पिछले बरस जब होली आई, फूलों ने ली अंगडाई,
रंगों की बौछार आई, मन में अपार खुशी छाई,
फिर आया मौसम पतजड़ का... अगल था कुछ,
मस्त आनन्द लाया,
जेठ की तपन निकल गई तपते तपते,
जून माह में एक जलजला आया,
रह गया मरते मरते,
बस यूं हीं बातें करते करते,
एक दूजे के मन को हरते,
हम जा रहे थे सुन्दर उपवन में,
आखिर पहुंच गए उपवन में . . .
लेकिन तब तक पतजड़ आ गया,
नहीं है वो पहले जैसा .....
"लखन हैरान"
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