Monday, November 10, 2014

प्रशिक्षण से शुरू हुई बदलाव की बयार

  • लखन सालवी 

बरवाड़ा क्षेत्र में मार्बल फिटिंग ठेकेदार के रूप में बंशी लाल गमेती एक जाना पहचाना नाम है। 26 वर्षीय बंशी लाल को बैलदार के काम से मार्बल फिटिंग ठेकेदार तक के सफर में कई चुनौतियां का सामना करना पड़ा। बकौल बंशी लाल, आजीविका ब्यूरो के कार्यकर्ता मोहन लाल गमेती ने आजीविका ब्यूरो द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में न बताया होता तो वह इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता।

बंशी लाल गमेती उदयपुर जिले के गोगुन्दा उपखण्ड क्षेत्र की करदा ग्राम पंचायत के तमणियां गांव का निवासी है। 2008 में आजीविका ब्यूरो के श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र गोगुन्दा द्वारा मार्बल फिटिंग का आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (एक माह) आयोजित किया। उस दौरान बरवाड़ा क्षेत्र में कार्य कर रहे ब्यूरो के कार्यकर्ता मोहन लाल गमेती ने बंशी लाल को रोजगार परामर्श देते हुए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताया। मोहन लाल ने सुझाव दिया कि उसे मार्बल फिटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त करने चाहिए। बंशी लाल इस सुझाव को आत्मसात करना चाह रहा था लेकिन उसके सामने एक दुविधा थी कि बेरोजगार होकर प्रशिक्षण प्राप्त करें या प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार के अच्छे अवसर तलाश करें! वह बैलदारी का कार्य कर रहा था जिससे उसे 60 रूपए प्रतिदिन के मिल रहे थे। बैलदारी छोड़कर प्रशिक्षण प्राप्त करने जाने का निर्णय करना मुश्किल हो रहा था लेकिन अंततः उसने प्रशिक्षण प्राप्त करने की राह चुनी और प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़कर मार्बल फिटिंग का कार्य सीखा। 

प्रशिक्षण के दौरान मार्बल फिटिंग का कार्य सीखाने के साथ ही जीवन में उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई। उसका कहना है कि प्रशिक्षण के दौरान जीवन कौशल के बारे में भी बताया गया जो जीवन जीने में उपयोगी साबित हो रहा है। 

‘‘बैलदारी तो करता ही था, चिनाई कार्य व
मार्बल फिटिंग कार्य शायद में बिना प्रशिक्षण
के भी सीख लेता लेकिन प्रशिक्षण के दौरान
हमें जीवन जीने की जो कला सिखाई
गई वो मैं शायद ही कहीं ओर सीख पाता।’’
- बंशी लाल गमेती
बंशी लाल की शादी बचपन में ही हो गई थी, 10वीं तक पढ़ने की इच्छा थी लेकिन परिवार के हालात ऐसे हो गए कि पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 2005 में आजीविका के लिए महाराष्ट्र के मुम्बई शहर में प्रवास पर गया और वहां स्टील के चम्मच बनाने की फैक्ट्री में कार्य किया। यहां 8 घंटे काम के बदले मेहनताना 48 रूपए था। 4 घंटे ओवर टाईम कार्य करना पड़ता था जिसके पेटे 24 रूपए अलग से दिए जाते थे। बंशी लाल ने यहां पूरी लगन से कार्य किया, बाद में उसे हैल्पर से आॅपरेटर बना दिया, अब उसकी मासिक तन्ख्वाह 4500 रुपए हो गई मगर प्रतिदिन 12 घंटे काम करना पड़ता। दूसरी तरफ 2500 रूपए तो वहीं खर्च हो जाते, जो बचते वो परिवार के लिए नाकाफी थे। इस कार्य को करते हुए बंशी ने महसूस किया कि वह आर्थिक रूप से कभी मजबूत नहीं हो पाएगा, उसने वापस गांव लौटने का निश्चय कर लिया और 2007 में मुम्बई को अलविदा कह दिया। 

प्रवास से गांव लौटे बंशी को बेरोजगारी खल रही थी, उसने कई जगह काम ढूंढ़े लेकिन कहीं काम नहीं मिला। वह जिस कार्य को करने में दक्ष था वह काम यहां नहीं था और जहां था वहां पूरा मेहनताना नहीं था। बेरोजगारी को दूर करने के गांव में दो ही विकल्प मौजूद थे, पहला - कृषि कार्य व दूसरा-पिताजी के साथ निर्माण कार्यों में मजदूरी करने का (उसके पिता निर्माण कार्य में चिनाई कार्य करते थे।)। उसे दूसरा विकल्प ठीक लगा और वह निर्माण कार्यों में बैलदारी का कार्य करने लगा। यहां उसे 60 रूपए दिहाड़ी मिलती। 

प्रशिक्षण से उसके जीवन में बड़े बदलाव हुए और निरन्तर होते जा रहे है, मार्बल फिटिंग कार्य में दक्ष होकर उदयपुर शहर में एक ठेकेदार के यहां 100 रूपए दिहाड़ी पर 5-6 माह तक कार्य किया। उसके बाद नाथद्वारा में 200 रूपए प्रतिदिन की दर से मार्बल फिटिंग कार्य किया, इस कार्य में इतना परिपक्व हो गया कि वहां कार्य करते हुए 15 दिन ही हुए थे और ठेकेदार ने उसका काम देखते हुए उसकी मजदूरी बढ़ाकर 250 रुपए प्रतिदिन कर दी। उदयपुर, दिल्ली, जोधपुर, भीलवाड़ा सहित कई शहरों में वह मार्बल फिटिंग का कार्य कर चुका है। पिछले 3 साल से वह ठेकेदारी कर रहा है, प्रतिमाह 5-10 मार्बल मिस्त्रियों को वह रोजगार देता है। अब उसे काम ढूंढ़ना ही नहीं पड़ता है, लोग उसे ढ़ूंढ़ते-ढ़ूंढ़ते आ जाते है। अब वह गोगुन्दा क्षेत्र में ही कार्य कर रहा है। उसका कहना है कि उसे यहीं काम मिल जाता है।

प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार पाया और आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुआ, उसने अपना मकान बना लिया है, दुपहिया वाहन भी है। बच्चों को भी गैर सरकारी विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलवा रहा है। वह किसी प्रकार का व्यसन नहीं करता है, वहीं घर, परिवार व समाज में उसे सम्मान मिल रहा है। उसने बताया कि लोग अपने समान किसी को नहीं होने देते है लेकिन मैंनें अपने कई साथियों को मार्बल फिटिंग का कार्य सिखाया है। 

मेरा विवाह 2001 में हुआ जब मेरी उम्र करीब 13 साल थी। मेरे समुदाय में अमूमन कम उम्र में ही शादी करवा दी जाती है। कम उम्र में विवाह होने का ही नतीजा है कि मेरे 3 संतानें है, 2 लड़के व 1 लड़की। लेकिन मैं अपने बच्चों का विवाह कम उम्र में नहीं करूंगा। - बंशी लाल गमेती

व्यसन से मुक्त रहने की बात हो या बाल विवाह न करने की बात हो। अपने सहयोगी को आगे बढ़ाने की बात हो या परिवार को मजबूत करने की बात हो, ये सब उसने प्रशिक्षण में ही सीखा और जीवन में अपना जिसका ही परिणाम है कि उसके जीवन में बड़े बदलाव दिखलाई दे रहे है।

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