कल भारत बंद था, दिहाड़ी मजदूरों को भूखे ही सोना पड़ा
पेट्रोल की कीमत में लगभग साढ़े सात रुपए प्रति लीटर की वृद्धि के विरोध में भाजपा नीत विपक्षी राजग, वाम दलों और व्यापारी संगठनों ने गुरूवार को राष्ट्रव्यापी बंद का आव्हान किया। बंद समर्थक सुबह से ही सड़क पर उतर आए और जबरन बंद करवाया। कई स्थानों पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी।
भारत बंद, पेट्रोल सस्ता करो, गैस सस्ती करो, टेªन, हवाई जहाज किराया कम करो, ये सब पार्टियों के चैंचले है, वो स्वयं की और अपने चेहते अमीरों की सोचते है, गरीबों की सोचने वाला कोई नहीं है। गरीबी से निकले और अब मध्यमवर्गीय कहलाने लगे परिवारों के लोग भी गरीबों की नहीं सोचते है।
क्या आपको पता है कि भारत बंद से कितने गरीब परिवारों के लोगों को भूखा सोना पड़ा ? पेट्रोल के भाव बढ़ने से वाहन रखने वालों को परेशानी है, वो ही बैठे धरने पर . . . रहे भूखे . . . करे आन्दोलन। क्यों गरीबों को भूखे रहने पर मजबूर करते है ? भारत बंद करने वालों को इन तमाम गरीबों की हाय है कि पेट्रोल के दाम किसी भी सूरत में कम नहीं हो।
क्या कभी इन कथित अमीरों ने किसी गरीब के लिए आन्दोलन किया ? गरीबों के लिए धरने किए ? गरीबों के लिए भारत बंद करवाया ? नहीं . . गरीबों के लिए ये सब करने में भला उन्हें क्या लाभ। हां पेट्रोल के लिए, गैस, किराया, बिजली आदि का सस्ता करने के लिए भारत बंद करने से तो उन्हें शुद्ध लाभ ही होगा। मान ले कि सरकार ने सब्सिड़ी दे दी तो भी भार किस पर पड़ने वाला है। दाम कम हो भी जाए तो क्या होगा भार तो गरीब पर ही पड़ेगा।
दूकानें बंद थी, जिन्होंने खोली उनकी जबरन बंद करवा दी गई, चाय की थडि़यों, कटलों आदि को बंद कर दिया गया। सूचनाएं मिली कि जगह-जगह पर जबरन बंद करवाया जा रहा था, यह कैसा बंद ?
चैथे स्तम्भ को भी गरीबों से कोई वास्ता नहीं है। बंद के दौरान खबरें चली - ‘‘बंद करवाने के लिए बेंगलुरू में बीएमटीसी की तीन बसें जला दी गई और 10 अन्य बसों में तोड़फोड़ की गई। बसों का संचालन रोक दिया गया। वहीं राजधानी दिल्ली आॅटों नहीं चले। एम्स के बाहर भारी जाम लग गया है। कोलकता के वीआईपी मार्ग पर भी भारी जाम देखा जा रहा है। आदि . . ’’
अखबार खचाखच भरे थे, खबरों से तथा बंद के दृश्यों से। बड़े-बड़े टाइटल थे-‘‘भारत पूर्ण बंद रहा’’। मैं पूछता हूं भारत कहां बंद रहा, जो अखबार, टी.वी. न्यूज चैनल बंद की खबरें दे रहे है उनके संस्थान तो खुले थे। वो बंद नहीं कर सकते थे, आखिर करोड़ों रुपए के विज्ञापन जो मारे जाते उनके। उन्हें बंद के दौरान भी लाभ था और आगामी दो-चार दिनों में तो और अधिक लाभ होने वाला है। बंद सफल के धन्यवाद विज्ञापन जो मिलने वाले है।
पर्यावरण प्रेमियों का तो कहना है कि ‘‘पेट्रोल के दाम इतने बढ़ जाए कि खरीदना मुश्किल हो जाए, पिछले दो दशकों में वाहनों में भारी बढ़ोतरी हुई है। वाहनों का धुंआ पर्यावरण को दूषित कर रहा है, वाहन तापमान को भी बढ़ा रहे है तथा प्रकृति को नुकसान पहुंच रहा है। क्षणिक विकास के लिए अंधाधुंध दौड़ में हम प्रकृति का सर्वनाश कर रहे है।’’