- लखन सालवी
यहां सूर्योदय के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति के आगे पर्दा ऐसे डलता है जैसे किसी रंगमंच पर कार्यक्रम के समाप्त होते ही पर्दा डला हो। भोर के साथ ही आजाद की मूर्ति पर्दो के पीछे ढ़क दी जाती है और देर रात वापस पर्दे हटा लिए जाते है, जब जगत सो चुका होता है।
स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के अवसर पर देशप्रेम दिखाने वालों को भी आजाद की फिक्र नहीं है। अतिक्रमणकारियों के हौसेलें इतने बुलन्द है कि अतिक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। एक अस्थाई दूकान वाले ने कुछ माह पूर्व तक करीबन 8 फीट जगह पर अतिक्रमण किया था अब उसने करीब 40 फीट 25 फीट लम्बी व 8 फीट चौड़ी अस्थाई दूकान बना ली है। इस दूकान में चार काउन्टर है। एक पर बैग, दूसरे पर जूते, तीसरे पर श्रृंगार सामग्री तो चौथे पर अण्डर गारमेन्ट बेचे जा रहे है।
आजाद चौक के पास ही है सूचना केंद्र चौराहा। जो आजकल चौपाटी जैसा बन गया है, लाजमी है कि शाम होते ही शहरवासी खरीददारी, खाने-पीने व मनोरजंन के लिए यहां आते है। इन दिनों आम का सीजन है तो यहां आम के ठेले वालों की भरमार है। वैसे तो 3-4 ट्रेफिक पुलिस कान्सटेबल यहां नियुक्त है लेकिन ठेले वालों के आगे उनकी क्या बिसात कि वो मार्ग अवरूद्ध होने से रोक ले। वो यदा कदा अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर ठेले वालों को वहां से रड़का देते है। लेकिन ठेले वाले वापस अपना कब्जा जमा लेते है।
आजाद मैदान में नाट्क के आयोजन होते रहते है, वहां कार्यक्रम के दौरान पर्दे डलते है और उठते है। हजारों की संख्या में दर्शक देखते है। आजादी की तहरीक के महानायक आजाद की मूर्ति के आगे गिरते व उठते पर्दे को सिवाए आजाद की मूर्ति के अलावा कोई नहीं देख रहा है। आजाद हिन्दूस्तान के आजाद नागरिकों की करतूत को देखकर आजाद की आत्मा भी आंसू बहा रही होगी। बहरहाल आजाद हो इंतजार है कि वो इस अतिक्रमण से आजाद हो !
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