- लखन सालवी
Lakhan Salvi |
हर चौगान में रेलमपेल है,
बाजारों में रंगत है,
शबाब को शब का इंतजार है,
लगता है आज होली है।
सब अपने-अपने अनोखे रंगों में रंगे हुए है,
परदेशी आया है गांव में सब सजे हुए है,
जंगल है, यहां अभी मंगल ही मंगल है,
लगता है आज होली है।
कईयों ने खाए है पान,
किसी ने पी है भांग,
कोई देशी तो कोई इंग्लिस पीकर फुल मस्त है,
लगता है आज होली है।
कोई सज धज कर आया है सूरत-मुम्बई-अहमदाबाद से।
प्रियतम के लिए लाया है लहंगा-चोली परदेश से।
कोई लगा के कानों में ईयर फोन,
चबाते हुए दांतों से तानसेन,
गुनगुना रहा है जैसे वो हो पलास सेन।
आज होटल-रेस्टोरेंट नहीं मिलेंगे खाली,
यहां भी बिकेगी मय, बंद कमरों में मिलेगी शबाब की टोली।
मिलेंगे हमजोली क्योंकि है ना होली।
चौगानों-चौराहों में,
गलियों और मोहल्लों में,
होली में उड़लेंगे घी-तेल, फिर आग लगायेंगे,
बुराई को जलायेंगे।
प्रेम से जलाना सीख गए हम,
लगाकर कुमकुम का तिलक,
देकर नारियल की सप्रेम भेंट,
सम्मान सहित जलायेंगे,
अंत में जाते-जाते पानी की चार बूंदें छिड़केंगे,
बुझ ना जाये आग, ध्यान पूरा लगायेंगे।
शानदार
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