हर जगह सुनने को मिलता है कि सूचना एवं क्रांति के इस आधुनिक युग में छुआछूत जैसी दुर्भावनाएं नहीं रही है, लेकिन ये सच नहीं है। कथित सवर्ण समुदायों के लोगों की सवर्णवादी मानसिकता बढ़ती जा रही है। वहीं दलित मुद्दों पर काम कर लोगों की माने तो उनका कहना है कि ‘‘सवर्ण समुदायों के लोगों की मंदिरों की सम्पत्ति पर गिद्ध दृष्टि है, वो माहौल बनाकर दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करते है और फिर मंदिर की सम्पति पर कब्जा कर लेते है। मंदिरों से दलित पुजारियों को बाहर निकालने की घटनाओं पर नजर डाले तो इन दलित कार्यकर्ताओं की बातें कटु सत्य प्रतीत होती है। यह सच है, वरना थला गांव का बलाई जाति का परिवार बरसों बाद नीच कैसे हो गया ?
भीलवाड़ा जिले की रायपुर तहसील के थला गांव में दलित पुजारी को मंदिर व मंदिर की कृषि भूमि से यह कहते हुए बेदखल कर दिया कि ‘‘तुम नीच जात के हो, आज के बाद मंदिर में मत आना वरना गांव से बाहर कर देंगे।’’ यही नहीं बरसों पहले देवनारायण मंदिर परिसर में दलित पुजारी हजारी लाल बलाई द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को भी तोड़ दिया।
जानकारी के अनुसार रायपुर तहसील के थला गांव के लेहरू लाल बलाई के पिता ने कई बरसों पूर्व गांव मंे ही स्थित देवनारायण मंदिर के पास लोगों के बैठने के लिए एक सार्वजनिक सराय का निर्माण करवाया था। तब से ही आमजन उस सराय का उपयोग करते आ रहे है। लेकिन 20 नवम्बर 2012 को सुबह कुमावत जाति के भगवान लाल, लादूलाल, गणेश लाल, पारस लाल, भैरू लाल व भोजाराम सहित कुमावत जाति के अन्य लोगों ने हमसलाह होकर उस सार्वजनिक सराय को तोड़ दिया। लेहरू लाल ने सराय को तोडने का विरोध किया तो आरोपियों ने उसके साथ दुव्यर्वहार करते हुए जातिगत गालियां निकाली। यही नहीं आरोपियों ने दलित लेहरू लाल को धारदार हथियार से मारने का प्रयास भी किया। लेहरू लाल बलाई ने रायपुर थाने में इस आशय की रिपोर्ट दी है। पुलिस राजनेताओं के दबाव में है और अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है। भट्ट ग्रंथ (भाट की पौथी) के अनुसार लेहरू लाल के पूर्वज पीढि़यों से देवनारायण मंदिर की पूजा करते आ रहे है।
मेरे दादाजी (अमरा लाल बलाई) ने बरसों पहले देवनारायण मंदिर का निर्माण किया था। मूर्ति स्थापना के बाद से ही मेरे दादाजी मंदिर की पूजा अर्चना करते रहे। बाद में मेरे पिता (हजारी लाल बलाई) ने मंदिर के पास ही एक सराय का निमार्ण किया। मंदिर की पूजा अर्चना शुरू से ही मेरे परिवारजन करते रहे लेकिन करीब 20 साल पहले कुमावत जाति के दंबग लोगों ने मेरे को पिता को मंदिर से बेदखल कर निकाल दिया और स्वयं पूजा करने लगे। मेरे पिता ने मंदिर से बेदखल करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था। वो मामला अभी तक न्यायालय में विचाराधीन है। अब कुमावत जाति के लोगों ने मंदिर के नाम दर्ज कृषि भूमि पर से भी हमें बेदखल कर उस पर कब्जा कर लिया है। हमने न्यायालय की शरण ली है। - लेहरू लाल बलाई, गांव-थला, तहसील-रायपुर, जिला-भीलवाड़ा (राज.)
भीलवाड़ा जिले के माण्डल विधानसभा क्षेत्र के सूलिया गांव में दलित पुजारी को मंदिर पर प्रवेश नहीं करने दिया गया नतीजा दलित संगठित हुए और आंदोलन किया और गुर्जर जाति के लोगों के भारी विरोध और धमकियों के बावजूद मंदिर में प्रवेश करके दम लिया। जानकारी के अनुसार सूलिया में स्थित देवनारायण मंदिर की पूजा पीढि़यों से बलाई समुदाय के पुजारी करते आ रहे थे। तत्कालीन गुर्जर जाति के लोगों को दलित पुजारियों से कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन वर्ष 2006 (सूचना एवं क्रांति का समय) में गुर्जरों ने दलित पुजारियों को मारपीट कर मंदिर से बेदखल कर दिया। हालांकि दलित पुजारियों ने संघर्ष कर पुनः पूजा के अधिकार को प्राप्त कर लिया। माना जाता है कि इस मामले में तत्कालीन पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर ने अपने समुदाय के लोगों की मदद की। गुर्जरों की दादागिरी से पीडि़त दलित वर्ग एकजुट हुआ आगामी विधानसभा चुनावों में कालु लाल गुर्जर को हार का मुंह देखना पड़ा।
कुछ महीनों पूर्व जिला प्रमुख सुशीला सालवी के पीहर थाणा गांव में दलित पुजारी जयराम बलाई को मंदिर और मंदिर की कृषि भूमि से बेदखल कर दिया। जयराम बलाई की निजी सम्पत्ति को भी गुर्जरों ने नष्ट कर दिया। जयराम बलाई की ओर से पुलिस थाना करेड़ा में 2 एफआईआर दर्ज है। अब 2012 के आखिरी माह में रायपुर तहसील के थला गांव में कथित सवर्ण कुमावत जाति के लोगों ने देवनारायण मंदिर परिसर में दलितों द्वारा बनाई गई सार्वजनिक सराय को यह कहते हुए ढ़हा दिया कि ‘‘बलाईयों द्वारा बनाई सराय को यहां नहीं रहने देंगे।’’ यही नहीं उन्होंने राजस्व रिकार्ड में दलित पुजारी के नाम दर्ज मंदिर की जमीन से दलित पुजारी के परिवार को बेदखल करते हुए उस पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
पिछले कुछ सालों में अकेले भीलवाड़ा जिले में दलितों को मंदिर में नहीं जाने देने व बरसों से मंदिर की पुजा अर्चना करते आ रहे दलित पुजारियों को मंदिर से बेदखल करने की कई घटनाएं हुई। लेकिन दलित संघर्ष कर अपने अधिकारों को पाने में कामयाब रहे - परसराम बंजारा, दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान
*लेखक खबरकोश डॅाटकॅाम के सहसंपादक है।
Ram ram lakhan ji very good New
ReplyDeleteGood new
ReplyDeleteJai ho sir
ReplyDeleteAakhir kaar salvi ,meghwal samaj marte dum tak sangharsh karta he
Ye jo jati was fela rhy unko kdi se kdi shja mily enki vhj se kDa kaunun lagu huaa
ReplyDeleteVery nice information
ReplyDeleteMe balai jati ka bhot samman krta hu.wo bhi hamare bhai h me unme aur hum me koi frk nhi samjhta .
ReplyDeleteआप कौन से जाति के हो
Deleteप्राचीन काल से ही हाशिए पर रहे बलाई समाज के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने अलग से कोई योजना नहीं बनाई। इससे इस समुदाय से जुड़े लोग आज भी स्वयं को मुख्य धारा में शामिल नहीं पाते हैं। समुदाय के लोगों ने कई दफा सरकार से बलाई समाज के उत्थान के लिए विशेष योजनाओं की मांग की, लेकिन ऐसी कोई करिश्माई योजना आजादी के बाद अब तक नहीं बन सकी जो इस समुदाय को एक झटके में उबार सके।
ReplyDeleteबुनकर बलाई समाज
ReplyDeleteकहा से हो
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