Wednesday, November 12, 2014

कानूनी शिक्षण अभियान


हरी झण्डी दिखाकर रथ को रवाना करते हुए 
आज (12 नवम्बर 2014) सुबह 10.30 बजे गोगुन्दा केंद्र द्वारा निकाले जा रहे ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ को स्टेप एकेडमी के संजय चित्तोड़ा ने हरी झण्ड़ी दिखाई वहीं मंगल कार्य के लिए मांगलिक नहीं था तो हमारे भाईसाब ने हमें चाय पिलाकर रवाना किया। उल्लेखनीय है कि एक बोलेरो जीप को हमारे द्वारा रथ के रूप में सजाया गया। उस पर लेबर लाइन की तख्तियां, कानूनी सेवा के फ्लेक्स, बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन के बैनर इत्यादि लगाए गए। रथ में लाउडस्पीकर लगाया जिसके माध्यम से कानूनी सेवा का प्रचार प्रसार किया गया। 

रथ में पैरालीगल मालूराम गमेती, भंवर लाल व कलेक्टिव सदस्य पन्ना लाल गमेती, केंद्र के कार्यकर्ता दिलीप गमेती तथा कानूनी शिक्षण एवं पैरवी ईकाई उदयपुर के भास्कर सिंह के साथ मैं भी था। वैसे भास्कर जी दोपहर में हमारे साथ हुए थे। रथ में लाउडस्पीकर को सेट करने का मैंनें ही किया था सो मशीन, माइक व बैट्री को सबसे पीछे वाली सीट पर ही सेट किया। रथ की रवानगी के साथ ही मैं पिछली सीट पर जम गया और जमकर प्रचार प्रचार किया। ऐसा करने से बचपन की ‘‘ठप्पो-ठप्पो रे ठप्पो’’ की यादें ताजा हो गई। पंचायतीरात व विधानसभा चुनावों में बचपन में जीपों में बैठकर खूब चुनाव प्रचार किया करता था। तब ना किसी विचारधारा के साथ था और ना ही किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव था, बस बालमन को चुनाव प्रचार करने में आनन्द आता था इसलिए पिताजी की भंयकर डांट के बावजूद भी प्रचारों की गाडि़यों में माइक पर चिल्लाना अच्छा लगता था। माइक पर बोली जाने वाली पंक्तियां आज भी याद है . .  भाईयों और बहनों, आपके अपने लाडले, सेवाभावी, कर्मठ, लोकप्रिय उम्मीदवार ‘‘फलाणा’’ को चुनाव चिन्ह ‘‘ढिमका’’  पर चैकड़ी की मौहर लगाकर भारी मतों से विजयी बनावें! आश्चर्य!!! मुझे आज भी वे पंक्तियां हूबहू याद है ! 

खैर . . . गोगुन्दा से रवाना होकर ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ बांसड़ा, फूटिया, मोड़ी, छिपाला होते हुए दोपहर 2 बजे भैरूनाथ भोजनालय पर पहुंचा। जहां हम सब ने ‘‘दोपेरी’’ की, नाश्ते में 3 किलो केले और 2-2 समोसे तो हम पहले ही दबा चुके थे। खाने के बाद रैम एक्टिवेट हुई, सैकेण्डरी मैमोरी में हलचल हुई और तन्द्रा टूटी, भई अब तक केवल एक विवाद सामने आया है जिस पर परामर्श दिया गया और प्रार्थी को 14 नवम्बर को लीगल डे पर बुलाया गया। मात्र 25-30 हाजरी डायरियां वितरित हो पाई है, हां कानूनी सेवा की जानकारी व कानूनी शिक्षण जरूर हम 200-50 लोगों को दे चुके थे। 

पर अब रथ की दशा को सुधारते हुए दिशा देना महत्वपूर्ण हो गया। अब तक हमें पता पड़ चुका था कि मजदूर तो मजदूरी करने गए है, गांवों में उनके घरों के दरवाजों पर ताले लटक रहे है, अमूमन गांव वाले भी अपने खेतों में चारा काटने या रबी की फसलें बोने में व्यस्त हैं, ऐसी दशा में क्या किया जाए ? तब तय किया कि रूट पर आ रहे गांवों में अधिक समय गंवाने की बजाए केंद्र से किसी ना किसी रूप से जुड़े गांव के किसी व्यक्ति को सूचना दी जाए कि रथ पुनः गांव में इतनी बजे आएगा और यहां बैठक आयोजित करेंगे। यह भी तय हुआ कि रूट पर कहीं अधिक संख्या में समूह में लोग नजर आयेंगे तो वहां नुक्कड़ सभा करके कानूनी शिक्षण दिया जाएगा या उनसे संवाद किया जाएगा। 

हम आगे बढ़ने ही वाले थे कि इत्ते में मुझे क्लेक्टिव सदस्य खेमराज गमेती का काॅल आ गया, बोले - नमस्कार, मुझे बगडून्दा ग्राम पंचायत में जाना था लेकिन मैं नहीं जा पाया। मजाम गांव की क्लेक्टिव से जुड़ी महिलाएं अपनी समस्याओं को लेकर ग्राम पंचायत बगडून्दा में सुबह 9 बजे से बैठी है आप तुरन्त वहां पहुंचे। अब मैं उलझन में पड़ गया, क्या करूं, क्या ना करूं, न किसी महिला के संपर्क नम्बर थे ना ही ग्राम पंचायत के सचिव या रोजगार सहायक के संपर्क नम्बर थे जो उनसे संपर्क कर मामले को सुलटाता, मैं उधेड़बुन में ही था कि संकटमोचन भास्कर जी हमारे सामने प्रकट हो गए, उन्हें तुरन्त जीप में स्थान दिया और मैं उनकी बाइक लेकर बगडून्दा के लिए रवाना हुआ, उनसे कहा कि रथ को रूट के मुताबिक लेकर आवे, मैं उन्हें बगडून्दा में मिल जाऊंगा।


बगडून्दा पहुंचा तो 8-9 महिलाएं बैठी हुई थी, वे अपने गांव में पिछले एक साल से खराब पड़े हेण्डपम्पों को ठीक करवाने की मांग को लेकर ग्राम पंचायत में आई थी, ग्राम पंचायत खुली थी लेकिन उसमें केवल चैकीदार बैठा था। रोजगार सहायक के मोबाइल नम्बर लिए काॅल करने का प्रयास किया तो पता चला कि नेटवर्क इमरजेंसी मोड़ में है। भला हो चौकीदार का उसने पास के एक कार्यालय से एक फोन लाकर दिया, उससे रोजगार सहायक को काॅल किया तो उसने बताया कि वो विशेष कार्य से पंचायत समिति कार्यालय गया हुआ है। उसे मामले से अवगत कराया गया, उसने चौकीदार से कहा कि वो महिलाओं का मांग पत्र ले लेवें और मुझे आश्वस्त किया वो पावती रसीद शिकायतकर्ता के घर भिजवा देगा। महिलाओं के रूके हुए भुगतान के बारे में उसे बताया उसने कहा कि वो एक-दो दिन में भुगतान करवा देगा। 

महिलाएं खुश होकर घरों को लौट गई, मैं भी ग्राम पंचायत से निकल कर बगडून्दा गांव की चौपाल पर आ गया। वहां बैठकर आगे के रूट पर गौर किया तो पता चला कि यहां से हमें भूत मंगरी जाना है। ‘‘भूत मंगरी’’ का नाम मस्तिष्क में आते ही क्षेत्र में व्याप्त भूतों की दंत कथाओं की ओर ध्यान चला गया और भूत मंगरी के बारे में काल्पनिक दृश्य दृष्टिपटल पर घूमने लगे। सामाजिक कार्यकर्ता विनय-चारूल भरवाड़ के गीत ‘‘मेरे हाथों को ये जानने का हक रे’’ के बोल कानों में पड़े तो मैं भूतों के माया जाल से बाहर निकला, सामने नजर गई तो पाया ‘‘कानूनी शिक्षण रथ’’ बगडून्दा चौपाल के करीब आ चुका था। रथ में बज रह लाउडस्पीकर से ही विनय-चारूल की आवाज सुनाई दे रही थी। यहां सभी साथियों ने बड़े प्रेम से एनर्जी बूस्ट (चाय) को चुस्कियों के साथ पिया। 10-15 प्रवासी श्रमिकों के साथ चर्चा के बाद रथ आगे बढ़ा और उभेश्वर विकास संस्था परिसर के पास होता हुआ बगडून्दा का खेड़ा गांव पहुंचा। यहां राजीव जी व कृष्णा जी के पुराने साथी गल्लाराम जी गमेती ने रथ का स्वागत किया। वे अकेले शख्स थे जो गांव में नजर आए, गांव के अमूमन घरों के दरवाजों पर ताले लटक रहे थे, घड़ी के कांटों की गणित 3.30 बजा रही थी। 

मेरे लेप्पी की घड़ी रात की 11.30 बजा रही है, सुबह जल्दी उठना है क्योंकि सुबह 8.00 बजे रथ रवाना करना है। तो साथियों आज का सफर यहीं पर समाप्त करता हूं, कभी राजीव जी व कृष्णा जी की कर्मस्थली रहे बगडून्दा का खेड़ा से रथ आगे कहां गया ? वहां हमने क्या किया ? आदि जानने के लिए पढि़ए मेरी आगामी पोस्ट . . . 

आपका साथी
लखन 

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