Sunday, May 27, 2012

नांदी की हो रही है चांदी


मध्याहन भोजन में अनियमितता मामला

लखन सालवी
सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन के नाम पर चटकारने में कोई पीछे नहीं है। ना स्कूलों के अध्यापक, ना मॅानिटरिंग करने वाले और ना ही भोजन तैयार कर वितरण करने वाली एजेन्सियां। नामीगिरामी संस्थाएं भी चटकारने में ही लगी है फिर चाहे वो नांदी फाउण्डेशन हो या फिर अक्षयपात्र। भीलवाड़ा के नांदी फाउण्डेशन की तो चांदी हो रही है। बच्चों के नाम से भोजन सामग्री उठाकर खुद ही जींम रहे है।
भीलवाड़ा के बापुनगर स्थित नांदी फाउण्डेशन में भीलवाड़ा शहर व सुवाणा पंचायत समिति के सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है। मध्याह्न भोजन को स्कूलों तक वितरण करने की जिम्मेदारी भी नांदी फाउन्डेशन की ही है। यूं तो मध्याह्न भोजन में अनियमितताओं को लेकर आए दिन शिकायतें होती रहती है। लेकिन पिछले दिनों सुवाणा पंचायत समिति के कुल स्कूलों में छात्रों की फर्जी उपस्थिति दर्ज कर मध्याह्न भोजन में अनियमितता करने की शिकायतें की गई थी।
जिला कलक्टर ओंकार सिंह की निर्देश पर सुवाणा के उपखंड अधिकारी राजकुमार सिंह के नेतृत्व एक टीम ने नांदी फाउण्डेशन के रसोईघर व स्टॅाक की जांच की गई। उन्होंने पाया कि स्टॅाक रजिस्टर में अनाज उपलब्धता शून्य दर्ज कर रखी थी जबकि गोदाम में 500 क्विंटल गेहूं एवं 900 क्विंटल चावल पाए गए। अनियमितता पाए जाने पर गोदाम को सीज कर दिया है तथा नगर परिषद को सुपुर्द कर दिया गया है। गोदाम में कुकिंग की बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई है इसलिए गोदाम के बाहर दो गार्ड तैनात किए गए है। वहीं जिला कलक्टर ओंकार सिंह ने विशेष जांच के लिए पंचायतीराज विभाग की आयुक्त अर्पणा अरोरा को पत्र लिखा है। जानकारी के अनुसार मध्याह्न भोजन कुकिंग का भुगतान जिला परिषद द्वारा किया जाता है। 15 मई तक का 40 रुपए का भुगतान किया जा चुका है।
बड़ा सवाल यह उठता है कि सारा अनाज बच्चों को खिला दिया गया तो फिर इतना अनाज कैसे बच गया व मध्याह्न भोजन की कुकिंग व स्टाॅक पर मॅानिटरिंग के लिए कर्मचारी नियुक्त है तो फिर वो क्या कर रह रहे थे ? ऐसा भी नहीं है कि सक्षम अधिकारियों ने स्कूलों का निरीक्षण नहीं किया हो, भीलवाड़ा जिले में अधिकारियों ने खूब निरीक्षण किए। निरीक्षण के दौरान स्कूलों में छात्रों की फर्जी उपस्थिति दर्ज किए जाने के मामले सामने आते रहे है। लेकिन मध्याह्न भोजन की सामग्री में अनियमितता को अधिकारी नजरअंदाज करते रहे जिसका नतीजा यह रहा कि नांदी फाउण्डेशन के लोगों ने 900 क्विटंल चावल और 500 क्विटंल गेहूं बचा लिये। शिकायत और जांच नहीं होने की दशा में ये अनाज कालाबाजारी की भेंट चढ़ सकता था।
बारां जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र किशनगंज व शाहबाद में भी ऐसे कई मामले देखने को मिले है। किशनगंज ब्लॅाक के भंवरगढ़ में संचालित अक्षयपात्र द्वारा किशनगंज व शाहबाद की सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन की सप्लाई की जाती है। दोनों की ब्लॅाकों की दो दर्जन से अधिक स्कूलों में निरीक्षण के दौरान पाया गया कि ऐसे छात्रों की भी छात्र उपस्थित रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज थी जो कि उस दिन स्कूल आए ही नहीं थे। प्रत्येक स्कूल में करीबन 10-15 बच्चों की फर्जी उपस्थिति दर्ज थी। किशनगंज ब्लॅाक के ब्रह्मपुरा गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में तो कई दिनों से बच्चों को पोषाहार भी नहीं दिया गया था जबकि रजिस्टर में सभी बच्चों को पोषाहार दिया जाना दर्शाया हुआ था। हालांकि तत्कालीन उपखण्ड अधिकारी मोहन लाल वर्मा ने बीईओं को सुरेश गोठवाल को शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए थे, लेकिन वो हवा हो गए।
ऐसे ही हाल उन स्कूलों के भी है जहां स्कूलों द्वारा ही मध्याह्न भोजन बनवाया जा रहा है। पिछले वर्ष बूंदी जिले के नैनवां ब्लॅाक के बड़ी पड़ाप गांव के स्कूल में प्रधानाध्यापक बच्चों को रसोईघर के बाहर बच्चों को पंक्ति में खड़े कर चावल बांट रहे थे। अचानक स्कूल में पहुंची पत्रकारों की टोली को देखकर वे सकपका गये और बोले कि ‘‘मैं क्या करूं बचे हुए चावलों को, अपने घर ले जाऊं तो चोर कहलाऊंगा, इसलिए स्कूल के बच्चों को ही बांट देता हूं। अध्यापक ने बताया कि पांचवी तक के बच्चों के लिए 100 ग्राम तथा कक्षा 6 से कक्षा 8 तक बच्चों के लिए 150 ग्राम अनाज सरकार द्वारा मुहैया करवाया जाता है। लेकिन बच्चें इतना अनाज खा नहीं पाते है। अध्यापक ने बताया कि जितना सरकार द्वारा दिया जा रहा है, उतना खर्च नहीं हो पाता है।
नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर शिक्षा विभाग के दो अधिकारियों ने बताया कि बच्चों के लिए दी गई राशन सामग्री के खर्च न होने के पीछे दो बड़े कारण है। पहला - बच्चे 100 ग्राम और 150 ग्राम अनाज नहीं खा पाते है और दूसरा - नामांकन के बावजूद बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते है। उन्होंने बताया कि अध्यापक मजबूर है इसलिए बच्चों की फर्जी उपस्थिति दर्ज करनी ही पड़ती है। जब फर्जी उपस्थिति दर्ज करनी पड़ती है तो पोषाहार में गड़बड़ी भी स्वतः ही हो जाती है। भीलवाड़ा में नांदी फाउण्डेशन में अतिरिक्त पाए गए 900 क्विंटल चावल इसी का एक उदाहरण है।

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