भी बढ़ाई गई हैं। महिला हिताधिकारी को प्रसूति सहायता के रूप में पुत्र होने पर 20,000 रूपए व पुत्री होने पर 21,000 रूपए की सहायता राषि प्रदान की जाएगी। दुर्घटना मृत्यु होने की दशा में 5 लाख रूपए व सामान्य मृत्यु होने पर 2 लाख रूपए की सहायता राशि दी जाएगी। विदित रहे इससे पूर्व सामान्य मृत्यु की स्थिति में 75,000 रूपए की सहायता राशि दी जाती थी। हिताधिकारियों के शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के लिए छात्रवृत्ति सहायता की राशि को भी बढ़ाया गया हैं। यही नहीं मेधावी छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि भी बढ़ाई गई हैं। श्रमिकों के बीमें के लिए, उनकी भविष्य निधियों के लिए, इलाज करवाने के लिए भी सरकार ने अलग-अलग योजनाएं चला रखी हैं। हाल ही में इस मण्डल से जुड़ने की प्रक्रिया में भी बदलाव किए गए हैं। अब श्रमिक ई-मित्र केंद्रों के माध्यम से आॅनलाइन आवेदन कर सकेगा और श्रम निरीक्षक कार्यालय, पंचायत समिति में, अपनी ग्राम पंचायत में और श्रम से जुड़े अन्य कार्यालयों में आॅफलाइन आवेदन भी कर सकेगा। श्रम मंत्री के आदेश से नई योजनाएं व योजनाओं में परिवर्तन तथा नई प्रक्रिया जनवरी-2016 से लागू हैं। बावजूद जमीनी स्थिति बदहतर हैं। तीन माह गुजर जाने के बाद भी श्रम कार्यालयों में पंजीयन तक के आवेदन नहीं लिए जा रहे हैं। योजनाओं के आवेदनों की स्थिति तो और भी खराब हैं। 

इन सब से बेखबर अशिक्षित व वंचित श्रमिक वर्ग आज भी केवल अपनी बुनियादी जरूरतों के बंदोबस्त में लगा हुआ हैं। इस बंदोबस्त की जीवन शैली में भी श्रमिकों को जीने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही हैं। दमनकारी नीतियां इन्हें श्रम पर आधारित जीवन भी नहीं जीने दे रही हैं। दूसरी ओर श्रम कानूनों में संशोधन कर उनकी कमर तोड़ी जा रही हैं। श्रमिक हितैषी कहलवाने के लिए सरकारों ने श्रमिक की सामाजिक सुरक्षा के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की हैं लेकिन राजनैतिक लोगों की इच्छाशक्ति में कमी व प्रशासनिक व्यवस्था की बेरूखी के कारण जरूरतमंद व पात्र श्रमिकों को इनका फायदा कम ही मिल पा रहा हैं। आंकड़ों के अनुसार राजस्थान सरकार ने गत बजट में इन योजनाओं के लिए 6000 करोड़ रूपए का प्रावधान किया लेकिन महज 65 करोड़ रूपए ही खर्च किए गए अर्थात् बजट का मात्र 1 प्रतिशत ही खर्च किया गया। श्रम कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार व अधिकारियों की संवेदनहीनता भी इन योजनाओं के प्रति श्रमिकों के आर्कषण को कम कर रही हैं। 

श्रमिक संगठनों को कुचलने के प्रयास

उदयपुर के श्रम कार्यालय में मण्डल की योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। कार्यालय में कर्मचारियों व अधिकारियों की असंवेदनशीलता व भ्रष्टाचार की प्रवृति देखने को मिलती हैं। यहां हितलाभ वितरण में भाई भतीजावाद की नीति अपनाई जा रही हैं। कार्यालय के इर्दगिर्द एजेण्टों की भरमार हैं। जो श्रमिक एजेण्टों के माध्यम से श्रम कार्यालय तक पहुंच रहे हैं, उन्हें योजनाओं के लाभ देने में देरी नहीं की जा रही हैं। दूसरी और जो श्रमिक, श्रमिक संगठनों से जुड़कर श्रम कार्यालय में विभिन्न सहायता योजनाओं के तहत आवेदन कर रहे हैं, श्रम विभाग द्वारा छोटी-छोटी कमियां ढूंढ कर उनके आवेदन निरस्त किए जा रहे हैं।  

जिले के श्रमिक संगठित हुए हैं। गोगुन्दा क्षेत्र में निर्माण क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के 4 संगठन हैं। बजरंग, जरगा व सायरा निर्माण श्रमिक संगठन (अपंजीकृत) गोगुन्दा क्षेत्र में हैं तथा बड़गांव क्षेत्र में महिला श्रमिकों का संगठन हैं, जिसे रानी लक्ष्मी बाई निर्माण श्रमिक संगठन के नाम से जानते हैं। इन श्रमिक संगठनों से 5000 से अधिक श्रमिक सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। इनसे जुड़ा प्रत्येक श्रमिक अन्य श्रमिकों के संवैधानिक हकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध नजर आता हैं। संगठन से जुड़े श्रमिक न तो रिश्वत देते हैं और न ही देने देते हैं। संगठन दिनों दिन मजबूत होता जा रहा हैं, जिससे श्रम कार्यालय के भ्रष्ट लोगों की गोगुन्दा क्षेत्र की उपरी आय कम होती जा रही हैं। श्रम कार्यालय के लोग इस संगठन को अपने काम में रोड़ा मान रहे हैं और इन संगठनों को कमजोर करने के लिए संगठन से जुड़े श्रमिकों के आवेदन निरस्त करके उनमें संगठन के प्रति विद्वेष की भावना जाग्रत करने के प्रयास कर रहे हैं। 

केस-1

उदयपुर जिले के गोगुन्दा निवासी मोती लाल मेघवाल विवाह सहायता आवेदन के निरस्त हो जाने से दुःखी हैं। वह भवन निर्माण कार्य में चिनाई का कार्य करता हैं तथा बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन से जुड़ा हुआ हैं। उसने 21 अप्रेल 2015 को अपनी पुत्री नवली का विवाह करवाया था तथा विवाह सहायता के लिए संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय उदयपुर में आवेदन किया था। हाल ही में संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय से उसे सूचना दी गई कि उसका विवाह सहायता आवेदन निरस्त कर दिया गया हैं। कारण पूछने पर बताया गया कि उसके नाम में अंतर हैं इसलिए आवेदन निरस्त हुआ हैं। 

जानकारी के अनुसार मोती लाल मेघवाल के पहचान के दस्तावेज यथा आधार कार्ड, राशन कार्ड में उसका नाम मोती लाल मेघवाल अंकित हैं लेकिन श्रम कल्याण बोर्ड द्वारा परिचय पत्र में उसका नाम मोती मेघवाल दर्ज हैं यानि उसके नाम में ‘‘लाल’’ शब्द अंकित नहीं हैं। बस इसी ‘‘लाल’’ शब्द के अंकित न होने के कारण संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय द्वारा उसका विवाह सहायता आवेदन निरस्त कर दिया गया हैं। 

मोती लाल ने विवाह सहायता दिलवाने की मांग को लेकर 8 फरवरी को जिला कलक्टर को ज्ञापन दिया और उसके बाद 18 मार्च को राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाई लेकिन उसकी शिकायत की अभी तक सुनवाई नहीं हुई हैं।

केस-2


विधवा के हक के हनन से भी नहीं चूका विभाग

आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र व श्रम कल्याण बोर्ड के परिचय पत्र में धापू गमेती के पति का नाम देवी गमेती दर्ज हैं। धापू बाई विधवा महिला हैं तथा 5 बच्चों का लालन-पालन कर रही हैं। राशन कार्ड में उसका नाम धापू बाई की बजाए धापूड़ी अंकित कर दिया गया और उसके पति का नाम देवी लाल की बजाए देवा अंकित कर दिया गया। धापू गमेती ने अपनी पुत्री मोवनी का विवाह 28 अप्रेल 2015 को करवाया और विवाह सहायता के लिए संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय में आवेदन किया। 5 फरवरी 16 को संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय ने पत्र भेजकर सूचना दी कि उसके पति के नाम में अंतर होने की वजह से उसका आवेदन निरस्त कर दिया गया हैं।

तो फिर कैसे मिली अंत्येष्ठि सहायता

दो वर्ष पूर्व धापू बाई के पति देवी लाल की मृत्यु हो गई। धापू बाई ने अंत्येष्ठि सहायता के लिए आवेदन किया, तब विभाग द्वारा उसे अंत्येष्ठि सहायता प्रदान की गई। उसका कहना हैं कि नाम में अंतर के कारण विवाह सहायता आवेदन को निरस्त कर दिया गया तो पति की मृत्यु पर अंत्येष्ठि सहायता कैसे जारी की गई। 

धापू बाई अशिक्षित हैं मगर जागरूक हैं। वह बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन से जुड़ी हुई हैं तथा श्रमिकों के हकाधिकारों के लिए पैरवी करती हैं। वह आए दिन महिलाओं के विभिन्न मुद्दों पर पैरवी करने के लिए संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय में जाती रहती हैं। वह विभाग के असंवेदनशील व अकर्मण्य कर्मचारियों व अधिकारियों की आंख की किरकिरी बनी हुई हैं। 

विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि धापू बाई को विवाह सहायता नहीं देने के लिए सभी कर्मचारी एकजूट हैं। धापू बाई जैसी जागरूक व मजबूत महिलाओं के कारण उनकी उपरी आय पर असर पड़ता हैं इसलिए वे उसे विवाह सहायता का लाभ नहीं देकर उसे कमजोर करना चाहते हैं। 

बकौल धापू बाई वह किसी सरकारी योजना का लाभ लेने मात्र के लिए असंगठित मजदूरों के लिए काम नहीं कर रही हैं बल्कि असंगठित श्रमिक परिवारों के उत्थान के लिए कार्य करना चाहती हैं। उसे लेशमात्र भी दुःख नहीं हैं कि संगठन से जुड़े होने के कारण उसे लाभ नहीं दिया जा रहा हैं। 

वह विधवा हैं,  5 बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उस पर हैं। वह विवाह सहायता योजना की असल पात्र हैं, मगर विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों की दुर्नीति के कारण उसे आर्थिक सहायता नहीं मिल पा रही हैं। उसने हाल ही में 16 मार्च को राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाई हैं।

केस-3

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सायरा पंचायत समिति क्षेत्र के बौखाड़ा गांव के परताराम गुर्जर को भी विवाह सहायता योजना का लाभ नहीं दिया जा रहा हैं। वह सायरा निर्माण श्रमिक संगठन से जुड़े हुए हैं। मण्डल से जारी परिचय पत्र में इनकी बेटी मंथरा का नाम चंदा दर्ज हो गया हैं। इन्होंने पिछले वर्ष 28 अप्रेल 2015 को अपनी बेटी का विवाह करवाया और विवाह सहायता के लिए मण्डल में आवेदन किया। अब मण्डल उन्हें यह कह कर विवाह सहायता नहीं दे रहा हैं कि ‘‘तुमने आवेदन मंथरा के लिए किया हैं जबकि परिचय पत्र में मंथरा का नाम ही नहीं हैं।’’ परथाराम गुर्जर की बेटी का का मंथरा हैं और उसके समस्त सरकारी दस्तावेजों में भी नाम मंथरा ही अंकित हैं। आवेदन करने के बाद परताराम गुर्जर ने अपनी पुत्री का नाम मंथरा होने का शपथ पत्र देने के साथ मंथरा के जन्म प्रमाण की प्रति, अंकतालिका की प्रति व अन्य दस्तावेजों की प्रतियां भी दी। श्रम कार्यालय ने किस आधार पर परथाराम गुर्जर के परिचय पत्र में बेटी का नाम मंथरा दर्ज किया यह जांच का विषय हैं। लेकिन अभी तो मंथरा और चंदा के फेर में परताराम को विवाह सहायता की राशि जारी नहीं की जा रही हैं। 

यह तो महज चंद उदाहरण हैं। नामों में अंतर के ऐसे दर्जनों मामले हैं, जिनमें श्रम कार्यालय ने विभिन्न सहायता योजनाओं के आवेदनों को निरस्त कर दिया हैं। बहरहाल पीडि़त श्रमिकों ने जिला कलक्टर, श्रम मंत्री को अपनी समस्या से अवगत कराया हैं साथ ही राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर भी शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई हैं। 

भारोड़ी गांव निवासी तख्त सिंह श्रमिक संगठन में पदाधिकारी हैं। उनकी पुत्रवधु लक्ष्मी देवी भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार मण्डल से पंजीकृत हैं। वर्ष 2012 में उसने प्रसूति सहायता के आवेदन किया लेकिन उसे प्रसूति सहायता जारी नहीं की गई। लक्ष्मी देवी ने श्रम विभाग के सैकड़ों चक्कर काटे, अंत में तो उसे यह तक कह दिया गया कि उसका आवेदन कार्यालय में नहीं हैं। मार्च-2016 में तख्त सिंह ने कार्यालय में जाकर कर्मचारियों को खरी खोटी सुनाई तब जाकर उन्होंने रद्दी के रूप में पडे फाइलों के ढ़ेर से लक्ष्मी देवी की फाइल निकाली और संयुक्त श्रम आयुक्त ने प्रसूति सहायता राशि की स्वीकृति दी। 

गोगुन्दा-सायरा क्षेत्र में कार्यरत बजरंग, सायरा, जरगा व रानी लक्ष्मी बाई निर्माण श्रमिक संगठनों से जुड़े श्रमिक गेहरी लाल मेघवाल, देवी लाल गमेती, मोती लाल गमेती, धापू बाई मेघवाल सहित दर्जनों श्रमिकों का कहना हैं कि संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय द्वारा श्रमिकों को हर मामले में परेशान किया जा रहा हैं। 

बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन से जुड़े 100 से अधिक श्रमिकों ने बताया कि मार्च-2015 में गोगुन्दा में एक शिविर लगाया गया। उस शिविर में उन्होंने हिताधिकारी के रूप में पंजीकृत होने के लिए आवेदन किए लेकिन अभी तक उन्हें परिचय पत्र नहीं दिए गए हैं। जिन लोगों के परिचय पत्र बनाए गए उनमें जानबूझ कर भारी कमियां रखी गई हैं। हिताधिकारी के नाम, उनके परिजनों के नाम व उनकी उम्र गलत लिख दी गई। 

जसोदा को बनाया फफोड़ा
केस-1 
दादिया गांव के प्रकाश पिता भैरू लाल मेघवाल ने श्रम विभाग के कर्मकार मण्डल से जुड़ने के लिए आवेदन किया। श्रम विभाग उदयपुर द्वारा जारी किए गए हिताधिकारी परिचय पत्र में परिवार के सदस्यों के नाम भी गलत अंकित किए गए हैं। प्रकाश मेघवाल की पत्नि का नाम जसोदा बाई हैं जबकि परिचय पत्र में जसोदा बाई की जगह फफोड़ा अंकित किया गया हैं। 
कार्यस्थल का पता - नरेगा जी

केस-2
श्रम विभाग द्वारा जारी प्रभु लाल के परिचय पत्र में नियोजक का नाम नरेगाजी अंकित किया गया र्हैं। 


गांव का नाम नीचराय
केस-3
किशन लाल के पिता का नाम गलत दर्ज हुआ हैं। वहीं इसका निवास नीचराय में बताया हैं कि जबकि गोगुन्दा तहसील में नीचराय नाम का कोई गांव नहीं हैं। 


केस-4
सोवनी बाई परिचय पत्र में अपने नाम को सुधरवाने के लिए चक्कर काट रही हैं। उसका कहना हैं कि उसने परिचय पत्र बनवाने के लिए पहले से ही कई चक्कर काटे थे, अब परिचय पत्र में नाम सुधरवाने के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। परिचय पत्र में उसका नाम सोवनी बाई की जगह सोवमीबा अंकित कर दिया गया हैं। 


पहले भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल की किसी भी योजना का लाभ करने के लिए आवेदन के साथ मूल परिचय पत्र देना पड़ता था। वर्ष 2014 तक जिन श्रमिकों ने योजनाओं के लिए आवेदन किए उनमें से कई श्रमिकों के मूल परिचय पत्र वापस नहीं लौटाए जा रहे हैं। श्रमिकों के परिचय पत्रों को नवीनीकरण करवाने की तिथियां भी निकल चुकी हैं। 

श्रम कार्यालय में आलम यह हैं कि विभाग के अधिकारी जहां एजेण्टों के आगे नतमस्तक दिखाई पड़ते हैं वहीं श्रमिकों को देखकर भड़कते हैं। जिन-जिन श्रमिकों ने भ्रष्टाचार की खिलाफत की या लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया, अब उन श्रमिकों के हितलाभ आवेदनों को निरस्त कर विभागीय अधिकारी श्रमिकों को अपनी ताकत का अहसास करवा रहे हैं। 

श्रमिक संगठन से जुड़े गणेश लाल खैर ने मण्डल की विभिन्न योजनाओं के आवेदनों व स्वीकृति से सम्बधित सूचना चाहने हेतु संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय में सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं भी मांगी लेकिन सूचनाएं उपलब्ध नहीं करवाई गई हैं।

अधिकतर श्रमिक श्रम मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह से उम्मीदें लगाए बैठे हैं कि जिस प्रकार उन्होंने नई योजना आरम्भ की व अन्य योजनाओं में सहायता राशि बढ़ाई, उसी प्रकार वे योजनाओं की क्रियान्विति के लिए भी नवाचार करेंगे।

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