Wednesday, February 1, 2012

क्या लोकपाल से गरीब मजदूरों को काम का दाम मिल जायेगा ?


लखन सालवी 
लोकपाल पर भारी चर्चाएं हो रही है। अन्नाजी छा गए है] उनके एक इशारे पर देश की जनता दिल्ली में पहूंच जाती है और रामलीला मैदान व राजघाट पर पैर देने को जगह शेष नहीं रह जाती है। पर ऐसा लगता है कि लोकपाल बिल महज भ्रष्टाचार का विरोध मात्र बन कर रह गया है। हालांकि बुद्धिजीवी व भेड़चाल चलने वाले सभी इस कानून की मांग पुरजोर से कर रहे है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या लोकपाल कानून के बन जाने से व्यवस्थाएं सुधर जाएगी उससे भी बड़ा सवाल है कि व्यवस्थाओं को बिगाड़ने के लिए कौन जिम्मेदार है
मैं तो कई कानूनों का बुरा हश्र होते देख रहा हूं एक कानून की स्थिति देखिए ---

महानरेगा को एक योजना महज समझा जा रहा है जबकि यह महज योजना नहीं होकर एक कानून है। इस कानून के तहत नागरिकों को 10 अधिकार दिए है। इस कानून के तहत कोई भी नागरिक ग्राम पंचायत में अपने परिवार का रजिस्टेªशन कर रोजगार के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदन करने के बाद  15 दिन के भीतर आवेदक को रोजगार देने] रोजगार देने के बाद नियोजित मजदूर द्वारा काम कर लेने के बाद 15 दिन के भीतर उसे काम का मेहनताना देने का प्रावधान है। 

बारां जिले के सहरिया बाहुल्य क्षेत्र के मजदूर इस कानून के बारे में नहीं जानते है लेकिन यह सच है कि वो काम के लिए आवेदन करते है और उन्हें रसीद नहीं दी जा रही है। रसीद नहीं दी जा रही है तो मतलब साफ है कि 15 दिन के भीतर काम देने की गांरटी नहीं रही। काम नहीं दिए जाने की स्थिति में 15वें दिन के बाद से आवेदक को घर बैठे बेरोजगारी भत्ता दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन मजदूर को यह प्रमाणित करना पड़ेगा कि उसे रोजगार नहीं मिला] जो कि पावती रसीद के बिना संभव नहीं है। 

इसी तरह देरी से भुगतान करने की स्थिति में मजदूर को मुआवजे व ब्याज सहित काम का भुगतान करने के प्रावधान है। सिर्फ बारां जिले में ही नहीं अपितु पूरे देश में ऐसे कई मजदूर है जिन्हें समय पर काम का दाम नहीं दिया जा रहा है। बारां जिले की शाहबाद तहसील के कोटरा] बीलखेड़ा सहित कई गांवों के मजदूरों का एक साल पहले का भुगतान नहीं हुआ है। किनगंज तहसील के बांसथूनी] महेरावता खैरपुर सहित कोई दर्जन भर गावं के मजदूर ऐसे है जिन्होंने एक वर्ष पूर्व महानरेगा के तहत कार्य किया लेकिन उन्हें अभी तक भुगतान नहीं किया गया है। 

किशनगंज व शाहबाद ब्लाक की कोई एक आध ग्राम पंचायते ही है जहां रोजगार सहायक द्वारा पावती रसीद दी जा रही है। शेष ग्राम पंचायतों में मजदूरों को पावती रसीद नहीं दी जा रही है। इस बात से तमाम लोग वाकिफ है] तहसील] जिला व राज्य स्तर के अधिकारी व विभाग के मंत्री व मुख्यमंत्री व बुद्धिजीवी सभी इस बात को जानते है लेकिन इस व्यवस्था को सुधारने की बात कोई भी नहीं कर रहा है। 
ऐसे ही कई कानून है जिनकी दशा हम सभी देख रहे है। महानरेगा] सूचना का अधिकार कानून] वन भूमि अधिकार कानून] शिक्षा का अधिकार कानून जैसे कई कानून है जिनकी स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। लोग तो महानरेगा को अर्थव्यवस्था बिगाड़ने वाला व महंगाई बढ़ाने वाली सरकारी योजना बताते है। महंगाई बढ़ने में महानरेगा को सबसे बड़ा कारण कहा जा रहा है। दूसरी तरफ हम सभी व्यवस्था को सुधारने के लिए लोकपाल कानून की मांग कर रहे है। हम चाहते है कि लोकपाल नाम का जिन्न आए और व्यवस्था को सुधार दे। जबकि व्यवस्था को सुधारने के लिए जरूरी है आम नागरिकों की जागरूकता और भागीदारी जो कहीं भी नजर नहीं आ रही है। मैं तो यही कहता हूं कि अगर हासिए पर जी रहे लोगों के लिए लोकपाल मददगार नहीं बन सके तो फिर महज कानूनों की सूची को और लम्बी करने वाला कानून होगा लोकपाल।


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