Sunday, February 5, 2012

झीनी-झीनी बीनी चदरिया - (Kabir)


झीनी रे झीनी बीनी चदरिया।
काहे का ताना, काहे की भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया।
इंगला-पिंगला ताना भरनी,
सुषमन तार से बीनी चदरिया।

आठ कंवल दस चरखा डोलै,
पांच तत्व गुन तीनी चदरिया।
सांई को सियत मास दस लागे,
ठोक ठोक कर बीनी चदरिया।

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी,
ओढि़ के मैली कीनी चदरिया।
दास ‘कबीर’ जतन जतन सौं ओढ़ी,
ज्यों की त्यो धरि दीनी चदरिया।

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