- लखन सालवी
आप भी उनके बारे में अपने अनुभव अपनी वॉल पर लिखिए और हेश टैग करिए और खास लोगों को टैग भी करिए। ये करना इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि समाजसेवी, लेखक, पत्रकार व चिंतक भंवर मेघवंशी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की और उस आखिरी पोस्ट के बाद उन्होंने फेसबुक को डिएक्टीवेट कर दिया, व्हाट्सएप्प बंद कर दिया, जितनी भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वे सक्रिय थे, सब से निष्क्रिय हो गए। देशभर के लाखों लोगों के मोबाइल में सेव उनके नम्बर भी अब बंद आ रहे है। उनकी आखिरी फेसबुक पोस्ट से ज्ञात होता है कि पूर्व में उनके साथ काम कर चुके उनके साथियों, कुछ दलित संगठनों व अन्य संगठनों के लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर तथा माउथ पब्लिसिटी के माध्यम से उनके खिलाफ उलजलूल बातें लिखी और कही गई है। उन लोगों ने जगह-जगह प्रचार किया है कि एक दलित उत्पीड़न के प्रकरण को दबाने की एवज में भंवर मेघवंशी ने विपक्षियों से 15 लाख रूपए लिए है। ऐसे कई मिथ्या आरोपों से भंवर मेघवंशी आहत हुए है और उन्होंने फेसबुक पर घोषणा कर दी कि अब वो संघर्षों वाले काम को विराम देकर शांति के साथ सृजन वाले काम करेंगे। उनका ऐसा करना लाजमी है, क्योंकि है तो वो भी इंसान ही, आखिर जिस वर्ग के लोगों के लिए वे आधी उम्र तक लड़ते रहे है, जिन वर्ग के लोगों को जागरूक करने के लिए काम करते है आज उसी वर्ग में से चंद लालची लोग उन पर मिथ्या आरोप लगा रहे है और गांव-गांव जाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे है और इस वर्ग के हम जैसे कथित जागरूक लोग चुपचाप बैठे देख-सुन रहे है, न सच्च को सामने लाना चाह रहे है और ना सच्च को जानना चाह रहे है तो ऐसे में भंवर मेघवंशी के इस कदम को मैं उचित मानता हूं . . . जिंदा है तब तक काम तो करने ही है, मगर जिस वर्ग के लोगों को संघर्ष करना सिखाया, जागरूक करने का प्रयास किया अगर वे इतने सालों बाद भी ये सब कुछ नहीं सीख पाए है या जानबूझ कर सीखे हुए का उपयोग नहीं करना चाह रहे है तो फिर इसका अंत क्या है ? आज यही सबसे बड़ा सवाल है।
भंवर मेघवंशी ने संघर्षों की राह छोड़ने का फैसला लिया है और इस फैसले से दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू समुदायों के जागरूक लोगों को गहरी पीड़ा हो रही है। खासकर युवा वर्ग हतोत्साहित हो रहा है। मुझे भी बड़ा दुःख हुआ। उन पर इस प्रकार के आरोप लगाने, उन्हें भ्रष्ट, बिकने वाला, और सौदेबाजी करने वाला बताने वालों की मैं कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूं। मैं हवाई बातें नहीं लिख रहा हूं, तथ्यों सहित बात करूंगा। भंवर मेघवंशी का जीवन एक खुली किताब की तरह है। अब तक जिस किसी स्वच्छ मन के, ईमानदार, सहज तथा निःस्वार्थ व्यक्ति का भंवर मेघवंशी से वास्ता पड़ा है, वो उनके बारे में अच्छी और सच्ची जानकारी दे सकता है। मेरा मानना है कि आज हर उस व्यक्ति को भंवर मेघवंशी के बारे में अपने अनुभव लिखकर सोशल मीडिया के माध्यम से जगजाहिर करने चाहिए। जैसे कि मैं कर रहा हूं . . . यह एक नवाचार है, जिसके माध्यम से हम किसी भी व्यक्ति की अच्छी या बूरी छवि को समाज के सामने स्पष्ट कर सकते है। तो इसकी शुरूआत मैं कर देता हूं . . . आप भी लिखिएगा . . .
मुझे ऐसे मिले भंवर जी (पहली मुलाकात) . . .
Bhanwar Meghwanshi |
मैं भीलवाड़ा जिले के कोशीथल गांव का हूं, 2006 या 2007 की बात है, तब मैं स्ट्रींगर के रूप में दैनिक भास्कर के साथ काम कर रहा था। मैं अपने केबिन में बैठा था, तब पड़ौसी गांव गलवा के बद्री लाल जाट मुझसे मिलने आए। उसके चारदिवारी युक्त बाड़े को ग्राम पंचायत ने जेसीबी द्वारा नस्तेनाबूत कर दिया था इसलिए वो कई दिनों से ग्राम पंचायत से पीड़ित थे। वो अपने भूखण्ड व ग्राम पंचायत द्वारा की गई कार्यवाही से संबंधित दस्तावेज ग्राम पंचायत से मांग रहे थे लेकिन ग्राम पंचायत द्वारा नहीं दिए जा रहे थे। बद्री लाल मुझसे सलाह लेने आए थे कि अब उन्हें क्या करना चाहिए ? मैंनें उन्हें सूचना का अधिकार कानून के बारे में बताया और सूचना लेने के लिए आवेदन करने की बात कही। साथ ही सूचना प्राप्त करने का आवेदन पत्र भी दिया जो उदयपुर की आस्था संस्था द्वारा तैयार किया गया था। वो आवेदन पत्र थोड़ा मटमेला हो गया था और उसका एक कॉलम समझ में नहीं आ रहा था। उसके बारे में जानने के लिए मैंनें उसके नीचे लिखे हुए भंवर सिंह चंदाणा के नम्बर पर कॉल किया और जानकारी चाही तो उन्होंने मेरा पता पूछने के बाद मुझे भंवर मेघवंशी के नम्बर देते हुए उनसे मदद लेने को कहा। मुझे भंवर मेघवंशी के पत्रकार होने, समाजसेवी होने की बात भी भंवर सिंह चंदाणा ने ही बताई। इससे पहले मैंनें भंवर मेघवंशी का नाम न कभी कहीं पढ़ा था और ना ही कहीं सुना था। चंदाणा द्वारा दिए गए नम्बर पर मैंनें कॉल किया और भंवर मेघवंशी से पहली बार बात हुई। मैंनें अपनी समस्या पहले बताई, उन्होंने मेरा परिचय लिया। बहुत ही शांत व सभ्य तरीके से बात की। इस दिन से पहले मुझसे इतने सभ्य तरीके से किसी ने बात नहीं की। फोन कॉल पर ही उन्होंने मेरी समस्या का समाधान कर दिया यानि कि मुझे जानकारी दे दी। उसके बाद उन्होंने मुझे आगामी एक सप्ताह के बीच की कोई तारीख बताते हुए आग्रह किया कि मैं उस तिथि को ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों के साथ रायपुर आऊं। उन्होंने बताया कि सगरेव गांव में दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार किए गए है, उन्हें न्याय दिलवाने के लिए रायपुर में सम्मेलन रखा गया है। फोन कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद मैंनें खूब सोचा। पत्रकार के दिमाग में जितने नेगेटिव/पॉजिटिव सवाल आते है, वे सभी मेरे दिमाग में उमड़े। यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि भंवर मेघवंशी में कोई तो पॉजिटिव एनर्जी है, जिसने मुझ जैसे दंभी और आडू बुद्वि को सम्मेलन की ओर खिंच लिया, मैंनें अपने स्तर पर भंवर मेघवंशी के बारे में जानकारी जुटाई, सगरेव की घटना की जानकारी ली और उसके बाद तीन दिन तक अपने स्तर पर सम्मेलन का प्रचार-प्रसार किया और अंततः कई साथियों के साथ सगरेव सम्मेलन में पहुंचा। भीलवाड़ा व राजसमन्द जिले के विभिन्न गांवों के कोई 3000 से अधिक लोग थे वहां। ज्यादातर मेरे परिचित थे। पाण्डाल के पास खड़े डिवाईएसपी रघुनाथ गर्ग से पूछा कि भंवर मेघवंशी कौन है ? तो उन्होंने बताया कि - जो मंच संचालन कर रहे है, वो ही भंवर मेघवंशी है। सामने देखा तो मंच पर समाजसेविका अरूणा रॉय, निखिल डे और कई लोग डाइस पर बैठे हुए है और एक डेढ़ पसली युवक मंच संचालन कर रहा है, और वो ही भंवर मेघवंशी है! मैं पाण्डाल के बाहर पीछे ही पीछे डीवाईएसपी रघुनाथ गर्ग और गंगापुर एसएचओ राम सिंह चौधरी के पास खड़ा-खड़ा मंच संचालनकर्ता को देखता रहा। टेंट की वजह से अंधेरा-सा होने व बहुत दूर होने के कारण मंच संचालनकर्ता की शक्ल साफ नहीं दिखाई दे रही थी इसलिए कान खोलकर उसके शब्दों को सुनकर रहा था। सधे हुए, साफ और असरदार शब्द और वाक्यों को सुनकर मेरा रौम-रौम खिल उठा। शरीर में सिहरन दौड़ उठी। मुझे गर्व हुआ कि मेरे वर्ग में ऐसा बंदा भी है। अब मैं धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ने लगा, पहुंचा तब तक सम्मेलन समापन की घोषणा हो चुकी थी और एमकेएसएस के मोहन बा, चुन्नी बाई व शंकर सिंह के साथ कम्प्यूनिकेशन टीम ढ़ोल की थाप जागरूकता और आंदोलन के गीत गा रहे थे।
कई लोग अरूणा रॉय को घेर के खड़े थे तो कई लोग निखिल डे को। भंवर मेघवंशी भीलवाड़ा मीडिया के जिला स्तरीय पत्रकारों के साथ बातचीत कर रहे थे। मैं भी पास जाकर खड़ा हो गया और मौका देखकर परिचय देते हुए हाथ आगे बढ़ा दिया और उन्होंने भी बड़ी सहजता के साथ मेरा थाम लिया जो आज तक नहीं छूटा। वो बहुत व्यस्त होते जा रहे थे, अरूणा रॉय व निखिल डे का इंटरव्यू करवाने की रिक्वेस्ट लिए मीडिया के लोग बार-बार उनके पास आ रहे थे। कई सामाजिक कार्यकर्ता आ रहे थे उनसे मिलने के लिए। वहीं कभी पुलिस के लोग आकर मिल रहे थे। कंधे पर कपड़े का थैला लटकाए भंवर मेघवंशी हर व्यक्ति से बड़े आराम के साथ मिल रहे थे और साथ ही अपने कुछ साथियों को दिशा निर्देश भी देते जा रहे थे। सारी व्यवस्थाएं भंवर मेघवंशी ही कर रहे थे। अभी तक मैंनें पीड़ित परिवार के लोगों को नहीं देखा। अंत में भंवर मेघवंशी से मिलकर रवाना हुआ तो वे बोले - इस मुद्दे पर भी कुछ लिखना लखन जी। मैंनें सोचा लिखकर क्या करूंगा, अखबार में तो रायपुर संवाददाता की ही खबर छपेगी, मैं लिखकर कहां छपावाउंगा।
पढ़ाकू और लिखाकूं है मेघवंशी, युवाओं को मोटिवेशन देना कोई इनसे सीखें
Bhanwar Meghwanshi Address the Third National Youth convention In Udaipur |
हमारी पहली मुलाकात के कुछ दिनों बाद भीलवाड़ा में सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान राजस्थान के द्वारा राष्ट्रीय युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया। भंवर मेघवंशी के आग्रह पर मैं भी इस सम्मेलन का हिस्सा बना और यहां से भंवर मेघवंशी को करीब से देखने और समझने के अवसर मिलने लगे। वे बहुत ही शानदार मैंनेजमेंट करते है। मंच संचालन में उनका कोई सानी नहीं। मैनजमेंट करना, बोलना, लिखना व पढ़ना। उनके जीवन की ये चार बातें मैं बहुत ही कम समय में अच्छे से जान गया। चूंकि मैं पत्रकारिता कर रहा था इसलिए उन्होंने हर अवसर पर मुझे लिखने की सलाह दी। जयपुर से प्रकाशित विविधा फीचर्स की कॉपी दी और अपनी मासिक पत्रिका डायमण्ड इंडिया की प्रति देकर युवा सम्मेलन के संदर्भ में डायमण्ड इंडिया के लिए लिखने का आग्रह किया। यही दौर था मेरा लेखन कार्य शुरू करने का। अब आए दिन उनसे मिलने का मौका ढूंढ़ा करता था मैं। कभी भीलवाड़ा, कभी सिरड़ियास तो कभी कहीं ओर। मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। उनके बैग में कई किताबें हुआ करती थी, घर के कमरे की हर ताक में किताबों की ढे़री लगी रहती थी। महीने के कोई पचास से अधिक साप्ताहिक और मासिक अखबार राज्य भर से डाक द्वारा उनके घर पर आते थे। मैं तो कहता हूं भंवर मेघवंशी खुद एक चलती फिरती लाइब्रेरी है। अब मैं किताबें पढ़ने लगा, कई प्रकार के अखबार पढ़ने लगा। महिला हिंसा, दलित उत्पीड़न सहित कई मुद्दों को उनके साथ रहकर समझा। फिर नौकरी करने चला गया मगर हमारा संपर्क बना रहा। ये सच है कि उनसे सम्पर्क नहीं हुआ होता तो मैं आज जिस जगह हूं, वहां नहीं होता। मेरे सोचने, समझने, कार्य करने का दायरा इन्हीं की वजह से बढ़ा। मेरे जैसे कई युवा साथी है, जो इनसे प्रेरणा पाकर आगे बढ़े है।
ऐसा है मेघवंशी का काम करने का तरीका
In Kala KheraVillage for fact Finding |
जहां कहीं भी दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू समुदाय के लोगों पर अत्याचार होता, भंवर मेघवंशी अपने युवा साथियों के साथ बैठकर रणनीति बनाते, युवा टीम के साथ वहां पहुंचते। सबसे पहले फैक्ट फाइंडिंग करते, यानि मामले की छानबीन करते, ताकि पहले स्वयं संतुष्ट हो सके कि मामला कितना सही है। बाद में फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट बनाते और उसे प्रशासनिक अधिकारियों को सौंप कर पीड़ित को न्याय देने की मांग करते। जो पीड़ित न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए अडिग पाया जाता, वे ऐसे पीड़ितों की मदद करते। जो पीड़ित खुद ही ढुलमुल रवैये का पाया जाता, तब वे अपने स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र भेजकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते।
पूछिए कस्तुरी इनकी क्या लगती है जो ये बड़ारड़ा पहुंच गए मदद करने ! पीड़ितों की मदद करने का कोई दायरा नहीं
Meeting with Kasturi Bai at Balarada (Chittorgarh) |
केवल दलित, आदिवासी एवं घुमन्तू वर्ग के पीड़ित लोगों के लिए ही भंवर मेघवंशी ने संघर्ष नहीं किए बल्कि हर पीड़ित व शोषित इंसान की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते है। सूलिया के दलितों का मंदिर प्रवेश मामला, सगरेव के दलितों पर अत्याचार का मामला, बनेड़ा के दलितों का यज्ञ से बहिष्कार का मामला, शंभूगढ़ के दलितों का यज्ञ से बहिष्कार का मामला, काला का खेड़ा के दलित परिवार पर उत्पीड़न का मामला, सूलिया के बालू जी गुर्जर पर उत्पीड़न मामला, हलेड़ की कमला बाई जाट व उनकी बहनों पर उत्पीड़न का मामला, बाला का खेड़ा में नायक जाति के किशोर को जिंदा जलाने का प्रयास करने का मामला, रायपुर की घाटी निवासी कालबेलिया परिवार की नाबालिग लड़की पर अत्याचार का मामला, बड़ा महुआ के दलित परिवारों का सामूहिक बहिष्कार का मामला, राजसमन्द जिले के गुणिया गांव के दलित व्यक्ति की पगड़ी जला देने और जान से मारने की धमकी का मामला, चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन ब्लॉक के बलारड़ा गांव की कस्तुरी बाई के परिवार पर अत्याचार का मामला, भीलवाड़ा जिले की लीला भील की हत्या का मामला, पोण्डरास में दफन के लिए दो गज जमीन का मामला, राजसमंद के सोलंकियों का गुढ़ा की दलित महिला को डायन कहकर प्रताड़ित करने का मामला . . . अनगिनत मामलें है, बहुत लम्बी सूची है, जिनमें मेघवंशी ने प्रत्यक्ष रूप से पीड़ितों की मदद की।
Meeting With Ad DM of Rajasmand Regarding Guniya Issue |
उन्होंने हर पीड़ित की मदद करने का प्रयास किया, चाहे वो दलित हो, आदिवासी हो, घुमन्तू वर्ग से हो या किसी भी वर्ग से। युवाओं को संगठित किया, उनकी प्रतिभा को पहचाने कर उसे निखारने का कार्य भी बखूबी किया। कई बार ऐसा हुआ जब अत्याचार का कोई मामला उन तक पहुंचा, पीड़ित लोग उनसे मिले, न्याय दिलवाने के लिए मदद करने की गुजारिश की, मेघवंशी ने रणनीति बनाई, टीम बनाकर रणनीति के अनुसार प्रक्रिया की, फैक्ट फाइंडिंग की, धरने, प्रदर्शन किए, कलेक्टर-एसपी से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिए और पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए संघर्ष किया, मैं पूरे समय इस प्रक्रिया में शामिल रहा। मैंनें देखा ऐसे कार्य के लिए उन्होंने पीड़ित परिवार, उसके रिश्तेदार या किसी से एक रूपए की मांग नहीं की। उन्होंने कुछ समूहों से बात कर उल्टा पीड़ित को आर्थिक मदद दिलवाई। कुछ समूहों से बात कर उन्हें आंदोलन को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी। इससे लोगों में नेतृत्व की क्षमता भी बढ़ी और उन्होंने आगे आकर जिम्मेदारियां ली। किसी ने तख्तियां बनाने की जिम्मेदारी ली तो किसी ने टेंट लगाने की जिम्मेदारी ली। मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि उन्होंने जितने भी आंदोलन किए, धरने-प्रदर्शन किए, सब लोकतांत्रिक तरीके से किए। समुदायों के लोगों को मुद्दे से जोड़ा और नेतृत्व सौंपकर सामूहिकता का भाव पैदा किया। मतलब उनके द्वारा किए गए संघर्ष बहुउद्देशीय रहे है।
संघर्ष के कई साथी खिलाफ भी हुए . . . वे वास्तविक साथी थे ही नहीं
जन अधिकारों की पैरवी के लिए किए गए संघर्षों में भंवर मेघवंशी के साथ कई लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। वो जब भी अपनी मुख्य टीम में किसी नए व्यक्ति को शामिल करते थे तो मैं हमेशा विरोध किया करता था। मेरा मानना था व्यक्ति को जांच परख कर कोर ग्रुप में शामिल किया जाए। इस मामले में मेघवंशी ने तानाशाही रवैया अपनाया। अपने अनस्ट्रक्चर्ड कोर ग्रुप में अपनी मर्जी से लोगों को शामिल कर लिया। जो बाद में उनके ही विरोधी बन गए। मेघवंशी अपनी व्यस्ततम जीवन शैली के कारण अपने साथ जुड़े लोगों की कुण्डली की जांच नहीं कर पाए।
Ambedkar Jayanti Samaroh 2013 at Azaad Chouk Bhilwara |
होता यूं था कि जैसे किसी गांव का कोई मुद्दा सामने आया। पीड़ितों ने न्याय दिलवाने में सहयोग की अपेक्षा की। तब उस गांव के या उस क्षेत्र के या उस जाति समुदाय के कुछ लोग भंवर मेघवंशी से मिलने आ जाते और संघर्ष की लड़ाई में साथ जुड़ जाते। धीरे-धीरे वे अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए दिन - रात भंवर मेघवंशी के पीछे-पीछे घूमने लगते। दरअसल वे अपनी राजनीति चमकाने की मंशा पाले हुए होते थे। कई ऐसे थे जो धरने, प्रदर्शन को सम्बोधित करने की चाह में उनसे जुड़ जाते, कई ऐसे भी होते जो धरने प्रदर्शन का नेतृत्व कर नायक बनने का ख्वाब पाले हुए होते थे। कई लोग अपनी रोटियां सकने के लिए भंवर मेघवंशी का इस्तेमाल करने की गरज से साथ जुड़ते। पर जब कई दिनों-महीनों तक मेघवंशी के साथ चलने के बाद भी उनके ख्याब, सपने, अरमान पूरे नहीं होते तब वे भंवर मेघवंशी का साथ छोड़ देते और हर जगह उनका दुष्प्रचार करना आरम्भ कर देते। यह मैंनें प्रत्यक्ष रूप से देखा है और समय-समय पर भंवर मेघवंशी को अवगत भी कराया और कई बार तो ऐसे लोगों को मूंह पर भी बोला कि स्वार्थी लोगों को भंवर मेघवंशी से नहीं जुड़ना चाहिए।
अभावों में भी खुद्दारी और मजे से जीने वाले इंसान है भंवर मेघवंशी !
Bhanwar Meghwanshi |
भंवर मेघवंशी संघर्ष पूर्ण जीवन को भी मस्ती से जीने वाले इंसान है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों को अंगीकार किए हुए और कबीर की वाणी का रस पीए हुए इंसानियत पर चलते है। चूल्हे के पास बैठकर बेंगन, टमाटर की सब्जी बनाकर हमें खिला देते है। कभी जीप में साथ लेकर चलते है तो कभी 15 किलोमीटर पैदल चला देते है। अलमस्त है, फक्कड़ है। कई बार हमारे पास भीलवाड़ा से सिरडियास आने का कोई साधन नहीं होता, आज भी बसों की गैलेरी में खड़े होकर सफर कर लेते है। कभी कोई साथी रेवदर, तो कभी कोई साथी जालोर, फालना, बूंदी बुलाते है कार्यक्रमों में। तब सोच में पड़ जाते है कि कैसे जाया जाए। बड़ा बैग कंधे पर लेकर रोड़वेज बस में चढ़ जाते है। तब मुझे बहुत दुःख होता है कि मैं उनकी कोई मदद नहीं कर पाता। कई बार बसों में चढ़ाने, उतारने के अवसर मिलते रहे है मुझे। बुलाने वालों को नहीं पता होता है कि उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है, वे कैसे आयेंगे। कैसे अपना परिवार चलाते होंगे। कहीं-कहीं लोग उन्हें भेंट स्वरूप 1000-2000 के लिफाफे जरूर पकड़ा देते है। कई ऐसे चाहने वाले भी है उनके, जो इनकी फक्कड़ता को जानते है, वे जब भी किसी अवसर पर इनसे मिलते है तो धीरे से उनकी जेब में कुछ नोट सरका देते है। प्रहलाद राय मेघवंशी को तो इनका क्रेडिट कार्ड ही समझ लिजिए।
फक्कड़ होने के बावजूद भंवर मेघवंशी के चेहरे पर कभी सीकन के भाव नहीं आते। कभी स्पूर्ति खत्म नहीं होती, उत्साह का कभी अवसान नहीं होता। समय के अनुसार हवाई जहाज, ट्रेन, बस, जीप में सफर करते है और जरूरत पड़ने पर कंधे पर बैग लटका कर पैदल भी चल पड़ते है। होटल में खा लेते है, रेस्टोरेंट में भी खाते है और कभी कभी तो रोड़ साइड़ ढ़ाबे पर मिलने वाले पराठें से भी काम चला लेते है। कभी कुछ नहीं मिला तो सड़क पर खड़े पानी पताशें खाकर ही संतुष्ट हो जाते है। ऐसा कईयों बार हुआ और आज भी होता रहता है, मैं कई अवसरों पर साथ रहा हूं। हर माहौल, हर परिस्थिति में जीना, चलना और संघर्ष करना आता है उन्हें।
कई काम शुरू किए और एक साल में ही बंद कर दिए गए
डायमण्ड इंडिया का पाक्षिक प्रकाशन आरंभ किया था। अच्छी डिमाण्ड हो चली ही अखबार की, भीलवाड़ा में। सम्पादन का कार्य भंवर मेघवंशी के जिम्मे था। मैं सह सम्पादक था। पर भंवर मेघवंशी तो भंवर मेघवंशी ठहरे, इनके पैरों में नहीं बल्कि दिमाग में भंवरी (चकरी) सेट है। जैसे ही कहीं अत्याचार, उत्पीड़न के समाचार इन्हें मिलते है, ये पहुंच जाते वहां। फिर न्याय समानता की लड़ाई लड़ते हुए कई दिनों तक वापिस ऑफिस नहीं आते। मैं बहुत जोर देता बुलाने पर तो फिर एक दिन बैठाकर प्यार से कह देते यह काम अपने लिए नहीं है लखन जी, अपन तो संघर्ष ही कर सकते है और अखबार का प्रकाशन कर आखिर हम क्या हासिल कर लेंगे। और एक दिन डायमण्ड इंडिया फिर से बंद हो गया।
कभी खबरकोश डॉटकॉम की शुरूआत की, उसे भी एक साल से अधिक नहीं चला पाए। जयपुर में एक दफ्तर खोलकर कंसलटेंसी का कार्य आरम्भ किया लेकिन भंवर मेघवंशी की संघर्षों की ताकत के आगे उसने भी दम तोड़ दिया। रिखिया, बाबा रामदेव पीर एक पुर्नविचार जैसी कई पुस्तकें प्रकाशित की जिनमें भी लाखों का दिवाला आया।
ऐसे होती है थोड़ी बहुत आय
Discuss with Youth in a Workshop at Kotra (Udaipur) |
खेती के कारण इनके घर का अनाज भण्डार सदैव भरा रहता है, खेत से ही सब्जियां आदी आ जाती है। परिवार के लोग मिलकर खेती व घर का काम करते है। भंवर मेघवंशी को देश भर में कई सामाजिक संगठनों के लोग विभिन्न मुद्दों पर बोलने के लिए, डॉक्टूमेंटशन के लिए, मुद्दे आधारिक किताबें लिखने के लिए बुलाते रहते है। कई शैक्षणिक संस्थान भी इन्हें रिसोर्स परसन के रूप में बुलाते है। वहीं कुछ सालों से इन्हें सेमीनार, कार्यशालाओं व सम्मेलनों में भी बुलाया जाने लगा है। इन सब कार्यों की एवज में इन्हें मानेदय दिया जाता है। विगत कुछ माह से इनके यूट्यूब चैनल शून्यकाल से इन्हें आय होने लगी है। इन सब से इनका जीवन चल रहा है।
Hira Lal Megwhanshi |
जीप की पूरी कहानी तो सुनिए हीरजी की जबानी
कुछ साल पहले इन्होंने एक बोलेरो जीप खरीदी थी। विरोधी लोगों ने खूब सवाल उठाए कि समाजसेवी भंवर मेघवंशी ने जीप कैसे खरीदी, खरीदन के लिए रूपए कहां से आए, आदि-आदि। दरअसल रायपुर सम्मेलन के दौरान ही मित्र बने रेह गांव के हीरा लाल मेघवंशी (हीरजी) जो कभी ड्राइवर चलाया करते थे, उस सम्मेलन के बाद सदा के लिए भंवर मेघवंशी के साथी हो गए और वे हर समय भंवर मेघवंशी के साथ रहने लगे। हीरजी को साथ जोड़े रखने के लिए जीप की आवश्यकता महसूस की गई। तब भंवर मेघवंशी ने लोन पर जीप ली। लोन की कुछ किस्ते हीरजी ने जीप किराये पर चलाकर जमा कराई, वहीं कुछ किस्ते भंवर मेघवंशी के दोस्तों ने जमा कराई, जिनका भुगतान भंवर मेघवंशी ने बाद में किया। अब तो वो जीप भी थक चुकी है, जिसे पुनः ऊर्जावान बनाने की जरूरत है।
अंत में . . . मैं यह कहना चाहता हूं कि 2007 से लेकर आज तक कई यात्राओं, संघर्षों, आंदोलनों आदि में मैं कई समय भंवर मेघवंशी के साथ रहा। कभी मैंनें उन्हें किसी से अनैतिक सौदेबाजी करते हुए नहीं देखा। आज पीड़ित भी जिंदा और पीड़ितों को पीड़ा देने वाले भी जिंदा है, उनसे मुखातिब होकर भी हम भंवर मेघवंशी के बारे में उनके विचार जान सकते है। मैंनें तो देखा और जो अनुभव किया वो लिख दिया। अगर आपका भी इनसे कोई वास्ता पड़ा है तो अपने अनुभव शेयर किजिए, मुझे लगता है इस माध्यम से भी हम सच्चाई को सबके सामने रख सकते है।