लखन सालवी
शुक्रवार 6 जनवरी को बंधुआ मजदूरी के मामले की जानकारी लेने के लिए एक जमींदार के यहां गई एक महिला पत्रकार के साथ जाना हुआ। जमींदार से दुआ सलाम भी पूरी नही हुई कि वो बोला कैसे आए है ?
महिला पत्रकार ने कहा बंधुआ मजदूरी के बारे में जानने के लिए आए है। महिला पत्रकार का इतना कहना था कि जमींदार ने तिलमिलातें हुए कहा कि बहुत आ गए तुम्हारे जैसे पत्रकार, बंधुआ मजदूरों को छुड़वा दिया जाओं उनकी दशा देखों, कितनी बुरी दशा हो गई है उनकी।
उसने बंधुआ मजदूरी पर बात करने से साफ इंकार कर दिया, आखिर वो अपना पक्ष रखे भी तो क्या, कुछ हो तो ना . . .
यह जमींदार था, प्रवीण सिंह सरदार उर्फ बिट्ठा। (कहते है कि बिट्ठा अपने मजदूरों के साथ ज्यादती करता था, जो उसका विरोध करता उसके हाथ गन्ने के रस को उबालने के लिए जलाई जाने वाली भट्टियों में जला देता था।)
खैर बिट्ठा के यहां लगे बंधुआ मजदूरों को प्रशासन ने बंधक मुक्त करवा दिया है। बिठ्ठा तिलमिलाया हुआ है।
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