तिनकों को तिनकें ही दे रहे है सहारा,
दरख्तों की तो पत्तियों के हिलने से ही जड़े उखड़ रही है।
लेकिन हम हिम्मत ना हारेंगे,
दो गज जमीं में उतरेंगे, शाखाओं को और मजबूत करेंगे।
फिर, हम ना तो उखड़ पाएंगे
और ना ही किसी शमशीर की धार हमें काट पाएंगी . . .
‘‘लखन हैरान’’
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