Tuesday, March 19, 2019

अभी तो आबकार ही साहूकार है, इसी के भरोसे चल रही सरकार है . . .

  • लखन सालवी 
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Lakhan Salvi (lakhandb@gmail.com)
कोई तन दुःखी, कोई मन दुःखी, 
कोई धन बिन रहत उदास,
थोड़े थोड़े सब दुःखी,
सुखी राज के दास।
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कहां चली गई लक्ष्मी ?
और क्यों अनमेने है सब ?
क्यूं नहीं जम रही होली की रौनक ?
पता करने में मैं चला, साईकिल पर हो सवार चला . . .
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पता चला लक्ष्मी रूंठ गई,
नेताजी और सेठजी से,
जनता और जनसेवकों से,
व्यापारियों और ठेकेदारों से,
सरपंचों और सचिवों से।
रूंठ गई वो चुनाव लड़नारों से।
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दुःखी हो रहे है सड़कों के ठेकेदार।
परेशान है शराब के दूकानदार।
चिंता में है किसान, पीड़ा झेल रहे है कामगार।
वसूली पर अड़े हुए है अखबार इसलिए खुश नहीं है पत्रकार।
हम सब है परेशान आखिर क्यों नहीं सुन रही है राजस्थान सरकार।
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ओह . . . आड़े आ रहा है निर्वाचन आयोग का एक अधिकार।
रूकवा दिया है भुगतान इसलिए बढ़ गया हम सब पर भार।
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समझ में आ गया अर्थशास्त्र,
जैसी करनी वैसी भरनी,
कुछ ऐसा ही बताते है हमारे धर्मशास्त्र,
आओ अब मिलकर खोजे ब्रह्मास्त्र।
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अरे, पर लक्ष्मी रूंठ कर आखिर कहां गई ?
चुप . . . ये मत पूछो,
अभी तो गए है चुनाव विधानसभा के,
विधायक बनने को कुछ तो खुद ही लुटे थे,
कुछ को कईयों ने लूटा था,
लक्ष्मी को रखा था गिरवी,
फिर शराब, शबाब परोसा था,
कंगाल होना तो लाजमी ही था।
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सब के सब कंगाल है,
समस्या बड़ी जटिल है,
अब तो कदम भी बोझिल है,
हाय रब्बा हम कितने बुझ दिल है।
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अड़े बाबा तुम बताओ लिक्षमी कहां गई ?
सुनो,
चली गई महत्वाकांक्षियों संग,
जम गई सत्ता नशीनों की हवेलियों में
ट्रांसफर हो गई पार्टियों के बैंक खातों में।
कुछ जमा हो गई आबकार में।
फिर उतरेगी तुम्हारे पेट में।
और चढ़ेगी दिमाग में,
इस तरह तुम किसी को भेज दोगे संसद में।
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अभी सब दिवालिये हो गए का ?
नहीं नहीं अभी तो आबकार साहूकार है,
इसी के भरोसे चल रही सरकार है।

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