Monday, February 8, 2016

नौसिखिए नहीं, चाणक्य हैं विधायक गमेती



लखन सालवी

उदयपुर जिले गोगुन्दा विधानसभा क्षेत्र के विधायक प्रताप गमेती को राजनीतिक नौसिखियां समझने की भूल कर रहे हैं लोग। महाराणा प्रताप की कर्मभूमि में जन्में प्रताप गमेती को राजनीति विरासत में मिली हैं। उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्धी (अपने व विपक्षी) यह भूल जाते हैं कि प्रताप को राजनीति न केवल विरासत में मिली हैं बल्कि वे स्वयं बरसों से सक्रिय राजनीति में हैं। प्रताप गमेती के पिता भुरा लाल गमेती (भुरा भाई) एक बार सरपंच व दो बार विधायक चुने गए। वहीं प्रताप गमेती की माता रोड़ी बाई भी सरपंच रही। प्रताप गमेती स्वयं तीन बार सरपंच रहे। वर्तमान में उनकी बेटी अणछी गमेती भी सरपंच हैं। अर्थात् प्रताप गमेती को ही नहीं वरन् इनके पूरे परिवार को राजनीति विरासत में तो मिली हैं जिसे वे लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। प्रताप गमेती को आदिवासी समुदाय में जन्मा चाणक्य कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

स्वर्गीय भुरा लाल गमेती की राजनीति: जब-जब टिकट मिला, मुख्यमंत्री भाजपा का बना
प्रताप गमेती के पिता भुरा लाल गमेती अपने जमाने के पहुंचे हुए राजनेता थे। वे न केवल आदिवासी समुदाय के आगेवान थे बल्कि जनता दल से जुड़े क्षेत्र के पहले आदिवासी सक्रिय लीडर थे जो पहले सरपंच बने फिर दो बार क्षेत्र के विधायक रहे। उनके दोनों बार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेक्तावत रहे।

पहली बार: विधायक बने भुरा भाई, मुख्यमंत्री भैरों सिंह
1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने 152 सीटों के साथ सरकार बनाई। 22 जून 1977 को कद्दावर नेता भैरू सिंह शेक्तावत मुख्यमंत्री बने। उस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने गोगुन्दा विधानसभा क्षेत्र से भुरा लाल गमेती को टिकट दिया। उन्हें 12 हजार 783 वोट मिले जबकि उनके विपक्ष में सीपीआई के मेघराज को महज 8743 वोट मिले।

1980 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भुरा लाल गमेती को पुनः टिकट दिया लेकिन इस बार सीपीआई के मेघराज तावड़ बाजी मार गए। वहीं कांग्रेस दूसरे नम्बर पर रही। इस बार मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडि़या बने। इनके बाद शिवचरण माथूर मुख्यमंत्री बने।

1985 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भुरा लाल गमेती को पुनः टिकट दिया लेकिन इस बार कांग्रेस के देवेन्द्र मीणा ने 12081 वोटों से भुरा लाल गमेती को हरा दिया। इस बार मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी बने।

दूसरी बार: विधायक बने भुरा भाई, मुख्यमंत्री भैरों सिंह
1990 के चुनाव में भी भुरा लाल गमेती को टिकट दिया गया। इस चुनाव में उन्हें 23437 वोट मिले वहीं 8561 वोट लेकर कांग्रेस के देवेन्द्र मीणा दूसरे नम्बर पर रहे। इस चुनाव में भाजपा ने कुल 85 सीटें प्राप्त की और राजस्थान में भैरों सिंह शेक्तावत मुख्यमंत्री बने।

1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने महावीर भगोरा को अपना प्रत्याशी घोषित किया। इस चुनाव में भगोरा की जीत हुई। उसके बाद 1998 में जीत की गेंद कांग्रेस के पाले में चली गई। 1998, 2003 व 2008 तक कांग्रेस के मांगी लाल गरासिया चुनाव जीतते रहे और लगातार 15 वर्ष तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 2008 की कांग्रेस सरकार में वे श्रम मंत्री भी रहे, श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने क्षेत्र के श्रमिक वर्ग के लिए जो कार्य किए वे अतुलनीय व प्रशसनीय भी हैं। 

2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रताप गमेती को टिकट दिया। इस चुनाव में इन्होंने 3345 वोटों से मांगी लाल गरासिया को हराया। प्रताप गमेती को 69210 वोट मिले। इस बार राज्य ही नहीं वरन देश भर में भाजपा की लहर चली। जनता के अंदर का करन्ट चुनाव में बाहर निकला और केन्द्र व राज्यों में भाजपा की सरकारें बनी।

विधानसभा चुनाव की जीत की खुशी में प्रताप गमेती बहे नहीं। जीत के पीछे की ताकतों को पहचाना और निरन्तर उन ताकतों को और मजबूत करने पर लगे हुए हैं। क्षेत्र के लिए पेयजल की बात हो, सिंचाई जल की बात हो या वर्षा जल सरंक्षण, कृषि विकास या बिजली, पानी, सड़कों सहित मूलभूत सुविधाओं की बात हो, इन सबके पुख्ता बंदोबस्त के लिए विधायक लगातार प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं।

प्रताप गमेती की एक कमजोरी भी हैं, वो त्वरित व ठोस कार्यवाही को अंजाम नहीं दिलवा पाते हैं लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो यह कमजोरी भी उनकी मजबूती का आधार हैं। 

यह उनकी लम्बी व दूरगामी सोच का ही नतीजा हैं कि विपक्षियों व विरोधियों की लाख कोशिशों के बावजूद भी बसस्टेण्ड़ पर सुलभ शौचालय का निर्माण करवाया जो आज कस्बेवासियों, प्रवासियों व आगन्तुकों के लिए काम आ रहा हैं। विधायक के इस कार्य को हर वर्ग ने सराहा हैं। 

बायपास चौराहें पर चल रहे विकास कार्य के लिए विधायक ने भरसक प्रयत्न किए। नतीजा सामने हैं। वर्तमान में वे गोगुन्दा के बसस्टेण्ड का विकास करवाने के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए आजकल जयपुर में डेरा डाले हुए हैं। उनकी गाड़ी गोगुन्दा से जयपुर के बीच ज्यादा दौड़ती दिखाई पड़ रही हैं। उनकी गाड़ी का यूं दौड़ना गोगुन्दा के लिए शुकून की बात हैं।

यूं तो प्रताप गमेती पूरे विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्य करवा रहे हैं लेकिन गोगुन्दा मुख्यालय पर विकास कार्यों में ज्यादा भाग ले रहे हैं। खास बात हैं कि गोगुन्दा के प्रधान पुष्कर तेली, उपप्रधान पप्पू राणा व सरपंच गागू लाल मेघवाल जैसे सकारात्मक ऊर्जा के धनी लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा हैं। विधायक गमेती का कहना हैं कि इन सभी लोगों के सहयोग के बिना गोगुन्दा का विकास संभव ही नहीं हैं।पिछले दो साल के कार्यकाल में दिखते हुए काम गोगुन्दा में हुए हैं। विकास को दर्शाने वाले इन कामों के लिए सरपंच गागू लाल मेघवाल को भी खूब सराहना मिली हैं। ग्राम पंचायत के सरंपच के तौर पर गोगुन्दा में हुए विकास कार्यों के संदर्भ में उन पर कम दबाव नहीं था लेकिन प्रधान पुष्कर तेली व विधायक प्रताप गमेती के सहयोग के बिना ग्राम पंचायत में इस स्तर के विकास कार्य करवा पाना मुश्किल था। हालांकि विधायक, प्रधान व सरपंच गोगुन्दा में हुए विकास कार्यों का श्रेय एक-दूसरे को दे रहे हैं लेकिन सच यह हैं कि सर्वाधिक श्रेय के योग्य तो सरपंच गागू लाल मेघवाल व ग्राम सेवक भूपेन्द्र सिंह झाला ही हैं।


चूंकि लेख की शुरूआत विधायक प्रताप गमेती की राजनीतिक परिपक्वता को लेकर हुई तो इसका समापन भी उसी बात के अंजाम से करना बेहतर होगा। अमूमन प्रताप गमेती कम बोलते हैं लेकिन जितना बोलते हैं सधा हुआ बोलते हैं। कम बोलना, सधा हुआ बोलना, विकास के मुद्दों पर अड़े रहना व सभी से नम्रतापूर्वक बात करना विधायक प्रताप गमेती की आदत में शुमार हैं। हाल में छाली ग्राम पंचायत के उण्ड़ीथल गांव में आयोजित संगोष्ठि में उपस्थित रहे लोगों ने इसका अहसास किया होगा। राज्यपाल कल्याण सिंह की मौजूदगी में विधायक ने बड़े ही साधारण व शांत तरीके से क्षेत्र के चार-पांच मुद्दों को रखा। मुद्दों को रखने के उनके तरीके से राजनीति के पुरोधा कल्याण सिंह ने जरूर उनकी राजनीतिक चेतना का अनुमान लगाया होगा। राजनीतिक भाषण की बजाए क्षेत्र के विकास के मुद्दों पर बात करना ही आज के समय में अच्छी राजनीति हैं। वैसे हर व्यक्ति राजनीति को अपने-अपने तरीके से परिभाषित करता हैं लेकिन विधायक प्रताप गमेती क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करने को ही राजनीति का मुख्य भाग मानते हैं। इसलिए दावें के साथ कहा जा सकता हैं कि विधायक प्रताप गमेती नौसिखिए नेता नहीं बल्कि गोगुन्दा की राजनीति के चाणक्य हैं। उनके समर्थकों का कहना हैं कि राजनीति को चोटी वाले चाणक्य करते हैं, प्रताप गमेती तो बिना चोटी के चाणक्य हैं जो क्षेत्र का विकास कर रहे हैं। 

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