Tuesday, April 21, 2015

नहीं तो बेघर हो जाती धापू

आर्थिक सहायता दिलवाने व वित्तिय प्रबंधन में धापू का सहयोगी बना केंद्र


अबला धापू बाई की श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ दिलवाने में मदद की गई। योजना के अंतर्गत मिली सहायता राशि से उसे मजबूती मिली, उसने अपने परिवार को बेघर होने से बचा लिया। अब वह सबला हो गई है।
धापू बाई गमेती
उस दिन को याद करते हुए धापू बाई ईश्वर को धन्यवाद देती हैं, जिस दिन उसने भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार मण्डल से पंजीकृत होने के लिए आवेदन किया। जब आवेदन किया तब उसे नहीं पता था कि वो उसके लिए कितना लाभकारी होगा। उसे तो कर्मकार मण्डल के अस्तिव में होने की जानकारी भी नहीं थी। वह कहती है भला हो मजदूर आॅफिस वालों का जिन्होंने उसे कर्मकार मण्डल से जुड़वाया।
अत्यंत गरीब परिवार में पली बढ़ी धापू बाई को स्कूल की चौखट पर पैर रखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका। बचपन में ही उसका विवाह करवा दिया गया। 14 साल की उम्र में उसने बेटी को जन्म दिया। वर्तमान में उसके 7 संतानें हैं। बड़ी बेटी का विवाह करवा दिया, जो अब ससुराल रहती हैं। वर्तमान में धापू बाई के परिवार में 8 सदस्य हैं। उसके पति की पूर्व पत्नि, 4 बेटियां, 2 छोटे बेटे और वह स्वयं। इन सबका पालन पोषण धापू बाई ही करती हैं। परिवार की आय का स्त्रोत धापू बाई की मेहनत हैं। कभी-कभी उसकी दो बेटियां भी मजदूरी करने जाती हैं। जमीन का एक छोटा टुकड़ा हैं जिसमें महज खरीफ की फसल हो पाती हैं। मकान के नाम पर एक कच्चा कवेलूपोश कमरा हैं।
पिछले वर्ष उसके पति देवाराम गमेती की मृत्यु हो गई। लम्बे समय तक गंभीर बीमारी से पीडि़त रहे देवाराम का उसने खूब ईलाज करवाया लेकिन वो नहीं बच पाया। पति जब बीमार हुआ तब घर में फूटी कौड़ी तक नहीं थी। बैंक खाता होना तो दूर की बात, परिवार में से किसी ने बैंक में पैर तक नहीं दिया था। पति के ईलाज के लिए पैसे नहीं थे तो उसने सबसे पहले 20,000 रूपए में अपने गहने गिरवी रखे। गोगुन्दा व उदयपुर के अस्पतालों में ईलाज करवाया लेकिन पति का स्वास्थ्य सुधरने की बजाए बिगड़ता ही गया। परिवार की आय एकदम ढप्प हो गई थी। पति की हालत में दिनों दिन गिरावट आती जा रही थी। किसी ने उसे बताया कि गुजरात के ऊंजा के एक अस्पताल में अच्छा ईलाज होता हैं। उसने पति का ईलाज ऊंजा के अस्पताल में करवाने का निर्णय किया, मगर ऊंजा ले जाने के लिए उसके पास रूपए नहीं थे। मां व भाई से उधार लिए 17,000 रूपए तथा उसके पास जो रूपए थे वो पति के ईलाज व बच्चों के पालन-पोषण में खर्च हो गए थे। अब ईलाज के लिए उसके पास रूपए नहीं थे। उसने कईयों के आगे हाथ फैलाए लेकिन किसी ने उसकी आर्थिक मदद नहीं की। तब उसे अपने खेत को गिरवी रखने का ख्याल आया। उसने 10,000 रूपए में खेत गिरवी रख दिया। खेत में मक्का की फसल खड़ी थी लेकिन उसके लिए पति का ईलाज करना अधिक महत्वपूर्ण था। उसने बिना कुछ विचार किए फसल सहित खेत को 10,000 रूपए में गिरवी रख दिया और पति को ईलाज के लिए ऊंजा ले गई। ऊंजा के अस्पताल में भी बीमारी का ईलाज नहीं हो सका तब वह बीमार पति को लेकर पुनः घर लौटी।
परिवार, रिश्तेदार व समाज के लोगों का दबाव था कि वो अपने पति को देवी-देवताओं के वहां ले जाए। उनकी बात मानना धापू बाई के लिए मजबूरी थी, वह अपने पति को क्षेत्र में स्थित विभिन्न देवी-देवताओं के स्थानों पर ले गई, हर जगह नारियल, अगरबत्ती, चढ़ावा इत्यादि चढ़ाया मगर इन सब से भी उसका पति ठीक नहीं हुआ। पति की हालत दिनों दिन बिगड़ती ही जा रही थी।
गोगुन्दा, उदयपुर, अहमदाबाद, ऊंजा सहित कई शहरों के अस्पतालों में ईलाज करवाया लेकिन सब सिफर रहा और अंततः जून 2014 में उसके पति की मृत्यु हो गई। धापू बाई ने बताया कि उसका पति 2 वर्ष तक बीमार रहा। इन दो वर्षों में परिवार की आय नाम मात्र रही। पति के ईलाज व बच्चों के लालन पालन में उसने अपने जेवर, खेत व आबादी भूमि को गिरवी रख दिया। यही नहीं रिश्तेदारों से भी कर्जा ले लिया। 
पति की मृत्यु के बाद सामाजिक कुरीति (मृत्युभोज) मुंहबाय खड़ी थी। उसे पति का मृत्युभोज करना पड़ा। पति की मृत्यु के दिन से लेकर 12 दिन तक परिवार व समाज के लोगों ने रीति रिवाजों के नाम पर खूब खर्चा करवाया। गम से थोड़ी उबरी धापू बाई ने आर्थिक स्थिति की ओर ध्यान दिया तो आंखों से नीर टपकने लगा। आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि बच्चों का पेट भरना भी मुश्किल हो गया। अब उस आस तो महज भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार मण्डल से मिलने वाली आर्थिक सहायता की। बकौल धापू बाई ‘‘घर वाला री मौत फचे आॅफिस वाला म्हारो फाॅर्म भरवायो हो, वे मने बतायो क 45,000 रूपया पास वई सकेगा।’’
आर्थिक तंगी के दौर में धापू का कोई सहारा बना तो वह था श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र। केंद्र के लोगों ने आवेदन करने में पूरी मदद की और उसे हौंसला बंधाया। उसके बैंक खाता नहीं था, केंद्र के कार्यकर्ता ने ही सहयोग कर खाता खुलवाया। 7 जुलाई 2014 को उसके बैंक खाते में 45,000 रूपए की सहायता राशि आई। केंद्र से जुड़े राजमल कुलमी ने उसे वित्तिय प्रबंधन का पाठ पठाया। वित्तिय प्रबंधन सीख इस राशि से उसने सबसे पहले अपनी मां व भाई से उधार लिए रूपए चुकाए। उसके बाद गिरवी रखे खेत को छुड़वाया और छोटे-मोटे कर्ज से छुटकारा पाया।
राजमल कुलमी
राजमल कुलमी कहते है कि ‘‘धापू बाई आत्मविश्वास से लबरेज एक संघर्षशील महिला हैं। उसकी खासियत यह है कि वो मुश्किलों से तनिक भी घबराती नहीं है। उसके पति की मृत्यु के बाद मैंनें उसकी हालत देखी, उसके बाद कई बार धापू बाई के बारे में सोचने पर मजबूर हुआ। उस पर बहुत कर्जा था और 7 लोगों को पालने की जिम्मेदारी भी। इसलिए मैं हर उस योजना का लाभ उसे दिलवाना चाहता था, जिसकी वो पात्र थी। क्योंकि आर्थिक प्रकोप से बचाने के लिए सरकारी सहायता ही एक मात्र उपाय मुझे नजर आ रहा था।’’
धापू बाई की एक बेटी व दो बेटे गांव के ही उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। राजमल कुलमी का ध्यान पालनहार योजना की ओर गया, उन्होंने धापू बाई के तीनों बच्चों को पालनहार योजना से जुड़वाया। 20 अप्रेल 2015 को धापू बाई की बैंक डायरी का अवलोकन किया तो पाया कि उसके बैंक खाते में कोषाधिकारी कार्यालय ने इस वर्ष 36000 रूपए जमा कराए हैं।
गरीबी के थपेड़ों से पक चुकी धापू बाई के सामने नित नई बाधाएं आन खड़ी होती हैं। एक तो कच्चा कवेलूपोश कमरा उपर से ओलावृष्टि। घर के आधे से अधिक कवेलू फूट चुके हैं। किसी ने बताया कि ग्राम पंचायत में आवेदन करने पर मुआवजा राशि मिलेगी। उसने आवेदन किया तो ग्राम पंचायत से कहा गया कि वह बीपीएल श्रेणी में शामिल नहीं है इसलिए उसे मुआवजा नहीं मिलेगा। बैंक खाते में जमा रूपयों की उसे जानकारी नहीं थी। उसने गांव के एक व्यक्ति से ब्याज पर 3000 रूपए उधार लेकर घर पर नए कवेलू डलवाए हैं। लेकिन कवेलू कम पड़ गए, अभी भी रात में चांद सितारे उसके घर में झांक रहे हैं।
बालिग हो चुकी एक बेटी का विवाह 24 अप्रेल 2015 को होने वाला हैं। उसने बताया कि मेरे आॅफिस (केंद्र को वह अपना आॅफिस बताती हैं।) वालों ने बेटी के विवाह पर मिलने वाली सहायता राशि के लिए मेरा आवेदन करवाने में सहायता की। डेढ़ माह पहले ही मैंनें विवाह आवेदन करवा दिया हैं। मुझे उम्मीद है कि बेटी के विवाह के लिए मुझे सरकार से 51,000 रूपए की सहायता जरूर मिलेगी।
बहरहाल संघर्ष की प्रतिमूर्ति धापू बाई संघर्षों का सहर्ष सामना करते हुए, स्वाभिमानी से जीवन जी रही हैं। हाल ही में उसने प्राकृतिक प्रकोप ओलावृष्टि का सामना किया। अब बेटी का विवाह करवाना उसके लिए बड़ी चुनौती हैं लेकिन आत्मविश्वास व केद्र के सहयोग के बूते वह इस चुनौती को भी पार कर ही लेगी।
उसे मलाल है कि वह गिरवी पड़े अपने चांदी के आभूषणों को नहीं छुडवा पाई हैं। वह कहती है कि मजदूर आॅफिस नहीं होता तो मैं इन चुनौतियों का सामना नहीं कर पाती। कर्ज चुकाने में मेरा घर व खेत बिक जाते, मुझे बेघर होना पड़ेपड़ता। मैं ताउम्र आॅफिस वालों की आभारी रहूंगी।
संगठन की बैठक को सम्बोधित करती धापू बाई
केंद्र से जुड़ने के बाद धापु बाई और अधिक जाग्रत हुई हैं। उसने अपने हकाधिकारों को जाना हैं। आज वह सशक्त महिला के रूप में पहचानी जाती हैं। सरकारी दफ्तरों से लेकर गोगुन्दा कस्बे के आस-पास के क्षेत्रों के विभिन्न समुदायों के लोग उसके नेतृत्व और बेबाकी से वाकीफ हुए हैं। वह बजरंग निर्माण श्रमिक संगठन की सक्रिय महिला नेत्री हैं। हाल ही में संगठन के लोगों ने उसे सर्वसम्मति से अरावली निर्माण सुरक्षा संघ के सदस्य के रूप में मनोनित किया हैं।
गुजारिश है धापू बाई के लिए दुआएं मगफिरत फरमावें . . .

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